_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 160)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*14 . इस गिरोह का आम तरीका यह है कि जिस चीज़ में अल्लाह के महबूबों की फजीलत जाहिर हो तो उसे तरह तरह की झूटी तावीलों से बातिल करना चाहेंगे हर वह बात साबित करना चाहेंगे जिस में तनकीस और खोट हो जैसे :-*_
_*📕बराहीने कातेआ सफा न . 51 में है कि - " नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं " । और इसको शैख़ मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की तरफ गलत मनसूब कर दिया । बल्कि उसी सफे पर नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वुसअते इल्म की बाबत यहाँ तक लिख दिया कि*_
_*अल हासिल गौर करना चाहिए कि शैतान कि व मलकुल मौत का हाल देख कर इल्मे मुहीते जमीन का फखरे आलम को ख़िलाफे नुसूसे कतईया के बिला दलील ' महज़ कियासे फ़ासिदा से साबित करना शिर्क नहीं तो कौन सा हिस्सा ईमान का है । शैतान व मलकुल मौत को यह बुसअत नस से साबित हुई फखरे आलम की वुसअते इल्म की कौन सी नस्से कतई है जिस से तमाम नुसूस को रद कर के एक शिर्क साबित करता है शिर्क नहीं तो कौनसा हिस्सा ईमान का है ।*_
_*हर मुसलमान अपने ईमान की आँखों से देखें कि इस काइल ने इबलीसे लईन के इल्म का नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म से ज्यादा बताया या नहीं ? और शैतान को खुदा का शरीक माना या नहीं ? हर ईमान वाला यही कहेगा कि जरूर बताया और जरूर माना । फिर इस शिर्क को नस से साबित किया । यहाँ तीनों बातें सरीह कुफ्र और इनका कहने वाला यकीनी तौर पर काफिर है । कौन मुसलमन उसके काफिर होने में शक करेगा ?*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 62/63*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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