_*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 39)*_
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*﷽*
_*💫तरावीह का बयान*_
_*❓सवाल : - तरावीह सुन्नत है या नफ्ल ।*_
_*✍🏻जवाब : - तरीवीह मर्द व औरत सब के लिए सुन्नते मुअक्किदा है । उसका छोड़ना जाइज़ नहीं ।*_
_*❓सवाल : - तरावीह की कितनी रक्अतें हैं ।*_
_*✍🏻जवाब : - तरावीह की बीस ( 20 ) रक्अते हैं ।*_
_*❓सवाल : - बीस रक्अतें तरावीह में क्या हिकमतें है ।*_
_*✍🏻जवाब : - बीस रक्अत तरावीह में हिकमत यह है कि सुन्नतों से फ़राइज़ और वाजिबात की तकमील होती है और सुबह से शाम तक फ़र्ज व वाजिब कुल बीस रक्अतें हैं तो मुनासबि हुआ कि तरावीह भी बीस ( 20 ) रक्अतें हो ताकि मुकम्मल करने वाली सुन्नतों की रक्अत और जिनकी तकमील होती है यानी फ़र्ज़ व वाजिब की रक्अत की तादाद बराबर हो जाए ।*_
_*❓सवाल : - तरावीह की बीस रक्अतें किस तरह पढ़ी जाएं ।*_
_*✍🏻जवाब : - बीस रक्अतें दस सलाम से पढ़ी जाएं यानी हर दो रक्अत पर सलाम फेरे और हर तरावीह यानी चार रक्अत पर इतनी देर बैठना मुसतहब है कि जितनी देर में चार रक्अतें पढ़ी।*_
_*❓सवाल : - तरावीह की नीयत किस तरह की जाए ।*_
_*✍🏻जवाब : - नीयत की मैंने दो रक्अत नमाज़ तरावीह सुन्नत रसूलुल्लाह की अल्लाह तआला के लिए ( मुक़तदी इतना और कहे पीछे इस इमाम के ) मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ़ के अल्लाहु अकबर ।*_
_*❓सवाल : - तरावीह की हालत में चुपका बैठा रहे या कुछ पढ़े ।*_
_*✍🏻जवाब : - इखतियार है चाहे चुपका बैठा रहे चाहे कालमह या दुरूद शरीफ़ पढ़े और आम तौर से यह दुआ पढ़ी जाती है । " सुबहा न जिलमुल्किवल मलकूति सुबहा न जिला इज्जति वल अजमति वल हैबति वल कुदरति वल किबरियाइ वल जबरूत । सुबहा नलमलिकिल हैयिल्लजी ला यनामु वलायमूत । सुब्बूहुन कुहूसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकति वर्रूह "*_
_*❓सवाल : - तरावीह जमाअत से पढ़ना कैसा है ।*_
_*✍🏻जवाब : - तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते किफ़ाया है । यानी अगर मस्जिद में तरावीह की जमाअत न हुई तो मुहल्ला के सब लोग गुनाहगार हुए और अगर कुछ लोगों ने मस्जिद में जमाअत से पढ़ ली तो सब लोग छुटकारा पा गए ।*_
_*❓सवाल : - तरावीह में कुरआन मजीद खत्म करना कैसा है ।*_
_*✍🏻जवाब : - पूरे महीने की तरावीह में एक बार कुरआन मजीद खत्म करना सुन्नते मुअक्कदा है । और दो बार खत्म करना अफ़ज़ल है और तीन बार खत्म करना मजीद ( ज्यादा ) रखत है बशर्ते कि मुक़तदियों को तकलीफ़ न हो मगर एक बार खत्म करने में मुक़तदियों का लिहाज़ नहीं किया जाएगा ।*_
_*❓सवाल : - बिला उज़्र ( मजबूरी ) बैठ कर तरावीह पढ़ना कैसा है ।*_
_*✍🏻जवाब : - बिला उज्र बैठ कर तरावीह पढ़ना मकरूह है बल्कि बाज़ फुकहाये किराम के नज़दीक तो नमाज़ होगी ही नहीं।*_
_*📕( बहारे शरीअत )*_
_*❓सवाल : - बाज़ लोग शुरू रक्अत से शरीक नहीं होते बल्कि जब इमाम रुकू में जाने लगता है तो शरीक होते हैं उनके लिए क्या हुक्म है ।*_
_*✍🏻जवाब : - नाजाइज़ है ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए कि इसमे मुनाफ़िक़ों से मुशाबत पाई जाती है।*_
_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 80/81/82/83*_
_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_
_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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