Friday, October 26, 2018



                       *_मुताफर्रिक़ात_*
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*_कर्ज़दार को 3 पैसे के बदले 700 रकअत नमाज़ देनी होगी, अगर नेकियां ख़त्म हो गयी तो उसका गुनाह लेना पड़ेगा_*

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफ़ह 634*_

*_जो अक़ायद का पूरा इल्म रखे और अपनी ज़रूरत के मसायल बग़ैर किसी की मदद के किताब से निकाल ले, वो आलिम है_*

_*📕 अहकामे शरियत, हिस्सा 2, सफ़ह 231*_

*_अदना जन्नती को जन्नत में दुनिया के जैसी 10 गुना जगह 80000 गुलाम और 72 बीवियां मिलेगी, मर्दों की उम्र 33 साल और औरतों की 18 साल और हमेशा यही उम्र रहेगी वहां ना कभी बूढ़े होंगे ना बीमार और ना ही कभी मौत आयेगी_*

_*📕 तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफ़ह 83*_
_*📕 बहारे शरियत, हिस्सा 1, सफ़ह 46*_
_*📕 तफ़सीरे अज़ीज़ी, पारा 30*_

*_बैतुल मुक़द्दस की ज़मीन आसमान से सबसे ज़्यादा क़रीब है,क्योंकि हर जगह से ये ज़मीन 18 मील ऊंची है_*

_*📕 फतावा रज़विया, जिल्द 4, सफह 687*_

*_हज़रत हूद अलैहिस्सलाम के उम्मत के लोग 400, 500 गज़ लम्बे हुआ करते थे, उनके में बौना शख्स भी 300 गज़ का होता था_*

_*📕 जलालैन, हाशिया 14, सफ़ह 135*_

*_जानवर में सबसे पहले मछली को पैदा किया गया, उसका नाम 'नून' या 'यम्हूत' या 'लेव्तिया' है उसी की पीठ पर ज़मीन ठहरी है_*

_*📕 मदारेजुन नुबुवत, जिल्द 1, सफ़ह 130*_

*_जिस साल मेरे आक़ा तशरीफ़ लायें उस साल पूरी दुनिया में सिर्फ लड़के ही पैदा हुए कोई लड़की पैदा नहीं हुई_*

_*📕 मवाहिबुल लदुनिया, जिल्द 1, सफ़ह 21*_

*_कश्तिये नूह में जब और जानवरों के साथ शेर सवार हुआ तो मौला ने शेर को बुख़ार में मुब्तेला कर दिया, ताकि वह किसी को परेशान ना कर सके, इससे पहले ज़मीन पर ये बीमारी नहीं थी_*

_*📕 तफ़सीर रूहुल मआनी, पारा 12, सफ़ह 53*_

*_अगर किसी को जानवर ने खा लिया तो उसके पेट में ही हिसाब किताब होगा_*

_*📕 मिरक़ात, जिल्द 1, सफ़ह 168*_

*_हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के हाथ में लोहा मोम की तरह नर्म हो जाता था, आप बग़ैर आग के उसे हाथों से मोड़कर ज़िरह बना लेते_*

_*📕 तफ़सीरे खज़ाएनुल इर्फ़ान, पारा 22, रुकू 8*_

*_बुलगार, लन्दन में हर साल 40 रातें ऐसी आती हैं जिनमे इशा का वक़्त ही नहीं आता, शफ़क़ डूबते डूबते ही सुब्ह सादिक़ हो जाती है_*

_*📕 बहारे शरियत, हिस्सा 3, सफ़ह 21*_

*_पहले खाना नहीं सड़ता था बनी इसराईल को हुक्म था कि 'मन्न व सलवा' दूसरे दिन के लिए बचा कर ना रखें पर वो ना माने उनकी नाफ़रमानी पर खाना ख़राब होना शुरू हुआ_*

_*📕 तफ़सीर रूहुल बयान, जिल्द 1, सफ़ह 97*_

*_'क़ाफ़' नामी पहाड़ जिसकी जड़ें तमाम ज़मीन के अन्दर फैली हैं, रब जिस जगह ज़लज़ले का हुक्म देता है तो पहाड़ अपनी उस जगह की जड़ को हिला देता है जिससे ज़मीन कांप उठती है_*

_*📕 फतावा रज़विया, जिल्द 12, सफ़ह 189*_

*_अगर मुसलमान किसी काफिर या मुनाफिक़ के मरने पर उसे मरहूम या स्वर्गवासी कहे या उसकी मग़फिरत की दुआ करे तो खुद काफिर है_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 55*_

*_जो ये अक़ीदा रखे कि हम काबे को सजदा करते हैं काफिर है कि सजदा सिर्फ खुदा को है और काबा इमारत है खुदा नहीं_*

_*📕 फतावा मुस्तफविया, सफह 14*_

*_ग़ैर मुस्लिमों के त्योहारों में शामिल होना हराम है और अगर माज़ अल्लाह उनकी कुफ्रिया बातों को पसंद करे या सिर्फ हल्का ही जाने जब तो काफ़िर है_*

_*📕 इरफाने शरीयत, हिस्सा 1, सफह 27*_

*_आखिर ज़माने में आदमी को अपना दीन संभालना ऐसा दुश्वार होगा जैसे हाथ में अंगारा लेना दुश्वार होता है_*

_*📕 कंज़ुल उम्माल, जिल्द 11, सफह 142*_

*_आखिर ज़माने में आदमी सुबह को मोमिन होगा और शाम होते होते काफिर हो जायेगा_*

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 52*_

*_फरिश्ते ना मर्द हैं और ना औरत वो एक नूरी मखलूक़ हैं मगर वो जो सूरत चाहें इख़्तियार कर सकते हैं पर औरत की सूरत नहीं इख़्तियार करते_*

_*📕 तकमीलुल ईमान, सफह 9*_

*_जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम चौथे आसमान पर जिंदा हैं और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत में जिस्म के साथ मौजूद हैं तो फिर मेराज शरीफ में मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के जिस्मे अनवर के साथ सफर का इंकार क्यों_*

_*📕 मदारेजुन नुबूवत, जिल्द 2, सफह 391*_

*_उल्माये अहले सुन्नत ने अगर किसी को काफिर या बेदीन या गुमराह का फतवा दिया तो बेशक रब के नज़दीक भी वो वैसा ही ठहरेगा उस पर तौबा वाजिब है_*

_*📕 फतावा मुस्तफविया, सफह 615*_

*_कोई ग़ैर मुस्लिम मुसलमान होना चाहे तो उसे फौरन कल्मा पढ़ाया जाए कि जिसने भी उसे कल्मा पढ़ाने में ताख़ीर की तो खुद काफिर हो जायेगा_*

_*📕 फतावा मुस्तफविया, सफह 22*_

*_उसूले शरह 4 हैं क़ुरान हदीस इज्माअ और क़यास, जो इनमें से किसी एक का भी इंकार करे काफिर है_*

_*📕 फतावा मुस्तफविया, सफह 55*_
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Thursday, October 25, 2018



                _*शान-ए-आला हज़रत*_
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_*🔘 आज पूरी दुनिया ए अहले सुन्नत अपने अज़ीम ईमाम व पेशवा इमाम अहले सुन्नत, इमामे आशिका, मुहक़्क़ीके दौरा, अल्लामा ऐ ज़मा, फखरुल अया, कसिरुल एहसा, मोअत्मद ऐ आलिमा, मुअल्लिमें फ़कीहा, ताजुल ओलमा, ताजुल हुकमा, सिराजुस्सुल्हा, सिराजुल फुक़हा, साहिबे फहमो ज़का, इमामुल मशाइखो वल फुक़हा, बकीयतुल सल्फ, हुज़्ज़तुल ख़ल्क़, ताजुल फुहुल, कुश्ता ऐ इश्के रसूल, जामे ओलमा, कुले वन मनकूल, मुहिब्बे औलादे बतूल, फाजिले ज़लील, आलिमे नबील, मुजद्दीसे अदील, शमशीरे बेनिआम, रहनुमा ऐ हर खासो आम, सय्यदुल ओलमा ऐ वल आअलाम, कुदवतुस्सालेकिन, ज़ुद्दतूल आरेफीन, हुज़्ज़तुल सालेकिन, सनदुल मुहद्दिसीन, सुल्तानुल आशेकीन, इल्मो हिकमत के बहरे बेकरा,*_

_*💫 इमामे आज़म के तदब्बुर के निशा, आला हज़रत, अजीमुल बरकत, अजीमुल मरतबत, कंजुल करामत, ज़बले इस्तेक़ामत, साहिबे रुष्दों हिदायत, मख़ज़ने उलूमे शरीयतो मारेफ़त, वारिसे ताज़े मुजद्दीदयत, मुजद्दीदते हाजरा व साबेक़ा, मुहिय्यते मिल्लते ताहिरा, साहिबे हुज़्ज़ते काहिरा, मतलाऐ अनवारे रहमानी, मम्बा ऐ असरारे समदानी, काशिफे रुमूज़े पहनानी, फानूसे नूरे हक़्क़ानी, नाइबे गौसे जिलानी, जानशीने इमाम रब्बानी, हक़्क़ो सदाक़त की निशानी, अल हाफ़िज़, अल आलिम, अल फ़ाज़िल, अल मुहद्दिस, अल मुफ़स्सिर, अल मुदक़्क़ीक़, अल मुहक़्क़ीक़, अल मुफ़क़्क़ीर, अल मुअर्रिख.*_

_*🌹आला ह़जरत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान  رحمۃ اللہ تعالٰی علیہ का यौमे विलादत बड़ी ही खूब सूरत अंदाज में शरीयत के दायरे में रेह के मना रही है अल्हम्दुलिल्लाह और जलने वाले जल के और खाक हो रहे हैं..!*_

_*सब उनसे जलने वालो के गुल हो गए चराग,*_
_*अहमद रज़ा की शम्मा फ़िरोज़ा है आज भी।*_

_*खाक हो जाये अदु जल कर मगर हम तो रज़ा*_
_*दम में जब तक दम है जिक्र उनका सुनाते जाएंगे.*_
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        _*इल्म ए दीन किस से हासिल करें*_
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_*🌹हज़रत इब्ने सीरीन रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह ने फ़रमाया*_

_*ये (यानी क़ुरआन व हदीस का) इल्म ए दीन है तो देखलो के तुम अपना दीन किस से हासिल कर रहे हो*_

_*📕 मिश्कात शरीफ़, सफ़ा 37*_

_*हज़रत फ़क़ीह ए मिल्लत मुफ्ती जलाल‌उद्दीन अहमद अमजदी रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह फ़रमाते हैं:*_

_*यानी गुमराह बेदीन और दुनियां दार से क़ुरआन व हदीस का इल्म न हासिल करो के गुमराही, बेदीनी और दुनियां दारी पैदा होगी और किसी इजतिमा में बदमज़हब का व‌अज़ (तक़रीर) भी सुनने के लिए न जाओ के बदमज़हबी असर कर जाएगी इसलिए बदमज़हब (वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ क़ादयानी वगैरह) की तक़रीर सुनने के लिए जाना हराम व नजाइज़ है,*_

_*📕 इल्म और उल्मा, सफ़ा 32*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है*_

_*तालिब ए इल्म लोगों में सबसे ज़्यादा भूका है और उनमें जिसका पेट भरा है वो इल्म को तलाश नहीं करता,*_

_*📕 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 10, सफ़ा 78*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हज़रत अबू ज़र और हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है,👇🏻*_

_*जबके तालिब ए इल्म को मौत आजाए और वो तलब ए इल्म की हालत पर मरे तो वो शहीद है..!*_

_*📕 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 10, सफ़ा 79*_
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             _*गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया*_
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_*📚 हदीस शरीफ़:- हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:*_

_*जिसने इल्म हासिल किया तो ये हासिल करना उसके गुज़रे हुए गुनाहों का कफ़्फारा होगया,*_

_*हुज़ूर फ़क़ीह ए मिल्लत मुफ्ती जलाल‌उद्दीन अहमद अमजदी रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह फ़रमाते हैं के इस हदीस शरीफ़ का ये मतलब हरगिज़ नहीं के तालिब ए इल्म जो गुनाह चाहे करे बल्के मतलब ये है के इल्म ए दीन हासिल करने से गुनाहे सग़ीरा माफ़ हो जाते हैं या ये मतलब है के अच्छी नियत से इल्म हासिल करना तौबा से उसके गुनाहों की माफ़ी का वसीला होगा,*_

_*📕 इल्म और उल्मा, सफ़ा 28*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया*_

_*ख़ैर यानी इल्म की बातें सुनने से मौमिन कभी सैर नहीं होगा यहां तक के जन्नत में पहुंच जाएगा,*_

