Thursday, October 3, 2019



    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 053 📕*_
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  🔵 *_हैज़ के बाद सोहबत कब जाइज है ⁉_*

             👉🏻 _*हमारे इमाम, इमामे आ़ज़म अबू हनीफ़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] के नज़दीक औरत को हैज का खुन  (10) दस दिनो के बाद आना बन्द हो जाए तो ग़ुस्ल से पहले भी सोहबत करना जाइज़ है, लेकिन बेहतर यह है के औरत ग़ुस्ल कर ले उस के बाद ही मुबाशरत की जाए।*_
         
📚 _*हदीस : हज़रत सालिम बिन अब्दुल्लाह और हज़रत सुलेमान बिन यासीर रदी अल्लाहु तआला अन्हुमा से हैज़ वाली औरत के बारे में पूछा गया की.........*_

 💫 *_"क्या उस का शौहर उसे पाक देखे तो ग़ुस्ल से पहले सोहबत कर सकता है या नही"? दोनों ने जवाब दिया...."न करे यहाँ तक कि वह ग़ुस्ल कर ले।_*

📕 *_मोअत्ता इमाम मालिक, जिल्द नं 1, बाब नं 26, हदीस नं 90, सफा नं 79_*

✍🏻 *_मसअ़ला : दस (10) दिन से कम मे खून आना बंद हो गया हो तो जब तक औरत ग़ुस्ल न करे सोहबत जाइज़ नही।_*

📕 *_बहारे शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 2, सफा नं 47_*

✍🏻 _*मसअ़ला : आदत के दिन पूरे होने से पहले ही हैज़ का खून आना बंद हो गया तो अगर्चे औरत ग़ुस्ल कर ले सोहबत जाइज़ नही, मसलन किसी औरत की हैज़ की आ़दत चार दिन व चार रात थी और इस बार हैज़ आया तीन दिन व रात तो चार दिन व रात जब तक पूरे न हो जाए सोहबत जाइज़ नही।*_

📕 *_बहारे शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 2, सफा नं 47_*
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            *_हैज़ से पाक होने का तरीका_*

✍🏻 _*मसअ़ला : औरत को जब हैज़ (खुन आना) बंद हो जाए तो उसे ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ है।*_

📕 *_कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 1, सफा नं 38_*

💫 *_हैज से फरागत के फौरन बाद गुस्ल करना जरुरी है! बिला कीसी उज्रे शरई गुस्ल मे ताखीर (देरी) करना सख्त हराम है!_*
   
📚 _*हदीस : उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] से रिवायत है कि.......*_

*_أن امرأة سألت النَّبيّ - صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ - عَن غسلها مِن المحيض، فأمرها كيف تغتسل، قالَ: خذي فرصة مِن مسك فتطهري بها . قالت: كيف أتطهر بها؟ قالَ: تطهري بها . قالت: كيف؟ قالَ: سبحان الله، تطهري ، فاجتذبها إلي، فقلت: تتبعي بها أثر الدم_*

💫💫        _*"एक औरत ने रसूलुल्लाह ﷺ से हैज़ के ग़ुस्ल के8 बारे मे पूछा । आप ने उसे बताया.. "यूं गुस्ल करें" और फिर फ़रमाया..... "मुश्क (कस्तूरी) मे बसा हुआ रूई का फाया ले और उस से तहारत हासिल करे"! वह औरत समझ न सकी और अर्ज किया..... "किस तरह से  तहारत करूँ"? फरमाया....... "सुब्हानल्लाह! उससे तहारत करो " (हज़रत आएशा सिद्दीका फरमाती है) "मैंने उस औरत को अपनी तरफ़ ख़ींच लिया और उसे बताया कि उसे खून के मुक़ाम पर फेरे "।*_

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 215, हदीस नं 305, सफा नं 201_*

_*📝नोट : इस ज़माने में मुश्क मिलना मुश्किल है इसलिए उसकी जगह गुलाब जल या इत् वगैरह का फाया लें।*_

💫 _*इसी हदीस के तहत इमाम अहमद रजा कादरी रजी अल्लाहु अन्हु नक्ल फरमाते है*_

👉 *_हैज वाली औरत को मुस्तहब  है की बाद फरागे हैज जब गुस्ल करे, पुराने कपडे से फर्जे दाखील (गुप्तांग) के अंदर से खुन का असर साफ करले_*

📕 *_फतावा रज्वीया जिल्द नं 1, किताबुत्तहारत बाबुल वजु सफा नं 54_*

💫 _*आगे मजीद "रद्दुल मुहतार, फतावा शामी, और फतावा तातर खानीया वगैरह के हवाले से फरमाते है......*_

💫 *_गुस्ल मे औरत को मुस्तहब है के फरजे दाखील (गुप्तांग) के अंदर उंगली डालकर धो ले, हॉ वाजीब नही बगैर उसके भी गुस्ल उतर जाएंगा!_*

          👉🏻 *_इस हदीस से मालुम हुआ कि हैज़ का खून आना बंद हो जाए तो, जब औरत ग़ुस्ल करने बैठे तो पहले रूई (Cotton,) को इत्र वगै़रा की ख़ूशबू में बसा ले फिर उससे खून के मक़ाम पर   अच्छी तरह फेरे ताकि वहॉ की गंदगी अच्छी तरह से साफ़ हो जाए,  फिर उस के बाद ग़ुस्ल कर ले! (गुस्ल का तरीका आगे आऐंगा)_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 052 📕*_
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           *_⚠हैज़ में औरत अछूत क्यों❓_*

          *✍🏻 _कुछ लोग औरत को हालते हैज़ (माहवारी) में  ऐसा नापाक और अछुत समझ लेते है के, उसके हाथ का छुआ पानी, खाने पिने से परहेज करते है! यहॉ तक के उसके साथ बैठना भी छोड देते है! यह आम खयाल है की जिस कमरे मे हाईजा औरत हो वह कमरा नापाक है और अगर ऐसे मौके पर किसी बुजुर्ग  की फातीहा आ जाए तो उस घर मे फातीहा नही होती! या अगर फातीहा दी  भी जाए तो यह खयाल रखा जाता है के ऐसी औरत का हाथ भी इन चिजो को नही लगना चाहीये जो फातीहा के लिये रखी जाती है! गरज के हाइजा औरत के के मुतअल्लीक कई तरह की जाहीलाना बाते आज कौम ए मुस्लीम मे देखी जा सकती है! यह सब लग्व व फुजुल व जेहालत है! याद रखीये हाइजा औरत फातीहा का खाना पका सकती है, इसमे कोई कबाहत नहीं, हॉ फातीहा नहीं दिला सकती की इसमे कुरआने करीम की सुरते पढी जाती है_*

                *_👉🏻 ऐसे लोग जो हालते हैज मे औरत को अछुत समझते है, उनके मुतअल्लीक शहज़ाद-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह तआला अलैह] अपने फ़तवे में इरशाद फरमाते है ........_*

 💫 *_"जो लोग ऐसा करते है वह नाजाइज़ व गुनाह का काम करते है, और मुशरेकीन यहूद, मजुस की रस्मे मरदूद की पैरवी करते है। हालते हैज़ मे सिर्फ़ सोहबत करना नाजाइज़ है बस इससे परहेज़ ज़रूरी है ! मुशरेकीन,  यहूद, और मजूस की तरह हैज़ वाली औरत को  Sweeper से भी बदतर समझना बहुत ना पाक ख़याल निरा, जुल्म अजीम वबाल है, यह उन की मनघडत है।_*

📕 *_फ़तावा-ए-मुस्तफ़्विया, जिल्द नं  3, सफा नं 13_*

📚 *_हदीस : उम्मुल मोमीनिन हजरत आइशा सिद्दीका रजी अल्हाहु तआला अन्हा इर्शाद फरमाती है....._*

💫 *_हुजुर ए अक्रम ﷺ ने मुझ से फरमाया की "ए आइशा! हाथ बढाकर मस्जीद से मुसल्ला उठा कर  दो" मैने अर्ज किया "मै हैज से हु!" हुजुर ﷺ ने फरमाया "तुम्हारा हैज तुम्हारे हाथ मे नही!"_*

📕 *_सही मुस्लीम शरीफ जिल्द नं 1, किताबुल हैज, बाब नं 3 सफा नं 143_*

📚 *_हदीस : हालते हैज़ मे सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह हराम व नाजाइज़ है! लेकिन औरत का बोसा ले सकते है। ख़बरदार बात बोस व कनार तक ही रहे उससे आगे मुबाशरत तक  न पहुँच जाए। इसी तरह एक ही प्लेट में साथ खाने पीने यहां तक कि हाइजा औरत  का झूठा खाने पीने मे भी कोई हर्ज नही है। गरज कि औरत से वैसा ही सुलूक रखे जैसा आम दिनो मे रहता है।_*

📕 *_मुलख्खस तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 136_*

📚 *_हदीस : उम्मुल मोमीनिन हजरत आइशा सिद्दीका रजी अल्हाहु तआला अन्हा इर्शाद फरमाती है....._*

💫 *_"जमानाए हैज (हैज के दौरान) मे मै पानी पिती फिर हुजुर ﷺ को देती तो जिस जगह मेरे लब लगे होते हुजुर ﷺ वही दहने मुबारक रख कर पीते, और हालते हाज मे मै हड्डी से गोश्त मुंह से तोड कर खाती फिर हुजुर ﷺ को देती तो हुजुर ﷺ अपना दहन शरीफ उस जगह पर रखते जहॉ मेरा मुंह लगा था!"_*

✍🏻 _*मसअ़ला : हालते हैज़ मे औरत के साथ शौहर का सोना जाइज़ है। और अगर साथ सोने में शहवत (Sex) का ग़लबा और अपने आपको को क़ाबू मे न रखने का शुबह (शक) हो तो साथ न सोए । और अगर खुद पर ऐतमाद व पक्का यक़ीन हो तो साथ सोना गुनाह नही है।*_

📕 *_बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 74_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 051 📕*_
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*_हालत ए हैज़ मे मुबाशरत (सोहबत) हराम है!_*

✍🏻 _*हजरत इमाम मुहम्मद गजाली रदि अल्लाहु तआला अन्हु इर्शाद फरमाते है.......*_

💫 _*"इल्मे दीन जो नमाज रोजा, तहारत वगैरह मे काम आता है, औरत को सिखाए! अगर न सिखाएंगा तो औरत को बाहर जाकर आलीम ए दीन से पुछना वाजीब और फर्ज है! अगर शौहर ने सिखा दिया है तो उसकी इजाजत के बगैर बाहर जाना और किसी से पुछना औरत को दुरूस्त नही, अगर दीन सिखाने मे कसुर करेंगा तो खुद गुनाहगार होंगा की हक तआला ने इर्शाद फरमाया.. ए इमान वालो! अपनी जानो और अपने घर वालो को जहन्नम की आग से बचाओ!*_

📕 *_किमीया ए सादात, सफा नं 265_*

           👉 *_हालते हैज मे औरत से सोहबत करना सख्त हराम है! जो की कुरआन से साबीत है! अल्लाह अज्जा व जल्ला और उसके रसुल ﷺ ने ऐसे शख्स से बेजारी का इजहार फरमाया है, जो हाइजा औरत से हम बिस्तरी करता है!_*

       *_🔵[हैज़ में मुबाशरत से नुकसान]🔵_*

      👉🏻 _*हकीमों ने लिखा है कि औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करने से मर्द और औरत को जुज़ाम (कोढ) की बीमारी हो जाती है। और कुछ हकीमों  का कहेना है, कि हैज़ की हालत में सोहबत किया और अगर हमल ठहर गया तो औलाद नाकिस (अधूरी) या फिर जुजामी पैदा होगी।*_

📕 *_इहया उल उलुम,  जिल्द नं 2, सफा नं 95_*

  👉🏻 _*हालते हैज़ मे सोहबत करने से औरत को सख्त नुक्सान है, क्योंकि औरत की फरज से  लगातार गंदा खून खारीज होता रहता है, जिस की वजह से वह मकाम  नर्म और नाजुक़ हो जाता है! अब अगर ऐसी हालत मे जिमा किया गया तो इस मकाम मे रगड की वजह से वहां ज़ख़्म बन जाता है! फिर मजीद यह की जख्म मे गर्मी की वजह से पीप भर जाता है! बाद मे मुख्तलीफ बिमारीयॉ पैदा होने लगती है!*_

    👉🏻 _*हकीमो के मुताबीक हैज मे मुबाशरत करने से (सोजीशे रहम, सुजाक व आतिश्क) जैसे मर्ज लाहिक हो जाते है! इसलिये हालते हैज मे जिन्सी इख्तिलात सेहत के लिये नुक्सानदेह है!*_

✍🏻 _*मसअ़ला : औरत हैज़ की हालत मे है और मर्द को शहवत (Sex) का ज़ोर है, और डर यह है कि कही   जिना मे न फंस जाऊ, तो ऐसी हालत मे औरत के पेट पर अपने आले (लिंग) को मस कर के इंजाल कर सकता है, जो जाइज़ है लेकिन रान पर नाजाइज़ है कि हालते हैज़ मे नाफ़  के नीचे से घुटने तक अपनी औरत के बदन से फाइदा हासील नही कर सकता।*_

📕 *_इहया उल उलुम,  जिल्द नं 2, सफा नं 95, फ़तावा-ए-अफ़्रीक़ा, सफा नं 171_*

          👉🏻 *_याद रहे यह मसअ़ला ऐसे शख़्स के लिए है जिसे ज़िना हो जाने का गालीब गुमान हो तो वह इस तरह से फरागत हासिल कर सकता है। लेकिन सब्र करना और उन दिनों (हैज) मे सोहबत से परहेज करना ही अफ़जल है।_*

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1 सफा नं 42_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 050 📕*_
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               *_हैज़ (माहवारी) का बयान_*

             👉🏻 *_बालेग़ा औरत के आगे के मक़ाम (शर्मगाह) से जो खून आदत के मुताबिक़ निकलता है उसे हैज़ (माहवारी MC Period) कहते है। लड़की को  जिस उम्र से यह खून आना शुरू हो जाएे तो शरई रू से वह उस वक्त़ से बालिग़ समझी जाएंगी।_*

             ✍🏻 *_मसअ़ला : हैज़ (माहवारी) की मुद्दत कम से कम तीन दिन और तीन रातें है यानी पूरे बहत्तर (72) घंटे, एक मिनट भी अगर कम है तो हैज़ नही। और ज़्यादा से ज़्यादा दस (10) दिन और दस रातें है।_*

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 42, कानूने शरीयत, जिल्द नं 1, सफा नं 51_*

✍🏻 *_मसअ़ला : हैज़ में जो खून आता है उस के छह (6) रंग है, काला, लाल, हरा, पीला, गदला, (कीचड़ के रंग जैसा) और मटीला (मिट्टी के रंग जैसा) उन रंगों मे से किसी भी रंग का खून आए तो हैज़ है ! सफ़ेद रंग की रूतूबत (गीलापन) हैज़ नही।_*

📕 *_बहारे शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 43, कानूने शरीयत, जिल्द नं 1 सफा नं 52_*

✍🏻 *_मसअ़ला : हैज़ और निफ़ास (निफ़ास का बयान आगे तफ्सील मे आएगा) की हालत में क़ुरआने करीम को छूना, देख कर या ज़बानी पढ़ना, नमाज पढना, दीनी किताबों को छूना, यह सब हराम है!  लेकिन दुरूद शरीफ, कलीमा शरीफ, वगै़रह पढ़ने मे कोई हर्ज नही ।_*

📕 *_बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 46_*

✍🏻 *_मसअ़ला : हालते हैज़ मे औरत को नमाज़ मुआ़फ है! और उसकी कज़ा भी नही यानी पाक होने के बाद छूटी हुयी नमाज़ पढ़ना भी नही है। इसी तरह रमज़ान शरीफ के रोज़े हालते हैज़ मे न रखे लेकिन बाद में पाक होने के बाद जितने रोज़े छूटे थे वोह सब क़ज़ा रखने होंगे।_*

