Friday, September 28, 2018



                       _*तबर्रुकात*_
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_*अगर कोई सुन्नी नबी या वली के तबर्रुकात की ज़ियारत करले या उसे चूम ले आंखों से लगा ले या वलियों की चादर चूम ले या क़ब्र में शजरा वगैरह रख दे तो वहाबियों को शिर्क और बिदअत याद आ जाता है क्या वाक़ई ये सब शिर्क और बिदअत है आईये देखते हैं*_

*_1⃣  आये तुम्हारे पास ताबूत जिसमे रब की तरफ से दिलो का चैन है, और कुछ बची हुई चीज़ें हैं मुअज़्ज़ज़ मूसा व हारून के तरके की, कि उठाये लायेंगे फरिश्ते, बेशक उसमें बड़ी निशानी है अगर ईमान रखते हो_*

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 248*_

*_बनी इस्राईल हमेशा जंग या दुआ के वक़्त ये ताबूत अपने आगे रखते थे जिससे कि वो हमेशा फतहयाब होते और उनकी दुआयें क़ुबूल होती, इस ताबूत में नबियों की क़ुदरती तस्वीरें उनके मकान के नक़्शे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम का असा उनके कपड़े उनकी नालैन इमामा शरीफ वग़ैरह रखा हुआ था, जब बनी इस्राईल की बद आमलियां हद से ज़्यादा बढ़ गई तो उनसे वो ताबूत छिन गया और क़ौमे अमालका ने उसे हासिल कर लिया मगर उसने भी इस ताबूत की बेहुरमती की जिससे कि उनकी 5 बस्तियां हलाक़ हो गई और सबके सब बीमारी और परेशानी में मुब्तेला हुए_*

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 47*_

*_2⃣  मेरा ये कुर्ता ले जाओ इसे मेरे बाप के मुंह पर डालो उनकी आंखे खुल जायेगी_*

_*📕 पारा 13, सूरह युसूफ, आयत 93*_

*_हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ग़म में आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी चली गयी, जब हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम को ये खबर हुई तो आपने अपना कुर्ता अपने भाइयों को दिया और फरमाया कि मेरा कुर्ता मेरे बाप की आंखों से लगा देना उनकी रौशनी आ जायेगी, उनके भाईयों ने घर जाकर ऐसा ही किया तो हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी वापस आ गयी_*

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 294*_

*_3⃣  और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ_*

_*📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 125*_

*_हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस पत्थर पर खड़े होकर काबे की तामीर फरमाई उस पर आपके कदमों के निशान पड़ गये, जहां वो मुक़द्दस पत्थर मौजूद है उसी जगह को आज मक़ामे इब्राहीम कहा जाता है और तमाम हाजी वहां नमाज़ पढ़ते हैं और वो भी खुदा के हुक्म से, ज़रा सोचिए कि हम किसी वली की चादर तबर्रुकन चूम लें तो शिर्क का फतवा लगाया जाता है, अरे अन्धे वहाबियों हम तो सिर्फ होठों व आंखों से ही चूमते हैं मगर रब्बे कायनात ने तो बन्दों की नाक और पेशानी तक रगड़वा दी अपने खलील के क़दमों के निशान पर, अब इस पर कौन सा फतवा लगेगा_*

*_4⃣  बेशक सफा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से है_*

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 158*_

*_क्या है सफा और मरवा, यही ना कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा अपने मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की प्यास को बुझाने के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों में दौड़ी थीं, अरे जब दौड़ी थीं तब दौड़ी थीं आज हाजियों को क्यों वहां दौड़ाया जाता है आज कौन से पानी की तलाश है, मतलब साफ है कि अम्बिया व औलिया से जो चीज़ें निस्बत रखेंगी वो मुतबर्रक हो जायेंगी अब चाहे वो कोई जगह हो या फिर कोई सामान, आबे ज़म-ज़म शरीफ क्या है एक पानी ही तो है फिर उसकी इतनी अज़मत क्यों है, क्योंकि वो एक नबी के कदमों से मस करके निकला है इसलिए उसकी ये अज़मतों बुलन्दी है और क़यामत तक रहेगी_*

*_5⃣  ईसा बिन मरियम ने कहा ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*

_*📕 पारा 7, सूरह मायदह, आयत 114*_

*_हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के लिए आसमान से खानो का भरा हुआ एक तश्त उतरा, जिस दिन ये ख्वान नाज़िल हुआ वो इतवार का दिन था आज भी तमाम ईसाई इसी ख्वान के नाज़िल होने की खुशी में संडे को छुट्टी मनाते हैं, खुद ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान उतरने पर ईद मनाने का हुक्म फरमा रहे हैं, ज़रा सोचिये कि आसमान से खाना उतरने पर तो ईद मनाई जा रही है मगर हम अपने नबी या वली की विलादत की खुशी मना लें या उर्स मना लें तो शिर्क का फतवा, हैं ना अजीब बात_*

_*आयतें तो बहुत सारी है पर अब कुछ हदीसे पाक भी पढ़ लीजिये*_

*_6⃣  हज़रत ज़राअ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम हुज़ूर ﷺ के हाथ पांव चूमते थे और खुद हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उस्मान बिन मतऊन को उनके इन्तेक़ाल के बाद बोसा दिया_*

_*📕 मिश्कात बहवाला जाअल हक़, हिस्सा 1, सफह 351*_

*_7⃣  हज़रते अस्मा बिन्त अबु बक्र रज़ियल्लाहु तआला अंहा के पास हुज़ूर ﷺ का एक जुब्बा था जब मदीने में कोई बीमार पड़ता तो आप उसे धोकर पिलाती जिससे वो शिफायाब होता_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, सफह 190*_

*_8⃣  हज़रते बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर ﷺ के वुज़ु से बचा हुआ पानी लाये तो तमाम सहाबा ने उसे हाथों हाथ लिया जिसे ना मिला वो अपने साथ वाले से तरी ले लेता_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 225*_

_*हदीसे पाक भी इस मसले पर बहुत हैं पर अब वहाबियों की किताब से भी कुछ रिवायात पढ़ लीजिये*_

*_9⃣  रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल का जवाब देते हुए लिखा कि "दीनदार के हाथ-पांव चूमना दुरुस्त है और हदीस से साबित है_*

_*📕 फतावा रशीदिया, जिल्द 1, सफह 54*_

*_🔟 यही रशीद अहमद गंगोही दूसरी जगह लिखते हैं कि "क़ब्र में शजरा रखना जायज़ है और मय्यत को फायदा होता है_*

_*📕 तज़किरातुर्रशीद, जिल्द 2, सफह 290*_

*_तबर्रुकात के अदब व ताज़ीम पर क़ुरानो हदीस के साथ साथ खुद वहाबियों की किताब से भी दलील दे दी गई पर फिर भी ये जाहिल हठधर्मी वहाबी कुछ मानने को तैयार नहीं होते, बहरहाल अभी तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ है अगर मरने से पहले तौबा करली तो ज़हे नसीब वरना हमेशा के लिए जहन्नम में रहना होगा, दुआ है कि मौला हम सुन्नियों को मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन_*
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        *_हज़रत नूह अलैहिस्सलाम हिस्सा- 1_*
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*_आपका नाम अब्दुल ग़फ्फार या अब्दुल जब्बार है और नूह यानि बहुत रोने वाला लक़ब इस लिए हुआ कि आप अपनी उम्मत के गुनाहों पर बहुत रोये हैं, आपके वालिद का नाम लमक और वालिदा का नाम सहमा था और दादा का नाम मतुशल्ख है, आप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के 126 साल बाद पैदा हुए_*

_*📕 अलइतकान, जिल्द 2, सफह 175-179*_
_*📕 हयातुल हैवान, जिल्द 1, सफह 11*_

*_आपकी काफिर बीवी का नाम वाइला और काफिर बेटे का नाम कुंआन था_*

_*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इरफान, सफह 270*_

*_काफिरों की तरफ सबसे पहले तब्लीग़ के लिए आप ही को भेजा गया_*

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 3, सफह 348*_

*_आपने अपनी क़ौम को 950 साल तक तब्लीग़ फरमाई मगर चन्द अफराद को छोड़कर पूरी कौम अपने कुफ्र पर क़ायम रही जिस पर आपने उनके लिए बद्दुआ कर दी और पूरी क़ौम तूफाने नूह में गर्क हो गई_*

_*📕 तफसीरे खाज़िन, जिल्द 5, सफह 157*_

*_सबसे पहले चमड़े का जूता आपने ही पहना_*

_*📕 मिरआतुल मनाजीह, जिल्द 6, सफह 141*_

*_सबसे पहले आपने ही उम्मत को दज्जाल के अज़ाब से डराया_*

_*📕 मिश्कात, जिल्द 2, सफह 473*_

*_बुतपरस्ती की शुरुआत हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की उम्मत में ही हुई, वाक़िया ये हुआ कि आपकी उम्मत के 5 नेक लोग जिनका नाम वुद, सुवा, यग़ूस, यऊक़ और नस्र था, जब इनका इन्तेक़ाल हो गया तो इनकी औलाद को बहुत रंज हुआ मौक़ा देखकर इब्लीस उन लोगों के पास गया और कहने लगा कि अगर मैं एक रास्ता बताऊं तो तुम्हारा ग़म कुछ हल्का हो सकता है, उन्होंने हामी भरी तो इस मरदूद ने उन पांचो के बुत बना दिए शुरू शुरू में सिर्फ उन बुतों को देखकर ही घर वाले तसल्लियां कर लेते थे मगर बाद में आने वालों ने उनकी पूजा करनी शुरू कर दी, इसी लिए इस्लाम में जानदार की तस्वीर हराम फरमाई गई_*

_*📕 अहकामे तस्वीर, सफह 9*_

*_तूफाने नूह से पहले अल्लाह ने इब्तिदाई तौर पर उन पर बारिश बंद कर दी और और उनकी औरतों को बांझ कर दिया, जब वो इसकी शिकायत लेकर हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे तो आप फरमाते हैं कि अल्लाह से माफी मांगो वो तुम्हारी सारी मुश्किल आसान कर देगा जिस पर क़ौम नहीं मानी_*

*_एक मर्तबा हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास चन्द लोग अपनी परेशानी लेकर हाज़िर हुए उसमें से एक ने सूखे की शिकायत की आपने फरमाया कि अस्तग़फ़ार करो दूसरा बोला कि मैं गरीब हूं तो आपने फरमाया कि अस्तग़्फार करो तीसरे ने औलाद ना होने की शिकायत की तो आपने फरमाया कि अस्तग़्फार करो फिर चौथा ज़मीन से कम पैदावार की अर्ज़ लेकर आया तो फरमाया कि अस्तग़्फार करो, हाज़ेरीन ने कहा कि ऐ इमाम परेशानी सबकी जुदा जुदा है और आप हल सबका एक ही फरमा रहे हैं इसकी क्या वजह है तो आप फरमाते हैं कि जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम अपनी जुदा जुदा मुश्किल को लेकर उनकी बारगाह में हाज़िर हुई तो आपने तमाम मुश्किलों का एक ही हल बताया था कि खुदा से माफी मांगो और ये क़ुरान से साबित है, तो हर मुश्किल का हल खुदा की बारगाह में तौबा करने से हासिल हो जायेगा_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 69*_

*_आपको क़ौम ने माज़ अल्लाह गुमराह झूटा व मजनून कहा मगर आप उनके लिए हिदायत की दुआ ही करते रहे मगर जब अल्लाह ने आप पर वही फरमाई कि अब तुम्हारी क़ौम से कोई मुसलमान ना होगा मगर जितने ईमान ला चुके तब आपने उनके लिए हलाक़त की दुआ की तो मौला ने आपको कश्ती बनाने का हुक्म दिया_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 71*_

*_कश्ती बनाने में मदद के लिए हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और 2 सालों में कश्ती बनकर तैयार हुई_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 2, सफह 72*_

*_ये कश्ती साल की लकड़ी से बनाई गई जिसकी लंबाई 900 फिट चौड़ाई 150 फिट और ऊंचाई 90 फिट थी और इसमें 3 दर्जे थे सबसे नीचे वाले दर्जे में जंगली जानवर जैसे शेर चीता सांप बिच्छू वगैरह थे बीच वाले में पालतू जानवर थे और सबसे ऊपर वाले हिस्से में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम मय ईमान वालों और खाने पीने की चीज़ के साथ सवार हुए_*

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 269*_

*_कश्ती में कुल 80 लोग सवार हुए जिनमे 3 आपके बेटे साम, हाम और याफिस और 3 उनकी बीवियां खुद हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनकी एक मोमिना बीवी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जस्द मुबारक जो कि ताबूत में था और आपके काफिर बेटे की बीवी जो कि मोमिना थी और 70 मुसलमान मर्दो औरत_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 64*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 71*_

*_ये कश्ती मस्जिदे कूफा के पास बनाई गई_*

_*📕 जलालैन, हाशिया 4, सफह 183*_

*_ये कश्ती 124000 और 4 तख्तों से बनी कि हर तख्ते पर एक नबी का नाम लिखा होता था और 4 तख्तों पर चारों खुल्फा का नाम दर्ज था, इस रिवायत में इख्तिलाफ हो सकता है इसलिए कि अम्बिया इकराम की तादाद मुतअय्यन करना हरगिज़ जायज़ नहीं_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस 5, सफह 34*_

*_चुंकि जहां ये कश्ती बनायी गई उस जगह पानी का नामो निशान तक ना था लिहाज़ा काफिर हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को कश्ती बनाता देखकर उनका मजाक उड़ाया करते थे फिर जब तूफान का वक़्त आया तो मौला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को बता दिया कि जब तन्नूर से पानी उबलना शुरू हो जाए तो कश्ती में सवार हो जाना कि वही इब्तिदा होगी, ये तन्नूर आम तन्नूर था जिसमे औरतें रोटियां पकाया करती थीं_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 73*_

*_हज़रत नूह अलैहिस्सलाम दिन भर कश्ती बनाते और आपकी क़ौम रात को आकर वो कश्ती खराब करके चली जाती तब आपने बाहुकमे खुदावन्दी कुत्ते को रात भर जागकर पहरेदारी के लिए मुकर्रर किया_*