_*📕 मिश्कात शरीफ़, सफ़ा 34*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- रसूल ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया*_

_*जिसने इल्म ए दीन तलाश किया और उसे पा लिया तो उसके लिए सवाब का दोहरा (डबल) हिस्सा है और जिसने उसको नहीं पाया तो उसके लिए एक हिस्सा है,*_

_*📕 मिश्कात शरीफ़, सफ़ा 34*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:*_

_*ख़ुदा ए त‌आला ने मेरी तरफ वही फ़रमाई है के जो शख़्स इल्म की तलाश में किसी रास्ता पर चलेगा में उसके लिए जन्नत का रास्ता आसान कर दूंगा,*_

_*📕 मिश्कात शरीफ़, सफ़ा 36*_
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                   _*कौन हैं आलाहज़रत*_
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_*🌹आलाहज़रत किसी एक ज़ात का नाम नहीं बल्कि वो एक ही वक़्त में एक नज़रिया था, अक़ीदा था, मसलक था, मशरब था, अंजुमन था, कांफ्रेंस था, लाइब्रेरी था, कुतुबखाना था, इल्मो हिक़मत का आफताब था, शरियतो तरीकत का माहताब था, मुफ़्ती था, मुदर्रिस था, मुफक्किर था, मुकर्रिर था, मुनाज़िर था, मुसन्निफ़ था, मुअल्लिफ था, मुफस्सिर था, मुहद्दिस था, माअकूली था, मनकूली था, अदीब था, खतीब था, फसीह था, बलीग था, फक़ीह था, वो ज़ाहिद नहीं बल्कि ज़ुहद था, वो आलिम नही बल्कि इल्म का मौजें मारता हुआ समंदर था*_

_*आलाहजरत बरेली शरीफ में 10 शव्वाल 1272 हिजरी बामुताबिक 14 जून 1856 ईस्वी को एक इल्मी घराने में पैदा हुए*_

_*💫आपका शजरए नस्ब युं है, अहमद रज़ा खान इब्न नक़ी अली खान इब्न रज़ा अली खान इब्न काज़िम अली खान इब्न आज़म खान इब्न सआदत यार खान इब्न सईद उल्लाह खान*_

_*जिसने बिस्मिल्लाह ख्वानी के दिन ही लाम अलिफ पर ऐतराज़ करके अपनी विलायत का ऐलान कर दिया*_

_*जिसने 3.5 साल की उम्र में एक अरबी से उसकी ज़बान में फसीह गुफ़्तुगू की*_

_*जिसने 6 साल की उम्र में एक बड़े मजमे में खड़े होकर 2 घंटे मुसलसल मीलादे मुबारक पढ़ा*_

_*जिसने 8 साल की उम्र में 'हिदायतुन नहु' की अरबी शरह लिख डाली*_

_*जिसने 13 साल 10 महीने और 5 दिन में ही तमाम उलूम से फराग़त हासिल करके पहला फतवा दिया*_

_*🌹आलाहज़रत के उस्ताद गिरामी*_

_*1). मक़तब के उस्ताद*_
_*2). आपके वालिद मौलाना नक़ी अली खान*_
_*3). हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम क़ादिर बेग*_
_*4). हज़रत मौलाना अब्दुल ओला साहब*_
_*5). हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन नूरी*_
_*6). आपके पीरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना शाह आले रसूल मारहरवी रज़ि अल्लाहो अन्हु*_

_*💫 जिसने 22 साल की उम्र में बैयत की तो खुद मुर्शिदे बरहक़ ने फखरिया इरशाद फरमाया कि आज तक मुझे इस बात की फिक़्र थी कि कल जब बरोज़े क़यामत मौला मुझसे पूछ्ता कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अपना कौन सा अमल पेश करता पर जबसे मैंने अहमद रज़ा को बैयत किया तबसे मेरी ये फिक़्र दूर हो गयी अब अगर क़यामत में मौला मुझसे पूछेगा कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अहमद रज़ा को पेश कर दूंगा,*_

_*दोस्तो ग़ौर करने का मुक़ाम है के आलाहजरत के पीर व मुर्शिद हुज़ूर आल ए रसूल ने अपने नमाज़ रोज़ा और दीगर नेकियों पर फ़ख़्र नहीं किया बल्के आलाहजरत पर फ़ख़्र किया तो जिसपर आले रसूल ने फ़ख़्र किया हो उसकी शान व मर्तबे का कौन अंदाज़ा लगा सकता है,*_

_*तमाम उल्माए इस्लाम ने जिसे मुजद्दिद तस्लीम किया और इमामुल अइम्मा का लक़ब दिया,*_

_*जिसको अरब के शेखुद दलायल हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद सईद मग़रिबी अलैहिर्रहमा खुद या सय्यदी कहकर बुलाते थे*_

_*जिसको हरमैन शरीफैन के उल्माए किराम ने सुन्नियत की पहचान बताया और फरमाया कि हम हिंदुस्तान से आने वाले हाजिओ के सामने इमाम अहमद रज़ा का ज़िक़्र करके देखते हैं कि अगर उसके चेहरे पर खुशी के आसार आये तो सुन्नी समझते हैं और अगर चेहरे पर कदूरत झलकी तो समझ लेते हैं कि ये बिदअती गुमराह है,*_

_*जिसको तमाम उल्मा व औलियाए वक़्त ने ज़माने का हाकिम समझा और आलाहज़रत का लक़ब दिया और खुद वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आलाहज़रत को अपनी मसनद पर बिठाया और आपको आलाहज़रत कहा*_

_*जिसने दूसरे हज के दौरान अपनी माथे की आंखों से बेदारी के आलम में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का दीदार किया*_

_*जिसने 105 उलूम पर 1300 से ज़्यादा किताबें लिख डाली*_

_*📍ये हैं आलाहज़रत*_

_*अल्लाह का वो मुक़द्दस बन्दा 25 सफर 1340 हिजरी बा मुताबिक 28 अक्तूबर 1921 को अपने माबूदे हक़ीक़ी से जा मिला इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन*_

_*📕 हयाते आलाहज़रत*_
_*📕 तजल्लियाते मुस्तफा रज़ा*_
_*📕 सवानेह आलाहज़रत*_
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_*🔊म्यूज़िक के साथ क़व्वाली सुनना कैसा है*_
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_*प्यारे सुन्नी जन्नती भाईयो ये मेसेज ज़रा बड़ा है इसको पूरा ज़रूर पढ़ें इन्शा अल्लाहुररहमान आपके इल्म में बहुत इज़ाफ़ा होगा और एक बहुत बड़ी गलत फहमी के शिकार होने से बच जायेंगे*_

_*प्यारे सुन्नी जन्नती भाईयो आज कल बुज़ुर्गान ए दीन के मज़ारात पर एरास (उर्स) का नाम लेकर खूब मौज मस्तीयां हो रही हैं और अपनी रंग रंगीलीयों बाजों तमाशों औरतों की छेड़छाड़ के मज़े उठाने के लिए अल्लाह वालों के मज़ारों को इस्तेमाल किया जा रहा है और ऐसे लोगों को न खुदा का खौफ है न मौत की फ़िक्र और न जहन्नम का डर अगर ये लोग मौज मस्तीयां ये ढोल बाजे मज़ामीर (Music) के साथ क़व्वालियां मज़ारात से अलग करते और उर्स का नाम न लेते तो कम से कम इस्लाम और इस्लाम वाले बुजुर्ग बदनाम न होते यही लोग गुनाहगार हुए*_

_*🔘आज कुफ्फार और मुश्रीकीन यह कहने लगे हैं के इस्लाम भी दूसरे मज़ाहिब की तरह नाच गानों तमाशों बाजों और बे पर्दा औरतों को इस्टेजों पर लाकर बेहयाई का मुज़ाहिरा करने वाला मज़हब है लिहाज़ा अहले कुफ्र के इस्लाम क़ुबूल करने की जो रफ्तार थी उसमें बहुत बड़ी कमी आ गई है*_

_*मज़हबे इस्लाम में बतौर ए लहव व ल‌इब ढोल बाजे और मज़ामीर (Music) हमेशा से हराम रहे हैं*_

_*बुखारी शरीफ की हदीस शरीफ़ है के*_

_*रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया*_

_*ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना रेशमी कपड़ों शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहराएंगे*_

_*📕 सही बुखारी, जिल्द 2, किताबुल अश‌रबा, सफा 837*_

_*दूसरी हदीस शरीफ मैं हुज़ूर नबी ए करीम अलैहिस्सलातु व तस्लीम ने क़ियामत की निशानियां बयान करते हुए इरशाद फ़रमाया*_

_*क़ियामत के क़रीब नाचनें गानें वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जायेगी*_

_*📕 तिरमिज़ी शरीफ़*_
_*📕 मिश्कात शरीफ़, बाब अशरातुस्सअह, सफा 470*_

_*📖फतावा आलम गीरी में है सिमाअ क़व्वाली रक़्स (नाच) जो आज कल के नाम निहाद सूफीयों में राइज है ये हराम है इसमें शिरकत जाइज़ नहीं*_

_*📕 फतावा आलम गीरी जिल्द 5 किताबुल कराहियह सफा 352*_

_*🌹मुजद्दिद ए आज़म सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िल ए बरेलवी रज़ीअल्लाहू त‌आला अन्ह ने अपनी किताबों में क‌ई जगह मज़ामीर (Music) के साथ क़व्वाली गाना सुनना हराम लिखा है, देखिए 📖फतावा रज़वीयाह और मलफूज़ात ए आला हज़रत,*_

_*कुछ लोग कहते हैं क़व्वाली माअ मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ चिश्तीयह सिलसिले में राइज और जाइज़ हैं,*_

_*ये बुज़ुर्गान ए दीन चिश्तीयह पर उनका सरीह बोहतान है उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली सुनने को हराम फ़रमाया है*_

_*सय्यदना महबूब ए इलाही हज़रत निज़ाम उद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह ने अपने ख़ास ख़लीफा़ सय्यदना फ़ख़रुद्दीन ज़रदारी रहमातुल्लाहि तआला अलैह से मस‌अला ए सिमाअ के मुताल्लिक़ एक रिसाला 📖लिखवाया जिसका नाम*_

_*📖क़शफुल क़नाअ अन उसूलिस्सिमाअ है, इस मैं साफ़ लिख़ा है*_

_*हमारे बुजुर्गों का सिमाअ इस मज़ामीर (Music) के बोहतान से बरी है उनका सिमाअ तो ये है के सिर्फ क़व्वाल की आवाज़ उन अश‌आर के साथ हो जो कमाल ए सिन‌अत ए इलाही की खबर देते हैं,*_

_*क़ुतबुल अक़ताब सय्यदना फरीद‌उद्दीन गंज शकर रहमातुल्लाहि तआला अलैह के मुरीद और सय्यदना महबूब ए इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह के ख़लीफ़ा सय्यदना मुहम्मद बिन मुबारक अल्वी किरमानी रहमातुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर किताब,*_

_*📖सैरुल औलिया, में तहरीर फरमाते हैं हज़रत सुल्तानुल मशाइख़ क़ुद्दसा सिर्रहू महबूब ए इलाही ख्व़ाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह ने फ़रमाया के चन्द शराइत के साथ महफ़िल ए सिमाअ हलाल है*_

_*1). सुनाने वाला मर्द कामिल हो छोटा लड़का और औरत न हो,*_

_*2). सुनने वाला याद ए ख़ुदा से ग़ाफ़िल न हो (यानी नमाज़ी परहेज़ ग़ार हो)*_

_*3). जो कलाम पढ़ा जाये वो फ़हश बेहयाई और मसख़रगी न हो,*_

_*4). आला ए सिमाअ यानी सारंगी मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) वरबाब से पाक हो,*_

_*📕 सैरुल औलिया बाब 9, दर सिमाअ व वज्द व रक़्स, सफा 501*_

_*इसके अलावा 📖 सैरुल औलिया शरीफ़ में एक और मक़ाम पर है के*_

_*एक शख्स ने हज़रत महबूब ए इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमातुल्लाहि तआला अलैह से अर्ज़ किया के इन अय्याम (दिनों में) बाअज़ आस्ताना दार दुर्वेशों ने ऐसे मजमे में जहां चंग वरबाब मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) था वहां रक़्स (यानी नाचना कूदना) किया,*_

_*🔖तो हज़रत ने फ़रमाया के उन्होंने अच्छा काम नहीं किया जो चीज़ शराअ में नाजाइज़ है वो नापसन्दीदा है इसके बाद किसीने बताया के जब ये जमाअत (यानी क़व्वाली सुनने वाले लोग) बाहर आई तो लोगों ने उनसे पूछा के तुमने ये क्या किया वहां तो मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) थे तुमने सिमाअ किस तरह सुना और रक़्स (यानी नाचना कूदना) किया उन्होंने कहा के हम इस तरह सिमाअ में मुस्ताग़र्क़ थे के हमें ये मालूम ही नहीं हुआ के यहां मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) हैं या नहीं, हज़रत सुल्तानुल मशाइख़ ने फ़रमाया ये कोई जवाब नहीं इस तरह तो हर गुनाहगार हराम कार कह सकता है.*_

