Tuesday, May 5, 2020

Al Waziftul Karima
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https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk

100 Waliye ke wazaif
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https://drive.google.com/file/d/1KPsy_aoAOTzGRdVE-FIdaFMmq6gAtbDT/view?usp=drivesdk

Wazaif Tohfae razviya
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https://drive.google.com/file/d/1NyG1R45xvD-OUHYKCQMHUd1x290tH1aE/view?usp=drivesdk

Kya aap Jante Hai? Single Page high Mb.
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https://drive.google.com/file/d/1T1JJmxnOFI06nxnac64npRivx8zyTKpi/view?usp=drivesdk

Kya Aap Jante Hai? Double Page Low Mb.
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https://drive.google.com/file/d/18tFOB29huysF8BsUUFyBE42w5F4EuQBV/view?usp=drivesdk
*Fatawa Bahar-ul-Uloom 1*

https://drive.google.com/file/d/11ageeqFHMaIqwUSszDhANf_ZnR8LhPfD/view?usp=drivesdk

*Fatawa Bahar-ul-Uloom 2*

https://drive.google.com/file/d/11ccdKbwEgqv7tt4LqjMXmkKGy9Lkxrn7/view?usp=drivesdk

*Fatawa Bahar-ul-Uloom 3*

https://drive.google.com/file/d/120lM44G1VHxbYQNEzkMzt2rHsxqJhzVe/view?usp=drivesdk
*Fatawa Bahar-ul-Uloom 4*

https://drive.google.com/file/d/11xZeCaewxDtFetpBLK60umthcmRtLcxA/view?usp=drivesdk

*Fatawa Bahar-ul-Uloom 5*

https://drive.google.com/file/d/11tlX_bNI7iYICEIAUp_ABJpwDyTZCxCf/view?usp=drivesdk
*Fatawa Bahar-ul-Uloom 6*

https://drive.google.com/file/d/11usCoXwm8qzU-bRxl-rl9RVpSzS0IvKF/view?usp=drivesdk

_*Link apne pass tak hi n Rakhkhe Balki har Sunni Bareilvi Apne bhai tak pahuchaye taki o Deen sikhe aur us par Amal kare to uska ajar AAP Ko bhi mile*_


Monday, May 4, 2020

*Qareenae Zindagi Urdu*

https://drive.google.com/file/d/1MCI_fkU6UUcGFc87CgLSymVHEoxnjPRO/view?usp=drivesdk

*Qareenae Zindagi Hindi*

https://drive.google.com/file/d/1HnStcb5ikAGgf_F_a0OJ9aaOP48bko9n/view?usp=drivesdk

*Rusoome Shadi by AlaHazarat AlaihirRahma*

https://drive.google.com/file/d/1LsrUvT64DVBMGFIKhJKqKgeVuVAlnUzq/view?usp=drivesdk

*Shadi &Adab e Zindag Urdu by Ahmad Misbahi*

https://drive.google.com/file/d/1M0HuU4pXRKkHptIC4oEpDgqTql5x8EEp/view?usp=drivesdk

*Shadi par Mubarak Badi Urdu*

https://drive.google.com/file/d/1Lyi3FKt-ayx-KY6YbFE0kJnX8UeLw9Fq/view?usp=drivesdk

*Shadi ka Anmol Tohfa Urdu*

https://drive.google.com/file/d/1LyL_72nI3vxoDcfsN9d_G-ARxOLA-pZ6/view?usp=drivesdk

*Islam Aur Shadi Urdu*

https://drive.google.com/file/d/1LvcnszxwCqXWqIljwuZYPMPlA0lDqBAK/view?usp=drivesdk

*Tohfae Shadi ilaj Wa Amraz Urdu*

https://drive.google.com/file/d/1LvDtaw30EVN1jLezjVEFAy0S7jC6J2U4/view?usp=drivesdk

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_*Link apne pass tak hi n Rakhkhe Balki har Sunni Bareilvi Apne bhai tak pahuchaye taki o Deen sikhe aur us par Amal kare to uska ajar AAP Ko bhi mile*_




_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 72}*_
―――――――――――――――――――――――

_*💫दुरूद शरीफ़ और मुफीद दुआयें*_

_*👉( 15 ) आईना देख कर पढ़े*_
_*“ अल्हम्दु लिल्लाहि अल्लाहुम्म कमा हस्सन त खल की फ़हस्सिन खुलकी "*_ 

_*👉( 16 ) जब किसी को रुखसत करे तो यह दुआ पढ़े*_
_*" अस्तौ दि उल्लाह दी न क व अमा न त क व खवाती म अ म लि को सफ़र में जाते वक़्त अहबाब व अइज़्जा से रुखसत होते वक़्त कहे*_
_*“ अस्तौदि उ कुमुल्ला हल्लजी ला युजीउ व दाइअह "*_ 

_*👉( 17 ) वक़्ते सफ़र यह दुआ पढ़े*_ 

*"अल्लाहुम्म बि क असूलु व बि क अहूलु व बि क असीरु ” जब सफ़र पर रवाना हो जाये तो यह दुआ पढ़े ।*_

_*" अल्लहुम्म इन्न नस्अलु क फ़ो स फ रिना हाजल बिर्र वत्तक़वा | व मिनल अ म लि मा तिरजा "*_

_*फिर यह दुआ पढ़े*_

 _*अल्लाहुम्म हव्विन अलयना हाजस्स फ़ र वत विअन्ना बुअ्दहू अल्लाहुम्म अन्तर साहि बु फ़िस्सफ़रि वल खलीफतु फिल अहलि अल्लाहुम्म इन्नी अऊजु बि क मिव व असाइस्स फ़ रि व कआ बतिल मन जरि व सूइल मुन कल बि फ़िल मालि वल अलि वल व ल दि " ।*_ 

_*👉( 18 ) सफ़र से वापसी पर यह दुआ पढ़े*_
_*“ आइबू न ताइबू न आबिदू न लिरब्न्निा हामिदू न "*_ 

_*👉( 19 ) शहर में दाखिल होते वक्त पढ़े*_
_*“ अल्लाहुम्म बारिक लना फोहा " तीन बार “ अल्लाहुम्मरजुकना जनाहा व ह ब्बिना इला अहलिहा व ह ब्बिब सालिही अहलिहा इलयना "*_

_*👉( 20 ) जब मंजिल पर पहुंचे यह दुआ पढ़े*_
_*" रब्बि अनज़िलनी मुनज़लम्मुबारकन व अन त खयरुल्मुनज़िलीन "*_

_*👉( 21 ) आंधी और अंधेरे के वक़्त की दुआ*_
_*" अल्लाहुम्म इन्ना नस्अलु क मिन खयरि हाजिहिरीहि व खरि मा फीहा व खयरी मा उमिरत बिहिव नऊजुबिक मिन शरिहाजिहिरीहि व शरिमा फोहा व शरीमा उमिरतबिहि "*_

                    *📍समाप्त THE END*

 _*बिऔनिही तआला सुम्न बिऔनिरसू लिहिल अअला जल्ल जलालुहु व सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 136//137//138*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 71}*_
―――――――――――――――――――――――

_*💫दुरूद शरीफ़ और मुफीद दुआयें*_

_*👉( 1 ) सल्लल्लाहु अलन्नबीयिल उम्मीयि व आलिही सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सलातौं वसलामन अलय क या रसूलुल्लाह ।*_
_*इस दुरूद शरीफ़ को बाद नमाज़ जुमा दस्त बस्ता मदीना मुनव्वरह की तरफ़ मुतवज्जिह होकर सौ बार पढ़े दीन व दुनियां की बेशुमार नेमतों से सरफ़राज़ हो ।*_

_*👉( 2 ) पहले दाहिना क़दम रखकर मस्जिद में दाखिल हो और यह दुआ पढ़े ।*_ 
_*“ अल्लाहुम्मफ़ तह ली अबवा ब रह मतिक "*_

_*👉( 3 ) पहले बांया कदम मस्जिद से निकाले और यह दुआ पढ़े ।*_
_*👉" अल्लाहुम्म इन्नी असअलु क मिन फ़जलि क व रहमतिक "*_

_*👉( 4 ) चांद देख कर यह दुआ पढ़े ।*_
_*“ अल्लाहुम्म अहिल्लहु अलयना बिल अम ने वल ईमान वस्सलामति वल इस्लाम रब्बी व रब्बुकललाहु या हिलाल ।*_

_*👉( 5 ) जब बुरा ख्वाब देखे और जग जाए तो तीन बार “ अऊजु बिल्लाहि मिनश्शयता निर्रजीम " पढ़े और तीन बार बायें तरफ थूके फिर सोना चाहे तो करवट बदल कर सोये ।*_ 

_*👉( 6 ) जब आसमान से तारा टूटता हुआ देखे तो निगाह नीची कर ले और यह दुआ पढ़े “ माशअल्लाहु लाहौ  ल वला कूवत इल्ला बिल्लाह ।*_

_*👉( 7 ) अंधे , लंगड़े और कोढ़ी वगैरा किसी मुसीबत ज़दा को देखे तो यह दुआ पढ़े । मगर आशेबे चश्म ( आंख उठना ) जुकाम और खारिश के मरीजों को देख कर यह दुआ न पढ़ें कि इन बीमारियों से बदन की इसलाह होती है वह दुआ यह है ।*_
_*“ अलहम्दु लिल्लाहिललजी आफानी मिम्मबतला क बिही व फ़ज्जलनी अला कसीरिम मिम्मन न ल क तफजीला "*_

_*👉( 8 ) जब सोना चाहें तो यह दुआ पढ़ें ।*_
_*“ अल्लाहुम्म बिइस्मिक अमूतु व अह या "*_ 

_*और दूसरे सभी अवराद से फ़ारिग होकर सूरये काफ़िरून पूरी पढ़े और खामोश सो जाए । उसके बाद अगर बात चीत की ज़रूरत पड़ जाए तो दोबारा फिर पूरी सूरह पढ़ ले ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 134//135*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 70}*_
―――――――――――――――――――――――

_*💫दुरूद शरीफ़ और मुफीद दुआयें*_

_*👉( 1 ) सल्लल्लाहु अलन्नबीयिल उम्मीयि व आलिही सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सलातौं वसलामन अलय क या रसूलुल्लाह ।*_
_*इस दुरूद शरीफ़ को बाद नमाज़ जुमा दस्त बस्ता मदीना मुनव्वरह की तरफ़ मुतवज्जिह होकर सौ बार पढ़े दीन व दुनियां की बेशुमार नेमतों से सरफ़राज़ हो ।*_

_*👉( 2 ) पहले दाहिना क़दम रखकर मस्जिद में दाखिल हो और यह दुआ पढ़े ।*_ 
_*“ अल्लाहुम्मफ़ तह ली अबवा ब रह मतिक "*_

_*👉( 3 ) पहले बांया कदम मस्जिद से निकाले और यह दुआ पढ़े ।*_
_*👉" अल्लाहुम्म इन्नी असअलु क मिन फ़जलि क व रहमतिक "*_

_*👉( 4 ) चांद देख कर यह दुआ पढ़े ।*_
_*“ अल्लाहुम्म अहिल्लहु अलयना बिल अम ने वल ईमान वस्सलामति वल इस्लाम रब्बी व रब्बुकललाहु या हिलाल ।*_

_*👉( 5 ) जब बुरा ख्वाब देखे और जग जाए तो तीन बार “ अऊजु बिल्लाहि मिनश्शयता निर्रजीम " पढ़े और तीन बार बायें तरफ थूके फिर सोना चाहे तो करवट बदल कर सोये ।*_ 

_*👉( 6 ) जब आसमान से तारा टूटता हुआ देखे तो निगाह नीची कर ले और यह दुआ पढ़े “ माशअल्लाहु लाहौ  ल वला कूवत इल्ला बिल्लाह ।*_

_*👉( 7 ) अंधे , लंगड़े और कोढ़ी वगैरा किसी मुसीबत ज़दा को देखे तो यह दुआ पढ़े । मगर आशेबे चश्म ( आंख उठना ) जुकाम और खारिश के मरीजों को देख कर यह दुआ न पढ़ें कि इन बीमारियों से बदन की इसलाह होती है वह दुआ यह है ।*_
_*“ अलहम्दु लिल्लाहिललजी आफानी मिम्मबतला क बिही व फ़ज्जलनी अला कसीरिम मिम्मन न ल क तफजीला "*_

_*👉( 8 ) जब सोना चाहें तो यह दुआ पढ़ें ।*_
_*“ अल्लाहुम्म बिइस्मिक अमूतु व अह या "*_ 

_*और दूसरे सभी अवराद से फ़ारिग होकर सूरये काफ़िरून पूरी पढ़े और खामोश सो जाए । उसके बाद अगर बात चीत की ज़रूरत पड़ जाए तो दोबारा फिर पूरी सूरह पढ़ ले ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 134//135*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 69}*_
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_*💫इस्लामी कलिमे🇸🇦*_

_*👉( 1 ) अव्वल कलिमये तैइब ।*_
_*ला इलाह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ।*_

_*👉( 2 ) दूसरा कलिमये शहादत ।*_
 _*अश्हदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु व अश् हदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुह ।*_ 

_*👉( 3 ) तीसरा कलिमये तमजीद ।*_
_*सुबहानल्लाहि वल्हम्दुलिल्लाहि व लाइला ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर वला ही ल वला कूवत इल्ला बिल्लाहिल अलीयिल अजीम ।*_

_*👉( 4 ) चौथा कलिमये तौहीद ।*
_*लाइला - ह इल्लल्लाहु वहदहु ला शरी क लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु युह् यी व युमीतु व हु व हय्युल्लायमूतु बि यदि हिल खैरु व हुव अला कुल्लि शैइन कदीर ।*_
 
_*👉( 5 ) पांचवा कलिमये रद्दे कुफ्र ।*_
_*अल्लाहुम्म इन्नी अऊजु बिक मिन अन उशरिक बि क शै औं वअना अअलमु बिही व असतगफ़िरु क लिमाला अअलमु बिही तुब्तु अनहु वतबर्रातु मिनल कुफ़रि वश शिर कि वल मआसी कुल्लिहा व अस्लम्तु व आमन्तु व अकूल ला इलाह इल्लल्लाहुमुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ।*_

_*💫ईमाने मुजमल ।*_

_*👉आमन्तु बिल्लाहि कमा हु व बि अस्माइहि व सिफ़ातिही व क़बिल्तु जमी अ अह कामिही ।*_

_*💫ईमाने मुफ़स्सल ।*_

_*👉आमन्तु बिल्लाहि व मलाइ क तिही व कुतु बिही व रुसुलिही वल योमिल आखिरि वल कदरि खैरिही व शररिही मिनल्लाहि तआला वल ब सि बदल मौत ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 133//134*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 68}*_
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_*💫फातिहा का आसान तरीका*_