📕 *_फ़तावा-ए-मुस्तफ़विया, जिल्द नं 3, सफा नं 13, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 1, सफा नं 46_*

           ✍🏻 *_मसअ़ला : यह जरूरी नही के मुद्दत मे हर वक्त खुन जारी रहे, बल्की अगर कुछ-कुछ वक्त आए जब भी हैज है!_*

📕 *_बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 42_*

*_हालत ए हैज़ मे मुबाशरत (सोहबत) हराम है!_*

💎 *_आयत:_* _अल्लाह   तआला इर्शाद फरमाता है..._

*_وَ یَسۡئَلُوۡنَکَ عَنِ الۡمَحِیۡضِ ؕ قُلۡ ہُوَ اَذًی  ۙ فَاعۡتَزِلُوا النِّسَآءَ فِی الۡمَحِیۡضِ  ۙ وَ لَا تَقۡرَبُوۡہُنَّ حَتّٰی یَطۡہُرۡنَ ۚ فَاِذَا تَطَہَّرۡنَ  فَاۡتُوۡہُنَّ مِنۡ حَیۡثُ اَمَرَکُمُ اللّٰہُ  ؕ اِنَّ اللّٰہَ یُحِبُّ التَّوَّابِیۡنَ  وَ یُحِبُّ الۡمُتَطَہِّرِیۡنَ_*

*_💎तर्जुमा : (ए महेबुब!) और तुम से पुछते है हैज का हुक्म! तुम फरमाओ के वह नापाकी है!  तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों, और इनसे नज़दीकी न करो, जब तक पाक न हो लें, फिर जब पाक हो जाए तो इनके पास जाओ जहाँ से तुम्हे अल्लाह ने हुक़्म दिया। बेशक अल्लाह पसंद करता है बहुत तौबा करने वालो को, और पसंद रखता है सुथरो (पाक रहने वालो) को!_*

📕 *_तर्जुमा :- कन्जुल इमान सूर ए बखरा, आयत नं  222_*

👉  *_जब औरत हाइजा (हैज की हालत मे हो तो उससे जिमा करना सख्त गुनाहे कबीरा, नाजाइज व सख्त हराम है! इस बात का खयाल हमेशा रखे की जब कभी सोहबत का इरादा हो तो पहले औरत से दर्याफ्त कर ले, और औरत पर लाजीम है की अगर वह हाइजा है, तो मर्द को इस बात से आगाह कर दे! और मुबाशरत से बाज रखे! "और औरत पर वाजीब है के अगर वह हाइजा हो तो अपनी हालत से शौहर को वाकीफ कर दे ताकी शौहर मुबाशरत न करे वर्ना औरत सख्त गुनाहगार होंगी!_*

✍🏻 *_अक्सर मर्द शादी की पहली रात बेसब्री का मुजाहरा करते है, और बावजुद इसके के औरत हाइजा होती है जिमा कर बैठते! अगर औरत हाइजा हो तो उससे मुबाशरत करना जाइज नही, चाहे शादी की पहली ही रात क्यो न हो! इसलिये मर्द की जिम्मेदारी है के वह शादी की पहली रात से ही अपनी बिवी को इन मसाईल से आगाह कर दे!_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 049 📕*_
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             *_इन रातों में सोहबत न करें_*

✍🏻 *_अमीरूल-मोमिनीन हज़रत अली_* और *_हज़रत अबू ह़ुरैरा_* और *_हज़रत अमीर मुआ़विया_* _[रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा] से रिवायत किया है कि.........!_

 💫 *_"(हर महीने की) चाँद रात, और चाँद की पन्द्रहवी शब, और चाँद के महीने की आख़िरी शब, सोहबत करना मकरूह है, कि इन रातों मे जिमा के वक्त़ शैतान मौजूद होते है"_*

📕 *_कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266_*

✍🏻  *_तहक़ीक़ यह है कि इन रातों में सोहबत करना जाइज़ है, लेकिन एहतियात इसी मे है कि सोहबत करने से इन रातो मे परहेज करे।_* *_(वल्लाहु तआला आ़लम)_*

        *_[रमज़ान-उल मुबारक मे मुबाशरत]_*

💎 *_आयत : अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इर्शाद फरमाता है.................._*

*_तर्जुमा : रोज़ों की रातों में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिए हलाल हुआ ।_*

📕 *_तर्जुमा कन्जुल इमान, सूर ए बखरा आयत नं 187_*

     👉🏻 *_रमज़ान के महीने मे रात को सोहबत कर सकते है नापाक़ी की हालत मे सेहरी किया तो जाइज़ है और रोज़ा भी हो जाता है। लेकिन नापाक रहना सख़्त गुनाह है।_*

  ✍🏻 *_मसअ़ला : रोज़े की हालत मे मर्द औरत ने सोहबत की तो रोज़ा टूट गया मर्द ने औरत का बोसा लिया, गले लगाया और इन्ज़ाल हो गया तो रोज़ा टूट गया!औरत को कपडे के उपर से छुआ और कपडा इतना मोटा है की बदन की गर्मी महसुस नही होती तो रोजा न टुटा, अगरचे मर्द को इंजाल हो गया और अगर औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंजाल हो गया तो रोजा न गया!_*

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 5, सफा नं 59_*

✍🏻 *_मसअ़ला : किसी ने मर्द को या औरत को रोजे की हालत मे मजबुर किया की जिमा करे, नही तो कत्ल करने की उज्व काट डालने की या किसी और तरह की जानी नुक्सान पहु्ंचाने की धमकी दी, और रोजदार को यह यकीन है के अगर उसका कहेना न माना तो जो कहता है कर गुजरेंगा लिहाजा उसने जिमा किया तो रोजा टुट गया, लेकीन कफ्फारा लाजीम न हुआ, सिर्फ कजा रोजा रखना होंगा!_*

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 5, सफा नं 61_*

✍🏻 _*मसअ़ला : औरत ने मर्द को जिमा करने पर मजबुर किया तो मर्द औरत का रोजा टुट गया, लेकीन औरत पर कफ्फारा वाजीब है मर्द पर नही बल्की वह सिर्फ कजा रोजा रखेंगा*_

📕 *_बहारे शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 5, सफा नं 62_*

✍🏻 _*मसअ़ला : जान बूझकर मर्द ने  रोजे की हालत मे औरत से जिमा किया, इंजाल हो न हो (यानी मनी निकले या न निकले) तो रोज़ा टूट गया और कफ़्फ़ारा भी लाजीम हो गया।*_

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 5, सफा नं 61_*
         
💎💎 *_कफ़्फ़ारा: कफ़्फ़ारा यह है कि एक गुलाम आजाद करे! (मौजुदा दौर मे यह किसी भी मुल्क मे मुमकीन नही) दुसरी सुरत यह है के लगातार साठ (60) रोज़े रखे! अगर यह भी न हो सके तो फिर 60 मिस्कीनो (गरीब मोहताज़ों) को पेट भर कर दोनो वक्त़ो का खाना खिलाए। और अगर रोज़ा रखने की सूरत में अगर बीच में एक दिन का भी रोज़ा छूट गया तो अब फिर से साठ (60) रोज़े रखने होगें पहले रखे हुए रोज़ों को गिना नही जाएगा। मसलन (59) रख चुका था साठवॉं नही रख सका तो फिर से रोज़े रखे। पहले के उन्सठ (59) बेकार हो गए। लेकिन अगर औरत को रोज़े रखने के दौरान हैज़ (माहवारी) आ गई तो हालते हैज़ मे रोज़े रखना छोड़ दे फिर बाद में पाक़ होने के बाद बचे हुए रोज़े रखे यानी पहले के रोज़े और हैज़ के बाद वाले रोज़े  पुरे कर ले! हैज से पहले और हैज के बाद के दोनों को मिला कर साठ (60) रोजे हो जाने से कफ़्फ़ारा अदा हो जाएेगा अगर कफ़्फ़ारा अदा न किया तो सख़्त गुनाहगार होगा और बरोज़े महशर सख़्त अज़ाब़ होंगा।_*

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 5 सफा नं 62_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 048 📕*_
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                 _*मुबाशरत के औकात*_

       👉🏻 *_शरीयत ए इस्लामी मे सोहबत करने के लिए कोई ख़ास वक्त़ नही बताया गया है। शरीअ़त मे (अलावा नमाज के औकात) दिन और रात के हर हिस्से में सोहबत करना जाइज़ है, लेकिन बुजुर्गों ने कुछ ऐसे अवक़ात (वक्त़) बताए है जिन में सोहबत करना सेहत के लिए फ़ायदेमन्द है।_*

         *_हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रजी अल्लाहु तआला अन्हु   "इहयाउल ऊलूम" मे उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीका [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] से रिवायत है के फरमाती है..._*

 💫   *_रसूले करीम ﷺ रात के आख़िरी हिस्से में (तकरीबन रात 2 बजे से लेकर फ़ज्र की अ़जान से पहले) जब वित्र की नमाज़ पढ़ चुके होते तो अगर आप को अपनी किसी बीवी की हाज़त होती तो उनसे मुबाशरत फ़रमाते ।_*

📕 *_इहयाउल ऊलूम_*

💫💫   *_हदीसों मे है कि हुजुर ﷺ ईशा की नमाज़ पढ़ते और सिर्फ़ ईशा की वित्र नही पढ़ते फिर आप कुछ घंटे आराम फ़रमाते फिर उठते और  "तहज्जुद" की नमाज़ पढ़ते और कुछ नफ़्ल नमाज़े अदा फरमाते और आखिर में ईशा की वित्र पढ़ते, उसके बाद अगर आप को अपनी किसी बीवी की हाज़त होती तो उनसे सोहबत फ़रमाते या अगर हाज़त न होती तो आप आराम फ़रमाते यहाँ तक कि हज़रत बिलाल [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नमाज़े फ़ज्र के लिए अ़जान के वक्त़ आप को इत्तेला देते।_*

✍🏻 *_इस हदीस के तहत इमाम ग़ज़ाली रदी अल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते है....._*

      👉🏻 *_रात के पहले हिस्से (तकरीबन 9 से 12 बजे के दरम्यान) मे सोहबत करना मक़रूह है कि सोहबत करने के बाद पूरी रात नापाक़ी की हालत मे सोना पड़ेगा।_*

📕 *_इहयाउल ऊलूम_*

          ✍🏻 *_हजरत इमाम फक़ीह अबूललैस_* _[रदि अल्लाहु तआला अन्हु] अपनी किताब *"बुस्तान शरीफ"* में नक़्ल फरमाते है कि........_

💫 *_सोहबत के लिए सबसे बेहतर वक्त़ रात का आख़िरी हिस्सा है (यानी तकरीबन 2 से बजे से 4  बजे के दर्मीयान) क्योंकि रात के पहले हिस्से में पेट ग़िज़ा (खाने) से भरा होता है और भरे पेट सोहबत करने से सेहत को नुक़सान है! जब के रात के आख़िरी हिस्से में सोहबत करने से फ़ायदे है! (जैसे आदमी दिन भर का थका हुआ होता है और रात के पहले और दूसरे हिस्से में उस की नींद पुरी हो जाती है! जिस की वजह से उस की दिनभर की थकावट दूर हो जाती है, इसके अलावा दूसरा एक यह भी फ़ायदा है कि रात के आख़िरी हिस्से तक खाना अच्छी तरह हज़्म हो जाता है।)_*

📕 *_बुस्तान शरीफ_*

💫💫 *_"हकीमो की तहकीक के मुताबीक पेट भरा होने की हालत मे मुबाशरत नही करना चाहीये की इससे औलाद कुंद जेहन पैदा होती है!"_*

           ✍🏻 _*यह तमाम बातें हिक़्मत के मुताबिक़ है! शरीयत मे सोहबत के लिये कोई ख़ास वक्त़ मुतैय्यन नही की इसी वक्त पर सोहबत की जाए! शरीअ़त मे हर वक्त़ सोहबत की इज़ाज़त है। हुजुर ﷺ अज्वाजे मुतह्हरात (बिवीयों) से दिन और रात के दिगर वक्त़ो में सोहबत करना साब़ित है। हॉ कुछ दिनो की फजीलत अहादिस मे वारीद है, जैसा की हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रजी अल्लाहु तआला अन्हु  नक्ल फरमाते है.... "बाज उलमाओ ने शबे जुमा और दिन को मुबाशरत करना मुस्तहब कहा है!"*_

_*📕 इहया उल उलुम जिल्द 2 सफा नं 94*_

*_(वल्लाहो तआला आ़लम)_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 047 📕*_
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            _*ज़्यादा सोहबत नुकसानदेह*_

       *_मसअ्ला : बीवी से जिन्दगी मे एक मरतबा सोहबत करना कतअन वाज़िब है। और हुक्म यह है कि औरत से सोहबत कभी कभी करता रहे इसके लिए कोई हद नही  है!मगर इतना तो हो कि औरत की नज़र औरों की तरफ़ न उठे , और इतना ज़्यादा भी जाइज़ नही कि औरत को नुक़्सान पहुँचे।_*

📕 *_कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 63_*

             👉🏻 _*हद से ज़्यादा मुबाशरत (सोहबत) करने से मर्द और औरत दोनो के लिए नुक़सान है! ज्यादा सोहबत से मर्द की सेहत पर ज्यादा असर पडता है! सेहत की कमजोरी फिर तरह-तरह की बिमारीयो की वजह बनती है!   अक्सर शहवत परस्त औरतो के शौहर मुसस्सल मुबाशरत की वजह से अपनी सेहत खो बैठते है! और सेहत की कमजोरी की वजह से जब वह औरत की ख्वाहिश (पहले की तरह) पुरी नही कर पाते, और औरत को जब आदत के मुताबीक तसल्ली नही हो पाती है, तो वह फिर पडोस और बाहर वह चीज तलाश करने की कोशीश करती है! फिर एक नई बुराई का जन्म होता है!  इसलिये जरूरी है के कुदरत की इस अनमोल चिज (सेहत व कुव्वत) का इस्तेमाल बेदर्दी से न किया जाए!*।_

      👉🏻 *_हकीमों ने लिखा है कि ज़्यादा से ज़्यादा हफ्ते में दो मरतबा सोहबत की जाए। हकीम बुक़रात जो एक बहुत बड़े हकीम थे और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 450 साल पहले गुजरे है उनसे किसी ने पूछा..... "सोहबत हफ़्ते में कितनी मरतबा करनी चाहिये"? उन्होने जवाब दिया-... "हफ़्ते में सिर्फ एक मरतबा" पूछने वाले ने फिर पूछा... "एक मरतबा ही क्यों ?" बुक़रात ने झल्ला कर जवाब दिया "तुम्हारी ज़िन्दगी है तुम जानो मुझसे क्या पूछते हो" गोया यह इशारा था ज़्यादा सोहबत करोगे तो कमज़ोर हो जाओंगे और जिन्दगी ख़तरे में पड़ सकती है! गालीबन हकीम राजी ने अपनी किताब मे लिखा है की..........._*

💫💫 *_"ज्यादा सोहबत मोटो को दुबला, और दुबलो को मुर्दा, जवानो को बुढा और बुढो को मौत की तरफ ढकेल देती है!"_*

✍🏻 *_हजरत फक़ीह अबूल्लैस समरक़न्दी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है। कि हज़रत मौला अ़ली [कर्रमल्लाहु वज्हुल करीम] ने इरशाद फरमाया........_*

💫 *_"जो शख़्स इस बात का ख़्वाहिश मन्द हो कि उसकी सेहत अच्छी हो और ज़्यादा दिन तक क़ायम रहे तो उसे चाहिए कि वह कम खाया करे और औरत से कम सोहबत किया करे"।_*

📕 *_बुस्तान शरीफ_*

👉🏻 _*आज के इस फ़ैशन और नंगाई के दौर में ज़ज़्बात बहुत जल्द बे क़ाबू हो जाते है इसलिए ध्यान रखे कि बीवी की अगर ख़्वाहिश हो तो इंकार भी न करे वरना ज़ेहन भटकने का अंदेशा है!*_