_*📕 सैरुल औलिया, बाब 9, सफा 530*_

_*खुलासा ये है के आदमी ज़िना करेगा और कह देगा के में बेहोश था मुझको पता नहीं के मेरी बीवी है या ग़ैर औरत, और शराबी कहेगा के मुझे होश नहीं शराब पी या शर्बत, मज़ीद बर‌आं उन्हीं हज़रत सय्यदना महबूब ए इलाही निज़ामुलहक़ वद्दीन अलैहिररहमतुह वर्रिज़वान के मलफूज़ात पर मुस्तामिल उन्हीं के  मुरीद व ख़लीफा हज़रत ख़्वाजा अमीर हसन अलाई सनजरी की तसनीफ 📖फवाइदुल फवाद में है*_
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_*हज़रत महबूब ए इलाही की ख़िदमत में एक शख़्स आया और बताया कि फ़लां जगह आपके मुरीदों ने महफ़िल की है और वहां मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) भी थे हज़रत महबूब ए इलाही ने इस बात को पसंद नहीं फ़रमाया और फ़रमाया के मेंनें मना किया है के मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) बाजे हराम चीज़ें वहां नहीं होना चाहिए उन लोगों ने जो कुछ किया अच्छा  नहीं किया... इस बारे में काफी ज़िक्र फरमाते रहे उसके बाद हज़रत ने फ़रमाया के अगर कोई किसी मक़ाम से गिरे तो शराअ में गिरेगा और अगर कोई शराअ से गिरा तो कहां  गिरेगा,*_

_*📕 फवाइदुल फवाद जिल्द 3. मजलिस 5 मतबूआ उर्दू एकेडमी देहली सफा 512, तर्जमा ख़्वाजा हसन निज़ामी*_

_*🌹मुसलमानों ज़रा सोचो ये हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह का फतवा है जो तुमने ऊपर पढ़ा इन अक़वाल के होते हुए कोई ये कह सकता है के ख़ानदान ए चिश्तीयाह में मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली गाना सुनना जाइज़ है हां ये बात वो लोग कहेंगे जो न चिश्ती हैं न क़ादरी उन्हें तो मज़ेदारियां और लुत्फ अन्दोज़ियां चाहिए और अब जबके सारे के सारे क़व्वाल बे नमाज़ी और फासिक़ व फाजिर हैं यहां तक के बाअज़ शराबी तक सुनने में आये हैं यहां तक के औरतें और अमरद लड़के भी चल पड़े हैं ऐसे माहौल में इन क़व्वालियों को वोही जाइज़ कहेगा जिसको इस्लाम और क़ुरआन दीन व ईमान से कोई मुहब्बत न हो और हराम कारी बेहयाई बदकारी उसके रग व पै में सरायत कर ग‌ई हो और क़ुरआन व हदीस शरीफ़ के फ़रामीन की उसे कोई परवाह न हो क्या इसी का नाम इस्लाम पसंदी है के मुसलमान औरतों को लाखों के मजमे में लाकर उनके गाने बजाने कराए जाएं फिर उन तमाशों का नाम उर्स ए बुज़ुर्गान ए दीन रखा जाए,*_

_*काफ़िरों के सामने मुसलमानों और मज़हब ए इस्लाम को ज़लील व बदनाम किया जाय*_
_(माअज़ अल्लाह)_

_*कुछ लोग कहते हैं के क़व्वाली अहल के लिए जाइज़ और न‌ अहल के लिए न जाइज़ है, ऐसा कहने वालों से हम पूछते हैं के आज कल जो क़व्वालियों की मजालिस में जो लाखों लाख के मजमे होते हैं क्या ये सब अहलुल्लाह और असहाब ए इस्तग़राक़ हैं जिन्हें दुनियां व मताअ ए दुनियां का क़तअन होश नहीं जिन्हें याद ए ख़ुदा ज़िक्र ए इलाही से एक आन की फुर्सत नहीं*_

_*💫ख़र्राटे की नींदों और गप्पों शप्पों में नमाज़ों को गंवा देने वाले रात दिन नंगी (सैक्सी) फिल्मों और गंदे गानों में मस्त रहने वाले मां बाप की नाफ़रमानी करने और उनको सताने वाले चोर डकैत झूटे फ़रेबी ग्रह काट वग़ैराह क्या सब के सब थोड़ी देर के लिए क़व्वालियों की मजलिस में शरीक होकर अल्लाह वाले हो जाते हैं और ख़ुदा की याद में महव हो जाते हैं या पीर साहब ने अहल का बहाना तलाश करके अपनी मौज मस्तीयों का सामान कर रखा है, के पीरी भी हाथ से न जाए और दुनियां की मौज मस्तीयों में भी कोई कमी न आए,*_

_*याद रखो क़ब्र की अंधेरी कोठरी में कोई हीला व बहाना न चलेगा,*_

_*ब‌अज़ लोगों को ये कहते सुना गया है के मज़ामीर (यानी म्यूज़िक)  के साथ क़व्वाली नाजाइज़ होती तो दरगाहों और ख़ानक़ाहों में क्यों होती, काश ये लोग जानते के रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की अहदीस और बुज़ुर्गान ए दीन के मुक़ाबले में आज कल के फ़ुस्साक़ दाढ़ी मुंडाने वाले नमाज़ों को क़सदन छोड़ने वाले ब‌अज़ ख़ानक़ाहीयों का अमल पेश करना दीन से दूरी और सख्त नादानी है*_

_*जो अहादीस हमनें ऊपर लिखीं और बुज़ुर्गान ए दीन के अक़वाल नक़ल किये उनके मुक़ाबिल न किसी का क़ौल म‌अतबर होगा न अमल, आज कल ख़ानक़ाहों में किसी काम का होना उसके जाइज़ होने की शर‌ई दलील नहीं,*_

_*📍ब‌अज़ ख़ानक़ाहीयो की ज़ुबानी ये भी सुना  के हम क़व्वालियां इसलिए कराते हैं के ज्य़ादा लोग जमा हो जायें और उर्स भारी हो जाए, ये भी सख्त नादानी है गोया आपको अपनी नामोरी की फ़िक्र है आख़ीरत की फ़िक्र नहीं आपको कोई जानता न हो आपके पास कोई बैठता न हो आप गुम नाम हों और हराम कारीयों से बचते हों नमाज़ों के पाबंद हों बीवी बच्चों के लिए हलाल रोज़ी कमाने में लगे हों और आपका परवरदिगार आपसे राज़ी हो ये हज़ार दर्जे बेहतर है इससे के आप मशहूर ए ज़माना शख़्सियत हों आपके हज़ारों मुरीद हों हर वक़्त हज़ारों म‌अतक़िदीन का झुमगटा लगा रहता हो या लाखों के मजमे में बोलने वाले ख़तीब व मुक़र्रिर हों बड़े अल्लामा मौलाना शुमार किये जाते हों लेकिन हराम कारीयों में इनहिमाक नमाज़ों से ग़फलत शोहरत व जाह तलबी, दौलत की नाजाइज़ हवस की वजह से मैदान ए महशर में ख़ुदा ए त‌आला के सामने शर्मिन्दगी हो क़ियामत के दिन रुसवाई हो*_

_*मेरे भाईयो दिल में ये तमन्ना रखो और यही ख़ुदा ए क़दीर से दुआ किया करो के ख़्वाह हम मशहूर ए ज़माना पीर और दिलों में जगह बनाने वाले ख़तीब हों या न हों लेकिन हमारा रब हमसे राज़ी हो जाए ईमान पे मौत हो जाए और जन्नत नसीब हो जाए, ख़ुदा ए त‌आला चाहे हमें थोड़ोंं में रखे लेकिन अच्छों और सच्चों में रखे, फ़क़ीरी और दुर्वेशी भीड़ और मजमा जुटाने का काम नहीं है फ़क़ीर तो तन्हाई पसंद होते हैं और भीड़ से भागने हैं अकेले में याद ए ख़ुदा करते हैं,*_

_*✍🏻अश‌आर:- उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्हीं की बातें, कितना आबाद मेरा गोशा ए तन्हाई है,*_

_*आखिर में एक बात ये भी बता देना ज़रूरी है के रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया के:*_

_*जो कोई ख़िलाफ़ ए शराअ काम की बुनियाद डालता है तो उस पर अपना और सारे करने वालों का गुनाह होता है,*_

_*📍लिहाज़ा जो मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वालियां कराते हैं और दूसरों को भी इसका मौक़ा देते हैं उनपर अपना क़व्वालों और लाखों तमाशाईयों का गुनाह है मरते ही उन्हें अपने काम का अंजाम देखने को मिल जाएगा, हमारी इस तहरीर को पढ़कर हमारे इस्लामी भाई बुरा न मानें बल्के ठंडे दिल व दिमाग से सोचें अपनी और अपने भाईयों की इस्लाह की कोशिश करें,*_

_*📝अल्लाह त‌आला प्यारे मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े व तुफ़ैल तमाम मुसलमानों को तमाम गुनाहों से बचने और शरीअत ए मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम पर अमल करने की तौफीक़ अता फरमाए, अमीन बिजाही सय्यीदिल मुरसलीन सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम..!*_
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Wednesday, October 24, 2018



          _*✒Farman E Ala Hazrat*_
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_*Sarkar Aalahazrat (Radiallahu Ta'ala Anhu) Irshad Farmate Haen*_

_*''Sufi Jahil Shetan Ka Maskhara Hai''*_

_*Hadees e Paak Me Hai Huzoor Sayyed e Aalam ﷺ Ne Irshad Farmya - Ek Faqih Shetan Par Hazar Aabidon Se Zyada Bhari Hai .!*_

_*Be ILM Mujahida Walon Ko Shetan Unglion Par Nachata Hai Moh Me Lagam Naak Me Nakeel Daal Kar Jidhar Chahe Khinche Phirta Hai .!*_

_*Hazrat Imam Sayedi Abul Qasim Qusheri رحمة الله عليه Farmate Haen Jis Ne Na Quran Yaad Kiya - Na Hadees Likhi - Yani Jo ILM e Shariyat Se Aagah Nahi Darbara e Tariqat Uski Eqtada Na Kare'n Aese Ko Apna Peer Na Banaye'n Ke Hamara Ye ILM e Tariqat Bilkul Kitab o Sunnat Ka Paband Hai .!*_

_*Hazrat e Shaikh Shahbuddin Sohrwardi رحمة الله عليه Farmate Haen Jis Haqiqat Ko Shariyat Rad Farmaye Wo Haqiqat Nahi Be Deeni Hai .!*_

_*Sarkar Aalahazrat Farmate Haen AALIM Ki Tareef Ye Hai Ke Aqaaid Se Pore Tour Par Aagah Ho*_

_*Aur Mustaqil Ho Apni Zaroriyat Ko Kitabon Se Nikal Sake Bagher Kisi Ki Madad Ke .!*_

_*Sanad Hasil Karna To Kuch Zaroori Nahi - Haa'n Ba Qayeda Taleem Pana Zaroori Hai Madarsa Ho Ya Kisi Aalim Ke Paas*_

_*Aur Jis Ne BE QAYEDA Taleem Pai Wo Mahez Jahil Se Budtar Neem Mulla Khatra e Imaan Ho Ga .!*_

_*📕 Imam Ahmed Raza Aur Radd E Biddaat O Munkiraat 237*_
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                         _*मुताफर्रिकात*_
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_*कंज़ुल ईमान - और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी*_

_*📕 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_

_*कंज़ुल ईमान - झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते*_

_*📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने बाप और अपने भाइयों को दोस्त ना रखो अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखेगा तो वही लोग सितमगर हैं*_

_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने घरों के सिवा और घरों में ना जाओ जब तक कि इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम ना कर लो*_

_*📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - ज़िना के पास ना जाओ यक़ीनन वो बे हयाई और बहुत बुरी राह है*_

_*📕 पारा 15, बनी इस्राइल, आयत 32*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालों तुम्हें हलाल नहीं कि औरतों के वारिस बन जाओ ज़बरदस्ती.......... और उनसे अच्छा बर्ताव करो फिर अगर वो तुम्हें पसंद ना आयें तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हें पसंद ना हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे*_

_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 19*_

_*कंज़ुल ईमान - अगर ज़मीन में जितने पेड़ हैं सब कलमें हो जायें और समन्दर उसकी स्याही हो उसके पीछे 7 समन्दर और हों तो अल्लाह की बातें खत्म ना होगी, बेशक अल्लाह इज़्ज़तो हिकमत वाला है*_