_*📕 हयातुल हैवान, जिल्द 2, सफह 306*_

*_तूफान की शुरुआत 1 रजब को हुई_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 64*_
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        *_हज़रत नूह अलैहिस्सलाम हिस्सा- 2_*
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*_तूफान की शुरुआत 1 रजब को हुई और 10 रजब को कश्ती पानी में तैरने लगी और पूरे 6 महीने ज़मीन का गर्दिश करने के बाद 10 मुहर्रम को जूदी पहाड़ पर जाकर रुकी, पूरी ज़मीन पर इस क़दर पानी जमा हो गया था कि ज़मीन के सबसे ऊंचे पहाड़ से भी 30 हाथ ऊपर पानी था_*
_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 64*_
*_40 दिन तक लगातार ज़मीन से पानी निकलता रहा और आसमान से भी बरसता रहा_*
_*📕 खज़ायेनुल इरफान, सफह 270*_
*_पानी का हर कतरा जो आसमान से गिरता वो एक मशक के बराबर होता_*
_*📕 माअरेजुन नुबूवत, जिल्द 1, सफह 74*_
*_कश्ती में जानवरों में सबसे पहले सवार होने वाला तोता या मुर्गाबी है और सबसे आखिर में गधा, और इब्लीस लईन गधे की दुम पकड़कर ही कश्ती में सवार हुआ_*
_*📕 अलबिदाया वननिहाया, जिल्द 1, सफह 111*_
*_जब सांप और बिच्छु कश्ती में सवार होने लगे तो आपने मना फरमा दिया जिस पर वो अर्ज़ करते हैं कि हमें सवार कर लीजिये मगर जो शख्स "सलामुन अला नूहे फिल आलमीन" पढ़ेगा तो हम उसे नुक्सान नहीं पहुंचायेंगे_*
_*📕 नुज़हतुल मजालिस 3, सफह 50*_
*_कश्तिये नूह में कुछ जानवरों की पैदाईश बताई जाती है जो कि इस तरह है जब कश्ती में जानवरों ने गोबर वग़ैरह करना शुरू किया तो कश्ती बदबू से भर गयी लोगों ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की बारगाह में शिकायत की तो मौला ने फरमाया कि हाथी की दुम हिलाओ जब आपने ऐसा किया तो 2 सुअर नर और मादा बरामद हुए और नजासत खाने लगे, इब्लीस को मौक़ा मिला और उसने सुअर के पेशानी पर हाथ फेरा तो 2 चुहे नर व मादा पैदा हुए जिन्होंने कश्ती को कुतरना शुरू कर दिया, जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने देखा तो खुदा की बारगाह में अर्ज़ किया तो मौला फरमाता है कि तुम शेर की पेशानी पर अपना हाथ फेरो जब उन्होंने ऐसा किया तो शेर को छींक आई और बिल्ली का जोड़ा निकला जिससे कि चूहे दुबक कर बैठ गये_*
_*📕 माअरेजुन नुबूवत, जिल्द 1, सफह 75*_
_*📕 तफसीर इबने कसीर, पारा 12, रुकू 4*_
_*📕 अजायबुल हैवानात, सफह 20*_
*_जब कश्ती में तमाम जानवरों के साथ शेर सवार हुआ तो सारे जानवर दहशत में आ गए तो मौला ने शेर को बुखार में जकड़ दिया, ये पहला जानवर है जो बीमार हुआ_*
_*📕 अलबिदाया वननिहाया, जिल्द 1, सफह 111*_
*_जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से तशरीफ लाये थे तो दुनिया में दो ही जानवर थे पानी में मछली और खुश्की में टिड्डी, बाकी सारे जानवर दुनिया में ही ज़रूरत के हिसाब से पैदा होते रहे_*
_*📕 हयातुल हैवान, सफह 478*_
*_तूफाने नूह के बाद सबसे पहले जो शहर बसाया गया उसका नाम "सौकुस समानीन" रखा गया ये जब्ले निहावंद के क़रीब है_*
_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 65*_
*_तूफाने नूह के बाद सबसे पहले ज़ैतून का दरख्त उगा_*
_*📕 जलालैन, हाशिया 6, सफह 299*_
*_कश्ती से उतरने के बाद लोग 80 ज़बानों में बात करने लगे इसलिए इसको बाबुल यानि इख्तिलाफ की जगह कहा गया_*
_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 682*_
*_आशूरा के दिन जो खिचड़ा पकाया जाता है और उसकी निस्बत शुहदाये कर्बला की तरफ करते हैं ये गलत है बल्कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जब जूदी पहाड़ पर आकर रुकी तो वो दिन दसवीं मुहर्रम का ही था, आपने तमाम लोगों से खाने पीने की चीज़ को इकठ्ठा करने को कहा तो उसमें मटर, गेंहू, जौ, मसूर, चना, चांवल और प्याज़ ये 7 अशिया ही पायी गई,तो आपने उन सबको इकठ्ठा करके एक ही हांडी में पकाया और उसको "तिब्यखुल हुबूब" का नाम दिया जो आज खिचड़े के नाम से जाना जाता है_*
_*📕 फातिहा का सुबूत, सफह 12*_
*_तूफाने नूह में आपका एक काफिर बेटा और काफिरा बीवी भी हलाक हुई, ख्याल रहे कि कुफ्र काफिरों की नज़र में ऐब नहीं समझा जाता वो इसे अपना मज़हब जानते हैं मगर ज़िना या इस तरह के और भी बुरे काम हर मज़हब में बुरे व ऐब समझे जाते हैं तो अम्बिया इकराम की बीवियां ज़िना जैसे ऐबों से पाक हैं मगर कुफ्र पाया जा सकता है, अब कुछ को ईमान नसीब होता है जैसे कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की बीवी हज़रते ज़ुलेखा और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की बीवी हज़रते बिलक़ीस को ईमान नसीब हुआ और कुछ को ईमान नहीं मिलता जैसा कि यहीं आपने पढ़ा और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की बीवी भी कुफ्र पर मरी, यहां ये भी ख्याल रहे कि एक ही अज़ाब किसी पर सजा होता है तो किसी पर नहीं मतलब ये कि तूफाने नूह में सिर्फ वही लोग बचें जो कि कश्ती में सवार थे और बहुत सारे इंसान और जानवर हलाक हो गए मगर ये हलाकत इंसानों के लिए अज़ाब थी और जानवरों के लिए नहीं, जैसे कि जहन्नम में बहुत सारे सांप बिच्छु और फरिश्ते अज़ाब देने के लिए होंगे मगर खुद उनको कोई तकलीफ ना होगी_*
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 76*_
*_आपकी उम्र 1600 साल हुई और तमाम नस्ले इंसानी आपके ही बेटों से चली बाकी जो भी मुसलमान बचे थे उनमें से किसी की भी नस्ल आगे ना बढ़ी_*
_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 65*_
*_आपकी क़ब्र मस्जिदे हराम में है और यही राजेह है_*

_*📕 अलबिदाया वननिहाया, जिल्द 1, सफह 120*_
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                         *_अप्रैल फूल_*
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_*ये भी एक अलमिया है कि मुसलमान झूट बोलकर या धोखा देकर अपने भाई को बेवकूफ बनाता है और उसपे फख्र करता है कि मैंने फलां को बेवकूफ बनाया हालांकि झूट बोलना और धोखा देना दोनों ही हराम काम  है,जैसा कि हदीसे पाक में मज़कूर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*_

*_जिस के अन्दर ये बातें पायी जाए यानि जब बात करे तो झूट बोले वादा करे तो पूरा ना करे और अमानत रखी जाए तो उसमे खयानत करे तो वो खालिस मुनाफिक़ है अगर चे वो नमाज़ पढ़े रोज़ा रखे और मुसलमान होने का दावा करे_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 56*_

*_बेशक झूट गुनाह की तरफ ले जाता है और गुनाह जहन्नम में_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 2, सफह 900*_

*_उस शख्स के लिए खराबी है जो किसी को हंसाने के लिए झूट बोले_*

_*📕 अत्तर्गीब वत्तर्हीब, जिल्द 3, सफह 599*_

*_झूटा ख्वाब बयान करना सबसे बड़ा झूट है_*

_*📕 मुसनद अहमद, जिल्द 1, सफह 96*_

*_मोमिन की फितरत में खयानत और झूट शामिल नहीं हो सकती_*

_*📕 इब्ने अदी, जिल्द 1, सफह 44*_

*_झूटे के मुंह को लोहे की सलाखों से गर्दन तक फाड़ा जायेगा_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 2, सफह 1044*_

_*अब कुछ हुक्म क़ुरान से भी पढ़ लीजिए*_

*_झूटों पर अल्लाह की लानत है_*

_*📕 पारा 3, सूरह आले इमरान, आयत 61*_

*_बेशक अल्लाह उसे राह नहीं देता जो हद से बढ़ने वाला बड़ा झूटा हो_*

_*📕 पारा 24, सूरह मोमिन, आयत 28*_

*_मर जाएं दिल से तराशने वाले (यानि झूट बोलने वाले)_*

_*📕 पारा 26, सूरह ज़ारियात, आयत 10*_

*_झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते_*

_*📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_

_*और वादे के ताल्लुक़ से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है*_

*_और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी_*

_*📕 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_

*_ऐ ईमान वालो वादों को पूरा करो_*

_*📕 पारा सूरह मायदा, आयत 1*_

_*ज़रा गौर कीजिये कि किस क़दर इताब की वईद आयी है झूट बोलने और धोखा देने के बारे में,हंसी मज़ाक करना या दिल बहलाना हरगिज़ गुनाह नहीं बस शर्त ये है कि झूट ना बोला जाए और किसी का दिल ना दुखाया जाए, हां मगर तीन जगह झूट बोलना जायज़ है*_

*_1. जंग मे - दुश्मन पर रौब तारी करने के लिये कहा कि हमरी इतनी फौज और आ रही है या दुश्मनों की फौज मे भगदड़ मचाने के लिये अफवाह उड़ा दी कि उनका सिपाह सालार मारा गया वगैरह वगैरह_*

*_2. दो मुसलमानों के बीच सुलह कराने मे - एक दूसरे से दोनो की झूटी तारीफ की कि वो तो तुमहारी बड़ी तारीफ कर रहा था इस तरह दोनो को मिलाना_*

*_3. शौहर का बीवी से - बीवी नाराज़ हो गयी तो उसको मनाने की गर्ज़ से कह दिया कि मैं तुम्हारे लिये ये ले आऊंगा वो ले आऊंगा या उसके पूछने पर कि कैसी लग रही हूं तो अगर चे अच्छी नहीं भी लग रही थी कह दिया कि बहुत अच्छी लग रही हो वगैरह वगैरह_*

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 1939*_

_*इस्लाम में तफरीहात हरगिज़ मना नहीं बल्कि रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से साबित है, पढ़िए*_

*_एक मर्तबा एक ज़ईफा बारगाहे नबवी में आईं और कहने लगी कि हुज़ूर मेरे लिए दुआ फरमा दें कि अल्लाह मुझे जन्नत में दाखिल करे, आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उससे फरमाया कि कोई बुढ़िया जन्नत में  नहीं जाएगी, इस पर वो रोने लगी तो आपने मुस्कुराते हुए फरमाया कि ऐ अल्लाह की बन्दी मेरे कहने का ये मतलब है कि कोई बूढ़ी औरत जन्नत में नहीं जाएगी बल्कि हर बूढ़ी को जवान बनाकर जन्नत में भेजा जायेगा, तो वो खुश हो गयी इसी तरह एक सहाबी हाज़िर हुए और सवारी के लिए ऊंट मांगा तो आप फरमाते हैं कि मैं ऊंटनी का बच्चा दूंगा तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मैं बच्चे पर सवारी कैसे करूंगा तो आप मुस्कुराकर फरमाते हैं कि ऊंट भी तो ऊंटनी का बच्चा ही होता है ऐसे ही कई सच्ची तफरीहात अम्बिया व औलिया व सालेहीन से मनक़ूल है_*

_*📕 रूहानी हिकायत, सफह 151*_

*_एक फक़ीह किसी के घर में किराए पर रहते थे, मकान बहुत पुराना और बोसीदा था अकसर दीवारों और छतों से चिड़चिड़ाने की आवाज़ आती रहती थी, एक दिन जब मकान मालिक किराया लेने के लिए आये तो फक़ीह साहब ने फरमाया कि पहले मकान तो दुरुस्त करवाइये तो कहने लगे कि अजी अल्लामा साहब आप बिल्कुल न डरें ये दीवार और छत तस्बीह करती रहती है उसकी आवाज़ें हैं, तो फक़ीह बोले कि तस्बीह तक तो गनीमत है लेकिन अगर किसी रोज़ आपकी दीवार और छत पर रिक़्क़त तारी हो गयी और वो सजदे में चली गयी तब क्या होगा_*

_*📕 मुस्ततरफ, सफह 238*_

_*कहने का मतलब सिर्फ इतना है की हंसी मज़ाक करिये बिल्कुल करिये मगर झूट ना बोलिये गाली गलौच ना कीजिये और ना किसी की दिल आज़ारी कीजिये, मौला से दुआ है कि हम सबको हक़ सुनने हक़ समझने और हक़ पर चलने की तौफीक अता फरमाये-आमीन*_
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                         _*रुखे मुस्तफा*_
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*_हस्सानुल हिन्द आशिक़े माहे नुबूवत परवानये शम्ये रिसालत इमाम इश्क़ो मुहब्बत हुज़ूरे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर के बारे मे इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_चांद से मुंह पे ताबां दरख्शां दुरूद_*
*_नमक आग़ीं सबाहत पे लाखों सलाम_*

*_जिस के माथे शफाअत का सेहरा रहा_*
*_उस जबीने सआदत पे लाखों सलाम_*

*_जिन के आगे चिरागे क़मर झिलमिलाये_*
*_उन अज़ारों की तलअत पे लाखों सलाम_*

*_जिस से तारीक दिल झिलमिलाने लगे_*
*_उस चमक वाली रंगत पे लाखों सलाम_*

*_शबनमे बागे हक़ यानि रुख़ का अरक़_*
*_उसकी सच्ची बराक़त पे लाखों सलाम_*

*_01) हज़रते अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ज़्यादा हसीन किसी को नहीं देखा और जब मैं चेहरये अक़दस को देखता हूं तो ये मालूम होता है कि आफताब चेहरये मुबारक में जारी है_*

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 205*_

*_02) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सूरत और सीरत में तमाम लोगों से ज़्यादा हसीनो जमील थे_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 258*_

*_03) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का चेहरा मुबारक इतना नूरानी था कि जब वो नूर दीवार पर पड़ता तो दीवारें भी चमक उठतीं_*

_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 6, सफह 210*_

*_04) उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमातीं हैं कि मैं सहरी के वक़्त कुछ सी रही रही थी कि सुई गिर गई और बड़ी तलाश के बावजूद ना मिली, इतने में रसूले खुदा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कमरे में तशरीफ लाये तो उनके चेहरे मुबारक के नूर से पूरा कमरा मुनव्वर हो गया और मैंने बा आसानी सुई ढूंढ़ ली_*

_*📕 खसाइसे कुबरा, जिल्द 1, सफह 156*_
_*📕 नसीमुर्रियाज़, सफह 328*_
_*📕 जवाहिरुल बहार, सफह 814*_

