_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 154)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*यह एक नया फिरका है जो सन बारह सौ नौ हिजरी ( 1209 ) मे पैदा हुआ । इस मज़हब का बानी अब्दुल वहाब नजदी का बेटा मुहम्मद था । उसने तमाम अरब और खास कर हरमैन शरीफैन में बहुत ज्यादा फितने फैलाये । आलिमों को कत्ल किया । सहाबा , इमामों , अलिमों और शहीदों की कब्रें खोद डाली । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े का नाम सनमे अकबर ( बड़ा बुत ) रखा था और तरह तरह के जुल्म किये । जैसा कि सही हदीस मे हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खबर दी थी कि नज्द से फितने उठेंगे और शैतान का गिरोह निकलेगा । ' वह गिरोह बारह सौ बरस बाद ज़ाहिर हुआ । अल्लामा शामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने इसे खारिजी बताया । इस अब्दुल वहाब के बेटे ने एक किताब लिखी जिसका नाम ' किताबुत्तौहीद ' रखा । उसका तर्जमा हिन्दुस्तान में इसमाईल देहलवी ने किया जिसका नाम ' तकवीयतुल ईमान ' रखा । और हिन्दुस्तान में वहाबियत उसी ने फैलाई । उन वहाबियों का एक बहुत बड़ा अकीदा यह है जो उनके मज़हब पर न हो वह काफिर मुशरिक है । यही वजह है कि बात बात पर बिला वजह मुसलमानों पर कुफ्र और शिर्क का हुक्म लगाते और तमाम दुनिया को मुशरिक बताते हैं । चुनाँचे तकवीयतुल ईमान पेज न . 45 में वह हदीस लिखकर कि आख़िर ज़माने में अल्लाह तआला एक हवा भेजेगा जो सारी दुनिया से मुसलमानों को उठा लेगी उसके बाद साफ़ लिख दिया सो पैग़म्बरे खुदा के फरमाने के मुताबिक हुआ यानी वह हवा चल गई और कोई मुसलमान रूए ज़मीन पर न रहा । मगर यह न समझा कि इस सरत में खुद भी काफिर हो गया । इस मज़हब की बुनियाद अल्लाह तआला और उसके महबूबों की तौहीन और तज़लील पर है । यह लोग हर चीज़ में वही पहलू इख्तियार करेंगे । जिससे शान घटती हो । इस मजहब के सरगिरोहों के कुछ कौल नक्ल किये जाते हैं । ताकि हमारे अवाम भाई उनके दिलों की खबासतों को जान कर उनके फरेब और धोके से बचते रहें और उनके जुब्बा और दस्तार पर न जायें ।*_
_*बरादराने इस्लाम ! गौर से सुनें और ईमान की तराजू में तौलें कि ईमान से अज़ीज़ मुसलमान के नज़दीक कोई चीज़ नहीं और ईमान अल्लाह और रसूल की ताज़ीम ही का नाम है । ईमान के साथ जिसमें जितने फ़ज़ाइल पाये जायें वह उसी कद्र ज्यादा फजीलत रखता है और ईमान नहीं तो मुसलमानों के नजदीक वह कुछ वकअत ( हैसियत ) नहीं रखता अगरचे कितना ही बड़ा आलिम , जाहिद और तारिकुद्दुनिया बनता हो । मतलब यह है कि उनके मोलवी , आलिम , फाज़िल होने की वजह से तुम उन्हें अपना पेशवा न समझो जब कि वह अल्लाह और उसके रसूलों के दुश्मन हैं ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 57*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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