_*📕 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का*_

_*📕 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 14*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो*_

_*📕 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 7*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो ना मर्द मर्दों से हंसे अजब नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों और ना औरतें औरतों से दूर नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों, और आपस में तअना ना करो और एक दूसरे के बुरे नाम ना रखो, क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फासिक़ कहलाना, और जो तौबा ना करे तो वही ज़ालिम है*_

_*📕 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 11*_

_*कंज़ुल ईमान - मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है. बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं, और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए*_

_*📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 30-31*_

_*कंज़ुल ईमान - अल्लाह की शान ये नहीं है कि ऐ आम लोगों तुम्हे ग़ैब का इल्म दे हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे*_

_*📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 179*_

_*कंज़ुल ईमान - खराबी है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बे ख़बर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं*_

_*📕 पारा 30, सूरह माऊन, आयत 4*_

_*कंज़ुल ईमान - और तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वो इसके सबब से है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया और बहुत कुछ तो वो माफ फरमा देता है*_

_*📕 पारा 25, सूरह शूरा, आयत 30*_
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                   _*Dadhi Ka Bayan*_
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_*Ek Musht Se Kam Dadhi Rakhne Wala Shaks Agar Azaan Wa Takbeer Kahe To Uska Kiya Hukm Hai Kiya Uski Azaan Wa Takbeer Maani Jayegi*_

_*✍🏻Jawab:-*_

_*Daari Ko Ek Musht Se Kam Rakhne Wala, Fasiq E Moallin Hai, Aur Ulama E Ahle Sunnat Ka Is Par ittifaq Hai Ki Azan Fasiq Ko Dena Makruh.*_

_*Ise Roka Jaye, Azan Islam Ka Shiar Hai, To (Namaz Ke Waqt) Ke Dakhil Hone Ki ittila Qual Ki Maqbooliyat Ke Liye Zaruri Hai Ki, Qail (Kehne Wala, Murad Azan Kehne Wala) Musalman Aqil, Baligh Aur Aadil Ho, Aur Fasik Ki Khabar Deen Dari Me Etbar Ke Qabil Nahi, Jaisa Ki*_

_*📕 Durr E Mukhtar Jild:1 Safah: 46 Par Hai*_

*ویعاداذان کافر وفاسق*

_*(Yani, Kafir Fasiq Ki Azan Dohrai Jaye)*_

_*📕 Fatawa Razawiyya Jild:5 Safah: 377 Par Hai*_

_*“Agar Fasiq Ne Azan Di To Qana’at Na Karen, Balki Dobarah Musalman Mutaqqi Fir Azan De”*_

_*📕 Bahar E Shariat Jild: 1 Safah: 809 Par Hai*_

_*“Fasiq Chahe Aalim Ho Uski Azan Kehna Makruh Hai”*_

_*Ab Raha Ye Ki Fasiq Ne Azan De Di To Lotana Wajib Hai Ya Nahi, To Baz Ulama Ne Farmaya Ki Inki Azan Dohrana Wajib Hai Magar Sahi Yahi Hai Ki Inki Azan Ka Lotana Wajib Nahi Mustahab Hai, Aur Yahi Durr E Mukhtar Me Hai, Magar Yaad Rahe Jab Fasiq Azan De,  To Fir Doosra Koi Azan De, Ye Mustahab Hai, Wajib Nahi, Aur Agar Fir Azan Dene Se Fasad Ka Andesha Hai To Dosri Azan Bina Mic Ke Di Jaye, (Aur Yahi Behtar Hai)*_

_*Jaisa Ki Fatawa Faiz Ur Rasool Jild:1 Safah: 184 Par Fatawa Mustafawiya Ke Wahale Se Hai*_

_*“Fasiq Ki Azan Makru Hai, Magar De To Azan Ho Jayegi,”*_

_*“Aur Ye Jo Upar Jawab Guzra Ki Dohrai Jaye, Iska Matlab Hai, Dohrana Mustahab Hai”.*_

*وﷲ سبحانه وتعالى أعلمُ بالـصـواب*

_*🔊 Answared:- Sayyid Muhammad Sikander Warsi Sahab* (Delhi)_
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Saturday, October 20, 2018



           _*Maa Baap Ko Takleef Dena*_
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_*🔘 Maa Baap Ko Takleef Dena Haraam Hai*_

_*Maa Baap Ki Na Farmani Haraam, Sakht Haraam, Aur Gunah-e-kabira Hai, Balki Hr Ek Pr Farz Hai Ki Apne Maa Baap Ka Farmabardar Hokar Unke Sath Behtarin Sulook Kare..*_

_*🔖 Chunanche Allah Ta'ala Ne Quran E Pak Me Farmata Hai Ki..*_

_*✒ Tarzama E Kanzul Iman..*_

_*Aur Maa Baap K Sath Achha Sulook Karo Agar Tere Samne Inme Ek Ya Dono Budhape Ko Pahuch Jaye To Unse Hoo Na Kahna Aur Unhe Na Jhidakna Aur Unse Tazim Ki Baat Kahna Aur Unke Liye Aazizi Ka Bazu Bichha Narm Dili Se, Aur Arz Kr Ki Aye Mere Rab Tu In Dono Pr Raham Kr Jaisa Ki In Dono Ne Mujhe Chhutpan Me Pala Raham Kiya..*_

_*📕 Para 5 Bani Israil Ayat 23, 24*_

_*📚 Hadees Sharif Me Huzur Sallallaho Alaihi Wasallam Ne Gunah E Kabira Ka Bayan Farmate Huye Irshad Farmaya Ki..*_

_*📍Maa Baap Ki Nafarmani Wa Iza Rasani Gunah E Kabira Hai..*_
_*Hazrate Abu Huraira Raziallahu Anhu Se Riwayat Hai, Unhone Kaha Ki Huzur Sallallahu Alaihi Wasallam Ne 3 Martaba Farmaya Ki Us Shakhs Ki Naak Mitti Me Mil Jaye, In Alfaz Ko Sunkr Kisi Sahabi Ne Arz Kiya Ya Rasoolallah Sallallahu Alaihi Wasallam Kiski Naak Mitti Me Mil Jaye..*_

_*Toh Aaqa (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne Farmaya Woh Shakhs Jo Apne Maa Baap Ko Paye Ki Unme Ek Ya Dono Budhape Me Ho Fir Woh Unki Khidmat Kr K Jannat Me Nahi Dakhil Hua To Uski Naak Mitti Me Mil Jaye (Yani Woh Zalil O Khwar Aur Na Murad Ho Jaye..*_

_*Sir Per Jo Phere Haath To Himmat Mil Jaaye, Maa Ek Baar Muskura De, To Jannat Mil Jaaye.*_
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     _*Un Mardo Aur Aurto Par LAANAT*_
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_*🌹Rasool’Allah (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne LAANAT Ki Hai Un Mardo Ke Upar Jo Aurato Ki Mushahibat iqtiyaar Karte Hai Aur Un Aurato Par LAANAT Ki Hai Jo Mardo Ki Mushahibat iqtiyaar Karti Hai.*_

_*📕 Bukhari, Al-Fath 10/332*_

_*Aurat Ki Mushahibat Jo Mard Karte Hai Gale Me Chain Pehanna Chahe Wo Sona Ho Ya Chaandi, Haath Me Kadhe Ya Bracelet Pehanna, Kaano Me Baliya Pehanna, Mehandi Lagana, Sar Par Aurato Jaise Lambey Baal Rakhna, Make-up Karna, Daadhi Mundna, Kapdo Ko Takno Se Niche Latkana..*_

_*Mard Ki Mushahibat Jo Aurat Karti Hai Jeans/Shirt Pehanna, Sar Nanga Rakhna, Salwaar Ko Apne Takno Se Upar Rakhna, Tang (Tight) Kapde Pehanna, Sar Ke Baalo Ko Mardo Jaise Chote Karna, Mardo Jaise Chalna, Mardo Jaise Baat Karna.*_

_*Choti Bachion Ko Bachpan Se Hi Aadat Dale Ki Woh Sirf Aurton Wale Kapde Aur Baal Rakhe Rahe. ..Warna Balig Hone Tak Ye Unki Aadat Ban Jayegi.!*_
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Thursday, October 18, 2018



                _*गुनाह मिटा दिये जाते है*_
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_*हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया जो 100 मर्तबा "سُبْحَانَ اللّٰهِ وَبِحَمْدِهِ" (सुब्हान'अल्लाह व बेहमदिही) पढ़ता है उसके गुनाह मिटा दिये जाते है अगर्चे समुन्दर के झाग के बराबर हो।*_

_*📕 सुनन तिर्मिज़ी, 5/287*_

_*सोने का पहाड़ सदक़ा करने का षवाब हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया  जिस के लिए रात में इबादत करना दुशवार हो या वो अपना माल खर्च करने में बुख्ल से काम लेता हो या दुश्मन से जिहाद करने से डरता हो तो वो कसरत से "سُبْحَانَ اللّٰهِ وَبِحَمْدِهِ" (सुब्हान'अल्लाह व बेहमदिही) पढ़ा करे क्यू की ऐसा करना अल्लाह को अपनी राह में सोने का पहाड़ सदक़ा करने से ज़्यादा मसनद है।*_

_*📕 मजमउ जवाइद 10/112*_

_*जन्नत में खजूर का दरख्त हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया  जो "سُبْحَانَ اللّٰهِ وَبِحَمْدِهِ" (सुब्हान'अल्लाह व बेहमदिही) पढ़ता है उस के लिये जन्नत में खजूर का एक दरख्त लगा दिया जाता है।*_

_*📕 मजमउ जवाइद 10/111*_
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                 _*अच्छी बात करने वाले*_
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_*जन्नत के अजीमुश्शान महल अच्छी गुफ्तगु करने वाले को मिलेगे*_

_*📝जन्नत के वो हसीन दिलकश महल जिन मे शीशे की मानिन्द आर पार नजर आता है अच्छी गुफ्तगु करने वाले को अता किए जाएगे चुनान्चे हजरते अली रजि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है नबीए करीम ﷺ ने फरमाया जन्नत मे बाला खाने है जिन के बैरून हिस्से अन्दर से और अन्दर के हिस्से बाहर से नजर आते है ये किस के लिए होगे मदनी आका ﷺ ने फरमाया जो अच्छी गुफ्तगु करे*_

_*📕 तिर्मिजी शरीफ़*_

       _*📌 अच्छी बात करना सदका है 📌*_

_*📝अच्छी बात करना चुप रहने से अफजल है और चुप रहना बे मकसद बात कहने ने अफजल जब कि बुरी बात कहना तो हर वक्त बुरा ही बुरा है और अच्छी बात करना सदका है लिहाजा हजरते अबू हुरैरा रजिअल्लाहु अन्हु मरवी है हुजुर नबीए करीम करीम ﷺ  रऊफुर रहीम  ने फरमाया अच्छी बात सदका.!*_

_*📕 बुखारी व मुस्लिम*_

_*अच्छे अख्लाक वाले इस्लामी भाई कियामत के रोज सरकारे ﷺ के ज्यादा करीब होगे और दोनो जहॉ मे महबुब भी है बातूनी लोग सरकार ﷺ को ना पसन्द है..!*_
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                     _*नफ्स का बयान*_
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_*🔘 अल्लाह ने इंसान के नफस को इस बेहतरीन तरीके से बनाया कि वो बुराई और अच्छाई में साफ़ फर्क महसूस कर लेता है.*_

_*💫जब कोई इंसान कोई नेक काम करता है तो उसे अन्दर से एक ख़ुशी महसूस होती है एक सुकून वो अपने अन्दर महसूस कर सकता है, और जब कोई इंसान शुरू में किसी बुरे काम का इरादा करता है तो उसके दिल में एक खटक सी पैदा होती है..!*_
_*वो खटक बहुत कीमती है.*_

_*कुरआन हमें बताता है कि जो इंसान दिल की इस आवाज़ की कद्र करता है तो इसमें और ज्यादा बेहतरी आती है जिससे इंसान और बेहतर तरीके से अच्छाई और बुराई को समझ लेता है.*_

_*📍लेकिन जो इंसान इस आवाज़ की कद्र नहीं करता तो धीरे धीरे यह आवाज़ बंद हो जाती है यहाँ तक कि फिर इंसान उस गुनाह को गुनाह महसूस नहीं कर पाता.*_

_*यह अल्लाह की खास हिदायत है जो उसने हर इंसान के अन्दर रखी है, यह एक तराज़ू की तरह है जिसमे हर अमल तौल कर देखा जा सकता है, यह इतनी कीमती चीज़ है कि कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया है कि जिसने इसे सवारा वो कामयाब हो गया और जिसने इसे दबाया वो बर्बाद हो गया.*_