💫 _*इमाम मुहम्मद गजाली रजी अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है........*_

💫 *_"मर्द चार दिनो मे एक बार औरत से जिमा कर सकता है, और औरत की जरुरत पुरा करना और उसकी परहेजगारी के ऐतेबार से इस हदसे कमो बेश भी मुबाशरत कर सकता है, क्यो की औरत को पाक दामन रखना मर्द पर वाजीब है!_*

📕 *_अहया-उल-उलुम जिल्द 2, सफा नं 95_*

👉🏻 _*कुछ लोग शादी के बाद शुरू शुरू में औरत पर अपनी क़ुव्वत और मर्दानगी का रौब डालने के लिए दवाओं का या किसी स्प्रे या तेल वगै़रह का इस्तेमाल करते है,  जिससे औरत और वह खुब लुत्फ अंदोज होते है! लेकिन बाद में इसका उल्टा असर होता है। मर्द और औरत उस चीज़ की आदी हो जाते है!  फिर बाद में अगर मर्द वह दवा या स्प्रे इस्तेमाल न करे तो औरत को तसल्ली नही होती। और वह अपनी ख्वाहीश को पुरा करने के लिए मर्द को इसका इस्तेमाल करने पर मजबूर करती है। दवाओं के मुसलसल इस्तेमाल से मर्द की सेहत पर बुरा असर पडता है! और वह दवाओं का आदी हो कर जल्द ही तरह तरह की बीमारियों मे मुब्तीला हो जाता है! मर्द अगर यह दवाएँ इस्तेमाल न करे तो औरत को पहले की तरह इत्मीनान नही होता जिसकी वह आदी हो चुकी है, चुनांचेवऐसी हालत मे औरत के बदचलन होने का भी ख़तरा होता है या फिर वह दिमाग़ी मरीज़ होने का भी खतरा है!*_

    _*लिहाजा क़ुव्वते मर्दाना को बढ़ाने के लिए और उसे बरकरार रखने के लिये मस्नुई  दवाओं, स्प्रे, तेल वगै़रा के बजाए ताक़तवर ग़िज़ाओं का इस्तेमाल करे । ग़िज़ा के जरिए बढ़ाई हुई ताक़त ख़त्म नही होती और न ही इस से किसी तरह का नुक़सान होता है।*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 046 📕*_
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            _*दोबारा सोहबत करना हो तो*_

  👉🏻 *_एक रात मे  मुबाशरत (सोहबत) के बाद उसी रात में दूसरी मरतबा सोहबत करने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो वुज़ू करले कि यह फ़ायदेमन्द है, और अगर सोहबत न भी करना हो तो वुज़ू करके सो जाए।_*

📚 *_हदीस : हज़रत उमर व अबू सईद खुदरी [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम] से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इर्शाद फरमाया_*

 💎💎 *_"जब तुम मे से कोई अपनी बीवी से एक बार सोहबत करने के बाद दोबारा सोहबत का इरादा करे तो उसे वुज़ू करना चाहिए।_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 139, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, सफा नं 188_*

✍🏻 _*इमाम ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है----------*_

💫 *_"एक बार सोहबत कर चुके, और दोबारा (सोहबत) का इरादा हो तो चाहिए कि अपना बदन धो डालें (वुज़ू कर ले) और अगर ना पाक़ आदमी कोई चीज़ खाना चाहे तो चाहिए कि वुज़ू कर ले फिर खाये! सोने का इरादा हो तो भी वुज़ू करके  सोए,  हालाकीं (वुज़ू करने के बाद) नापाक़ ही रहेगा (जब तक ग़ुस्ल न कर ले) लेकिन सुन्नत यही है"।_*

📕 *_कीमीया ए सआ़दत, सफा नं 167_*


                      _*वुज़ू करके सोए*_

     👉🏻 *_मुबाशरत (सोहबत)  के बाद सोने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो पहले अपने मकाम ए मख्सुस (शर्मगाह) को धो ले और वुज़ू करले फिर उस के बाद सो जाए।_*

📚 *_हदीस : उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है.._*

 💎 *_"रसूलुल्लाह ﷺ हालते जनाबत मे (मुबाशरत के बाद) सोने का इरादा फ़रमाते तो अपनी शर्मगाह धो कर नमाज़ जैसा वुज़ू कर लेते थे" (फिर आप सो जाते)_*

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 194, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 129_*


                  _*बीमारी मे मुबाशरत*_

        *👉🏻 _औरत अगर किसी दुख, परेशानी व बीमारी में मुब्तला हो तो उस की सेहत का ख़याल किये बगै़र हरगिज़ सोहबत न करे, वैसे  इन्सानियत का तकाज़ा भी यह है कि दुखी या बीमार इन्सान को और तकलीफ़ न दी जाए बल्कि उसे आराम और सुकून फरहाम करे।_*

             👉🏻 _*औरत कीसी बिमारी मे या तकलीफ मे हो तो उसकी सेहत का खयाल किए बगैर मुजामेअत करना मुनासीब नही! तिब की बाज किताबो मे नक्ल है की.....*_

💫 *_"बुखार की हालत मे मुबाशरत न करे की बदन मे हरारत बस जाती है, और फेफडों के खराब होने का कवी अंदेशा है!"_*


               _*सोहबत मज़े के लिए न हो*_

_💫💫 *हज़रत मौला अली मुश्किलकुशा* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी *"वेसाया"* (वसीयत) मे और *हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी किताब *"कीमीया-ए-सआ़दत"* में नक़्ल किया है कि--------_

 👉🏻 *_"जब कभी सोहबत करे तो नियत सिर्फ़ मज़ा लेने या शहवत (हवस) की आग बुझाने की न हो बल्कि नियत यह रखे कि जिना से बचूँगा और औलाद सालेह व नेक सीरत पैदा होगीं। अगर इस नियत से सोहबत करेगा तो सवाब पाएंगा।_*

📕 *_वसाया शरीफ, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 255_*

👉🏻  _*हजरत उमर फारुख ए आजम रदि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है.......*_

💫💫 *_"मै निकाह सिर्फ इसलिये करता हु की सालेह औलाद हासील करु!"_*

📕 *_इहया उल उलुम जिल्द 2 सफा नं 44_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 045 📕*_
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         💫 *_पिस्तान (स्तन) चुमना_*💫

*👉 _मुबाशरत के वक्त बीवी की छाती चुमने या चुसने मे कोई हर्ज नही, लेकीन खयाल रहे की दुध हलक मे न जाए! अगर हलक मे दुध आ गया तो फौरन थुक दे, जान बुझकर दुध पिना नाजाइज व हराम है!_*

        *_इमाम अहले सुन्नत आला हजरत अहमद रजा खॉन कादरी रदि अल्लाहु तआला अन्हु फतावा रज्वीया मे नक्ल फरमाते है........._*

*💫 _"सोहबत के वक्त अपनी बीवी के छाती (स्तन) मुँह मे लेना जाइज है बल्की अच्छी नियत से हो तो सवाब की उम्मीद है, जैसा के हमारे इमाम, इमाम ए आजम अबु हनीफा रदि अल्लाहु तआला अन्हु  ने मियॉ-बीवी का एक दुसरे की शर्मगाह को छुने के बारे मे फरमाया "अर्जु अन्नहा युवज्जेराने अलैहे" यानी मै उम्मीद करता हु के वह दोनो उसपर अज्र (सवाब) दिये जाएंगे! हॉ अगर दुध वाली औरत हो तो ऐसा चुसना न चाहीये जिससे दुध हलक मे चला जाए! और अगर मुँह मे आ जाए और हलक मे न जाने दे तो हर्ज नही की_*

*_औरत का दुध हराम है नजीस (नापाक) नही!_*

📕 *_फतावा रज्वीया जिल्द 1, सफ नं 72_*

       👉 *_कुछ लोगो मे यह गलत फहमी है के दौरान ए जिमा (सोहबत) अगर औरत का दुध मर्द के मुँह मे चला गया तो औरत मर्द पर हराम हो जाती है, और खुद ब खुद तलाक वाके हो जाती है! यह बात गलत है, इसकी शरीयत मे कोई असल नही! फिक्ह की मशहुर किताब "दुर्रे मुख्तार" मे है........_*

💫💫 *_"मर्द ने अपनी औरत की छाती (स्तन) चुसी तो निकाह मे कोई खराबी न आई चाहे दुध मुँह मे आ गया हो, बल्की हलक से उतर गया हो तब भी निकाह न टुटेंगा! लेकीन हलक मे जान बुझकर लेना जाइज नही!"_*

📕 *_दुर्रे मुख्तार ब हवाला, कानुन ए शरीयत,  जिल्द 2, सफ नं 52_*

            _*जिमा के दौरान बात करना*_

*✍🏻 _जिमा के दौरान बात चीत न करे ख़ामोश रहे!इमामे अहले सुन्नत आ़ला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है..._*

 💫 *_"सोहबत के दौरान बात चीत करना मक़रूह है! बल्कि बच्चे के गूंगे या तोतले होने का ख़तरा है"।_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 76*_

     *_[दौराने मुबाशरत किसी और का ख़्याल]_*

*👉🏻 _सोहबत के दौरान मर्द किसी दूसरी औरत का और औरत किसी दूसरे मर्द का ख़याल न लाऐ। यानी ऐसा न हो कि मर्द जिमा तो अपनी बीवी से करे और तसव्वर करे कि फलां औरत से जिमा कर रहा हूँ। और इसी तरह औरत किसी और मर्द का तसव्वर करे तो यह सख़्त गुनाह है।_*
           
✍🏻 _*....हुज़ूर पुरनूर सैय्यदना ग़ौसे आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु]*" नक़्ल फरमाते है कि....._

 💎 *_"सोहबत के दौरान मर्द अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी औरत का ख़याल लाऐ तो यह सख़्त गुनाह है और एक तरह का छोटू क़िस्म का जिना है"_*

_📕 *गुनीयातुत्तालिबीन*_

    🥛 *[सोहबत के बाद पानी न पीये]* 🥛

           👉🏻 *_जैसा कि  पहले बयान कीया जा चुका है कि सोहबत करने के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (temperature) बढ़ जाता है इस लिए उस वक्त़ प्यास भी शिद्दत से महसुस होती है।लेकिन ख़बरदार ! सोहबत के फ़ौरन बाद पानी हरगिज न पीये। हकीमों ने लिखा है..._*

💫 *_"सोहबत के फ़ौरन बाद पानी नही पीना चाहिये क्योंकि इस से दमा (साँस) की बीमारी होने का खतरा है।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 044 📕*_
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*_❌दौराने जिमा (सोहबत) शर्मगाह देखना_*

  ✍🏻 *_मसअ़ला : मियाँ बीवी का सोहबत के वक्त़ एक दूसरे की शर्मगाह को छुना बेशक जाइज़ है बल्कि नेक नियत से हो तो मुस्तहब व सवाब है"।_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570, और जिल्द नं 9, सफा नं 72_*

✍🏻 *_मसअ़ला : मर्द अपनी बीवी के हर उज्व (Part) को छु सकता है, और औरत भी अपने शौहर के हर उज्व को छु सकती है! चाहे शहवत से हो या बिला शहवत! यहॉ तक के एक दुसरे की शर्मगाह को भी देख सकते है! मगर बगैर जरूरत शर्मगाह का देखना और छुना खिलाफे ऊला मकरूह है!_*

📕 *_फ़तावा आलमगिरी जिल्द नं 5, सफा नं 227, बहारे शरीयत जिल्द नं 2, सफा नं 57_*
 
👉🏻 *_दौराने सोहबत मर्द व औरत को एक दूसरे की शर्मगाह की तरफ नही देखना चाहिये, इसके बहुत से नुक़सानात है_*

📚 *_हदीस : उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है कि............_*

 💫 _*....हुज़ूरे अकरम ﷺ का विसाल हो गया लेकिन न कभी आप ने मेरा सतर देखा और न मैंने आप का (सतर )देखा।*_

📕 *_इब्ने माज़ा शरीफ़, जिल्द नं 1, बाब नं 616, हदीस नं 1991, सफा नं 538_*

📚 *_हदीस : हज़रत इब्ने अ़दी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत करते है की..... हज़रते इब्ने अब्बास ने इर्शाद फरमाया..........._*

 💫 *_"तुम मे से कोई जब अपनी बीवी से सोहबत करे तो उस की  फरज (शर्मगाह) को न देखे कि इस से आँखों की बीनाई (रौशनी) ख़त्म हो जाती है!_*

📕 *_हाशिया, मुसनद इमामे आ़ज़म, सफा नं 225_*

✍🏻 *_आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नक़्ल फरमाते है........._*

      👉🏻 *_"सोहबत के वक्त़ शर्मगाह देखने से हदीस में मुमानेअत (मनाई) फ़रमायी और फ़रमाया  "फइन्नहु युरेसुल-उम्मीये!" यानी वह अंधे होने का सबब है। उलमा ए किराम  ने फरमाया है कि...... "इससे अंधे होने का सबब या तो वह औलाद अंधी हो, जो इस जिमा (सोहबत) से पैदा हुई, या माज़अल्लाह! दिल का अंधा होना है, के जो सब से बदतर है।"_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570_*

✍🏻 _*....क़ानूने शरीअ़त* में है कि..........._

     👉🏻 _*"औरत की शर्मगाह की तरफ नज़र न करें क्योंकि इस से निस्यान (भूलने की बीमारी) पैदा होती है और नज़र भी कमज़ोर होती है"।*_

📕 *_कानूने शरीअ़त, 2, सफा नं 202_*

 👉🏻 _*सोहबत के आदाब मे से एक यह भी है के सोहबत के दौरान मर्द औरत की शर्मगाह की तरफ न देखे.।*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 043 📕*_
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      _🕋 *[किब्ला की तरफ रूख़ न हो]* 🕋_

 ✍🏻 _*.... हुज़ूर सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है.........*_

 💫💫 _*"सोहबत करने के आदाब में से एक अदब यह भी है कि सोहबत के वक्त़ मुँह क़िब्ला की तरफ से फेर लें।*_

📕 *_कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266_*

       ✍🏻 _*आला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इर्शाद फरमाते है.......*_

 💫💫 _*"सोहबत के वक्त़ क़िब्ला की तरफ मुँह या पीठ करना मक़रूह व ख़िलाफ़े अ़दब है जैसा के "दुर्रे मुख़्तार" मे बयान हुआ"*_

📕 *_फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा  140_*

     👉🏻 *_सोहबत के वक्त़ क़िब्ला की तरफ से रुख  फेरने के लिए गालीबन इस लिए कहा गया है की क़िब्ला की ताज़ीम हर मुसलमान पर ज़रूरी है, उस की तरफ़ रूख़ कर के बन्दा अपने परवरदिगार  की इबाद़त करता है! और क़िब्ला की तरफ थूकने, पेशाब, पाख़ाना करने और बरहेना (नंगा) उस की तरफ रूख़ करने की सख़्त मुमानियत आई है।_*

📚 _*हदीस : एक हदीसे पाक मे पाक में है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया..........*_

💎 _*"जब बन्दा नमाज़ पढ़ता है तो वह अपने रब से मुनाजाक कर रहा होता है! या उसका  परवरदिगार उसके और क़िब्ला के दर्मियान होता है! (यानी क़िब्ला की जानिब अल्लाह तआला की रहमत ज़्यादा मुतवज्जहे होती है)*_

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 274, हदीस नं 393, सफा नं 233_*

                👉 *_अब चूँकि सोहबत के वक्त़ मर्द और औरत बरहेना (नंगी) हालत में होते है तो भला उस हालत में भला क़िब्ला की तरफ रूख़ कैसे किया जा सकता है। इसलिये मुबाशरत के वक्त अदबन किब्ला की जानीब रूख करने से मना फरमाया गया है!_*

