_*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 38)*_
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*﷽*
_*सलातुत्तसबीह*_
_*सलातुत्तसबीह में बे इन्तेहा सवाब है । बाज़ मुहक्किीन फ़रमाते हैं कि उसकी बुजुरगी सुनकर तर्क न करेगा मगर दीन में सुस्ती करने वाला हदीस शरीफ में है कि हुजूर सल्ललहु तआला अलैहिवसल्लम ने हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अनहु से फ़रमाया कि ऐ चचा । अगर तुम से हो सके तो सलातुत्तसबीह हर रोज़ एक बार पढ़ो । और अगर रोज़ न हो सके तो हर जुमा को एक बार पढ़ों । और यह भी न हो सके तो हर महीना में एक बार । और यह भी न हो सके तो साल में एक बार और यह भी न हो सके तो उम्र में एक बार । इस नमाज़ की तरकीब सुन ने तिर्मिज़ी में हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक से इस तरह मजकूर है कि।*_
_*तकबीर तहरीमा के बाद सना पढ़े फिर पन्द्रह ( 15 ) बार यह तस्बीह पढ़े । “ सुबहानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वलाइला - ह - इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर ।*_
_*फिर तऔउज , तसमिया , सूरये फ़ातिहा और सूरत पढ़ कर दस बार ऊपर वाली तस्बीह पढ़े फिर रुकू करे और रुकू में दस बार पढ़े फिर रुकू से सर उठाए और तसमीअ - व तहमीद के बाद दस बार वही तस्बीह पढ़े फिर सजदा को जाए और उसमें दस मरतबा पढ़े फिर सजदा से सर उठाए तो दस बार दस बार पढ़े फिर दूसरे सजदा में जाए तो दस बार पढ़े । इसी तरह चार रक्अत पढ़े और रुकू व सुजूद में सुबहा न रब्बियल अज़ीम और सुबहान रब्बियल अअ़ला कहने के बाद तस्बीहात पढ़े ।*_
_*नमाज़े हाजत*_
_*अबूदाऊद में है हज़रते हुजैफा रज़ियल्लाहु तआला अनहु फ़रमाते हैं कि जब हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम को कोई अहम मुआमिला पेश आता तो आप उसके लिए दो या चार रक्अत नमाज़ पढ़ते । हदीस शरीफ़ में है कि पहली रक्अत में सूरए फ़ातिहा और तीन बार आयतल कुर्सी पढ़े और बाकी तीन रक्अतों में सूरए फ़ातिहा , कुलहुवल्लाहु , कुलअऊजु बिरब्बिल फ़लक़ और कुल अऊजु बिरबिन्नास एक एक बार पढ़े तो यह ऐसी है जैसे शबे कद्र में चार रक्अतें पढ़ी । मशाइख फ़रमाते हैं कि हमने यह नमाज़ पढ़ी और हमारी हाजते ( ज़रूरतें ) पूरी हुई ।*_
_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 79/80*_
_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_
_*📍बाकि अगले पेस्त में*_
_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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