_*📕 सूरेह शम्स आयत 7-10 से मफहूम*_
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                       _*सवानेह हयात*_
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_*9 सफर*_

_*हज़रत अमीर अबुल ओलाई सरताज अलैहिर्रहमा, आगरा*_

_*हज़रत ग़ौसुस ज़मां जान मुहम्मद किर्मानी अलैहिर्रहमा, वलीदपुर*_

_*10 सफर*_

_*हज़रत सय्यद शाह ज़हूर क़ादरी अलैहिर्रहमा*_

_*11 सफर*_

_*हुजूर मुफस्सिरे आज़म हज़रत मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जीलानी मियां अलैहिर्रहमा (वालिद हुज़ूर ताजुश्शरीया), बरेली शरीफ*_

_*मौलाना इब्राहीम रज़ा खान*_

_*आप सिलसिलाये आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़विया नूरिया के 42वें मशायखे किराम हैं, आपकी विलादत 10 रबिउल आखिर 1325 हिज्री बामुताबिक़ 1907 ईसवी बरेली शरीफ में हुई, आपके वालिद का नाम हुज्जतुल इस्लाम हज़रत मुहम्मद हामिद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और वालिदा का नाम कनीज़ आईशा था, आलाहज़रत अज़ीमुल बरकर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपके दादा थे उन्होंने ही आपके कान में अज़ान दी और एक खजूर चबाकर आपके मुंह में डाला, आपका नाम मुहम्मद रखा गया वालिद ने इब्राहीम और वालिदा ने जीलानी मियां तजवीज़ किया और लक़ब मुफस्सिरे आज़म हुआ*_

_*आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपका अक़ीक़ा बड़ी धूम धाम से किया,4 साल 4 महीने और 4 दिन की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी की गई और 7 साल की उम्र में दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में दाखिल कराया गया जहां से आपने 19 साल की उम्र में 1344 हिजरी में तमाम उलूम से फराग़त हासिल की और हुज्जतुल इस्लाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपके सर पर दस्तार बाँधी, आपको हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व आपके वालिद की भी इजाज़तो खिलाफत हासिल थी*_

_*आपका निकाह आपके चचा यानि हुज़ूर मुफ्तिए आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बड़ी साहबज़ादी निगार फातिमा से हुआ जिनसे आपको 8 औलादें हुई 5 बेटे और 3 बेटियां, बेटों के नाम हस्बे ज़ैल हैं*_

_*हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान*_
_*हज़रत अल्लामा अख्तर रज़ा खान (हुज़ूर ताजुश्शरिया)*_
_*हज़रत क़मर रज़ा खान*_
_*हज़रत मन्नान रज़ा खान*_
_*हज़रत तनवीर रज़ा खान*_

_*आपने चंद किताबें तस्नीफ फरमाई है जिसमे ज़िक्रुल्लाह, नेअमतुल्लाह, हुज्जतुल्लाह, फ़ज़ाइले दरूद शरीफ, तफ़्सीरे सूरह बलद और तशरीह कसीदए नोमनिआ शामिल है*_

_*1372 हिजरी में आपने हरमैन शरीफैन का सफर किया और वहां के बड़े बड़े उल्माए किराम ने भी आपको इजाज़तो खिलाफ़त अता की, आप एक बेहतरीन उस्ताज़ और आला मुन्तज़िर थे आपकी तक़रीर से बहुत सारे वहाबियों ने तौबा करके इस्लाम कुबूल किया, आप एक साहिबे करामत बुज़ुर्ग थे*_

_*करामत - एक बार एक पैदाइशी गूंगा शख्स आपकी बारगाह में लाया गया आपने उसके लिए दुआ फरमाई और फौरन ही वो बोलने लगा, आपकी इस करामत को देखकर बहुत सारे गैर मुस्लिमो ने तौबा की और इस्लाम क़ुबूल किया*_

_*करामत - एक शख्स को खून के इल्ज़ाम में बे कसूर पकड़ लिया गया था उसके घर वाले आपके पास दुआ के लिए आये तो आपने उसके लिए दुआ की एक तावीज़ दिया और दरूद शरीफ का विर्द करने को कहा, 10 दिन बाद वो लोग फिर आये और अपने साथ उसी शख्स को साथ लाये जो कि बे कसूर साबित हो चुका था और उसे रिहा कर दिया गया*_

_*आपका विसाल 11 सफर 1385 हिज्री पीर के दिन हुआ, हज़रत मुफ़्ती सय्यद अफज़ल हुसैन साहब ने आपकी नमाज़े जनाज़ा इस्लामिया इंटर कालेज में पढ़ाई और आला हज़रत के आस्ताने में ही आपको दफन किया गया*_

_*📕 द चेन ऑफ लाइट, जिल्द 2, सफह 203*_
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            _*नंगे सर खाना ख़िलाफ़े सुन्नत*_
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_*✅ जो बिस्मिल्लाह कह कर खाता है, शैतान उसके साथ नही खा सकता और जो बग़ैर बिस्मिल्लाह के खाए शैतान उसके साथ खाएगा अगरचे सर पर सौ कपड़े हो ! नंगे सर खाना हुनूद की रस्म और ख़िलाफ़े सुन्नत है हाँ उज़्र हो तो हरज नहीं !*_

_*📕 फ़ैज़ाने आला हज़रत, पेज नं 413*_

_*📝अक्सर लोगों में देखा गया है कि इस अज़ीम सुन्नत से महरूमी है ! मिल्लत से गुजारिश है कि खाते वक़्त सर हमेशा ढक कर रखें !*_

_*🌹🌹जज़ाकअल्लाह ख़ैर.!*_
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             _*सह़ाबिये रसूल का अ़क़ीदा*_
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_*🔘एक दिन मरवान अपने ज़मानए तसल्लुत़ (यानी ज़मानए हुकूमत) में कहीं चला जा रहा था कि उसने किसी शख़्स को देखा कि वो हुज़ूर सय्यिदुल मुर्सलीन, रह़मतुल्लिल आ़लमीन صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم की क़ब्रे अन्वर पर अपना चेहरा रखे हुए हैं! मरवान ने कहा*_

_*👉🏼"क्या तुम्हे मालूम हैं कि तुम क्या कर रहे हो?" जब वो मरवान की त़रफ़ मुतवज्जेह हुए तो पता चला कि वो तो ह़ज़रते सय्यिदुना अबू अय्यूब अन्सारी رضى الله تعالى عنه हैं! उन्होने फ़रमाया*_

_*🌺"हां, मैं किसी पत्थर के पास नही आया, मैं तो रसूलुल्लाह صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم के हुज़ूर ह़ाज़िर हुआ हूं, मैने रसूलुल्लाह صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم से सुन रखा हैं कि*_

_*🌹"दीन पर उस वक़्त आंसू न बहाना जब उसकी ज़िम्मेदारी लाइक़ व अहल के पास हो, दीन पर उस वक़्त आंसू बहाना जब उसकी ज़िम्मेदारी ना लाइक़ व ना अहल के पास हो"!*_

_*📕 मुस्नद अह़मद, 9/148, ह़दीस- 23646*_

_*☝🏻इस वाक़िए़ से मालूम हुआ कि सह़ाबए किराम عليهم رضوان प्यारे आक़ा صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم से बे पनाह मौह़ब्बत किया करते थे और उनका ये अ़क़ीदा था कि नबिय्ये करीम صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم अपनी क़ब्रे अन्वर में ज़िन्दा हैं, येही वजह हैं कि सय्यिदुना अबू अय्यूब अन्सारी رضى الله تعالى عنه ने मरवान को इन्तिहाई खरा जवाब दिया कि मैं किसी पत्थर के पास नही आया जो कि बे जान होता हैं न सुन सकता हैं न बोल सकता हैं बल्कि मैं तो अल्लाह तआ़ला के ह़बीब صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم के पास ह़ाज़िर हुआ हूं जो आज भी अपनी क़ब्रे अन्वर में ह़याते बा कमाल के साथ मुत्तसिफ़ हैं, लिहाज़ा हमें भी शैत़ानी वस्वसों से बचते हुए इसी अ़क़ीदे पर साबित क़दम रहना चाहिए कि न सिर्फ़ सरकारे मदीना صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم बल्कि तमाम के तमाम अम्बियाए किराम عليهم الصلاة و السلام अपनी क़ब्रों में ज़िन्दा हैं जैसा कि*_

_*👉🏻रह़मते आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيئهِ وَسَلَّم का इर्शाद हैं*_
_*🌹"अम्बियाए किराम عليهم الصلاة و السلام अपनी क़ब्रों में ज़िन्दा हैं (और) नमाज़े (भी) अदा फ़रमाते हैं"!*_

_*📕 मुस्नद अबी या'ला, 3/216, ह़दीस-3412*_

_*👉🏻एक और ह़दीसे पाक में इर्शाद फ़रमाया*_
_*🌹"बेशक अल्लाह तआ़ला ने अम्बियाए किराम عليهم الصلاة و السلام के जिस्मों को खाना, ज़मीन पर ह़राम कर दिया हैं तो अल्लाह तआ़ला के नबी ज़िन्दा हैं रोज़ी दिए जाते हैं"!*_

_*📕 इब्ने माजा, 2/291, ह़दीस- 1637*_

_*तू ज़िन्दा हैं वल्लाह तू ज़िन्दा हैं वल्लाह*_
_*मेरी चश्में आ़लम से छूप जाने वाले..!*_

_*📕 ह़दाइक़े बख़्शिश, सफ़ह़ा-58*_
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           _*बुज़ुर्गों की तस्वीरें घरों मै रखना*_
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_*💫आजकल बुज़ुर्गाने दीन की तस्वीरें और उनके फोटो घरों दुकानों में रखने का भी रिवाज हो गया है, यहां तक के बाअज़ लोग पीरों वलियों की तस्वीरें फ्रेम में लगाकर घरों में सजा लेते हैं और उन पर मालाएं डालते अगरबत्तीयां सुलगाते हैं। और कुछ जाहिल नाख्वानदे उनके सामने मुशरिकों, काफिरों, और बुत परस्तों की तरह हाथ बांधकर खड़े हो जाते हैं,, उन्हें चूमते और सजदे करते हैं। यह बातें सख्त तरीन हराम यहां तक के कुफ्र अंजाम हैं, बल्कि यह हाथ बांधकर तस्वीर के सामने खड़ा होना उन पर फूल और मालाएं डालना यह काफ़िरों का काम है।*_

_*"सय्यदि आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा ख़ान साहब अलैहिर्रहमा इरशाद फरमाते हैं" अल्लाह अज़्ज़ा वजल इब्लीस के मक्र से पनाह दे, दुनिया मै बुत परस्ती की इब्तिदा यूं ही हुई,, कि अच्छे और नेक लोगों की मोहब्बत में उनकी तस्वीरें बनाकर घरों और मस्जिदों में तबर्रुकन रख लेते फिर धीरे-धीरे वही माअबूद हो गये।*_

_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 10, निस्फ़ आख़िर, मतबूआ बीसलपुर, सफ़्हा 47*_

_*"बुख़ारी शरीफ़ और मुस्लिम शरीफ़ की हदीस मै है वुद, सुवाअ, यगूस, यऊक़, और नसर जो मुशरिकीन के माअबूद और उनके बुत थे जिनकी वह परस्तिश करते थे जिनका जिक्र क़ुरआन 'ए' करीम मै भी आया है यह सब क़ोम'ए नूह के नेक लोग थे, इनके विसाल हो जाने के बाअद क़ोम ने इनके मुजस्सिमे बनाकर अपनी नशिस्तगाहों में रख लिए, उस वक्त सिर्फ मोहब्बत में ऐसा किया गया था लेकिन बाअद के लोगों ने उनकी इबादत और परस्तिश शुरू कर दी। इस किस्म की अहादीस कसरत से कुतुब'ए अहादीस में आई हैं।*_

_*"एक हदीस'ए पाक में है के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलेहि वसल्लम ने फरमाया" क़यामत क़ाइम ना होगी जब तक मेरी उम्मत के कुछ क़बीले मुशरिकों से ना मिल जाएं, यहां तक कि मेरी उम्मत के कुछ गिरोह बुत परस्ती करने लगेंगे।*_

_*📕 मिश्कात, किताब'उल फ़ितन, सफ़्हा 465*_

_*''इस हदीस की शरह करते हुए मौलाना मुफ्ती अहमद यार ख़ान साहब नईमी मुरादाबादी फ़रमाते हैं हमने देखा बाअज़ लोग अपने पीरों के फ़ोटो को सजदे करते हैं, उन्हें चूमते, और उन्हें सजाकर रखते हैं, यह है इस हदीस का ज़ुहूर, और बाअज़ कलमा गो ताज़ियों को सजदा करते हैं, क़ब्रों को तो बहुत लोग सजदे करते हैं, बाअज़ लोग जिंदा पीरों को सजदे करते हैं, यह है बुत परस्ती। अल्लाह हमें अपनी पनाह मै रखे।*_