*_05) जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुश होते तो आपका चेहरा मिस्ल आईने के हो जाता कि दीवारें आपके चेहरे में नज़र आ जाती_*

_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 4, सफह 80*_

*_06) हज़रत अब्दुल्लाह बिन रुवाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वजूद में वहिये इलाही, मोजेज़ात और दीगर दलाइले नुबूवत का असर और ज़हूर ना भी होता तब भी आपका चेहरा मुबारक ही दलीले नुबूवत को काफी था_*

_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 4, सफह 72*_

*_07) हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि यहूदियों के बहुत बड़े आलिम थे फरमाते हैं कि जब मैंने पहली बार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने जान लिया कि ये चेहरा किसी झूटे का नहीं हो सकता_*

_*📕 अलमुस्तदरक, जिल्द 4, सफह 160*_

*_08) हज़रते रबिया बिन्त मऊज़ रज़ियल्लाहु तआला अंहा सहाबिया से किसी ने हुज़ूर के बारे में दरयाफ्त किया तो आप फरमातीं हैं कि ऐ बेटे अगर तू उनका हुस्न देखता तो यक़ीनन पुकार उठता कि सूरज तुलु हो रहा है_*

_*📕 बैहक़ी, जिल्द 1, सफह 154*_
_*📕 दारमी, सफह 23*_

*_09)  तिर्मिज़ी शरीफ की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को कोई नज़र भरकर देख नहीं पाता था सिवाये अबू बक्र व उमर के और उन्ही अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मेरे आक़ा फरमाते हैं कि " ऐ अबू बक्र मुझे मेरे रब के सिवा हक़ीक़तन किसी ने पहचाना ही नहीं_*

_*📕 मतालेउल मिरात, सफह 129*_

*_10) अल्लाह ने अपने महबूब को हुस्ने तमाम अत फरमाया है मगर हम पर ज़ाहिर ना किया और ये अल्लाह का एहसान है वरना हमारी आंखें हुज़ूर के दीदार की ताक़त ना रखती_*

_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 5, सफह 198*_

*_11) शायरे रिसालत मआब हज़रते हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है कि जब मैने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने अपनी आंखो को हथेलियों से बन्द कर लिया कि कहीं मेरी आंखो की रौशनी ना चली जाये_*

_*📕 जवाहिरुल बहार, जिल्द 2, सफह 347*_
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                     _*नमाज़ का बयान*_
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*_बच्चा जब 7 साल का हो जाए तो उसे नमाज़ का हुक्म दो और और जब 10 साल का हो जाए तो मारकर पढ़ाओ_*

_*📕 अबु दाऊद, जिल्द 1, सफह 77*_

*_मोमिन और काफिर के दरमियान फर्क़ सिर्फ नमाज़ का है_*

_*📕 निसाई, जिल्द 1, सफह 81*_

*_क़यामत के दिन बन्दे से आमाल में सबसे पहले पूछ नमाज़ की होगी_*

_*📕 कंज़ुल उम्माल, जिल्द 2, सफह 282*_

*_जिसकी अस्र की नमाज़ फौत हो गई उसका अमल ज़ाया हो गया_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 78*_

*_जो शख्स जानबूझकर एक वक़्त की नमाज़ छोड़ दे तो उसलपर से अल्लाह का ज़िम्मा उठ गया_*

_*📕 अलइतहाफ, जिल्द 6, सफह 392*_

*_नमाज़ में सुस्ती करने वाले क़यामत के दिन सुअर की सूरत में उठेंगे_*

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफह 439*_

*_जहन्नम में एक वादी है जिसका नाम वैल है उसकी गर्मी का ये हाल है कि उससे जहन्नम भी पनाह मांगता है उसमे बे नमाज़ी डाले जायेंगे_*

_*📕 पारा 30, सूरह माऊन, आयत 4*_
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफह 7*_

*_जो नमाज़ों को उनके वक़्त पर पढ़े और उसके आदाब की हिफाज़त करे तो मौला पर अहद है कि उसको जन्नत में दाखिल करे और जिसने नमाज़ों को छोड़ा या पढ़ने में उसके आदाब व अरकान सही ना रखा तो उस पर कोई अहद नहीं चाहे तो उसे बख्शे और चाहे अज़ाब दे_*

_*📕 मज्मउज़ ज़वायेद, जिल्द 1, सफह 302*_

*_हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में एक औरत हाज़िर हुई और कहा कि आप अल्लाह से मेरी सिफारिश फरमा दीजिये कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह सरज़द हो गया है आपने पूछा कि क्या तो कहने लगी कि मैंने ज़िना कराया और उससे जो बच्चा पैदा हुआ उसे क़त्ल कर दिया, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ऐ फासिक़ा फाजिरा औरत निकल यहां से कहीं तेरी नहूसत की वजह से हम पर भी अज़ाब नाज़िल ना हो जाए वो वहां से चली गई, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और फरमाया कि आपने उस तौबा करने वाली औरत को क्यों वापस कर दिया तो आप फरमाते हैं कि मैंने उससे ज़्यादा बुराई वाला कोई ना देखा तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर नमाज़ छोड़ता है वो इस औरत से भी ज़्यादा बदकार है_*

_*📕 किताबुल कबायेर, सफह 44*_

*_जो शख्स नमाज़ नहीं पढ़ता उसे दुनिया और आखिरत में क्या सज़ाएं मिलती है वो भी मुलाहज़ा फरमा लें_*

_*5 दुनिया की सज़ा*_

*_उसकी उम्र में बरकत खत्म हो जायेगी_*

*_उसके चेहरे से नूर हट जायेगा_*

*_उसके किसी आमाल का अज्र नहीं मिलेगा_*

 *_उसकी कोई दुआ क़ुबूल नहीं होगी_*

*_उसे नेकों की दुआ से भी फैज़ नहीं मिलेगा_*

*_3 मरते वक़्त की सज़ा_*

*_वो ज़लील होकर मरेगा_*

*_भूखा मरेगा_*

*_प्यासा मरेगा ऐसा कि अगर दुनिया के तमाम समन्दर का भी पानी पिला दिया जाए तब भी उसकी प्यास ना बुझेगी_*

*_3 क़ब्र की सज़ा_*

*_उस पर क़ब्र तंग होगी ऐसी कि उसकी पसलियां टूटकर उस दूसरे में पैवस्त हो जायेंगी_*

*_उसके नीचे आग जला दी जाएगी_*

*_उसकी क़ब्र में शुजाउल अक़रा नाम का एक गंजा सांप मुक़र्रर किया जायेगा जो उसे सज़ा देगा, उसकी आंखें आग की और नाखून लोहे के हैं और उसकी आवाज़ बिजली की गरज की तरह है, तो अगर फज्र की नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो फज्र से लेकर ज़ुहर तक मारता रहेगा अगर ज़ुहर पढ़ ली होगी तो छोड़ देगा वरना ज़ुहर से अस्र तक मारेगा और युंही हमेशा चलता रहेगा, और उसकी एक ज़र्ब से मुर्दा 70 गज ज़मीन में धंस जायेगा_*

_*3 हश्र की सज़ा*_

*_उससे सख्ती से हिसाब लिया जायेगा_*

*_रब तआला उससे नाराज़ होगा_*

*_उसे जहन्नम में दाखिल किया जायेगा_*

_*📕 मुक़ाशिफातुल क़ुलूब, सफह 392*_

*_और अब नमाज़ के फायदे भी पढ़ लीजिए_*

*_कशाईश रिज़्क़ मिलेगा_*

*_अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहेगा_*

*_नामये आमाल दाहिने हाथ में मिलेगा_*

*_पुल सिरात से बिजली की तरह गुज़र जायेगा_*

*_जन्नत में दाखिल होगा_*

_*📕 किताबुल कबायेर, सफह 41*_

_*अब इनाम चाहिए या सज़ा फैसला आप खुद करें मर्ज़ी आपकी क्योंकि जिस्म है आपका*_

*_अगर इन सबको पढ़कर दिल में कुछ खौफ पैदा हो गया हो और तौबा का इरादा रखते हों तो फौरन ये काम करें कि एक अच्छे हाफिज़ को लगाकर सबसे पहले क़ुरान को मखरज से पढ़ना सीखें और नमाज़ के तमाम मसायल को जानने के लिए अब्दुल सत्तार हमदानी की किताब मोमिन की नमाज़ जो कि हिंदी में भी मौजूद है ले आयें, सबसे पहले अपनी नमाज़ सही कर लीजिए इन शा अल्लाह दुनिया और आखिरत दोनों सही हो जाएगी_*

*_आज से बल्कि अभी से नमाज़ शुरू कर दीजिए और जो नमाज़ें क़ज़ा हो चुकीं उन्हें अदा करना शुरू करें, जिसकी नमाज़ें बहुत ज़्यादा हैं तो उनके लिए शरीयत ने कुछ सहूलत दी है मैं पहले बता चूका हूं आज फिर बता देता हूं, मसलन एक शख्स 40 साल की उम्र तक पहुंच गया और उसने नमाज़ें माज़ अल्लाह क़ज़ा कर रखी है तो बालिग़ होने के बाद से हर दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,तो इस तरह 1 साल की 365 फज्र की और इतनी ही ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा और वित्र, अब इसी हिसाब से कितने साल की नमाज़ क़ज़ा हुई है उसे पढ़ना होगा यानि 40 साल में से 12 साल निकाल दीजिए बचे 28 साल तो उसे 28 साल की नमाज़ पढ़नी होगी, और ये नमाज़ें मकरूह वक़्तों के अलावा यानि सूरज निकलने के 20 मिनट बाद और सूरज डूबने से 20 मिनट पहले और निस्फुन्नहार जो कि सूरज के बीचों बीच आने को कहते हैं ये पूरे साल में 39 मिनट से लेकर 47 मिनट तक होता है इनमे छोड़कर कभी भी पढ़ सकते हैं, बेहतर ये है की सुन्नते ग़ैर मुअक़्किदा और नफ़्लों की जगह क़ज़ा पढ़ी जाए और बेहतर यही है कि ये नमाज़ें घर में छिपकर पढ़ी जाए कि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह है और उसको ज़ाहिर करना ये भी गुनाह है, और अगर मस्जिद में ही पढ़ता है तो बाकी नमाज़ें पढ़ने में तो हर्ज नहीं कि किसी को इल्म नहीं होगा कि क्या पढ़ता है मगर वित्र पढ़ने में ये करे कि तीसरी रकात में जो कानो तक हाथ उठाकर अल्लाहो अकबर कहते हैं तो अल्लाहो अकबर कहे मगर हाथ ना उठाये और अगर घर में पढ़ता है तो हाथ भी उठाये, आलाहज़रत जल्द से जल्द इन नमाज़ों को आसानी से अदा करने के लिए फरमाते हैं कि_*

 *_नियत युं करें "सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई" अल्लाहु अकबर कहकर नियत बांध ले, युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र कहकर सिर्फ नमाज़ का नाम बदलता रहे बाकी सब उसी तरह कहे_*

*_सना छोड़ दें और क़याम में बिस्मिल्लाह से शरू करें बाद सूरह फातिहा के कोई सूरत मिलाकर रुकू करे और तस्बीह 3 मर्तबा की जगह सिर्फ 1 बार पढ़ें फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़ें, 2 रकात पर क़ायदा करने के बाद तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहें और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्येदेना मुहम्मदिवं व आलेही कहकर सलाम फेर दें, वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है_*

*_फरमाते हैं कि अगर किसी ने पक्का इरादा कर लिया कि अब मैं आईन्दा नमाज़ नहीं छोड़ूंगा और अपनी क़ज़ा नमाज़ अपनी ताकत भर अदा करता रहूंगा और फर्ज़ कीजिये 1 ही दिन बाद उसका इन्तेक़ाल हो जाए तो मौला तआला अपनी रहमत से उसकी सब नमाज़ों को अदा लिख देगा_*

_*सुब्हान अल्लाह, सुब्हान अल्लाह, सुब्हान अल्लाह*_

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 62*_

_*तो तौबा कीजिये और अपनी नमाज़ों को अदा करना शुरू कीजिये कि मौत का कोई भरोसा नहीं कि कब आ जाये*_
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             _*हज़रत शीश अलैहिस्सलाम*_
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*_हज़रत शीश अलैहिस्सलाम के बारे में ज़्यादा कुछ किताबों में नहीं लिखा है मगर जितना मेरी नज़र में आया दर्ज करता हूं_*

*_हज़रते हव्वा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा 40 मर्तबा हामिला हुईं, 39 बार 2 बच्चे साथ में पैदा हुए एक लड़का और एक लड़की, और चालीसवीं बार में हज़रत शीश अलैहिस्सलाम अकेले पैदा हुए_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 56*_

*_आपका लक़ब हिब्तुल्लाह है वो युं कि आपको अल्लाह ने हज़रते हाबील के बदले में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को अता फरमाया था_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 1, सफह 242*_

*_आपके निकाह का खुतबा हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पढ़ाया, आपकी उम्र 912 साल हुई और आपकी मज़ार के बारे में इख्तिलाफ है बाज़ जबले अबी क़ुबैस में बताते हैं_*

_*📕 ज़रकानी, जिल्द 1, सफह 65*_

*_और बाज़ लोग हिंदुस्तान के शहर आयोध्या में जो कि शहर फैज़ाबाद के करीब है वहां बताते हैं_*

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 3, सफह 664*_

            _*हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम*_

*_आपका नाम अख्नूख है कसरते दर्स की वजह से आपको इदरीस का लक़ब मिला_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 32*_

*_आपका नस्ब नामा यूं है अख्नूख बिन यूरिद बिन महलाबील बिन अनूश बिन क़ैतान बिन शीश बिन आदम_*

_*📕 अलइतक़ान, जिल्द 2, सफह 175*_

*_आप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी में पैदा हो चुके थे, आपको हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का 100 साल का ज़माना मिला मगर नबी होने का ऐलान आपने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के 200 साल बाद किया_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 73*_

*_आपने 65 साल की उम्र में बरुखा नामी औरत से निकाह किया जिससे आपको मतुशल्ख नाम का एक फरज़न्द हुआ_*

_*📕 माअरेजुन नुबूवत, जिल्द 1, सफह 67*_

*_सबसे पहले सितारों के ज़रिये हिसाब करना, कलम से लिखना, सिला हुआ कपड़ा पहनना, चीज़ों का वज़न और कपड़ों की पैमाईश करना, और असलहों की ईजाद आपने ही की_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 63*_

