_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 155)*_
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_*3 . वहाबी फ़िरका*_
_*यहूदियों नसरानियों और हिन्दुओं में भी उनके मजहब के आलिम और तारिकुददुनिया होते हैं तो क्या तुम उनको अपना पेशवा तसलीम कर सकते हो ? हरगिज़ नहीं । इसी तरह यह ला मजहब औ बदमजहब तुम्हारे किसी तरहा पेशवा नहीं हो सकते । अब वहाबियों के कुछ कौल पेश किये जाते हैं ।*_
_*📕( 1 ) ईजाहुल हक सफा न . 35 , 36 , में है कि*_
_*📝तर्जमा : - " अल्लाह तआला का वक़्त और जगह और सम्त ( दिशा ) से पाक होना और उसका दीदार बिला सम्त और महाजात ( बिला आमने सामने ) के मानना सब हकीकी बिदअतों की किस्म से हैं*_
_*अगर वह शख्स ज़िक्र किये गये एअतिकादात को अकाइदे दीनिया की किस्म से मानता है । " इसमें साफ लिखा हुआ है कि अल्लाह तआला को वक़्त और सम्त से पाक जानना और उसका दीदार बिना कैफ मानना बिदअत और गुमराही है । हालाँकि यह तमाम अहले सुन्नत का अकीदा है तो उस कहने वाले ने तमाम अहले सुन्नत के पेशवाओं को गुमराह और बिदअती बताया । दुईमुख्तार , बहरुराईक और आलमगीरी में है कि अल्लाह तआला के लिए जो मकान साबित करे वह काफिर है ।*_
_*📕( 2 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 60 में इस हदीस*_
_*📝( तर्जमा : - " जरा ख्याल तो कर कि अगर तू गुजरे मेरी कब्र पर क्या तू उसको सजदा करेगा ?*_
_*के लिखने के बाद (ف) लिख कर फायदा यह जड़ दिया कि मैं भी एक दिन मर कर मिट्टी में मिलने वाला हूँ के बाद हालाँकि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि*_
_*📝तर्जमा : - " अल्लाह तआला ने अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के जिस्मों का खाना ज़मीन पर हराम कर दिया है*_
और
_*📝तर्जमा : तो अल्लाह के नबी जिन्दा हैं रोजी दिये जाते हैं ।*_
_*इन बातों से पता चलता है कि अल्लाह के नबी जिन्दा हैं और रोजी दिए जाते हैं ।*_
_*📕( 3 ) तकवीयतुल ईमान सफा 19 में है कि न*_
_*हमारा जब खालिक अल्लाह है और उसने हमको पैदा किया तो हमको भी चाहिए कि अपने हर कामों पर उसी को पुकारें और किसी से हमको क्या काम जैसे कोई एक बादशाह का गुलाम हो चुका तो वह अपने हर काम का इलाका उसी से रखता है दूसरे बादशाह से भी नहीं रखता और किसी चुहड़े चमार का तो क्या जिक्र " अम्बिया - ए - किराम और औलियाये इजाम की शान में ऐसे मलऊन अलफाज़ इस्तेमाल करना क्या मुसलमान की शान हो सकती है ?*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 57/58*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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