_*📕 मिरअतुल मनाजेह, जिल्द 7, सफ़्हा 219*_

_*📝"खुलासा यह कि तस्वीर फ़ोटो इस्लाम में हराम है, और पीरों, वलियों, अल्लाह वालों के फोटो और उनकी तस्वीरें और ज़्यादा हराम हैं। काफ़िरों इस्लाम के दुश्मन ताकतों की साज़िशें चल रही हैं, वह चाहते हैं कि तुमको अपनी तरह बनाएं और तुमसे कुफ्र कराएं, खुद भी जहन्नम में जाऐं और तुमको भी जहन्नम मै ले जाऐं।*_
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             _*"खड़े होकर पेशाब करना"*_
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_*हदीस- उम्मुल मुमिनीन सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि जो तुम से कहे कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम खड़े होकर पेशाब फरमाते उसे सच्चा न जानना, हुज़ूर पेशाब न फरमाते थे मगर बैठ कर !*_

_*📕 तिर्मिज़ी शरीफ़*_

_*✒हदीस- अमीरूल मुमिनीन फ़ारूक़े आज़म रज़ि अल्लाहु तआला अन्हू रिवायत करते है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने मुझे खड़े होकर पेशाब करते देखा फरमाया- ऐ उमर! खड़े होकर पेशाब न करो, उस दिन से मैंने कभी खड़े हो कर पेशाब न किया !*_

_*📕 बैह़की शरीफ*_

_*✒हदीस- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहे व सल्लम ने खड़े हो पेशाब करने से मना फरमाया !*_

_*📕 इब्ने माजा*_

_*✒हदीस- तीन बातें जफा व बेअदबी से हैं !*_

_*1- यह की आदमी खड़े हो कर पेशाब करे !*_
_*2- यह कि नमाज़ में अपनी पेशानी से(मिट्टी या पसीना) पोंछे !*_
_*3- यह कि सज्दा करते वक़्त फूंके !*_

_*📕 मुसनद बज़्ज़ार*_

_*👆🏼इन अहादीस से मालूम हुआ की खड़े होकर पेशाब करना इलशादाते रसूल की खिलाफ़ वर्ज़ी और हुक्मे शरअ से मुंह मोड़ना है !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 2, सफ़ा 146-147*_

_*"पेशाब के छींटे" 💦*_

_*📌कौम-ए-बनीइसराईल में पेशाब के अह़काम बड़े सख़्त थे ! उस कौम में अगर जिस्म के किसी हिस्से पर पेशाब के छींटे लगते तो जिस्म की उतनी चमड़ी काट कर निकाल दी जाती थी !*_

_*☝🏼अल्लाहु अकबर...*_

_*✒हदीस शरीफ़ में है कि क़ब्र में अक्सर अज़ाब पेशाब के छींटों से नही बचने के कारण होता है !*_

_*✍🏻...वो भाई बहन इस मसाइल से इबरत ले जो इस्तिंजा खाने में और दीग़र मकामात मे पेशाब के छींटों से नही बचते ! खासकर हमारे नौजवान जो बड़े ही चुस्त कपड़े पहनते है और इस्तिंजा के वक़्त खड़े-खड़े फारिग हो जाते है...!*_
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_*💦Peshab Ke Chinte Or Azab-E-Qabr*_
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_*🔘 Hadees-E-Mubarak Ka Mafhoom Hai Ki Hazrate Sayyeduna Ibne Abbas رضي الله تعالٰی عنه Se Marwi Hai Ki Sarkar-E-Do-Aalam, Noor-E-Mujassam, Shaahe Bani Aadam, Rasool-E-Mohtasham صلی اللہ تعالٰی علیہ والہ وسلم  Do (2) Qabron Ke Paas Se Guzrey Aur Gaib Ki Khabar Dete Hue Farmaya*_
_*Yeh Dono Qabr Wale Azaab Diye Jaa Rahe Hain Aur Kisi Badi Cheez Me Azaab Nahi Diye Jaa Rahe (Jis Se Bachna Dushwar Ho). Balki Ek Toh Peshaab Ke Cheehton Se Nahi Bachta Tha Aur Doosra Chugal Khori Kiya Karta Tha Phir Aap صلی اللہ تعالٰی علیہ والہ وسلم  Ne Khajoor Ki Taaza Tahni Mangwayi Aur Usey Aadho Aadh Cheera Aur Har Ek Ki Qabr Par Ek Hissa Gaad Diya Aur Farmaya  Jab Tak Yeh Khushk Na Ho Tab Tak In Dono Ke Azaab Me Takhfeef Hogi.*_

_*"Qabr Per Phool Daalna Yahanse Saabit Hota Hai"*_

_*✅ Agar Qabr Per Phool Daalna Shirk Hota, Toh Rasoole Kamaal صلی اللہ تعالٰی علیہ والہ وسلم Ye Amal Hargiz Na Karte..*_

_*📕 Sahih Bukhari  Hadees 6055*_
_Book Ref.  78, Hadees 85_
_Eng Ref.  Vol. 8, Book 73, Hadees 81_
_*📕 Sahih Bukhari  Hadees 218*_
_Book Ref.  4, Hadees 84_
_Eng Ref.  Vol. 1, Book 4, Hadees 217_
_*📕 Sunan Abu Dawud  Hadees 20*_
_Book Ref. 1, Hadees 20_
_Eng Ref.  Book 1, Hadees 20_
_*📕 Jamia Al Tirmizi  Hadees 70*_
_Book Ref.  1, Hadees  70_
_Eng Ref.  Vol. 1, Book 1, Hadees 70_
_*📕 Istinja Ka Tareeqa (Hindi) Maktabatul Madina Hind, Safha 2*_

_*ALLAH Ta'ala Aap Par Fazl Farmaye.!*_
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_*Istinja/ Taharat Khana/Baitul Khala Ke Aadab Hadees Ki Roshni Me*_
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*ﺃَﻋُﻮْﺫُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ*
*بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ*
*اَلصَّلاَةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ اللّٰهِ،*

_*Hammam Me Peshaab Karna*_

_*Sarkar-E-Madina صلی اللہ تعالٰی علیہ والہ وسلم Ne Farmaya -*_

_*Koi Gusl Khane Me Peshaab Na Karey, Phir Us Me Nahaye Ya Wuzu Kare Ki Aksar Waswasey Is Se Hotey Hain.*_

_*💫 Mufassire Shaheer Haqeemul Ummat Hazrate Mufti Ahmad Yaar Khan رحمة الله تعالي عليه Is Hadees-E-PaakKe Tehet Farmate Hain*_

_*Agar Gusl Khane Ki Zameen Pukhta Ho Aur Us Me Paani Kharij Hone Ki Naali Ho Toh Wahan Peshaab Karne Me Harj Nahi Agarchey Behtar Hai Ki Na Karey. Lekin Agar Zameen Kachchi Ho Aur Pani Nikalne Ka Rasta Bhi Na Ho Toh Peshaab Karna Sakht Bura Hai Ki Zameen Najis Ho Jayegi Aur Gusl Ya Wuzu Me Ganda Pani Jism Par Padega. Yahan Doosri Surat Hi Muraad Hai Isliye Taqeedi Mumana'at Ataa Farmayi Gayi. Yani Is Se Waswasey Aur Wehem Ki Beemari Paida Hoti Hai Jaisa Tajriba Hai Ya Gandi Cheehtein Padne Ka Waswasa Rahega.*_

_*📕 Sunan Abu Dawud  Jild 1, Safha  44 , Hadees 27*_
_Mira'at  Jild 1, 6266_
_*📕 Istinja Ka Tareeqa (Hindi), Maktabatul Madina-Hind, Safha  7-8*_

_*⭕Istinja Khaane Me Jinnaat Aur Shayateen Rehte Hain. Agar Jaane Se pehle Bismillah Padh Li Jaaye Toh Is Ki Barakat Se Woh Sitr Dekh Nahi Saktey.*_

_*❣Hadees-E-Mubarak Me Hai*_

_*Jinn Ki Aankhon Aur Logo Ke Sitr Ke Darmiyan Parda Yeh Hai Ki Jab Pakhaane Ko Jaayein Toh Bismillah Keh Lein.*_

_*Yani Jaise Deewar Aur Pardey Logo Ki Nigaah Ke Liye Aad Bantey Hain Aise Hi Yeh Allahعزوجل Ka Zikr Jinnaat Ki Nigahon Se Aad Banega Ki Jinnaat Us Ko Dekh Na Sakenge.*_

_*💫 Humein Hamesha Yaad Rakh Kar Istinja Khane Me Dakhil Hone Se Pehle Bismillah Pad Lena Chahiye Balki Behtar Hai Ki Yeh Dua Padh Li Jaaye.*_

_*Awwal Wa Aakhir Durood Shareef*_

*بِسْمِ اللهِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ*

_*📝Tarzuma : Allah Ke Naam Se Shuru,*_

_*☝🏻☝🏻Ya Allah ! Mein Na-Pak Jinno (Nar Wa Maada) Se teri Panaah Mangta Hoon.*_

_*📕 Sunan Tirimizi  Jild 2 , Safha  113 , Hadees  606*_
_*📕 Miraat ul Manajih  Jild1, Safha 268*_
_Kitab ul Dua Al Tabarani  Hadees  357, Safha  132_
_Istinja Ka Tareeqa (Hindi), Maktabatul Madina-Hind, Safha 2-3_

_*Jinnat Ka Rizq Haddi, Gobar Aur Koyla Hai.*_

_*Hadees-E-Mubarak Ka Mafhoom Hai Ke Hazrate Sayyeduna Abdullah Bin Mas'ud رضي الله تعالي عنه Se Rivayat Hai Ke Nabi-E-Kareem  صلی اللہ تعالي علیہ والہ وسلم Ki Khidmat-E-Aqdas Me Jinnaat Ka Ek Wafd (Group) Hazir Ho Kar Arz Guzar Hua.*_

_*Ya Rasool Allah صلی اللہ تعالٰی علیہ والہ وسلم!  "Aap Ki Ummat Haddi, Gobar Aur Koyle Se Istinja Na Karey Kyunki Allah Ta'ala Ne Isme Hamara Rizq Muqarrar Farma Diya Hai Toh Nabi-E-Kareem  صلی اللہ تعالي علیہ والہ وسلم Ne (Ummat) Ko Is Se (Istinja Karna) Man'a Farma Diya"*_

_*📕 Sunan Abi Dawud  Hadees 39*_
_Book Ref. 1, Hadees 39_
_Eng Ref. Book 1, Hadees 39_
_*📕 Jamia Tirmizi  Hadees 18*_
_Book Ref.  1, Hadees 18_
_Eng Ref. Vol. 1, Book 1, Hadees 18_

_*Bil (Holl) Me Peshaab Karna*_

_*Hadees-E-Mubarak Ka Mafhoom Hai Ke Rehmat Wale Aaqa, Makki Madani Mustafa Ka Farmaney Shafqat Nishan Hai*_

_*''Tum Me Se Koi Shakhs Suraakh Me Peshaab Na Kare''.*_

_*🔖Jinn Ne Shaheed Kar Diya*_

_*Mufassire Shaheer Haqeemul Ummat Hazrate Mufti Ahmad Yaar Khan رحمة الله تعالي عليه Farmate Hain*_

_*Juhoor Se Muraad Zameen Ka Suraakh Hai Ya Deewar Ki Fatan (Yani Darar), Chunki Aksar Suraakhon Me Zehriley Jaanwar Ya Chyunti Wagairah Kamzor Jaanwar Ya Jinnaat Rehte Hain. Chyunti Peshaab Ya Paani Se Takleef Payegi Ya Saanp Wa Jinn Nikal Kar Humein Takleef Denge. Isliye Wahan Peshaab Karna Mana Farmaya Gaya. Chunanchey Hazrate Sayyeduna Saad Ibne Ubada Ansari رضي الله تعالٰی عنه  Ki Wafaat Isi Se Hui Ki Aap  Ne Ek Suraakh Me Peshaab Kiya, Jinn Ne Nikal Kar Aap Ko Shaheed Kar Diya. Logo Ne Us Suraakh Se Yeh Aawaz Suni*_

_*Hum Ne Qabila Khazraj Ke Sardar Saad Bin Ubada  رضي الله تعالٰی عنه  Ko Shaheed Kar Diya Aur Hum Ne (Aisa) Teer Mara Jo Un Ke Dil Se Aar Paar Ho Gaya.*_

