_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 161)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*15 . 📕हिफजुल ईमान सफा न . 7 में है*_
_*हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म के बारे में यह तकरीर की कि : " आप की जाते मुकद्दसा पर इल्मे गैब का हुक्म किया जाना अगर ब कौले जैद सही हो तो दरयाफ्त तलब यह अम्र है कि इस गैब से मुराद बाज़ ( कुछ ) गैब हैं या कुल गैब ? अगर बाज उलूमे गैबिया मुराद हैं तो इसमें हुजूर की क्या तखसीस ( खसूसियत ) है ? ऐसा इल्मे गैब तो जैद व अम्र बल्कि हर सबी ( बच्चे ) व मजनून ( पागल ) बल्कि जमीअ ( तमाम ) हैवानात व बहाइम ( चौपाया ) के लिये भी हासिल है ।*_
_*" मुसलमानों ! गौर करो कि इस शख्स ने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में कैसी खुली हुई गुस्ताखी की कि हुजूर जैसा इल्म जैद व अम्र तो दर किनार हर बच्चे और पागल बल्कि तमाम जानवरों और , चौपार्यों के लिए हासिल होना कहा । क्या कोई भी ईमान वाला दिल ऐसे के काफिर होने में शक कर सकता है ? हरगिज़ नहीं ।*_
_*इस कौम का यह आम तरीका है कि जिस चीज़ को अल्लाह और रसूल ने मना नहीं किया बल्कि कुर्आन और हदीस से उसका जाइज होना साबित है उसको नाजाइज़ कहना तो दर किनार उस पर शिर्क और बिदअत का हुक्म लगा देते हैं जैसे मीलाद शरीफ की मजलिस , कियाम , ईसाले सवाब , कब्रों की जियारत , बारगाहे बेकस पनाह सरकारे मदीना तय्यबा व औलिया की रूहों से इस्तिमदाद ( मदद चाहना ) और मुसीबत के वक़्त नबियों और वलियों को पुकारना वगैरा बल कि मीलाद शरीफ के बारे में तो ऐसा नापाक लफ्ज़ लिखा है कि ऐसे नापाक अलफ़ाज़ रसूल के दुश्मन के अलावा कोई मोमिन नहीं लिख सकता । वह अलफ़ाज़ यह हैं ।*_
_*16 . 📕बराहीने कातिआ सफा न . 148 में हैं ।*_
_*" पस यह हर रोज़ इआदा ( दोहराना ) विलादत का तो मिस्ल हुनूद ( हिन्दूओं ) के कि स्वांग कन्हय्या की विलादत का हर साल कहते हैं या मिस्ल रवाफ़िज़ के कि नक्ल शहादते अहले बैत हर साल मनाते हैं । मआज़ल्लाह स्वांग आपकी विलादत का ठहरा और खुद हरकते कबीहा काबिले लौम व हराम व फिस्क है । बल्कि यह लोग उस कौम से बढ़ कर हुए । वह तो तारीख मुअय्यन पर करते है । इनके यहाँ कोई कैद ही नहीं । जब चाहें यह खुराफातें फर्जी बनाते हैं ।*_
_*" वहाबियों की और भी बहुत गन्दी गन्दी इबारते हैं जो दूसरी किताबों में देखी जा सकती हैं ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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