_*✨पहले तीन या पांच या सात बार दुरूद शरीफ पढ़े फिर कम से कम चारों कुल , सूरए फ़ातिहा और अलिफ़ लाम्मीम से मुफ़लिहू न तक पढ़े फिर आखिर में तीन या पांच या सात बार दुरूद शरीफ पढ़े और बारगाहे इलाही में हाथ उठा कर यूं दुआ करे या अल्लाह हमने जो कुछ दुरूद शरीफ पढ़ा है और कुरआन मजीद की आयतें तिलावत की हैं उनका सवाब ( अगर खाना या शीरीनी हो तो इतना और कहे कि इस खाना और शीरीनी का सवाब ) मेरी तरफ़ से हुजूर सरवरे कायनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को नज्र पहुंचा दे फिर उनके वसीले से तमाम अंबियाये किराम अलैहिमुस्सलाम व सहाबा और तमाम औलिया व उलमा को अता फरमा ( फिर अगर किसी खास बुजुर्ग को सवाब पहुंचाना हो तो उनका नाम खुसूसियत से ले जैसे यूं कहे कि ) खुसूसन हज़रते गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु या ख्वाजये अजमेरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को नज़्र पहुंचा दे और फिर तमाम मूमिनीन व मूमिनात की अरवाह को सवाब अता फरमा । और किसी आम आदमी को सवाब पहुंचाना हो तो उसका ज़िक्र खुसूसियत से करे । जैसे यूं कहे कि खूसूसन हमारे वालिद , वालिदा या दादा , दादी या नाना नानी की रूह को सवाब पहुंचा दे और तमाम मोमिनीन व मोमिनात की रूहों को सवाब पहुंचा दे ।*_

_*"आमीन या रब्बल आलमीन बिरहमति क या अरहमरराहिमीन"।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 132*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 67}*_
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_*💫सोने का बयान*_

_*✨मुसमहब यह है कि बावजू सोये कुछ देर दाहिने करवट पर दाहिने हाथ को रूखसार (गाल) के निचे रख कर किबला की तरफ मुंह कर के सोये फिर उसके बाद बायें करवट पर ।पेट के बल न लेटे हदीस शरीफ में है कि इस तरह लेटने को अल्लाहा तआला पसन्द नहीं फरमाता । और पांव पर पांव रखना मना है जब कि चिट लेटा हो और यह उस सूरत मे हैं जबकि तहबन्द पहने हो और एक पांव खरा हो कि इस तरह बेसत्री (बेपरदगी) का अंदेशा खतरा हैं । और ऐसे छत पर सोना मना है कि जिस पर गिरने से कोई रोके न हो और लड़का जब दस साल का हो जाए तो अपनी मां या बहन वगैरा के साथ न सुलाया जाए । बल्कि इस उम्र का लड़का इतने बड़े लड़कों या मर्दो के साथ भी न सोये । और दिन के शुरू हिस्से मे सोना या मग़रिब व इशा के दरमियान सोना मकरूह हैं । और हमारे मुल्क (देश) मे उत्तर जानिब पांव फैला कर सोना। बिला शुबह जाइज़ हैं । उसे नाजाइज समझना गलती हैं । और जब सो कर उठे तो यह दुआं पढ़े ।*_

_*"अलहम्दु लिल्लाहिलज़ी अहयाना बाद मा अमा त ना व इलैहि नुशूर "*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा, 131*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 66}*_
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_*✨लिबास ( पहनावा ) का बयान*_

_*✍🏻....इतना लिबास ज़रूर पहनें कि जिसे से सत्रे औरत हो जाये । औरतें बहुत बारीक और चुस्त कपड़ा हरगिज़ न पहनें कि जिससे बदन के हिस्से जाहिर हों कि औरतों को ऐसा कपड़ा पहनना हराम है और मर्द भी पाजामा या तहबन्द इतना हल्का न पहनें कि जिस से बदन की रंगत झलके और सतर ( झुपाव ) न हो कि मर्दो को भी ऐसा पाजामा व तहबन्द पहनना हराम है । और धोती न पहनें कि धोती पहनना हिन्दुओं का तरीका है और उससे सत्र भी नहीं होता कि चलने में रान का पिछला हिस्सा खुल जाता है । मुसलमानों को इस से बचना ज़रूरी है । और नैकर जांघिया हरगिज़ न पहनें कि हराम है । लेकिन तहबन्द वगैरा के नीचे पहनें तो कोई हर्ज नहीं ।*_

_*✨जीनत ( सिंगार ) का बयान*_

_*✍🏻....मर्दो को सोने की अंगूठी पहनना हराम है और चांदी की सिर्फ एक अंगूठी एक नग वाली जो वज़न में साढ़े चार माशा से कम हो पहन सकते हैं । और कई अंगूठी या एक अंगूठी या कई नग वाली या छल्ले नहीं पहन सकते कि नाजाइज़ है और औरतें सोना चांदी की हर किस्म की अंगूठियां और छल्ले पहन सकती हैं लेकिन दूसरी धातों की अंगूठियां जैसे तांबा , पीतल , लोहा और जस्ता वगैरा तो यह मर्द व औरत दोनों के लिए नाजाइज़ हैं । लड़कियों को सोने चांदी के जेवर पहनाना जाइज़ है । लड़कों को हराम है पहनाने वाले गुनाहगार होंगे । इसी तरह लड़कियों के हाथ पांव में मेंहदी लगाना जाइज है और लड़कों के हाथ पांव में जीनत के लिए मेंहदी लगाना नाजाइज़ है ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा, 129/130/131*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 65}*_
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                    _*🍱खाने का बयान*_

_*💫खाना खाने से पहले और बाद में दोनों हाथ गट्टों तक धोए । सिर्फ एक हाथ या सिर्फ उंगलियां न धोए कि सुन्नत अदा न होगी । खाने से पहले हाथ धोकर पोंछना मना है और खाने के बाद हाथ धोकर पोंछ ले कि खाने का असर बाक़ी न रहे बिस्मिल्लाह पढ़ कर खाना शुरू करें अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाये तो जब याद आये यह दुआ पढ़े । “ बिस्मिल्लाहि फी अव्वलिही व आखिरिही " रोटी पर कोई चीज़ न रखी जाए और हाथ रोटी से न पोंछे । नंगे सर खाना अदब के खिलाफ़ है । खाना दाहिने हाथ से खायें बायें हाथ से खाना शैतान का काम है । खाने के वक्त बायां पांव बिछा दें और दाहिना खड़ा रखें या सुरीन ( पुट्ठा ) पर बैठे और दोनों घुटने खड़े रखे । खाने के वक़्त बातें करता रहे । बिल्कुल चुपचाप रहना मजूसियों का तरीका ‌है मगर बुरी बातें न बके बल्कि अच्छी बातें करें । खाने के बाद उंगलियां चाट ले और बर्तन को भी उंगलियों से पोंछ कर चाट ले । खाने की शुरूआत नमक से की जाए और खत्म भी उसी पर करे कि उस से बहुत सी बीमारियां खत्म हो जाती हैं । खाने के बाद यह दुआ पढ़े ।*_

_*🤲🏻अलहम्दु लिल्लाहिल्लजी अत अम ना व सकाना व कफ़ाना व ज अलना मिनल मुस्लिमीन ।*_

                  _*💧पीने का बयान*_

_*💧पानी बिस्मिल्लाह पढ़ कर दाहिने हाथ से पीये । बायें हाथ से पीना शैतान का काम है और तीन सांस में पीये हर मर्तबा बर्तन को मुंह से हटा कर सांस ले । पहली और दूसरी मर्तबा एक एक घुट पिये और तीसरी सांस में जितना चाहे पी डाले खड़े होकर पानी हरगिज़ न पीये । हदीस शरीफ में है कि जो शख्स भूलकर ऐसा कर डाले वह कै कर दे और पानी को चूस कर पीये गट गट गट बड़े घूंट न पीये जब पी चुके तो अलहम्दु लिल्लाह कहे । पीने के बाद गिलास वगैरा का बचा हुआ पानी फेंकना इसराफ़ व गुनाह है । सुराही में मुंह लगाकर पानी पीना मना है इसी तर लोटे की टोंटी से भी पानी पीना मना है मगर जब कि देख लिया हो कि उनमें कोई चीज नहीं है तो हर्ज नहीं ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा, 128/129*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 64}*_
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_*💫इद्दत का बयान*_

_*📝सवाल : - इद्दत कितने दिन की होती है ।*_

_*✍🏻जवाब : - बेवह ( विधवा ) औरत अगर हामिला हो तो उसकी इद्दत बच्चा पैदा होना है और अगर हामिला न हो तो उसकी इद्दत चार महीने दस दिन है । और तलाक़ वाली औरत अगर हामिला हो तो उसकी इद्दत भी बच्चा जनना है । और तलाक़ वाली औरत अगर आइसा यानी पचपन साला या नाबालिग हो तो उसकी इद्दत तीन माह है । और तलाक़ वाली औरत अगर हामिला , नाबालिग या पचपन साला न हो यानी हैज़ वाली हो तो उसकी इद्दत तीन हैज़ है । चाहे यह तीन हैज़ तीन माह या तीन साल या उससे ज्यादा में आये ।*_ 

_*📍नोट : - ( 1 ) तलाक़ वाली गैर मदखूला औरत यानी जिससे शौहर ने हमबिसतरी नहीं की है उसके लिए कोई इद्दत नहीं ।*_

_*( 2 ) अवाम में जो मशहूर है कि तलाक़ वाली औरत की इद्दत तीन महीने तेरह दिन है तो यह बिल्कुल गलत और बे बुनियाद है । जिसकी शरीअत में कोई अस्ल नहीं ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा, 127/128*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत {पोस्ट न. 63}*_
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_*📑तलाक़ का बयान*_

_*📝सवाल : - तलाक़ किसे कहते हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - औरत निकाह से शौहर की पाबन्द हो जाती है उस पाबन्दी के उठा देने को तलाक़ कहते हैं ।*_

_*📝सवाल : - तलाक़ देना कैसा है ?*_

_*✍🏻जवाब : - तलाक़ देना जाइज़ है लेकिन बगैर वजहे शरयी मना है । और वजहे शरयी हो तो तलाक देना मुबाह है बल्कि अगर औरत शौहर को या दूसरों को तकलीफ़ देती हो या नमाज़ न पढ़ती हो तो तलाक देना मुसतहब है । और अगर शौहर नामर्द हो या उस पर किसी ने जादू कर दिया हो कि हमबिस्तरी ( सम्भोग ) नहीं कर पाता और उसके दूर करने की भी कोई सूरत नज़र नहीं आती तो इन सूरतों में तलाक़ देना वाजिब है । अगर तलाक़ नहीं दी तो गुनाहगार होगा ।*_

_*📝सवाल : - तलाक देने का बेहतरीन तरीका क्या है ?*_

_*✍🏻जवाब : - तलाक देने का बेहतरीन तरीका यह है कि जिस तुहर में हमबिस्तरी ( सम्भोग ) न की हो उसमें एक तलाक रजयी दे और औरत के करीब न जाए यहां तक कि इद्दत गुज़र जाए । और एक तलाके बाइन दे तो भी जाइज़ है और अगर औरत मदखूला हो यानी शौहर उससे हमबिस्तरी ( सम्भोग ) कर चुका हो तो तीन तलाक़ न दे कि इस सूरत में बगैर हलाला दोबारा निकाह न होगा । और अगर शौहर ने उससे हमबिसतरी नहीं की है तो इन लफ़्ज़ों के साथ तलाक न दे कि मैंने उसे तीन तलाक़ दी या तलाके मुग़ल्ल्ज़ा दी कि इस सूरत में वह भी बगैर हलाला तलाक़ देने वाले के लिए हलाल न होगी ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा, 126/127*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 62}*_
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_*💞निकाह का बयान 💞*_

_*📝सवाल : - निकाह करना कैसा है ?*_

_*✍🏻जवाब : - जो शख्स नान व नफका की कुदरत रखत हो अगर उसे यक़ीन हो कि निकाह नहीं करेगा तो गुनाह में मुबतिला हो जाएगा तो ऐसे शख्स को निकाह करना फ़र्ज है । और अगर गुनाहगार का यकीन नहीं बल्कि सिर्फ ख़तरा है तो निकाह करना वाजिब है । और शहवत ( लालसा ) का बहुत ज़्यादा ग़लबा न हो तो निकाह करना सुन्नते मुअक्कदा है । और अगर इस बात का खतरा है कि निकाह करेगा तो नान व नफका न दे सकेगा या निकाह के बाद जो फ़राइज़ मुतअल्लिका हैं उन्हें पूरा न कर सकेगा तो निकाह करना मकरूह है । और इन बातों का खतरा ही नहीं बल्कि यकीन हो तो निकाह करना हराम है ।*_

_*📝सवाल : - किन औरतों से निकाह करना हराम है ?*_

_*✍🏻जवाब : - मां , बेटी , बहिन , फूफी , खाला , भतीजी , भांजी , दूध पिलाने वाली मां , दूध शरीकी बहिन , सास , मदखूला बीवी की बेटी , नसबी बेटा की बीवी , दो बहनों को इकट्ठा करना , शौहर वाली औरत , काफिरा अस्लीया और मुरतद्दा वहाबीया इन सब से निकाह हराम है । इस मसअला की मजीद तफ़सील बहारे शरीअत वगैरा से मालूम करें ।*_

_*📝सवाल : - अगर लड़की - लड़का नाबालिग हों तो निकाह कैसे होगा ?*_

_*✍🏻जवाब : - अगर नाबालिग हों तो उनके वली की इजाज़त से होगा ।*_

_*📝सवाल : - वली होने का हक़ किसको है ?*_

_*✍🏻जवाब : - अगर औरत मजनून ( पागल ) है और बेटे वाली है तो उस के बेटे को वली होने का हक है । फिर उस के पोता परपोता वगैरा को । अगर यह न हों या जिसका निकाह है वह नाबालिग हो तो बाप वाली होगा । अगर यह न हो तो दादा फिर परदादा वगैरहुम । फिर हक़ीकी भाई । फिर सौतेला भाई फिर हक़ीकी भाई का बेटा फिर सौतेले भाई का बेटा । फिर हकीकी चचा फिर सौतेला चचा । फिर हकीकी चाचा का बेटा फिर सौतेला चाचा का बेटा । फिर बाप का हक़ीकी चाचा फिर सौतेले चाचा फिर बाप के हकीकी चाचा का बेटा फिर सौतेले चाचा का बेटा । खुलासा यह कि उस खानदान में सब से ज़्यादा करीब का रिश्तेदार जो मर्द हो वही वली होगा । और अगर यह सब न हों तो मां वली हैं । फिर दादी फिर नानी फिर बेटी फिर पोती वगैरा फिर नाना ।*_

_*💫निकाह पढ़ाने का तरीका*_💫

 _*📝सवाल : - निकाह पढ़ने का तरीका क्या है ?*_

_*✍🏻जवाब : - निकाह पढ़ने का बेहतर तरीका यह है कि दुल्हन अगर बालिग हो तो निकाह पढ़ने वाला दुल्हन से वर्ना उसके वली से इजाजत लेकर मज्लिसे निकाह में आये । दूल्हा को पांचो कलिमे या कलिमये तय्यिबा और ईमाने मुजमल व मुफ़स्सल पढ़ाये फिर खड़े होकर खुतबये निकाह पढ़े और बैठ कर पढ़ना भी जाइज़ है । फिर दूल्हा की तरफ़ मुखातिब हो कर यूं कहे कि मैंने बहैसियत वकील फुलां बिन्ते फुलां ( जैसे हिन्दा बिन्ते जैद ) को इतने महर के बदले आपके निकाह में दिया क्या आपे ने कुबूल किया । जब दूल्हा कबूल कर ले तो निकाह पढ़ने वाला दूल्हा दुल्हन के दरमियान उल्फ़त व मुहब्ब्त की दुआ करे ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,123/124/125/126*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 61}*_
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_*💫रोज़ा के मकरूहात💫*_

