_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 174)*_
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_*👑विलायत का बयान👑*_
_*🌟मसअ्ला : - कोई कितना ही बड़ा वली क्यों न हो जाये शरीअत के अहकाम की पाबन्दी में छुटकारा नहीं पा सकता । कुछ जाहिल जो यह कहते हैं कि ' शरीअत रास्ता है और रास्ते की जरूरत उनको है जो मक़सद तक न पहुँचे हों हम तो पहुँच गये । हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाह तआला अन्हु ऐसे लोगों के बारे में यह फरमाते हैं कि*_
_*📝तर्जमा : - " वह सच कहते हैं बेशक पहुँचे मगर कहाँ ? जहन्नम को " अलबत्ता अगर मजजूबियत की वजह से अक्ल जाइल हो गई हो जैसे बेहोशी वाला तो उससे शरीअत का कलम उठ जायेगा । मगर यह भी समझ लीजिए कि जो इस किस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी और कभी शरीअत का मुकाबला न करेगा ।*_
_*🌟मसअल : - औलियाए किराम को बहुत बड़ी ताकत दी गई है । उनमें जो असहाबे ख़िदमत हैं उनको तसर्रुफ का इख्तियार दिया जाता है । और स्याह सफेद के मुख्तार बना दिये जाते हैं । औलिया - ए - किराम नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सच्चे नाइब हैं उनको इख्तियारत और तसर्रुफात हुजूर की नियाबत में मिलते हैं । गैब के इल्म उन पर खोल दिये जाते हैं । उनमें से बहुतों को ' माकान व मायकुन ' और लौहे महफूज की खबर दी जाती है । मगर यह सब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वास्ते और देन से है । बगैर रसूल के वास्ते किसी गैरे नबी को किसी गैब की कोई खबर नहीं हो सकती ।*_
_*☝🏻अकीदा : - औलियाए किराम की करामतें हक हैं । इस हकीकत का इन्कार करने वाला गुमराह है ।*_
_*🌟मसअ्ला : - मुर्दा ज़िन्दा करना , पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को शिफा देना , मशरिक से मगरिब तक सारी जमीन एक कदम में तय करना , गर्ज तमाम ख़वारिके आदात करामतें ( वह बातें जो एक आम आदमी से मुमकिन नहीं यानी आदत के खिलाफ हैं ) औलियाए किराम से मुमकिन हैं । अलबत्ता वह खवारिके आदत जिनकी नबी के अलावा दूसरों के लिए मुमानअत हो चुकी है वलियों के लिए नहीं हासिल होंगी जैसे कुर्आन मजीद की तरह कोई सूरत ले आना या दुनिया में जागते हुए अल्लाह पाक के दीदार या कलामे हकीकी से मुशर्रफ होना । इन बातों का जो अपने या किसी वली के लिए दावा करे वह काफिर है ।*_
_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 70/71*_
_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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