Thursday, August 30, 2018

_*कुछ ऐसा करदे मेरे किरदिगार आंखों में*_
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_*तडप है दिल मे तो है इंतेज़ार आंखों में*_
_*ये सौक ए दीद रहे बार-बार आंखों में*_
_*करार आए मेरी बे करार आंखों में*_

_*कुछ ऐसा करदे मेरे किरदिगार आंखों में*_
_*हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में*_


_*छुपे है जुर्म मेरी शरमसार आँखो में*_
_*सज़ा का खौफ़ है इन अश्क़ बार आंखों में*_
_*अंधेरा छा ने लगा बार बार आंखों में*_

_*वो नूर दे मेरे परवर दिगार आंखों में*_
_*के जलवागर रहे रुख कि बहार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_


_*सदा नवाज़ा है मुझको तेरे तसव्वुर ने*_
_*सीमट दिये है सभी फ़ासले तसव्वुर ने*_
_*हसीन जलवा दिखाया मुझे तसव्वुर ने*_

_*करम ये मुझ पे किया है मेरे तसव्वुर ने*_
_*के आज खिंच दी तस्वीर ए यार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_


_*नज़र ना आये तो बे नूर सी है ये आंखे*_
_*दिखाई दे तो बड़ी किमती है ये आंखे*_
_*नज़ारे सारे अगर कर चुकी है ये आंखे*_

_*उन्हें ना देखा तो किस काम की है ये आंके*_
_*के देख ने की है सारी बहार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_


_*लहद मे जिस खड़ी सरकार की ज़ियारत हो*_
_*ज़ुबान पे नात के अश्आर हसबे आदत हो*_
_*वहा जवाब मे ये शेर पेसे खिदमत हो*_

_*फ़रिस्तों पुछ ते हो मुझसे किसकी उम्मत हो*_
_*लो देख लो ये है तस्वीर ए यार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_


_*वफ़ा की राह मे ऐसी कभी डगर आये*_
_*मेरे नसीब मे खाक ए कदम अगर आये*_
_*मलू गुबार तो आंखों मे ये असर आये*_

_*अजब नहीं के लिखा लोह का नज़र आये*_
_*जो नक्शे पा का लगालु गुबार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_


_*तुफ़ैल पीर अता जाम हो मुझे साक़ी*_
_*तमाम उम्र नशा जाम का रहे बाकी*_
_*मचल के इश्क़ मे नगमा सुनाए ये रज़वी*_

_*पिया है जाम ए मुहब्बत जो आप ने नूरी*_
_*हमेशा इस का रहेगा खुमार आंखों में*_

_हमेशा नक्श रहे रू ए यार आंखों में_
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Tuesday, August 28, 2018



              _*हज़रत लूत अलैहिस्सलाम*_
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_*हज़रत लूत अलैहिस्सलाम हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के भाई हारान बिन तारख के बेटे हैं यानि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम आपके चचा हैं, ख्याल रहे कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के चचा का नाम भी हारान है जो कि हज़रते सारह के वालिद थे वो दूसरे हारान हैं*_

_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर सबसे पहले हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के ईमान लाने से ये ना समझा जाये कि माज़ अल्लाह हज़रत लूत अलैहिस्सलाम इससे पहले मोमिन ना थे बल्कि आपकी सदाक़त पर ईमान लाये, वरना अम्बिया इकराम के लिए मुहाल है कि एक आन के लिए भी वो हज़रात गुनाह की तरफ गए हों*_

_*चूंकि हज़रत लूत अलैहिस्सलाम का इलाका हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बहुत करीब था इसलिये आपने अपनी क़ौम को इबादत की दावत नहीं पेश की बल्कि सिर्फ बुराइयों से रोकते रहे,कुछ गुनाह ऐसे हुए हैं जो हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की उम्मत से शुरू हुए और माज़ अल्लाह आज भी लोगों में पाए जाते हैं, उनकी तफसील हस्बे ज़ैल हैं*_

_*! इगलाम बाज़ी यानि मर्दों का मर्दों से सोहबत करना*_
_*! कबूतर बाज़ी करना कि पूरा दिन गुज़र जाता*_
_*! औरतों की वज़अ कतअ बनाना*_
_*! मर्दों का हाथों में मेंहदी लगाना*_
_*! रास्ते में बैठ कर आते जाते लोगों को तंग करना*_
_*! लोगों में आवाज़ के साथ रिया खारिज करना*_
_*! एक दूसरे को थप्पड़ मारना*_
_*! हंसी मज़ाक में लोगों को गाली देना*_
_*! सबके सामने नंगे हो जाना*_
_*! हर वक़्त मुंह में कुछ डालकर चबाते रहना*_

_*ज़रा सोचिये कि वही गुनाह पहले के लोग करते थे तो आसमान से पत्थर बरस पड़ते थे तो कहीं बादल गिरा दिया जाता था तो कहीं पानी में गर्क कर दिया जाता था और आज वही सारे गुनाह हम भी करते हैं मगर हम पर पत्थर नहीं बरसते, क्यों, क्योंकि हमारे नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम रहमतुल लिल आलमीन हैं और ज़िन्दा बा हयात हैं जैसा कि खुद मौला तआला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि*_

_*और अल्लाह का काम नहीं कि उन्हें अज़ाब करे जब तक कि ऐ महबूब तुम उनमे तशरीफ फरमा हो*_

_*📕 पारा 9, सूरह इंफाल, आयत 33*_

_*तो मानना पड़ेगा कि हुज़ूर जिन्दा बा हयात हैं और अपने बन्दों पर से अज़ाब को दूर फरमाते हैं, मगर ऐसा भी नहीं है कि अब चाहे जितने गुनाह करो सज़ा तो मिलनी नहीं हैं नहीं बल्कि जैसे ही सांस टूटेगी अगर गुनहगार होंगे तो अज़ाब मुसल्लत कर दिया जायेगा, लिहाज़ा अगर अज़ाब से बचना चाहते हों तो सच्चे दिल से तौबा करें और नेक अमल इख्तियार करें*_

_*जब क़ौम के गुनाह हद्द से ज्यादा बढ़ गए तो मौला ने फरिश्तों को अज़ाब लेकर क़ौम की तरफ भेजा तो वो फरिश्ते सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे, आपके घर 15 दिन से कोई मेहमान नहीं आया था फौरन आपने एक भुना हुआ बछड़ा पेश किया जब उन लोगों ने खाने में हाथ नहीं डाला तो आप समझ गए कि ये फरिश्ते हैं, और आपका खौफ खाना इस लिए नहीं था कि माज़ अल्लाह आपको अपनी हलाक़त का खौफ था बल्कि अपनी उम्मत पर अज़ाब पड़ने का खौफ हुआ, फरिश्तों ने जब ये कहा कि खौफ ना करें कि हम आपकी उम्मत पर नहीं भेजे गए बल्कि हम हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की उम्मत पर अज़ाब लेकर आये हैं तो आपको उनकी उम्मत की फिक्र दामनगीर हुई और उन पर से भी अज़ाब को टालने की कोशिश की, जिसके बारे में मौला तआला क़ुरान मुक़द्दस में फरमाता है कि "हमसे क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगा.... ऐ इब्राहीम इस ख्याल में न पड़ बेशक तेरे रब का हुक्म आ चुका बेशक उन पर अज़ाब आने वाला है फेरा ना जायेगा" जब आपने जान लिया कि ये क़ज़ाए मुबरम हक़ीक़ी है तो आप खामोश हो गये*_

_*फिर वो फरिश्ते हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और आपसे बस्ती छोड़ देने को कहा मगर आपकी बीवी जिसका नाम वाहेला था ये काफिरा थी उसको साथ ले जाने को मना किया, जब फरिश्ते इन्सानी सूरत में हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे तो क़ौम अपनी अय्याशियों के सबब खूबसूरत मर्दों को देखकर हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के घर पर जमा हो गए और उनसे मिलने को कहने लगे, जिस पर हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने उनको समझाया कि ये तुम्हारी बीवियाँ मेरी क़ौम की बेटियां है इनका तुम पर हक़ है उसे अदा करो क्यों इस गुनाह में पड़ते हो, मगर वो नहीं माने तो फरिश्तो ने अर्ज़ किया आप घबरायें नहीं हम आम लड़के नहीं हैं कि ये हमको दबोच लेंगे, हज़रत लूत अलैहिस्सलाम अपने घर वालों को लेकर निकल गए पीछे फरिश्तों ने उस पूरे इलाके को जिनमे 5 बस्तियां आबाद थीं यानि सअदून, उमूराह, औमा, ज़बुईम और सबसे बड़ी बस्ती सदूम जिसे क़ुरान ने मोतफिक़ात से ताबीर किया है सबको उठाकर पलट दिया और आसमानों से पत्थरों की बारिश कर दी कि हर पत्थर पर उसके मरने वाले का नाम लिखा होता था जिसको लगता वहीं ढेर हो जाता*_
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            _*हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम*_
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_*हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम का असली नाम इस्राईल है और याक़ूब से इसलिए मशहूर हुए कि याक़ूब अक़्ब से बना है जिसके मायने होते हैं एड़ी, चूंकि आपके साथ आपके एक भाई ईस भी पैदा हुए जिनकी एड़ी से आपके दोनों हाथ लगे हुए थे इसी लिए आपका लक़ब याक़ूब मशहूर हुआ,ईस के साथ एक और दिलचस्प बात ये हुई कि वो आप ही के साथ पैदा हुए आपके ही साथ उनका विसाल हुआ और आपकी क़ब्र में ही आपके साथ दफ्न किये गए*_

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 871*_
_*📕 खज़ाएनल इरफान, पारा 13, रुकू 5*_

_*आपके वालिद का नाम हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम है आपके दादा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और नाना हज़रत लूत अलैहिस्सलाम हैं*_

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 358*_

_*आपने 4 शादियां की जिनसे आपको 12 औलादें हुईं, उनके नाम हस्बे ज़ैल हैं यहूदा रुबील शमऊन लादी रियालून यशजर और दीनह ये 7 औलाद आपकी ज़ौजा लिया बिन्त लियान बिन फाहिर से हुई, दान और यफताली ज़लक़ह के बतन से, ज़ाद बलहतह के बतन से, और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम और बिन्यामीन राहील के बतन से पैदा हुए*_

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 121*_

_*आप अपने 12 बेटों में सबसे ज़्यादा मुहब्बत हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से करते थे क्योंकि आपको पता था कि इन्ही को आपके बाद नुबूवत मिलनी है और बिन्यामीन को इसलिए कि वो सबसे छोटे थे, इसी हसद की वजह से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के भाईयों ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को आपके बाप से जुदा कर दिया जिनके फिराक़ में हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम 80 साल तक रोते रहे जिस से कि आपकी आंखों की रौशनी तक चली गई*_

_*📕 जलालैन, हाशिया 13, सफह 198*_

_*जब आपका विसाल हुआ तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बहुत ग़म लाहिक हुआ और आप पूरे मुल्क से हुक्मा व अतिब्बा को बुलवाकर आपको दिखाते रहे,इस तरह आपका जस्द मुबारक 40 दिनों तक युंही रखा रहा उसके बाद आपको दफनाया गया*_

_*📕 अलबिदाया, जिल्द 1, सफह 220*_

_*आपकी उम्र 145 साल हुई और आपको शहर जबरून में आपके आबा व अजदाद के पहलु में दफ्न किया गया*_

_*📕 खज़ाएनल इरफान, पारा 13, रुकू 5*_
_*📕 अलबिदाया, जिल्द 1, सफह 175*_
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                _*मसलके आला हज़रत*_
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_*🔖 कुछ गैरों ने पूंछा आलाहज़रत को इतना क्यों मानते हो -*_

_*✍🏻 तो कहा :  कान खोल के सुनो*_

_*इस दुनियां में  बहुत कलमगार आये,*_
_*किसी ने कलम उठाया लैला का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने कलम उठाया मजनूं का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने क़लम उठाया शीरी का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने क़लम उठाया फरहाद का ज़िक्र किया,*_

_*📌 लेकिन आलाहज़रत ने जब-जब क़लम उठाया किसी  दुनियादार की नहीं बल्कि मदीने के ताज़दार हुज़ूर ﷺ के बारे  में ज़िक्र किया..*_

_*आप देखो तो सही क्या खूब फ़रमाते हैं आलाहज़रत :*_
👇🏽

_*❤ उन्हें जाना, उन्हें माना, न रखा गैर से काम, लिल्लाह हिल हम्द मैं दुनियां से मुसलमान गया..*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी की पेशानी के बारे  में लिखा :*_

_*❤ जिस के माथे शफ़ाअत का सेहरा रहा, उस ज़बीने सआदत पे लाखों सलाम.*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी के गोशे मुबारक के बारे में लिखा :*_

_*❤ दूरो नज़दीक के सुनने वाले वो कान, काने लाले करामत पे लाखों सलाम.*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का लवे  मुस्तफ़ा के बारे में लिखा :*_

_*❤ पतली, पतली गुले क़ुदस  की पत्तियां, उन लवों की नज़ाक़त पे लाखों सलाम.*_

_*✒ जब क़लम उठा आलाहज़रत का आमदे हुज़ूर के बारे में लिखा :*_

_*❤ जिस सुहानी  घड़ी  चमका तैबा का चाँद, उस दिल अफरोज साअत पे लाखों सलाम.*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का  शहरे रसूल के बारे में लिखा :*_

_*❤ हरम की ज़मीं और क़दम रख के चलना, अरे  सर का मौक़ा है ओ जाने बाले.*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का नबी की हयात के बारे में लिखा :*_

_*❤ तू ज़िंदा है वल्लाह, तू ज़िंदा है वल्लाह मेरे चश्मे आलम से छुप जाने बाले.*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो  अताये रसूल के बारे में लिखा :*_

_*❤ मेरे करीम से गर, क़तरा किसी ने माँगा, दरिया वहा दिए हैं  दुरबे  बहा दिए हैं..*_

_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो शफ़ाअत ए रसूल के बारे में लिखा :*_

_*❤ सबने शफे महशर में ललकार दिया हमको, अये बेकसों के आक़ा अब तेरी दुहाई है.*_

_*✒ और जब क़लम उठा आलाहज़रत का तो गुम्बदे खज़रा के बारे में लिखा :*_

_*❤ हाजियो आओ  शहंशाह का रौज़ा देखो,  क़ाबा तो देख चुके, काबे का  क़ाबा देखो..*_

_*👉🏽 इसलिए हम अपने इमाम की बारगाह में खिराजे अक़ीदत पेश करते हैं --*_

_*डाल दी क़ल्ब में अज़मते मुस्तफ़ा,  सैय्यदी आलाहज़रत पे लाखों सलाम*_
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_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 1*_
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*_ख्वाजये हिन्द वो दरबार है आला तेरा_*
*_कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा_*

*_नाम - मोइन उद्दीन हसन_*

*_लक़ब - हिन्दल वली, गरीब नवाज़_*

*_वालिद - सय्यद गयास उद्दीन हसन_*

*_वालिदा - बीबी उम्मुल वरा  (माहे नूर)_*

*_विलादत - 530 हिजरी, खुरासान_*

*_विसाल - 6 रजब 633 हिजरी, अजमेर शरीफ_*

*_वालिद की तरफ से आपका सिलसिलए नस्ब इस तरह है मोइन उद्दीन बिन गयास उद्दीन बिन नजमुद्दीन बिन इब्राहीम बिन इदरीस बिन इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जाफर सादिक़ बिन इमाम बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन_*

*_वालिदा की तरफ से आपका नस्ब नामा युं है बीबी उम्मुल वरा बिन्त सय्यद दाऊद बिन अब्दुल्लाह हम्बली बिन ज़ाहिद बिन मूसा बिन अब्दुल्लाह मखफी बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन, गोया कि आप हसनी हुसैनी सय्यद हैं_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 74*_

*_मसालेकस सालेकीन में हैं कि आप और हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपस में खाला ज़ाद भाई हैं और वहीं सिर्रूल अक़ताब की रिवायत है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ एक रिश्ते से हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मामू होते हैं_*