*_आप पर 30 सहीफे नाज़िल हुए_*

_*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान, सफह 369*_

*_आप ज़िंदा हैं मगर कहां हैं इसमें इख्तिलाफ है, बुखारी शरीफ की रिवायत के मुताबिक आप चौथे आसमान पर हैं और कअब अहबार की रिवायत के मुताबिक आप जन्नत में हैं, वाकया कुछ यूं है कि एक रोज़ आप खेतों में काम कर रहे थे सूरज की तपिश से आपकी पीठ मुबारक जल गई, आपने सोचा कि जब ये सूरज ज़मीन से 2000 साल की दूरी पर है तो हमारा ये हाल है तो जो फरिश्ता सूरज को चलाने पर मामूर होगा उसका क्या हाल होगा, ये सोचकर आपने रब की बारगाह में दुआ की कि ऐ मौला उस फरिश्ते पर जो कि सूरज पर मामूर है उसवपर रहम फरमा नबी की दुआ थी सो फौरन क़ुबूल हुई और फरिश्ते को आराम मिला, तो उसने रब की बारगाह में अर्ज़ किया कि ऐ मौला मुझपर ये नरमी किस लिए तो मौला फरमाता है कि मेरे बन्दे इदरीस ने तेरे लिए दुआ की है जिसका तुझे फायदा मिला है,तो फरिश्ता अर्ज़ करता है कि ऐ मौला मुझे अपने बन्दे का शुक्रिया अदा करने का मौक़ा दे, तो मौला ने उसको इजाज़त दे दी, वो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर उनका शुक्रगुज़ार हुआ और आपसे कहा की अगर आपको मेरी कोई भी ज़रूरत हो तो बताएं मैं आपकी पूरी मदद करूंगा, तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने जन्नत को देखने की तम्मन्ना ज़ाहिर की तो वो कहने लगा कि मैं खुद तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता मगर मेरी पहचान इस्राईल से है मैं आपको उनके पास ले चलता हूं वो आपकी ज़रूर मदद करेंगे, तब आप हज़रते मलकुल मौत के पास हाज़िर हुए और पूरा वाक़िया कह सुनाया तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बग़ैर मरे हुए तो कोई जन्नत में नहीं जा सकता हां मैं ये कर सकता हूं कि आपकी रूह क़ब्ज़ करके फौरन आपके जिस्म में डाल दूं तो ये मुमकिन है, तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ठीक है ऐसा ही करो तो उन्होंने रूह क़ब्ज़ करके फौरन जिस्म में डाल दी फिर उन्हें जहन्नम के ऊपर बने हुए पुल यानि पुल-सिरात से गुज़ारकर जन्नत में पहुंचा दिया और खुद बाहर रुक गए कि आप जन्नत की सैर करके वापस तशरीफ ले आयें, जब बहुत देर हो गई तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम ने आपको आवाज़ दी कि हज़रत अब चला जाए तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि कहां चला जाये रब फरमाता है कि हर बन्दे को मौत का मज़ा चखना है सो मैं चख चुका फिर फरमाता है कि हर बन्दे को पुल-सिरात से गुज़रना होगा सो मैं वहां से भी गुज़र चुका फिर फरमाता है कि जो एक बार जन्नत में दाखिल हो गया वो कभी भी उससे बाहर नहीं निकाला जायेगा तो अब मैं यहां आ चुका और यहां से कहीं नहीं जाऊंगा, जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम को ये दलील दी तो मौला ने फरमाया कि ऐ इस्राईल मेरे बन्दे ने सच कहा और जो कुछ किया वो मेरे इज़्न से ही किया सो उसे वहीं रहने दो_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 64*_

*_ये वाक़िया दोशम्बे के दिन पेश आया_*

_*📕 नुज़हतुल मजालिस 4, सफह 47*_

*_किस उम्र में ये वाक़िया पेश आया इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 350 साल कहा और बाज़ ने 400 साल और बाज़ ने 450 साल की उम्र बताई_*

_*📕 अलइतकान, जिल्द 2, सफह 175*_
_*📕 जलालैन, हाशिया 9, सफह 276*_
_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 73*_
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                     _*वली की पहचान*_
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*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन अल्लाह के कुछ बन्दे ऐसे होंगे जो ना नबी होंगे और ना शुहदा मगर उनके मक़ाम और बुलंदी को देखकर बाज़ अम्बिया और शुहदा भी रश्क करेंगे_*

_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 3, सफह 288*_

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*

*_बेशक अल्लाह के वली मुत्तक़ी ही होते हैं_*

_*📕 पारा 9, सूरह इंफाल, आयत 34*_

*_और तक़वा परहेज़गारी खशीयत बग़ैर इल्म के नामुमकिन है जैसा कि मौला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि_*

*_अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं_*

_*📕 पारा 22, सूरह फातिर, आयत 28*_

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि तसव्वुफ़ सिर्फ गुफ्तुगू नहीं बल्कि अमल है और फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त की गवाही शरीयत ना दे वो गुमराही है_*

_*📕 फुतुहूल ग़ैब, सफह 82*_

*_हज़रत मुजद्दिद उल्फ सानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जो शरीयत के खिलाफ हो वो मरदूद है_*

_*📕 मकतूबाते इमाम रब्बानी, हि 1, मकतूब 36*_

*_हज़रत शहाब उद्दीन सहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिसको शरीयत रद्द फरमाये वो हक़ीक़त नहीं बेदीनी है_*

_*📕 अवारेफुल मआरिफ, जिल्द 1, सफह 43*_

*_हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त को शरीयत बातिल बताये वो हक़ीक़त नहीं बल्कि कुफ्र है_*

_*📕 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा, सफह 149*_

*_हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तुम किसी को देखो कि वो हवा में उड़ता है पानी पर चलता है ग़ैब की खबरें बताता है मगर शरीयत की इत्तेबा नहीं करता तो समझलो कि वो मुल्हिद व गुमराह है_*

_*📕 सबा सनाबिल शरीफ, सफह 186*_

*_एक शख्स हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से ये सोचकर मुरीद होने के लिए आया कि हज़रत से कोई करामात देखूंगा तो मुरीद हो जाऊंगा, वो आया और आकर आस्ताने में रहने लगा इस तरह पूरे 10 साल गुज़र गए और 10 सालों के बाद वो नामुराद होकर वापस जाने लगा, हज़रत ने उसे बुलवाया और कहा कि तुम 10 साल पहले आये यहां रहे और अब बिना बताए जा रहे हो क्यों, तो कहने लगा कि मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुनी थी कि आप बा करामत बुज़ुर्ग हैं इसलिए आया था कि आपसे कोई करामात देखूंगा तो आपका मुरीद हो जाऊंगा मगर पिछले 10 सालों में मैंने आपसे एक भी करामात सादिर होते हुए नहीं देखी इसलिए जा रहा हूं, हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ जाने वाले तूने पिछले 10 सालों में मेरा खाना पीना, सोना जागना, उठना बैठना सब कुछ देखा मगर क्या कभी ऐसा कोई खिलाफे शरह काम भी होते देखा, इसपर वो कहने लगा कि नहीं मैंने आपसे कभी कोई खिलाफे शरह काम होते नहीं देखा, तो आप फरमाते हैं कि ऐ शख़्स क्या इससे बड़ी भी कोई करामात हो सकती है कि 10 सालों के तवील अरसे में एक इंसान से कोई खिलाफे शरह काम ही ना हो_*

_*📕 तारीखुल औलिया, जिल्द 1, सफह 67*_

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं एक जंगल में था भूख और प्यास का सख्त गल्बा था, अचानक मेरे सामने एक रौशनी छा गयी और एक आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं तेरा रब हूं और तुझसे बहुत खुश हूं इसलिए आजसे मैंने तुमपर हर हराम चीज़ें हलाल फरमा दी और तुम पर से नमाज़ भी माफ फरमा दी, ये सुनते ही मैंने लाहौल शरीफ पढ़ा तो फौरन वो रौशनी गायब हो गयी और एक धुवां सा रह गया फिर आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं शैतान हूं तुझसे पहले इसी जगह पर मैंने 70 औलिया इकराम को गुमराह किया है मगर तुझे तेरे इल्म ने बचा लिया, इसपर हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ मरदूद मुझे मेरे इल्म ने नहीं बल्कि रब के फज़्ल ने बचाया है, ये सुनते ही इब्लीस फरार हो गया_*

_*📕 बेहिज्जतुल असरार, सफह 120*_

_*इन सब बातों का निचोड़ ये है कि*_

*_अगर हवा में उड़ना विलायत होती तो इब्लीस लईन सबसे बड़ा वली होता कि सातवीं ज़मीन के भी नीचे तहतुस्सरा में ठहरता है मगर जैसे ही नाम लिया पास आकर बैठ जाता है कि 3500 साल से भी ज़्यादा का सफर वो पल भर में तय कर लेता है, मगर वो वली नहीं_*

*_अगर पानी पे चलना विलायत होती तो काफिर भी अपने जादू से पानी पर चला करते हैं, मगर वो वली नहीं_*

*_अगर ग़ैब की खबर देना विलायत होती तो कभी कभार नुजूमी यानि स्ट्रोलोजर भी सही भविष्यवाणी कर दिया करते हैं, मगर वो वली नहीं_*

 *_नमाज़ छोड़ने वाला, दाढ़ी मुंडाने वाला, फोटो खींचने खिंचाने वाला, म्यूजिक सुनने वाला,ना महरम औरतों की सोहबत में बैठने वाला, झूठ बोलने वाला फासिक़ है हरगिज़ वली नहीं_*

*_अलहासिल जो इल्म वाला होगा वही तक़वे वाला होगा और जो तक़वे वाला होगा वही अल्लाह का वली होगा लिहाज़ा वली को उसके तक़वे से पहचाने करामात से नहीं, अगर कोई मुझसे मेरे पीरो मुर्शिद हुज़ूर ताजुश्शरिया दामत बरकातोहुमुल आलिया के बारे में पूछता है तो यक़ीन जानिये मैं सिर्फ इतना कहता हूं कि मेरी बातों पर भरोसा मत करो तुम खुद जाकर एक बार अपनी आंखों से उनका दीदार कर आओ खुद बखुद समझ जाओगे कि वली कैसा होता है और करामत क्या होती है_*
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                        _*मुताफर्रिकात*_
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*_1⃣  साइंस्दां कहते हैं कि पृथ्वी यानि ज़मीन घूमती है जबकि ऐसा नहीं है ज़मीन बिल्कुल साकिन यानि ठहरी हुई है और घूमने का काम ये सूरज चांद सितारे करते हैं_*

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 9, सफह 177*_

*_2⃣  फासिक़ अगर सलाम करे या मुसाफा करना चाहे तो कर सकता है मगर पहल ना करें_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 3, सफह 72*_

*_3⃣  हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से नमाज़ में क़ुरान के साथ कुछ आयतें तौरैत शरीफ से पढ़ने की इजाज़त मांगी जिसपर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "ऐ ईमान वालो अगर मुसलमान हुए हो तो पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान की पैरवी ना करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है" सोचिये कि जब एक आसमानी और हक़ किताब पढ़ने की हमें इजाज़त नहीं दी गयी तो जो मुसलमान काफिरों की मुशाबहत करते हैं उनके त्यौहार मनाते हैं या मनाने जाते हैं उसकी मुबारकबाद देते हैं वो किस क़दर ज़ुल्म करते हैं_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 4, सफह 22*_

*_4⃣  वहाबी ना तो मुसलमान है और ना ही उसकी मस्जिद मस्जिद है और ना उसकी नमाज़ नमाज़, जब उनकी नमाज़ बातिल है तो अज़ान भी बातिल हां मगर अल्लाह और उसके हबीब का नाम सुने अगर चे किसी काफिर के भी मुंह से तो ताज़ीमन जल्ला शानहू और सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कहे_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 95*_

*_5⃣  तफ़ज़ीली वो फिरका है जो कि मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हज़रते अबू बकर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से अफज़ल जानता है, बाकी तमाम बातों में अहले सुन्नत वल जमात के साथ है, बिला शुबह ऐसा अक़ीदा रखने वाला भी गुमराह व बिदअती है_*

_*📕 फतावा अज़ीज़िया, जिल्द 1, सफह 183*_

*_6⃣  नमाज़ी के सामने से एक तरफ से आते हुए दूसरी तरफ निकल जाना ये बहुत बड़ा गुनाह है लेकिन अगर कोई ऐन नमाज़ी के सामने नमाज़ पढ़ रहा था और उसकी नमाज़ खत्म हो गई तो वो दाएं बाएं जिधर से चाहे निकलकर जा सकता है इसको हटना कहेंगे नमाज़ काटना नहीं_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफह 156*_

*_7⃣  ताक, मेहराब या दरख्तों में किसी बुज़ुर्ग या वली का क़याम बताना सरासर जिहालत है, वहां अगरबत्ती मोमबत्ती जलाना या फूल वगैरह डालना फिज़ूल है_*

_*📕 अहकामे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 32*_

*_8⃣  आजकल कुछ पीर ऐसे भी सुनने में आ रहे हैं जो कि माज़ अल्लाह मुसलमान किये बग़ैर मुरीद कर लेते हैं, जबकि आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "कोई काफिर ख्वाह मुशरिक हो या मोहिद हरगिज़ दाखिले सिलसिला नहीं हो सकता जबतक कि इस्लाम ना क़ुबूल करे" ऐसे पीर पीर नहीं बल्कि शैतान के चेले हैं लिहाज़ा ऐसो से दूर रहने में ही ईमान की आफियत है_*

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 6, सफह 157*_

*_9⃣  बाज़ लोग नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त अपना मुंह आसमान की तरफ उठाते हैं ऐसा करना सख्त मना है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफह 54*_

*_🔟 जुमे की रात और दिन में और रमज़ान शरीफ में किसी पर भी अज़ाब नहीं होता, हां मुसलमान हमेशा के लिए महफूज़ हो जाता है मगर काफिर पर इसके बाद अज़ाब लौट आता है_*

_*📕 शराहुस्सुदूर, सफह 76*_
_*📕 अलअश्बाह वन्नज़ायेर, सफह 564*_
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             *_मीलाद शरीफ़ और क़ुर्आन_*
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*_हुज़ूर की ज़ात व औसाफ़ व उनके हाल व अक़वाल के बयान को ही मिलादे पाक कहा जाता है, हुज़ूर की विलादत की ख़ुशी मनाना ये सिर्फ इंसान का ही ख़ास्सा नहीं है बल्कि तमाम खलक़त उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत का मीलाद पढता है, यहां क़ुरान की सिर्फ चंद आयतें पेश करता हूं वरना तो पूरा क़ुरान ही मेरे आका की शान से भरा हुआ है मगर कुछ आंख के अंधे और अक़्ल से कोढ़ी लोग इसको भी शिर्क और बिदअत कहते हैं, माज़ अल्लाह, हवाला मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. वही है जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा_*

_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 33*_

*_2. बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लायें तुममे से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान_*

