_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 151)*_
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_*( 1 ) कादयानी फिरका के अक़ीदा*_
_*26 . अफसोस से कहना पड़ता है कि उनकी पेशीनगोईयों पर यहूद के सख्त एतेराज़ हैं जो हम किसी तरह उनको दफा नहीं कर सकते ( एअजाजे अहमदी पेज नं . 13 )*_
_*27 . हाय किसके आगे यह मातम ले जायें कि हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की तीन पेशीनगोईयाँ साफ तौर पर झूठी निकली ( एजाजे अहमदी पेज नं . 14 )*_
_*28 . मुमकिन नहीं कि नबियों की पेशीनगोईयाँ टल जायें ( कशती - ए - नूह पेज नं5 )*_
_*29 . हम मसीह को बेशक एक रास्त बाज़ आदमी जानते हैं कि अपने ज़माने के अकसर लोगों से अलबत्ता अच्छा था ( वल्लाहु तआलाआ अअलम ) मगर वह हकीकी मुनजी ( नजात दिलाने वाला ) न था । हकीकी मुनजी वह है जो हिजाज़ में पैदा हुआ था और अब भी आया मगर बरोज़ के तौर पर । खाकसार गुलाम अहमद अज़ कादियान ( दाफिउल बला पेज न . 3 )*_
_*30 . यह हमारा बयान नेक ज़नी के तौर पर है वर्ना मुमकिन है कि ईसा के वक़्त में बाज़ रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी में ईसा से भी आला हों । ( दाफिउल बला पेज नं 3 )*_
_*31 . मसीह की रास्तबाज़ी अपने जमाने में दूसरे रास्तबाज़ों से बढ़ कर साबित नहीं होती बल्कि यहया को उस पर एक फजीलत है क्यूंकि वह शराब न पीता था और कभी न सुना कि किसी फाहिशा औरत ने अपनी कमाई के माल से उसके सर पर इत्र मला था या हाथों और अपने सर के बालों से उसके बदन को छुआ था या कोई बे तअल्लुक जवान औरत उसकी खिदमत करती थी । इसी वजह से खुदा ने कुनि में यहया का नाम हसूर रखा मंगर मसीह का न रखा क्यों कि ऐसे किस्से उस नाम के रखने से माने ( रुकावट ) थे । ( दाफिउल बला पेज न . 4 )*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 54*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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