_*📕 मसालेकस सालेकीन, जिल्द 2, सफह 271*_
_*📕 सिर्रूल अक़ताब, सफह 107*_

*_आपकी वालिदा फरमाती हैं कि जिस दिन से मेरे शिकम में मोइन उद्दीन के जिस्म में रूह डाली गयी उस दिन से ये मामूल हो गया कि रोज़ाना आधी रात के बाद से सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती रहती, और जब आपकी विलादत हुई तो पूरा घर नूर से भर गया, आपके वालिद एक जय्यद आलिम थे आपकी इब्तेदाई तालीम घर पर ही हुई यहां तक कि 9 साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरान हिफ्ज़ कर लिया, मां का साया तो बचपन में ही उठ गया था और 15 साल की उम्र में वालिद का भी विसाल हो गया_*

_*📕 मीरुल आरेफीन, सफह 5*_

*_वालिद के तरके में एक पनचक्की और एक बाग़ आपको मिला जिससे आपकी गुज़र बसर होती थी, एक दिन उस बाग़ में दरवेश हज़रत इब्राहीम कन्दोज़ी आये गरीब नवाज़ ने उन्हें अंगूर का एक खोशा तोड़कर दिया, हज़रत इब्राहीम सरकार गरीब नवाज़ को देखकर समझ गए कि इन्हें बस एक रहनुमा की तलाश है जो आज एक बाग़ को सींच रहा है कल वो लाखों के ईमान की हिफाज़त करेगा, आपने फल का टुकड़ा चबाकर गरीब नवाज़ को दे दिया जैसे ही सरकार गरीब नवाज़ ने उसे खाया तो दिल की दुनिया ही बदल गयी,हज़रत इब्राहीम तो चले गए मगर दीन का जज़्बा ग़ालिब आ चुका था आपने बाग़ को बेचकर गरीबो में पैसा बांट दिया, खुरासान से समरक़न्द फिर बुखारा इराक पहुंचे और अपने इल्म की तकमील की_*

_*📕 अहसानुल मीर, सफह 134*_

*_आप एक मर्शिदे हक़ की तलाश में निकल पड़े और ईरान के निशापुर के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम हारूनाबाद है, जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखा और उन्होंने आपको, मुर्शिदे बरहक़ ने देखते ही फरमाया कि आओ बेटा जल्दी करो मैं तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहा था अपना हिस्सा ले जाओ हालांकि इससे पहले दोनों की आपस में कभी कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी, खुद सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "जब मैं उस महफिल में पहुंचा तो बड़े बड़े मशायख बैठे हुए थे  मैं भी वहीं जाकर बैठ गया तो हज़रत ने फरमाया कि 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ो मैंने पढ़ा फिर कहा किबला रु होकर सूरह बक़र की तिलावत करो मैंने की फिर फरमाया 60 मर्तबा सुब्हान अल्लाह कहो मैंने कहा फिर मुझे एक चोगा पहनाया और कलाह मेरे सर पर रखी और फरमाया कि 1000 बार सूरह इखलास पढ़ो मैंने पढ़ी फिर फरमाया कि हमारे मशायख के यहां फक़त एक दिन और रात का मुजाहदा होता है तो करो मैंने दिन और रात नमाज़ों इबादत में गुज़ारी, दूसरे रोज़ जब मैं हाज़िर हुआ क़दम बोसी की तो फरमाया कि ऊपर देखो क्या दिखता है मैंने देखा और कहा अर्शे मुअल्ला फिर फरमाया नीचे क्या दिखता है मैंने देखा और कहा तहतुस्सरा फरमाते हैं अभी 12000 बार सूरह इखलास और पढ़ो मैंने पढ़ी फिर पूछा कि अब क्या दिखता है मैंने कहा कि अब मेरे सामने 18000 आलम हैं फरमाते हैं कि अब तेरा काम हो गया" उसके बाद भी सरकार गरीब नवाज़ 20 साल तक अपने मुर्शिद के साथ ही रहें_*

_*📕 अनीसुल अरवाह, सफह 9*_
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_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 2*_
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*_आपका शजरये बैयत इस तरह है ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती अज़ ख्वाजा उस्मान हारूनी अज़ हाजी शरीफ चिश्ती अज़ क़ुतुबुद्दीन मौदूर चिश्ती अज़ ख्वाजा नासिर उद्दीन अबु यूसुफ चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु मुहम्मद चिश्ती अज़ ख्वाजा अब्दाल चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु इस्हाक़ चिश्ती अज़ ख्वाजा मुनशाद अला देवनरी अज़ शैख अमीन उद्दीन बसरी अज़ सईद उद्दीन मराशि अज़ सुल्तान इब्राहीम अदहम अज़ ख्वाजा फ़ुज़ैल बिन अयाज़ अज़ ख्वाजा अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद अज़ ख्वाजा हसन बसरी अज़ शहंशाहे विलायत सय्यदना मौला अली अज़ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 78*_

*_ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ये बड़ी ही मशहूर करामत है कि एक मर्तबा आप बग़दाद के सफर में थे आपके चन्द खलीफा भी आपके साथ थे, रास्ते पे एक जगह पड़ाव किया आप और आपके मुरीद रोज़े से थे आपने उनसे थोड़ी सी आग ढूंढ कर लाने को कहा, मुरीद एक जगह पहुंचे जहां आग जल रही थी जब उन्होंने थोड़ी आग उनसे मांगी तो उन लोगों ने देने से मना कर दिया और कहा कि ये हमारा माबूद है हम इसकी पूजा करते हैं लिहाज़ा हम तुम्हे नहीं दे सकते, वो वापस आये और पीर से सारा हाल बयान कर दिया, आप उठे और उन आतिश परश्तों के पास पहुंचे और उनके सरदार जिसका नाम मखशिया था उससे फरमाया कि इस आग को पूजने से क्या फायदा तो कहने लगा कि ये हमारी निजात का ज़रिया है तो आप फरमाते हैं कि तुम बरसो से इसकी पूजा करते हो क्यों ना तुम और मैं इस आग में अपना हाथ डालें अभी पता चल जायेगा कि ये इबादत करने के लायक़ है या नहीं तो सरदार बोला कि आग की फितरत जलाना है सो ये जलायेगी आप फरमाते हैं कि बेशक इसकी फितरत जलाना है मगर मेरा रब वो है कि इस आग को भी बाग बना सकता है, ये कहकर आपने उसकी गोद में बैठे हुए उसके बच्चे को उठा लिया और आग में तशरीफ ले गए, मनो मन लकड़ियां जहां जल रही हो उसकी तपिश का क्या आलम होगा कहने की ज़रूरत नहीं, इधर सरदार और उसके मानने वालों ने रोना पीटना शुरू कर दिया कि मुसलमान भी मारा गया और हमारे बेटे को भी ले गया, करीब घंटे भर बाद उसी आग से ख्वाजा उस्मान हारूनी बाहर निकले और बच्चा भी आपकी गोद में था जो निहायत ही खुश व खुर्रम था, जब सरदार ने बच्चे से पूछा कि तू इतना खुश क्यों है तो कहने लगा कि अब्बा मैं एक बाग में था जहां तरह तरह की नेअमतें मौजूद थी तो सरदार ने ख्वाजा उस्मान हारूनी से पूछा कि वो बाग क्या था तो आप फरमाते हैं कि वो जन्नत थी, अगर तुम सब भी कल्मा पढ़कर मुसलमान होते हो तो उस बाग में ले जाने की ज़िम्मेदारी मेरी, आपकी खुली हुई करामत देखकर वो पूरा का पूरा कबीला कल्मा पढ़कर मुसलमान हो गया_*

_*📕 खुतबाते अजमेर, सफह 89*_

*_जब ख्वाजा अबु इसहाक बैयत होने के लिए ख्वाजा मुनशाद की बारगाह में पहुंचे तो आपने उनसे नाम पूछा तो फरमाया कि इस नाचीज़ को अबु इसहाक कहते हैं तो ख्वाजा मुनशाद फरमाते हैं कि आज से हम तुझे चिश्ती कहेंगे और क़यामत तक जितने तेरे मुरीद होंगे सब चिश्ती कहलायेंगे, ये है सिलसिलाये चिश्तिया की वजह तसमिया_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 79*_

*_ख्वाजा गरीब नवाज़ को लेकर आपके पीरो मुर्शिद हज के सफर को गए और वहां काबे का गिलाफ पकड़कर फरमाया कि ऐ मौला मैंने मोइन उद्दीन को तेरे सुपुर्द किया तो ग़ैब से निदा आई कि हमने मोईन उद्दीन को क़ुबूल किया फिर वहां से रौज़ए अनवर की हाज़िरी दी और ख्वाजा गरीब नवाज़ से सलाम पेश करने को कहा तो आपने सलाम किया तो जाली मुबारक से बा आवाज़ बुलंद जवाब आता है "व अलैकुम अस्सलाम या क़ुतुबुल मशायख लिलबर्रे वलबहर" जिसे सबने सुना_*

_*📕 अनीसुल अरवाह, सफह 6*_

*_उसके बाद कुछ और दिन भी पीरो मुर्शिद की बारगाह में गुज़ारे और उन्ही के क़ौलो तर्जुमान को क़लम बंद करते रहे जिसे बाद में आपने अनीसुल अरवाह का नाम दिया, उनसे इजाज़त ली और अस्फहान पहुंचे वहां ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को मुरीद किया और उन्हें साथ लेकर फिर रौज़ए अनवर पर हाज़िरी दी, जहां आपको ये बशारत मिली कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "ऐ मोईन उद्दीन तू मेरे दीन का मोईन है मैंने तुझको हिंदुस्तान की विलायत बख्शी जा अजमेर जा और एक जन्नती अनार बख्शा, ख्वाजा गरीब नवाज़ को हिंदुस्तान के रास्ते का इल्म ना था तो आलमे ख्वाब में आपको पूरा नक्शा दिखाया गया, आप वहां से अपने पीर की बारगाह में पहुंचे और इजाज़त लेकर हिंदुस्तान की तरफ चल पड़े, आपके साथ ख्वाजा बख्तियार काकी, हज़रत मुहम्मद यादगार और ख्वाजा फखरूद्दीन गुर्देज़ी भी थे ये नूरानी काफिला सरहदी रास्तो से पंजाब (पाकिस्तान) पहुंचा उस वक़्त शहाब उद्दीन गोरी को शिकस्त हुई थी और उसकी फौज वापस जा रही थी, लोगों ने ख्वाजा गरीब नवाज़ को भी मना किया कि ये सही वक़्त नहीं है तो आप फरमाते हैं कि तुम तलवार के भरोसे गए थे और हम अल्लाह के भरोसे जा रहे हैं, फिर मुलतान होते हुए लाहौर पहुंचे और वहां दाता गंज बख्स की बारगाह में चिल्ला किया और वहां से दिल्ली पहुंचे और खांडे राव के महल के आस पास अपना पड़ाव किया, आपकी रश्दो हिदायत से दिल्ली में जब बहुत लोग मुसलमान होने लगे तो खांडे राव ने उन्हें रोकने के लिए तरह तरह की तदबीर की मगर सब नाकाम रही आखिर में एक शख्श को लालच देकर आपका मोतकिद बनाकर आपके पास भेजा कि वो आपको क़त्ल करदे,जब वो ख्वाजा गरीब नवाज़ के सामने आया तो आप फरमाते हैं कि झूटी अक़ीदत मंदी से क्या फायदा जिस मकसद से आया है वो कर जब उसने ये सुना तो कांप उठा फौरन क़दमो में गिरकर माफी मांगी और मुसलमान हो गया, जब दिल्ली में काफी मुसलमान हो गए तो आपने अपने खलीफा ख्वाजा बख्तियार काकी को दिल्ली में रहने को कहा और खुद अजमेर की तरफ रवाना हुए_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 86*_
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_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 3*_
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*_ये बात सही है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के आने से कई सौ बरस पहले हिंदुस्तान में इस्लाम आ चुका था जैसा कि मशहूर है कि सुल्तान महमूद गज़नवी रहमतुल्लाह तआला अलैहि के 17 हमले हिंदुस्तान पर हो चुके थे, मगर इस्लाम को फरोग़ मिला है तो सरकार गरीब नवाज़ की आमद के बाद_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 104*_

*_आपकी आमद अजमेर शरीफ में 10 मुहर्रम 561 हिजरी में हुई_*

_*📕 महफिले औलिया, सफह 342*_

_*चन्द करामतें*_

*_अजमेर शरीफ पहुंचकर आपने एक दरख्त के नीचे बैठना चाहा तो कुछ सायेबान ने मना किया कि यहां पर राजा के ऊंट बैठते हैं लिहाज़ा आप यहां नहीं बैठ सकते सरकार गरीब नवाज़ ने फरमाया कि ठीक है तुम्हारे राजा के ऊंट ही यहां बैठेंगे, ऊंट बैठ तो गए मगर जब उनको उठाया गया तो उठने को तैयार ना होते थे गर्ज़ कि उनको मारा भी गया फिर भी वो अपनी जगह से ना उठे गोया कि वो ज़मीन से चिपक से गए थे, सायेबान पृथ्वी राज के पास ये अरीज़ा लेकर गए और सारा वाक़िया कह सुनाया तो वो बोला कि ज़रूर ये उस फक़ीर के साथ की गयी बद आमाली का सिला है सो उन्हें ढूंढो और उनसे माफी मांगो, सायेबान गरीब नवाज़ की बारगाह में हाज़िर होकर माफी के तलबगार हुए तो आपने उन्हें माफ कर दिया अब जब वो वापस आकर देखते हैं तो सबके सब ऊंट अपनी जगह से खड़े हो चुके हैं_*

*_आपके अखलाक़े करीमाना को देखकर और आपकी बातों को सुनकर हज़ारों हज़ार का झुण्ड कल्मा पढ़कर मुसलमान होने लगे तो घबराकर सिपाहियों ने आप पर पानी बन्द करने का हुक्म दिया और सोचा कि जब पानी ही ना मिलेगा तो ये यहां से चले जायेंगे, ख्वाजा गरीब नवाज़ ने अपने मुरीद को आना सागर पर भेजा और कहा कि एक कासे में पानी भर लाओ जब ये मुरीद आना सागर पर पहुंचे और कासे में पानी भरा तो खुदा की ऐसी क़ुदरत हुई कि पूरे तालाब का पानी एक कटोरे में समा गया, इधर तालाब तो खुश्क हो गया मगर सरकार की बारगाह में पानी की कोई कमी ना थी, जब पानी ना मिला तो अजमेर में कोहराम मच गया कि आनन फानन में तालाब कैसे सूख गया लोग परेशान और बेचैन हो गए जब राजा को ये खबर मिली तो फिर से उसने अपने सिपाहियों को सरकार गरीब नवाज़ की बारगाह में भेजा और मिन्नत समाजत की कि अगर पानी ना मिला तो लोग प्यासे मर जायेंगे, रहम दिली तो अल्लाह वालों का खास्सा है सो वो कासे का पानी फिर से तालाब में डलवा दिया और पूरा तालाब फिर पानी से भर गया_*

*_तमाम पुजारियों के सरदार का नाम शादी देव था जब इसने अपने बुतखानो में वीरानी देखी तो भड़क गया और गरीब नवाज़ की बारगाह में गुस्से से हाज़िर हुआ मगर ज्यों ही ख्वाजा गरीब नवाज़ ने उस पर नज़र डाली फौरन कांपने लगा और गिरकर माफी मांगी और इस्लाम क़ुबूल कर लिया उसका इस्लामी नाम सअद रखा गया_*