 _*📝सवाल : - किन चीजों से रोज़ा मकरूह हो जाता है ?*_

_*✍🏻जवाब : - झूट , गीबत , चुगली , गाली देने , बेहूदा बात करने और किसी को तकलीफ़ देने से रोज़ा मकरूह हो जाता है ।*_

_*📝सवाल : - क्या रोज़ादार को कुल्ली करने के लिए मुंह भर पानी  लेना मकरूह है ?*_

_*✍🏻जवाब : - हां रोज़ादार को कुल्ली करने के लिए मुंह भर पानी लेना मकरूह है ।*_

_*📝सवाल : - क्या रोज़ा की हालत में खुश्बू सूंघना , तेल मालिश करना और सुर्मा लगाना मकरूह है ?*_ 

_*✍🏻जवाब : - नहीं रोज़ा की हालत में खुश्बू सूंघना , तेल मालिश करना और सुर्मा लगाना मकरूह नहीं । मगर मर्दो को ज़ीनत के लिए सुर्मा लगाना हमेशा मकरूह है और रोज़ा की हालत में बदरजए औला ( ज़रूर ) मकरूह है ।*_

_*📝सवाल : - क्या रोज़ा में मिसवाक करना मकरूह है ?*_

_*✍🏻जवाब : - नहीं । रोज़ा में मिसवाक करना मकरूह नहीं बल्कि जैसे और दिनों में मिसवाक करना सुन्नत है वैसे ही रोज़ा में भी मिसवाक करना मसनून है । चाहे मिसवाक खुश्क हो या तर ( गीली ) और ज़वाल से पहले करे या बाद में किसी वक़्त मकरूह नहीं ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा,122/123*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 60}*_
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_*💫रोज़ा तोड़ने और न तोड़ने वाली चीजों का बयान*_

_*📝सवाल : - किन चीजों से रोजा टूट जाता है ?*_

_*✍🏻जवाब : - खाने पीने से रोजा टूट जाता है जबकि रोज़ादार होना याद हो और हुक्का बीड़ी सिगरेट वगैरा पीने और पान या सिर्फ तम्बाकू खाने से भी बशर्ते कि याद हो रोज़ा जाता रहता है । कुल्ली करने में बिला इरादा पानी हलक से उतर गया या नाक में पानी चढ़ाया और दिमाग तक चढ़ गया या कान में तेल टपकाया या नाक में दवा चढ़ाई अगर रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा टूट गया वर्ना नहीं । क़सदन ( जान बूझकर ) मुंह भर कै की और रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा जाता रहा । और मुंह भर न हो तो नहीं । और अगर बिला इख्तियार कै हो और मुंह भर न हो तो रोज़ा गया और अगर मुंह भर हो तो लौटाने कि सुरत में जाता रहा वर्ना नहीं ।*_

_*📝सवाल : - किन चीज़ों से रोज़ा नहीं टूटता ।*_

_*✍🏻जवाब : - भूलकर खाने पीने से रोज़ा नहीं टूटता , तेल या सुर्मा लगाने और मक्खी , धुंवा या आटे वगैरा का गुबार ( गर्दा ) हलक में जाने से रोज़ा नहीं जाता , कुल्ली की और पानी बिल्कुल उगल दिया सिर्फ कुछ तरी मुंह में बाकी रह गयी थी थूक के साथ उसे निगल गया या कान में पानी चला गया या खंकार मुंह में आया और खा गया अगरचे कितना ही हो रोजा न जायेगा । इहतिलाम ( स्वप्नदोष ) हुआ या गीबत ( चुगली ) की तो रोज़ा न गया अगरचे गीबत सख्त कबीरा ( बड़ा ) गुनाह है । और जनाबत ( नापाकी ) की हालत में सुबह की बल्कि अगरचे सारे दिन जुनुब ( नापाक ) रहा रोजा न गया । मगर इतनी देर तक जान बूझकर गुस्ल न करना कि नमाज़ क़ज़ा हो जाए गुनाह और हराम है ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा,121/122*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 59}*_
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_*💫रोजा का बयान💫*_

_*📝सवाल : - रोज़ा किसे कहते हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - सुबह सादिक़ से गुरूबे आफ़ताब ( सूर्य अस्त ) तक नीयत के साथ खाने , पीने और जिमा ( संभोग ) से रुकने का नाम रोज़ा है ।*_

_*📝सवाल : - रमज़ान शरीफ के रोजे किन लोगों पर फर्ज हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - रमज़ान शरीफ के रोजे हर मुसलमान आक़िल बालिग मर्द और औरत पर फ़र्ज़ हैं । उनकी फ़रज़ीयत का इन्कार करने वाला काफ़िर और बिला उज़्र छोड़ने वाला सख्त गुनाहगार और फ़ासिक मरदूदुश्शहादत है । और बच्चा की उम्र जब दस साल हो जाये और उसमें रोज़ा रखने की ताक़त हो तो उस से रोज़ा रखवाया जाए और न रखे तो मार कर रखवायें ।*_

_*📝सवाल : - किन सूरतों में रोज़ा न रखने की इजाज़त है ?*_

_*✍🏻जवाब : - जिन सूरतों में रोजा न रखने की इजाजत है उनमें से बाज़ यह हैं ( 1 ) सफ़र यानी तीन दिन की राह के इरादा से बाहर निकलना लेकिन अगर सफ़र में मशक्कत न हो तो रोज़ा रखना अफ़ज़ल है ।*_

_*👉🏻( 2 . 3 ) हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को अपनी जान या बच्चा का सही अंदेशा हो तो इस हालत में रोज़ा न रखने की इजाज़त है ।*_

_*👉🏻( 4 ) मर्ज़ यानी मरीज़ को मर्ज बढ़ जाने या देर में अच्छा होने या दन्दुरुस्त को बीमार हो जाने का गालिब गुमान हो तो उस दिन रोजा न रखना जाइज़ है ।*_

_*👉🏻( 5 ) शैखे फानी यानी वह बूढ़ा कि न अब रोज़ा रख सकता है और न आइन्दा उसमें इतनी ताक़त आने की उम्मीद है कि रख सकेगा तो उसे रोज़ा न रखने की इजाजत है । और हैज़ व निफास की हालतों में रोजा रखना जाइज़ नहीं ।*_

_*📝सवाल : - क्या ऊपर बयान किए हुए लोगों को बाद में रोजा की क़ज़ा करना फर्ज हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - हां उज़्र खत्म हो जाने के बाद सब लोगों को रोजा की क़ज़ा करना फर्ज है और शैखे फानी अगर जाड़ों में कजा रख सकता है तो रखे वर्ना हर रोजा के बदले दोनों वक़्त एक मिसकीन को पेट भर खाना खिलाए या हर रोज़ा के बदले सदकए फ़ित्र की मिकदार मिसकीन को दे दे ।*_

_*📝सवाल : - जिन लोगों को रोज़ा न रखने की इजाज़त है क्या वह किसी चीज़ को अलानियह खा पी सकते हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - नहीं । उन्हें भी अलानियह किसी चीज़ को खाने पीने की इजाजत नहीं ।*_

_*📝सवाल : - रमज़ान के रोजे की नीयत किस तरह की जाती है ?*_

_*✍🏻जवाब : - नीयत दिल के इरादा का नाम है मगर जुबान से कह लेना मुसतहब है अगर रात में नीयत करे तो यूं कहे नवैतु अन असू म ग़दन लिल्लाहि तआला मिन फरजि रमज़ान और दिन में नीयत करे तो यूं कहे नवैतु अन असू म हाजल यौम | लिल्लाहि तआला मिन फर जि र म जान ।*_

_*📝सवाल : - रोजा इफ़तार करने के वक़्त कौन सी दुआ पढ़ी जाती है ?*_

_*✍🏻जवाब : - यह दुआ पढ़ी जाती है । अल्लाहुम्म लक सुम्तु व बि क आमन्तु व अलै क तवक्कलतु व अला रिज़कि क अफ़तरतु | फगफिरली मा कद्दम्तु व मा अख्खरतु ।*_


_*📕अनवारे शरिअत सफा,119/120/121*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 58}*_
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_*💫सदकये फ़ित्र का बयान*_

_*📝सवाल : - सदक़ये फ़ित्र देना किस पर वाजिब होता है ?*_

_*✍🏻जवाब : - हर मालिके निसाब पर अपनी तरफ़ से और अपनी हर नाबालिग औलाद की तरफ से एक एक सदक़ये फ़ित्र देना ईदुल फित्र के दिन वाजिब होता है ।*_

_*📝सवाल : - सदक़ये फ़ित्र की मिक़दार क्या है ?*_

_*✍🏻जवाब : - सदक़ये फ़ित्र की मिकदार यह है कि गेंहूं या उसका आटा आधा साअ दें । और खजूर , मुनक्का या जौ या उस का आटा एक साअ दें और अगर इन चारों के अलावा कोई दूसरा गल्ला वगैरा देना चाहें तो कीमत का लिहाज़ करना यानी उस चीज़ का आधे साअ गेंहूं या एक साअ जौ की कीमत का होना ज़रूरी है ।*_

_*📝सवाल : - साअ कितनी मिकदार का होता है ?*_

_*✍🏻जवाब : - आला दर्जा की तहकीक़ और इहतियात यह है कि साअ का वजन तीन सौ इक्कयावन ( 351 ) रुपया भर होता है और आधा साअ एक सौ पच्चहत्तर ( 175 ) रुपये अठन्नी भर ऊपर ।*_

_*📝सवाल : - नए वज़न से साअ कितने का होता है ?*_

_*जवाब : - नए वज़न से एक साअ चार किलो और तकरीबन 94 ग्राम होता है । और आधा साअ दो किलो तकरीबन 47 ग्राम का होता है ।*_

_*📝सवाल : - अगर गेहूं या जौ देने की बजाय उनकी कीमत दी जाये तो क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - गेंहूं या जौ देने के बजाय उनकी कीमत देना अफ़ज़ल हैं ।*_

_*📝सवाल : - सदक़ये फ़ित्र किन लोगों को देना जाइज़ है ?*_

_*✍🏻जवाब : - जिन लोगों को ज़कात देना जाइज़ है उनको सदकये फ़ित्र भी देना जाइज़ है और जिन लोगों को ज़कात देना जाइज़ नहीं उनको सदक़ये फ़ित्र भी देना जाइज़ नहीं ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,117/118/119*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत पोस्ट न. 57}*_
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_*💫ज़कात का माल किन लोगों पर खर्च किये जाए*_

_*📝सवाल : - ज़कात और उश्र का माल किन लोगों को दिया जाए ?*_

_*✍🏻जवाब : - जिन लोगों को दिया जाता है उनमें से कुछ यह हैं ( 1 ) फ़कीर यानी वह शख़्स कि जिसके पास कुछ माल है लेकिन निसाब भर नहीं ।*_

_*👉🏻( 2 ) मिसकीन यानी वह शख़्स कि जिसके पास खाने के लिए गल्ला और बदन छिपाने के लिए कपड़ा भी न हो ।*_

_*👉🏻( 3 ) कर्जदार यानी वह शख्स कि जिसके जिम्मा क़र्ज़ हो और उसके पास कर्ज से फ़ाज़िल कोई माल बक़दरे निसाब न हो ।*_

_*👉🏻( 4 ) मुसाफिर जिसके पास सफ़र की हालत में माल न रहा उसे ज़रूरत भर को ज़कात देना जाइज़ है ।*_

_*📝सवाल : - किन लोगों को ज़कात देना जाइज़ नहीं ?*_

_*✍🏻जवाब : - जिन लोगों को ज़कात देना जाइज़ नहीं उनमें से कुछ यह हैं ।*_

_*👉🏻( 1 ) मालदार यानी वह शख्स जो मालिके निसाब हो ।*_

_*👉🏻( 2 ) बनी हाशिम यानी हज़रते अली , हज़रते जाफ़र , हज़रते अक़ील और हज़रते अब्बास व हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की औलाद को देना जाइज़ नहीं ।*_

_*( 3 ) अपनी नस्ल और फरा यानी मां , बाप , दादा दादी , नाना नानी वगैरहुम और बेटा , बेटी , पोता , पोती , नवासा नवासी को ज़कात देना जाइज़ नहीं ।*_

_*👉🏻( 4 ) औरत अपने शौहर को और शौहर अपनी औरत को अगरचे तलाक़ दे दी हो जब तक की इद्दत में हो ज़कात नहीं दे सकता ।*_

_*👉🏻( 5 ) मालदार मर्द के नाबालिग बच्चे को ज़कात नहीं दे सकता और मालदार की बालिग औलाद को जबकि मालिके निसाब न हो दे सकता है ।*_

_*( 6 ) वहाबी या किसी दूसरे मुरतद बद मज़हब और काफ़िर को जकात देना जाइज नहीं ।*_

_*📝सवाल : - सैय्यद को ज़कात देना जाइज़ है या नहीं ?*_ 

_*✍🏻जवाब : - सैयिद को ज़कात देना जाइज़ नहीं इसलिए कि वह भी बनी हाशिम में से हैं ।*_

_*सवाल : - ज़कात का पैसा मस्जिद में लगाना जाइज़ है या नहीं ?*_

_*जवाब : - ज़कात का माल मस्जिद में लगाना , मदरसा तामीर करना या उससे मैयित को कफ़न देना या कुआं बनवाना जाइज नहीं यानी अगर इन चीजों में जकात का माल खर्च करेगा तो जकात अदा न होगी ।*_

_*📝सवाल : - कुछ लोग अपने आप को खानदानी फ़कीर कहते हैं उनको ज़कात और गल्ला का उश्र देना जाइज़ है या नहीं ?*_

_*✍🏻जवाब : - अगर वह लोग साहिबे निसाब हों तो उन्हें ज़कात और उश्र देना जाइज़ नहीं ।*_

_*📝सवाल : - किन लोगों को जकात देना अफजल है ?*_

_*✍🏻जवाब : - ज़कात और सदक़ात में अफ़ज़ल यह है कि पहले अपने भाई बहनों को दे फिर उनकी औलाद को फिर चचा और फूफियों को फिर उनकी औलाद को फिर मामू और खाला को फिर उनकी औलाद को फिर दूसरे रिश्तादारों को फिर पड़ोसियों को फिर अपने पेशा वालों को फिर अपने शहर या गांव के रहने वालों को । और ऐस तालिबे इल्म को भी ज़कात देना अफ़ज़ल है जो इल्मेदीन हासिल कर रहा हो बशर्ते कि यह लोग मालिके निसाब न हों ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,115/116/117*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत*_
                              *{पोस्ट न. 56}*

                 _*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*_
_*अल्लाह के नाम से शुरू जो बोहत मेहरबान रहमत वाला*_
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_*🌾उश्र का बयान🌽*_

_*❓सवाल : - किन चीज़ों की पैदावार में उश्र वाजिब है ?*_ 

_*✍🏻जवाब : - गेंहूं , जौ , ज्वार , बाजरा , धान और हर किस्म के ग़ल्ले और अल्सी , कुसुम , अखरोट , बादाम और हर किस्म के मेवे , रुई , फूल , गन्ना , खरबूजा , तरबूज़ , खीरा , ककड़ी , बैगन और हर किस्म की तरकारी सब में उश्र वाजिब है । थोड़ा पैदा हो या ज्यादा ।*_

_*❓सवाल : - किन सूरतों में दसवां हिस्सा और किन सूरतों में बीसवां हिस्सा वाजिब होता है ?*_

