_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 100)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸इस्तिहाज़ा के अहकाम*_
_*🩸इस्तिहाजा में न नमाज मुआफ है न रोजा और न ऐसी औरत से सोहबत हराम है ।*_
_*🌀माजूर के मसाइल*_
_*💫मसअला : - इस्तिहाजा अगर इस हद तक पहुँच गया कि उसको इतनी मोहलत नहीं मिलती । वुजू कर के फर्ज नमाज अदा कर सके तो नमाज़ का पूरा एक वक़्त शुरू से आखिर तक इस हालत में गुजर जाने पर उसको माजूर और मजबूर कहा जायेगा । एक वुजू से उस वक़्त में । नमाजें चाहे पढ़े खून आने से उसका वुजू न जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - मगर कपड़ा वगैरा रख कर इतनी देर तक खून रोक सकती है कि वुजू करके फ़र्ज़ पढ़ ले तो उसका माजूर होना साबित न होगा ।*_
_*💫मसअला : - हर वह शख्स जिसको ऐसी कोई बीमारी है कि एक वक़्त पूरा ऐसा गुजर गया कि वुजू के साथ नमाजे फ़र्ज़ अदा न कर सका वह माजूर है उसका भी यही हुक्म है कि वक़्त में वुजू कर ले और आखिर वक़्त तक जितनी नमाजें चाहे उस वुजू से पढ़े । उस बीमारी से उसका वुजू नहीं जाता जैसे कतरे का मर्ज या दस्त आना या हवा खारिज होना या दुखती आँख से पानी गिरना या फोड़े या नासूर से हर वक़्त रतूबत बहना या कान , नाफ या छाती से पानी निकलना कि ये सब बीमारियाँ वुजू तोड़ने वाली हैं उनमें जब पूरा एक वक़्त ऐसा गुज़र गया कि हर चन्द कोशिश की मगर तहारत के साथ नमाज़ न पढ़ सका तो यह मज़बूरी होगी और माजूर समझा जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - जब उज्र साबित हो गया तो जब तक हर वक़्त में एक एक बार भी यह चीज़ पाई जाये माजूर ही रहेगा जैसे औरत को एक वक़्त तो इस्तिहाज़ा ने तहारत की मोहलत नहीं दी अब इतना मौका मिलता है कि वुजू कर के नमाज़ पढ़ ले मगर अब भी एक आध बार हर वक़्त में खून आ जाता है तो अब भी माजूर है । यूँही तमाम बीमारीयों में । और जब पूरा वक़्त गुज़र गया और खून नहीं आया तो अब माजूर न रहीं जब फिर कभी पहली हालत पैदा हो जाये तो फिर माजूर है उसके बाद फिर अगर पूरा वक़्त खाली गया तो उज्र जाता रहा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 76/77*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
No comments:
Post a Comment