       🔥 *_नंगे होकर सोहबत करना_*🔥

👉🏻 *_सोहबत के वक्त़ मर्द और औरत कोई चादर वगैरह ओढ़ ले, जानवरों की तरह बरहेना (नंगे होकर) सोहबत न करे।_*

📚  _*हुज़ूरे अकरम ﷺ*  इरशाद फरमाते है ......._

 💎 *_"जब तुम मे कोई अपनी बीवी से सोहबत करे तो पर्दा कर ले बेपर्दा होगा तो फ़रिश्ते हया की वजह से बाहर निकल जाएंगे और शैतान आ जाएंगा, अब अगर कोई बच्चा हुआ तो शैतान की  उसमे शिर्कत होगी।_*

📕 *_गुनीयातुत्तालिबीन, सफा नं 116_*

✍🏻 _*इमामे अहलेसुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी मुहद्दीस बरैलवी  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी किताब *"फ़तावा-ए-रज़वीया"* में फरमाते है.........._

💫💫 *_सोहबत के वक्त़ अगर कपड़ा ओढ़े है बदन छुपा हुआ है तो कुछ हर्ज नही और अगर बरहेना (नंगी हालत मे) है तो एक तो बरहेना सोहबत करना खुद मक़रूह है हदीस में है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सोहबत के वक्त़ मर्द व औरत को कपड़ा ओढ़ लेने को हुक़्म दिया और फरमाया! "यानी गधे की तरह नंगे न हो"_*

_📕 *फ़तावा ए रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 140*_

✍🏻 _*....आला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] एक दूसरी जगह इरशाद फरमाते है!........*_

  💫💫 *_"बरहेना (नंगी हालत मे) रह कर सोहबत करने से औलाद के बेशर्म व बेहया होने का ख़तरा है"।_*

📕 *_फ़तावा ए रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 46_*

         👉🏻 *_सोचीये इंसान की जरा सी लापरवाही कहॉ तक नुकसान का सबब बन जाती है! गालीबन इस जमाने मे जो शर्म और हया का जनाजा उठता जा रहा है, उसकी सैकडों वुजुहात मे से यह भी एक वजह रही हो की मुबाशरत बरहाना (नंगे) होकर की गयी हो, और उपर से कोई चादर या कपडा न लिया गया हो! और यह असर नस्ल (बच्चो) मे आया, नतीजा यह हुआ की शर्म व हया को मौजुदा नस्ल ने जिंदा ही दफन कर दिया है!_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 042 📕*_
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*_❌मुबाशरत (सोहबत) खड़े खड़े न करें ❌_*

     👉🏻 *_मुबाशरत (सोहबत) खड़े खड़े न करे कि यह जानवरों का तरीक़ा है! और न ही बैठे बैठे कि यह औरत और मर्द दोनो के लिये नुकसानदेह है! इस तरीके से मुबाशरत करने से बदन कमजोर और खासकर मर्द  का ऊज़्व -ए-तनासुल  जड़ से कमज़ोर हो जाता है! अगर हमल करार पा जाए तो बच्चा    कमजोर, अपंग  (हाथ पैर से अपाहिज़) पैदा होता है। या फिर जिस्म का कोई हिस्सा अधुरा रह जाएंगा!_*

💫 *_कुछ मोतमद उलमा-ए-दीन ने फरमाया है कि.......!_*

*_"खडे-खडे मुबाशरत करने से अगर औरत को हमल करार पा जाए तो औलाद बद दिमाग़ और बेवकूफ़ होंगी। या पैदाईशी तौर पर निम पागल (Half Mental) पैदा होंगी!_*

           👉🏻 *_हकीमों की इस  मुताल्लीक तहकीक यह है के  "खड़े रहकर सोहबत करने से रअशा (बदन हिलने) की बीमारी हो जाती है।"_*

*_वल - अयाज बिल्लाह (अल्लाह की पनाह!)_*

         👉🏻 *_सोहबत करने का सही तरीक़ा यह है कि बिस्तर पर लेटे लेटे हो, औरत नीचे की जानीब और मर्द ऊपर की जानीब हो! जैसा कि कुरआने करीम मे भी इस बारे मे इशारा किया गया है!_*

💎 *_तर्जुमा:- फिर जब मर्द उस पर छाया उसे एक हल्का सा पेट रह गया_*

 📕  *_कुरआन ए करीम तर्जुमा कन्जुल इमान, पारा 9, सूरए, आराफ़, रूकू 14, आयत नं 189_*

👉🏻 *_इस आयते करीमा से हमें यह सबक मिलता है कि सोहबत के वक्त़ औरत चित लेटे और मर्द उस पर पट (उल्टा) लेटे कि इस तरीके सेे मर्द के जिस्म से औरत का जिस्म भी ढ़क जायेगा। जैसा की आयत ए करीमा मे इशारा किया गया है! और इस तरीके से मुबाशरत कानुन ए फितरत के मुताबीक है! अब अगर इसकी खिलाफ वर्जी की गई तो बहरहाल नुक्सान तो जरूर होंगा! देखा जाए तो इस तरीक़े में ज़्यादा राहत व आसानी है! औरत को इसमे मशक्कत नही होती और मर्द की मनी आसानी से निकल कर औरत की शर्मगाह में दाख़िल होती है और हमल जल्द करार पाता है। (ठहर जाता है!)_*

     *_हकीम बु अली सीना जो  अपने जमाने के एक मशहुर व मारूफ हकीम गुजरे है उन्होने लिखा है की......_*

💫💫 *_"अगर औरत उपर और मर्द निचे हो तो इस सुरत मे मर्द की कुछ मनी उसके उज्व मे बाकी रह कर तअफ्फुन पैदा करेंगी और बाद मे तकलिफ व अजीयत की वजह बनेंगी!_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 041 📕*_
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         _*🍺नशे की हालत में सोहबत 🍻*_

📚 *_हदिस : उम्मुल मोमिनिन उम्मे सलमा रदि अल्लाहु तआला अन्हा इरशाद फरमाती है........_*

💎     *_रसुलुल्लाह ﷺ ने हर चिज जो नशा लाए, की अक्ल मे फुतुर डाले हराम फरमाई है!_*

💫 *_इसी तरह व्हिस्की, बियर, ताडी, गांजा, ब्राउन शुगर वगैराह जितनी भी ऐसी चिजे है, जिन से नशा आता हो वह हराम है_*

        _*🌹🌹ख़ुशबू का इस्तेमाल 🌹🌹*_

 👉🏻 *_सोहबत से पहले ख़ुशबू लगाना बेहतर है। ख़ुशबू सरकारे मदीना ﷺ को बहुत पसन्द थी। आप हमेशा ख़ुशबू का इस्तेमाल किया करते थे ताकि हम ग़ुलाम भी सुन्नत पर अ़मल करने की नियत से ख़ुशबू लगाया करे। वरना इस बात से किसी को शक व शुबाह नही कि आप का वजूदे मुबारक़ खुद ही महेकता रहता और आप का मुबारक़ पसीना खुद काएनात की सबसे बेहतरीन ख़ुशबू है। सोहबत से पहले भी ख़ुशबू का इस्तेमाल करना अच्छा है ख़ुशबू से दिल व दिमाग को सुकून मिलता है और सोहबत करने में दिलचस्पी बढ़ती है।_*

📚 *_हदीस : हाफीजुल हदीस हज़रत इमाम क़ाज़ी फुजैल अयाज़ उन्दुलुसी मालीकी  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] अपनी मशहूर किताब "शिफ़ा शरीफ़" में इरशाद फरमाते है......_*

     👉🏻 *_....हुज़ूर ﷺ को ख़ुशबू बहुत ज़्यादा पसंद थी। रहा आप का ख़ुशबू इस्तेमाल करना तो वह इस वजह से था कि आप की बारगा़ह में मलाएका (फ़रीश्ते) हाजिर होते थे। और दूसरी वजह येह है कि ख़ुशबू जिमा और असबाबे जिमा में  मुईन और मददगार है! खुशबु आपको बिज्जात महेबुब नही थी! बल्की बिल वास्ता यानी शहावत का जोर कम करने की गरज से महेबुब थी! वरना  हक़ीक़ी मुहब्बत तो आप को ज़ाते बारी तआला  के साथ ख़ास मख्सुस थी।_*

📕 *_शिफ़ा शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 154_*

*👉🏻 _लेकिन यह याद रहे कि सिर्फ़ इत्र का ही इस्तेमाल करे अफसोस के आज कल ख़ालिस इतर का मिलना दुशवार हो गया अब ऊमुमन जो इतर बाजारों में मिलते है उनमें  (Chemicals) होते हैं। उन का लिबास में इस्तेमाल करना जाइज़ है। लेकिन सर और दाढ़ी के बालों में लगाना नुकसानदेह है उसमे इस्पिरिट,  Alcohol की मिलावट होती है जो शराब के हुक़्म में है। यानी शराब हराम है।_*

 ✍🏻 *_मसअ़ला : आला हज़रत [रदिअल्लाहो अन्हो] इरशाद फरमाते है......._*

    *👉🏻 _"अलकोहल (शराब) वाले इत्र (सैन्ट) या स्प्रे का इस्तेमाल गुनाह है बल्कि ऐसे इत्र की ख़ुशबू सूंघना भी ना जाइज़ है।_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 88_*

      *👉🏻 _इस लिए सिर्फ़ ऐसे इत्र का इस्तेमाल करें जिसमें इस्पिरिट (अलकोहल) न हो। अलकोहल वाले इत्र या सैन्ट की पहचान यह है कि उसे अगर हथेली पर लगाया जाए तो ठंडक महसूस होगी और फौरन उड़ भी जाएगा।_*

    *👉🏻 _औरत ऐसे इत्र का इस्तेमाल करे जिस की ख़ुशबू हल्की हो ऐसी न हो जिस की ख़ुशबू उड़ कर ग़ैर मर्दों तक पहुँच जाए। आजकल अक्सर औरते ऐसे तेज खुशबु वाले स्प्रे, इत्र, या पाउडर क्रिम का इस्तेमाल करती है, ऐसी औरते इस हदिस को पढकर इबरत हासील करे!_*

📚 *_हदीस: हज़रत अबू मूसा अशअ़री [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया........_*

*💎 _"जब कोई औरत ख़ुशबू लगा कर लोगों में निकलती है, ताकी खुशबु उन तक पहुंचे तो वह औरत ज़ानिया है"_*

📕 *_अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 264, नसाई शरीफ, जिल्द नं रसूलुल्लाह 398_*
           
_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 040 📕*_
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         _*🍺नशे की हालत में सोहबत 🍻*_

*_शरीअ़ते इस्लामी मे हर किस्म का नशा हराम है! और इस्लाम मे शराब को तो उम्मुल-खबाईस (यानी तमाम बुराइयों की माँ) तक बताया गया है। दो हदीसे पाक का हासिल है के......_*

📚 *_हदीस: "जिसने शराब पी गोया उस ने अपनी माँ के साथ जिना  किया"।_*

_📕 *ब हवाला फ़तावा-ए-मुस्तफ़्वीया, जिल्द नं 1, सफा नं 76*_

📚 *_हदीस: रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाते है!_*

*💎 _"शराब पीते वक्त़ शराबी का ईमान ठीक नही रहता"।_*

_📕 *बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 614*_

_📚 *हदीस: और फरमाते है आक़ा ﷺ*_

*💎 _"शराबी अगर बगै़र तौबा किये मरे तो अल्लाह तआला के हुज़ूर इस तरह से हाज़िर होगा जैसे बुतो की  पूजा करने वाला"_*

_📕 *अहमद, इब्ने हब्बान, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47*_

📚 *_हदीस: हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया......._*

*💎 _"जो ज़िना करे या शराब पीये अल्लाह तआला उससे ईमान खींच लेता है जैसे आदमी अपने सर से (आसानी के साथ) कुर्ता खींच लेता है।_*

_📕 *हाक़िम शरीफ, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47*_

📚 *_हदीस: हज़रत अबू उमामा [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया.........._*

*💎 _"अल्लाह ताआ़ला फरमाता है क़सम है मेरी इज़्ज़त की, जो मेरा कोई बन्दा शराब का एक घूँट भी पीयेगा मै उस को उतना ही पीप पिलाऊंगा"।_*

📕 *_इमाम अहमद, बहवाला बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 9, सफा नं 52_*

*👉🏻 _"हक़ीमों और डॉक्टरों ने कहा है की..........नशे की हालत में सोहबत करने से रेहुमेटीक पैन (Rehumetic Pain) नामी बीमारी पैदा हो जाती है और औलाद अपाहिज़ (लंगड़ी लूली) पैदा होती है"_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 039 📕*_
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💫💫 *_[सोहबत के कुछ और आदाब]_* 💫💫

*👉🏻 _जैसा के हम पहले ही बयान कर चुके है कि मज़हब ए  इस्लाम हमारी हर जगह हर हाल में रहनुमाई करता हुआ नज़र आता है!  यहाँ  तक कि मियाँ बीवी के आपसी तअ़ल्लुक़ात में भी एक बेहतरीन दोस्त व रहनुमा बन कर उभरता है और हमारी भरपूर रहनुमाई करता है।_*

*👉🏻 _यहाँ हम श़रई रोशनी में  मुबाशरत (सोहबत) के कुछ और आदाब बयान कर रहे है जिसे याद रखना और उस पर अ़मल करना हर शादी शुदा मुसलमान मर्द व औरत पर ज़रूरी है।_*

              *_सोहबत तन्हाई मे करे_*

*👉🏻 _आपने सड़कों पर, सिनेमा हाल में और बागो  में खुले आम कुछ पढ़े लिखे कहलाने वाले मार्डन इन्सान, जो  इन्सानी शक़्ल में जानवर नज़र आते है क्योंकी वह सड़को और बाग़ो में ही वह सब कुछ कर लेते है जो उन्हें नही करना चाहिये। लेकिन अल्हमदुलिल्लाह!  हम मुसलमान है और अशरफुल मख़लूकात है। इसलिए हम पर ज़रूरी है कि हम इस्लाम का हुक़्म माने और मॉर्डन (Modern) जानवर नुमा इंसानो की नक़्ल से बचे!   लिहाज़ा याद रखिये सोहबत हमेशा तन्हाई में ही करे और ऐसी जगह करे जहाँ किसी के आने का कोई ख़तरा न हो। और उस  वक्त़ कमरे में अँधेरा कर ले रोशनी मे हरगिज़ न हो।_*

✍🏻 *_मसअ़ला :- बिवी का हाथ पकड कर मकान के अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया और लोगो को मालुम हो गया की वती (मुबाशरत) करने के लिये ऐसा किया है, तो यह मकरूह है_*

📕 *_बहारे शरीयत जिल्द नं 2,  हिस्सा नंबर 16,सफा नं 57_*

✍🏻 *_मसअ़ला :- जहाँ कुरआ़ने करीम की कोई आयते करीमा, किसी चीज़ पर लिखी हुई हो अगर्चे ऊपर शीशा (काँच) हो जब तक उस पर  कपडे का ग़िलाफ़ न डाल लें वहाँ सोहबत करना या बरहेना (नंगा) होना बेअदबी है।_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 258_*

✍🏻 _हुज़ूर ग़ौसे आ़ज़म़ [रदिअल्लाहु तआलाअन्हु] *"गुन्यतुत्तालिबीन"* में और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] अपनी *"मल्फ़ूज़ात"* *"अल-मसफुज"* मे फरमाते है..........._

*👉🏻 _"जो बच्चा समझदार है और दूसरों के सामने बयान कर सकता है उस के सामने सोहबत करना मक़रूह (तहरीमी (यानी शरीअ़त में ना पसंद, व नाजाइज़) है"_*

✍🏻 *_मसअ़ला:- किसी की दो बीवीयां हो तो एक बीवी से दूसरी बीवी के सामने सोहबत करना जाइज़ नही। मर्द को अपनी बीवी से हिजाब (पर्दा )नही लेकीन एक बीवी को दूसरी बीवी से तो पर्दा फ़र्ज़ है और शर्म व हया ज़रूरी है"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 207*_

