_*तबर्रुकात*_
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_*अगर कोई सुन्नी नबी या वली के तबर्रुकात की ज़ियारत करले या उसे चूम ले आंखों से लगा ले या वलियों की चादर चूम ले या क़ब्र में शजरा वगैरह रख दे तो वहाबियों को शिर्क और बिदअत याद आ जाता है क्या वाक़ई ये सब शिर्क और बिदअत है आईये देखते हैं*_
*_1⃣ आये तुम्हारे पास ताबूत जिसमे रब की तरफ से दिलो का चैन है, और कुछ बची हुई चीज़ें हैं मुअज़्ज़ज़ मूसा व हारून के तरके की, कि उठाये लायेंगे फरिश्ते, बेशक उसमें बड़ी निशानी है अगर ईमान रखते हो_*
_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 248*_
*_बनी इस्राईल हमेशा जंग या दुआ के वक़्त ये ताबूत अपने आगे रखते थे जिससे कि वो हमेशा फतहयाब होते और उनकी दुआयें क़ुबूल होती, इस ताबूत में नबियों की क़ुदरती तस्वीरें उनके मकान के नक़्शे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम का असा उनके कपड़े उनकी नालैन इमामा शरीफ वग़ैरह रखा हुआ था, जब बनी इस्राईल की बद आमलियां हद से ज़्यादा बढ़ गई तो उनसे वो ताबूत छिन गया और क़ौमे अमालका ने उसे हासिल कर लिया मगर उसने भी इस ताबूत की बेहुरमती की जिससे कि उनकी 5 बस्तियां हलाक़ हो गई और सबके सब बीमारी और परेशानी में मुब्तेला हुए_*
_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 47*_
*_2⃣ मेरा ये कुर्ता ले जाओ इसे मेरे बाप के मुंह पर डालो उनकी आंखे खुल जायेगी_*
_*📕 पारा 13, सूरह युसूफ, आयत 93*_
*_हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ग़म में आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी चली गयी, जब हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम को ये खबर हुई तो आपने अपना कुर्ता अपने भाइयों को दिया और फरमाया कि मेरा कुर्ता मेरे बाप की आंखों से लगा देना उनकी रौशनी आ जायेगी, उनके भाईयों ने घर जाकर ऐसा ही किया तो हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी वापस आ गयी_*
_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 294*_
*_3⃣ और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ_*
_*📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 125*_
*_हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस पत्थर पर खड़े होकर काबे की तामीर फरमाई उस पर आपके कदमों के निशान पड़ गये, जहां वो मुक़द्दस पत्थर मौजूद है उसी जगह को आज मक़ामे इब्राहीम कहा जाता है और तमाम हाजी वहां नमाज़ पढ़ते हैं और वो भी खुदा के हुक्म से, ज़रा सोचिए कि हम किसी वली की चादर तबर्रुकन चूम लें तो शिर्क का फतवा लगाया जाता है, अरे अन्धे वहाबियों हम तो सिर्फ होठों व आंखों से ही चूमते हैं मगर रब्बे कायनात ने तो बन्दों की नाक और पेशानी तक रगड़वा दी अपने खलील के क़दमों के निशान पर, अब इस पर कौन सा फतवा लगेगा_*
*_4⃣ बेशक सफा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से है_*
_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 158*_
*_क्या है सफा और मरवा, यही ना कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा अपने मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की प्यास को बुझाने के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों में दौड़ी थीं, अरे जब दौड़ी थीं तब दौड़ी थीं आज हाजियों को क्यों वहां दौड़ाया जाता है आज कौन से पानी की तलाश है, मतलब साफ है कि अम्बिया व औलिया से जो चीज़ें निस्बत रखेंगी वो मुतबर्रक हो जायेंगी अब चाहे वो कोई जगह हो या फिर कोई सामान, आबे ज़म-ज़म शरीफ क्या है एक पानी ही तो है फिर उसकी इतनी अज़मत क्यों है, क्योंकि वो एक नबी के कदमों से मस करके निकला है इसलिए उसकी ये अज़मतों बुलन्दी है और क़यामत तक रहेगी_*
*_5⃣ ईसा बिन मरियम ने कहा ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*
_*📕 पारा 7, सूरह मायदह, आयत 114*_
*_हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के लिए आसमान से खानो का भरा हुआ एक तश्त उतरा, जिस दिन ये ख्वान नाज़िल हुआ वो इतवार का दिन था आज भी तमाम ईसाई इसी ख्वान के नाज़िल होने की खुशी में संडे को छुट्टी मनाते हैं, खुद ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान उतरने पर ईद मनाने का हुक्म फरमा रहे हैं, ज़रा सोचिये कि आसमान से खाना उतरने पर तो ईद मनाई जा रही है मगर हम अपने नबी या वली की विलादत की खुशी मना लें या उर्स मना लें तो शिर्क का फतवा, हैं ना अजीब बात_*
_*आयतें तो बहुत सारी है पर अब कुछ हदीसे पाक भी पढ़ लीजिये*_
*_6⃣ हज़रत ज़राअ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम हुज़ूर ﷺ के हाथ पांव चूमते थे और खुद हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उस्मान बिन मतऊन को उनके इन्तेक़ाल के बाद बोसा दिया_*
_*📕 मिश्कात बहवाला जाअल हक़, हिस्सा 1, सफह 351*_
*_7⃣ हज़रते अस्मा बिन्त अबु बक्र रज़ियल्लाहु तआला अंहा के पास हुज़ूर ﷺ का एक जुब्बा था जब मदीने में कोई बीमार पड़ता तो आप उसे धोकर पिलाती जिससे वो शिफायाब होता_*
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, सफह 190*_
*_8⃣ हज़रते बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर ﷺ के वुज़ु से बचा हुआ पानी लाये तो तमाम सहाबा ने उसे हाथों हाथ लिया जिसे ना मिला वो अपने साथ वाले से तरी ले लेता_*
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 225*_
_*हदीसे पाक भी इस मसले पर बहुत हैं पर अब वहाबियों की किताब से भी कुछ रिवायात पढ़ लीजिये*_
*_9⃣ रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल का जवाब देते हुए लिखा कि "दीनदार के हाथ-पांव चूमना दुरुस्त है और हदीस से साबित है_*
_*📕 फतावा रशीदिया, जिल्द 1, सफह 54*_
*_🔟 यही रशीद अहमद गंगोही दूसरी जगह लिखते हैं कि "क़ब्र में शजरा रखना जायज़ है और मय्यत को फायदा होता है_*
_*📕 तज़किरातुर्रशीद, जिल्द 2, सफह 290*_
*_तबर्रुकात के अदब व ताज़ीम पर क़ुरानो हदीस के साथ साथ खुद वहाबियों की किताब से भी दलील दे दी गई पर फिर भी ये जाहिल हठधर्मी वहाबी कुछ मानने को तैयार नहीं होते, बहरहाल अभी तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ है अगर मरने से पहले तौबा करली तो ज़हे नसीब वरना हमेशा के लिए जहन्नम में रहना होगा, दुआ है कि मौला हम सुन्नियों को मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन_*
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