_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 142)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
_*👉मसअ्ला : - ईमान में ज्यादती और कमी नहीं इसलिये कि कमी बेशी उस में होती है जिस में लम्बाई , चौड़ाई , मोटाई या गिनती हो और ईमान दिल की तस्दीक का नाम है और तस्दीक कैफ यानी एक हालते इजआनिया ( यकीनिया ) है कुछ आयतों में ईमान का ज्यादा होना जो फरमाया गया है । उससे मुराद वह है जिस पर ईमान लाया गया और जिसकी तस्दीक की गई कि कुर्आन शरीफ के नाजिल होने के ज़माने में उसकी कोई हद मुकर्रर न थी बल्कि अहकाम उतरते रहते और जो हुक्म नाज़िल होता हो । उस पर ईमान लाजिम होता । ऐसा नहीं कि नफसे ईमान बढ़ घट जाता हो । अलबत्ता ईमान में सख्ती और कमजोरी होती है कि यह कैफ के अवारिज़ से है । हजरते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु का ईमान ऐसा है कि अगर इस उम्मत के सारे लोगों के ईमानों को जमा कर लिया जाये तो उनका तन्हा ईमान सब पर भारी होगा*_
_*☝️अकीदा : - ईमान और कुफ्र के बीच की कोई कड़ी नहीं यानी आदमी या तो मुसलमान होगा या काफिर तीसरी कोई सूरत नहीं कि न मुसलमान हो न काफिर ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48/49*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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