_*📕 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 128*_

*_पहली आयत में मौला तआला उन्हें भेजने का ज़िक्र कर रहा है और भेजा उसे जाता है जो पहले से मौजूद हो मतलब साफ़ है कि महबूब पहले से ही आसमान पर या अर्शे आज़म पर या जहां भी रब ने उन्हें रखा वो वहां मौजूद थे, और दूसरी आयत में उनके तशरीफ़ लाने का और उनके औसाफ़ का भी बयान फरमा रहा है, क्या ये उसके महबूब का मिलाद नहीं है, क्या वहाबी खुदा पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_3. बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक नूर आया और रौशन किताब_*

_*📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 15*_

*_यहां नूर से मुराद हुज़ूर हैं और किताब से मुराद क़ुराने मुक़द्दस है_*

*_4. और याद करो जब ईसा बिन मरियम ने कहा ................. और उन रसूल की बशारत सुनाता हूं जो मेरे बाद तशरीफ़ लायेंगे उनका नाम "अहमद" है_*

_*📕 पारा 28, सूरह सफ़, आयत 6*_

*_इस आयत में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मेरे आक़ा का मीलाद पढ़ रहे हैं, क्या वहाबी उन पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_5. और याद करो जब अल्लाह ने पैगम्बरों से अहद लिया, जो मैं तुमको किताब और हिकमत दूं फिर तशरीफ़ लायें तुम्हारे पास वो रसूल कि तुम्हारी किताब की तस्दीक़ फरमाएं तो तुम ज़रूर ज़रूर उनपर ईमान लाना और उनकी मदद करना, क्या तुमने इक़रार किया और उसपर मेरा भारी ज़िम्मा लिया, सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया फ़रमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और मैं खुद तुम्हारे साथ गवाहों में हूं, तो जो कोई इसके बाद फिरे तो वही लोग फ़ासिक़ हैं_*

_*📕 पारा 3, सूरह आले इमरान, आयत 81-82*_

*_ये आलमे अरवाह का वाकिया है जहां मौला ने अपने महबूब की शान बयान करने के लिए अपने तमाम नबियों को इकठ्ठा कर लिया यानि महफिले मिलाद सजा ली और उनसे फरमा रहा है कि अगर तुम्हारे पास मेरे नबी तशरीफ़ लायें तो तुम्हे सब कुछ छोड़कर उसकी इत्तेबा करनी होगी, और आखिर के जुम्ले क्या ही क़यामत ख़ेज़ हैं क्या फरमा रहा है कि " जो इस अहद को तोड़े तो वो फ़ासिक़ है " अल्लाह अल्लाह ये कौन कह रहा है हमारा और आपका रब कह रहा है, किससे कह रहा है अपने मासूम नबियों से कह रहा है, क्यों कह रहा है क्योंकि बात उसके महबूब की है इसलिए कह रहा है_*

*_आज हम उसके महबूब का ज़िक्र करें तो हम मुश्रिक_*
*_महफिले मिलाद सजाएं तो हम मुश्रिक_*
*_भीड़ इकठ्ठा कर लें तो हम मुश्रिक_*
*_और रब जो कर रहा है उसका क्या, उस पर क्या हुक्म लगेगा वहाबियों_*

*_6. और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला_*

_*📕 पारा 13, सूरह इब्राहीम, आयत 5*_

*_अल्लाह के दिन से मुराद वो दिन हैं जिन में मौला तआला ने अपने बन्दों पर नेमतें नाज़िल फरमाई जैसा कि बनी इस्राईल पर मन व सल्वा नाज़िल फरमाना और उनको दरिया से पार कराना, जैसा कि खुद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ौल क़ुरान में मौजूद है मौला फरमाता है कि_*

*_7. ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*

_*📕 पारा 7, सूरह मायदा, आयत 114*_

*_मुफ़स्सेरीन फरमाते हैं कि जिस दिन आसमान से ख्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई उस दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं, सोचिये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म नाज़िल फरमा रहे हैं तो क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी की विलादत एक खाने से भरे तश्त से भी कम है कि हम उस पर खुशी नहीं मना सकते, यक़ीनन मेरे आक़ा दुनियाए जहान की सारी नेमतों से बढ़कर हैं ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद रब्बे क़ायनात फरमा रहा है, पढ़िए_*

*_8. बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानो पर कि उनमे उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उनपर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते है_*

_*📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 164*_

*_मौला ने इंसान को कैसी कैसी नेमतें अता फरमाई है, उसकी आंख कान नाक मुंह ज़बान दिल जिगर उसके हाथ पैर उसकी सांसें, मैंने शायद किसी मैगज़ीन में पढ़ा था किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा है वैसे तो उनकी कोई कीमत नहीं सब अनमोल है मगर फिर भी मेडिकल साइंस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ rs. की मिल्क समझती है,सुबहान अल्लाह, हर इंसान 300 करोड़ rs. का फिर उस पर जो रब ने नेमतें दी उस के मां-बाप भाई-बहन दोस्त-अहबाब नाते रिश्तेदार वो अलग फिर उसपर ये कि उसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान से नवाज़ा, मगर कसम उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुरान उठाकर देख लीजिए कि क्या कहीं उसने अपनी किसी नेमत पर एहसान जताया हो अगर जताया है तो अपने महबूब को जब बन्दों के दरमियान भेजा तब जताया है, अब बताइए क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफ़ा की विलादत, ख्वान के आसमान से आने पर तो ईद मनायी गयी तो फिर मुस्तफा जाने रहमत के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया, जबकि मौला खुद अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है, फरमाता है_*

*_8. और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो_*

_*📕 पारा 30, सूरह वद्दोहा, आयत 11*_

*_क्या महबूबे दो आलम से बढ़कर भी कोई नेमत हो सकती है,नहीं नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,तो हम सुन्नी रब की दी हुई उसी अज़ीम नेमत का चर्चा करते हैं तो हम मुश्रिक कैसे हो गए बल्कि हक़ तो ये है कि जो उसकी दी हुई नेमत का चर्चा नहीं करते वो एहसान फरामोश गद्दार हैं जहन्नम के हक़दार हैं_*
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                   *_ज़िना का बयान - 01_*
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*_🔘यक़ीनन ज़िना गुनाहे अजीम (बडा) और  बहुत बड़ी बला है! यह इन्सान की दुनिया और आखिरत को तबाह व बर्बाद कर देता है!_* 

*_वह नौजवान जो काफीरों   (नास्तीको) की लड़कियों से  नाज़ाइज़ ताल्लुक़ात रखते है! (और यह समझते है के यह कोई गुनाह नही इसलिये के वह काफीरा (नास्तीक) है!) यह सख़्त जेहालत है! काफीरा (नास्तीक) लड़की से मुबाशरत (सोहबत) भी ज़िना ही कहलाएगी!_*

*_इसी तरह  काफीर, (नास्तीक)मजुसी, बुत परस्त, सितारा परस्त,  उन  से  निकाह किया तो निकाह ही नही होंगा बल्की वह भी महज जिना मे ही शुमार होंगा!_*

*_इसी तरह   जितने भी दीन से फिरे हुए बदमजहब  बातील फिर्के है!  उन  से  निकाह किया तो निकाह ही नही होंगा बल्की वह भी महज जिना ही कहलाएंगा जब तक की वह अकाइद ए बातीला से सच्ची तौबा न करे!_*

_*हदीस : अल्लाह के रसूल ﷺ ने इर्शाद फर्माया..*_

*_"शिर्क के बाद अल्लाह के नज़्दीक इस गुनाह से बड़ा कोई गुनाह नही की, एक शख्स किसी ऐसी औरत से सोहबत करे जो उस की बीवी नही!_*

_*और फर्माते है हमारे प्यारे आका हुजुर ﷺ*_

*_"जब कोई मर्द और औरत ज़िना करते है तो ईमान उन के सीने से निकल कर सर पर साए की तरह ठहर जाता है"।_*

*_📕मुका़शीफतुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168_*

_*हदीस : हज़रत इकरमा ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा]से पूछा..*_

_*"ईमान किस तरह निकल जाता है"..? हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ने अपने एक हाथ की उंगलियॉ दुसरे हाथ की उंगलियो मे डाली और फिर निकाल ली और फर्माया "इस तरह !"*_

*_📕बुखारी शरीफ,  जिल्द नं 3, बाब नं 968, हदीस नं 1713, सफा नं 614, अशअ़तुल लम्आत, जिल्द नं 1, सफा नं 287_*

_*हदीस : हज़रत अबूह़ुरैरा व इब्ने अब्बास [रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा] से रिवायत है कि ताजदार ए मदिना ﷺ ने इर्शाद फर्माया..*_

*_"मोमिन होते हुए तो कोई ज़िना कर ही नही सकता"!_*

*_📕 बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 968, हदीस नं 1714, सफा नं 614_*

_*हज़रत इमाम ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है..*_

*_" जिसने किसी गैर शादी-शुदा औरत का बोसा लिया, उसने गोया सत्तर कुवांरी लडकियों से जिना किया! और जिसने कुवांरी लडकी से जिना किया, तो गोया उसने सत्तर हजार शादी-शुदा औरतों से जिना किया!"_*

 *_📕 मुका़शीफतुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 169_*

 _*हज़रत इमाम ग़ज़ाली और हजरत इमाम अबुल्लैस समरकंदी  [रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा] नकल करते है की..*_

_*"बाज सहाब-ए-किराम, से मरवी है कि ज़िना से बचो  इस में  ("छह" 6) मुसीबतें है जिन मे से तीन का तअ़ल्लुक़ दुनिया से और तीन का आख़िरत से है। दुनिया की मुसीबतें यह है..*_

1⃣ *_ज़िन्दगी मुख़्तसर (कम) हो जाती है।_*

2⃣ *_दुनिया में रिज़्क़ कम हो जाता है।_*

 3⃣ *_चेहरे से रौनक (नुरानियत) ख़त्म हो जाती है।_*

*_📌और आख़िरत की मुसीबतें येह है कि..!_*

4⃣ *_आख़िरत में खुदा की नाराज़गी_*

 5⃣ *_आख़िरत में सख़्त पूछ ताछ होगी।_*

 6⃣ *_ज़हन्नम में जाएगा और सख़्त अज़ाब़ पाएंगा!_*

*_📕 तंबीहुल गाफेलीन सफ 381, मुका़शीफतुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168_*

_*रिवायत : हजरत मुसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह अज्जा व जल्ल से जिना करने वाले की सजा के बारे मे पुछा, तो रब तबारक व तआला ने इर्शाद फर्माया.*_

*_"ऐ मुसा! जिना करने वाले को मै आग की जिरह (आग का लिबास) पहनाऊंगा! जो ऐसा वजनी है की अगर बहुत बडे पहाड पर रख दिया जाएंगा तो वह (पहाड) भी रेजा-रेजा हो जाए"_*

*_📕 मुका़शीफतुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168_*

_*📮जारी रहेगा.....!*_
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                   *_ज़िना का बयान - 02_*
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*_अल्लाह तबारक तआला इर्शाद फ़र्माता है!.._*

*وَ الَّذِیۡنَ لَا یَدۡعُوۡنَ مَعَ اللّٰہِ  اِلٰـہًا اٰخَرَ  وَ لَا یَقۡتُلُوۡنَ النَّفۡسَ الَّتِیۡ حَرَّمَ اللّٰہُ  اِلَّا بِالۡحَقِّ وَ لَا یَزۡنُوۡنَ ۚ وَ مَنۡ یَّفۡعَلۡ  ذٰلِکَ  یَلۡقَ  اَثَامًا ﴿ۙ۶۸﴾*

*_तर्जुमा : और वह लोग अल्लाह के साथ किसी दुसरे माबूद को नही पुजते, और इस जान को जिसकी अल्लाह ने हुरमत रखी नाहक नही मारते, और बदकारी नही करते, और जो यह काम करे वह सजा पाएंगा..! (यानी ज़िना करने वाले असाम में डाले जाएंगे..!)_*

*_📕 तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान सूर ए फ़ुरक़ान, आयत नं 68_*

*_असाम के बारे में उलमा-ए-किराम ने कहा कि वह ज़हन्नम का एक ग़ार है, जब उस का मुँह खोला जाएगा तो उस की बदबू से तमाम ज़हन्नमी चीख उठेंगे ।_*

*_📕मुका़शफतुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 167_*

*_हदीस : अल्लाह के रसुल ﷺ इर्शाद फरमाते है.._*

*_"सातों आसमान और सातों जमीन और पहाड़ (उम्र दराज) ज़िनाकार पर लानत भेजते है और क़ियामत के दिन ज़िनाकार मर्द व औरत की शर्मगाह से इस कद्र बदबू आती होगी के ज़हन्नम मे जलने वालों को भी उस (बदबु) से तकलीफ़ पहुँचेगी।_*

*_📕 बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1,  हिस्सा 9, सफा 43_*

_*यह तमाम सज़ाए तो आख़िरत मे मिलेगी लेकिन ज़िना करने वाले पर शरीअ़त ने दुनिया में भी सज़ा मुक़र्रर की है। इस्लामी हुकूमत हो तो बादशाहे वक्त़ या फिर क़ाज़ी शरअ पर ज़रूरी है कि जानी  (ज़िना करने वाले ) पर जुर्म साबित हो जाने पर शरीअ़त के हुक़्म के तहत सजा दे! हदीसे पाक में है कि अगर किसी को  दुनिया में सज़ा न मिल सकी (सजा से बच गया) तो आख़िरत मे उस को सख़्त अज़ाब़ दिया जाएगा, और अगर दुनिया में सज़ा मिल गई तो फिर अल्लाह चाहे तो उसे मुआ़फ फरमा दे।*_

_*दुनिया में सज़ा : अल्लाह और उसके रसूल ﷺ ने ज़िनाकार  मर्द और औरत को सज़ा का हुक़्म दिया और उस पर रसुलुल्लाह ﷺ ने अमल भी करवाया। चुनांचे कुरआन ए पाक मे*_

*_अल्लाह तबारक तआला इर्शाद फ़र्माता है!.._*

*اَلزَّانِیَۃُ وَ الزَّانِیۡ فَاجۡلِدُوۡا کُلَّ وَاحِدٍ مِّنۡہُمَا مِائَۃَ جَلۡدَۃٍ ۪ وَّ لَا  تَاۡخُذۡکُمۡ بِہِمَا رَاۡفَۃٌ  فِیۡ  دِیۡنِ اللّٰہِ  اِنۡ کُنۡتُمۡ تُؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰہِ وَ الۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ ۚ وَ لۡیَشۡہَدۡ عَذَابَہُمَا طَآئِفَۃٌ مِّنَ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ ﴿۲﴾*
             