_*Allahعزوجل Ki Un Par Rehmat Ho Aur Un Ke Sadqey Hamari Maghfirat Ho.*_

_*📕 Sunan Nasai  Safha 14, Hadees  34*_
_(Miraat  Jild 1, Safha 268 Mirqaat  Jild 2, Safha 72 Wa Ashiyat ul Ma'aat  Jild 1 , Safha 220_

_*📕 Istinja Ka Tareeqa (Hindi), Maktabatul Madina-Hind, Safha  6-7*_
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Monday, October 15, 2018



                _*मनी पाक है या नापाक*_
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_*✨मनी मुतलक़ नापाक ही है सिवा उन पाक नुत्फ़ों के जिन से तख़्लीक़ हज़राते अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम हुई और ख़ुद अंबिया-ए-किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के नुत्फ़े कि उनका पेशाब भी पाक़ है, यूंही तमाम फ़ुज़ला !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 2, सफ़ा 138*_
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              _*शीर ख़्वार बच्चे का "पेशाब"*_
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_*बाज़ जगह यह मशहूर है कि दूध पीते बच्चे का पेशाब नापाक नहीं है अगर वह ख़ूराक खाए तो नापाक है! यानी अगर लड़का है और दूध पीता है तो उसका "पेशाब" नापाक नहीं है लेकिन अगर लड़की है तो नापाक है ! (मुरत्तिब)*_

_*👑आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्दिसा सिर्रूहू तहरीर फरमाते है- आदमी का बच्चा अगरचे एक दिन का हो उसका पेशाब नापाक हो अगरचे लड़का हो !*_

_*📕 फतावा रज़्विया, जिल्द 2, सफ़ा 128*_
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       _*👞"जूते की नजासत का हुक्म"👟*_
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_*👞जूते पर अगर पेशाब पड़ गया और उस पर खाक जम गई तो  ऐसे मिलने से जिस से उसका असर ज़ाइल हो जाए पाक हो जाऐगा वरना बग़ैर धोए पाक न होगा !*_

_*✨अगर नजासत जुर्म वाली हो तो उसे ज़मीन पर रगड़ देने से जूता पाक हो जाएगा !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 2, सफ़ा 56*_
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               _*"नाम मुबारक का अदब"*_
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_*एक रोज़ मौलाना हसनैन रज़ा खाँ साहब बराय जवाब कुछ इस्तिफ़्ते सुना रहे थे और जवाब लिख रहे थे ! एक कार्ड पर इस्मे जलालत लिख गया, उस पर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी ने इरशाद फरमाया..*_

_*💫याद रखो कि मैं कभी तीन चीज़ें कार्ड पर नहीं लिखता*_

_*🔖इस्मे जलालतुल्लाह...*_
_*🔖और मुहम्मद और अहमद...*_
_*🔖और न कोई आयते करीमा...*_

_*मसलन अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम लिखना हो तो यूं लिखता हूँ, हुज़ूर अक़्दस अलैहि अफ़्ज़लुस्सलातु वस्सलाम या इस्मे जलालत की जगह मौला तआला !*_

_*📕 अल-मल्फूज़ अव्वल, सफ़ा 115*_
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               _*"हुज़ूर दाफे-उल-बला हैं"*_
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_*हर वह बात जिस से हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का इख़्तियार साबित हो या नब्वी कमालात पर दलालत करे वहाबिया इसका इंकार करते हैं ! और हुज़ूर की तंक़ीस व तौहीन के दरपे हो जाते हैं हालांकि अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को उलूहीयत के सिवा हर वस्फ़े कमाल अता फरमाया है !*_

_*☝🏻अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा है कि हुज़ूर दाफ़े-उल-बला हैं अपनी उम्मत से बलाओं को टालते है, बल्कि हुज़ूर के गुलामों में भी हुज़ूर के वसीले से ये वस्फ़ है कि वह मुमिनीन से बलाओं को दूर करते है !*_

_*वहाबिया के हसद व जलन का आलम यह है कि वह कहतें है कि दरूदे ताज पढ़ना जाईज़ नही (माज़अल्लाह) क्योंकि इसमें हुज़ूर के लिए "दाफ़े-उल-बला वल-वबा" के जुमले वारिद हुऐ है !*_

_*📜इस मज़्मुन के मुतअल्लिक़ एक सवाल के जवाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्देसा सिर्रहू फरमाते है*_

_*💫रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम बेशक दाफ़े-उल-बला है ! उनकी शाने अज़ीम तो अरफ़ा व आला है उनके ग़ुलाम दफ़अ बला फरमाते है !*_

_*🌹हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है मेरा नाम "उहीद" इस लिए हुआ कि मैं अपनी उम्मत से आतिशे दोज़ख़ को दफ़अ फरमाता हूं !*_

_*📕 इब्ने असाकिर*_

_*🔥दोज़ख़ से बदतर और क्या बला होगी जिसके दाफ़े हुज़ूर अक़्दस हो !*_

_*हुज़ूर फरमाते है कि मैं जिनका मददगार हूँ अली मुर्तज़ा उनके मददगार हैं कि हर मकरूह को उससे दफ़ा करते है !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 11, सफ़ा 81*_
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                         _*माँ के कदम*_
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_*💫एक रोज एक शख्स ने हजरते अबू इसहाक से जिक्र किया कि रात को ख्वाब मे मैने आपकी दाढी याकुत व जवाहीर से मुरस्सा जडी हुई देखी है अबू इसहाक फरमाने लगे तूने सच कहॉ रात मैने अपनी मॉ के कदम चूमे थे यह उसकी बरकत है और फिर एक हदीस सुनाई कि नबीए करीम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम फरमाते है खुदा तआला ने लौहे महफुज पर यह लिख दिया है की मै खुदा हु मेरे सिवा कोई इबादत के लायक नही जिस शख्स के वालिदैन उस पर राजी होगे मै भी उस से राजी हु*_

_*📕 नुजहतूल मजालिस, बाब बिर्रुल वालिदैन, जिल्द 1, सफा 168*_

_*📝सबक:- नबीए करीम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का इरशाद है कि आखिर जमाना मे अक्का उम्मुहु व अताआ जौज तहू मिश्कात*_

_*आदमी मॉ का नाफरमान और बीवी का ताबेदार बन जाए इस किस्स के लोगो से मॉ के कदम चूमने की तवक्कू अबस है हॉ ऐसे लोग बीवीयो के कदम जरूर चूमते है मॉ के कदम चूमने की बरकत से हजरते इसहाक रजिअल्लाहु अन्हु की दाढी याकूत व जवाहिर से मुरस्सा हो गई*_

_*और आज कल मॉ इंसान नेक मॉ के कदमो की बरकत थी कि दाढ़ी के बालो से याकुत व जवाहिर जुड गए और यह माड्रन शौहर की माड्रन बीवी के कदमो की नुहूसत (मनहुसियत ) है कि दाढ़ी के बाल भी उड गए मैने माड्रन मसनवी मे लिखा है कि मर्द हो कर मर्द का चेहरा नही क्यो कि रूख पे रेश का सेहरा नही,*_

_*👑मस्लके आला हजरत -जिन्दाबाद 👑*_

_*🌹अल्लाह तआला हम तमाम मुसलमानो को अपने मॉ कि खिदमत करने कि तौफिक बख्से,,,, आमीन..!*_
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                   _*उबासी और शैत़ान*_
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_*नमाज़ में जानबूझ कर जमाही (उबासी) लेना मकरूहे तह़रीमी हैं और खुद ब खुद आए तो हरज नही मगर रोकना मुस्तह़ब हैं!*_

_*अगर (जमाही) रोके से न रुके तो होंठ को दांतों से दबाए और इस पर भी न रुके तो दाहिनां या बायां हाथ मुंह पर रख दे या आस्तीन से मुंह छुपा ले!*_

_*क़ियाम में दाहिने हाथ से ढ़ाकें और दुसरे मौके पर बाएं हाथ से!*_

_*📕 मराक़िल फ़लाह़*_

_*अम्बियाए किराम अ़लैहिमुस्सलातो वस्सलाम जमाही से मह़फ़ूज़ हैं इसलिए कि इसमें शैत़ान का दख़्ल हैं!*_

_*🌹नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि*_

_*"जमाही शैत़ान की त़रफ़ से हैं, जब तुम में किसी को जमाही आए तो जहां तक मुम्किन हो रोके"!*_

_*☝🏻इस ह़दीसे पाक को इमाम बुख़ारी व मुस्लिम ने सह़ीह़ैन में रिवायत किया!*_

_*कुछ रिवायतों में हैं कि शैत़ान मुंह में घुस जाता हैं!*_

_*कुछ रिवायतों में हैं कि शैत़ान देख कर हंसता हैं!*_

_*उ़लमाए किराम फ़रमाते हैं कि जो जमाही में मुंह खोल देता हैं शैत़ान उसके मुंह में थूक देता हैं और वो जो क़ाह क़ाह की आवाज़ आती हैं वह शैत़ान का क़हक़हा हैं जो मुंह बिगड़ा देखकर ठट्टा लगाता हैं और वो जो (मुंह से) रुतूबत निकलती हैं वो शैत़ान का थूक हैं!*_

_*इस (उबासी) को रोकने की बेहतर तरक़ीब ये हैं कि जब (जमाही) आती मालूम हो तो दिल में ख़याल करे कि अम्बियाए किराम अ़लैहिमुस्सलातो वस्सलाम इससे मह़फ़ूज़ हैं तो फ़ौरन (जमाही) रुक जाएगी!*_

_*📕 रद्दुल मुह़तार*_
_*📕 बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा-3, सफ़ह़ा-219,220*_
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          _*"देवबंदी" से मसला पूछना हराम"*_
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_*💫और अगर उनका बताया हुआ कोई मसला अगर सही भी निकले तो उस से यह न समझा जाए कि यह आलिम है, या उनके मसाईल भी सही होंगे ! दुनिया में कोई ऐसा फ़िर्क़ा नहीं जिसकी कोई न कोई बात सही न हो !*_

_*मसलन यहूद व नसारा की यह बात सही है कि मूसा अलैहिस्सलातु वस्सलाम नबी हैं, क्या इससे यहूदी और नसरानी सच्चे हो सकते है !*_

_*रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं- बड़ा झूठा भी कभी सच बोलता है !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 4, सफ़ा 222*_
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           _*बिस्मिल्लाह शरीफ़ दुरुस्त पढे़*_
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                 *🌷بِسئمِ اللَّهِ الرَّحئمَنِ الرَّحِيئم🌷*

_*पढ़ने में दुरुस्त मख़ारिज से हुरूफ़ की अदाएगी लाज़िमी हैं ! और कम से कम इतनी आवाज़ भी ज़रूरी हैं कि रुकावट न होने की सूरत में अपने कानों से सुन सके !*_

_*👉🏻जल्द बाज़ी में कुछ लोग हुरूफ़ चबा जाते हैं, जान बूझ कर इस त़रह़ पढ़ना मना हैं और मा'ना फ़ासिद होने की सूरत में गुनाह !*_

_*लिहाज़ा जल्दी जल्दी पढ़ने की आ़दत की वजह से जो लोग ग़लत़ पढ़ ड़ालते हैं वो अपनी इस्लाह़ कर ले, नीज़ जहां पूरी बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ने की कोई ख़ास वजह मौजूद न हो और जल्दी भी हो तो वहां सिर्फ़ "बिस्मिल्लाह" कह ले तब भी ह़रज नही !*_

_*📕 आसान नेकियां, सफ़ह़ा-20*_
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Sunday, October 14, 2018



_*1). 📕 सवानेह आला हज़रत!*_
 https://drive.google.com/file/d/1FqiKpGtSknM1-VI4UDkJB8NobroqEh3E/view?usp=drivesdk
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_*2). 📕 खून के आंसू*_

https://drive.google.com/file/d/1eVrd0LzqOtr3-kQih8ti6jJ0cHIH8nN1/view?usp=drivesdk
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_*3). 📕 तज़किरातुल औलिया।*_
 
https://drive.google.com/file/d/1kft-cDuhqm3QOL2vxkzve2DikcM9e5cq/view?usp=drivesdk
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_*4). 📕 रसूलल्लाह का इल्म ए ग़ैब!*_
 https://drive.google.com/file/d/1tSriqgrJdtxJxRTbN0kNVCji0j6LAdZr/view?usp=drivesdk
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_*5). 📕 अंगुठे चुमने का मस्अलह्*_
 https://drive.google.com/file/d/1qpucjfMAWFOg4kdTeU3TcZfKIbT3G10r/view?usp=drivesdk
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_*6). 📕 हर बिद्अत गुनाह नही!*_

https://drive.google.com/file/d/1AW2_JqCT95i3ckpfXCOzyai9PzG06KWg/view?usp=drivesdky
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_*7). 📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह!*_

https://drive.google.com/file/d/1Y7gDSE4lvonaB736HsnIh91feb9sZcaP/view?usp=drivesdk
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_*8). 📕 इस्लामिक नाॅलेज!*_

https://drive.google.com/file/d/18jRmGukEzJHpxGsQ6kiqkzEY2_qCGU1r/view?usp=drivesdk
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Saturday, October 13, 2018