                  *_मुबाशरत से पहले वुज़ू_*

*👉🏻 _मुबाशरत (सोहबत) से से पहले वुज़ू कर लेना चाहिये इस के बहुत से फ़ायदे है जिन में से चन्द हम यहाँ बयान करते है।..........._*

*1⃣ _अव्वल वुज़ू करना सवाब और बाइसे बरकत है।_*

*2⃣ _सोहबत से पहले वुज़ू करने की हिक्मत एक यह भी है के मर्द और औरत दोनो मे यह एहसास पैदा हो कि सोहबत हम सिर्फ़ अपनी ख्वाहिशाते नफ्सानी पुरा करने के लिये नही कर रहे है (मज़ा लेने के लिए नही कर रहे हैं।) बल्कि नेक सालेह औलाद पैदा करना मक़्सद है! दुसरी हिक्मत यह है की किसी भी वक्त़ यादें इलाही से हमें गा़फ़िल नही होना चाहिए।_*

*3⃣ _मर्द बाहर के कामों से और औरत घर के कामों की वजह से दिन भर के थके मांदे होते हैं। थका जिस्म दूसरो के लिये  फ़ायदा बख्श साबीत नही होता है! लिहाजा वुज़ू कर लेना  चुस्ती,  क़ुव्वत और खुद ऐतेमादी का सबब बनता है!_*

*4⃣ _दिन भर की भागदौड मे जिस्म व चेहरे पर धुल मिट्टी जरासीम (किटाणु) मौजूद रहते है!  जब मर्द व औरत बोस व किनार (चुम्मन) करते है। तो यह जरासीम मुँह में और सांसो के जरीए जिस्म मे दाखील हो सकते है! जिस से आगे मुख्तलिफ अमराज (बीमारियॉ) के पैदा होने का ख़तरा होता है। ऐसे सैकड़ों फ़ायदे है जो वुज़ू कर लेने से हासिल होते हैं।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 038 📕*_
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  _💫 *[सोहबत के बाद जिस्म की सफ़ाई]* 💫_

*👉🏻 _सोहबत के बाद मर्द और औरत अलग हो जाए फिर किसी साफ़ कपड़े से पहले दोनों अपनी अपने अपने मकामे मख्सुस को (शर्मगाह को) साफ़ करे ताकि बिस्तर पर गन्दगी लगने न पाए।  सफ़ाई के  बाद पेशाब कर ले की उसके के बहुत से फायदे है, हकीमो ने बयान किये है! जिनमे से चंद यहॉ जिक्र किये जाते है!_*

 *_अगर मर्द के आले मे (ऊज़ू-ए-तनासुल ) कुछ मनी बाकी रह गयी हो तो वह पेशाब के ज़रिए निकल जाती है! और अगर थोड़ी सी मनी उज्व मे ऊपर रह जाए तो बाद में पेशाब मे जलन और  खुजली की बीमारी होने का अंदेशा  होता है।_*

*_पेशाब जरासीम कुश होता है (क्योकी पेशाब मे  जरासीम (Germs) को ख़त्म करने वाले अज्जा पाये जाते है) इसलिए पेशाब के वहाँ से गुजरने से उस जगह  की सारी गन्दगी ख़त्म हो जाती है, और  उस जगह के जरासीम (Germs कीटाणु) ख़त्म हो जाते है!  और शर्मगाह की नाली (नली) साफ़ हो जाती है। इस तरह के और भी कई फायदे है जिनकी तफ्सील यहॉ तवालत का सबब (मुमकीन नही) है!_*

          👉🏻 *_नोट :- पेशाब के उज्वे तनासुल (शर्मगाह) से जुदा होने के बाद और ठंडा होने पर खुद पेशाब मे करोडोहा जरासीम किटानु बढ कर नुक्सानदेह साबीत होते है! इसलिये शरीयत मे पेशाब का किसी भी तरह का इस्तेमाल हराम है!_*

*_पेशाब कर लेने के बाद शर्मगाह और उस के आस पास के हिस्से को भी अच्छी तरह से धो लें इस से बदन तंदुरूस्त रहता है और खुजली की बीमारी से बचाव हो जाता है।_*

*_लेकिन याद रखिये! मुबाशरत  (सोहबत के फौरन बाद ठन्ड़े पानी से न धोए, उससे बुख़ार (Fever) होने का ख़तरा होता है। इसलिए कि सोहबत के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (Body Temperature) बढ़ जाता है जिस्म में गर्मी आ जाती है अगर गर्म जिस्म पर ठन्डा पानी डाला जाए तो बुख़ार जल्द होने का ख़तरा  है।_*

*_लिहाजा सोहबत करने के बाद तकरीबन पाँच, दस मिनट बैठ जाए या लेट जाए, ताके बदन की हरारत  (Body Temperature) ऐतेदाल (Normal) पर आ जाए!  फिर उसके बाद पानी का इस्तेमाल करे! अगर जल्दी हो तो हल्के गर्म, गुन गुने पानी से शर्मगाह धोने में कोई नुकसान नही।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 037 📕*_
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*_💦इन्जा़ल (मनी निकलते वक्त़)की दुआ़_*

 👉🏻 *_जिस वक़्त इन्ज़ाल हो यानी मर्द की मनी (वीर्य) उस के आले (ऊज़ू-ए-तनासुल) से निकल कर औरत की फरज (शर्मगाह) में दाखिल होने लगे उस वक्त़ दिल ही दिल में यह दुआ़ पढ़ें!_*

*اللَّهُمَّ لَا تَجْعَلْ لِلشَّيْطَانِ فِيمَا رَزَقْتَنِى نَصِيبًا*

*_अल्लाहुम्मा ला-तज-अल लिश्शैतानी फिमा रज़खतनी नसीबा!_*
         
👉🏻 *_तर्जुमा :- एे अल्लाह! शैतान के लिए हिस्सा न बना इसमे में जो (औलाद) तू हमें अ़ता करें।_*

_📕 *हिस्ने हसीन, सफा नं 165, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161*_

👉🏻  *_इस दुआ़ की तालीम देना इस बात की शहादत है कि इस्लाम एक मुकम्मल दीन है। जो ज़िन्दगी के हर मोड़ पर अपना हुक़्म नाफ़िज़ करता है ताकि मुसलमान किसी भी मामले में किसी दूसरे मज़हब (धर्म) व कानुन  का मोहताज़ न रहे! और इस दुआ मे दुसरी हिकमत यह भी है के मुसलमान कीसी भी हाल में यादें इलाही से गा़फ़िल न रहे बल्की हर हाल मे अल्लाह की रहमत का उम्मीदवार रहे!_*

        *_साथ ही साथ यह बात भी याद रखना ज़रूरी है। कि आने वाली औलाद के लिए अल्लाह तआला की बारगा़ह में दुआ़ तो की जाए के अल्लाह तआला उसे शैतान से महफ़ूज रखे!  लेकिन जब  औलाद पैदा हो जाए और उसे शैतानी कामों से न रोके, उसे बुरी बातों से मना न करे, और अच्छी बातों का हुक़्म न दे, तो बड़ी अ़जीब व ताअ़ज्जुब खेज बात होगी। इसलिए आगाह हो जाईये! के यह दुआ़ हमें आइन्दा के लिए भी अ़मले खैर करने की दावते फिक्र देती है।_*

❤ *[इन्ज़ाल के फौरन बाद अलग न हो]* ❤

📚 *_हदीस :- सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है। कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया............._*

 💎💎 *_"मर्द में यह कमजोरी की निशानी है कि जब मुबाशरत (सोहबत)का इरादा करे तो बोस व किनार (चुम्मन) से पहले बीवी से सोहबत करने लगे और जब इंजाल (उस की मनी, वीर्य) निकलने लगे तो सब्र ना करे और फौरन अलग हो जाए कि औरत की जरुरत (हाजत ) पूरी नही होती"_*

📕 *_कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266_*

 👉🏻 *_इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फ़रमाते है...._*

           👉🏻 *_...."इन्ज़ाल होने के बाद फौरन औरत से जुदा न हो यहाँ तक कि औरत की भी हाजत (जरुरत) पूरी हो हदीसे पाक  में इस का भी हुक़्म है! अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला की बेशुमार दुरूदे उस नबी ए रहेमत  ﷺ पर जिन्हो ने हम को हर बाब में तालीमे खै़र दी और हमारी दुनियावी और दीनी हाज़तो की कश्ती को  किसी दूसरे के सहारे न छोड़ा।"_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161_*

         👉🏻 *_....चुनांचे मर्द को इंजाल हो भी जाए (मनी , वीर्य निकल जाए )तो भी फौरन औरत से अलग न हो जाए बल्कि इसी तरह कुछ देर और ठहरा रहे ताकि औरत का भी मतलब पूरा हो जाए क्योंकि कुछ औरतों को देर में इन्ज़ाल होता है।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 036 📕*_
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     _*💫मुबाशरत (सोहबत) के आदाब 💫*_

         👉🏻 *_सोहबत से पहले खुद बेचैन न हो जाए अपने आप पर पुरा इत्मीनान रखे!  जल्दबाज़ी न करें पहले बीवी से प्यार मुहब्बत भरी गुफ्तगु करे फिर बोस व किनार के जरीये  उसे मुबाशरत के लिये (आमदा) तैय्यार  करे और इसी दौरान दिल ही दिल में यह दुआ पढे_*

*بسم الله العلى العظيم الله اكبر الله اكبر*

*_बिस्मील्लाह्-हील  अलीयील अजीमी अल्लाहु अकबर! अल्लाहु अकबर_*

*_तर्जुमा : अल्लाह के नाम से जो बुज़ुर्ग व बरतर अ़ज़मत वाला है। अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत बड़ा है_*

  👉🏻 *_इसके बाद मर्द, औरत जब सोहबत का इरादा कर ले तो कपड़े जिस्म से अलग करने से पहले एक मर्तबा "सूर ए इख़लास" पढ़े_*

                            *﷽*

*قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ۔ اللَّهُ الصَّمَدُ ۔ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ۔ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ۔*

    👉🏻 *_सूरए इख़्लास पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़ें।_*

*بِسْمِ اللَّهِ ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ ، وَجَنِّبْ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا*

*_बिसमिल्लाही अल्लाहुम्मा जन्निब्नश्शयताना व जन्निबिश्शयताना मा रजखतना_*

👉🏻 *_तर्जुमा :- अल्लाह के नाम से!  एे अल्लाह दूर कर हम से शैतान मरदूद को और दूर कर शैतान मरदूद को उस औलाद से जो तू हमें अता करेगा।_*

_📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3 सफा नं 473, कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266, हिस्ने हसीन, सफा नं 165,]*_

📚 *_हदीस :- हज़रत अबदुल्लाह इब्ने अब्बास [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया......_*

         👉🏻 *_"जो शख़्स इस दुआ को सोहबत के वक्त़ पढे़गा (वही दुआ जो ऊपर लिखी गई है) तो अल्लाह तआला उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अ़ता फ़रमाए तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुकसान न पहुँचा सकेगा।_*

📕 _*[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 85, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557,]*_
     
               🔥🔥 *_होशियार_*🔥🔥

*_इस हदीस की शरह (Explanation) में हुज़ूर गौ़से आ़ज़म शेख़ अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी व मुहक़्क़िक़े इस्लाम शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम] इरशाद फरमाते है....._*

          👉🏻 *_...."अगर कोई शख़्स सोहबत के वक्त़ यह दुआ न पढ़े (यानी शैतान से पनाह न माँगे) तो उस शख़्स की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता है और उस मर्द के साथ शैतान भी उस की औरत से सोहबत करने लगता है। और इस जिमा से जो औलाद पैदा होती है वह न फ़रमान, बुरी आ़दतों वाली, बेगै़रत, बद्'दीन होती है! शैतान की इस दख़ल  अंदाज़ी की सबब औलाद में तबाह कारी आ जाती है। (वल-अयाज बिल्लाह)_*

📕 _*[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 116, अश्अ़तुल लम्आ़त, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 46,]*_

_*हदीस :- "बुखारी शरीफ" की एक हदीस में है के हज़रत सअ़द बिन ऊबादा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने फरमाया"-----*_

  👉🏻 *_"अगर में अपनी बीवी को किसी के साथ देख लूं तो तलवार से उस का काम तमाम कर दूँ। उन की येह बात सुन कर अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया..."लोगों तुम्हें साअ़द की इस बात पर ताअ़ज्जुब आता है हालाँकि मैं उन से बहुत ज़्यादा ग़ैरत वाला हूँ और अल्लाह तआला मुझ से ज़्यादा ग़ैरत वाला है।_*

📕 _*[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 137, सफा नं 104,]*_

       👉🏻  *_लिहाजा इस मुसीबत से बचने के लिये जब भी सोहबत करे तो याद करके दुआ पढ ले! या कम अज कम आऊजु-बिल्लाही मिनश्शैता-निर्रजीम बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम जरुर पढ लिया करे!_*

👉 _*गालिबन आज कल  बहुत से हमारे भाई ऐसे होंगे जो सोहबत के वक्त़ दुआ़ नहीं पढ़ते । शायद यही वजह है कि नस्ले (औलादें) बेग़ैरत, नाफ़रमान, और दीन से दूर नज़र आ रही है। हमारा और आप का रोज़ मर्रा का मुशाहिदा है कि औलाद से बाप कहता है बुजुर्गों की मज़ारात पर हाजिर होना चाहिए बेटा बुजुर्गों की मज़ारों पे जाने को ज़िना और कत्ल कर देने से बदतर समझता है। बाप का अ़कीदा है कि रसूलुल्लाह ﷺ आक़ा व मौला है, बेटा रसूले अकरम ﷺ को अपने जैसा बशर और बडे भाई से ज्यादा समझने को तैयार नही! (माजअल्लाह!)*_

👉 _*गरज के इस तरह की सैकडो मिसाले है की दुनियावी मुआमला हो या दीनी, औलाद अपने मॉं बाप और बुजुर्गो  से बाग़ी नज़र आती है! अल्लाह तआला मुसलमानों को तौफ़ीक़ दे।*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 035 📕*_
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    💫 *_मुबाशरत (सोहबत) के आदाब_* 💫

 _*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है.....*_

💎 _*📝तर्जुमा : "तो उन से सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो ।"*_

_📕 *तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 2, सूरह ए बखराह, आयत नं 187*_

      👉 _*इस बात का हमेशा   खयाल  रखे कि जब भी मुबाशरत (सोहबत) का इरादा हो तो यह जान ले के कही औरत हैज़ (माहवारी) की हालत में तो नही है। चुनांचे औरत से साफ़ साफ़ पूछ ले । और औरत की भी जिम्मेदारी है की अगर वह हैज की हालत मे है, तो बेझिजक अपने शौहर को बता दे! अगर औरत हैज़ की हालत में हो तो हरगिज़ हरगिज़ सोहबत न करे कि इस हालत में औरत से सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह है। (इस मसअ़ले का बयान इंशा अल्लाह आगे आएेगा)*_
           
    👉🏻 _*अक्सर औरतें शादी की पहली रात (सुहाग रात) हालते हैज (महावीरी) मे होने के बावजुद शर्म की वजह से बताती नही है। या कह भी दे तो बहत कम मर्द  होते है जो सब्र से काम लेते है!  और जो   सोहबत कर बैठते है , और जल्दबाज़ी की सज़ा उम्र भर डॉक्टरों और हकीमों की फ़ीस की शक़्ल में भुगतने पडते हा!  लिहाजा मर्द और औरत दोनों को ऐसे मौक़ों पर सब्र से काम लेना चाहीये!*_

