_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 152)*_
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_*( 1 ) कादयानी फिरका के अक़ीदा*_
_*32 . आप का कन्जरियों से मैलान और सुहबत भी शायद इसी वजह से हो कि जद्दी मुनासबत दरमियान है वर्ना कोई परहेज़गार इन्सान एक जवान कन्जरी - को यह मौका नहीं दे सकता कि वह उसके सर पर अपने नापाक हाथ लगा दे और ज़िनाकरी की कमाई का पलीद इत्र उसके सर पर मले और अपने बालों को उसके पैरों पर मले ।समझने वाले समझ लें कि ऐसा इन्सान किस चलन का आदमी हो सकता है ( जमीमा अनजाम आथम पेज न 7 )*_
_*इस के अलावा इस रिसाले में उस मुकद्दस रसूल की शान में बहुत बुरे अल्फाज़ इस्तेमाल किये हैं जैसे शरीर मक्कार बद - अक्ल , फहशगो , बदजबान झूटा , चोर , खलल दिमाग वाला , बदकिस्मत , निरा फरेबी और पैरो शैतान वगैरा । और हद यह कि मिर्जा ने उनके खानदान को भी नहीं बख्शा । लिखता है कि*_
_*33 . आपका खानदान भी निहायत पाक व मुतहहर है तीन दादियाँ और नानियाँ आपकी जिनाकार और कसबी औरतें थीं जिनके खून से आपका वुजूद हुआ । ( अन्जाम आथम )*_
_*34 . यसू मसीह के चार भाई और दो बहनें थीं । यह सब यसू के हकीकी बहनें थीं यानी युसूफ और मरयम की औलाद थे । ( कशती - ए - नूह )*_
_*35 . हक बात यह है कि आप से कोई मोजिज़ा न हुआ । ( अनजाम आथम ) 36 . उस जमाने में एक तालाब से बड़े निशान जाहिर होते थे । आप से कोई मोजिजा हुआ भी तो वह आपका नहीं उस तालाब का है । आप के हाथ में सिवा मक्र व फरेब के कुछ न था । ( अन्जाम अथम पेज न7 )*_
इन तमाम बातों से अच्छी तरह अन्दाज़ा हो गया होगा कि मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी काफिर है और उसके मानने वाले भी काफिर हैं ।
_*37 . तो सिवाये इसके अगर मसीह के असली कामों का उन हवाशी से अलग कर के देखा जाये जो महज़ इफ्तरा या गलतफहमी से गढ़े हैं तो कोई अजूबा नजर नहीं आता बल्कि मसीह के मोजिजात पर जिस कदर एअतेराज़ हैं मैं नहीं समझ सकता कि किसी और नबी के खवारिक पर ऐसे शुबहात हों क्या तालाब का किस्सा मसीही मोजिज़ात की रौनक नहीं दूर करता । इन बातों के अलावा कादियानी ने और भी बहुत सी तौहीन से भरी हुई बातें लिखी हैं कि जिन को जान कर कोई मुसलमान उसे मुसलमान नहीं कह सकता और न उसे काफिर समझने में शक कर सकता है । शरीअत का हुक्म है कि*_
*_📝तर्जमा : - " जो उन खबासतों को जान कर उसके अज़ाब और कुफ्र में शक करे वह खुद काफिर है ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 54/55*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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