_*✍🏻जवाब : - जो पैदावार बारिश या ज़मीन की नमी से हो उसमें दसवां हिस्सा वाजिब होता है और जो पैदावार चरसे डोल , पम्पिंग मशीन या ट्यूबविल वगैरा के पानी से हो या खरीदे हुए पानी से हो उसमें बीसवां हिस्सा वाजिब होता है ।*_

_*❓सवाल : - क्या खेती के अख़राजात ( खर्चा ) हल बैल और काम करने वालों की मजदूरी निकाल कर दसवां बीसवां वाजिब होता ?*_

_*✍🏻जवाब : - नहीं । बल्कि पूरी पैदावार का दसवां बीसवां वाजिब होता है ।*_

_*❓सवाल : - गौरमिन्ट को जो माल गुज़ारी दी जाती है वह उश्र की रक़म से मुजरा की जाएगी या नहीं ?*_

_*✍🏻जवाब : - वह रकम उश्र से मुजरा नहीं की जाएगी ।*_

_*❓सवाल : - ज़मीन अगर बटाई पर दी तो उश्र किस पर वाजिब ?*_

_*✍🏻जवाब : - ज़मीन अगर बटाई पर दी तो उन दोनों पर वाजिब ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,114/115*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत*_
                             *{पोस्ट न. 55}*

                 _*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*_
_*अल्लाह के नाम से शुरू जो बोहत मेहरबान रहमत वाला*_
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_*💫जकात का बयान*_ 

_*❓सवाल : - ज़कात फ़र्ज़ है या वाजिब ?*_

_*✍🏻जवाब : - ज़कात फर्ज है । उसकी फरजीयत का इन्कार करने वाला काफ़िर और न अदा करने वाला फ़ासिक और अदायगी मे देर करने वाला गुनाहगार मरदूदुश्शहादत हैं । ( गवाही न देने के योग ) नहीं ।*_

_*❓सवाल : - ज़कात फ़र्ज होने की शर्ते क्या हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - चन्द शर्ते हैं । मुसलमान आकिल बालिग होना , माल  बक़दरे निसाब का पूरे तौर पर मिलकियत में होना , निसाब का हाजते अस्लीया और किसी के बकाया से फारिग होना , मालेतिजारत या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुज़र जाना ।*_

_*❓सवाल : - सोना चांदी का निसाब क्या है और उनमें कितनी  ज़कात फ़र्ज़ है ?*_

_*✍🏻जवाब : - सोने का निसाब साढ़े सात तोला है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है । और चांदी का निसाब साढ़े बावन तोला है जिस में एक तोला तीन माशा छ : रत्ती ज़कात फर्ज है । सोना चांदी के बजाय बाज़ार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरा देना भी जाइज़ है ।*_

_*❓सवाल : - क्या सोना चांदी के जेवरात में भी ज़कात वाजिब होती ?*_

_*✍🏻जवाब : - हां सोना चांदी के जेवरात भी ज़कात वाजिब होती है ।*_

_*❓सवाल : - तिजारती माल का निसाब क्या है ?*_

_*✍🏻जवाब : - तिजारती माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना चांदी का निसाब पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए ।*_

_*❓सवाल : - कम से कम कितने रुपये हों कि जिन पर ज़कात वाजिब होती है ?*_

_*✍🏻जवाब : - अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रुपये हों कि बाज़ार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रुपयों की जकात वाजिब होती है ।*_

_*❓सवाल : - हाजते अस्लीया किसे कहते हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - ज़िन्दगी बसर करने के लिए जिस चीज़ की ज़रूरत होती है जैसे जाड़े और गर्मियों में पहनने के कपड़े , खानादरी के सामान , पेशावरों के औजार और सवारी के लिए साईकिल और मोटर वगैरा यह सब हाजते अस्लीया में से हैं इनमें ज़कात वाजिब नहीं ।*_

_*❓सवाल : - निसाब का दैन से फ़ारिग होने का क्या मतलब है ?*_ 

_*✍🏻जवाब : - इसका मतलब यह है कि मालिके निसाब पर किसी का बाक़ी न हो या इतना हो कि अगर बाक़ी अदा कर दे तो भी निसाब बचा रहे तो इस सूरत में ज़कात वाजिब है और अगर बाकी इतना हो कि अदा कर दे तो निसाब न रहे तो इस सूरत में ज़कात वाजिब नहीं ।*_

_*❓सवाल : - माल पर पूरा साल गुज़र जाने का क्या मतलब है ?*_

_*✍🏻जवाब : - इसका मतलब यह है कि हाजते अस्लीया से जिस तारीख को पूरा निसाब बच गया उस तारीख से निसाब का साल शुरू हो गया फिर साले आइन्दा अगर उसी तारीख को पूरा निसाब पाया गया तो ज़कात देना वाजिब है । अगर दरमियाने साल में निसाब की कमी हो गयी तो यह कमी कुछ असर न करेगी ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,111/112/113/114*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*📜अनवारे शरिअत*_
                               *{पोस्ट न. 54}*

                 _*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*_
_*अल्लाह के नाम से शुरू जो बोहत मेहरबान रहमत वाला*_
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_*🕌नमाज़े जनाज़ा का बयान*_

_*❓सवाल : - नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ है या वाजिब ?*_

_*✍🏻जवाब : - नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ किफ़ाया है यानी अगर एक शख्स ने पढ़ली तो सब छुटकारा पा गए और अगर खबर हो जाने के बाद किसी ने पढ़ी तो सब गुनाहगार हुए ।*_

_*❓सवाल : - जनाज़ा में कितनी चीजें फर्ज हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - दो चीजें फर्ज हैं चार बार “ अल्लाहु अकबर " कहना , कियाम यानी खड़ा होना ।*_

_*❓सवाल : - नमाज़े जनाज़ा में कितनी चीजें सुन्नत हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - नमाज़े जनाज़ा में तीन चीजें सुन्नते मुअक्कदा हैं । अल्लाह तआला की सना , हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर दुरूद , और मैइत के लिए दुआ ।*_

_*❓सवाल : - नमाज़े जनाज़ा पढ़ने का तरीका क्या है ?*_ 

_*जवाब : - पहले नीयत करे । नीयत की मैंने नमाज़े जनाज़ा की चार तकबीरों के साथ अल्लाह तआला के लिए दुआ इस मैइत के लिए ( मुक़तदी इतना और कहे , पीछे इस इमाम के ) मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ़ के फिर कानों तक दोनों हाथ उठाकर अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ वापस लाए और नाफ के नीचे बांध ले फिर यह सना पढ़े जो उपर नमाज़ के तरीके मे बताया गया ।*_

_*फिर बगैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और दुरुद इब्राहीमी पढ़े जो पांच वक़्त की नमाज़ में पढ़े जाते हैं । फिर बगैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और बालिग का जनाज़ा हो तो यह दुआ पढ़े ।*_

_*अल्लाहुम्ममग्फिर लिहैयिना व मैयितिना व शहिदिना व गाइबिना सगीरिना व कबीरिना व ज क रिना व उनसाना अल्लाहुम्म मन अयैतहू मिन्ना फ़अह यही अलल्इस्लामि व मन तवफ्फैतहू मिन्ना फ़तवफ्फ़हू अलईमान "*_
_*اَللّٰہُمَّ اغْفِرْ لِحَیّ‌ِنَا وَمَیْ‌ِتِنَا وَشَاھِدِنَا وَغآ ںِٔبِنَا وَصَغِیْرِنَا وَسَبِیْرِنَا وَذَکَرِنَا وَاُنْثٰنَا اَللّٰہُمَّ مَنْ تَوَفَّیْتُهٗ مِنَّا فَتَوَفَّهٗ عَلَے الْاِیْمَان*_
_*इसके बाद चौथी तकबीर कहे फिर बगैर कोई दुआ पढ़े हाथ खेलकर सलाम फेर दे और नाबालिग बच्चे का जनाज़ाहो तो यह दुआ पढ़ी जाए*_

 _*“ अल्लाहुम्मज अल्हु लना फ़रातन वज्अल्हुलना अज्रन व जुख्रव वज्अल्हु लना शफिअन व मुशफ्फआ "*_
_*اَللّٰہُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا فَرَاطاًوَّاجْعَلْهُ لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا شَافِعًا وَّمُشَفَّعًا*_
_*और अगर नाबालिग लड़की का जनाज़ा हो तो यह दुआ पढ़े ।*_
_*“ अल्लाहुम्मज अल्हा लना फ़रतन वज्अल्हा लना अज्रन  व जुख्रव वज्अल्हा लना शा फिअतव् व मुशफ्फअतन ।*_
_*اَللّٰہُمَّ اجْعَلْهَا لَنَا فَرَطاً وَّاجـعَلْهَا لَنَا اَجْرًاوَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا شَافِعَۃً وَّمُشَفَّعَۃً*_

_*❓सवाल : - अस्र या फज़्र की नमाज़ के बाद जनाज़ा पढ़ना कैसा?*_

_*✍🏻जवाब : - जाइज़ है और यह जो अवाम में मशहूर है कि नहीं जाइज है गलत है ।*_

_*❓सवाल : - क्या सूरज निकलने , डूबने और ज़वाल के वक़्त नमाजे जनाज़ा . पढ़ना मकरूह है ?*_

_*✍🏻जवाब : - जनाज़ा अगर उन्हीं वक्तों में लाया गया तो नमाज़ उन्हीं वक़्तों में पढ़ें कोई कराहत नहीं कराहत उस सूरत में हैं कि पहले से तैयार मौजूद है और देर की यहां तक कि वक्ते कराहत आ गया ।*_

_*📕अनवारे शरिअत सफा,109/110/111*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 53)*_
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                                 *﷽*

_*🔪अकीका का बयान (भाग 2)*_

_*❓सवाल : - लड़का के अक़ीक़ा की क्या दुआ है ।*_

_*✍🏻जवाब : - लड़का के अकीका की दुआ यह है*_
_*“ अल्लाहुम्म हाजिही अकीकतु बनी फुलां*_
     _*اَللّٰہُمَّ عَقِیْکَۃُ ابْنِی فُلَاں*_
 _*( फुलां की जगह बेटे का नाम ले अगर दूसरे के बेटे का अक़ीक़ा करे तो इबनी फुलां की जगह लड़का और उसके बाप का नाम ले )*_

_*दमुहा बिदमिही व लह मुहा बिलह मिही व शमुहा बिशहमिही व अजमुहा बिअजमिही वजिलदुहा बिजिलदिही व शअरुहा बिशअरिही अल्लाहुम्मजअल्हा फिदाँअल लिबनी फलां*_

_*دَمُہَا بِدَمِهٖ وَلَحْمُہَا بِلَحْمِهٖ وَشَحْمُہَا بِشَحْمِهٖ وَعَظْمُہَا بِعَظْمِهٖ وَجِلْدُھَا بِجِلْدِہٖ وَشَعْرُھَا بِشَعْرِهٖ اَلَلّٰہُمَّ اجْعَلْہَا فِدًأ‍ً لّ‌ِابْنِیْ فُلَاں*_

_*( इस जगह भी फुलां की जगह बेटे का नाम ले । और अगर दूसरे के लड़के का अकीका करे तो लि के बाद उसका और उसके बाप का नाम ले )*_

_*मिन्नारि व तक़बलहा मिन्हु कमा तकब्बल तहा मिन नबीइकल मुस्तफा वहबीबिकल मुजतबा अलैहित तहीयतु वस्सनाइ इन्न सलाती व नुसुकी व महयाय व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन । ला शरीक लहू व बिजालि क उमिरतु व अना मिनल मुस्लिमीन । अल्लाहुम्म मिन क व ल क बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर ।*_
*_مِنَالنَّارِ وَتَقَبَّلْہَا مِنْهُ کَمَا تَقَبَّلْتَہَا مِنْ نَبِیّ‌ِکَ الْمُصْطَفٰی وَحَبِیْبِکَ الْمُجْتَبٰی عَلَیْهِ التَّحیَّۃُ وَالثَّنَا ءِ اِنَّ صَلَاتِی وَنُسُکِیْ وَمَحْیَا یَ وَمَمَا تِیْ لِلّٰهِ رَبّ‌ِالْعٰلَمِیْنَ۔لَاشَرِیْکَ لَهٗ وَبِذٰلِکَ اُمِرْتُ وَاَنَامِنَ المُسْلِمِیْنَ اَلَلّٰہُمَّ مِنْکَ وَلَکَ بِسْمِ اللّٰهِ اَللّٰهُ اَکْبَرْ_*
_*कह कर ज़बह करे ।*_

_*सवाल : - लड़की के अक़ीका की क्या दुआ है ।*_

_*जवाब : - लड़की के अक़ीका की दुआ यह है*_
 _*अल्लाहुम्मा हाज़िही अक़ीक़तु बिनती फुलां*_
   _*اَللّٰہُمَّ ھٰذِہٖ عَقِیْکَۃُ بِنْتِیْ فُلَاں*_
 _*( फुलां की जगह अपनी बेटी का नाम लो । अगर दूसरे की लड़की का अक़ीक़ा करे तो बिनती फुलां की जगह लड़की और उसके बाप का नाम ले )*_

_*दुमुहा बिदमिहा व लहमुहा बिलह मिहा व शमुहा बिशहमिहा व अज्मुहा बिअफ्रिमहा व जिलदुहा बिजिलहिदा व शअरुहा बिशअरिहा । अल्लाहुम्मजअल्हा फिदाअन लिबिनती फुलां*_
_*دَمُہَا بِدَمِہَا وَلَحْمُہَا بِلَحْمِہَا وَشَحْمُہَا بِشَحْمِہَا وَعَظْمُہَا بِعَظْمِہَا وَجِلْدُھَا بِجِلْدِھَا وَشَعْرُھَا بِشَعْرِھَا اَلَلّٰہُمَّ اجْعَلْہَا فِدًآ‌ءً لِبِنْتِیْ فُلَاں*_
 _*( इस जगह भी फुलां की जगह बेटी का नाम ले । अगर दूसरे की लड़की का अक़ीका करे तो लि , के बाद लड़की और उसके बाप का नाम ले )*_

_*मिन्नारि व तकब्बल्हा मिन्हा कमा तक़ब्बल्तहा मिन नबी इकलमुस्तफा व हबीबिकलमुज्तबा अलैहित्तहीयतु वस्सना इन्ना सलाती व नुसुकी व मह्याय व नमाति लिल्लाहि रब्बिल आलमीन । ला शरीक लहु व बिजालि क उमिरतु व अना मिनल मुसिलमीन अल्लाहुम्म मिन कव ल क बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर*_
*_مِنَالنَّارِ وَتَقَبَّلْتَہَا مِنْہَا کَمَا تَقَبَّلْتَہَا مِنْ نَبِیّ‌ِکَ                        الْمُصْطَفٰی وَحَبِیْبِکَ الْمُجْتَبٰی عَلَیْهِ التَّحیَّۃُ وَالثَّنَا ءِ اِنَّ صَلَاتِی وَنُسُکِیْ وَمَحْیَا یَ وَمَمَا تِیْ لِلّٰهِ رَبّ‌ِالْعٰلَمِیْنَ۔لَاشَرِیْکَ لَهٗ وَبِذٰلِکَ اُمِرْتُ وَاَنَامِنَ الْمُسْلِمِیْنَ اَلَلّٰہُمَّ مِنْکَ وَلَکَ بِسْمِ اللّٰهِ اَللّٰهُ اَکْبَرْ_*
_*कह जबह करे।*_