 👉🏻 _*कुछ मर्द मतलब परस्त होते हैं। उन्हें सिर्फ़ अपने मतलब से ही लेना (काम) होता है, वह दूसरे की खुशी को कोई अहमियत नहीं देते वह यही उसूल अपनी बीवी के साथ भी रखते हैं! चुनांचे जब उनके दिल मे ख्वाहिश ए जिमा होती है, तो वह यह नही देखते की औरत उसके लिये तैयार है या नही, वह कही किसी दुख दर्द या बिमारी मे मुब्तला तो नही है?    इन सब  बातो से  उन्हें कोई मतलब नहीं होता वह बेसब्री के साथ औरत  से अपनी ख्वाहिश की तक्मील कर लेते है!  इस हरकत से औरत की निगाह में मर्द की इज़्ज़त कम हो जाती है और वह मर्द को मतलब परस्त  समझने लगती है! साथ ही  वह मुबाशरत (सोहबत) का लुत्फ भी हासिल नही हो पाता।*_

 📚 _*हदीस : उत्बा बिन अस्सलमी रदी अल्हाहु तआला अन्हु से  रिवायत है के रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया.....*_

💎 _*"तुम मे से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा कर ले और गधो की तरह न शुरू हो जाए"*_

📕 *_इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 616, सफा नं 538, हदीस नं 1990_*

📚 _*हदीस : सैय्यदना हज़रत इमाम ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है । कि  हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया.....*_
     
💎 *_"मर्द को न चाहिए कि अपनी औरत पर जानवर की तरह गिरे, सोहबत से पहले क़ासिद (पैग़ाम पहुँचाने वाला) होता है"। सहाब-ए-किराम ने अ़र्ज़  किया "या रसूलुल्लाह ! वह क़ासिद क्या है?? आप ने इरशाद फरमाया "वह बोस व किनार (Kiss) वगै़रह है"। और मुहब्बत आमोज (प्यार भरी) गुफ्तगु है! (यानी सोहबत से पहले   औरत को राज़ी करना)_*

📕 *_कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266_*

📚 _*हदीस : उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रदि अल्लाहु तआला अन्हा से मरवी  है। कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया.....*_         

💎 _*जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है। अल्लाह तआला उस के लिए एक (1) नेक़ी लिख देता है!  जब मर्द मुहब्बत के साथ औरत के गले में हाथ डा़लता है, उसके हक़ में दस (10) नेक़ियां लिखी जाती है, और जब औरत से जिमा (सोहबत) करता है तो दुनिया और माफीहा से बेहतर हो जाता है।*_

📕 *_गुनीयातुत्तालिबीन, सफा नं 113_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 034 📕*_
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             ✍🏻 *_एक नई ख़ुराफ़ात_* ✍🏻

*👉 _आज कल मुसलमानों में एक और नई चीज़ राएज़ हो गयी है वोह यह  के औरतों में जवान मर्द और लड़के खाना परोसते है! खाने के दौरान बेहूदा़ गन्दा मज़ाक, लड़कियों से छेड़ छाड़ और बदतमीज़ी की हर हद को पार कर लिया जाता है। क्या इस के हराम व गुनाह होने में किसी को कोई शक़ है।_*

📚 *_[हदीस :-].... रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया......_*

 💫 *_अल्लाह की लाअ़नत बद निगाहीं करने वाले पर और जिस की तरफ बद निगाही की जाए।_*

_📕 *बयहक़ी शरीफ, बाहवाला मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2 सफा नं 77*_

📚 *_[हदीस :-].... और फरमाते है हमारे प्यारे आक़ा ﷺ......._*

 💫        *_"जो शख़्स किसी औरत को बद निगाही से देखेगा, क़यामत के दिन उसकी आँखों में पिघला हुआ सीसा डाला जाएगा"।_*

        👉🏻 *_इस बुरे तरीक़े पर पाबंदी लगाना हर  मुसलमान पर ज़रूरी है और ख़ास कर हमारे घर के बडे बुजुर्गों पर ख़ास जिम्मेदारी है के वह शादी ब्याह के मौके पर औरतों में मर्दों को जाने और खाना खिलाने से रोके  वरना याद रखिए महशर में सख़्त पूछ होगी। और आप से पूछा जाएगा "तुम क़ौम में बुज़ुर्ग थे तुम ने अपनी जवान नस्लों को इन हराम कामों से क्यों न रोका था। इस बेहयायी के खिलाफ तुम ने क्यो इक्दाम न किया?" बताए उस वक्त़ आप् के पास क्या जवाब होगा?_*

📚 *_[हदीस :-].... अल्लाह  के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया......_*

*_السالت عن ألحق شيطان اخرس_* 

💎  *_"बुराई देख कर हक़ बात कहने से खामोश रहने वाला गूंगा शैतान है"।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 033 📕*_
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             🔥🔥 *_बुरा वलीमा_* 🔥🔥

📚 _*हदिस : अल्लाह के रसुल ﷺ इरशाद फरमाते है!......*_

💫 _*"जो काफीरो की ताजीम व तौकीर (इज्जत अफजाई और कद्र) करे यकीनन उसने दीन ए इस्लाम को ढाने (तोडने) मे मदद की!"*_ 

_📕 *इब्ने अदी, इब्ने असाकीर, तबरानी, बैहकी शरीफ, इबु नईम फिल हिलयाती*_

👉 _*बताइये जिन लोगो के मुतअल्लीक यह फरमान है! उनकी खातीर तवाजु मे इस कद्र मुबालेगा करना और मुसलमानो को उन से कम दर्जा शुमार करना कहॉ तक सही है! कुछ लोग कहते है की "साहब हमे दिन रात उनके बीच उठना बैठना है! हमारे कारोबारी ताअल्लुकात है, इसलिये यह सब कुछ करना जरूरी है!"*_

     _*"एे मेरे भाई! जरा यह तो बताओ की क्या उमुमन यह गैर मुस्लीम भी अपनी शादी ब्याह के मौके पर मुसलमानो के लिये अलग और उनका पसंदीदा खाना रखते है? जी नही! तो फीर हम क्यो  उनसे मस्लेहत (Compromise) करे!" यकीनन ऐसे वलीमा का कोई सवाब नही मिलता जिसमे मुसलमानो से ज्यादा गैर मुसलमानो को अहमियत दी जाए!"*_

       💫  *_[टेबल कुर्सी पर खाना]_* 💫

📚 _*हदीस :- हज़रत अनस बिन मालीक [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया.....*_

 💎 _*"जब खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो के इस में तुम्हारे पाँव के लिए ज़्यादा राहत है और येह अच्छी सुन्नत है"*_

_📕 *तबरानी शरीफ*_

_*आज कल टेबल कुर्सी पर जूते पहने हुए खाना-खाने का  फैशन बन गया है। जिस दावत  मे टेबल कुर्सी का इंतजाम न हो वह दावत घटीया किस्म की दावत समझी जाती है!*_   

          _*टेबल कुर्सी पर खाना खाने के मुत्अ़ल्लिक़ मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खाँ रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है.....*_

          👉🏻 _*...."टेबल कुर्सी पर जूता पहेने हुए खाना खाना ईसाइयों की नक़्ल है, इससे दूर भागे और रसूलुल्लाह ﷺ का वह इरशाद याद करे।*_
*من تشبه بقوم فهو منهم*

_*यानी जो किसी क़ौम से मुशाबेहत (नक़्ल) पैदा करे वह उन्ही में से है।*_

_📕 *फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 53*_

💫 *_यह तो टेबल कुर्सी पर खाने के मुतअल्लीक हुक्म था! मगर मौजुदा दौर मे इतनी तरक्की हो गई है के अक्सर जगह खडे-खडे खाने का इंतेजाम होता है! इसमे ऐसे मुसलमान ज्यादा शरीक है, जिनके सर पर सोसायटी मे मॉर्डन कहलाने का भुत सवार है! हैरत बालाए हैरत इस तरह की भिकारी की दावत को स्टेंडर्ड (Standard) का नाम दिया जा रहा है!_*

💫💫 *_अल्लाह तआला ने इंसान को अशरफुल मख्लुकात बनाया, और उसे खानेे, पिने, सोने, जागने, चलने फिरने, और उठने बैठने  गर्ज की हर मुआमले मे जानवरों से अलग मुंफरीद इम्तियाज खुसुसीयत से नवाजा है! लकीन ताज्जुब! आज का इंसान जानवरो के तरीको को अपनाने मे ही अपनी तरक्की समझ रहा है!और इसपर फुले नही समा रहा है! अल्लाह तआला मुसलमानो को जानवरो की तरह खडे रहकर खाने-पिने से बचने की तौफीक अता फरमाए! आमीन!_*

✍🏻 *_[मसअ़ला :-].... भूख से कम खाना सुन्नत है, भूख भर कर खाना मुबाह है, (यानी न सवाब है न गुनाह) और भूख से ज़्यादा खाना हराम है। ज़्यादा खाने का मतलब यह है कि इतना खाया की पेट खराब होने या  बदहज्मी होने का गुमान है।_*

_📕 *कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 178*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 032 📕*_
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  🍪🍪 *_[दावत कुबूल करना :-]_* 🍪🍪

*💫 _दावत क़ुबूल करना सुन्नत है!_*

📚 *_हदीस : हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर [रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

    *_"जब तुम मे से किसी को वलीमा खाने के लिए बुलाया जाए तो वह जरूर जाए"_*

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 87, मोता इमाम मालिक, जिल्द नं 2, सफा नं 434_*

📚 *_हदिस: हजरत अबु हुरैरा रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

💫💫💫 *_"जो दावत कबुल करके न जाए उसने अल्लाह तआला और रसुल की नाफरमानी की"!_*

📚 *_हदिस: हजरत हमीद बिन  अब्दुर्रहमान हुमारी रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

*💫 _"जब दो शख्स  दावत देने एक वक्त आए, ते जिसका घर तुम्हारे घर से करीब हो उसकी दावत कबुल करो, और अगरलअक पहले आया तो जो पहले आया उसकी दावत कबुल करो "!_*

📕 *_इमाम अहमद, अबु दाऊद शरीफ  जिल्द नं 3, बाब नं 136, हदिस नं 357 सफा नं  134_*

      🔥🔥 *_बगैर  दावत जाना_* 🔥🔥

*_"दावत में बगै़र बुलाए नही जाना चाहिए। आज कल आम तौर पर कई लोग दावतों में बिन बुलाए ही चले जाते है और उन्हें न शर्म ही आती है न ही अपनी इज़्ज़त का कुछ ख़्याल होता है गोया....... मान न मान मै तेरा मेहमान"_*

📚 *_हदीस :_* _*सरकारे मदीना ﷺ* ने इरशाद फ़रमाया......_

* 💫  _"दावत में जाओ जब के बुलाए जाओ"! और फरमाया....._*

💫💫 *_जो बग़ैर बुलाए दावत में गया वोह चोर होकर  दाखील हुआ और गारतगीरी कर के लुटेरे की सूरत में बाहर निकला!  (यानी गुनाहो को साथ लेकर निकला)_*

📕 *_अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 127, हदीस नं 342, सफा नं 130_* 

            🔥🔥 *_बुरा वलीमा_* 🔥🔥

 🔥🔥 *_हदीस पाक में उस वलीमें को बहुत बुरा बताया गया है । जिस में सब अमीरो को तो बुलाया जाए और  गुरबा (गरीब) व मसाकीन को फरामोश (भुला दिया जाए) या उनके लिये अलग किस्म का  खाना और अमीरों के लिए अलग क़िस्म का खाना रखा जाए। या अमीरो की खुब खातीर तवाजु की जाए और गरीबो को नजर अंदाज कर दिया जाए, या उन्हे हिकारत की नजर से देखा जाए!_*

📚 *_हदीस:  हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है रसूले ख़ुदा ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

💫💫 *_"सब से बुरा वलीमा का वह खाना है जिस में अमीरों को तो बुलाया जाए और गरीबों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाए"।_*

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 88, मोता शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 434_*

*🔥 _आजकल मुसलमानो मे एक नया रिवाज पैदा हुआ है के दावत मे दो किस्म के खाने होते है! सादा व कम लागत वाला खाना गरीब मुसलमानो के लिये और बेहतरीन खाना अमीर मुसलमान और गैर मुस्लीम दोस्तो के लिये रखे जाते है! और इस तरह खातीर तवाजु की जाती है के पुछिये मत_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 031 📕*_
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             _🍔 *[वलीमा का बयान ]* 🍔_

* 💫 _वलीमा करना सुन्नते मुअक्कदा है (जान बूझकर वलीमा न करने वाला सख्त गुनाहगार है।)_*

📕 *_कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 261_*

*👉 _"वलीमा यह है कि शब ए जुफाफ (सुहागरात) की सुबह को अपने दोस्त, रिशतेदारों, अजीज व अकारीब और मोहल्ले के लोगों को अपने इस्त्ताअत (हैसियत) के मुताबिक दावत करे, दावत करने वालों का मकसद सुन्नत पर अमल करना हो! न यह की वाह-वाही (शोहरत) करना हो।_*

📕 *_कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 185_*

📚 *_हदीस :-  हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] का बयान है के मुझ से नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*
   
 💎 *_"वलीमा करो चाहे एक ही बकरी हो।"_*

_📕 *बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 85, मोता शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 434*_

* 👉  _इस्तेताअ़त (हैसियत) हो तो कम से कम एक बकरे या बकरी का गोश्त ज़रूर हो के हुजुर ﷺ ने इसे पसंद फरमाया! लेकिन अगर हैसियत न हो। तो अपनी हैसियत के मुताबिक किसी भी क़िस्म का खाना खिला सकते है कि इससे भी वलीमा हो जाएंगा! यह भी जाइज़ है।_*

📚 *_[हदीस :-  हज़रत सफ़िया बिन्त शैबा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है...._*

*💎 _नबी ए करीम ﷺ ने अपनी बाज़ अज़वाजे मुतहरात (बीवीयों) का वलीमा दो सेर जव के साथ किया था।_*

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 87,_*

    ✍🏻 _*.... सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] "कीमीया-ए-सआ़दत" में इरशाद फरमाते है.....*_

*💫 _"वलीमा में ताख़ीर (देरी) करना ठीक नही, अगर किसी श़रअई वजह से ताख़ीर हो जाए तो एक हफ़्ते के अन्दर, अन्दर वलीमा कर लेना चाहिए। उस से ज़्यादा दिन गुजरने न पाए।_*

📕 *_कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 261_*

📚 *_हदीस :-  हज़रत इब्ने मसऊद [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया....._*

* 💎 _"पहले दिन का खाना यानी शब ए जुफाफ (सुहाग रात) के दूसरे रोज़ वलीमा करना) वाज़िब है दूसरे दिन का सुन्नत है और तीसरे दिन का खाना सुनाने और शोहरत के लिए है। और जो कोई सुनाने (शोहरत)के लिए काम करेगा। अल्लाह तआला उसे सुनाएगा (यानी इस की सजा उसे मिलेगी)_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 746, हदीस नं 1089, सफा नं 559_*

📚 *_हदिस:-  हजरत सईद बिन मुसैय्यीब रदि अल्लाहु तआला अन्हु को वलीमा मे पहले रोज बुलाया गया तो दावत मंजुर फरमा ली! दुसरे रोज दावत दी गई तब भी कुबुल फरमाई! तिसरे रोज बुलाया गया तो दावत मंजुर न की, बुलाने वाले को फरमाया की.... "यह शेखी बघारने वाले और दिखावा करने वाले है!_*

📕 *_अबु दाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 131, हदीस नं 349, सफा नं 132_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 030 📕*_
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         🔥 *_[ एक बडी गलत फहमी]_* 🔥

*✍🏻 _कुछ लोगों का खयाल है कि  जब किसी कुवांरी से पहली बार सोहबत (शारीरी संबध) की जाए तो उससे (शर्मगाह से) खून निकलना जरूरी है। चुनांचे यह खून का आना उसके बाइस्मत पाक दामन (पवित्र) होने का सबूत समझा जाता है। अगर खून नही देखा गया तो औरत बदचलन, आवारा समझी जाती है। और औरत के बाइस्मत होने और उसकी दोशीजगी पर शुबह (शक) किया जाता है। कभी कभी यह शक जिन्दगी को कड़वा और बद मज़ा कर देता है। नौबत तलाक़ तक जा पहुँचती है। मुमकीन है इसका बयान जाहीर तबियत वालो को बुरी मालुम हो लेकीन तजरेबा शाहीद (गवाह) है के सैंकडो जिंदगिया इसी शक व शुबाह की बिना पर तबाह हो चुकी है! लिहाजा इस मसले पर रौशनी डालना निहायत जरुरी है! क्या अजब की हमारे इस मज्मुन (Chapter) को पढने के बाद कोई तलाक नामी दरीयॉ मे गोता जन (डुबकर) हो कर अपनी खुशियो को मौत के घाट उतारने से बच जाए!_*