*_जब 80-90000 लोग मुसलमान हो गए तो राजा पृथ्वी राज घबरा गया और सरकार गरीब नवाज़ को रोकने के लिए अपने गुरु और हिंदुस्तान के सबसे बड़े जादूगर अजय पाल को बुलाकर गरीब नवाज़ के सारे हाल से वाक़िफ कराया, अजय पाल ने इसको बड़े ही हल्के में लिया और राजा को यक़ीन दिलाया कि वो बहुत जल्द उनको उनके साथियों के साथ अजमेर से निकाल देगा, अजय पाल अपने साथियों के साथ उड़ने वाले शेरों पर सवार होकर हाथियों और अजदहों के साथ सरकार गरीब नवाज़ के दरबार में पहुंच गया, सरकार ने एक हल्का खींचा और सबसे फरमा दिया कि कोई भी इससे बाहर ना निकले, पहले उसने अज़हदों को भेजा मगर ज्यों ही खत से मस हुआ जलकर खाक हो गया फिर आग की बारिश करने लगा मगर वो आग वापस लौटकर खुद उनको ही जलाने लगी, जब अजय पाल ने ये माजरा देखा तो सोचा कि उड़कर आप पर हमला करे तो वो हवा में उड़ने लगा आपने उसे उड़ता देखा तो अपनी नालैन को उतार कर उसकी तरफ फेंका, अब ये नालैन जाकर अजय पाल के सर पर बरसने लगी और मारते मारते बुरा हाल कर दिया अजय पाल उनकी सदाक़त को समझ गया और फौरन क़दमो में गिरकर माफी मांगी, सरकार गरीब नवाज़ ने माफ भी कर दिया और उन्हें विलायत की मंजिल भी तय करा दी उनका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह रखा गया उन्होंने अर्ज़ की कि हुज़ूर मुझे हयाते अब्दी अता फरमाई जाये आप मुस्कुराकर फरमाते हैं तेरी ये तमन्ना भी पूरी हुई, कहा जाता है कि अब्दुल्लाह अब भी ज़िंदा हैं और उन्हें अब्दुल्लाह बियाबानी के नाम से पुकारा जाता है और वो भटकों को रास्ता बताते हैं_*

*_सरकार गरीब नवाज़ ने इसके बाद पृथ्वी राज को भी इस्लाम की दावत पेश की पर उसने क़ुबूल ना किया और आप के मुरीदों पर जुल्मों सितम करने लगा, आपने उससे अपने मुरीदों पर ज़ुल्म ना करने की शिफारिश भी की मगर वो नहीं माना तो आपने जलाल में आकर फरमाया कि "हमने पिथौरा को जिंदा गिरफ्तार करके लश्करे इस्लाम के हवाले कर दिया" उसके बाद आपने शहाब उद्दीन घोरी को ख्वाब में बशारत दी और उसे फतह का मुज़्दह सुनाया, शहाब उद्दीन घोरी पहले ही शिकश्त की वजह से बेचैन था उसने एक लश्करे जर्रार को तरतीब दिया और हिंदुस्तान पर हमले के लिए निकल पड़ा, वहां पहुंचकर उसने पृथ्वी राज को अपनी इताअत करने का मशवरा दिया मगर वो अपनी फौज पर घमंड करता रहा और 150 राजाओं की फौज को लेकर जिसमें 3000 हाथी सवार 300000 घुड़ सवार और बेशुमार पैदल सिपाही शामिल थे जंग पर आमादा हुआ, शहाब उद्दीन ने अपनी 100000 की फौज को 4 हिस्सों में बांट दिया था और एक हिस्सा ही जंग करता 3 हिस्से आराम, जब वो थक जाता तो दूसरा हिस्सा आगे आता और पहले वाला आराम करता, उसकी ये अक़्ल मंदी बहुत काम आई, उधर पृत्वी राज की फौज दिन भर लड़कर थक चुकी थी शाम होने को थी एक तारो ताज़ा लश्कर जब उन पर आ पड़ा तो किसी में उनसे लड़ने की ताब ना थी खांडे राव समेत बहुत से राजा मारे गए और पृथ्वी राज गिरफ्तार हुआ, ये जंग 589 हिजरी बा मुताबिक़ 1193 ईसवी में लड़ी गयी, पृथ्वी राज ने भागना चाहा मगर वो भी आखिर मारा गया, सूरज डूब चुका था अचानक उसके कानो में कहीं से अज़ान की आवाज़ आयी वो हैरान रह गया कि इस कुफ्रिस्तान में अज़ान कैसे, उसे बताया गया कि एक फक़ीर यहां कुछ दिनों से मुक़ीम है वो ही अज़ान देकर नमाज़ पढ़ा करते हैं, वो वहां पहुंचा वुज़ु करके जमात खड़ी थी सो शामिल हो गया, नमाज़ खत्म होने के बाद जैसे ही उसने सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के चेहरे को देखा तो जान लिया कि यही वो ख्वाब वाले बुज़ुर्ग हैं जिन्होंने उसे फतह की बशारत दी थी आपके क़दमो में गिर गया और देर तक रोता रहा, सरकार ने उसे उठाकर अपने सीने से लगाया उनकी ख्वाहिश पर उन्हें अपने सिलसिले में बैयत किया और फिर रुखसत किया, शहाब उद्दीन घोरी दिल्ली में अपना नायब क़ुतुब उद्दीन ऐबक को बनाकर वापस लौट गया_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 85-95*_

*_आपने 2 शादियां की और दोनों ही हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के कहने पर की, पहला निकाह 590 हिजरी बा मुताबिक 1194 ईसवी में बीबी अामतुल्लाह से की जिनसे आपको 3 औलादें हुई 2 बेटे हज़रत ख्वाजा फखरूद्दीन व हज़रत खवाजा हिसामुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैहि और एक बेटी बीबी हाफिज़ा जमाल और दूसरा निकाह 620 हिजरी बा मुताबिक़ 1223 ईसवी में सय्यद वजीह उद्दीन मशहदी की बेटी हज़रत बीबी असमतुल्लाह से हुई जिनसे आपको एक बेटा हज़रत शैख अबु सईद रहमतुल्लाह तआला अलैहि हुए_*

_*📕 खुतबाते अजमेर, सफह 457*_
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_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा - 4*_
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_*कुछ और करामतें*_

*_एक मरतबा शहर के हाकिम ने एक शख्स की गर्दन उड़ा दी उसकी मां रोती हुई ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुई और बेटे की मौत की शिकायत की, आप उसे लेकर फौरन क़त्ल गाह पहुंचे और मक़तूल का सर धड़ से मिलाकर फरमाया कि अगर वाकई तू बेगुनाह क़त्ल हुआ है तो अल्लाह के हुक्म से खड़ा हो जा, आपका इतना कहना था कि फौरन वो लड़का उठकर खड़ा हो गया अब जो हाकिम ने देखा तो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगी_*

_*📕 महफिले औलिया, सफह 344*_

*_हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ शैख शहाब उद्दीन सहरवर्दी और शैख अहद उद्दीन किरमानी रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन एक जगह बैठे हुए थे कि एक बच्चा तीर कमान लिए हुए सामने से गुज़रा, ख्वाजा गरीब नवाज़ फरमाते हैं कि ये बच्चा एक दिन दिल्ली का बादशाह बनेगा चुनांचे आपकी कही बात हक़ हुई और वही बच्चा सुल्तान शम्शुद्दीन अल्तमश के नाम से मशहूर हुआ और 26 साल दिल्ली पर हुकूमत की_*

_*📕 इक़्तेबासुल अनवार, सफह 377*_

*_एक मर्तबा सरकार गरीब नवाज़ अपने मुरीद शैख अली के साथ कहीं सफर पर जा रहे थे, शेख अली किसी के मकरूज़ थे और जिसका कर्ज़ था उसने शेख अली को रास्ते में रोक लिया और कहा कि आज पैसे दिए बिना जाने नहीं दूंगा, ख्वाजा गरीब नवाज़ ने पहले तो उसे समझाया कि अभी इनके पास पैसे मौजूद नहीं है जब होगा तो तुम्हे दे देंगे मगर वो नहीं माना और अपनी ज़िद पर अड़ा रहा, सरकार गरीब नवाज़ को जलाल आ गया और अपनी चादर उतारकर जमीन पर फेंक दी और उससे कहा कि तेरा जितना भी कर्ज़ है चादर हटाकर निकाल ले पहले तो उसने मज़ाक समझा मगर जैसे ही चादर हटा कर देखता है तो सोने चांदी के ढेर नज़र आते हैं, इतना माल देखकर उसकी नियत खराब हो जाती है और अपनी दी रकम से ज़्यादा उठाना चाहता है तो फौरन ही उसका हाथ सिल हो जाता है,रो कर हुज़ूर की बारगाह में अर्ज़ करता है आपको उसके आंसुओं पर रहम आ जाता है और उसे माफ कर देते हैं फौरन ही वो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगता है और अपना सारा कर्ज़ माफ कर देता है और आपसे बैयत करता है_*

_*📕 असरारूल औलिया, सफह 202*_

*_एक मर्तबा अपने किसी पड़ोसी के जनाज़े में शामिल हुए बाद मदफून कुछ देर वहीं ठहरे, ख्वाजा बख्तियार काकी फरमाते हैं कि मैंने देखा कि हज़रत के चेहरे का रंग अचानक बदल गया फिर कुछ देर बाद सही हो गया और फरमाते हैं कि बैयत भी अजीब चीज़ है पूछा क्यों तो फरमाते हैं कि इस मुर्दे पर अज़ाब के फरिश्ते आ पड़े थे मुझे बड़ा सदमा हुआ फिर अचानक क़ब्र में सरकार उस्मान हारूनी तशरीफ लाये और फरिश्तो से कहा कि ये मेरा मुरीद है इसे अज़ाब ना करो तो कहने लगे कि बेशक आपका मुरीद है मगर आपके रास्ते पर ना चला तो फरमाया कि ठीक है कि नहीं चला मगर इस फक़ीर से निस्बत रखी यही क्या कम है तो ग़ैब से निदा आई कि मुझे उस्मान हारूनी की खातिर अज़ीज़ है लिहाज़ा उसे छोड़ दो और फरिश्ते वापस हुए_*

_*📕 मोईनुल अरवाह, सफह 188*_

_*करामत को सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की इतनी है कि लिखने लगूं तो पूरी किताब बन जाए बस इतने पर ही इक्तिफा करता हूं*_

*_आपके खुल्फा तो बहुत हैं मगर 65 खास खलीफा हैं जिसमे खलीफये अकबर हज़रत ख्वाजा क़ुतुब उद्दीन बख़्तियार काकी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं_*

*_आपकी लिखी हुई किताबें अनीसुल अरवाह, कशफुल असरार, गंजुल असरार, रिसालये तसव्वुफ मन्ज़ूम, रिसालये आफाक़ वन्नफ्स, हदीसे मआरिफ, दीवाने मोईन, रिसालये मौजूदिया मशहूर हैं_*

*_फरमाते हैं कि मुसलमान को उतना नुक्सान गुनाह करने से भी नहीं होता है जितना कि किसी मुसलमान को जलील करने से होता है और फरमाते हैं कि नेकों की सोहबत में बैठना नेकी करने से अफज़ल है और बुरों की सोहबत में बैठना गुनाह करने से बदतर है और फरमाते हैं कि काफिर 100 बरस तक ला इलाहा इल्लल्लाह कहे मगर हरगिज़ मुसलमान नहीं हो सकता लेकिन एक मर्तबा मुहम्मदुर्रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कहने से 100 साल के कुफ्र दूर हो जाते हैं और फरमाते हैं कि रिज़्क़ की कुशादगी के लिए हर नमाज़ के बाद कसरत से पढ़े सुब्हानल लज़ी सख्खरा लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रनीन سبحان الّذي سخر لنا هذا وما كنا له مقرنين (दुआ-ए सफर)_*

*_633 हिजरी शुरू होते ही आपको इल्म हो गया था कि ये मेरा आखिरी साल है लिहाज़ा सबको वसीयतें की ख्वाजा बख्तियार काकी के नाम खिलाफत नामा लिखवाया अपनी अमानतें उनके सुपुर्द की, 6 रजब की शब रात भर कमरा बंद करके ज़िक्रो अज़कार करते रहे सुब्ह को जब बहुत देर तक आवाज़ नहीं आई तो मजबूरन दरवाज़ा तोड़ना पड़ा आप खुदा की राह में विसाल फरमा चुके थे, और आपकी पेशानी मुबारक पर लिखा था जिसका तर्जुमा ये है "ये अल्लाह के हबीब थे और अल्लाह की मुहब्बत में वफात पाई" आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े साहबज़ादे ख्वाजा फखरुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने पढ़ाई और आपको उसी हुजरे में दफ्न किया गया_*

_*📕 तारीखुल औलिया, सफह 98-113*_
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_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा - 5*_
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*_सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की सीरत का बयान मुखतसर में कल ही मुकम्मल हो चुका था मगर कुछ बातें करनी बाकी रह गयी थी सो एक हिस्सा और बनाना पड़ा, जैसा कि माहौल चल रहा रहा है आप सब भी देखते ही होंगे कि आजकल कुछ लोगों का दीन और मज़हब यही रह गया है कि आलाहज़रत की शान में हुज़ूर ताजुश्शरिया की शान में या मसलके आलाहज़रत पर लअन तअन करो और अपने सुन्नी होने का सबूत दो, माज़ अल्लाह, गोया कुछ लोगों के दीन में अब सिर्फ वलियों को गाली देना ही बचा है ऐसे लोगों से मेरा ये सवाल है कि माज़ अल्लाह क्या कभी किसी रज़वी ने ख्वाजा गरीब नवाज़ की शान में या हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी की शान में या हज़रते वारिस पाक की शान में या हज़रते अमीर अबुल ओला की शान में या हज़रत शाह नियाज़ बेनियाज़ रज़ियल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन की शान में कोई गुस्ताखाना अल्फाज़ निकाला क्या कभी कोई गैर न ज़ेबा बात इन बुज़ुर्गो की शान में कही, हरगिज़ नहीं ना कही है और ना कभी कहेगा, मगर आजकल कुछ नाम निहाद सुन्नी जैसे कि कुछ चिश्ती कुछ अशरफी कुछ वारसी कुछ अबुल ओलाई कुछ नियाज़ी खुले आम आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त की शान में गुस्ताखी करते हैं और ये कोई ढ़की छुपी हुई बात नहीं है कि कोई इंकार कर दे, लिहाज़ा अब एैसे नाम निहाद सुन्नियो के सामने तो सुन्नियत की एक ही पहचान है और वो है मसलके आलाहज़रत, जो इस मसलक पर क़ायम है वही अहले सुन्नत वल जमात के सच्चे मज़हब पर क़ायम है फिर चाहे वो किसी भी सिलसिले से ताल्लुक़ रखता हो वो सुन्नी है, मगर जो इस मसलक पर क़ायम नहीं तो वो अगर अपने नाम के आगे रज़वी भी लिखता होगा तब भी वो हरगिज़ सुन्नी नहीं, अल्लाह के वलियों से दुश्मनी रखने वाले अगर अल्लाह ने आंखें दी हो तो उसे खोल कर पढ़ें कि रब क्या फरमाता है_*

_*जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की तो मैं उससे जंग का ऐलान करता हूं*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 2, सफह 963*_

*_आलाहज़रत को बुरा कहने वालों अगर हिम्मत हो तो लड़ लेना रब से, जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आग को गुलज़ार बनते देख गिरगिट फूंक मारकर उसे भड़काना चाहता था मगर ना भड़का सका बल्कि दुश्मनाने नबी बनकर आज तक और हमेशा चप्पलों से मार खाता फिरता है ठीक उसी तरह कुछ गिरगिट लोग भी मसलके आलाहज़रत का कुछ बिगाड़ ना पायेंगे चाहे सर पटक कर मर ही क्यों न जायें क्योंकि मसलके आलाहज़रत की ये धूम तौफीक़े इलल्लाह है यानि अल्लाह की जानिब से है हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि_*

_*मेरी उम्मत का एक गिरोह क़यामत तक हक़ पर रहेगा और दुश्मन उसका कुछ ना बिगाड़ सकेंगे*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 61*_

*_अगर चे ये हदीस सवादे आज़म यानि मज़हबे अहले सुन्नत वल जमाअत की ताईद में हैं मगर चुंकि अब अहले सुन्नत वल जमाअत के अंदर भी इख्तिलाफ पाया जा रहा है तो इस हदीस पर अमल करते हुए कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं_*

_*मेरी उम्मत कभी गुमराही पर जमा ना होगी जब तुम इख्तिलाफ देखो तो बड़ी जमात को लाज़िम पकड़ो*_

