Wednesday, November 13, 2019



  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 162)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_

 _*यह भी वहाबियत की एक शाख़ है । वह चन्द बातें जो हाल में वहाबियों ने अल्लाह तआला और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी के तौर पर बकी हैं वह गैर मुकल्लिदीन से साबित नहीं । बाकी दूसरे तमाम अकीदों में दोनों शरीक हैं । और हाल के देवबन्दियों की इबारतों को देख भाल और जान बूझ कर उन्हें काफिर तसलीम नहीं करते और शरीअत का हुक्म है कि जो अल्लाह और रसूल की शान में गुस्ताखी करने वालों के काफिर होने में शक करे वह भी काफ़िर है । गैर मुकल्लिदों का एक बुरा अकीदा यह है कि वह चारों मज़हबों*_
_*( 1 ) हनफी*_
 _*( 2 ) शफिई*_
 _*( 3 ) मालिक*_
 _*( 4 ) हम्बली*_
 _*से अलग और तमाम मुसलमानों से अलग थलग एक रास्ता निकाल कर तकलीद को हराम और बिदअ़त कहते हैं और दीन के इमामों जैसे*_
 _*इमामे आज़म अबू हनीफा*_
_*इमामे शाफिई*_
 _*इमामे मालिक*_
_*इमामे अहमद इब्ने हम्बल*_
 _*को बुरा भला कहते हैं । यह लोग इमामों की तकलीद ( पैरवी नहीं करते बल्कि शैतान की करते हैं । गैर मुकल्लिदीन ' तकलीद ' और ' कियास ' का इन्कार करते है । जब कि मुतलक तकलीद और कियास का इन्कार कुफ्र है । इसलिये गैर मुकल्लिदीन का मजहब बातिल है ।*_

_*नोट : - फरअ् में अस्ल की तरह हुक्म को साबित करने को कियास कहते हैं । कियास कुर्आन और हदीस से साबित है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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