*_तर्जुमा : जो औरत बदकार हो, और जो मर्द तो, इन मे हर एक को सौ (100) कोडे लगाओ, और तुम्हे उन पर तरस न आए! अल्लाह के दीन मे अगर तुम ईमान लाते हो, अल्लाह और पिछले दीन पर! और चाहीए की उनकी सजा के वक्त मुसलमानो का एक गिरोह हाजीर हो!_*

*_📕 तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान , सूर ए नुर आयत नं 2_*

*_(यह सजा गैर शादी-शुदा (जिसकी शादी न हुई हो..!) मर्द और औरत के लिये मुकर्रर है..!)_*

*_हुजुर  ﷺ इर्शाद फरमाते है..!_*

*_हदीस : ज़िना करने वाले शादी शुदा है तो खुले मैदान में संगसार किया जाए! (यानी पत्थरों से मार-मार कर जान से खत्म कर दिया जाए!) और गै़र शादी शुदा हो तो सौ (100) दुर्रे (कोडे, चाबुक) मारे जाए_*

_*हदीस : हजरत शोअबी रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने हजरत अली रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की है की..*_

*_हजरत अली ने जुमा के रोज एक जानी औरत को संगसार किया तो फर्माया की मैने उसे रसुलुल्लाह ﷺ की सुन्नत के मुताबीक संगसार किया है!_*

*_📕बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 968, 980, हदीस नं 1715, सफा नं 615, 625_*

*_शादी शुदा जानी मर्द व औरत को संगसार करने और गैर शादी-शुदा जानी (जिनाकार) मर्द व औरत को सौ कोडे लगाने का हुक्म स्याहे सित्ता के अलावा अहादीस की तकरीबन सभी किताबो मे मौजुद है! जिससे इंकार की कोई गुंजाइश नही! यहा पर (Topic)  के लंबाई के खौफ से बुखारी शरीफ की उपर की दो हदिसों पर ही इत्तेफाक किया जाता है!_*

_*📮जारी रहेगा.....!*_
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                   *_ज़िना का बयान - 03_*
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*_🔘 जिना कैसे साबीत होंगा?_*

*_अल्लाह तबारक तआला इर्शाद फ़र्माता है..!_*

*وَ الَّذِیۡنَ یَرۡمُوۡنَ اَزۡوَاجَہُمۡ وَ لَمۡ  یَکُنۡ لَّہُمۡ شُہَدَآءُ  اِلَّاۤ  اَنۡفُسُہُمۡ فَشَہَادَۃُ اَحَدِہِمۡ  اَرۡبَعُ شَہٰدٰتٍۭ بِاللّٰہِ ۙ اِنَّہٗ  لَمِنَ الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۶﴾*

*وَ الۡخَامِسَۃُ اَنَّ لَعۡنَتَ اللّٰہِ عَلَیۡہِ  اِنۡ کَانَ مِنَ  الۡکٰذِبِیۡنَ ﴿۷﴾*

*وَ یَدۡرَؤُا  عَنۡہَا الۡعَذَابَ اَنۡ تَشۡہَدَ اَرۡبَعَ شَہٰدٰتٍۭ بِاللّٰہِ ۙ اِنَّہٗ لَمِنَ الۡکٰذِبِیۡنَ ۙ﴿۸﴾*

*وَ الۡخَامِسَۃَ  اَنَّ غَضَبَ اللّٰہِ عَلَیۡہَاۤ  اِنۡ  کَانَ مِنَ  الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۹﴾*

*_तर्जुमा आयत नं 6 : और वह जो अपनी औरतो को ऐब लगाए, और इनके पास अपने बयान के सिवा गवाह न हो तो, ऐसे किसी की गवाही यह है के,चार बार गवाही दे अल्लाह के नाम से के वह सच्चा है!_*

*_तर्जुमा आयत नं 7 : और पॉंचवी यह के अल्लाह की लानत हो इस पर अगर झुठा हो!_*

*_तर्जुमा आयत नं 8 : और औरत से युं सजा टल जाएंगी के वह अल्लाह का नाम लेकर चार बार गवाही दे के मर्द झुठा है!_*

*_तर्जुमा आयत नं 9 : और पॉंचवी युं के औरत पर गजब अल्लाह का अगर मर्द सच्चा हो!_*

*_📕 तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान सूर ए नुर आयत नं, 6, 7, 8 और 9_*

*_किन लोगो की गवाही मोतब्बर मानी जाएंगी..?_*

_*जिना का सुबुत बाशरअ, नमाजी, परहेजगार, मुत्तकी, जो न कोई गुनाहे कबीरा करते हो, न किसी गुनाहे सगीरह पर इसरार रखते हो, न कोई बात खिलाफे मुरव्वत छिछोरे पन की करते हो, और न ही बाजारो मे खाते पिते हो, और न ही सडको पर पेशाब करते हो, ऐसे चार मर्दो की गवाही से जिना साबीत होता है! या जिना करने वाले के चार मर्तबा इकरार कर लेने से, फिर भी इमाम बार बार सवाल करेंगा और दर्याफ्त करेंगा की........ तेरी जिना से मुराद क्या है? कहॉं किया..? किससे किया? कब किया..? अगर इन सबको बयान कर दिया तो जिना साबीत होंगा वर्ना नही!*_

_*झुठी गवाही देने वालो की सजा : और गवाहो को खुल कर साफ साफ अपना चश्मदीद मुआइना बयान करना होंगा की हमने मर्द का बदन औरत के बदन के अंदर खास इस तरह देखा (जैसे  सुरमे दानी मे सलाई) अगर इन बातो मे से कोई भी बात कम होंगी मसलन चार गवाहो से कम हो या उन मे एक आला दर्जा का न हो, या मर्द तीन हो और औरते दस-बिस ही क्यो न हो, इन सब सुरतो मे यह गवाहिंयॉ नही मानी जाएंगी! अगर्चे इस किस्म की सौ दो सौ गवाहियॉ गुजरी हरगिज जिना का सुबुत न होंगा और ऐसी तोहमत लगाने वाले खुद ही सजा पाएंगे! और उन्हे बतौर सजा अस्सी कोडे लगाए जाएंगे!*_

*_📕 फतावा रज्वीया, जिल्द 5 सफा नं. 974_*

 *وَ الَّذِیۡنَ یَرۡمُوۡنَ الۡمُحۡصَنٰتِ ثُمَّ لَمۡ یَاۡتُوۡا بِاَرۡبَعَۃِ  شُہَدَآءَ فَاجۡلِدُوۡہُمۡ ثَمٰنِیۡنَ جَلۡدَۃً  وَّ لَا تَقۡبَلُوۡا لَہُمۡ شَہَادَۃً  اَبَدًا ۚ وَ اُولٰٓئِکَ ہُمُ  الۡفٰسِقُوۡنَ ۙ﴿۴﴾*

*_तर्जुमा: जो लोग पाक दामन औरतो पर जिना की तोहमत (इल्जाम) लगाए, फिर चार गवाह न पेश कर सके, तो इन्हे 80 कोडे लगाओ, और कभी भी इनकी गवाही कबुल न करो यह फासीक (झुठे) लोग है!_*

*_📕 तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान सूर ए नुर आयत न. 4_*

_*आला हजरत इमाम अहमद रजा कादरी और हजरत सदरूल-अफाजील अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैही ("फतावा रज्वीया") और तफ्सीर कुरआने करीम "खजाएनुल-इर्फान" मे गैर शादी-शुदा जानी मर्द और जानी औरत के सजा के बारे मे नक्ल  करते है..*_

*_"जानी मर्द को कोडे लगाते वक्त खडा किया जाए! और उसके तमाम बदन के कपडे उतार दिये जाए, सिवाए लुंगी के और उसके तमाम बदन पर कोडे लगाए जाए सिवाए चेहरा और शर्मगाह के! और औरत को कोडे लगाते वक्त खडा न किया जाए न उसके कपडे उतारे जाए अगर पोस्तीन या रूईदार कपडे पहने हुए हो तो उतार लिया जाए!"_*

_*📮पोस्ट ख़त्म.....!*_
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Thursday, September 27, 2018


         
              *_पेशावर औरते (वेश्याए)_*
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 _*🔘अक्सर नौजवान अपनी जवानी पर काबु नही रखते है! गलत संगत और सोहबत मे पडकर अपनी हवस को मिटाने के लिये पेशावर (वेश्याओ) का सहारा लेते है! और कुछ शादी-शुदा भी अपनी बिवी के होते हुए पेशावर औरतो के पास जाना नही छोडते!*_

_*अगर एक ही (प्लेट) मे तरह -तरह के खाने खट्टा, मिठ्ठा, तेज और कडवा सब मिलाकर रख दिया जाए तो यकीनन उसमे बदबु और किडे पड ही जाएंगे! बस इन पेशावर औरतो की मिसाल इसी (प्लेट) की मानींद है! एक वक्त की जरा सी लज्जत के लिये उस (प्लेट) से एक बार भी कुछ चखा नही के वह एक ऐसी दलदल मे फंस जाता है, के जितना बाहर निकलने की कोशीश करता है, उतना ही और दलदल मे फंसता चला जाता है! नतीजा उसकी उम्र भर की सेहत, तंदरुस्ती, इज्जत, शौहरत, दौलत, आराम, सुकुन व चैन सब कुछ बर्बाद होकर रह जाता!*_

*_हमारा रब तबारक तआला इर्शाद फर्माता है..._*

*قُلۡ لِّلۡمُؤۡمِنِیۡنَ یَغُضُّوۡا مِنۡ  اَبۡصَارِہِمۡ وَ یَحۡفَظُوۡا فُرُوۡجَہُمۡ ؕ ذٰلِکَ اَزۡکٰی لَہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ خَبِیۡرٌۢ  بِمَا یَصۡنَعُوۡنَ ﴿۳۰*

*_मुसलमान मर्दो को हुक्म दो, अपनी निगाहे कुछ निची रखे! और अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करे! यह इनके लिये बहुत सुथरा है! बेशक अल्लाह को इनके कामो की खबर गै!_*

*_और अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है.._*

*اَلۡخَبِیۡثٰتُ لِلۡخَبِیۡثِیۡنَ وَ الۡخَبِیۡثُوۡنَ لِلۡخَبِیۡثٰتِ ۚ وَ الطَّیِّبٰتُ لِلطَّیِّبِیۡنَ وَ الطَّیِّبُوۡنَ لِلطَّیِّبٰتِ ۚ*

*_गंदियॉं गंदो के लिये, और गंदे गंदीयों के लिये और सुथरीयॉ सुथरो के लिये, और सुथरे सुथरीयो के लिये!_*

*_📕 तर्जुमा : कुरआन कंजुल इमान सुर ए नुर आयत नं. 30 और 20_*

_*इन आयतो की तफ्सीर मे उलमा ए किराम इर्शाद फर्माते है की..*_

*_"बदकार और गंदी औरते, गंदे और बदकार मर्दो के लायक है! इसी तरह बदकार और गंदे मर्द इसी काबील है के उनका ताल्लुक उन जैसे ही गंदी और बदकार औरतो से हो! जबकी सुथरे (पाक), नेक मर्द सुथरी (पाक), और नेक औरतो के लायक है! इसी तरह सुथरी, नेक औरत सुथरे और नेक मर्द के लायक है! और सुथरे, नेक का रिश्ता सुथरी, नेक औरतो से और सुथरी और नेक औरत का रिश्ता सुथरे और नेक मर्द से ही किया जा सकता है!_*

_*हदीस : हमारे प्यारे मदनी आका ﷺ इर्शाद फर्माते है..*_

*_"जिसने जिना किया या शराब पी अल्लाह तआला उसमे से ईमान को ऐसे निकालता है, जैसे इंसान सर से अपना कुर्ता निकालता है!_*

_*इस हदीस पाक से वह लोग दिल से सोचे जो पेशेवर औरतो के पास जाते है, और जिना जैसे खबीस गुनाह का इर्तीकाब करते है!*_

_*ताज्जुब है कोई मुसलमान होकर जिना करे! खुदारा ऐसे लोग अब भी होश मे आ जाए मौत के आने से पहले! बाद मे होश भी आया तो किस काम का!*_

*_इससे पहले भी यह बयान हो चुका है के पेशावर (वेश्याओ) से मुबाशरत जिना ही कहलाएगी, हॉलांकी वह इस काम के रुपए लेती है, और इस काम के पर राजी भी होती है! लेकीन फरीखैन की आपसी रजा भी इस काम को जिना से अलग न कर पाएंगी! जिना के बारे मे बहुत सारी हदीसे "जिना" के बाब (Chapter) मे पहले ही बयान हो चुकी है!_*

*_बदकार को नेक बनाने के लिये अमल :अगर किसी औरत का मर्द बदचलन हो और दुसरी औरतो के साथ हरामकारी करता हो! ऐसी औरत अपने बदकार मर्द से सोहबत से पहले बावुजु ग्यारह (11) "अल-वलीयो" पढे! अव्वल आखीर एक-एक मर्तबा दरुद शरीफ पढे! फिर शैहर से मुबाशरत करे! (यह अमल हर बार जब भी उसका शौहर उससे सोहबत करना चाहे कर लिया करे) इंशा अल्लाह तआला वह मर्द परहेजगार हो जाएंगा! इसी तरह किसी शख्स की औरत बदचलन हो या बदकारी करती हो तो वह भी अपनी औरत से सोहबत करने से पहले यह अमल हर बार कर लिया करे! इंशा अल्लाह तआला  वह औरत नेक व परहेजगार बन जाएंगी!_*

*_📕 वजाइफे रज्वीया सफा नं. 219_*
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                  *_जानवरों से सोहबत_*
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*_🔘क्या आप ने जानवरों से भी बढ़ कर हैवान देखे है? यह वोह लोग है जिन्होंने शर्म व हया  कानून की हर जंजीर को तोड़ा है! इन्हें कुछ नहीं मिलता तो जानवरों को ही अपनी हवस का शिकार बनाते है!और यह सुबूत फरहाम करते है के हम देखने मे तो वैसे इन्सान ही नज़र आते है लेकिन हवस और  दरिन्दागी के मामले मे जानवरों से भी बढ़ कर है।_*
*_ऐसे लोग जो इस काम मे मुब्तिला है! इस हदीस शरीफ को पढ कर यकीनन खौफ़े ए  खुदा से डर कर सहम जाएंगे!._*
*_हदीस : हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबी  ए करीम ﷺ ने इर्शाद फ़र्माया.._*