_*📕 इब्ने माजा, सफह 283*_

*_तो इस वक़्त सबसे बड़ी जमाअत मसलके आलाहज़रत ही है तो ईमान की आफियतो भलाई इसी में है कि इसको लाज़िम पकड़ा जाये मगर कुछ लोगों को लगता है कि वो एक गिरोह भांडगीरी करने वालों सहाबा इकराम को गाली देने वालों या अपनी मस्जिदों में ये लिखने वालों का होगा कि यहां "मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों सलाम पढ़ना मना है" या शरियत को तमाशा बनाने वालों या वलियों को गाली देने वालो का होगा, नामुमकिन नामुमकिन नामुमकिन, वो एक गिरोह सिर्फ और सिर्फ मसलके आलाहज़रत वालों का ही होगा, और क्यों ना हो कि मेरे इमाम के कलम से निकला हुआ एक नुक्ता भी दिखा दो जो किसी अम्बिया व औलिया की तनकीस में लिखा गया हो या शरीयत के खिलाफ हो, पर दिखायेंगे कहां से क्योंकि वली तो वली मेरे इमाम ने तो जिस चीज़ की निस्बत भी वलियों से हो गयी उसकी भी ताज़ीम को वाजिब करार दे दिया, जैसा कि आपसे एक सवाल किया गया कि अगर कोई अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर कहे तो क्या हुक्म है, मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि_*

_*अगर वो अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर इसलिये कहता है कि सरकार गरीब नवाज़ की ज़ात कोई मुअज़्ज़म या मुतबर्रक नहीं कि अजमेर को अजमेर शरीफ कहा जाए जब तो गुमराह है और अगर सिर्फ काहिली की वजह से ऐसा करता है तो फैज़ से महरूम है*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 6, सफह 187*_

*_सोचिये कि जिस ज़ात ने अपनी पूरी ज़िन्दगी सिर्फ नामूसे रिसालत पर वक़्फ कर दी थी उस पर कीचड़ उछालना क्या ये सुन्नियों का शेवा है और क्या ऐसा करके वो अपने उन वलियों को जिनके नाम से वो पहचाने जाते हैं क्या वो उन्हें खुश कर रहे हैं या फिर ऐसे लोग मौला के साथ साथ उन वलियों का भी गज़ब मोल ले रहे हैं, मौला तआला से दुआ है कि ऐसे लोगों को हिदायत बख्शे और तमाम सुन्नियों में इत्तेहाद और मुहब्बत पैदा फरमाये - आमीन_*
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Sunday, August 26, 2018



       _*फ़ातिहा में खाना पानी सामने रखना*_
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*_इस बारे में दो किस्म के लोग पाएे जाते हैं कुछ तो वह है कि अगर खाना सामने रखकर सूरह फातिहा वगैरह आयाते क़ुरआनिया पढ़ दी जाएं तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है, और वह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं, यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है तो,खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर (ज़्यादा) अहादीस और अक़वाले आइम्मा और मामूलाते बुज़ुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और बे'वजह मुसलमानों को मुश्रिक और विदअती बताते हैं।.दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जहालत और तवह्हुम (वहम) परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब तक खाना सामने ना हो कुरआन की तिलावत और इसाले सवाब मना है....! बाअज़ जगह देखा गया है कि मिलाद शरीफ पढ़ने के बाद इंतजार करते हैं कि मिठाई आए तब तिलावत शुरू करें यहां तक कि मिठाई आने में अगर ताखीर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है ताकि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जायज़ हो जाए। कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इंतजार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुरआन पढ़े,, यह सब तवह्हुमात है। हक़ीक़त यह है कि फ़ातिहा में खाना सामने होना ज़रूरी नहीं अगर आयातें और सूरतें पढ़कर खाना या शीरनी बगैर सामने लाए यूं ही तक्सीम कर दी जाए तब भी इसाले सवाब हो जाएगा और सवाब या फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 57*_

 *_सय्यदि आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी फरमाते हैं,,, फातिहा और ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं_*

_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 4, सफ़्हा 225*_

*_और दूसरी जगह लिखते हैं अगर किसी शख्स का यह एतिक़ाद हो कि जब तक खाना सामने ना किया जाए तो सवाब ना पहुंचेगा तो यह गुमान उसका ग़लत है।_*

_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 4, सफ़्हा 195*_

*_ख़ुलासा यह के खाने पीने की अशिया (चीज़ें) सामने रखकर फातिहा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं बल्कि अहादीस से इसकी असल साबित है, और फातिहा में खाना सामने रखने को ज़रूरी ख्याल करना कि इसके बगैर फातिहा ही नहीं होगी तो यह भी इस्लाम में ज़्यादती, वहम परस्ती और ख्याले खाम है जिस को मिटाना मुसलमानों पर ज़रूरी है।_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 58*_

*_हज़रत मौलाना मुफ्ती ख़लील अहमद ख़ान साहब बरकाती मारेहरवि फरमाते हैं. "तुमने नियाज़, दुरुद वह फ़ातिहा में दिन या तारीख़े मुकर्ररह के मुताल्लिक यह समझा रखा है कि उन्ही दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे तारीख में फातिहा करेंगे तो  नहीं पहुचेगा तो यह समझना हुक्मे शरा के ख़िलाफ़ है__यूं ही फ़ातिहा वो इसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं। या हज़रत फातिमा खातून ए जन्नत की नियाज़ का खाना पर्दे में रखना और मर्दों को ना खाने देना यह औरतों की जहालत हैं...बे सबूत और गड़ी हुई बातें हैं। मर्दों को चाहिए के इन ख्यालात को मिटाएं और औरतों को राहे रास्त और हुक्मे शराअ पर चलाएं।*

_*📕 तोज़ीह वो तशरीह, फ़स्ल हफ्त मसअला, सफ़्हा 142)*_
_*📕 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह,सफह 57/58*_

*_कुछ लोगों का ख्याल है कि औरतें फातिहा इसाले सवाब नहीं कर सकतीं:= तो ऐ भी समझ लें कि जिस तरह फातिहा व इसाल सवाब मर्दों के लिऐ जायज़ ही इसी तरह औरतों के लिऐ भी जायज़ है लेकिन कुछ औरतें बिला वजह प्रेशान होती हैं और फातिहा के लिऐ बच्चों को इधर उधर दौडाती हैं हलांकि वह खुद भी फातिहा पढ़ सकती हैं कम अज़ कम الحمد شریف, قل ہواللہ شریف  अक्सर औरतों को याद होती है इसको पढ़ कर खुदा ए तआला से दुआ करें कि या अल्लाह इसका सवाब फुलां फुलां और बिलखुसूस जिसको सवाब पहुंचाना हो उसका नाम लेकर कहें उसकी रूह को अता फर्मा दे ऐ फातिहा हो गई_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाब सफह 61*_

*_कुछ औरतें किसी बुज़रूग की फातिहा दिलाने के लिऐ खाना वगैरह कोने में रख कर थोडी देर में उठा लेती हैं और कहती हैं कि उन्होंने अपनी फातिहा खुद पढ़ ली ऐ सब जाहिलाना ख्याल है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 63*_
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                  _*ताज़िया-दारी हराम है*_
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_*लोग ताजिया बनाकर अहले सुन्नत को बदनाम करते हैं.*_
_*जबकि अहले सुन्नत के उलमा भी ताजिये को मना करते है.*_

_*ताजिया दारी हराम है, हराम है, हराम है,*_

_*कुरान फरमाता है 👇🏻*_

_*"और उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने*_
_*अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया."*_

_*📕 पारा: 7*_

_*हदीस में है 👇🏻*_

_*जो (मैय्यत के ग़म में) गाल पीटे, गरीबन फाड़े,*_
_*और चीख व पुकार मचाये वो हम में से नहीं"*_

_*📕 बुखारी शरीफ़*_

_*रसूलअल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया*_
_*मेरी उम्मत में ऐसे लोग भी होंगे जो ढोल बाजो को हलाल (जाइज़) कर देंगे*_

_*📕 बुखारी शरीफ़*_

_*उलमा ए अहले सुन्नत:*_
_*फतवे: मुहर्रम में जो ताजियादारी होती है गुम्बद नुमा ताजिया बनाये जाते है ये नाजायेज़ है*_

_*📕 फतावा अजीजिया*_

_*आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान फरमाते है:*_
_*ताजिया बिदअत, नाजायेज़ व हराम है*_

_*📕 फतवा रजविया*_

_*मुफ्तिये आज़म ए हिन्द, मौलाना मुस्तफ़ा रज़ा खान:*_
_*ताज़ियादारी शर'अन नाजायेज़ है*_

_*📕 फतावा मुस्ताफ्विया*_

_*मुफ़्ती मुहम्मद अमज़द अली आज़मी:*_
_*ये वाकिया तुम्हारे लिए नसीहत था तुमने इसे खेल तमाशा बना लिया,*_

_*📕 बहारे शरीअत*_

_*ताजिया बनाना, बाजे ताशे के साथ उठाना, इस की ज्यारत करना, अदब करना, ताज़ीम करना, सलाम करना, चूमना, बच्चो को दिखाना, हरे कपडे पहनना, फकीर बनाना,*_
_*भिक मंगवाना, ये सब नाजायेज़ व गुनाह है*_

_*📕 शमा ए हिदायत*_

_*मुफ़्ती जलालुद्दीन साहब: हिंदुस्तान में जिस तरह आम तौर में*_
_*ताजियों का रिवाज़ है, बेशक हराम नाजायेज़ व बिद'अत है,*_

_*📕 फतवा फैज़ुर्रुसूल*_

_*ये सारे हवाले अहले सुन्नत की किताबो में से है,*_
_*कहीं भी ये नहीं पाया गया की सुन्नी आलिमो ने ताजिये को जायेज़ कहा।*_

_*लोग बिलावजह नाम बदनाम करते हैं।*_
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_*मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायजो हराम है.!*_
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_*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है*_

_*और छोड़ दे उनको जिन्होंने अपना दीन हंसी खेल बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने फरेब दिया*_

_*📕 पारा 7, सूरह इनआम, आयत 70*_

_*जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन्हें फरेब दिया तो आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा कि उन्होंने इस दिन के मिलने का ख्याल छोड़ा था और हमारी आयतों से इनकार करते थे*_

_*📕 पारा 8, सूरह एराफ, आयत 51*_

*_क्या आज ताज़ियादारी के नाम पर यही खेल तमाशा नहीं किया जाता, क्या ढ़ोल ताशे नहीं बजाये जाते, क्या लाठियां नहीं नचाई जाती, क्या करतब नहीं दिखाए जाते, क्या मेले ठेले झूले नहीं लगते, क्या अलम के नाम पर नाजायज़ों खुराफात नहीं होती, क्या औरतों और मर्दों का नाजायज़ मेला नहीं लगता, उसमें हराम कारियां नहीं होती क्या इन सबको तमाशा नहीं कहेंगे, और उस पर सबसे बढ़कर ये कि लकड़ियों खपच्चियों से 2 क़ब्रें बनाकर उन पर लाल-हरा कपड़ा चढ़ाकर माज़ अल्लाह एक को हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र और दूसरी को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र समझकर उन पर फूल डालना, नाड़ा बांधना, मन्नत मांगना क्या ये सब खुली हुई जिहालत नहीं है, ऐ इमाम हुसैन के नाम निहाद शैदाईयों क्या इन्ही सब खुराफात के लिए इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने करबला में भूखे प्यासे रहकर शहादत पेश फरमाई थी, क्या यही माज़ अल्लाह मसलके इमाम हुसैन था क्या उन्होंने यही कहा था कि भले ही नमाज़ें फौत हो जाएं मगर ऐ जाहिलों तुम अपने कांधों पर से मस्नूई जनाज़ा ना उतारना, तू अपने आपको इमाम हुसैन का शैदाई तो ज़रूर कहता है मगर तू अपने दावे में बिलकुल झूठा है अगर तू सच्चा होता तो वो करता जो मेरे इमाम ने फरमाया बल्कि जो करके दिखाया क्या तुझे याद नहीं कि 3 दिन के भूखे प्यासे इमाम के जिस्म पर 72 तीर और तलवार के ज़ख्म मौजूद थे मगर जब नमाज़ का वक़्त आया तो आपने अपने दुश्मनों से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त चाही और नमाज़ अदा की, ताज़िया बनाने उठाने वालों अगर तुम सच्चे शैदाईये हुसैन होते तो याद करते कि बैयत करना सिर्फ एक सुन्नत ही तो है अगर आप चाहते तो युंही यज़ीद की बैयत कर लेते बाद को तोड़ देते मगर आपने उस मक्कार झूठे फरेबी फासिको फाजिर ज़ालिम शराबी ज़ानी बदकार बदकिरदार यज़ीद की बैयत ना की और पूरा घर का घर लुटा दिया मगर दीने मुहम्मद पर आंच ना आने दी, क्या इमाम हुसैन की तरफ से भी ढ़ोल ताशे नगाड़े बजाए जाते थे क्या उनकी तरफ से भी नमाज़ों को फौत किया जाता था क्या उनकी तरफ से भी नाजायज़ों खुराफात हुआ करती थी माज़ अल्लाह, नहीं और हरगिज़ नहीं, वो सच्चे उनका दीन सच्चा तू झूठा, और अगर तू सच्चा है तो मान जा वो बात जो उन्होंने मना फरमाई और जो उनके नाना जान हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मना फरमाई, आप फरमाते हैं कि_*

_*जो मय्यत के ग़म में गाल पीटे गिरेहबान फाड़े और ज़माना जाहिलियत की सी चीखों पुकार करे वो हममे से नहीं*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 173*_

*_दूसरी जगह हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

_*उम्मे अतिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं कि हुज़ूर ने हमें मय्यत पर नोहा करने से मना किया*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 175*_

_*लोगों में 2 बातें ज़मानये जाहिलियत यानि कुफ्र के दौर की निशानियां है एक तो किसी के नस्ब पर लअन तअन करना और दूसरा मय्यत पर मातम करना*_

_*📕 मुस्लिम शरीफ, जिल्द 1, सफह 58*_

_*हुज़ूर ने नोहा करने वाले और सुनने वाले दोनों पर लानत फरमाई*_

_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 90*_

*_और ताज़ियादारी मातम करने का ही एक तरीक़ा है जिसे हिंदुस्तान में शिया फिर्क़े के एक शख्स तैमूर लंग जो कि 1336 ईसवी में पैदा हुआ और 68 साल की उम्र में यानि 1405 में मरा ने रायज की, ये हर साल अशरये मुहर्रम में ईरान जाया करता था मगर एक साल बीमारी के सबब ना जा सका तो उसके मानने वालों ने यहीं ताज़िये की शक्ल में एक शबीह बना दी जिससे ये बहुत खुश हुआ और धीरे धीरे यही मरदूद रस्म पूरे हिन्दुस्तान में फैल गयी जिससे आज शायद ही कोई गली मुहल्ला बचा हो, हालांकि मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है जिस पर आलाहज़रत के ज़माने से कई साल पहले के एक जय्यद आलिम हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

_*अशरये मुहर्रम में जो ताज़ियादारी होती है कि गुम्बद नुमा ताज़िये बनाये जाते हैं और तरह तरह की तस्वीरें बनायीं जाती है यह सब नाजायज़ है, और इसमें किसी तरह की मदद करना गुनाह है*_

_*📕 फतावा अज़ीज़िया, जिल्द 1, सफह 75*_

_*और उससे भी कई सौ साल पहले सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने अपने ज़माने में तमाम ताज़ियों मेंहदियों और झूलों को बनाने और निकालने पर सख्ती से पाबन्दी लगाई थी*_

_*📕 औरंगज़ेब आलमगीर, सफह 274*_
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                    _*ईमान और कुफ़्र*_
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*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ईमान ये है कि तू इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं और मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और ईमान ये है कि तू खुदाए तआला और उसके रसूलों उसके फ़रिश्तों उसकी किताबों और क़यामत के दिन और तक़दीर पर यक़ीन रखे_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 438*_

*_यानि जो बात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से क़तई व यक़ीनी तौर पर साबित हो उसकी तस्दीक़ करना ईमान है और उनसे इनकार करना कुफ़्र है_*

