Wednesday, November 13, 2019



  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 153)*_
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 _*(2) राफिज़ी फिरका*_

_*राफिजी मज़हब के बारे में शाह अब्दुल अजीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपनी किताब ' तुहफए इसना अशरीया में बहुत तफसील से लिखा है । इस वक़्त राफिजियों के बारे में कुछ थोड़ी सी बातें लिखी जाती हैं ।*_

 _*"( 1 ) राफिज़ी फिरके के लोग कुछ सहाबियों को छोड़ कर ज्यादा तर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की शान में गुस्ताखियाँ करते और गालियों की बकवास करते हैं बल्कि कुछ को छोड़ कर सबको काफिर और मुनाफिक कहते हैं ।*_

 _*( 2 ) यह लोग हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहले खलीफा हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु , दूसरे खलीफा हजरते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु और तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में यह कहते हैं कि उन लोगों ने गसब कर के खिलाफत हासिल की है । यह लोग खिलाफत का हकदार हजरते अली रदियल्लाह तआला अन्हु को मानते हैं । हजरते अली ने उन तीनों खुलफा की तारीफें और बड़ाईयाँ की । उनको राफिजी लोग तकिय्या और बुजदिली कहते हैं । यह हजरते अली पर एक बहुत बड़ा इलजाम है क्यूंकि यह कैसे मुमकिन है कि एक तरफ तो हज़रते अली शेरे खुदा उन सहाबियों को गासिब काफिर और मुनाफिक समझें और दूसरी तरफ उनकी तारीफ करें और उन्हें खलीफा मानकर उनके हाथों पर बैअत करें। फिर यह कि कुर्आन उन सहाबियों को अच्छे और ऊँचे खिताब से याद करता है और उनकी पैरवी करने वालों के बारे में यह फरमाया है कि अल्लाह उनसे राजी वह अल्लाह से राजी क्या काफिरों और मुनाफिकों के लिये अल्लाह तआला के ऐसे फरमान हो सकते हैं ? हरगिज़ नहीं । अब उन सहाबियों के बारे में कुछ खास बातें बगौर मुलाहज़ा फरमायें : एक यह कि हजरते अली शेरे खुदा ने अपनी चहीती बेटी हज़रते उमर फारूक के निकाह में दी । राफिजी फिरका यह कह कर उन पर इल्जाम लगाता है कि उन्होंने तकिय्या किया था । सोचने की बात यह है कि क्या कोई मुसलमान किसी काफिर को अपनी बेटी दे सकता है ? कभी नहीं । फिर ऐसे पाक लोग जिन्होंने इस्लाम के लिये अपनी जानें दी हों और जिनके बारे में*_

_*📝तर्जमा - " किसी मलामत करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे । "*_

_*कहा गया हो । और हक बात कहने में हमेशा निडर रहे हों वह कैसे तकिय्या कर सकते हैं ? यह कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दो शहजादियाँ यके बाद दीगरे हजरत उसमान जुन्नूरैन के निकाह में आई । यह कि हजरते अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की साहिबजादियाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में आई । पहले , दूसरे और तीसरे खुलफा को हुजूर से ऐसे रिश्ते और हुजूर के इन सहाबियों से ऐसे रिश्ते के होते हुए अगर कोई . उन सहाबियों की तौहीन करे तो आप खुद फैसला करें कि वह क्या होगा ? इस फिरके का एक अकीदा यह है कि अल्लाह तआला पर असलह ' वाजिब है । यानी जो काम बन्दे के हक में नफा देने वाला हो अल्लाह पर वही करना वाजिब है और उसे वही करना पड़ेगा । इस फिरके का एक अकीदा यह भी है कि इमाम नबियों से अफज़ल है । ( जबकि यह मानना कुफ्र है ) राफिजियों का एक अकीदा यह कि कुर्आन मजीद महफूज नहीं बल्कि उसमें से कुछ पारे या सुरते या आयतें या कुछ , लफ्ज़ हज़रते उसमाने गनी या दूसरे सहाबा ने निकाल दिये । ( मगर तअज्जुब है कि मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने भी उसे नाकिस ही छोड़ा और यह अकीदा भी कुफ्र है कि कुर्आन मजीद का इन्कार है । ) राफिजीमों का एक अकीदा यह भी है कि अल्लाह तआला कोई हुक्म देता है फिर यह मालूम कर के कि यह मसलेहत उसके खिलाफ या उसके गैर में है पछताता है । और यह भी यकीनी कुफ्र है कि खुदा को जाहिल बताना है । ) राफ़िज़ियों का एक अकीदा यह है कि नेकियों का खालिक ( पैदा कर ने वाला ) अल्लाह है और बुराईयों के खालिक यह खुद हैं । ( मजूसियों ने तो दो ही खलिक माने थे ' यज़दान ' को अच्छाई का और बुराई का ख़ालिक ' अहरमन ' को । इस तरह से तो मजूसियों के दो ही खालिक हुए लेकिन राफिजियों के तो इस अकीदे से अरबों और संखों ख़ालिक हुए । ) इस तरह हम देखते हैं कि राफिज़ी अपने इन बुनियादी अकीदों की बिना पर काफ़िर व मुरतद हैं व गुमराह व बद्दीन हैं । इनके दीन की बुनियाद ऐसे गन्दे अकीदे और सहाबा की तौहीन है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 55/56/57*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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