_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 158)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*📕( 10 ) तक़वीयतुल ईमान सफा 22 में है कि*_
_*" जिसका नाम मुहम्मद या अली है वह किसी चीज़ का मुख्तार नहीं ' । तअज्जुब है कि वहाबी साहब तो अपने घर की तमाम चीजों का इख्तियार रखें और मालिके हर दोसरा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसी चीज के मुख्तार न हों । इस गिरोह का एक मशहूर अकीदा यह है कि अल्लाह तआला झूठ बोल सकता है बल्कि उनके एक सरगना ने तो अपने एक फतवे में लिख दिया कि : ' वुकूए किज्य के माना दुरुस्त हो गये जो यह कहे कि अल्लाह तआला झूठ बोल चुका ऐसे की तजलील ( जलील करना ) और तफसीक ( फासिक कहने ) से मामून करने चाहिये ।*_
_*सुबहानल्लाह खुदा को झूठा माना फिर भी इस्लाम , सुन्नियत , और सलाह किसी बात में फर्क न आया । मालूम नहीं इन लोगों ने किस चीज़ को खुदा ठहरा लिया है ।"*_
_*एक अकीदा उनका यह है कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ' खातमुन्नबीय्यीन ' व माना आखिररुल अम्बिया नहीं मानते और यह सरीह कुफ्र है ।*_
_*📕( 11 ) चुनाँचे तहजीरुन्नास सफा न . 2 में है कि*_
_*अवाम के ख्याल में तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम का खातम होना बई माना है कि अपको जमाना अम्बियायए साबिक के बाद और आप सब में आखिर नबी हैं मगर अहले फहम पर रौशन होगा कि तकदुम या तअख्खुर बिज्जात कुछ फजीलत नहीं । फिर मकामे मदह में यह फरमाना*_
_*📝तर्जमा - " हाँ अल्लाह के रसूल हैं और सब नबियों में पिछले हैं ।*_
_*" . . इस सूरत में क्यों कर सही हो सकता है ? हाँ अगर इस वस्फ को औसाफे मदह में से न कहे और इस मकाम को . मकामे , मदह न करार दीजिये तो अलबत्ता खातिमीयत ब एअतेबारे तअख्खुरे जमाना सहीह हो सकती है । पहले तो इस काइल ने खातमुन्नबीय्यीन के मथुनी तमाम अम्बिया से जमाने के एतिबार से मुतअख्खर होने को अवाम का ख्याल कहा और यह कहा कि अहले फहम पर रौशन है कि इसमें बिज्जात कुछ फजीलत नहीं हालाँकि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खातमुन्नबीय्यीन के यही मअ्ना कसरत से हदीसों में इरशाद फरमाये तो मआजल्लाह इस काइल ने तो हुजूर को अवाम में दाखिल किया और अहले फहम से खारिज किया । फिर खत्मे जमानी को मुतलकन फजीलत से खारिज किया हालाँकि इसी तअख्खुरे जमानी को हुजूर ने मकामे मदह में जिक्र फरमाया फिर यह कि*_
_*📕तहजीरुन्नास सफा न . 4 में लिखा कि - "*_
_*आप मौसूफ ब वस्फे नुबुब्बत बिज्जात हैं और सिवा आप के और नबी मौसूफ ब वस्फ नुबुव्वत बिल अर्ज " तहज़ीरुन्नास सफा न . 16 पर है कि बल्कि बिलफर्ज आपके जमाने में भी कहीं और कोई नबी हो आपका खातम होना बदस्तूर बाकी रहता है ।*_
_*📕तहज़ीरुन्नास सफा न . 33 पर है कि*_
_*" बल्कि अगर बिलफर्ज बाद ज़मानये नबी भी कोई नबी पैदा हो तो भी खातमीयते मुहम्मदी में कुछ फर्क न आयेगा चे जाये कि आपके मुआसिर ( एक वक़्त में रहने वाले ) किसी और ज़मीन में था फर्ज कीजिये उसी ज़मीन में कोई और नबी तजवीज़ किया जाये । " लुत्फ यह कि इस काइल ने उन तमाम खुराफात का ईजादे बन्दा होना खुद तसलीम कर लिया ।*_
_*📕तहजीरुन्नास सफा न . 34 पर है कि*_
_*अगर ब वजहे कम इल्तेफाती बड़ों का फहम किसी मजमून तक न पहुँचा तो उनकी शान में क्या नुकसान आ गया और किसी किसी तिफले नादान ने कोई ठिकाने की बात कह दी तो क्या इतनी बात से वह अजीमुश्शान हो गया ?*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 60/61*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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