*_"जो शख़्स जानवर से सोहबत करे, उसे और उस जानवर दोनों को क़त्ल कर दो"_*
*_📕 अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 349, हदीस नं 1052, सफा नं 376, इब्नेमाज़ा, जिल्द नं 2, बाब नं 143, हदीस नं 334, सफा नं 108_*
*_लोगों ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु तआला अन्हु से पूछा कि...... "जानवर ने क्या बिगाड़ा है" ? तो उन्होंने ... "इसका सबब तो मैने  रसूलुल्लाह ﷺ से नही सुना मगर हुज़ूर ने ऐसा ही किया बल्कि उस जानवर का गोश्त तक खाना पसन्द न फ़र्माया"।_*
*_गालीबन  हुज़ूर ﷺ ने जानवर को क़त्ल करने का हुक़्म इस लिए दिया हो कि  जब भी उसे कोई देखेगा तो गुनाह का मंजर याद आएगा! दूसरी हिक़्मत इस में यह भी हो कि उम्मत को यह तालीम देना मक़्सूद है कि यह काम किस कद्र बुरा है की उसको करने वाले को क़त्ल किया जाए और जिस से यह काम किया गया इसमे किस कद्र बुराई आ गई की इसे भी  क़त्ल कर दिया जाए।  (वल्लाहु तआला आलम )_*_
*_अभी हाल ही में जदीद तहकीक से  साबित हुआ है कि जो मर्द या औरत जानवर से अपनी ख्वाहिश पूरी करते है! उन्हे एड्स (AIDS) की ना काबीले इलाज बीमारी हो जाती है!  याद रहे  एड्स (AIDS) का दूसरा नाम मौत है_*
*_मसअला : किसी नाबालिग़ ने बकरी, गाय, भैंस, (या और किसी जानवर) के साथ सोहबत की तो उसे डाँट डपट कर सख़्ती से समझाया जाए । और अगर बालिग़ ने ऐसा काम किया तो उसे इस्लामी हुकुमत हो तो उसे इस्लामी सज़ा दी जाएगी! जिसका इख़्तियार इस्लामी बादशाह को है, वह जानवर जिब्ह करके दफ़्न कर दिया जाए!_*

*_📕 दुर्रे मुख्तार बहवाला फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 983_*
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             *_अपने हाथों अपनी बर्बादी_*
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*_जब एक बच्चा होश की मंजील को छुता है, तो वह अपने घर (TV और मोबाईल) के जरीए वह सब कुछ देखता और जान लेता है जो इस उम्र मे नही जानना चाहीये! जब होश संभीलते ही एक मर्द और औरत के बीच के खास तअल्लुकात को देखता है तो उसमे भी फितरी तौर पर वही सब कुछ करने की ख्हाहिश पैदा होने लगती है! फिर यह ख्वाहिश तरक्की करके उम्र के साथ साथ ज्यादा बढती जाती है! और वह खुद को उम्र से पहले ही जवान समझने लगता है! मुसीबत बालाए मुसीबत की स्कुल, कॉलेज, बाजार और सडको पर फैशन की नुमाईश उसको जज्ब ए शहवत को जुनुन की हद तक पहुंताने मे आग पर पेट्रोल का काम करती है! और जब वह इस नफ्सानी ख्वहिश को पुरा करने के असबाब नही पाता है तो, (वह गलत तरीको का इस्तेमाल करने लगता है!) जब भी वह तन्हा होता है, तो यह जिंसी ख्वाहिश उसे परेशान करने लगती है! फिर वह तस्कीन के लिये अपने ही हाथो अपनी कुव्वत को बर्बाद करके मजा हासील करने की बुरी आदत मे मुब्तीला हो जाता है!_*

*_हाथो की यह हरकत (उज्वे तनासुल) को कमजोर बना देती है! और ऐसा शख्स इस करतुत के सबब औरत के काबील नहीं रहता!_*

*_📌याद रखीये यह वह किमती खजाना है जो खुन से बनता है, और खुन भी वह जो तमाम बदन को गिजा पहुंचाने के बाद बचा, बस अगर इस मनी के खजाने को इस तेजी के साथ बर्बाद किया गया तो दिल कमजोर होंगा! और दिल पर तमाम इंसानी जिस्म का दारोमदार है! जिस्म को खुन नही पहुंचा यानी यह आदत इस हद तक पहुंच चुकी के खुन बनने भी न पाया था की निकालने की नौबत आ गयी तो जिगर का काम खराब हुआ!_*

*_एक  तजरूबेकार डॉक्टर ने अपनी तहकीक मे लिखा है.._*

*_"एक हजार तपेदीक (TB) के मरीजो को देखने के बाद साबीत हुआ की एक सौ छियास्सी (186) मरीज औरतो से ज्यादा सोहबत करने की वजह से इस मर्ज मे मुब्तला है! और चार सौ चौदह (414) सिर्फ अपने हाथो अपनी कुव्वत को बर्बाद करने की वजह से और बाकी दुसरे मरीजो की बिमारी की वजह दुसरी थी! हमने एक सौ चौबीस (124) पागलो का मुआयना किया, उनके मुआयना करने से मालुम हुआ की उनमे चौबीस (24) सिर्फ अपने हाथो अपनी कुव्वत को बर्बाद करने की वजह से पागल हुए है, और बाकी एक (100) सौ पागल दुसरी वुजुहात से!"_*

*_📕 जवानी की हिफाजत अज मौलाना शाह मुहम्मद अब्दुल हलीम अलैहिर्रहमा सफा नं. 67_*

*_इंसानी दौलत का अनमोल खजाना अगर इंसानी जिस्म की संदुक मे चंद दिनो तक अमानत रहे, तो दुबारा खुन  मे जज्ब होकर खुन को कुव्वत देने वाला, सेहत को दुरुस्त और बदन को मजबुत बनाने वाला, रुआब और हुस्न व जमाल को बढाने वाला और कव्वत ए बाह मे चार चॉंद लगाने वाला साबीत होंगा! दिमाग की तेजी तरक्की पाएंगी, याद दाश्त तेज होंगी, ऑंखो मे सुर्खी दौडेंगी, हिम्मत और बुलंद हौसला की सर बुलंदी इस दौलत मे इजाफा की अलामत होंगी! कुछ हकीमो ने कहा है.._*

*_"जिसे हद से ज्यादा दुबला, और कमजोर, वहशीयाना (डरावनी) शक्ल व सुरत का पाओ, जिसकी ऑंखो मे गढे पड गये हो, ऑंखो की पुतलियॉं फैल गई हो, हद से ज्यादा शर्मीला हो, तन्हाई पसंद करता हो, उसके बारे मे यकीन करलो की उसने अपने हाथो खुन (अपने हाथो खुद को बर्बाद किया है) बहाया है!"_*

*_💫आज लोगो से छिपकर यह बुराई कर रहे हो, माना की तुम्हारी इस बुरी हरकतो को किसी ने नहीं देखा! लेकीन यह तो सोचो की जाहीर व बातीन का जानने वाला अल्लाह तआला तुम्हारे इस करतुत को देख रहा है! अल्लाह तआला ने जिना की सजा बताई अगर यह सजा जिनाकार दुनियॉ मे पा जाए तो आखीरत के अजाब से बच जाए! लेकीन अपने हाथो इस अनमोल खजाने को बर्बाद करना सख्त गुनाह है!_*

*_📍अगर खुदा न ख्वास्ता कोई नसीब का दुश्मन इस बुरी आदत का शिकार हो तो उसे दर्दमंदाना मशवरा है की, खुदारा इश्तेहारी दवाओ की तरफ न जाए! पहले सच्चे दिल से तौबा करे! और किसी अच्छे तजरुबेकार, तालीम याफ्ता हकीम या डॉक्टर के पास जाए, और बगैर किसी शर्म व झिजक के उसे पुरी बात बताए! जब तक वह कहे बाकायदा पुरे परहेज के साथ उसके इलाज पर अमल करे!_*
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          _*क्या वहाबियों से निकाह होगा.❓*_
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_*🔘वहाबियों से निकाह करने के मुताअ़ल्लिक इमाम इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत अज़ीमुल बरक़त आला हज़रत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खाँ (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) अपनी "मलफ़ूज़ात" मे इरशाद फरमाते है।*_

_*💫इरशाद : सुन्नी मर्द या औरत का शिया, वहाबी, देवबन्दी, नेचरी, कादयानी, जितने भी दीन से फिरे लोग है उनकी औरत या मर्द से निकाह नहीं होगा। अगर निकाह किया तो निकाह न हो कर सिर्फ़ ज़िना होगा। और औलाद ज़ायज़ न होकर नाज़ायज़ व हरामी कहलाएगी फ़तावा-ए-आलमगीरी मे है*_

*لا یجوز النکاح المرتد*
*مع مسلمة ولا كافرة اصلية ولا مرتدة وكذالایجوز نكاح المرتدة مع احد*

_*👆🏻👆🏻गर कहीं  लिखने मे गल़ती (Mistake) हो तो जरूर बताएं*_

_*📕 अ़लमलफ़ूज़ जिल्द नं 2, सफा नं 105*_

_*अक्सर हमारे कुछ कम अक़्ल- न समझ सुन्नी मुसलमान जिन्हें दीन की माअ़लूमात व ईमान की अ़हमियत माअ़लूम नही होती वोह वहाबियों से आपस में रिश्ते जोड़ते है। कुछ बदनसीब सब जानने के बावजूद वहाबियों से आपस में रिश्ता करते हैं!*_
     
_*✍🏻 कुछ सुन्नी हज़रात ख्याल करते हैं। कि वहाबी अ़क़ीदे की लड़की अपने घर ब्याह कर ला लो। फिर वोह हमारे माहौल में रहकर खुद ब खुद सुन्नी हो जाएगी अव्वल तो यह निकाह ही नही होता क्यों कि जिस वक्त यह निकाह हुआ उस वक्त तक लड़का सुन्नी और लड़की वहाबी अ़क़ीदे पर क़ायम थी। लिहाजा सिरे से ही येह निकाह ही नही हुआ,*_

_*सैंकड़ो जगह तो येह देखा गया है कि किसी सुन्नी ने वहाबी घराने मे येह सोचकर रिश्ता किया कि हम समझा बुझा कर हम अपने माहौल में रखकर वहाबी से सुन्नी बना लेंगे लेकिन वह समझा कर सुन्नी बना पाते इससे पहले ही उस वहाबी रिश्तेदारों ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही समझा दिया और अपना हम ख़्याल बनाकर सुन्नी से वहाबी बना डाला (अल्लाह की पनाह) सारी होश़ियारी धरी की धरी रह गयी और दीन व दुनिया दोनों बर्बाद हो गये*_

_*📍यह बात हमेशा याद रखिए एक ऐसे शख्स को समझाया जा सकता है तो वहाबियों के बारे में हक़ीक़त से वाकिफ न हो लेकिन ऐसे शख्स को समझा पाना मुम्क़िन ही नही जो सबकुछ जानता और समझता है। औलमा -ए- देवबन्द [ वहाबियों ] की हुज़ूर ﷺ अम्बिया-ए-किराम, बुजुरगाने दीन, की शाने अ़क्दस में गुस्ताख़ियों को समझता है। उनकी किताबों में येह सब गुस्ताख़ाना बातों को पढ़ता है लेकिन इस सबके बावजूद येह कहता है कि येह (वहाबी) तो बहुत अच्छे लोग हैं इन्हें बुरा नहीं कहना चाहिए। ऐसे लोगों को समझा पाना हमारे बस में नहीं।*_

_*📖 आयत : अल्लाह तआला---ऐसे लोगों के मुत्अ़ल्लिक़ इरशाद फरमाता है,*_

_*तर्जुमा : अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानो पर मुहर कर दी और उनकी आँखों पर  घटा टूप है और उनके लिए बड़ा अज़ाब़ है*_

_*📕 तर्जुमा : कन्जुल इमान पारा 1, सूरह ए बखरा, आयत नं 7*_

_*📌लिहाजा जरूरी व अहम फर्ज है कि ऐसे लोगों से जिनके दिलों पर अल्लाह ने मोहर (Seal छाप) लगा दी हो उनसे रिश्ता न क़ायम करें वर्ना शादी शादी न होकर ज़िना रह जाएगी।*_
   
_*अल्हमदुलिल्लाह आज दुनिया में सुन्नी लड़कियों और लड़कों की कोई कमी नहीं है। और इन्शा अल्लाह तआला अहले सुन्नत व ज़माअत के मानने वाले क़यामत तक बड़ी तादाद में शानो शौक़त के साथ क़ायम रहेंगे*_
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                      *_सुन्नी और मज़ार_*
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*_किसी की क़ब्र पर इमारत बना देना ही मज़ार कहलाता है, अल्लाह के मुक़द्दस बन्दों की मज़ार बनाना और उनसे मदद लेना जायज़ है, पढ़िये_*

*_मज़ार बनाना_*

*_1) तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे_*

_*📕 पारा 15, सूरह कहफ, आयत 21*_

*_तफसीर_*

*_असहाबे कहफ 7 मर्द मोमिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की उम्मत के लोग थे बादशाह दक़्यानूस के ज़ुल्म से तंग आकर ये एक ग़ार मे छिप गये जहां ये 300 साल तक सोते रहे 300 साल के बाद जब ये सोकर उठे और खाने की तलाश मे बाहर निकले तो उनके पास पुराने सिक्के देखकर दुकानदारो ने उन्हे सिपाहियों को दे दिया उस वक़्त का बादशाह बैदरूस नेक और मोमिन था जब उस को ये खबर मिली तो वो उनके साथ ग़ार तक गया और बाकी तमाम लोगो से भी मिला असहाबे कहफ सबसे मिलकर फिर उसी ग़ार मे सो गये जहां वो आज तक सो रहें हैं हर साल दसवीं मुहर्रम को करवट बदलते हैं हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर मे उठेंगे और आपके साथ मिलकर जिहाद करेंगे बादशाह ने उसी ग़ार पर इमारत बनवाई और हर साल उसी दिन वहां तमाम लोगों को जाने का हुक्म दिया_*

_*📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान, सफह 354*_

_*मज़ार पर जाना*_

*_2) हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने तुम लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था अब मैं तुम को इजाज़त देता हूं कि क़ब्रों की ज़ियारत किया करो_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, हदीस 2158*_

*_3) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम हर साल शुहदाये उहद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले जाते थे और आपके बाद तमाम खुल्फा का भी यही अमल रहा_*

_*📕 शामी, जिल्द 1, सफह 604*_
_*📕 मदारेजुन नुबुव्वत, जिल्द 2, सफह 135*_

*_जब एक नबी अपने उम्मती की क़ब्र पर जा सकता है तो फिर एक उम्मती अपने नबी की या किसी वली की क़ब्र पर क्यों नहीं जा सकता_*

*_मज़ार पर चादर चढ़ाना_*

*_4) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की मज़ारे अक़दस पर सुर्ख यानि लाल रंग की चादर डाली गई थी_*

_*📕 सही मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 677*_

*_5) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक जनाज़े मे शामिल हुए बाद नमाज़ को एक कपड़ा मांगा और उसकी क़ब्र पर डाल दिया_*