_*📕 अशअतुल लमआत, जिल्द 1, सफह 38*_
_*📕 शरह फ़िक़्हे अकबर, सफह 86*_
_*📕 तफ़सीरे बैदावी, सफह 23*_

*_अहले सुन्नत वल जमाअत के सही व मुस्तनद अक़ायद जानने के लिए हुज़ूर सदरुश्शरीया मौलाना अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा की किताब बहारे शरीयत हिस्सा अव्वल का मुताला ज़रूर करें जो कि हिंदी उर्दू इंग्लिश हर ज़बान में मौजूद है, अक़ायद का पूरा मसायल एक लंबा और तवील मज़मून है जिसका यहां दर्ज कर पाना बहुत ही मुश्किल है मैं यहां कुछ मुख़्तसर ज़िक्र करता हूं_*

*_अल्लाह एक है उसका कोई शरीक नहीं ना ज़ात में ना सिफात में ना अफ़आल में ना अहकाम में और ना अस्मा में, ना उसका कोई बाप है और ना बेटा, वो अज़्ली व अब्दी है यानि जब कुछ ना था तो वो था और जब कुछ ना रहेगा तब भी वो होगा एक उसके सिवा सब कुछ हादिस है यानि फ़ना है_*

*_! वो सबसे बे परवाह है यानि किसी का मोहताज नहीं सारा जहान उसका मोहताज है_*

*_! वो हर ऐब से पाक है मसलन झूट, दग़ा, खयानत, ज़ुल्म, जहल, बेहयाई_*

*_! वो जिस्म जिस्मानियत से पाक है मसलन हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म, इरादा सब उसकी सिफ़ात है मगर इसके लिए उसे ना तो जिस्म की ज़रूरत है ना रूह की ना कान की और ना आंख की_*

*_! वो ज़माना और मकान से पाक है,लिहाज़ा उल्मा इसी लिए ऊपर वाला कहने से मना फरमाते हैं_*

*_! हर भलाई और बुराई का पैदा करने वाला वही है मगर किसी गुनाह की निस्बत उसकी तरफ करना सख़्त हिमाक़त है बल्कि अपने नफ़्स की शरारत कहें_*

*_! उसके हर काम में कसीर हिकमतें होती हैं भले ही वो हमें अच्छी लगे या बुरी, लिहाज़ा क़ुदरत के किसी भी फेअल को हमेशा अपने लिए भला ही जानें_*

*_किसी भी अम्बिया की शान में अदना सी गुस्ताखी या बे अदबी करना कुफ़्र है_*

*_! तमाम अंबिया मासूम हैं यानि उनसे गुनाह का होना मुहाल यानि नामुमकिन है, और उनसे जो भी लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये क़ुरान की तिलावत या हदीस की रिवायत के अलावा हराम हराम और सख्त हराम है_*

*_! नुबूव्वत विलायत की तरह कसबी नहीं कि कोई भी अमल के ज़रिये नुबूव्वत हासिल कर ले, लिहाज़ा जो ऐसा जाने काफिर है_*

*_! कोई वली कितने ही बड़े मर्तबे का हो हरगिज़ किसी भी नबी की बराबरी नहीं कर सकता सो जो अपने आपको किसी नबी से बराबरी का दावा करे काफिर है_*

*_! अम्बिया की तादाद मुतअय्यन करना जायज नहीं कि इस मसले पर इख़्तिलाफ़ बहुत हैं लिहाज़ा जो भी तादाद बतायी जाए मसलन 124000 या 224000 तो वो कमो-बेश के साथ कही जाए_*

*_! हुज़ूर खातेमुन नबीयीन हैं जो उनके बाद किसी को नुबूव्वत का मिलना जाने काफिर है_*

*_! हुज़ूर को जिस्म ज़ाहिरी के साथ मेराज हुई, जो मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक के सफर का इन्कार करे काफिर है और आगे का मुनकिर गुमराह_*

*_! हुज़ूर को हर किस्म की शफाअत हासिल है जो इन्कार करे गुमराह है_*

*_! हुज़ूर मालिको मुख्तार हैं जो इन्कार करे काफिरो गुमराह है_*

*_फ़रिश्ते भी मासूम होते हैं इनके अलावा तमाम औलिया व अब्दाल गुनाह से महफूज़ होते हैं मासूम नहीं_*

*_! किसी भी फ़रिश्ते की तनकीस कुफ्र है मसलन अपने किसी दुश्मन को देखकर ये कहना कि मलकुल मौत आ गया करीब कल्मये कुफ्र है_*

*_तमाम आसमानी किताबों पर ईमान लाना ज़रूरी है,मगर हुक्म अब सिर्फ क़ुरान का ही चलेगा_*

*_! जो कुरान को ना मुक़म्मल जाने काफिर है_*

*_! क़ुरान की आयतों से मज़ाक करना भी कुफ्र है मसलन दाढ़ी मुंडा कल्ला सौफा पेश करे या भूखा कहे कि मेरा पेट क़ुल हुवल्लाह पढ़ता है_*

*_ये अक़ीदा रखना कि मरने के बाद रूह किसी और जिस्म में या जानवर में चली गयी है कुफ्र है_*

*_! हश्र रूह और जिस्म दोनों का होगा जो ये कहे कि अज़ाब या हिसाब सिर्फ रूह का होगा जिस्म का नहीं काफिर है_*

*_अज़ाबे क़ब्र, हश्र, जन्नत, दोज़ख सब हक़ हैं_*

*_यूंही आमाले दीन मसलन किसी से नमाज़ पढ़ने को कहा और उसने जवाब दिया कि बहुत पढ़ ली कुछ नहीं होता काफिर हो गया_*

*_! रमज़ान के रोज़े रखने को कहा और जवाब दिया कि रोज़ा वो रखे जिसके घर खाने को ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही एक हल्की सुन्नत मसलन नाख़ून काटने को कहा तो जवाब दिया कि नहीं काटता अगर चे सुन्नत ही क्यों ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही किसी आलिम की तौहीन इसलिये की ये आलिमे दीन है कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी काफिर के त्यौहार मसलन होली, दीवाली, राम-लीला, जन-माष्ट्मी के मेलों में शामिल होकर शानो शौकत बढ़ाना भी कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी बदमज़हब फिरके को पसंद करना या मज़ाक में ही अपने आपको उन बातिल फिरकों का बताना कुफ़्र है_*

*_! युंहि किसी मुसलमान को काफ़िर कहना कुफ़्र है उसी तरह किसी कफ़िर को मुसलमान कहना भी कुफ़्र ही है, याद रखें कि वहाबी देवबन्दी क़ादियानी खारजी राफजी अहले हदीस जमाते इसलामी और जितने भी 72 बद-मज़हब फ़िरके हैं सब काफ़िरो मुर्तद हैं_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 1--79*_
_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 90-91*_
_*📕 अहकामे शरीयत, हिस्सा 2, सफह 163*_
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              _*हुज़ूर  ﷺ के नाम का अदब*_
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_*👉🏽 आजकल अक्सर लोग हुज़ूरे अन्वर ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ के नामे मुबारक के साथ सलअम, अम और दुसरे निशान (जैसे स.अ.व., स.अ.स. S.A.W वग़ैरा-वग़ैरा) लगाते हैं!*_

_*👉🏽 इमाम जलालुद्दीन सुयूती ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ फ़रमाते हैं कि: "पहला वह शख़्स जिसने दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short किया  (यानी दुरूद शरीफ़ पूरा नही लिखा) उसका हाथ काटा गया !"*_

_*👉🏽अ़ल्लामा तहतावी का क़ौल हैं कि: "नामे मुबारक के साथ दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short लिखने वाला काफ़िर हो जाता हैं क्यूंकि अम्बियाए किराम ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﺍﻟﺼَّﻠٰﻮﺓُ ﻭَﺍﻟﺴَّﻠَﺎﻡٔ की शान को हल्का करना कुफ़्र हैं"!*_

_*📕 नुज़्हतुल कारी*_

_*✍🏻 वजाहत*_

_*⭐ इस क़ौल का मतलब ये हैं कि अगर कोई शख़्स अम्बियाए किराम ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﺍﻟﺼَّﻠٰﻮﺓُ ﻭَﺍﻟﺴَّﻠَﺎﻡٔ की शान को हल्का समझ कर या हल्का करने के लिए दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short करता हैं तो वो काफ़िर हैं, और अगर काग़ज़ या वक़्त की बचत या सुस्ती की वजह से ऐसा करता हैं तो नाजाएज़ व सख़्त ह़राम हैं!*_

_*👉🏽 ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अम्जद अ़ली आज़मी ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ फ़रमाते हैं: उ़म्र में एक बार दुरूद शरीफ़ पढ़ना फ़र्ज़ हैं और जल्सए ज़िक्र में दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब चाहे खुद नामे अक़्दस लें या दुसरे से सुने! अगर एक मजलिस में 100 बार ज़िक्र आए तो हर बार दुरूद शरीफ़ पढ़ना चाहिए! अगर नामे अक़्दस लिया या सुना और दुरुदे पाक उस वक़्त न पढ़ा तो किसी दुसरे वक़्त में उसके बदले का पढ़ लें! नामे अक़्दस लिखे तो दुरूद शरीफ़ ज़रूर लिखे कि बाज़ उ़लमा के नज़दीक उस वक़्त दुरूद लिखना वाजिब हैं! अक्सर लोग आजकल दुरूद शरीफ़ (यानी मुकम्मल ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ लिखने) के बदले Short में ﺻﻠﻌﻢ، ﻋﻢ वग़ैरा लिखते हैं ये नाजाएज़ व सख़्त ह़राम हैं, यूंही ﺭَﺿِﻰَ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻨٔﻪ की जगह ﺭﺽ रदी., र.अ. वग़ैरा, इसी त़रह़ ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ की जगह ﺭﺡ रह., र.अ. वग़ैरा लिखते हैं ये भी न चाहिए"!*_

_*📕 बहारे शरीअ़त,*_

_*👉🏽 अल्लाह ﻋَﺰَّﻭَﺟَﻞَّ का इस्मे मुबारक लिखकर उस पर * ﺝ * न लिखा करे "अज्जवज़ल", "जल्ले जलालहु" या तआ़ला पूरा लिखिए !*_

_*✍🏻 रह़मत से मह़रूम*_

_*⭐ एक शख़्स हुज़ूरे अक़्दस ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ का नामे पाक लिखता तो "सल्लल्लाहो अ़लैहे" लिखता "वसल्लम" न लिखता तो ताजदारे मदीना ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ ने ख़्वाब में उस पर इताब फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया कि: "तू खुद को 40 रह़मतों से महरूम रखता हैं !"*_
_*👉🏽 यानी लफ़्ज़ "वसल्लम" में 4 हुरूफ़ हैं और हर हर्फ़ के बदले 10 नेकियां हैं, लिहाज़ा इस हिसाब से 40 नेकियां होती हैं!*_

_*📕 तफ़्सीरे नई़मी*_

_*✍🏻 हाथ सड़ गया*_

_*⭐ ह़ज़रत शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ "जज़्बे क़ुलूब" में फ़रमाते हैं कि: "एक शख़्स काग़ज़ की बचत के ख़याल से हुज़ूर ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ के नामे पाक के साथ दुरूद शरीफ़ नही लिखता था तो उसका हाथ सड़ने गलने लगा"!*_

_*📕सीरते रसूले अरबी*_

_*✍🏻 ईमान सल्ब हो गया*_

_*⭐ मन्कूल हैं, एक शख़्स को इन्तिक़ाल के बाद किसी ने ख़्वाब में सर पर मजूसियों (यानी आतिश परस्तों) की टोपी पहने हुए देखा तो इसका सबब पूछा, उसने जवाब दिया: "जब कभी मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ का नामे मुबारक आता हैं तो दुरूद शरीफ़ न पढ़ता था इस गुनाह की नुहूसत से मुझसे मारेफ़त व ईमान सल्ब कर लिए गए"!*_

_*📕 सब्ए सनाबिल,*_

_*अल्लाह ﻋَﺰَّﻭَﺟَﻞَّ हम सबको सह़ी त़ौर पर दुरुदे पाक पढ़ने और लिखने की त़ौफ़ीक़ अ़त़ा फरमाए*_
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                  _*✒List Of Mujjadid*_
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_*1st Sadi Se 15 Vi Sadi Tak Ke Mujjadide Waqt Ki Fehrist*_

_*01). Pahli Sadi👇🏻*_
                             _*Hazrat Sayyadana Umar Bin Abdul Azeez Radiyallahu Anhu*_

_*02). Dusri Sadi👇🏻*_
                             _*Hazrat Sayyadana Khawaja Hasan Basri Radiyallahu Anhu*_

_*03). Tisri Sadi👇🏻*_
                           _*Hazrat Sayyadana Imaam Ahmad Bin Hambal Radiyallahu Anhu*_

_*04). Chauthi Sadi👇🏻*_
                                 _*Hazrat Sayyadana Imaam Tahtaawi Alayhir Rahma*_

_*05). Panchvi Sadi👇🏻*_
                                  _*Hazrat Sayyadana Imaam Muhammad Gazali Alayhir Rahma*_

_*06). Chati Sadi👇🏻*_
                             _*Hazrat Sayyadana Imaam Abul Fazl Umar Raazi Alayhir Rahma*_

_*07). Satvi Sadi👇🏻*_
                            _*Hazrat Sayyadana Khawaja Moinuddin Chishti Sanjari Alayhir Rahma*_

_*08). Aathvi Sadi👇🏻*_
                               _*Hazrat Sayyadana Khawaja Nizamuddin Auliya Mahboobe Ilaahi Alayhir Rahma*_

_*09). Navvi Sadi👇🏻*_
                             _*Hazrat Sayyadana Imaam Hafiz Jalalluddin Abu Bakr Abdur Rahman Suyuti Alayhir Rahma*_

_*10). Dasvi Sadi👇🏻*_
                             _*Hazrat Sayyadana Imaam Shahabuddin Abu Bakr Ahmad Bin Muhammad Khatib Qistalani Alayhir Rahma*_

_*11). Gyahravi Sadi👇🏻*_
                                   _*Hazrat Sayyadana Imaam Rabbani Mujaddide Alfe Sani Shaikh Ahmad Farooqi Sirhindi Alayhir Rahma*_

_*12). Barahvi Sadi👇🏻*_
                                 _*Hazrat Sayyadana Imaam Abul Hasan Muhammad Bin Abdul Haadi Sindhi Alayhir Rahma*_

_*13). Terhvi Sadi👇🏻*_
                              _*Hazrat Sayyadana Shah Abdul Azeez Muhaddis Dehalvi Alayhir Rahma*_

_*14). Chaudhvi Sadi👇🏻*_               
                                    _*Hazrat Sayyadana Imaam Ahmad Raza Khan Fazile Bareillavy Aala Hazrat Alayhir Rahma*_

_*15). Pandhravi Sadi👇🏻*_
                                     _*Hazrat Sayyadana Shah Mustafa Raza Khan Qadri Noori Al Ma'aroof Huzur Mufti-e-Aazam Hind Alayhir Rahma*_
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                _*मुज्जद्दिद की अहमियत*_
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_*🔘मुज्जद्दिद का माय्ने - तज्दीद करने वाला होता यानि की इस्लाम में जो एह्काम मिट रहे होते है और सुन्नतो को ख़त्म किया जा रहा होता है उस वक़्त ये शख्स मबऊस किया जाता है अल्लाह की जानिब से जो , ज़माने में फैली बिद्दतो को खत्म कर देता है और सुन्नत को फिर से कौम में रायेज कर देता है ।*_

_*ये दींन में नई पैदा बिद्दतो को मिटा देता है । सुन्नतो को बहाल कर देता है ।*_
_*मुजद्दिद कहलाता हैं !*_

_*मुजद्दिद होने के लिए जो चीज़ सबसे ज्यादा अहम होती है वो है इल्म और मुहब्बते रसूल क्योंकि जिसपर नबी की इनायत ना हो वो इल्म की गहराई को पहुँच नहीं पाता इस्लिये इल्म का वुसुल और इनायते रसूल् बहोत ज़रुरी ही !*_

