_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 163)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_
_*ज़रूरी तम्बीह*_
_*वहाबियों के यहाँ बिदअत का बहुत चर्चा है । जिस चीज़ को देखिये बिदअत है । इसलिये मुनासिब यह है कि बता दिया जाये कि बिदअत किसे कहते हैं । बिदअते मज़मूमा व कबीहा यानी ख़राब ' बिदअत वह है जो किसी सुन्नत के मुखालिफ हो और सुन्नत से टकराती हो और यह मकरूह या हराम है । और मुतलक बिदअत तो मुस्तहब बल्कि सुन्नत और वाजिब तक होती है । हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु तरावीह के बारे में*_
_*📝( तर्जमा : - यह अच्छी बिदअत है । )*_
_*फरमाते है कि हालाँकि तरावीह सुन्नते मुअक्कदा है । जिस चीज़ की अस्ल शरीअत से साबित हो वह हरगिज़ बुरी बिदअत नहीं हो सकती । नहीं तो खुद वहाबियों के मदरसे और इस मौजूदा खास सूरत में उनके वाज़ के जलसे ज़रूर बिदअत होंगे । फिर यह वहाबी इन बिदअतों को क्यूँ नहीं छोड़ देते । मगर उनके यहाँ तो यह ठहरी है कि अल्लाह के महबूबों की अज़मत की जितनी चीजें हैं सब बिदअत और जिसमें उनका मतलब हो वह हलाल और सुन्नत ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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