_*❓सवाल : - अगर यह दुआ न पढ़े तो अक़ीका होगा या नहीं ।*_

_*⁦✍🏻⁩जवाब : - अगर यह दुआ न पढ़े और अकीका की नीयत से |  बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर कह कर जबह कर दे तो भी अकीका हो जाएगा ।*_

_*📕( बहारे शरीअत )*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 106/107*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 52)*_
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                                 *﷽*

_*🔪अकीका का बयान (भाग 1)*_

 _*❓सवाल : - अकीका किसे कहते हैं ।*_

_*✍🏻जवाब : - बच्चा पैदा होने के शुक्रिया में जो जानवर ज़बह किया जाता है उसे अक़ीक़ा कहते हैं ।*_

_*❓सवाल : - किन जानवरों को अक़ीका में ज़बह किया जाता है ।*_

_*✍🏻जवाब : - जिन जानवरों को कुर्बानी में ज़बह किया जाता है । उन्हीं जानवरों को अक़ीका में भी ज़बह किया जाता है ।*_

 _*❓सवाल : - लड़का और लड़की के अकीका में कितने जानवर मुनासिब है ।*_

_*✍🏻जवाब : - लड़का के अक़ीका में दो बकरा और लड़की के अक़ीक़ा में एक बकरी ज़बह करना मुनासिब है । और लड़का के अक़ीका में बकरियां और लड़की में बकरा किया जब भी हर्ज नहीं और पहुंचान न हो तो लड़का में एक बकरा भी ज़बह कर सकते हैं । और अक़ीक़ा में बड़ा जानवर जबह किया जाए तो लड़का के लिए सात हिस्से में से दो हिस्से और लड़की के लिए एक हिस्सा काफ़ी है ।*_

 _*❓सवाल : - अवाम में मशहूर है कि बच्चा के मां बाप , दादा , दादी और नाना नानी अक़ीक़ा का गोश्त न खाएं क्या यह सही है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - ग़लत है । माँ बाप , दादा दादी और नाना नानी वगैरा सब खा सकते हैं ।*_

_*❓सवाल : - अक़ीका के लिए कौन सा दिन बेहतर है ।*_

_*✍🏻जवाब : - अक़ीका के लिए बच्चा की पैदाइश का सातवां दिन बेहतर है और सातवें दिन न कर सकें तो जब चाहें करे सुन्नत अदा हो जाएगी ।*_

_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 106/107*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 51)*_
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                                 *﷽*

_*🔪कुर्बानी का बयान🔪*_

*❓सवाल : - कुर्बानी करना किस पर वाजिब है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - कुर्बानी करना हर मालिके निसाब पर वाजिब है ।*_

 _*❓सवाल : - कुर्बानी का मालिके निसाब कौन है ।*_

_*✍🏻जवाब : - कुर्बानी का मालिके निसाब वह शख्स है जो साढ़े बावन  तोला चांदी या साढ़े सात  तोला सोना या उनमें से किसी एक की कीमत का सामाने तिजारत या सामाने गैरे तिजारत का मालिक हो या उनमें से किसी एक की कीमत भर के रुपया का मालिक हो और ममलूका ( जो उसकी मिलकियत हो ) चीजें हाजते असलीया से ज़ाइद हों ।*_

_*❓सवाल : - मालिके निसाब पर अपने नाम से ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी करना वाजिब है या हर साल ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर हर साल मालिके निसाब है तो हर साल अपने नाम से कुर्बानी करना वाजिब है और अगर दूसरे की तरफ़ से भी करना चाहिता हो तो उसके लिए दूसरी कुर्बानी का इन्तिज़ाम करे ।*_

_*सवाल : - कुर्बानी करने का तरीका क्या है ।*_

_*जवाब : - कुर्बानी करने का तरीका यह है कि जानवर को बायें पहलू पर इस तरह लिटाए कि मुंह उसका किबला की तरफ़ हो और अपना दायां पांव उस के पहलू पर रख कर तेज़ छुरी लेकर यह दुआ पढ़े ।*_

   _*اِنّ‌ِی وَجَّہْتُ وَجْہِیَ لِلَّذِیْ فَطَرَ السَّمٰوٰتِ وَلْاَرْضِ عَلٰٖ مِلَّۃِ اِبْرَا ھِیْمَ حَنِنْفًا وَّمَآ اَنَا مِنَ الْمُشْر‍ِ کِیْنَ قُلْ اِنَّ صَلَاتِیْ وَنُسُکِیْ وَمَحْیَایَ وَمَمَا تِیْ لِلّٰهِ رَبّ‌ِ الْعَا لَمِیْنَ۔لَاشَرِیْکَ لَهٗ وَبِذَا لِکَ اُمِرْتُ وَاَنَامِنَ الْمُسْلِمِنْنَ اَلَلّٰہُمَّ    مِنْکَ وَلَکَ۔بِسْمِ اللّٰهِ َاَللّٰهُ اَکْبَرْ*_ 

_*“ इन्नी वज्जहतु वजहिय लिल्लजी फ़तरस्समावाति वलअरद  अला मिल्लती इब्राहिमा हनीफवमा अना मिनल मुशरिकीन क़ुल इन्न सलाती व नुसुकी वमहयाय व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन लाशरीक लहु व बिजालि क उमिरतु व अना मिनल मुस्लिमीन अल्लाहुम्म  बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर "*_

_*पढ़ कर ज़बह करे फिर यह दुआ पढ़े*_

    _*اَللّٰہُمَّ تَقَبَّلْ مِنّ‌ِی کَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِیْلِکَ اِبْرَھِیْمَ عَلَیْهِ   الصَّلَاۃُ وَالسَّلَامُ وَحَبِیْبِکَ مُحَمْدٍ ضَلَّی اللّٰهُ تَعَالَ عَلَیْهِ وَسَلَّمَ*_ 

_*“ अल्लाहुम्म तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बल त मिन खलीलि क इब्रहीम अलैहिस्सालातु वस्सलामु व हबीबि क मुहम्मदिन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम " अगर दूसरे की तरफ़ से कुर्बानी करे तो “ मिन्नी " के बजाय “ मिन " कह कर उसका नाम ले ।*_

_*❓सवाल : - साहिबे निसाब अगर किसी वजह से अपने नाम कुर्बानी न कर सका और कुर्बानी के दिन गुजर गए तो उसके लिए क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - एक बकरी की कीमत उस पर सदका करना वाजिब ।*_

_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 105/106*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 50)*_
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                                 *﷽*

_*🌙ईद व बक़रईद का बयान🌙 ( भाग 2 )*_

_*❓सवाल : - ईदुल फित्र के दिन कौन कौन से काम मुस्तहब हैं ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - हजामत बनवाना , नाखुन तरशवाना , गुस्ल करना , मिस्वाक करना , अच्छे कपड़े पहनना , खुश्बू लगाना , सुबह की नमाज मुहल्ला की मस्जिद में पढ़ना , ईदगाह सवेरे जाना , नमाज़ से पहले सदक़ये फित्र अदा करना , ईदगाह तक पैदल जाना , दूसरे रास्ते से वापस आना , नमाज के लिए जाने से पहले ताक यानी तीन या पांच या सात खजूरै खा लेना और खजूरौं न हों तो कोई मीठी चीज़ खाना , खुशी जाहिर करना , आपस में मुबारकबाद देना और ईदगाह इत्मिनान व विकार के साथ नीचे निगाह किए हुए जाना । यह सब बातें ईदुलफित्र के दिन मुस्तहब*_

 _*❓सवाल : - ईदुल अज़हा के तमाम अहकाम ईदुलफित्र की तरह हैं या कुछ फर्क है ।*_

_*✍🏻जवाब : - ईदुलफ़ित्र की तरह हैं सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है और वह यह हैं।*_

 _*👉🏻( 1 ) ईदुलअज़हा में मुस्तहब यह है नमाज़ अदा करने से पहले कुछ न खाए अगरचे कुर्बानी न करनी हो और अगर खलिया तो कराहत नहीं।*_

_*👉🏻( 2 ) ईदुलअज़हा के दिन ईदगाह के रास्ता में बुलन्द आवाज़ से तकबीर कहता हुआ जाए।*_

_*👉🏻( 3 ) कुर्बानी करनी हो तो मुस्तहब यह है कि पहली से दसवीं ज़िलहिज्जा तक न हजामत बनवाये और न नाखुन तरशवाये।*_

_*👉🏻( 4 ) नवीं ज़िलहिज्जा की फ़ज़्र से तेरहवीं की अस्र तक हर नमाजे फ़र्ज़ पंजगाना के बाद जो जमाअत मुस्तहब्बा के साथ अदा की गई हो एक बार बुलन्द आवाज़ से तकबीर कहना वाजिब है और तीन बार अफ़ज़ल । इसे तकबीरे तशरीक कहते हैं वह यह है ।*_

_*“ अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर लाइलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिलहम्दु "*_

_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 103/104/105*_

_*📍 बाकि अगले पोस्ट में।*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 49)*_
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                                 *﷽*

_*🌙ईद व बक़रईद का बयान🌙*_

_*❓सवाल :- ईद व बक़रईद की नमाज़ वाजिब है या सुन्नत?*_

_*✍🏻जवाब :- ईद व बक़रईद की नमाज़ वाजिब है मगर इनके वाजिब और जाइज़ होने की वही शर्त है जो जुमा के लिए है। सिर्फ फर्क  इतना यह है कि जुमा का खुतबा नमाज़ से पहले है और ईदैन मे सुन्नत दूसरा फर्क यह है कि जुमा का खुतबा नमाज़ से पहले है और ईदैन का खुतबा नमाज़ के बाद और तीसरा फर्क यह है की ईदैन मे अज़ान व इक़ामत नहीं है सिर्फ दो बार "अस्सलातु जामिअह" कहने की इजाज़त है।*_

_*❓सवाल :- ईद व बक़रईद की नमाज़ का वक़्त कब से कब तक है।*_

_*✍🏻जवाब :- ईद व बक़रईद की नमाज़ का वक़्त एक नेज़ा आफताब (सूरज) बुलन्द होने के बाद से जवाल के पहले तक है।*_

_*❓सवाल : - ईद की नमाज़ पढ़ने का तरीका क्या है ।*_

_*✍🏻जवाब : - पहले इस तरह नीयत करे । नीयत की मैंने दो रक्अत नमाज़ वाजिब ईदुलफ़ित्र या ईदुल अज़हा की छ : तकबीरों के साथ अल्लाह तआला के लिए ( मुक़तदी इतना और कहे पीछे इस इमाम के ) मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ के फिर कानों तक हाथ उठाये और अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बांध ले फिर सना पढ़े फिर कानों तक हाथ ले जाए और अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे । फिर हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे फिर तीसरी बार हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बांध ले ।*_

 _*इसके बाद इमाम आहिस्ता अऊज़ बिल्लाह व बिसमिल्लाह पढ़कर बुलन्द आवाज़ से अलहम्दु के साथ कोई सूरत पढ़े फिर रुकू और सजदे से फ़ारिग होकर दूसरी रक्अत में पहले अलहम्दु के साथ कोई सूरत पढ़े फिर तीन बार कानों तक हाथ ले जाए और हर बार अल्लाहु अकबर कहे और किसी मर्तबा हाथ न बांधे और चौथी बार बगैर हाथ उठाये अल्लाहु अकबर कहता हुआ रुकू में जाए और बाकी नमाज़ दूसरी नमाज़ों की तरह पूरी करे । सलाम फेरने के बाद दो खुतबे इमाम पढ़े फिर दुआ मागे खुतबये ऊला ( पहला खुतबा ) शुरू करने से पहले इमाम मिमबर पर खड़ा होकर 5 बार आहिस्ता अल्लाहु अकबर कहे कि यही सुन्नत है ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 102/103*_

_*📍 बाकि अगले पोस्ट में।*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 48)*_
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                                 *﷽*

_*💫जुमा का बयान*_

_*❓सवाल : - जुमा जाइज़ होने की दूसरी शर्त क्या हैं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - दूसरी शर्त यह है कि बादशाह या उसका नायब जुमा कायम करे । और अगर इस्लामी हुकूमत न हो तो सबसे बड़ा सुन्नी सही अकीदा रखने वाला आलिम काइम करे कि बगैर उसाकी इजाज़त के जुमा नहीं कायम हो सकता । और अगर यह भी न हो तो आम लोग जिस को इमाम बनाएं वह कायम करे ।*_

_*❓सवाल : - जुमा जाइज़ होने की तीसरी और चौथी शर्त क्या है ।*_

_*✍🏻जवाब : - तीसरी शर्त जुहर के वक़्त का होना है इसलिए वक़्त से पहले या बाद में पढ़ी न हुई या दरमियाने नमाज़ में अस्र का वक़्त आ गया जुमा बातिल हो गया जुहर की क़ज़ा पढ़े । और चौथी शर्त यह है कि जुहर के वक़्त में नमाज़ से पहले खुतबा हो जाये।*_

 _*❓सवाल : - जुमा के खुतबा में कितनी बातें सुन्नत हैं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - उन्नीस ( 19 ) बातें सुन्नत हैं खुतबा पढ़ने वाले का पाक होना , खड़े होकर खुतबा पढ़ना , खुतबा से पहले खुतबा पढ़ने वाले का बैठना खुतबा पढ़ने वाले का मिमबर पर होना , और सुनने वालों की तरफ़ मुंह और किबला की तरफ़ पीठ होना , हाज़िर रहने वालों का खुतबा पढ़ने वाले की तरफ़ मुतवज्जेह होना , खुतबा से पहले अऊजु बिल्ला आहिस्ता पढ़ना , इतनी बुलन्द आवाज़ से खुतबा पढ़ना कि लोग सुनें । लफ़्ज़ अलहम्दु से शुरू करना , अल्लाह तआला की सना करना , अल्लाह तआला की वहदानीयत ( इकताई ) और हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की रिसालत की गवाही देना , हुजूर पर दुरूद भेजना , कम से कम एक आयत की तिलावत करना , पहले खुतबा में वाज व नसीहत होना , दूसरे में हम्द व सना , शहादत और दुरुद का इआदा करना , दूसरे में मुसलमानों के लिए दुआ करना , दोनों खुतबों का हल्का होना , और दोनों खुतबों के बीच तीन आयत की मिकदार बैठना ।*_

 _*❓सवाल : - उर्दू में खुतबा पढ़ना कैसा है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अरबी के अलावा किसी दूसरी जबान में पूरा खुतबा पढ़ना या अरबी के साथ किसी दूसरी ज़बान को मिलाना दोनों बातें सुन्नते मुतावारिसा के खिलाफ़ और मकरूह हैं ।*_

 _*❓सवाल : - खुतबा की अज़ान इमाम के सामने मस्जिद के अन्दर पढ़ना सुन्नत है या बाहर ।*_

 _*✍🏻जवाब : - खुतबा की अज़ान इमाम के समाने मस्जिद के बाहर पढ़ना सुन्नत है कि हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम और सहाबयकिराम के जमाना में खुतबा पढ़ने वाले के सामने मस्जिद के दरवाज़ा ही पर हुआ करती थी जैसा कि हदीस की मशहूर किताब अबूदाऊद जिल्द अव्वल सफा 162 में है कि हज़रते साइब यजीद रदीयाल्लाहु तआला अनहु से रिवायत है उन्होंने फ़रमाया कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जुमा के रोज़ मिमबर पर तशरीफ़ रखते तो हुजूर के सामने मस्जिद के दरवाजे पर अज़ान होती और ऐसा ही हज़रते अबू बक्र उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा के ज़माने में ।*_

