_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 159)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*गाह बाशद कि कोदके नादाँ ब गलत बर हदफ जनद तीरे*_
_*📝तर्जमा : - " कभी ऐसा होता है कि नादान बच्चा गलती से निशाने पर कोई तीर मार देता है ।*_
_*" " हाँ बादे वुजूहे हक ( हक की वज़ाहत के बाद ) अगर फकत इस वजह से कि यह बात मैंने कही और वह अगले कह गये थे मेरी न माने और वह पुरानी बात गाये जायें तो कतए नज़र इसके कि कानून महब्बते नबवी सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से यह बात बहुत बईद है । वैसे भी अपनी अक्ल व फहम की खूबी पर गवाही देनी है " ।*_
_*यहीं से ज़ाहिर हो गया कि जो मअनी उसने तराशे सलफ में कहीं उसका पता नहीं और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने से आज तक जो सब समझे हुए थे उसको अवाम को ख्याल बता कर रद कर दिया कि इसमें कुछ फजीलत नहीं । इस कहने वाले पर उलमाये हरमैन तय्यबैन ने जो फ़तवे दिये वह ' हुसामुल हरमैन ' के देखने से ज़ाहिर हैं । और उसने खुद भी उसी किताब में सफा 46 में अपना इस्लाम बराये नाम तसलीम किया ।*_
_*मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी ' इन नाम के मुसलमानों से अल्लाह बचाये ।*_
_*📕12 . ' तहज़ीरुन्नास ' सफा न . 5 पर है कि : -" अम्बिया अपनी उम्मत से मुमताज़ होते हैं तो उलूम ही में मुमताज़ होते हैं बाकी रहा अमल उसमें बसा औकात बजाहिर उम्मती मसावी ( बराबर हो जाते हैं बल्कि बढ़ जाते हैं "*_
_*13 . और सुनिये इन काइल साहब ने हुजूर की नुबुव्वत को कदीम और दूसरे नबियों की नुबुव्वत को हादिस बताया जैसा कि सफा न . 7 पर है । " क्यूँकि फ़रके किदमे नुबव्वत और हुदूसे नुबुव्वत बावुजूद इत्तेहादे नौई खूब जब ही चसपाँ हो सकता है । क्या जात व सिफ़ाते बारी के सिवा . मुसलमानों के नज़दीक कोई और चीज़ भी कदीम है । नबुव्वत सिफत है और बिना मौसूफ के सिंफ़त का पाया जाना मुहाल है । जब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी ज़रूर हादिस न हुए बल्कि अजली ठहरे और जो अल्लाह और अल्लाह की सिफ़तों के सिवा को कदीम माने . ब इजमाये मुसलिमीन काफ़िर है ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 61/62*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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