_*📕 तफसीरे क़ुर्बती, जिल्द 1, सफह 26*_

_*मज़ार पर फूल डालना*_

*_6) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से, एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था, फिर आपने एक तार शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाख तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, हदीस 218*_

*_तो जब तर शाख तस्बीह पढ़ती है तो फूल भी पढ़ेगा और जब इनकी बरक़त से अज़ाब में कमी हो सकती है तो एक मुसलमान के तिलावतो वज़ायफ से तो ज़्यादा उम्मीद की जा सकती है और मज़ार पर यक़ीनन अज़ाब नहीं होता मगर फूलों की तस्बीह से साहिबे मज़ार का दिल ज़रूर बहलेगा_*

_*मुर्दो का सुनना*_

*_7) तो सालेह ने उनसे मुंह फेरा और कहा एै मेरी क़ौम बेशक मैंने तुम्हें अपने रब की रिसालत पहुंचा दी_*

_*📕 पारा 8, सुरह एराफ, आयात 79*_

*_तफसीर_*

*_हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ नबी बनाकर भेजे गए, क़ौमे समूद के कहने पर आपने अपना मोजज़ा दिखाया कि एक पहाड़ी से ऊंटनी ज़ाहिर हुई जिसने बाद में बच्चा भी जना, ये ऊंटनी तालाब का सारा पानी एक दिन खुद पीती दुसरे दिन पूरी क़ौम, जब क़ौमे समूद को ये मुसीबत बर्दाश्त न हुई तो उन्होंने इस ऊंटनी को क़त्ल कर दिया, तो आपने उनके लिए अज़ाब की बद्दुआ की जो कि क़ुबूल हुई और वो पूरी बस्ती ज़लज़ले से तहस नहस हो गयी, जब सारी क़ौम मर गई तो आप उस मुर्दा क़ौम से मुखातिब होकर अर्ज़ करने लगे जो कि ऊपर आयत में गुज़रा_*

_*📕 तफसीर सावी, जिल्द 2, सफह 73*_

*_8) जंगे बद्र के दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र के मुर्दा कुफ्फारों का नाम लेकर उनसे ख़िताब किया, तो हज़रत उमर फारूक़े आज़म ने हैरत से अर्ज़ किया कि क्या हुज़ूर मुर्दा बेजान जिस्मों से मुखातिब हैं तो सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि 'एै उमर खुदा की कसम ज़िंदा लोग इनसे ज़्यादा मेरी बात को नहीं समझ सकते'_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 183*_

*_सोचिये कि जब काफिरों के मुर्दो में अल्लाह ने सुनने की सलाहियत दे रखी है तो फिर अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे क्यों हमारी आवाज़ों को नहीं सुन सकते_*

_*क़ब्र वालों का मदद करना*_

*_9) और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायेंगे_*

_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम की वफात के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक़ अपने सर पर डाली और क़ुरान की यही आयत पढ़ी फिर बोला कि हुज़ूर मैने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मै आपके सामने अपने गुनाह की माफी चाहता हूं हुज़ूर मेरी शफाअत कराइये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आती है कि जा तेरी बखशिश हो गई_*

_*📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान, सफह 105*_

*_10) हज़रते इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जब भी मुझे कोई हाजत पेश आती है तो मैं हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र पर आता हूं, 2 रकत नफ्ल पढता हूं और रब की बारगाह में दुआ करता हूं तो मेरी हाजत बहुत जल्द पूरी हो जाती है_*

_*📕 रद्दुल मुख्तार, जिल्द 1, सफह 38*_

_*वहाबी और मज़ार*_

*_एक सवाल के जवाब पर मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं कि_*

*_11) क़ुबूरे औलिया पर जाना और उनसे फैज़ हासिल करना इसमें कुछ हर्ज़ नहीं_*

_*📕 फतावा रशीदिया, जिल्द 1, पेज 223*_

*_12) मौलाना रफ़ी उद्दीन के साथ हज़रत (थानवी) ने सरे हिन्द पहुंचकर शेख मुजद्दिद उल्फ सानी के मज़ार पर हाज़िरी दी_*

_*📕 हयाते अशरफ, सफह 25*_

*_थानवी ने लिखा_*

*_13) दस्तगिरी कीजिये मेरे नबी_*
     *_कशमकश में तुम ही हो मेरे वली_*

*_📕 नशरुत्तबीब फि ज़िक्रे नबीईल हबीब, सफह 164_*

*_मौलवी आरिफ सम्भली ने लिखा है कि_*

*_14) पस बुज़ुर्गो की अरवाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं_*

*_📕 बरैली फितने का नया रूप, सफह 139_*

*_मौलवी हुसैन अहमद टांडवी लिखता है कि_*

*_15) हमें जो कुछ मिला इसी सिलसिलाए चिश्तिया से मिला, जिसका खाये उसी का गाये_*

_*📕 शेखुल इस्लाम नम्बर, सफह 13*_

*_इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आज के दोगले वहाबियों को चाहिये कि सुन्नी से मुनाज़रा करना छोड़ें और जाकर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जायें और अगर अब भी कुछ शर्म बाकी है तो फौरन अपने दोगले अक़ायद से तौबा करें और सच्चे दिल से मज़हबे अहले सुन्नत वल जमात यानि मसलके आलाहज़रत पर क़ायम हो जायें_*
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            _*सफेद दाग - (White Stains)*_
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_*ये एक खतरनाक और मूज़ी मर्ज़ है जो आदमी के हुस्नो जमाल को तबाहो बर्बाद कर देता है, ये मर्ज़ अक्सर खून की खराबी की वजह से होता है, ये कुछ नुस्खे हैं इस्तेमाल करें इंशा अल्लाह बीमारी दूर होगी*_

_*1. चाकसू 20 ग्राम, इंजीर 20 ग्राम,बाबची 20 ग्राम, तुख्म पिंदार 20 ग्राम सबको रात में मिट्टी के बर्तन में आधे पाव पानी में भिगो दें और सुबह को नहार मुंह बग़ैर मले हुए उसको कपड़े से छान लें और उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर पिएं, और बची हुई बाकी चीज़ें पीसकर दागों पर लगाया जाए, इस अमल की मुद्दत 40 दिन है*_

_*📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा, हिस्सा 3, सफह 433*_

_*2. शहद और लहसुन मिलाकर खाने से इस मर्ज़ में काफी फायदा होता है*_

_*3. ज़रीख, तूतिया, मूली की बीज एक बराबर लेकर पीस कर उसमें ज़ैतून का तेल मिला कर दाग की जगह रगड़ कर लगाएं, इंशा अल्लाह 3 दिन से ही फ़ायदा शुरू हो जायेगा*_

_*📕 मुजर्बाते सुयूती, पेज 181*_

_*4. भैंस की चर्बी में इन्द्रानी नमक मिलाकर दाग पर मलने से जल्द ही ये दाग दूर हो जाते हैं*_

_*📕 हयातुल हैवान, जिल्द 2, पेज 31*_

_*5. बैगन पानी में पकाएं जब गल जाए तो पानी छानकर जैतून के तेल में साथ मिलकर खौलाएं जब पानी जल जाए और तेल बाकी रह जाए तो इस तेल को दागों पर लगाएं*_

_*📕 इलाजुल ग़ुरबा, सफह 170*_

_*6. सरसों के बीज को गाय के दूध में डालकर पकाएं जब दूध खोये जैसा गाढ़ा हो जाए तो बीज निकालकर धोकर सुखा लें और बारीक पीसकर 1 ग्राम रोज़ाना गाय के दूध के साथ इस्तेमाल करें*_

_*📕 कंज़ुल मुजरबात, सफह 769*_

*7. قل هو المعين يا المعروف المنان والحليم* 

_*"क़ुल हुवल मोईन या माअरूफ़ुल मन्नान वल हलीम" ज़र्द रंग की रोशनाई से प्लेटों पर लिखकर दिन में 3 बार धोकर पिलायें*_

_*लिखना अरबी में ही है, पढ़ने में आ जाये इसलिये मैने हिन्दी में लिख दिया है*_

_*📕 रूहानी इलाज, सफह 42*_

_*परहेज़ - मछली, गुड़, खटाई, अंडा, चावल, दूध, दही, माश की दाल, आलू, लौकी*_
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                       *_ईमान किया है_*
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*_🔘 ईमान कुर्ता पैजामा पहनने दाढ़ी रखने या टोपी लगाने का नाम नहीं है बल्कि ईमान सिर्फ और सिर्फ ये हैं कि अपने नबी से अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत की जाये_*
*_ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*
*_तुम में से कोई उस वक़्त तक मुसलमान नहीं होगा जब तक कि मैं उसे उसके मां-बाप उसकी औलाद और सबसे ज़्यादा महबूब ना हो जाऊं_*
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 7*_
*_और मुहब्बत में सबसे खास बात क्या होती है जानते हैं ये कि मोहिब अपने महबूब की सारी कमियां नज़र अंदाज़ करके फक़त उसकी खूबियां ही बयान करता है हालांकि ये आम मुहिब और उनके महबूब सब के सब सर से लेकर पैरों तक ऐबों का मुजस्समा होते हैं, मगर रब के वो महबूब हमारे और आपके आक़ा जनाबे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जो कि हर ऐब से पाक और मासूम पैदा किये गए हैं मगर कुछ हरामखोर उनके अंदर भी ऐब तलाश करते फिरते हैं और दावा मुसलमान होने का करते हैं, जबकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*
*_खुदा की कसम खाते हैं कि उन्होंने नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की अल्बत्ता बेशक वो ये कुफ्र का बोल बोले और मुसलमान होकर काफिर हो गए_*
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 74*_
*_अब हर पढ़े लिखे और बे पढ़े लिखे से ये सवाल है कि नीचे वहाबियों की किताबों से दी गई इबारतें पढ़ें या पढ़वाकर सुनले और अक़्ल से फैसला करे कि क्या ये कलिमात हुज़ूर की शान में गुस्ताखी के नहीं हैं और क्या ऐसा कहने वालों या या ऐसा कहने वालों को जो सही कहे क्या उन्हें मुसलमान समझा जा सकता है, पढ़िए_*
_*! तक़वियतुल ईमान सफह 27 पे हुज़ूर को चमार से ज़्यादा ज़लील लिखा, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तक़वियतुल ईमान सफह 56 पे लिखा कि नबी को किसी बात का इख़्तियार नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तक़वियतुल ईमान सफह 75 पे लिखा कि नबी के चाहने से कुछ नहीं होता, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तहज़ीरुन्नास सफह 8 पे लिखा कि उम्मती भी नबी से अमल में आगे बढ़ जाते हैं, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तहज़ीरुन्नास सफह 43 पे लिखा कि हुज़ूर खातेमुन नबीयीन नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *बराहीने कातिया सफह 122 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म शैतान से भी कम है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *हिफज़ुल ईमान सफह 7 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म तो जानवरों की तरह है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *सिराते मुस्तक़ीम सफह 148 पे लिखा कि नबी का ख्याल नमाज़ में लाना गधे और बैल से भी बदतर है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
*_अगर ये सब बातें इन वहाबियों के बाप-दादा की शान में की जाए तो क्या वो इसे अच्छा समझेंगे नहीं और यक़ीनन नहीं तो फिर कैसे एक मुसलमान इन काफिरों को अच्छा समझे, जिसने मेरे आक़ा की शान में गुस्ताखी की और उन्हें ईज़ा दी तो उसके लिए रब का ये फरमान है,पढ़ लें_*
*_वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत,61*_
*_और फुक़्हा का ऐसे बद बख्तों के बारे में क्या कहना है ये भी पढ़ें_*
*_जो किसी नबी की गुस्ताखी के सबब काफिर हुआ तो किसी भी तरह उसकी तौबा क़ुबूल नहीं और जो कोई उसके कुफ्र में या अज़ाब में शक करे वो खुद काफिर है_*
_*📕 रद्दुल मुख़्तार, जिल्द 3, सफह 317*_
*_और मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*
*_किसी भी काफिर की तौबा क़ुबूल है मगर जो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करके काफिर हुआ तो किसी भी अइम्मा के नज़दीक उसकी तौबा क़ुबूल नहीं, अगर इस्लामी हुक़ूमत हो तो ऐसो को क़त्ल ही किया जाए अगर चे उनकी तौबा सच्ची ही क्यों ना हो अगर तौबा सही हुई तो क़यामत के दिन बख्शा जायेगा मगर यहां उसकी सज़ा मौत ही है_*
_*📕 तम्हीदे ईमान, सफह 42*_
*_अब सोचिये खुदा और रसूल के ये मुजरिम जो क़त्ल के मुस्तहिक़ हो चुके उनसे बात करना उनसे सलाम जवाब करना उनके साथ खाना पीना उनके यहां रिश्तेदारी करना किस हद तक शर्म की बात है, और क्या इस मेल-जोल पर हम खुदा का क़हर मोल नहीं ले रहे हैं ये आखिरी रिवायत पढ़ लीजिए समझदार के लिए बहुत है_*
*_मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फलां बस्ती पर अज़ाब नाज़िल करदे तो जिब्रील अलैहिस्सलाम बोले कि मौला उस बस्ती में तेरा एक नेक बन्दा है जो एक आन के लिए भी तेरी इबादत से ग़ाफिल ना रहा, मौला फरमाता है कि फिर भी सब पर अज़ाब नाज़िल कर बल्कि पहले उस नेक पर अज़ाब नाज़िल कर क्योंकि उसने गुनाह को देखकर भी अनदेखा कर दिया_*
_*📕 अशअतुल लमआत, जिल्द 4, सफह 183*_
*_जब कोई क़ौम में गुनाह होता है और कोई नेक बन्दा रोकने की ताक़त रखने के बावजूद भी उसे ना रोके तो सब अज़ाबे इलाही के मुस्तहिक़ होंगे_*
_*📕 मिश्कात, सफह 437*_

*_अस्तग़फ़ेरुल्लाह, क्या ही इबरतनाक रिवायत है,सिर्फ गुनाह को गुनाह और मुजरिम को मुजरिम ना समझने पर अज़ाब की वईद आई है तो अंदाजा लगाइये कि जो खुद उस गुनाह में शामिल हो जाए वो कैसे मौला के अज़ाब से बचेगा, और आजकल तो ऐसे मुसलमानों की कसरत है जो दुश्मनाने रसूल को दुश्मन ही नहीं समझते हालांकि अगर कोई उनके मां-बाप को गाली देदे तो हाथा पाई पर उतर आएंगे मगर जो नबी की शान में गुस्ताखियां करते फिरते हैं उन्हें अपना अज़ीज़ समझते हैं, मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को अपने हबीब से सच्ची मोहब्बत करने की तौफीक़ अता फरमाए और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता  फरमाये-आमीन_*
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...