 _*💫इसी लिए फ़तावा काज़ी खां , आलम गीरी , बहरुर्राइक और फ़तहु - ल क़दीर वगैरा में मस्जिद के अन्दर अज़ान देने को मना फ़रमाया और तहतावी अलामराक़िल फलाह ने मकरूह लिखा ।*_

 _*❓सवाल : - जुमा जाइज़ होने की पांचवी और छठी शर्त क्या है ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - पांचवी शर्त जमाअत का होना है जिसके लिए इमाम के अलावा कम से कम तीन मर्द का होना जुरूरी है । और छठी शर्त इज़्नेआम है इसका मतलब यह है कि मस्जिद का दरवाज़ा खोल दिया जाए ताकि जिस मुसलमान का जी चाहे आये किसी की रोक टोक न हो ।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 99/100/101/102*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 47)*_
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                                 *﷽*

_*💫जुमा का बयान*_

 _*❓सवाल : - जुमा की नमाज़ फर्ज है या वाजिब ।*_

_*✍🏻जवाब : - जुमा की नमाज़ फ़र्ज़ है और उसकी फ़र्जीयत जुहर से ज़्यादा मुअक्कद है ।*_

_*❓सवाल : - जुमा फर्ज होने की कितनी शरतें हैं ?*_

 _*✍🏻जवाब : - जुमा फर्ज होने को निम्नलिखित ग्यारह ( 11 ) शरते हैं।*_

 _*( 1 - 2 ) शहर में मुकीम और आज़ाद होना इसलिए मुसाफ़िर और गुलाम पर जुमा फर्ज नहीं ।*_

 _*( 3 ) सेहत यानी ऐसे मरीज़ पर जुमा फर्ज नहीं जो मस्जिद तक न जा सके ।*_

 _*( 4 - 5 - 6 ) मर्द और आकिल बालिग होना यानी औरत , पागल , और नाबालिग पर जुमा फर्ज नहीं ।*_

 _*( 7 - 8 ) अंखियारा होना और चलने पर कादिर होना इसलिए अंधे , लुंजे , और फालिज वाले पर कि जो मस्जिद तक न जा सकता हो जुमा फ़र्ज़ नहीं ।*_

 _*( 9 ) कैद में न होना मगर जबकि किसी ( दैन ) क़र्ज़ की वजह से कैद किया गया हो और अदा करने पर कादिर हो तो फ़र्ज़ है ।*_

_*( 10 ) हाकिम या चोर वगैरा किसी ज़ालिम का ख़ौफ़ न होना ।*_

_*( 11 ) बारिश या आंधी वगैरा का इस कदर न होना कि जिससे नुकसान का क़वी अदेशा ( सख़्त ख़तरा ) न हो ।*_

 _*❓सवाल : - जिन लोगों पर जुमा फ़र्ज़ नहीं है अगर वह लोग जुमा में शरीक हो जाएं तो उनकी नमाज़ हो जाएगी या नहीं ।*_

_*✍🏻जवाब : - हो जाएगी यानी जुहर की नमाज़ उनके ज़िम्मे से उतर जाएगी ।*_

_*❓सवाल : - जुमा जाइज़ होने के लिए कितनी शरते हैं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - जुमा जाइज़ होने के लिए छ : ( 6 ) शरतें हैं कि उनमें से अगर एक भी नहीं पाई गई तो जुमा होगा ही नहीं ।*_

 _*❓सवाल : - जुमा जाइज़ होने की पहली शर्त क्या है ।*_

_*✍🏻जवाब : - जुमा जाइज़ होने की पहली शर्त मिस्र या फ़नाये मिस्र होना है ।*_

_*❓सवाल : - मिस्र और फ़नाये मिस्र किसे कहते हैं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - मिस्र वह जगह है कि जिसमें कई कूचे ( गली ) और बाज़ार हों और वह ज़िला या तहसील हो कि उसके मुतअल्लिक देहात गिने जाते हों । और मिस्र के आस पास की जगह जो मिस्र की मसलहतों के लिए हो उसे फ़नाए मिस्र कहते हैं जैसे स्टेशन कबरस्तान वगैरा ।*_

_*❓सवाल : - क्या गांव में जुमा की नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है ।*_

_*✍🏻जवाब : - नहीं । गांव में जुमा की नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं लेकिन जहां कायम हो बन्द न किया जाए कि अवाम जिस तरह भी अल्लाह व रसूल का नाम ले गनीमत्त है ।*_

 _*📕( फ़तावा रज़वीया )*_

_*❓सवाल : - गांव में जुमा की नमाज़ पढ़ने से उस दिन की जुहर नमाज़ साक़ित होती है या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - नहीं । गांव में जुमा की नमाज़ पढ़ने से उस दिन की  जुहर की नमाज़ नहीं साक़ित होती ।*_

 _*❓सवाल : - कुछ लोग गांव में जुमा पढ़ने के बाद चार रक्अत इहतियातु ज्जुहर पढ़ते हैं क्या यह सही है ।*_

_*✍🏻जवाब : - नहीं बल्कि गांव में इस के बजाय चार रक्अत जुहर फ़र्ज़ पढ़ना जरूरी है अगर नहीं पढ़ेगा तो गुनाहगार होगा ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 97/98/99*_

_*📍 बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 46)*_
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                                 *﷽*

_*💫मुसाफिर की नमाज़ का बयान*_

 _*❓सवाल : - मुसाफिर किसे कहते हैं ?*_

_*✍🏻जवाब : - शरीअत में मुसाफिर वह शख्स है जो तीन रोज़ की राह जाने के इरादा से बस्ती ( अपने रहने के स्थान ) से बाहर हुआ ।*_

 _*❓सवाल : - मील के हिसाब से तीन रोज़ की राह की मिकदार कितनी है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - खुश्की में तीन रोज़ के राह की मिकदार 57 3 / 8 मील है ( यानी तकरीबन 92 किलो मीटर )*_ 

_*❓सवाल : - अगर कोई शख्स मोटर , रेलगाड़ी या हवाई जहाज़ वगैरा से तीन दिन की राह थोड़े वक़्त में ले कर ले तो मुसाफ़िर होगा या नहीं ।*_

_*✍🏻जवाब : - मुसाफिर हो जाएगा ख़्वाह कितनी ही जल्दी तैय करे ।*_

 _*❓सवाल : - मुसाफ़िर पर नमाज के बारे में क्या हुक्म है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - मुसाफ़िर पर वाजिब है कि कस्र करे यानी जुहर , अस्र और इशा चार रक्अत वाली फर्ज़ नमाज़ को दो रक्अत पढ़े कि उसके हक़ में दो ही रक्अत पूरी नमाज़ है ।*_

 _*❓सवाल : - अगर किसी ने क़सदन ( जानबूझ कर ) चार ही पढ़ी तो क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - अगर जान बूझ कर चार पढ़ी और दोनों कादा ( बैठक ) किया तो फ़र्ज़ अदा हो गया और आखरी दो रक्अतें नफ्ल हो गई मगर गुनाहगार व मुस्तक्केिनार हुआ तौबा करे और दो रक्अत पर कादा न किया तो फ़र्ज़ अदा न हुआ ।*_

_*❓सवाल : - फ़ज़्र , मगरिब और वित्र में कस्र है कि नहीं है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - नहीं फ़ज़्र , मगरिब , और वित्र में क़स्र नहीं है ।*_

 _*❓सवाल : - सुन्नतों में क़स्र है या नहीं । जवाब : - सुन्नतों में क़स्र नहीं । अगर मौका हो तो पूरी पढ़े वर्ना मुआफ हैं ।*_



_*❓सवाल : - मुसाफ़िर किस वक़्त से नमाज़ में कस्र शुरू करे ।*_

_*✍🏻जवाब : - मुसाफिर जब बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए तो उस वक़्त से नमाज़ में कस्र शुरू करे ।*_ 

_*❓सवाल : - बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर कस्र करेगा या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर आबादी से बाहर हों और तीन दिन की राह तक सफर का इरादा भी हो तो बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन पर कस्र करेगा वर्ना नहीं ।*_ 

_*❓सवाल : - अगर दो ढाई दिन की राह के इरादा से निकला वहां पहुंच कर फिर दूसरी जगह का इरादा हुआ वह भी तीन दिन से कम का रास्ता है तो वह श्राद्ध मुसाफिर होगा या नहीं ।*_

_*✍🏻जवाब : - वह शख्स शरअन मुसाफ़िर न होगा उस वक़्त तक कि जहां से चले वहां से तीन दिन की राह का इकट्ठे इरादा न करे यानी अगर दो दो ढाई ढाई दिन की राह के इरादा से चलता रहा तो इसी तरह अगर सारी दुनियां घूम आए मुसाफिर न होगा ।*_

 _*❓सवाल : - मुसाफिर कब तक क़स्र करता रहे ।*_

_*✍🏻जवाब : - मुसाफिर जब तक किसी जगह पन्द्रह ( 15 ) दिन या इससे ज़्यादा ठहरने की नीयत न करे या अपनी बस्ती में न पहुंच जाए कस्र करता रहे ।*_

 _*❓सवाल : - मुसाफिर अगर मुकीम के पीछे नमाज़ पढ़े तो क्या करे ।*_

 _*✍🏻जवाब : - मुसाफिर अगर मुक़ीम के पीछे नमाज़ पढ़े तो पूरी पढ़े कस्र न करे ।*_

 _*❓सवाल : - मुक़ीम अगर मुसाफ़िर के पीछे नमाज़ पढ़े तो क्या करे ।*_

_*✍🏻जवाब : - मुकीम अगर मुसाफ़िर के पीछे पढ़े तो इमाम के सलाम फेर देने के बाद अपनी बाकी दो रक्अतें पढ़े और उन रक्अतों में किराअत बिल्कुल न करे बल्कि सूरये फ़ातिहा पढ़ने की मिक़दार चुप चाप खड़ा रहे ।*_




_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 95/96/97*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 45)*_
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                                 *﷽*

_*💫सजदए तिलावत का बयान*_

_*❓सवाल : - सजदए तिलावत किसे कहते हैं ।*_

_*✍🏻जवाब : - कुरआन में चौदा मुक़ामात ( जगह ) ऐसे हैं कि जिन के पढ़ने या सुनने से सजदा करना वाजिब होता है उसे सजदए तिलावत कहते हैं ।*_

_*❓सवाल : - सजदए तिलावत का तरीका है ।*_

_*✍🏻जवाब : - सजदए तिलावत का मसनून तरीका यह है की खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदा में जाए और कम से कम तीन बार सुबहान रब्बियल अअ़ला कहे फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ खड़ा हो जाए बस ।नसमें अल्लाहु अकबर कहते हुए न हाथ उठाना है और न इसमें तशहहुद है और न सलाम ।*_

 _*❓सवाल : - अगर बैठकर सजदा किया तो सजदा अदा होगा या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अदा हो जाएगा मगर मसनून यही है कि खड़ा हो कर सजदा में जाए और सजदा के बाद फिर खड़ा हो ।*_

 _*❓सवाल : - सजदए तिलावत के शाराइत क्या हैं ।*_
 
_*✍🏻जवाब : - सजदए तिलावत के लिए तहरीमा के अलावा वह तमाम शर्तें हैं जो नमाज़ के लिए हैं मसलन ( जैसे ) तहारत , सत्रे औरत , इसतिकबाले किबला और नीयत वगैरा ।*_

 _*❓सवाल : - सजदए तिलावत की नीयत किस तरह की जाती है ।*_

_*✍🏻जवाब : - नीयत की मैंने सजदए तिलावत की अल्लाह तआला के वास्ते मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ़ के अल्लाहु अकबर ।*_

 _*❓सवाल : - उर्दू जुबाना में आयते सदजा का तर्जुमा पढ़ा तो सजदा वाजिब होगा या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - उर्दू जुबान या किसी जुबान में आयते सजदा का तर्जुमा पढ़ने और सुनने से भी सजदा वाजिब होता है ।*_

 _*❓सवाल : - क्या आयते सजदा पढ़ने के बाद फ़ौरन सजदा करना  वाजिब होता है ।*_

_*✍🏻जवाब : - अगर आयते सजदा नमाज़ के बाहर पढ़ी है तो फौरन सजदा कर लेना वाजिब नहीं हां बेहतर है कि फौरन कर ले और वजू हो तो ताखीर मकरूह तनजीही है ।*_

 _*❓सवाल : - अगर नमाज़ में आयते सजदा पढ़ी तो क्या हुक्म है ।*_

_*जवाब : - अगर नमाज़ में आयते सजदा पढ़ी तो फौरन सजदा कर लेना वाजिब है । तीन आयत से ज्यादा की ताखीर करेगा तो गुनाहगार होगा । और अगर फौरन नमाज़ का सजदा कर लिया यानी आयते सजदा के बाद तीन आयत से ज्यादा न पढ़ा और रुकू करके सजदा कर लिया तो अगरचे सजदए तिलावत की नीयत न हो सजदा अदा हो जाएगा ।*_

_*📕( बहारे शरीअत )*_ 

_*❓सवाल : - एक मज्लिस में सजदा की एक आयत को कई बार पढ़ा तो एक सजदा वाजिब होगा या कई सजदा ।*_

 _*✍🏻जवाब : - एक मज्लिस में सजदा की एक आयत को कई बार - बार पढ़ने या सुनने से एक ही सजदा वाजिब होता है ।*_

 _*❓सवाल : - मज्लिस में आयत पढ़ी या सुनी और सजदा कर लिया फिर उसी मज्लिस  में वही आयत पढ़ी या सुनी तो दूसरा सजदा वाजिब होगा या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - दूसरा सजदा नहीं वाजिब होगा वही पहला सजदा काफ़ी है ।*_ 

_*❓सवाल : - मज्लिस बदलने और न बदलने की सूरतें क्या हैं ?*_

_*जवाब - दो एक लुकमा खाना , दो एक घूंट पीना , खड़ा हो जाना , दो एक कदम चलना , सलाम का जवाब देना , दो एक बात करना , और मस्जिद या मकान के एक गोशा से दूसरे गोशा की तरफ चलना इन तमाम सूरतों में मज्लिस न बदलेगी । हां अगर मकान बड़ा है जैसे शाही महल तो ऐसे मकान में एक गोशा से दूसरे में जाने से बदल जाएगी , और तीन लुकमा खाना , तीन घूंट पीना , तीन कलिमे बोलना , तीन क़दम मैदान में चलना और निकाह या खरीदो फरोख्त करना इन तमाम सूरतों में मज्लिस बदल जाएगी ।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 92/93/94*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 44)*_
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                                 *﷽*
_*💫बीमार की नमाज़ का बयान💫*_

_*❔सवाल : - अगर बीमारी के सबब खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता है तो क्या करे ?*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि मर्ज बढ़ जाएगा या देर में अच्छा होगा या चक्कर आता है या खड़े होकर पढ़ने से पेशाब का क़तरा आएगा या बहुत शदीद दर्द नाक़ाबिले बर्दाश्त हो जाएगा तो इन सब सूरतों में बैठ कर नमाज़ पढ़े ।*_

 _*❔सवाल : - अगर किसी चीज़ की टेक लगाकर खड़ाहो सकता है तो इस सूरत में क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - अगर खादिम ( नौकर ) या लाठी या दीवार वगैरा पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर पढ़े । इस सूरत में अगर बैठ कर नमाज़ पढ़ेगा तो नहीं होगी ।*_