_*1). उल्मा में कई दर्जे (Categry) होती है जैसे -*_

_*आलिम*_
_*फाज़िल*_
_*मुफ्ती*_
_*मुझ्तहिद फि मसाएल*_
_*मुझ्तहिद फि मज़हब*_
_*और भी बहोत से दर्जे उल्मा में होते है ।*_

_*2). इसी तरह वलियो में भी कई दर्जे (Categry) होते है जैसे👇🏻*_

_*गौस*_
_*कुतुब*_
_*अब्दाल*_
_*नज्बा*_
_*अव्तात*_
_*अब्किया*_
_*सुल्हा*_
_*सुफीया !*_

_*🔸उल्मा और औलिया में एक दर्जा आता है (मुजद्दिद) का और ये दर्जा बहोत ही बुलन्द ओ बाला है -उस वक़्त रुहे ज़मीन के (सबसे बड़ा वली) और (सबसे बड़ा आलिम) जो होता है वो मुज्जद्दिद होता है !*_

_*मुजद्दिद् अपने वक़्त का सबसे बड़ा आलिम और सबसे बड़ा वली होता है !*_

_*🔹इमाम "मुजद्दिद अल्फे-सानि शेख अहमद सर-हिंदी रहमतुल्लाह ताला अलैह "अपनी किताब*_
_*📕 मक़्तुबाते-रब्बानी*_
_*में लिखते हैं कि मुजद्दिद एक ऐसा मकाम है कि उस ज़माने का गौस भी उस मुजद्दिद के मातेहत (Under) होता है !*_

_*🔸यानी के जब की आलिम किसी मसले को सम्झ्ने से कासिर (Confuse) हो जाते है । तो उस वक़्त वो उस मुजद्दिद की तरफ रुजु करते है ।*_

_*🔹इसी तरह जब कोई वली किसी सुलुक के मसले को समझ नहीं पाता और सुलुक् की मंज़िल को पाने के लिए उस मुजद्दिद की तरफ रह्नुमाई के लिए जाता है ।*_

_*👉🏻जैसा कि मुजद्दिद का एक काम सुन्नत को हया करना यानि की ज़िंदा करना होता है तो अब हम पहले सुन्नत पर बात करेंगे ।*_

_*📚 हदीस-ए-पाक हुज़ूर صلى الله عليه وسلم*

_*🌹हज़रत सय्यद्ना इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_
_*हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद -फरमाया*_

_*"मन तम्स्सुक़ा बे सुन्नती-इन्दा फसादी उम्मती''*_
_*📝तर्जमा- जब मेरी उम्मत में फित्ने फ़ैल जाए और हर तरफ फसाद हो तो उस फसाद के ज़माने में जो शख्स मेरी किसी मुर्दा सुन्नत को जिन्दा करेगा उस शख्स को अल्लाह तआला 100 शहीदों के बराबर सवाब अता फ़रमायेगा !*_

_*इमाम बेहकी- रदियल्लाहोअन्हु ने इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 KITAAB-UZ-ZUHAD, Jild 2, Page 118, Hadees No: 207*_

_*‍ह़ज़रत इमाम अबू नोऐम रहीम-उल्लाह ने इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 HIDAYATUL-AULIYA, Jild 2, Page 200*_

_*इमाम देअल्मी रहीम-उल्लाह इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 MASNADUL-FIRDOUS, Jild 4, Page 198*_

_*💡यही हदीस और भी किताबो में आयी है !*_

_*📕 IBNE-MAJAH, Jild 3, Page 360*_
_*📕 SHAHRUSODOOR, Page No 31*_

_*उल्मा के कौल-* *मुहद्देसीन फर्माते है कि इस हदीस् के मुताबिक जो शख्स नबी صلى الله عليه وسلم की किसी सुन्नत को ज़िंदा करता है  और फिर उस सुन्नत को उम्मत में रायेज करता है वो मुजद्दिद होता है !*_

_*जितना सवाब उस सुन्नत को ज़िंदा करने पर मिलता है फिर जितने लोग उस सुन्नत को फॉलो करते उन लोगों को तो 100 शहीदो का सवाब तो मिलता है साथ साथ उतना ही सवाब उस सुन्नत को फालो करवाने की वजह से उस मुज्जदिद को भी मिलता है !*_

_*शहीद को कितना सवाब मिलता है ?*_

_*हुज़ूर صلى الله عليه وسلم इर्शाद फरमाते हैं कि 1 शहीद का सवाब अल्लाह पाक इतना देता है कि उस शख्स के 'गुनाहे कबीरा' और 'गुनाहे सगीरा' सब को माफ फरमा देता है और उसे बगैर हिसाब - किताब के जन्नत अता फरमाता है !*_
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            _*अक़ायद- अम्बिया ज़िन्दा हैं*_
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_*वहाबियों के इमाम इस्माईल देहलवी ने अपनी नापाक किताब तक़वियातुल ईमान में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में बहुत सारी गुस्ताखियां की और उसी में ये भी लिख मारा कि खुद हुज़ूर फरमाते हैं कि "एक दिन मैं भी मर कर मिटटी में मिल जाऊंगा" माज़ अल्लाह, आईये क़ुर्आन से ही पूछ लेते हैं कि क्या वाकई ऐसा है तो जवाब में मौला इरशाद फरमाता है कि,*_

_*और जो खुदा की राह में मारे जायें उन्हें मुर्दा ना कहो बल्कि वो ज़िंदा हैं हां तुम्हें खबर नहीं*_

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 154*_

_*इस आयत में शहीद का मौत के बाद भी ज़िंदा होने का सबूत है अब अगर कोई कहे कि ये ज़िन्दगी दुनिया में नहीं बल्कि क़यामत के बाद की बताई गयी है तो वो सबसे बड़ा जाहिल है क्योंकि क़यामत के बाद तो मुसलमान ही क्या बल्कि काफिरो मुशरिक मुर्तद सब ही ज़िंदा हो जायेंगे और अपने आमाल के हिसाब से ठिकाना पायेंगे तो फिर मौला को सराहतन ये ज़िक्र करने की क्या ज़रूरत थी कि "वो ज़िंदा हैं और तुम्हें शुऊर नहीं" बल्कि दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि "वो रोज़ी भी पाते हैं" तो मालूम हुआ कि वो दुनिया में ही मरकर फिर जिस्म जिस्मानियत के साथ ज़िंदा हो जाते हैं बस उनकी ज़िन्दगी को हम समझ नहीं सकते, यहां ऐतराज़ करने वाला एक ऐतराज़ और कर सकता है बल्कि करता है कि ये आयत तो शहीद के हक़ में नाज़िल हुई है तो इसमें अम्बिया की ज़िन्दगी कैसे साबित है तो याद रखिये कि ये ऐतराज़ करके उसने अपने जाहिल होने का एक और सबूत दे दिया वो इस तरह कि ये ऐतराज़ ऐसा ही है जैसा कि कोई ये कहे कि जितनी पावर एक सिपाही को है उतनी तो इंस्पेक्टर को भी नहीं है या जितनी पावर इंस्पेक्टर को है उतनी तो डी.एम को भी नहीं है, बात समझ में आ गयी होगी यानि कि जो मरतबे में बड़ा होता जायेगा उसका इख्तियार और पावर भी बढ़ता जायेगा और उस बड़े का पावर कभी कभी छोटे के पावर को दिखाकर बताई जाती है मसलन घर की औलाद यानि बेटा बेटी जो भी सामान इस्तेमाल करते हैं चाहे वो कार हो बाईक हो मोबाइल हो कैश हो कुछ भी हो उससे पता यही चलता है कि इनका बाप बड़ा अमीर आदमी है जब ही तो अपने बच्चों को इतना सब कुछ दे रखा है, अब असल बात की तरफ चलते हैं कि एक बशर से लेकर मुस्तफा जाने रहमत सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के मरतबे के बीच 27 दर्जों का फर्क है और शहीद तो सिर्फ चौथे ही दर्जे पर फायज़ है तो उसके ऊपर वाले जितने भी मरतबे के लोग हैं चाहे वो मुजतहिद हों औताद हों अबदाल हों क़ुतुब हों क़ुतुबुल अक़्ताब हों ग़ौस हों ग़ौसे आज़म हों ताबई हों सहाबी हों जितने भी होंगे उन सबको उससे ज़्यादा फज़ीलत हासिल होगी, तो जब शहीद को मौला तआला ज़िन्दा कह रहा है तो उसके ऊपर वाले जितने हैं सब ज़िंदा होंगे तो अब अंदाज़ा लगाइये ऐसे जाहिलों की जिहालत की कि वो नबियों को माज़ अल्लाह मुर्दा कह रहे हैं, इतनी तम्हीद के बाद क़ुर्आन की ये आयत पेश करने की ज़रूरत नहीं थी फिर भी इसे पढ़कर अपना ईमान ताज़ा कर लीजिये मौला फरमाता है कि,*_

_*फिर जब हमने उस पर मौत का हुक्म भेजा, और जिन्नों को उसकी मौत ना बताई मगर ज़मीन की दीमक ने कि उसका असा खाती थी फिर जब सुलेमान ज़मीन पर आया जिन्नो की हक़ीक़त खुल गई*_

_*📕 पारा 22, सूरह सबा, आयत 14*_

_*वाक़िया ये है कि हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम मस्जिदे अक़सा यानि बैतुल मुक़द्दस की तामीर फरमा रहे थे और आपने उस काम में जिन्नातों को लगा रखा था, दिन भर जिन्नात काम करते और आप उन सबका मुआयना करते रहते जब आप रात को वापस जाते तो वो सब भी भाग जाते और काम बंद कर देते, अचानक एक दिन हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम अपने असा पर टेक लगाकर खड़े थे और आपकी रूह कब्ज़ हो गयी और जिन्नात काम में मशगूल रहे अब जब रात हुई तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हिले ही नहीं बल्कि वैसे ही खड़े रहे अब जिन्नातों को इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वो काम बन्द कर पाते तो रातों दिन वो काम करते रहे इसी तरह पूरा एक साल बीत गया और मस्जिदे अक़्सा बनकर मुकम्मल हो गई, इस बीच आपके असा को दीमक खाती रही जब साल गुज़रा तो असा टूट गया और आपका जिस्म मुबारक ज़मीन पर आ गया तब जिन्नातों को मालूम हुआ कि हज़रत तो साल भर पहले ही विसाल फरमा चुके हैं और उन्होंने अपने बारे में जो ये फैला रखा था कि हम ग़ैब की बातें जानते हैं तो उसकी हक़ीक़त खुल गई कि अगर उन्हें ग़ैब होता तो क्यों साल भर पहले ही हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की मौत का इल्म ना हुआ और क्यों साल भर मेहनत मशक़्क़त में पड़े रहे, अब ज़रा सोचिये कि अगर अम्बिया अलैहिस्सलाम मरकर मिट्टी में मिल जाने वाले लोग होते माज़ अल्लाह तो क्या साल भर उनका जिस्म वैसे ही तारो ताज़ा रहता जबकि आम इंसान की लाश से दूसरे दिन ही बदबू आने लगती है तो मानना पड़ेगा कि वो दुनिया में ही मौत के बाद भी ज़िंदा ही रहते हैं इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*अम्बिया को भी अजल आनी है*_
_*मगर ऐसी कि फक़त आनी है*_
_*फिर उसी आन के बाद उनकी हयात*_
_*मिस्ल साबिक़ वही जिस्मानी है*_
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      _*🔊Gaana (Song) Sunna Kaisa*_
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 *🔘 Allah Ke Rasool صلى الله عليه وسلم Ne Farmaya Jis Ne Song Suna Goya Usne Shaitan Ki Aawaz Suni.!*     

*Aur Ek A'Hadees Me Aaya Hai Gaana Jis Ne Suna Uske Kaano 👂🏻 Me Pighla Hua Shisha Dala Jayega*

*HAZRAT-E-SAIYYEDUNA ANAS رضی اللہ تعالی عنه Se Mankul Hai, Jo Shksh Kisi Gaane Wale Ke Paas Beth Kar Gaana Sunta Hai, Qayamat Ke Din الله تعلی Uske Kaano Me Pighla Hua SHISHA Dalega Gaane Baaze Sunna Saitani AF'AAL Hai SA'ADAT-MAND Musalman In Chijo Ke Karib Bhi Nahi (Bhatke) Gaane Baazo Se Bachna Behad Zaroori Hai Ke Iska Azab Kisi Se Bhi Na Saha Ja Sakega.!*

_*📕 Kanzul Ummal*_
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            _*शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*_
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_*बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.*_

*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*

*اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم*

_*बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम*_

_*अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम..!*_

_*सारे गुनाह मुआफ़👇🏻*_

_*हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार*_

*اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ*

_*पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।*_

_*📕 अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष: 7717*_

_*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*_

_*गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।*_

*لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم*

_*✍🏻 तर्जमा :- खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।*_

_*📕 फ़ैज़ाने सुन्नत*_
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                        _*फ़ज़ाइले जुमा*_
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_*1). एक फ़रिश्ता है जिसकी 40000 सींग है, उसकी हर सींग पर 40000 फ़रिश्ते हैं, ये सब जुमा के दिन सज्दा करते हैं और उस शख्स के लिए मग़फिरत की दुआ करते हैं जो जुमा की नमाज़ पढ़े*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफ़ह 333*_

_*2). जुमा के 24 घंटो के हर घंटे में मौला तआला 6 लाख ऐसे लोगो को जहन्नम से आज़ाद करता है जिन पर जहन्नम वाजिब हो चूका था*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफ़ह 333*_

_*3). जुमा के दिन गुस्ल करके मस्जिद जाने वाले को हर क़दम पर 20 साल की इबादत का सवाब और नमाज़ के बाद 200 साल की इबादत का सवाब मिलता है*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफ़ह 334*_

_*4). मस्जिद में दुनिया की जायज़ बात करना नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खा जाती है और मस्जिद में हसना कब्र में अँधेरा लाता है*_

_*📕 अहकामे शरियत, हिस्सा 1, सफह 109*_

_*5). अगर जुमे की जमात जारी हो और इमाम अत्तहयात में हो तो जमात के लिए दौड़ना फ़र्ज़ है और नमाज़ों में दौड़ कर शामिल होना मकरूह है*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफ़ह 350*_

_*6). ख़ुत्बे के वक़्त बात करना खाना पीना सलाम करना या सलाम का जवाब देना इधर उधर देखना वज़ीफ़ा दुरूद दुआ कुछ भी ज़बान से पढ़ना हराम है*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 3, सफह 696, 697, 698*_

_*7). ख़ुत्बे के वक़्त हिलना डुलना मना है यहाँ तक कि आँख की कनखियों से दूसरी तरफ देखना भी मकरूह है*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 3, सफह 743*_

_*8). जिसने ख़ुत्बे के वक़्त किसी को चुप रहने को कहा उसके लिए जुमा में कोई अज्र नहीं*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 3, सफह 697*_

_*ज़रा सोचिये की ख़ुत्बे के वक़्त किसी को बोलता देखकर उसको मना करना तक मना है तो जो लोग यूँही बातें करते रहते हैं उनको क्या ख़ाक सवाब मिलेगा*_

_*9). जुमे के दिन ख़ुत्बे से लेकर नमाज़ ख़त्म होने तक की दुआ रद्द नहीं की जाती, मगर दोनों ख़ुत्बे के बीच दिल में दुआ करें*_

_*📕 मिश्कात, सफ़ह 120*_
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                  _*जुमा और दुरूदे पाक*_
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_*आक़ा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जुमा को कसरत से मुझ पर दुरूद पढ़ा करो क्योंकि तुम्हारा दुरूद मेरी बारगाह में पेश किया जाता है*_

_*📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 1, सफह 491*_

_*बाद नमाज़े जुमा मदीना तय्य्बह की जानिब मुंह करके दुरूदे जुमा 100 बार पढ़ें,आलाहज़रत ने इस दुरूदे पाक की इजाज़त तमाम सुन्नियों को अता फरमाई है,सही और मोतबर हदीसो से इसके 40 फायदे साबित हैं चंद यहां ज़िक़्र करता हूं*_