*💫 _कुंवारी लड़कियों के मकामे मख्सूस (शर्मगाह) में अन्दर की जानीब एक पतली सी झिल्ली होती है ! जिसे पर्दा-ए-इस्मत  या पर्दा-ए-बुकारत (Hymen) वगैरह कहते है। इस झिल्ली मे एक छोटा सूराख होता है जिसके जरिए लड़की के बालिग होने पर हैज़ (माहवारी) का खून अपने खास दीनो मे खारीज होता रहता है।_*

*👉 _शादी के बाद जब कोई मर्द ऐसी कुवांरी से पहली बार सोहबत करता है तो मर्द के ऊज़ू-ए-तनासुल  के उस से टकराने की वजह से वह झिल्ली फट जाती है इस मौके़ पर औरत को थोड़ी तकलीफ़ होती है और थोड़ा सा खून भी खारिज होता है। फिर यह झिल्ली (पर्दा) हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।_*

*👉🏻 _चूँकि यह झिल्ली पतली और नाज़ुक होती है तो कई मर्तबा किसी कुवांरी की यह मामूली चोट, या किसी हादसे की वजह से या कभी कभी खुद ब खुद भी फट जाती है। आजकल बहुत सी लड़कियाँ साइकल वगै़रह चलाती है, कुछ खेल कूद कुछ कसरत वगै़रह भी करती है जिसकी वजह से भी यह झिल्ली कई मर्तबा  फट जाती  है! जाहीर है ऐसी लडकियो की जब शादी होती है तो मर्द कुछ (खून) न पाकर शक मे मुब्तला हो जाता है_*

*👉🏻 _किसी किसी औरत की यह झिल्ली ऐसी लचक़दार होती है कि सोहबत के बाद भी नही फटती और सोहबत करने में रुकावट भी पैदा नही करती। और न ही खून खारिज होता है। लाखों में से किसी एक औरत की यह झिल्ली इतनी मोटी और सख़्त होती है कि फटती नही जिसके लिए (Operation) की ज़रूरत पड़ती है। लिहाजा किसी शख्स की  शादी ऐसी  कुवांरी से हो जिससे पहली मर्तबा कराबत (शरीर संबध) होने पर खुन जाहीर न हो, तो जरुरी नही के वह आवारा,  अय्याश व बदचलन रह चुंकी हो, इसलिये उसकी इस्मत, पाकदामनी पर शक करना किसी भी सुरत मे जाइज नही! जब तक की बदचलन होने का शरई सुबुत गवाहो के साथ ना हो_*

✍🏻 _*फिक़ह की मशहूर किताब "तन्वीरूल अब्सार" मे है!....*_

*💎💎 _जिस का पर्दा-ए-इस्मत कूदने हैज़ आने या ज़ख़्म या उमर ज़्यादा होने की वजह से फट जाए वह औरत हक़ीक़त में बकेरा  (कुंवारी पाक दामन) है"।_*

📕 *_तन्वीरूल अबसार, बाहवाला, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 12, सफा नं 36_*

        *_सुहाग रात की बातें दोस्तों से कहना_*

*👉 _कुछ लोग अपने दोस्तों को पहली रात (सुहाग रात) में बीवी के साथ की हुई बातें मज़े ले कर सुनाते हैं। दुल्हा अपने दोस्तों को बताता है और दुल्हन अपनी सहेलियों को बताती है! और सुनाने वाला और सुनने वाला इसे बडी दिलचस्पी के साथ मजे ले ले कर सुनते है! यह बहुत ही जाहिलाना तरीक़ा है भला इस से ज़्यादा बेशर्मी और बेहयाई की बात और क्या हो सकती है।_*

📚  *_हदीस :- जमाने जाहिलियत मे लोग अपने दोस्तों को और औरतें अपनी सहेलियों को रात में की हुई बातें और हरकतें बताया करते थे। चुनान्चे जब हुजुर ﷺ को इस बात की ख़बर हुई तो आप ने इसे सख़्त नापसन्द फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया......_*

    *_"जिस किसी ने सोहबत की बातें लोगों में बयान की उस की मिसाल ऐसी है जैसे शैतान औरत, शैतान मर्द से मिले और लोगों के सामने ही खुले आम सोहबत करने लगे"।_*

_📕 *अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 127, हदीस नं 407, सफा नं 155*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 029 📕*_
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       _*शबे जुफाफ (सुहागरात) के आदाब*_

    👉🏻 _*....जब दुल्हा, दुल्हन कमरे में जाए और तन्हाई हो तो बेहतर यह है कि सबसे पहले दोनो वुज़ू कर ले! और फिर जानमाज़ या कोई पाक़ कपड़ा बिछा कर दो (2) रकाअ़त नफ्ल, शुक्राना पढ़ें । अगर दुल्हन हैज़ (माहवारी) की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़ें। लेकिन दुल्हा ज़रूर पढ़ें।*_

📚 _*[हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद [रदिअल्लाहु तआला अन्हु]  फरमाते है।......*_

          _*"एक शख्स ने उनसे बयान किया कि मै ने एक जवान लड़की से निकाह कर लिया है और मुझे अंदेशा (डर) है के वह मुझे पसंद नही करेगी। हज़रत अब्दुल्लाह  बिन मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु  ने फरमाया । "मुहब्बत व उल्फत अल्लाह की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से, जब तुम बीवी के पास जाओ तो सब से पहले उस से कहो कि वह तुम्हारे पीछे दो (2) रकाअ़त नमाज़ पढ़े ! इंशा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत करने वाली और वफा करने वाली पीओंगे।*_

_📕 *गुनीयातुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115*_

✍ _*नमाज़ की नियत :- नियत की मै ने दो रकाअ़त नमाज़ नफील शुक्राने की वास्ते अल्लाह तआला के मुँह मेरा काबा शरीफ के अल्लाहु अक़बर ।*_
   
         _*फिर जिस तरह दूसरी नमाज़े पढ़ी जाती है उसी तरह येह नमाज़ भी पढ़ें। (यानी सुरीह फातीहा, फिर उस के बाद कोई एक सूराह मिलाए) नमाज़ के बाद इस तरह दुआ करें...*_

    *_एे अल्लाह तेरा शुक्र व एहसान है के तू ने हमें यह दिन दिखाया, और हमें इस खुशी व नेमत से नवाज़ा और हमे अपने प्यारे हबीब ﷺ की इस सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाई! एे अल्लाह   मुझे इससे और इसको मुझसे रोजी अता फरमा! और हमपर अपनी रहमत हमेशा कायम रख, और हमे ईमान के साथ सलामत रख! आमीन"_*

_📕 *गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115*_

_*[शबे जुजाफ (सुहाग रात) की ख़ास दुआ]*_

      _*नमाज़ और दुआ के  बाद दुल्हा, दुल्हन सुकून व इत्मीनान से बैठ जाए फिर उसके बाद दुल्हा अपनी दुल्हन के पेशानी  थोड़े से बाल अपने सीधे हाथ मे नर्मी के साथ मुहब्बत भरे अंदाज़ में पकड़े और येह दुआ पढ़े*_

*اللَّهُمَّ إِنِّي أَسَْلُكَ مِنْ خَيْرِهَا ، وَخَيْرِ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ "*

✍🏻 _*तर्जुमा :- एे अल्लाह मैं तुझ से इस की (बीवी ) भलाई और  खैर व बरकत माँगता हूँ! और उस की फितरी आदतों की भलाई और तेरी पनाह चाहता हूँ  उसकी बुराई और फ़ितरी आदतों की बुराई से।*_

📚 _*हदीस :- हज़रत अ़म्र बिन आ़स [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया.....*_

 💫 _*"जब कोई शख्स निकाह करे और पहली रात (सुहाग रात) को अपनी दुल्हन के पास जाए तो नर्मी के साथ उस के पेशानी के थोड़े सेे बाल अपने सीधे हाथ में ले कर यह दुआ पढ़ें। (वही दुआ जो ऊपर नक़्ल की गयी हैं!)*_

_📕 *अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 150, व हिस्ने हसीन, सफा नं 164*_

✍🏻 _*फ़ज़ीलत :-शबे जुफाफ (सुहाग रात) के रोज़ इस दुआ को पढ़ने की फ़ज़ीलत में उलमा-ए-किराम इरशाद फरमाते है। के..... "अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस के पढ़ने की बरक़त से मियाँ, बीवी  के दर्मियान इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत क़ायम रखेगा! और अगर औरत में बुराई हो तो उसे दूर फ़रमा कर उस के जरिए नेकी फैलाएगा और औरत हमेशा मर्द की ख़िदमत गुजार, वफ़ादार, और फरमांबरदार रहेगी। (इन्शा अल्लाह)*_
   
👉🏻 _*अगर हम इस दुआ मानो (Meaning) पर गौ़र करें तो हम पाएंगे के इसमे हमारे लिये कितने  अमन व सुकून का पैग़ाम है। यह दुआ हमे दर्स देती है की किसी भी वक्त इंसान को यादे इलाही से गाफील नही होना चाहीये बल्की हर वक्त हर मुआमले मे अल्लाह की रहमत का तलबगार रहे! लिहाजा इस दुआ को शादी की पहली (सुहागरात) को ज़रूर पढ़े!*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 028 📕*_
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           🚗 *_[रुख्सती का बयान]_* 🚗

         👉🏻 *_..... जब कोई शख़्स अपनी लड़की की शादी करें। तो रुख्सती के वक्त़ के अपनी लड़की व दामाद [दुल्हा व दुल्हन] दोनो को अपने पास बुलाऐ फिर उसके बाद एक प्याले [गिलास] मे पानी लेकर येह दुआ पढ़ें......._*

*اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهَا بِكَ وَذُرِِّیِّتَھَاَ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*

✍🏻 *_[तर्जुमा :-]....  एे अल्लाह!  मेेैे तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़की को, और इसकी [जो होगी] औलादों को मरदूद शैतान से ।_*

  👉🏻 *_इस दुआ को पढ़ने के बाद प्याले में दम करें उस के बाद पहले अपनी लड़की [दुल्हन] को अपने सामने खड़ा करे और फिर उस के सिर पे पानी के छींटे मारे फिर सीने और उस की पीठ पर छींटे मारे । उसके बाद इसी तरह दामाद [दूल्हे] को भी बुलाए और प्याले में दूसरा पानी ले कर यह दुआ पढ़ें।......_*

*اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهْ بِكَ وَذُرِِّیِّتَهْ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*

✍🏻 *_[तर्जुमा :-]....  एे अल्लाह! मै तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़के को, और इसकी [जो होगी] औलादें उन को शैतान मरदूद से।_*

       👉🏻 *_पानी पर दम करने के बाद पहले की तरह अपने दामाद के सर और सीने पर फिर पीठ पर छींटे मारे और उस के बाद रुख़सत कर दें।_*

_📕 *हिसने हिसीन, सफा नं 163*_

✍🏻 *_[हदीस :-]....   हज़रत इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन जज़री शाफ़अ़ई  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] अपनी किताब "हिसने हिसीन" मे हदीस नक़्ल फरमाते है। के......._*

 📚  *_"जब  रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत मौला अली कर्मल्लाहु  वज्हुल करीम का निकाह खातुन ए जन्नत हज़रत फातिमतुज्जहुरा  [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] से कर दिया तो आप उन के घर तशरीफ ले गए और हज़रत फा़तिमा से फरमाया "थोड़ा सा पानी लाओ"। चुनांचे वह एक लकड़ी के प्याले में पानी लेकर हाजिर हुई आप ने उन से वह प्याला लिया और एक घूँट पानी दहने मुबारक [मुँह शरीफ] में ले कर प्याले में ही डाल दिया और इरशाद फरमाया "आगे आओ" । हज़रत फा़तिमा सामने आ कर खड़ी हो गई तो आपने उन के सर पर और सीने पर वोह पानी छिड़का और यह दुआ फरमाई  [वह दुआ जो उपर लिखी हैं!] और उस के बाद फरमाया "मेरी तरफ पीठ करो"। चुनान्चे वह आपकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई तो आपने बाकी पानी भी आपने यही दुआ पढ़ कर पीठ पर छिड़क दिया। इसके बाद आप ने हज़रत अली के जानिब रूख़ करके फरमाया........"पानी लाओ"। हज़रत अली कहते है कि। मै समझ गया जो आप चाहते हैं चुनांचे मैंने भी प्याला भर कर पानी पेश किया ! आप ने फरमाया...... "आगे आए"। मै आगे आया, आप ने वही कलिमात पढ़ कर और प्याले में कुल्ली करके मेरे सर और सीने पर पानी के छींटे दिये और फिर वही दुआ पढ़कर मेरे मोंडो  [कंधों] के दर्मियान पानी के छींटे दिये उस के बाद फरमायाव"अब अपनी दुल्हन के पास जाओ"_*

_📕 *हिस्ने हसीन, सफा नं 164*_

✍🏻 *_[नोट :-].... पानी पर सिर्फ़ दुआ कर के ही दम करें उस में कुल्ली न करें। सरकार ﷺ का लुआबे दहन हुआ मुबारक पानी पाक़ ही नही बल्कि बाइसे बरक़ात है। और बीमारियों से शिफ़ा देने वाला और ज़हन्नम की आग के हराम होने का सबब हैं। (वल्लाहु तआला आलम)_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 027 📕*_
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         _🎁🎁 *दूल्हे को तोहफ़े* 🎁🎁_

            👉🏻 _*.... लड़की को जहेज (तोहफा) देना सुन्नत है मगर ज़रुरत से ज़्यादा देना क़र्ज लेकर देना दुरूस्त नहीं है।  जहेज के लिये भी कोई हद होनी चाहीए के जिसकी हर गरीब और अमीर पाबंदी करे! अमीरो को चाहीये के वह अपनी बेटीयों को  बहुत ज्यादा जहेज न दे, सजा-सजा कर और दिखाकर जहेज देना बिल्कुल मुनासीब नही, नामवारी (अपना नाम करने की) लालच मे अपने घर को आग न लगाए! याद रखीये के नाम और इज्जत तो अल्लाह तआला और रसुलुल्लाह की पैरवी मे है!*_

 🔥🔥 *_लड़के वालो को चाहीये लडकी वाले अपनी हैसियत के मुताबिक जिस क़दर भी जहेज (तोहफा) दें उसे खुशी खुशी कु़बूल करले! जहेज दरअसल तोहफा है, किसी किस्म की तिजारत (Business) नही है! लडके वालो का अपनी तरफ से मांग करना की यह चिज दो, वह चिज दो किसी हटधर्म भीखारी के भीख माँगने से किसी तरह कम नही है।_*

_✍🏻 *[मसअ़ला :-].... जहेज के तमाम माल पर ख़ास औरत का हक़ है। दूसरे का उस मे कुछ हक़ नही है।*_

_📕 *फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 529*_

           👉🏻 _*.... हमारे मुल्क में यह रिवाज़ हर क़ौम में पाया जाता है। कि निकाह के बाद दुल्हन वाले दूल्हे को तोहफ़े देते हैं जिसमे कपड़े का जोड़ा, सोने की अंगूठी, घड़ी वगै़रा होती है  तोहफ़े देने में कोई हर्ज़ नहीं लेकिन इसमें चंद बातों की एहतियात ज़रूरी है। मसलन आप जो अँगूठी दूल्हे को दे वोह सोने की न हो।*_