_*❔सवाल : - अगर कुछ देर खड़ा हो सकता है तो उसके लिए क्या हुक्म है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर कुछ देर भी खड़ा हो सकता है अगरचे इतना ही कि खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कहले तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर उतना कहे फिर बैठे वर्ना नमाज़ नहीं होगी ।*_

 _*❔सवाल : - बीमारी के सबब अगर रुकू सजदा भी न कर सकता हो तो क्या करे ।*_

 _*✍🏻जवाब : - ऐसी सूरत में रुकू सजदा इशारा से करे मगर रुकू के इशारा से सजदा के इशारा में सर को ज्यादा झुकाए ।*_

 _*❔सवाल : - अगर बैठ कर भी नमाज़ न पढ़ सकता हो तो क्या करे ?*_

_*✍🏻जवाब : - ऐसी सूरत में लेट कर नमाज़ पढ़े इस तरह कि चित लेट कर किबला की तरफ़ पांव करे मगर पांव न फैलाए बल्कि घुटने खड़े रखे और सर के नीचे तकिया वगैरा रख कर जरा ऊँचा करले और रुकू सजदा सर झुका कर इशरा से करे यह सूरत अफ़ज़ल है । और यह भी जाइज़ है कि दाहिने या बाए करवट लेटकर मुंह किबला की तरफ़ करे ।*_

 _*❔सवाल : - अगर सर से इशारा भी न हो सके तो क्या करे ?*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर सर से भी इशारान हो सके तो नमाज़ साक़ित हो जाती है फिर अगर नमाज़ के छ : ( 6 ) वक़्त इसी हालत में गुज़र जाएं तो कजा भी साक़ित हो जाती है ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 90/91/92*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 43)*_
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                                 *﷽*

_*📍सजदये सह व का बयान*_

_*❓सवाल : - रुकू , सजदा या कादा में भूल कर कुरआन पढ़ दिया तो क्या हुक्म है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - इस सूरत में भी सजदये सह व् वाजिब है ।*_

 _*❓सवाल : - अगर फ़र्ज़ का कादए अखीरा ( पिछली बैठक ) नहीं किया और भूल कर खड़ा हो गया तो क्या करे ।*_

 _*❓जवाब : - जब तक उस रक्अत का सजदा न किया हो लौट आए और अत्तहीयात पढ़ कर दाहिनी तरफ़ सलाम फेरे और सजदये सह व् करे । और अगर उस रक्अत का सजदा कर लिया तो सजदा से सर उठाते ही वह फ़र्ज़ नफ्ल हो गया इसलिए अगर चाहे तो अलावा मगरिब के दूसरी नमाज़ों में एक रक्अत और मिलाए ताकि रक्अत ताक़ न रहे ।*_

_*❓सवाल : - अगर सुन्नत और नफ्ल का कादा ( बैठक ) न किया और भूल कर खड़ा हो गया तो क्या करे ।*_

_*✍🏻जवाब : - सुन्नत और नफ्ल का हर कादा बैठक ) कादए अखीरा है यानी फर्ज है । अगर कादा न किया और भूल कर खड़ा हो गया तो जब तक उस रक्अत का सजदा न करे लौट आए और सजदये सह करे ।*_

 _*❓सवाल : - अगर कादए अखीरा ( पिछली बैठक ) में अत्तहीयातु व रसूलुहु तक पढ़ने के बाद भूल कर खड़ा हो गया तो क्या करे ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - अगर बक़द्रे तशहहुद कादए अखीरा करने के बाद भूल कर खड़ा हो गया तो जब तक उस रक्अत का सजदा न किया हो लौट आए और दोबारा अत्तहीयात पढ़े बगैर सजदए सह् व् करे ! फिर तशहहुद वगैरा पढ़ कर सलाम फेर दे ।*_

_*❓सवाल : - कादयेऊला ( पहली बैठक ) में भूल कर दूरूद शरीफ़ भी पढ़ लिया तो क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - अगर “ अल्लाहुम्म सल्लि अलामुहम्मदिन " या " अल्लाहुम्म सल्लि अला सैयिदेना " तक पढ़ा या इस से ज़्यादा पढ़ा तो सजदए सह व् वाजिब है और अगर उससे कम पढ़ा तो नहीं । मगर यह हुक्म सिर्फ़ फ़र्ज , वित्र और जुहर व जुमा की पहली चार रक्अत वाली सुन्न्तों के लिए है रहे दीगर सुनन व नवाफिल तो उनके कादएऊला में भी दुरूद शरीफ पढ़ने का हुक्म ।*_

 _*❓सवाल : - जहरी नमाज़ में भूलकर आहिस्ता पढ़ दिया या सिर्री नामाज़ में जहर से पढ़ दिया तो क्या हुक्म है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर जहरी ( आवाज़ से पढ़ने वाली ) नमाज़ में इमाम ने भूल कर कम से कम एक आयत आहिस्ता पढ़ दी या सिरी यानी जिसमें किराअत आहिस्ता पढ़ी जाती है ऐसी नमाज़ में जह र से पढ़ दिया तो सजदए सह व् वाजिब है और अगर एक कलिमा पढ़ा तो मुआफ़ है और मुनफ़रिद ( अकेला नमाज़ पढ़ने वाला ने सिर्री नमाज़ में एक आयत जह र से पढ़ी तो सजदए सह व वाजिब है और जह र में आहिस्ता पढ़ी तो नहीं ।*_

_*❓सवाल : - किराअत वगैरा किसी मौका पर ठहर कर सोचने लगा तो क्या हुक्म है ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - अगर एक रुक्न यानी तीन बार सुब्हानल्लाह कहने को मिकदार वक्फा ( ठहरना ) हुआ तो सजदए सह व वाजिब ।*_

_*❓सवाल : - जिस पर सजदए सह् व होना वाजिब था अगर सह व  होना याद न था और नमाज़ खत्म करने की नीयत से सलाम फेर दिया तो क्या करे ।*_

 _*✍🏻जवाब : - अगर सह व होना याद न था और सलाम फेर दिया तो अभी नमाज़ से बाहर नहीं हुआ इसलिए जब तक कलाम वगैरा कोई फेल ( कार्य ) मनाफीए नमाज़ ( जो नमाज़ को फ़ासिद करे ) न किया हो सजदा करे और फिर तशह हुद वगैरा पढ़ कर सलाम फेर दे ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 88/89/90*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 42)*_
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                                 *﷽*

_*📍सजदये सह व का बयान*_

 _*❓सवाल : - सजदये सह व किसे कहते हैं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - सह व के माना हैं भूलने के । कभी नमाज़ में भूल से कोई खास खराबी पैदा हो जाती है उस खराबी को दूर करने के लिए कादए अख़ीरा में दो सजदे किए जाते हैं इनको सजदये सह व कहते हैं ।*_

 _*❓सवाल : - सजदये सह व का तरीका क्या है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - सजदये सह व का तरीका यह है कि आखिरी कादा ( बैठक ) में अत्तहीयतु व रसूलुहू तक पढ़ने के बाद सिर्फ दाहिनी तरफ़ सलाम फेर कर दो सजदे करे फिर तशहहुद वगैरा पढ़ कर सलाम फेर दे ।*_

 _*❓सवाल : - किन बातों से सजदये सह व् वाजिब होता है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - जो बातें कि नमाज़ में वाजिब हैं उनमें से किसी एक के भूल कर छूट जाने से सजदये सह व् वाजिब होता है । जैसे फ़र्ज़ की पहली या दूसरी रक्अत में अलहम्दु या सूरत पढ़ना भूल गया या सुन्नत और नफ़्ल की किसी रक्अत में अलहम्दु या सूरत पढ़ना भूल गया या अलहम्दु से पहले सूरत पढ़ दी तो इन सूरतों में सजदये सह व् करना वाजिब होता है ।*_

 _*❓सवाल : - फ़र्ज़ और सुन्नत के छूट जाने से सजदये सह व् वाजिब होता है या नहीं ।*_

_*✍🏻जवाब : - फ़र्ज़ छूट जाने से नमाज़ फ़ासिद हो जाती है । सजदये सह व् से उसकी तलाफ़ी नहीं हो सकती इसलिए फिर से पढ़ना पड़ेगा । और सुन्नत व मुसतहब जैसे तऔउज़ तसमिया , सना आमीन और तकबीरात इन्तिकाल के छूट जाने से सजदये सह व वाजिब नहीं होता बल्कि नमाज़ हो जाती है मगर दोबारा पढ़ना मुसतहब है ।*_

 _*❓सवाल : - किसी वाजिब को क़सदन ( जान बूझकर ) छोड़ दिया तो सजदये सह व से तलाफ़ी होगी या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - किसी वाजिब को क़सदन ( जान बूझकर ) छोड़ दिया तो सजदये सह व् से उस नुक्सान की तलाफ़ी नहीं होगी बल्कि नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब होगा । इसी तरह अगर भूलकर किसी वाजिब को छोड़ दिया और सजदये सह व् न किया जब भी नमाज़ का दोबारा पढ़ना वाजिब है ।*_

_*❓सवाल : - एक नमाज़ में कई वाजिब छूट गए तो क्या हुक्म है ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - इस सूरत में भी सह् व् के वही दो सजदे काफ़ी हैं ।*_

_*❓सवाल : - फ़र्ज़ या वित्र में कादये ऊला ( पहली बैठक ) भूल कर तीसरी रक्अत के लिए खड़ा हो रहा था कि याद आ गया तो इस सूरत में क्या करे ।*_

_*✍🏻जवाब : - अगर अभी सीधा नहीं खड़ा हुआ है तो बैठ जाए और सजदये सह् व् न करे । और अगर सीधा खड़ा हो गया तो न लौटे और आखिर में सजदये सह व् करे और अगर लौटा तो इस सूरत में भी सजदये सह व वाजिब होता है ।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 86/87*_

_*📍 बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 41)*_
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                                 *﷽*

_*-क़ज़ा नमाज़ का बयान-*_

_*❓सवाल : - अगर पांच या इससे कम नमाजै कज़ा हों तो उन्हें कब पढ़ना चाहिए ।*_

 _*✍🏻जवाब . - जिस शख्स की पांच या उससे कम नमा कजा हों वह साहबे तरतीब है । उस पर लाज़िम है कि वक़्ती नमाज़ से पहले क़ज़ा नमाजो बित्ततरतीब पढ़े अगर वक़्त में गुंजाइश होते हुए वस्ती नमाज़ पहले पढ़ली तो न हुई इस मसला की मज़ीद तफ़सील बहारे शरीअत में देखनी चाहिए ।*_

_*❓सवाल . - अगर कोई नमाज़ क़ज़ा हो जाए जैसे फ़ज़्र की नमाज़ तो नीयत किस तरह करनी चाहिए ।*_

_*✍🏻जवाब : - जिस रोज़ और जिस वक़्त की नमाज़ क़ज़ा हो उस रोज़ और उस वक़्त की नीयत क़ज़ा में ज़रूरी है । जैसे अगर जुमा के रोज़ फ़ज़्र की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो इस तरह नीयत करे । नीयत की मैने दो रक्अत नमाज़ क़ज़ा जुमा की फर्ज फज्र की अल्लाह त़आला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ के अल्लाहु अकबर इसी पर दुसरी कज़ा नामाजों की नीयतो को समझा लेना चाहिए।*_
 
_*❓सवाल : -  अगर महीना दो महीना या दो साल की नमाज़ कजा हो जाए तो नीयत किस तरह करनी चाहिए ।*_

_*✍🏻जवाब : - ऐसी सूरत में जो नमाज़ जैसे जुहर की कज़ा पढ़नी है तो इस तरह नीयत करे । नीयत की मैंने चार रक्अत नमाज़ कज़ा जो मेरे ज़िम्मे बाकी है उनमे से पहले जुहर फर्ज की अल्लाह ताआला के लिए मुह मेरा तरफ़ काबा शरीफ के अल्लाहु अकबर । और मगरिब की पढ़नी हो तो यूं नीयत करे नीयत की मैंने तीन रकअत नमाज़ क़ज़ा जो मेरे ज़िम्मे बाकी है उनमें से पहले मगरिब फ़र्ज़ की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ़ के अल्लाहु अकबर । इसी तरीके पर दूसरी कज़ा नमाज़ों की नीयतों को समझना चाहिए ।*_

_*❓सवाल : - क्या क़ज़ा नमाज़ों की रक्अतें भी खाली और भरी यानी बगैर सूरत और सूरत के साथ पढ़ी जाती है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - हां जो रकअतें अदा में सूरत के साथ पढ़ी जाती हैं वह क़ज़ा में भी सूरत के साथ पढ़ी जाती हैं और जो रक्अते अदा में बगैर सूरत के पढ़ी जाती है वह कजा में भी बगैर सूरत के पढ़ी जाती हैं ।*_

_*❓सवाल : - बाज़ लोग शबे कद्र या रमजान के आखिरी जुमा को कजाए उम्री के नाम से दो या चार रक्अत पढ़ते हैं और यह समझते हैं कि उम्र भर की कजा इसी एक नमाज़ से अदा हो गई तो उसके लिए क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - यह ख्याल बातिल है । तावक़्ते कि हर एक नमाज़ की कज़ा अलग अलग न पढ़ेंगे तो छुटकारा न पाएंगे ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 84/85*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 40)*_
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                                 *﷽*

_*-क़ज़ा नमाज़ का बयान-*_

 _*सवाल : - अदा और कज़ा किसे कहते हैं ।*_

_*✍🏻जवाब : - किसी इबादत को उसके वक़्ते मुकर्ररह पर करने को अदा करते हैं और वक़्त गुज़र जाने के बाद अमल करने को कज़ा कहते हैं ।*_

_*❓सवाल : - किन नमाज़ों की कज़ा ज़रूरी है ।*_

_*✍🏻जवाब : - फर्ज नमाज़ों की कज़ा फ़र्ज़ है , वित्र की कज़ा वाजिब है और फ़ज्र की सुन्नत अगर फर्ज के साथ क़ज़ा हो और ज़वाल से पहले पढ़े तो फर्ज के साथ सुन्नत भी पढ़े और जवाल के बाद पढ़े तो सुन्नत की क़ज़ा नहीं और जुहर वा जुमा के पहले की सुन्नतें कज़ा हो गई और फ़र्ज़ पढ़ली अगर वक़्त खत्म हो गया हो तोइन सुन्नतों की कज़ा नहीं और अगर वक़्त बाक़ी है तो पढ़ें और अफ़ज़ल यह है कि पिछली सुन्नतें पढ़ने के बाद उनको पढ़े ।*_

_*❓सवाल : - छूटी हुई नमाज़ किस वक़्त पढ़नी चाहिए ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - छ : ( 6 ) या उससे ज्यादा छूटी हुई नमाजें पढ़ने के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं है हां जल्द पढ़ना चाहिए ताखीर देरी ) नहीं करना चाहिए और उम्र में जब भी पढ़ेगा छुटकारा पा जायेगा लेकिन सूरज निकलने सूरज डूबने और ज़वाल के वक्त क़ज़ा नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं ।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 83/84*_
 
_*📍बाक़ी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 39)*_
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                                 *﷽*

_*💫तरावीह का बयान*_ 

_*❓सवाल : - तरावीह सुन्नत है या नफ्ल ।*_

 _*✍🏻जवाब : - तरीवीह मर्द व औरत सब के लिए सुन्नते मुअक्किदा है । उसका छोड़ना जाइज़ नहीं ।*_