_*1. इसके पढ़ने वाले पर मौला 3000 रहमतें उतारेगा*_

_*2. उस पर 2000 बार अपना सलाम भेजेगा*_

_*3. 5000 नेकियां उसके नामए आमाल में लिखेगा*_

_*4. उसके 5000 गुनाह माफ करेगा*_

_*5. उसके 5000 दर्जे बुलंद करेगा*_

_*6. उसके माथे पर लिखेगा कि ये मुनाफिक़ नहीं*_

_*7. उसके माथे पर लिखेगा कि यह दोज़ख से आज़ाद है*_

_*8. मौला उसे क़यामत के दिन शहीदों के साथ रखेगा*_

_*9. उसके माल में तरक्क़ी देगा*_

_*10. उसकी औलाद और औलाद की औलाद में तरक्क़ी देगा*_

_*11. दुशमनों पर ग़लबा देगा*_

_*12. दिलों में उसकी मुहब्बत रखेगा*_

_*13. किसी दिन ख्वाब में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का दीदार करेगा*_

_*14. ईमान पर खात्मा होगा*_

_*15. क़यामत में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उससे मुसाफह करेंगे*_

_*16. रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत उसके लिए वाजिब होगी*_

_*17. अल्लाह उससे ऐसा राज़ी होगा की कभी नाराज़ ना होगा*_

_*📕 अलवज़ीफतुल करीमा, सफह 32*_
_*📕 खज़ीनए दुरूद शरीफ, सफह 217*_

_*हदीस में आता है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता*_

_*📕 कुर्बे मुस्तफा,सफह 100*_
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         _*Jummah - Khutbe Ke Masail*_
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_*🔘 Khatib Ki Taraf Munh Karke Baithna Sunnat-E-Sahaba Hai..!*_

_*💡Buzurgan-E-Deen Farmate Hai : " Do Janu Baithkar Khutba Sune, Pehle Khutbe Me Hanth Bandhe, Dusre Me Janu Par Hanth Rakhe To In Sha Allah Ta'ala 2 Rakat Ka Sawab Milega!"*_

_*📕 Mir'atul Manajih, Jild-2, Safa-338*_

_*Aala Hazrat Rahmatullah Alaih Farmate Hai👇🏻*_

_*"Khutbe Me Huzoor (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ka Naame Paak Sunkar Dil Me Durud-E-Paak Padhe Ki Zaban Se Sukut (Yani Khamosh Rahna) Farz Hai..!*_

_*📕 Fatwa Razwiyya Mukhrraza, Jild-8, Safa-365,*_

_*Aala Hazrat Rahmatullah Alaih Farmate Hai👇🏻*_

_*"Khutbe Ki Halat Me Chalna Haram Hai,*_
_*Aulam-E-Kiram Yaha Tak Farmate Hai Ki Agar Aise Waqt Aaya Ki Khutba Shuru Ho Gaya To Masjid Me Jahan Tak Pahuncha Wahi Ruk Jaye, Aage Na Badhe Ki Ye Amal Hoga Aur Halate Khutba Me Koi Amal Jayez Nahi..!*_

_*📕 Fatwa Razwiyya Mukhrraza, Jild-8, Safa-333*_
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                 _*Jumma Ka Huqm*_
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_*🔘 Jumma Ka Huqm-- Jumma Ki Namaz Har Baaligh Musalman Par Farz Hai Allah Ta'ala Qur'aan Me irshaad Farma Raha Hai Ke.*_

*ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﺇِﺫَﺍ ﻧُﻮﺩِﻱَ ﻟِﻠﺼَّﻠَﺎﺓِ ﻣِﻦ ﻳَﻮْﻡِ ﺍﻟْﺠُﻤُﻌَﺔِ ﻓَﺎﺳْﻌَﻮْﺍ ﺇِﻟَﻰٰ ﺫِﻛْﺮِ*
*ﺍﻟﻠَّـﻪِ ﻭَﺫَﺭُﻭﺍ ﺍﻟْﺒَﻴْﻊَ ۚ ﺫَٰﻟِﻜُﻢْ ﺧَﻴْﺮٌ ﻟَّﻜُﻢْ ﺇِﻥ ﻛُﻨﺘُﻢْ ﺗَﻌْﻠَﻤُﻮﻥَ ﴿٩ ﴾*

_*📝Aye Imann Walo! Jab Jumma Ke Roz Namaz Ke Liye Pukar Ho To Tum Allah Ke Zikr Ki Taraf Lapko Aur Apna Karobaar (Business) Chhor Do.*_

_*📕 Surah Jumma- 09*_

_*🔘 Hajrat Hafsa (Radi Allahu Anha Se Riwayat Hai Ke👇🏻*_

_*"Nabi-E-kareem (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya*_
_*”Jumma Ki Taraf Jaana Har Baaligh Musalman Par Farz Hai.”*_

_*📕 Sunan Nisayi*_
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    _*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 1*_
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_*आपका नाम इब्राहीम और लक़ब अबुज़्ज़ैफ यानि बहुत बड़े मेहमान नवाज़ और अबुल अम्बिया यानि नबियों के बाप है क्योंकि 8 अम्बिया इकराम यानि हज़रत आदम हज़रत शीश हज़रत इदरीस हज़रत नूह हज़रत हूद हज़रत सालेह हज़रत लूत और हज़रत यूनुस अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के अलावा बाकी सारे नबी आप ही की नस्ल से हुए, आपके 2 साहबज़ादे नबी हुए हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं और दूसरे हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं*_

_*📕 नुज़हतुल कारी,जिल्द 6, सफह 501*_
_*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1, सफह 373*_

_*आपका नस्ब नामा ये है इब्राहीम बिन तारख बिन नाखूर बिन सारू बिन रऊ बिन तातेय बिन आमिर बिन सालेह बिन रफह बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, और आज़र आपका चचा जो कि काफिर था कुछ लोग उसे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का बाप कहते हैं ये बे अस्ल है, क्योंकि किसी भी अम्बिया अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के आबा व अजदाद में कोई भी काफिर ना हुआ सब मोहिद मोमिन थे, चुंकि अरब क़ौम में चचा को भी बाप ही कहते हैं इसी लिए क़ुरान ने आज़र को आपका बाप यानि अबियह कहा जैसा कि खुद हदीसे पाक में है कि एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने युं फरमाया कि "मेरे बाप अब्बास को मुझ पर पेश करो" हालांकि वो आपके बाप नहीं बल्कि चचा हैं, आप तूफाने नूह के 1709 साल बाद और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 2300 साल पहले अमवाज़ के इलाक़े मक़ामे सोस में पैदा हुए*_

_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1, सफह 810*_

_*आपकी वालिदा के नाम मे इख्तिलाफ है सानी या नूफा या लेवसा या अमीलिया या बूना बिन्त करबन मज़कूर है*_

_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2, सफह 186*_
_*📕 अलबिदाया,जिल्द 1, सफह 140*_

_*नमरूद बिन कुंआन जाबिर बादशाह था जो कि लोगों से अपनी परशतिश करवाता, उसके दरबार के नुजूमियों ने उसे बताया कि एक बच्चा पैदा होने वाला है जो कि तेरी हलाक़त का बाइस होगा, उसने ये सुनकर फौरन ही जो बच्चे पैदा हुए थे सबको मरवा दिया और जो हमल में थे सबका हमल गिरवा दिया और मियां बीवी को मिलने पर भी पाबंदी लगवा दी, मगर तक़दीरे इलाही को कौन टाल सकता है आपकी वालिदा मोहतरमा हामिला हो गईं मगर उम्र कम थी सो हमल पहचान में ना आता था जब आपकी विलादत का वक़्त करीब आया तो आपके वालिद उन्हें शहर से दूर एक तहखाने में ले गए जो उन्होंने पहले ही खोद रखा था, वहीं आपकी विलादत हुई आपकी वालिदा आपको रोज़ाना उसी तहखाने में दूध पिला आती और आते हुये गार के मुंह को पत्थरों से ढ़क दिया करती, आप एक महीने में इतना बढते थे जितना एक आम बच्चा साल भर में बढ़ता था, आप तहखाने में कितनी मुद्दत रहे इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 7 बरस बाज़ ने 13 और बाज़ ने 17 भी लिखा है*_

_*📕 खज़ाएनुल इर्फान, पारा 7, रुकू 15*_

_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ 3 झूठ की निस्बत की जाती है पहली बात आपका ये कहना कि मैं बीमार हूं हालांकि आप बीमार नहीं थे, दूसरा बुतों को तोड़कर इनकार करना, तीसरा अपनी बीवी को बहन कहना, मगर एक नबी हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकता आईये उसकी पूरी तफसील देखते हैं*_

_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने चचा से कहा कि क्यों इन बुतों की पूजा करते हो जो ना सुन सकते हैं और ना बोल सकते हैं पर वो नहीं माने उधर क़ौम का एक सालाना मेला लगता था जिसे वो ईद कहते थे उन्होंने जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से उस मेले में चलने को कहा तो आपने आसमान की तरफ देखा और फरमाया कि "मैं बीमार होने वाला हूं" इस पर वो समझें कि ये बीमार हैं और आपको छोड़कर मेले में चले गए इधर आपको हालात मुनासिब नज़र आये और आपने उन सब बुतों को तोड़ डाला और वो हथौड़ा एक बड़े बुत के कांधे पर रख दिया और उसे नहीं तोड़ा,उधर क़ौम को जब ये पता चला तो भागती हुई आई और कहा कि किसने हमारे खुदाओं का ये हाल किया इसपर आपका नाम आया कि आप ही उनकी मुखालिफत करते हैं और आज गांव में सिर्फ आप ही मौजूद थे, आपको बुलाकर जब पूछा गया कि इन बुतों को किसने तोडा तो आपने फरमाया "उनके इस बड़े ने किया होगा"*_

_*पहला क़ौल ये कि मैं बीमार होने वाला हूँ - आपके कहने का ये मतलब हरगिज़ नहीं था कि मैं कल ही बीमार होने वाला हूं,आखिर ज़िन्दगी में आदमी कभी तो बीमार होगा ही इस कलाम को "तौरियह" कहते हैं यानि कहने वाला अपनी बात की मुराद दूर की ले अगर चे सुनने वाला क़रीब समझे और अगर इसको युं भी कहें कि मैं बीमार ही हूं तब आपके कहने का मतलब ये था कि तुमने एक अल्लाह को छोड़कर ना जाने कितने बातिल माबूद बना रखे हैं इसी वजह से मैं ज़हनी परेशानी में मुब्तेला हूं और मेरा क़ल्ब बीमार है अगर चे लोग इसका माने कुछ भी समझें*_

_*दूसरा क़ौल ये कि इस बड़े ने किया है इसकी 7 शरहें हैं 👇🏻*_

_*1). पहला ये कि आपने ये नहीं फरमाया कि ये काम इस बुत ने ही किया है बल्कि इससे आपने अपनी ज़ात ही मुराद ली इसको युं समझिये जैसे मेरा ये मश्ग आप पढ़ें और फिर मुझसे पूछें कि क्या इसे आपने लिखा है तो मैं कहुं कि नहीं तुमने लिखा है तो यहां ऐतराज़न कहा कि अरे भाई तुमने तो लिखा नहीं तो ज़रूर मैंने ही लिखा होगा इस कलाम को "तारीज़" कहते हैं,मतलब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से क़ौम ने पूछा कि क्या ये सब तुमने किया है तो आपका ये फरमान कि नहीं इस बड़े ने किया है दर असल उनको यही बताना था कि जब ये बोल नहीं सकता सुन नहीं सकता जवाब नहीं दे सकता तो बुतों को क्या खाक तोडेगा ज़ाहिर सी बात है मैंने ही किया है, मगर इस कलाम को वो नहीं समझें*_

_*2). दूसरा ये कि कभी कभी काम करने की निस्बत भी करवाने वाले की तरफ की जाती है मसलन आप क़ुरान पढ़ रहे है अचानक आपका बेटा कमरे में दाखिल हुआ और आकर टी.वी चालू करके बैठ गया आप उठे और दो थप्पड़ रसीद कर दिए जब घर वालो ने पूछा तो आपने टी.वी को ही ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सब इसी ने किया है बस उसी तरह क़ौम के लोग उन बुतों को माबूद समझते और उन्हें खूब सजाते और उस बड़े बुत को कुछ ज़्यादा ही तवज्जोह देते जिसकी वजह से आपको गुस्सा आया और सारे बुतों को तोड़कर उसी की तरफ निस्बत कर दी क्योंकि गुस्सा उसी की वजह से आया था*_

_*3). तीसरा ये कि जब क़ौम बुतों को माबूद मानती है तो फिर उसको क़ुदरत भी होनी चाहिए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का उसकी तरफ निस्बत करना कि इसने ये किया है फिर क़ौम का ये कहना कि ये तो कुछ हरकत नहीं कर सकता दर असल उनको समझाना मुराद था कि जब तुम खुद जानते हो कि वो ऐसा नहीं कर सकता तो क्यों उसको माबूद समझकर पूजा करते हो*_

_*4). चौथा ये कि आपका कलाम ये था कि जिसको करना था वो कर चुका अब अगर इसके अंदर बोलने की सलाहियत है तो इसी से पूछ लो कि किसने किया है*_

_*5). पांचवा ये कि "कबीरहुम" पर वक़्फ है और फिर कलाम की शुरुआत "हाज़ा" से है मतलब आपका ये कहना कि इनके बड़े ने किया है मतलब आपने बड़े से अपनी ही ज़ात मुराद ली कि मैं ही वो बड़ा हूं क्योंकि बुत कितना भी बड़ा हो पर इंसान से बड़ा नहीं हो सकता*_

_*6). फेअल की इज़ाफत बड़े बुत की तरफ मशरूत के तौर पर है मतलब ये कि अगर ये बोलता है तो इसने किया है और नहीं बोलता तो ज़ाहिर है कि नहीं बोलता तो इसने नहीं बल्कि मैंने किया है क्योंकि कलाम में तक़दीम व ताख़ीर है*_

_*7). एक क़िरात "फअलहु कबीरहुम" भी आई है मतलब ये कि शायद इनके बड़े ने किया हो*_

_*तीसरा क़ौल आपका अपनी बीवी को बहन कहना - जब क़ौम आपकी बात नहीं मानी तो नमरूद के हुक्म से आपको आग में डाला गया आग आप पर गुलज़ार हो गयी, जब आप बाहर आये तो आप क़ौम से बहुत ना उम्मीद हो गए और सब कुछ छोड़कर आप अपने चचा हारान के पास चले गए, आपकी सदाक़त को देखकर आपके चचा ने अपनी बेटी हज़रते सारा का निकाह आपसे करा दिया मगर आपने वहां भी हक़ की सदा बुलंद करनी शुरू करदी जिस पर आपके चचा ने आपको वहां से चले जाने को कहा आप जब शहर फलस्तीन से गुज़रे तो वहां का बादशाह जो कि बहुत ज़ालिम था और हर आदमी की बीवी को अपने कब्ज़े में ले लेता था, जब उसको आपकी और हज़रत सारा के आने की खबर हुई तो दोनों को दरबार में बुलवाया और आपसे पूछा कि ये औरत कौन है चुंकि वो आपके चचा की बेटी थीं सो आपकी बहन भी थीं इसी निस्बत से आपने कहा कि ये मेरी बहन है, मगर उस बादशाह ने फिर भी उनको ना छोड़ा और बुरी नियत से उनकी तरफ बढ़ा तो अल्लाह ने उस पर अज़ाब मुसल्लत कर दिया वो गिड़गिड़ाने लगा और आपसे माफी चाही तो आपने उसे माफ कर दिया तब उस बादशाह ने एक कनीज़ यानि हज़रते हाजरा को दोनों को दिया और रुखसत किया*_

_*अलहासिल कलाम आपका तीनो सच्चा था मगर लोगों ने उसके माने अपनी अक़्ल के हिसाब से तय किये और उसे झूठ समझा*_

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 82--85*_

_*आपने 4 निकाह किये हज़रते सारा व हज़रते हाजरा इन दोनों के विसाल के बाद कन्तूरा बिन्त यक़तन और उनके इन्तेक़ाल के बाद हिजून बिन्त ज़हीर से, जिस तरह मर्दो में सबसे ज़्यादा हसीन हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम हुए हैं उसी तरह औरतों में सबसे ज़्यादा खूबसूरत हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा हुईं हैं बल्कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का हुस्न भी आपकी दादी हज़रते सारा का ही सदक़ा था*_