_*[मसअ़ला :-].... मर्द को किसी भी धातु का ज़ेवर पहेनना जाइज नही है।  इसी तरह मर्द को सोने की अंगूठी पहेनना भी हराम है। औरत को सोने की अंगूठी व जे़वर पहेनना जाइज़ है। मर्द सिर्फ़ चांदी की अंगूठी ही पहेन सकता है। लेकिन उसका वज़न 4 माशा से कम होना चाहिए । दूसरी धातें मस्लन लोहा, पीतल, ताँबां, जस्त, वगै़रा इन धातु की अँगूठी मर्द और औरत दोनो को पहेनना ना जाइज़ है।*_

_📕 *कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 196*_

_📚 *[हदीस :-].... एक शख़्स हुज़ूर ﷺ की ख़िदमत में पीतल की अँगूठी पहेन कर  हाजिर हुए। सरकार ने इरशाद फरमाया.. "क्या बात है कि तुम से बुतों की बू आती है" उन्होंने वोह अँगूठी फेंक दी। "फिर दूसरे दिन लोहे की अँगूठी पहेन कर हाजिर हुए। फरमाया.... क्या बात है कि तुम पर जहन्नमियों का जे़वर देखता हूँ"। अर्ज किया............ या रसूलुल्लाह ! फिर किस चीज़ की अँगूठी बनाऊँ ! इरशाद फरमाया....... चाँदी की और उसको साढ़े चार माशे से ज़्यादा न करना।*_

_📕 *अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 292, हदीस नं 821, सफा नं 277*_

_✍🏻 *[मसअ़ला :-].... मर्द को दो अंगूठियां चाहे चाँदी ही की क्यों न हो पहेनना नाजाइज़ है। इसी तरह एक अँगूठी में कई नग या साढ़े चार माशा से ज़्यादा वज़न हो तो इस तरह की अँगूठी भी पहेनना ना जाइज़ है। व गुनाह है*_

_📕 *अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2,  सफा नं 160*_
            👉🏻 _*.... लिहाजा दूल्हे को सोने की अँगूठी न दे। इस के बजाए उस की की़मत के बराबर कोई और तोहफा या सिर्फ़ चाँदी की एक अँगूठी साढ़े चार माशा से कम वज़न की ही दे वरना देने वाला और उसे पहेनना वाला दोनो गुनाहगार होंगे।*_

             👉🏻 _*....मुम्क़िन है कि आप के दिल में यह खयाल आए के अगर चाँदी की अँगूठी देंगे तो लोग क्या कहेंगे? किस कदर बदनामी होगी वगै़राह वगै़राह। तो होश़ियार ! यह सब शैतान के वसवसे है। वह इसी तरह बदनामी का खौफ दिला कर  लोगों से गल़त काम करवाता है। हम आप से एक सीधी सी बात पूछते हैं कि आपको अल्लाह व उस के रसूल की खुशीनुदी (खुशी) चाहिए कि लोगों की वाह ! वाह ! सोंचिंए और अपने जमीर मे ही इस का जवाब तलब कीजिए।*_

        _*.... अब आइये हम आप को घड़ी के मुत्अ़ल्लिक़ भी कुछ ज़रूरी व अहम मालूमात दें।*_

_✍🏻 *[मसअ़ला :-].... सरकार सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] अपने एक फ़तवे में इरशाद फरमाते है।------*_

 💎 _*"घड़ी की जंजीर (चैन) सोने चाँदी की मर्द को हराम है। और दूसरी धातों [जैसे लोहा, स्टील, पीतल, वगै़रा] की मम्नूअ़, इन सब को पहेन कर नमाज़ [पढ़ना] और इमामत़ करना मक़रूहे तहरीमी [ना जाइज़ व गुनाह] है।*_

_📕 *अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 170*_

_✍🏻 *[मसअ़ला :- .... हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह अलैह] ने अपने फ़तवे में इरशाद फरमाते है।.....*_

💎 _*"वोह घड़ी जिस की चैन सोने, या चाँदी, या स्टील, वगै़रा किसी धातु की हो, उस का इस्तेमाल ना जाइज़ है। और उस को पहन कर नमाज़ पढ़ना गुनाह और जो नमाज़ पढी (वाजीबुल-ऐआद) है! यानी इस नमाज को दोबारा पढना वाजीब है वरना गुनाहगार होंगा!*_

_📕 *बाहवाला माहनामा इस्तेक़ामत़ कानपुर, जनवरी 1978*_

             👉🏻 _*....इस लिए हमेशा वही घड़ी पहेने जिस का पट्टा (चैन) चमड़े, प्लास्टिक, या रेगज़ीन का ही हो। स्टील या किसी और धातु का न हो। और शादी के मौके पर भी अगर घड़ी देना ही हो तो सिर्फ़ चमड़े, या प्लास्टिक, के पट्टे वाली ही घड़ी दें।*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 026 📕*_
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                🔵 *निकाह के बाद* 🔵   

✍🏻  ..... *_निकाह के बाद मिसरी व खजूर बाँटना बेहतर है! यह रिवाज हुज़ूर ﷺ के जाहिरी जमाने में भी था। हजरत मुहक्कीक शाह अब्दुल हक मुहद्दीस देहलवी रदीअल्लाहु तआला अन्हु नक्ल फरमाते है....._*

        *_"हुजुर ﷺ ने जब हजरत अली करमल्लाहु वज्हु और फातीमा रदि अल्लाहु तआला अन्हा का निकाह पढाया तो हुजुर ﷺ ने एक तबाक खजुरो का लिया और जमाअते सहाबा पर बिखेर कर लुटाया! इसी बिना पर फुक्हा की एक जमाअत कहती है की मिसरी व बादाम वगैरह का बिखेर कर लुटाना निकाह की ज्याफत मे मुस्तहब है!"_*

📕 *_मदारिजुन्नुबुवाह जिल्द २ सफा, नं 1२८_*

*✍🏻 _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु]  इरशाद फरमाते है........_*

* 💫 _"(निकाह के बाद) छुवारे (खजूर) हदीस शरीफ में लूटने का हुक़्म है और लुटाने में भी कोई हर्ज नही और येह हदीस "दारक़ुत्नी" व "बैहक़ी" व "तहावी" से मरवी है।_*

_📕 *अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16*_

    *_मालुम हुआ कि  निकाह के बाद मिसरी व खजूर लुटाना चाहिए यानी लोगों पर  बिखेरे, लेकीन लोगों को भी चाहिए कि वह अपनी जगह पर बैठे रहे और जिस क़दर उनके दामन में गिरे वह उठा ले ज़्यादा हासिल करने के लिए किसी पर न गिर पड़े।_*

🌺🌺 *_दुल्हन दुल्हा को मुबारक़बाद_* 🌺🌺

             👉🏻 *_.... निकाह होने के बाद दुल्हे को उसके दोस्त व अहेबाब और दुल्हन को उसकी सहेलियॉ मुबारकबाद और बरकत की दुआ दे!_*
📚 *_[हदीस] हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदिअल्लाहु  तआला अन्हु] से रिवायत है। कि........_*

💫 *_"जब कोई शख़्स निकाह करता तो हुज़ूर ﷺ उसको मुबारक़बाद देते हुए उसके लिए दुआ फरमाते।_*

*: بارك الله لك ، وبارك عليك ، وجمع بينكما في خير*

 ✍🏻 *_[दुआ :-]... ब-र-कल्लाहो लका-व-ब-र-क-अलैका व जम-आ-बै-न-कुमा फी़ ख़ैर!_*

 *_तर्जुमा :- अल्लाह तआला तुझे बरक़त दे और तुझ पर बरक़त नाज़िल फ़रमाए और तुम दोनों में भलाई रखे!_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 139_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 025 📕*_
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              💫 *_निकाह का बयान_* 💫

✍🏻 *_आला हजरत इमाम अहमद रजा कादरी मुहद्दिस बरैलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है....._*

       *_"कुछ लोगो का खयाल है, की निकाह मुहर्रम के महीने मे नही करना चाहीये, यह खयाल फुजुल व गलत है! निकाह किसी महीने मे मना नही!"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 179*_

  👉 *_मस्अला अक्सर लोग माहे सफर मे शादी ब्याह नही करते, खुसुसन माहे सफर की इब्तीदाई तेराह (1 से 13) तारीखे बहु ज्यादा मनहुस मानी जाती है! और उनको "तेराह-तेजी" कहते है! यह सब जेहालत की बाते है! हदिसे पाक मे फरमाया की सफर कोई चिज नही! यानी लोगो का इसे मनहुस समझना गलत है! इसी तरह जिल्कदा के महीने को भी बहुत लोग बुरा जानते है, और उसको "खाली का महीना" कहते है! इस माह मै भी शादी नही करते! यह भी जेहालत और लग्वीयत है! गरज की शादी हर माह के हर तारीख को हो सकती है!_*

_*(Conclusion. शरीयत ए इस्लामी के मुताबीक किसी महीने की कोई तारीख मन्हुस नही होती! बल्की हर दिन हर तारीख अल्लाह अज्जा व जल्ला की बनाई हुई है! गरज की हर महीने की किसी भी तारीख को निकाह करना दुरुस्त है!)*_

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 2, हिस्सा नं 16, सफा नं 159_*

 ✍🏻 *_हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसुल  आजम शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी बगदादी  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नक्ल फरमाते है। कि...._*

  💫 *_"निकाह जुमेरात या जुमा को करना मुस्तहब है। सुबह कीे बजाए शाम के वक्त़ निकाह करना बेहतर व अ़फज़ल है।"_*

📕 *_गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115_*

✍🏻  *_आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ  कादरी बरैलवी रदी अल्लाहु तआला अन्हु "फ़तावा-ए-रज़वीया" में नक़्ल फरमाते है। की......_*

 💫     *_"जुमा के दिन अगर जुमा की अज़ान हो गई हो तो उसके बाद जब तक नमाज़ न पढ़ ली जाए निकाह की इजाजत नहीं के अजान होते ही जुमा के नमाज के लिए जल्दी करना वाज़िब है। फिर भी अगर कोई अज़ान के बाद निकाह करेगा तो गुनाह होगा मगर निकाह सही हो जाएगा"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 158*_

    👉🏻 *_"दुल्हा दुल्हन दोनो के माँ बाप को चाहिये कि निकाह के लिए सिर्फ और सिर्फ सुन्नी का़जी को ही बुलावाए । क़ाजी वहाबी, देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह न हो।_*

✍🏻 _*.... इमामे इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। कि.....*_

  _*"वहाबी से निकाह पढ़वाने में उसकी ताज़ीम होती है जो कि हराम है लिहाजा उससे बचना ज़रूरी है।*_

_📕 *अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16*_

           👉🏻 *_.... निकाह की शर्त यह है कि दो गवाह हाजिर हो । इन दोनों गवाहों का भी सुन्नी सहीउल अ़कीदा होना ज़रूरी है।_*

✍🏻 *_[मसअ़ला :-].... एक गवाह से निकाह नही हो सकता जब तक दो मर्द या एक मर्द दो औरतें मुस्लिम [सुन्नी] समझदार बालिग न हो।_*

📕 *_फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 163_*

✍🏻 *_[मसअ़ला :-].... सब गवाह ऐसे बद-मज़हब है की, जिन की बद-मज़हबी कुफ़्र तक पहुँच चुकी हो  तो निकाह नही होगा।_*

📕 *फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 61*

✍🏻 *[हदीस :-].... _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

*💎 _"गवाहों के बगैर निकाह करने वाली  औरते ज़ानिया [ज़िना करने वाली] है।_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1 बाब नं 751, हदीस नं 1095, सफा नं 563_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 024 📕*_
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               💫💫 *[सेहरा]* 💫💫

    *👉🏻 _सेहरा पहनना मुबाह है ! यानि पहने तो न कोई सवाब और अगर न पहने तो न कोई गुनाह । यह जो लोगों में मशहूर है कि सेहरा पहेनना (हुज़ूर ﷺ) की सुन्नत है, महज बातील,और सरासर झूठ है!_*

✍🏻 *_[कौ़ल :-] मुजद्दिदे  आ़ज़म सैय्यदना आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। कि......_*

        *👉🏻 _सेहरा न शरीअ़त में न मना है न शरीअ़त में जरूरी या मुस्तहब बल्कि एक दुनियावी रस्म है कि तो क्या! न कि तो क्या! इसके अलावा जो इसे हराम गुनाह, बिदअ़त व जलालत बताए वह सख़्त झूठा सरासर मक्कार है। और जो उसे जरूरी [लाज़िम] समझे और तर्क को [सेहरा न पहेनने को] बुरा जाने और सेहरा न पहेनने वालों का मज़ाक उड़ाए वह निरा जाहिल है।_*

_📕 *हादिन्नास फी रूसूमिल आरास, सफा नं 42*_

          *👉🏻 _दूल्हे का सेहरा ख़ालिस असली फूलों का होना चाहिए। गुलाब के फूल हो तो बहुत बेहतर है । कि गुलाब फूल (हुज़ूर ﷺ) ने पसन्द फरमाया है।_*

           *_लिहाजा सेहरा पहनना ही हो तो खालीस गुलाब या चंबेली के फुलो का सेहरा पहने! सेहरे में चमक वाली पन्निया न हो कि यह ज़ीनत है।  मर्द को ज़ीनत करना और ऐसा लिबास पहनना जो चमकदार हो  हराम है। दुल्हन के सेहरे में अगर यह चमक वाली पन्नीया हो तो कोई हर्ज नही। के औरतो को जिनत जाइज है!_*
          *_इसी तरह आज कल कुछ लोग सेहरे में रूपये [नोट] वगैरह लगाते हैं यह फ़ुजूल ख़र्ची और गुरूर व तक़ब्बुर की निशानी है! (तकब्बुर) शरीअ़त में  सख्त हराम है!  लिहाजा अगर सेहरा सिर्फ़ खुशबूदार फूलों का ही हो! शादी एक दिन की होती है, दुसरे दिन सेहरे को न तो पहना जाता है, और न ही वह किसी काम का होता है! सबसे बेहतर तो यह है के गले मे  एक गुलाब के फूलों का हार डाल लिया जाए यही ज्यादा मुनासीब है! (वल्लाहो आ़लम)_*
     
_🌳 *[दुलहन दूल्हे को सजाते वक्त़ की दुआ]*_

           *👉🏻 _दुल्हन को जो औरतें सजाए उन्हें चाहिए कि वह दुल्हन को दुआ़ए दे! हदीसे पाक में है। कि...._*

📚  *_[हदीस :-]  उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहु तआला अन्हा] इरशाद फरमाती है_*

       *_"हुज़ूर ﷺ से जब मेरा निकाह हुआ तो मेरी वालिदा माजीदा मुझे हुजुर ﷺ के दौलतकदा पर लाई वहाँ अन्सार की कुछ औरतें मौजूद थी! उन्होंने मुझे सजाया और यह दुआ दी.._*

*على الخیری والبراکة وعلى خير طائر*

     *_(अलल ख़ैरे वल बराकतेे व आ़ला खै़रे त-अ-ए-रिन०_*

 *_[ तर्जुमा :-]    ख़ैर व बरक़त हो अल्लाह ने तुम्हारा नसीब अच्छा किया_*

*_(बुखारी शरीफ की एक दुसरी रिवायत है के, "हुजुर ﷺ ने हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रदि अल्लाहु तआला अन्हु को उनकी शादी पर इसी तरह बरकत की दुआ इरशाद फरमाई!"_*

_📕 *बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 87, हदीस नं 142, सफा नं 82*_

        👉🏻 *_.... लिहाजा हमारी  इस्लामी बहनों को भी चाहिए जब वह किसी की शादी के मौके पर जाएं दुल्हन सजाते वक़्त या फिर उनसे मुलाकात करते वक्त़ बरक़त की दुआ करें  ।_*

             *_इसी तरह दूल्हे को सजाने वालो को और उससे मिलने वालो को भी चाहिए की वह भी दूल्हे को सजाते या सेहरा बांधते वक्त़ या मिलते वक्त यह दुआ दें।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...