_*❓सवाल : - तरावीह की कितनी रक्अतें हैं ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - तरावीह की बीस ( 20 ) रक्अते हैं ।*_

 _*❓सवाल : - बीस रक्अतें तरावीह में क्या हिकमतें है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - बीस रक्अत तरावीह में हिकमत यह है कि सुन्नतों से फ़राइज़ और वाजिबात की तकमील होती है और सुबह से शाम तक फ़र्ज व वाजिब कुल बीस रक्अतें हैं तो मुनासबि हुआ कि तरावीह भी बीस ( 20 ) रक्अतें हो ताकि मुकम्मल करने वाली सुन्नतों की रक्अत और जिनकी तकमील होती है यानी फ़र्ज़ व वाजिब की रक्अत की तादाद बराबर हो जाए ।*_ 

_*❓सवाल : - तरावीह की बीस रक्अतें किस तरह पढ़ी जाएं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - बीस रक्अतें दस सलाम से पढ़ी जाएं यानी हर दो रक्अत पर सलाम फेरे और हर तरावीह यानी चार रक्अत पर इतनी देर बैठना मुसतहब है कि जितनी देर में चार रक्अतें पढ़ी।*_

 _*❓सवाल : - तरावीह की नीयत किस तरह की जाए ।*_

_*✍🏻जवाब : - नीयत की मैंने दो रक्अत नमाज़ तरावीह सुन्नत रसूलुल्लाह की अल्लाह तआला के लिए ( मुक़तदी इतना और कहे पीछे इस इमाम के ) मुंह मेरा तरफ़ काबा शरीफ़ के अल्लाहु अकबर ।*_

 _*❓सवाल : - तरावीह की हालत में चुपका बैठा रहे या कुछ पढ़े ।*_

 _*✍🏻जवाब : - इखतियार है चाहे चुपका बैठा रहे चाहे कालमह या दुरूद शरीफ़ पढ़े और आम तौर से यह दुआ पढ़ी जाती है । " सुबहा न जिलमुल्किवल मलकूति सुबहा न जिला इज्जति वल अजमति वल हैबति वल कुदरति वल किबरियाइ वल जबरूत । सुबहा नलमलिकिल हैयिल्लजी ला यनामु वलायमूत । सुब्बूहुन कुहूसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकति वर्रूह "*_

 _*❓सवाल : - तरावीह जमाअत से पढ़ना कैसा है ।*_

_*✍🏻जवाब : - तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते किफ़ाया है । यानी अगर मस्जिद में तरावीह की जमाअत न हुई तो मुहल्ला के सब लोग गुनाहगार हुए और अगर कुछ लोगों ने मस्जिद में जमाअत से पढ़ ली तो सब लोग छुटकारा पा गए ।*_

_*❓सवाल : - तरावीह में कुरआन मजीद खत्म करना कैसा है ।*_

 _*✍🏻जवाब : - पूरे महीने की तरावीह में एक बार कुरआन मजीद खत्म करना सुन्नते मुअक्कदा है । और दो बार खत्म करना अफ़ज़ल है और तीन बार खत्म करना मजीद ( ज्यादा )  रखत है बशर्ते कि मुक़तदियों को तकलीफ़ न हो मगर एक बार खत्म करने में मुक़तदियों का लिहाज़ नहीं किया जाएगा ।*_

 _*❓सवाल : - बिला उज़्र ( मजबूरी ) बैठ कर तरावीह पढ़ना कैसा है ।*_

_*✍🏻जवाब : - बिला उज्र बैठ कर तरावीह पढ़ना मकरूह है बल्कि बाज़ फुकहाये किराम के नज़दीक तो नमाज़ होगी ही नहीं।*_

 _*📕( बहारे शरीअत )*_

_*❓सवाल : - बाज़ लोग शुरू रक्अत से शरीक नहीं होते बल्कि जब इमाम रुकू में जाने लगता है तो शरीक होते हैं उनके लिए क्या हुक्म है ।*_

_*✍🏻जवाब : - नाजाइज़ है ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए कि इसमे मुनाफ़िक़ों से मुशाबत पाई जाती है।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 80/81/82/83*_

_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 38)*_
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                                 *﷽*

_*सलातुत्तसबीह*_

_*सलातुत्तसबीह में बे इन्तेहा सवाब है । बाज़ मुहक्किीन फ़रमाते हैं कि उसकी बुजुरगी सुनकर तर्क न करेगा मगर दीन में सुस्ती करने वाला हदीस शरीफ में है कि हुजूर सल्ललहु तआला अलैहिवसल्लम ने हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अनहु से फ़रमाया कि ऐ चचा । अगर तुम से हो सके तो सलातुत्तसबीह हर रोज़ एक बार पढ़ो । और अगर रोज़ न हो सके तो हर जुमा को एक बार पढ़ों । और यह भी न हो सके तो हर महीना में एक बार । और यह भी न हो सके तो साल में एक बार और यह भी न हो सके तो उम्र में एक बार । इस नमाज़ की तरकीब सुन ने तिर्मिज़ी में हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक से इस तरह मजकूर है कि।*_

_*तकबीर तहरीमा के बाद सना पढ़े फिर पन्द्रह ( 15 ) बार यह तस्बीह पढ़े । “ सुबहानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वलाइला - ह - इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर ।*_

 _*फिर तऔउज , तसमिया , सूरये फ़ातिहा और सूरत पढ़ कर दस बार ऊपर वाली तस्बीह पढ़े फिर रुकू करे और रुकू में दस बार पढ़े फिर रुकू से सर उठाए और तसमीअ - व तहमीद के बाद दस बार वही तस्बीह पढ़े फिर सजदा को जाए और उसमें दस मरतबा पढ़े फिर सजदा से सर उठाए तो दस बार दस बार पढ़े फिर दूसरे सजदा में जाए तो दस बार पढ़े । इसी तरह चार रक्अत पढ़े और रुकू व सुजूद में सुबहा न रब्बियल अज़ीम और सुबहान रब्बियल अअ़ला कहने के बाद तस्बीहात पढ़े ।*_

_*नमाज़े हाजत*_

_*अबूदाऊद में है हज़रते हुजैफा रज़ियल्लाहु तआला अनहु फ़रमाते हैं कि जब हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम को कोई अहम मुआमिला पेश आता तो आप उसके लिए दो या चार रक्अत नमाज़ पढ़ते । हदीस शरीफ़ में है कि पहली रक्अत में सूरए फ़ातिहा और तीन बार आयतल कुर्सी पढ़े और बाकी तीन रक्अतों में सूरए फ़ातिहा , कुलहुवल्लाहु , कुलअऊजु बिरब्बिल फ़लक़ और कुल अऊजु बिरबिन्नास एक एक बार पढ़े तो यह ऐसी है जैसे शबे कद्र में चार रक्अतें पढ़ी । मशाइख फ़रमाते हैं कि हमने यह नमाज़ पढ़ी और हमारी हाजते ( ज़रूरतें ) पूरी हुई ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 79/80*_

_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_
 
_*📍बाकि अगले पेस्त में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 37)*_
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                                 *﷽
_*तहीयतुलवज़ू*_

 _*💫मुस्लिम शरीफ़ में है कि नबीये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो शख्स वजू करे और अच्छा वजू करे और ज़ाहिर व बातिन से मुतवज्जेह होकर दो रक्अत ( नमाज़ तहीयतुलवजू ) पढ़े उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है ।*_ 

_*नमाजे इशराक़*_

_*💫तिर्मिज़ शरीफ़ में है कि हुजूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि  जो फ़ज़्र की नमाज़ जमाअत से पढ़ कर खुदा का ज़िक्र करता रहे यहां तक कि सूरज बुलन्द हो जाए फिर दो रक्अत ( नमाज़े इशराक़ ) पढ़े तो उसे पूरे हज और उमरा का सवाब मिलेगा ।*_

 _*नमाजे चाश्त*_

_*💫चाश्त की नमाज़ मुसतहब है कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा बारह ( 12 ) रक्अतें हैं तिर्मिज़ी और इब्ने माज़ा में है कि हुजूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया जो चाश्त की दो रक्अतों पर मुहाफ़ज़त करे उसके गुनाह बख्या दिए जाएंगे अगरचे समुन्दर के झाग बराबर हो ।*_

_*नमाजे तहज्जुद*_

 _*💫तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त इशा की नमाज के बाद सो कर उठे उस वक़्त से तुलूये सुबह सादिक़ तक है तहज्जुद की नमाज़ कम से कम दो रक्अत है और हुजूर अलैहिस्सालाम से आठ तक साबित है । हदीस शरीफ़ में इस नमाज़ की बड़ी फजीलत ( बड़ाई ) आई है नसई और इब्ने माजा ने अपनी सुनन में रिवायत की कि रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया जो शख्स रात में बेदार हो ( जागे ) और अपने अहल को जगाए फिर दोनों दो - दो रक्अत पढ़ें तो कसरत से याद करने वालों में लिखे जायेंगे ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 77/78*_

_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_
 
_*📍बाकि अगले पेस्त में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 36)*_
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                                 *﷽*

_*💫सुन्नत और नफ्ल का बयान*_

_*❓सवाल : - कितनी नमाज़े‌ सुन्नते मुअक्कदा हैं।*_

_*✍🏻जवाब : - दो रक्अत फ़ज़्र के फ़र्ज़ से पहले , चार रक्अत जुहर के फ़र्ज़ से पहले और दो रक्अत जुहर फ़र्ज़ के बाद , दो रक्अत मगरिब फ़र्ज के बाद , दो रक्अत इशा फ़र्ज़ के बाद , चार रक्अत जुमा फ़र्ज़ से पहले और चार रक्अत रक्अत जुमा फ़र्ज़ के बाद , इन सुन्नतों को “ सुन्ननतुलहुदा " भी कहा जाता है ।*_

 _*❓सवाल : - कितनी नमाजें सुन्नते गैर मुअक्कदा हैं ।*_

_*✍🏻जवाब : - चार रक्अत अस्र के फ़र्ज़ से पहले , चार रक्अत इशा फ़र्ज़ के पहले , जुहर फ़र्ज़ के बाद दो के बजाय चार इसी तरह इशां फर्ज़ के बाद दो के बजाय चार रक्अत , मगरिब के बाद छ : ( 6 ) रक्अत सलातुल अव्वाबीन , दो रक्अत तहीयतुल मस्जिद , दो रक्अत तहीयतुल वज़ु दो रक्अत नमाजे इशराक़ कम से कम दो रक्अत नमाजे चाश्त और ज्यादा से ज़्यादा बारह ( 12 ) रक्अत , कम से कम दो रक्अत नमाज़े तहज्जुद और ज्यादा से ज्यादा आठ रक्अत , सलातुत्तसबीह , नमाजे इसतिखारा और नमाजे हाजत वगैरा इन सुन्नतों को सुननुज्जवाइद और कभी मुसतहब भी कहते हैं ।*_

_*❓सवाल : - जमाअत खड़ी होने के बाद किसी सुन्नत का शुरू करना जाइज़ है या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - जमाअत खड़ी हो जाने के बाद फज्र की सुन्नत के अलावा किसी सुन्नत का शुरू करना जाइज़ नहीं । अगर यह जाने कि फर्ज की सुन्नत पढ़ने के बाद जमाअत मिल जाएगी अगरचे क़ादा ( बैठक ) ही में शामिल होगा तो सुन्नत पढ़ ले मगर सफ़ ( लाइन ) के बराबर खड़े होकर पढ़ना जाइज़ नहीं बल्कि सफ़ ( लाइन ) से दूर हट कर पढ़े ।*_

 _*❓सवाल : - किन वक़्तों में नफ़्ल नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं ।*_

_*✍🏻जवाब : - तुलू व गुरुब ( निकलना सूरज का और डूबना सूरज का ) और दोपहर इन तीनों वक़्तों में कोई नमाज़ जाइज़ नहीं । न फ़र्ज़ न वाजिब और न नफ्ल । हां अगर उस रोज़ अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी है तो सूरज डूबने के वक़्त पढ़ले । और तुलूए फ़ज़्र से तुलूए आफ़ताब ( सूरज ) के दरमियान सिवाय दो रक्अत सुन्नते फ़ज़्र के तहीयतुल मस्जिद और तहीयतुलवजू वगैरा कोई नफ्ल जाइज़ नहीं और नमाजे अस्र से मगरिब की फ़र्ज़ पढ़ने के दरमियान नफ्ल मना है और खुतबा के वक़्त और और नमाज़े ईदैन से पेश्तर ( पहले ) नफ़्ल मकरूह है । चाहे घर में पढ़े या ईदगाह व मस्जिद में और नमाजे ईंदैन के बाद भी नफ्ल मकरूह है जब कि ईदगाह या मस्जिद में पढ़े घर में पढ़ना मकरूह नहीं।*_

_*❓सवाल : - नफ़्ल नमाज़ बैठ कर पढ़ सकते हैं या नहीं ।*_

 _*✍🏻जवाब : - बैठ कर पढ़ सकते हैं मगर जबकि कुदरत ( ताकत ) हो तो खड़े होकर पढ़ना अफ़ज़ल है ।*_


_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 75/76/77*_

_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_
 
_*📍बाकि अगले पेस्त में*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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    _*📜अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 35)*_
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                                 *﷽*

_*💫वित्र का बयान*_

_*❓सवाल : - वित्र किस तरह पढ़ी जाती है।*_

_*✍🏻जवाब : - नमाजे वित्र भी उसी तरह पढ़ी जाती है जिस तरह और नमाज़ पढ़ी जाती है । लेकिन वित्र की तीसरी रक्अत में अलहम्दु और सूरत पढ़ने के बाद कानों तक दोनों हाथ ले जाये और अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ वापस लाए और नाफ़ ( ढोंडी ) के नीचे बांध ले । फिर दुआए कूनूत पढ़े फिर उसके बाद और नमाजों की तरह रुकु और सजदा वगैरा करके सलाम फेर दे ।*_  

_*📍नोट : -दुआएं कुनूत निचे फोटो में है*_


 _*❓सवाल : - जिस शख्स को दुआए कुनूत याद न हो वह क्या पढ़े।*_

_*✍🏻जवाब : - जिस शख्स को दुआए कुनूत याद न हो वह यह दुआ पढ़े ।*_

_* “ अल्लाहुम्म रब्बना आतिना फ़िहुनयां हस नतौं वफ़िल आखिरति हस नतौं वक़िना अज़ाबन्नार "*_ 

_*❓सवाल : - अगर दुआए कुनूत न पढ़े तो क्या हुक्म है ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - अगर दुआए कुनूत क़सदन ( जान बूझ ) कर न पढ़े तो नमाज़े वित्र फिर से पढ़े और अगर भूल कर न पढ़े तो आखिर में सजदए सहव करे ।*_ 

_*❓सवाल : - अगर दुआए कुनूत पढ़ना भूल जाए और रुकु में याद आए तो क्या करे ।*_ 

_*✍🏻जवाब : - अगर दुआए कुनूत पढ़ना भूल जाए और रुकू में याद आए तो न कियाम की तरफ़ लौटे और न रुकू में पढ़े बल्कि आखिर में सजदये सहव करे ।*_



_*📕 अनवारे शरिअत, सफा 74/75*_

_*🤲🏻तालिबे दुआ-ए- मग़फिरत एडमिन*_

_*📮जारी रहेगा इंशाअल्लाह.....*_
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...