_*📕 अलकामिल फित्तारीख, जिल्द 1, सफह 50*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 99*_

_*आपने जिन बुतों को तोड़ा उनकी तादाद 72 थी*_

_*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1, सफह 76*_

_*जिस वक़्त आपको आग में डाला गया उस वक़्त आपकी उम्र 16 साल थी और आग में आप 7 दिन रहे*_

_*📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 163*_

_*जारी रहेगा.....*_
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    _*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 2*_
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_*ये आतिशे नमरूद क़रियये कोस में धधकाई गई, ये पत्थर की चार दिवारी 90 फिट लंबी 60 फिट चौड़ी और 45 फिट ऊंची थी जिसमे एक महीने तक लकड़ियां जमा की गयी*_

_*📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 17, रुकू 5*_

_*आग को 7 दिन तक दहकाया गया*_

_*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 96*_

_*इस आग की बुलन्दी इतनी थी कि इसके शोले अहले शाम को दिखाई देते थे और इसकी आवाज़ 3 दिन की मुसाफत से सुनाई देती थी इसके ऊपर से भी कोई परिंदा उड़कर जा नहीं सकता था*_

_*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1, सफह 98*_

_*जब आग इस कदर भड़क गयी तो अब किसी को उसके पास जाने की हिम्मत ना होती थी तब इब्लीस लईन ने मुंजनीक़ बनाने का मशवरा दिया जिसे हैज़न नामी शख्स अमल में लाया, अल्लाह ने उसको ज़मीन में धंसा दिया और ये क़यामत तक धंसता ही रहेगा*_

_*📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 163*_

_*जिस वक़्त आपको आग में डाला गया तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक कमीज़ लाये और आपको पहनाया*_

_*📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12, रुकू 12*_

_*जब आप आग की तरफ जा रहे थे तो हवा और पानी का फरिश्ता हाज़िर हुआ आपसे कहा कि आप कहें तो हम ये आग बुझा सकते हैं आपने उनसे मदद लेने का इंकार किया फिर आपके पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और कहा कि किसी मदद की ज़रूरत हो तो कहिये इस पर भी आपने कहा कि मुझे रब के सिवा किसी की मदद की ज़रूरत नहीं फिर अर्ज़ किया कि आप कहें तो आपकी बात रब तक पहुंचा दूं तो आपने फरमाया कि वो मेरे कहे बग़ैर भी मेरी सुनता है तो जिब्रील अलैहिस्सलाम वहां से चले गए*_

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 90*_

_*एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा कि ऐ जिब्रील क्या तुम्हे कभी ज़मीन पर आने के लिए मशक़्क़त भी उठानी पड़ी है इस पर वो फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बेशक 4 मर्तबा मुझे ज़मीन पर आने के लिए बहुत जल्दी करनी पड़ी है*_

_*1. पहला जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला जा रहा था तो मौला का हुक्म हुआ कि ऐ जिब्रील मेरे खलील के आग में पहुंचने से पहले तुम उनके पास पहुंचे तो मैंने सिदरह छोड़ा और इससे पहले कि वो आग तक पहुंचते मैं पहुंच गया*_

_*2. दूसरा जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल के गले पर छुरी चलाने का कसद किया तो मौला ने फरमाया कि ऐ जिब्रील इससे पहले कि इस्माईल के गले पर छुरी चले फौरन जन्नत से एक दुम्बा लेकर इस्माईल के लिए फिदिया बनाओ तो मैं सिदरह से जन्नत गया वहां से दुम्बा लिया फिर ज़मीन पर आकर इस्माईल को हटाकर वो दुम्बा लिटा दिया और वो ज़बह हो गया*_

_*3. तीसरा जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाइयों ने कुंअे में फेंक दिया और वो पानी की तरफ बढ़ रहे थे तो मौला ने मुझे हुक्म दिया तो इससे पहले कि वो पानी तक पहुंचते मैं एक तख्त लेकर पहुंच गया और उनको बा आसानी उस पर बिठाया*_

_*4. चौथा जब आपका दनदाने मुबारक शहीद हुआ और खून की बूंदें ज़मीन की तरफ बढ़ रही थी तो मुझे हुक्म मिला कि आपका खून ज़मीन पर गिरने से पहले अपने हाथों में ले लूं तो मैं सिदरह से ज़मीन पर आया हालांकि आपका खून जिस्म से जुदा होकर ज़मीन की तरफ बढ़ रहा था  मगर उसके ज़मीन तक पहुंचने से पहले मैं पहुंचा और उसको अपने हाथों में ले लिया*_

_*📕 तफसीर रूहुल बयान,जिल्द 3, सफह 411*_

_*सिदरतुल मुंतहा ज़मीन से 50000 साल की दूरी पर है, सोचिये कि 50000 साल की दूरी आन की आन में तय कर रहे हैं और ये ताक़त मेरे आक़ा के एक ग़ुलाम की है तो अंदाजा लगाइये कि जब एक ग़ुलाम की ताक़त का ये हाल है तो नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ताक़त का क्या हाल होगा*_

_*📕 अलमलफूज़,जिल्द 4, सफह 7*_

_*जब आप आग में गए तो मेंढ़क हाज़िर हुआ और अपने आशिक़े रसूल होने की गवाही इस तरह दी कि अपने मुंह में पानी भरकर लाता और आग में डालकर उसे बुझाने की कोशिश करता, हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इसे मारने के लिए मना फरमाया है, अगर ख्वाब में मेंढ़क देखे तो ये इबादते इलाही में मसरूफ होने की दलील है और अगर बहुत ज़्यादा मेंढ़क देखे तो ये] किसी आने वाली मुसीबत की निशान देही है सदक़ा करे*_

_*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 2, सफह 68--86*_

_*वहीं छिपकली या गिरगिट वो बदतरीन जानवर है जो नबी अलैहिस्सलाम की आग में फूंक मारकर उसे भड़काने की कोशिश कर रही थी, हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इसे फासिक कहा है और मुस्लिम शरीफ की रिवायत है कि उसे पहली ही ज़र्ब में मारने पर 100 नेकी और दूसरे में उससे कम फिर उससे कम*_

_*📕 खाज़िन,जिल्द 4,सफह 244*_
_*📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 358*_

_*जब आप आग में पहुंचे तो रब ने आग से फरमाया कि "ऐ आग ठंडी और सलामती वाली हो जा इब्राहीम पर" तो उस वक़्त ज़मीन पर जितनी भी आग थी सब के सब ठंडी हो गयी और उलेमा फरमाते हैं कि अगर मौला सलामती का लफ्ज़ ना फरमाता तो आग इतनी ठंडी हो जाती कि उसकी ठंडक इंसान को नुकसान पहुंचा देती*_

_*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 10*_

_*सबसे पहले आप पर ईमान लाने वाले हज़रत लूत अलैहिस्सलाम हैं जबकि आप आग से बाहर आये*_

_*📕 जलालैन,हाशिया 8,सफह 337*_

_*आपको 80 साल की उम्र में खतना करने का हुक्म दिया गया जिसे आपने अपने हाथों से अंजाम दिया*_

_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 810*_

_*जिस वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए उस वक़्त आपकी उम्र 106 साल की थी और जब हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पैदा हुए तब आपकी उम्र 120 साल थी, यानि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम से 14 साल बड़े हैं*_

_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 176*_

_*आपकी कितनी औलाद है इसमें काफी इख्तेलाफ है, जलालैन में है कि आपके 4 बेटे थे इस्माईल-इस्हाक़-मदयन और मदायन, अलइतक़ान में अल्लाम जलाल उद्दीन सुयूती ने 12 लिखे इस्माईल-इस्हाक़-मान-ज़मरान-सराह-नफ्श-नफ्शान-अमीम-कीसान-सूरा-लूतान-नाफिश, तफसीरे नईमी में 8 का ज़िक्र है इस्माईल-इस्हाक़-मदयन-मदायन-ज़मरान-बक़्शान-यशबक़-नूह*_

_*📕 जलालैन,जिल्द 1,सफह 328*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 185*_
_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1, सफह 870*_

_*जारी रहेगा......*_
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    _*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 3*_
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_*नसारा का एक फिरका है जिसका नाम सायबा है उसी क़बीले के बादशाहों का लक़ब नमरूद है, अब तक 6 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिनका लक़ब नमरूद हुआ*_

_*1. नमरूद बिन कुंआन बिन हाम बिन नूह,यही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने का नमरूद है*_

_*2. नमरूद बिन कोश बिन कुंआन*_

_*3. नमरूद बिन संजार बिन ग़रूर बिन कोश बिन कुंआन*_

_*4. नमरूद बिन माश बिन कुंआन*_

_*5. नमरूद बिन सारोग़ बिन अरगू बिन मालिख*_

_*6. नमरूद बिन कुंआन बिन मसास बिन नुक़्ता*_

_*📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 1,सफह 93*_
_*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 1, सफह 98*_

_*अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है 2 मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और 2 काफिर नमरूद और बख्ते नस्र, और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे*_

_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178*_

_*नमरूद ने 400 साल हुक़ूमत की, नमरूद के पास कुछ तिलिस्माती चीजें थी जिसकी बिना पर उसने खुदाई का दावा किया*_

_*! तांबे का एक बुत था, जब भी कोई चोर या जासूस शहर में दाखिल होता तो उस बुत से आवाज़ आती जिससे वो पकड़ा जाता*_

_*! एक नक़्क़ारा था, जब किसी की कोई चीज़ ग़ुम हो जाती तो उस पर चोब मारा जाता तो वो गुमशुदा चीज़ का पता बताती*_

_*! एक आईना था, अगर कोई शख्स ग़ुम हो जाता तो उसमे नज़र आ जाता कि इस वक़्त कहां पर है*_

_*! एक दरख़्त था, जिसके साए में लोग बैठते और उसका साया बढ़ता जाता यहां तक कि 1 लाख लोग बैठ जाते थे मगर जैसे ही 1 लाख से 1 भी ज़्यादा होता तो साया हट जाता और सब धूप में आ जाते*_

_*! एक हौज़ था, जिससे मुकदमे का फैसला होता युं कि मुद्दई और मुद्दआ अलैह दोनों को उस हौज़ में उतारा जाता जो सच्चा होता उसके नाफ से नीचे पानी रहता और झूठा उसमे डुबकी खाता*_

_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1, सफह 677*_

_*नमरूद ने शहरे बाबुल में एक इमारत बनवाई जिसकी ऊंचाई 15000 फिट थी, उसने ये इमारत आसमान वालों से लड़ने के लिए बनवाई थी, मौला ने एक ऐसी हवा चलायी कि पूरी इमारत ज़मीन पर आ गयी और उसकी दहशत से लोग 73 ज़बान बोलने लगे उससे पहले तक सिर्फ एक ज़बान सुरयानी ही बोली जाती थी*_

_*📕 तफसीरे खज़ायेनुल इरफान, पारा 14, रुकू 10*_

_*नमरूद ने हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह को आग में डालने के लिए जो आग जलवाई थी उसकी लपटें कई सौ फीट ऊपर तक जाती थी उसी आग की तपिश से एक मच्छर के पर व पैर जल गए, इस मच्छर ने रब की बारगाह में दुआ की तो मौला ने फरमाया कि ग़म ना कर मैं तेरे ज़रिये ही नमरूद को हलाक़ करवाऊंगा, ये मच्छर एक दिन] नमरूद की नाक के जरिए उसके दिमाग में घुस गया और अंदर ही अंदर काटना शुरू किया, उस तक़लीफ से मौत हज़ार दर्जे बेहतर थी, जब वो काटता तो नमरूद अपने सर पर चप्पलों से मारा करता, दीवार में सर मारता और इसी तरह तड़प तड़प कर मरा*_

_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 3, सफह 68*_
_*📕 मलफूज़ाते निज़ामुद्दीन औलिया, स 162*_

_*जब नमरूद ने आग को गुलज़ार होता देखा तो समझ गया की हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का खुदा ही सच्चा खुदा है और उसने उसी वक़्त उसकी बारगाह में क़ुरबानी करने का फैसला किया, जब ये बात हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को पता चली तो आपने फरमाया कि बगैर ईमान लाये तेरा कोई भी अमल क़ुबूल नहीं तो वो बोला कि बादशाहत तो मैं नहीं छोड़ सकता मगर क़ुरबानी की जो नज़्र मैंने मान ली है उसे तो पूरा करूंगा फिर उसने 4000 गाय अल्लाह की राह में कुर्बान की, आपकी सदाक़त को देखकर नमरूद ने आपको दरबार में मुनाज़रे के लिए बुलवाया, और आपसे कहने लगा कि तुम्हारा रब कौन है जिसकी मैं इबादत करूं तो आप बोले कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है, इस बात का नमरूद ने गलत मतलब निकाला और कहने लगा कि ये तो मैं भी करता हूं और तब उसने दो कैदियों को बुलवाया एक को फांसी की सज़ा होने वाली थी और दूसरे को आज ही रिहाई मिलने वाली थी तो जिसको रिहाई मिलने वाली थी उसको सूली दे दी और जिसको मौत की सज़ा थी उसको रिहा कर दिया और बोला देखो मैं भी मारता हूं और जिलाता हूं,उसकी ये अहमकाना दलील सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा रब वो है जो मशरिक से सूरज निकालता है और मग़रिब में डुबोता है अगर तू खुदा है तो मग़रिब से सूरज को निकालकर दिखा, आपकी ये बात सुनकर वो उसके होश उड़ गए जब उससे इसका जवाब नहीं बन सका तो बोला कि मेरे पास तुम्हारे लिए कोई गल्ला नहीं है तुम उसी से मांगो जिसकी इबादत करते हो, घर लौटते हुए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने झोले में रेत भरकर ले आये सुबह को जब हज़रते सारा ने झोला खोला तो उसमें खुशबूदार गेंहू मौजूद था जिसे उन्होंने पीसकर रोटियां बनाई, जब आपने पूछा कि रोटी कहा से आयी तो कहने लगीं कि रात आप ही तो गेहूं लाये थे वो समझ गए कि ये मेरा रिज़्क़ है जो मेरे रब ने मुझे दिया है*_

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 91-94*_

_*सबसे पहले ताज नमरूद ने पहना, रियाया पर ज़ुल्म किया, खुदाई का दावा किया, इसकी उम्र 800 साल हुई*_

_*📕 खाज़िन, जिल्द 2, सफह 124*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कंघी बनवाई*_

_*📕 आईनये तारीख, सफह 70*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने बालों में मांग निकाली, मेहमान खाना बनवाया, नालैन पहना, हज के दौरान बाल मुंडवाए, बुतों को तोड़ा, पेशानी पर बोसा दिया*_

_*📕 महाज़िरातुल अवायिल, सफह 37-39*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खतना किया आपसे पहले खतने का हुक्म नहीं था, मेहमान नवाज़ी की, सबसे पहले आपके बाल सफेद हुए*_

_*📕 खाज़िन,जिल्द 1,सफह 89*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मूये ज़ेरे नाफ मूंडा*_

_*📕 अलबिदाया वननिहाया, जिल्द 1, सफह 175*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही पैजामा पहना*_

_*📕 फतावा रज़विया,जिल्द 10, सफह 84*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही हिजरत की*_

_*📕 रूहुल बयान,जिल्द 2,सफह 973*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही नाखून काटे और मूंछो को हलकी किया*_

_*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1, सफह 53*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही जिहाद किया और लश्करों की तरतीब दी,तलवार चलाई,मेंबर पर खुत्बा दिया और मेंहदी का खिज़ाब किया*_

_*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1, सफह 373*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही पानी से इस्तिन्जा किया और मिस्वाक की*_

_*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1, सफह 133*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुआनक़ा किया*_

_*📕 फतावा रज़विया, जिल्द 10, सफह 10*_

_*सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ही क़यामत के दिन लिबास पहनाया जायेगा*_

_*📕 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 483*_

_*जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेराज शरीफ पर गए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आपके मारेफत आपकी उम्मत को सलाम कहलवाया*_

_*📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 202*_

_*जारी रहेगा.......*_
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...