               _*बोलचाल में कुफ़्री बातें*_
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_*आम लोग बातचीत में कुफ़्र के शब्द बोल कर इस्लाम से खारिज हो जाते हैं और ईमान से हाथ धो बैठते हैं इसका ख़्याल रखना निहायत जरूरी है क्युंकि हर गुनाह की बख़्शिश है लेकिन अगर कुफ़्र बक कर ईमान खो दिया तो बख़्शिश और जन्नत में जाने की कोई सूरत नहीं बल्कि सब दिन जहन्नम में जलना लाजिमी है।*_

_*हदीस शरीफ में है कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि शाम को आदमी मोमिन होगा तो सवेरे को काफिर और सुबह को मोमिन होगा तो शाम को काफिर।*_

_*कालिमात कुफ्र कितने हैं और किस किस बात से कुफ्र लाजिम आता है इसकी तफ़सील बयान करना दुशवार है लेकिन हम अवाम भाईयों के लिए चन्द हिदायतें लिखे देते हैं। इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा।*_

_*1) आप बा-अदब हो जाइये। अल्लाह तआला उसके रसूल, फरिशते, खानए काबा, मसाजिद, कुर्आने करीम, दीनी किताबें, बुजुर्गाने दीन, उलमा-ए-किराम, वालिदैन; इन सब का अदब ताजीम और महब्बत दिल में बिठा लीजिये। बा-अदब इन्सान का दिल एक खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता है कि न खुद उसके मुँह से गलत बात निकलती है और कोई और बके तो उसके नागवार गुजरती है। इसीलिए अनपढ़ बा-अदब अच्छा है पढ़े लिखे बे-अदब से।*_

_*खुदाए तआला फ़रमाता है:*_

*وَمَنُ یُّعَظِّمُ شَعَاٸِرَا اللّٰہِ فَاِنَّھَامِنُ تَقُوَی الُقُلُوُبِ،*

_*तर्जमा:- जो अल्लाह की निशानियों की ताजींम करे तो यह दिलों की परहेजगारी है।*_

_*2) हंसी मजाक तफरीह व दिललगी की आदत मत बनाइये और कभी हो तो उसमे दीनी मजहबी बातों को मत लाइये। खुदा तआला, उसकी जात व सिफात, अम्बिया-ए-किराम, फरिशते, जन्नत, दोज़ख़, अ़ज़ाब, सवाब, नमाज, रोजा, वगैरह अहकामे शरअ़ का ज़िक्र हंसी तफ़रीह में कभी न लाइये वरना ईमान के लिए खतरा पैदा हो सकता है। शआ़इरे इलाहिय्यह (अल्लाह की निशानियों) के साथ मजा़क कुफ्र है।*_

_*3) बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश करने के लिए बोल देते हैं जिनका बोलना और खुशी के साथ सुनना कुफ्र है। उन लोगों और एेसी बातें करने वालों से दूर रहना ज़रूरी है। मसलन:*_

_*सब धर्म समान है,*_

_*खिदमते ख़ल्क ही धर्म है,*_

_*देश पहले है धरम बाद में है,*_

_*हम पहले फ़लां मुल्क के वासी हैं और मुसलमान बाद में,*_

_*राम रहीम दोनों एक हैं,*_

_*वेद व कुर्आन में कोई फ़र्क नहीं,*_

_*मस्जिद व मन्दिर दोनों खुदा के घर हैं या दोनों जगह खुदा मिलता है,*_

_*नमाज पढ़ना बेकार आदमियों का काम है,*_

_*रोजा वह रखे जिस को खाना न मिले,*_

_*नमाज पढ़ना न पढ़ना सब बराबर है,*_

_*हम ने बहुत पढ़ ली कुछ नही होता है,*_

_*यह सब कलिमात खालिस कुफ्र गैर इस्लामी काफिरों की बोलियां हैं जिन को बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता है।*_

_*सियासी लोग इस किस्म की बातें गैर मुस्लिमों को खुश करने, उनके वोट लेने के लिए बकते हैं हालांकि देखा यह गया है कि वह उनसे खुश भी नहीं होते और गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालों को आमतौर से वोट देते हैं। इस तरह इन नेताओं को न दुनिया मिलती है न दीन। और जिन ग़ैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन ईमान बचा कर भी मिल सकते हैं। फिर चन्द रोज दुनिया के इक़्तिदार, नोटों और वोटों की खातिर क्या अपना ईमान बेचा जाएगा?*_

_*4) मुसलमानों मे जो नए नए फिरके राइज हुए हैं उन से दूर रहना निहायत जरूरी है। यह ईमान व अकीदे के लिए सब से बड़ा खतरा हैं मजहबे अहलेसुन्नत बुजुर्गो की रविश पर काइम रहना ईमान व अकीदे की हिफाजत के लिए निहायत लाज़िम हैं और मजहबे अहलेसुन्नत की सही तर्जमानी इस दौर में आलाहज़रत मौलाना अहमद रजा खा़ँ बरेलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाई है। उनकी तालीमात एेन इस्लाम हैं।*_

*_📕 ग़लत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह, सफ: नम्बर 13_*
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                    _*वसीला का बयान*_
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_*ⓩ अत्तारिफात सफह 225 पर वसीला का मायने ये बयान किया गया है कि "जिस के ज़रिये रब का क़ुर्ब व नज़दीकी हासिल की जाये उसे वसीला कहते हैं" बेशक अम्बिया व औलिया का वसीला लगाना उनकी ज़िन्दगी में भी और बाद वफात भी बिला शुबह जायज़ है और क़ुर्आनो हदीस में बेशुमार दलायल मौजूद हैं, मुलाहज़ा फरमायें मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो*_

_*📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 35*_

_*ⓩ वसीले के ताल्लुक़ से इससे ज़्यादा साफ और सरीह हुक्म शायद ही क़ुर्आन में मौजूद हो मगर फिर भी कुछ अन्धो को ये आयतें नहीं सूझती, खैर आगे बढ़ते हैं फिर मौला इरशाद फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो*_

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 153*_

_*ⓩ इस आयत में सब्र और नमाज़ को वसीला बनाने का हुक्म है, और पढ़िये*_

_*कंज़ुल ईमान - और जब वो अपनी जानो पर ज़ुल्म कर लें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें*_

_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_

_*ⓩ इस आयत को बार बार पढ़िये और इसका मफहूम समझिये, नमाज़ ना पढ़ी रोज़ा ना रखे हज ना किया ज़कात नहीं दी शराब पी चोरी की ज़िना किया झूट बोला सूद खाया रिशवत ली गर्ज़ कि कोई भी गुनाह किया मगर की तो मौला की ही नाफरमानी, तो जब तौबा करनी होगी तो डायरेक्ट अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लेंगे फिर ये हुज़ूर की बारगाह में भेजने का क्या मतलब, मतलब साफ है कि गुनाह छोटा हो या बड़ा 1 हो या 1 करोड़ अगर माफी मिलेगी तो हुज़ूर के सदक़े में ही मिलेगी वरना बिना हुज़ूर के तवस्सुल से अगर माफी चाहता है तो सर पटक पटक कर मर जाये फिर भी मौला माफ नहीं करेगा, इस आयत की पूरी तशरीह आगे करता हूं मगर अब जबकि बात में बात निकल आई है तो पहले इसकी दलील मुलाहज़ा फरमा लें मौला तआला क़ुर्आन में फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान - फिर सीख लिए आदम ने अपने रब से कुछ कल्मे तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की*_

_*📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 37*_

_*तफसीर - तिब्रानी हाकिम अबु नुऐम व बैहकी ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुनिया में आये तो आप अपनी खताये इज्तेहादी पर 300 साल तक नादिम होकर रोते रहे मगर आपकी तौबा क़ुबूल ना हुई, अचानक एक दिन अल्लाह ने आपके दिल में ये इल्क़अ फरमाया कि वक़्ते पैदाईश मैंने जन्नत के महलों पर उसके सुतूनों पर दरख्तों और उसके पत्तों पर हूरों के सीनो पर गुल्मां की पेशानियों पर ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह जल्ला शानहु व सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखा देखा है, ज़रूर ये कोई बुज़ुर्ग हस्ती है जिसका नाम अल्लाह ने अपने नाम के साथ लिखा हुआ है तो आपने युं अर्ज़ की (अल्लाहुम्मा असअलोका बिहक्क़े मुहम्मदिन अन तग़फिरली यानि ऐ अल्लाह मैं तुझसे हज़रत मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े से मगफिरत चाहता हूं) तब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी तौबा क़ुबूल फरमाई*_

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 7*_

_*ⓩ सोचिये जब सारी दुनिया के बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले की ज़रूरत है तो फिर हम और आप की औकात ही क्या है कि हम बिना हुज़ूर का वसीला लिए मौला से कुछ ले सकें या अपनी मग़फिरत करा सकें, इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला*_
_*बटती है कौनैन में नेअमत रसूल अल्लाह की*_
_*वो जहन्नम में गया जो उनसे मुस्तग़नी हुआ*_
_*है खलील उल्लाह को हाजत रसूल अल्लाह की*_

_*सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम*_

_*कंज़ुल ईमान - और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें*_

_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_

_*तफसीर - आपकी वफाते अक़दस के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक अपने सर पर डालकर यही आयत पढ़ी और बोला कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मैं आपके हुज़ूर अल्लाह से माफी चाहता हूं मेरी शफाअत कराईये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आई कि जा तेरी बख्शिश हो गयी*_

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 105*_

_*ⓩ इतना तो बद अक़ीदा भी मानता ही है कि क़ुर्आन का हुक्म सिर्फ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक तक ही महदूद नहीं था बल्कि वो क़यामत तक के लिए है तो जब क़यामत तक के लिए उसका हर कानून माना जायेगा तो ये क्यों नहीं कि हुज़ूर से शफाअत कराई जाये, क्या माज़ अल्लाह खुदा ने क़ुर्आन में ये कहा है कि मेरे महबूब की ज़िन्दगी तक ही उनकी बारगाह में जाना बाद विसाल ना जाना बिल्कुल नहीं तो जब रब ने ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया तो फिर अपनी तरफ से दीन में हद से आगे बढ़ने की इजाज़त इनको कहां से मिली, खैर मौला हिदायत अता फरमाये अब देखिये इससे बहुत सारे मसले हल हुए*_

_*1. सालेहीन का वसीला लेना जायज़ है*_

_*2. उनसे शफाअत की उम्मीद रखना जायज़ है*_

_*3. बाद विसाल उनकी मज़ार पर जाना जायज है*_

_*4. उन्हें लफ्ज़े या के साथ पुकारना जायज़ है*_

_*5. वो अपनी मज़ार में ज़िंदा हैं*_

_*6. और सबसे बड़ी बात कि वो बाद वफात भी मदद करने की क़ुदरत रखते हैं*_

_*हदीस - हज़रत उस्मान बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक अंधा आदमी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि आप अल्लाह से दुआ करें कि वो मुझे आंख वाला कर दे तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तु चाहे मैं दुआ करूं या तु चाहे तो सब्र कर कि ये तेरे लिए ज़्यादा बेहतर है, इस पर उसने दुआ करने के लिए कहा तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अच्छा अब वुज़ू कर 2 रकात नमाज़ पढ़ और युं दुआ कर (ऐ अल्लाह मैं तुझसे मांगता हूं और तेरी तरफ मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से तवज्जह करता हूं जो नबीये रहमत हैं और या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मैं हुज़ूर के वसीले से रब की तरफ इस हाजत में उम्मीद करता हूं कि मेरी हाजत पूरी हो या अल्लाह मेरे हक़ में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत कुबूल फरमा) वो शख्स गया और नमाज़ पढ़ी दुआ की जब वो वापस आया तो आंख वाला हो चुका था*_

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 197*_

_*ⓩ इमाम तिर्मिज़ी फरमाते हैं कि ये हदीस सही है यही हदीस निसाई इब्ने माजा हाकिम बैहकी तिब्रानी वगैरह में भी मिल जायेगी, अब मोअतरिज़ कहेगा कि नबियों का वसीला तो फिर भी लिया जा सकता है मगर औलिया का वसीला लेना जायज़ नहीं तो उसकी भी दलील मुलाहज़ा फरमायें*_

_*हदीस - हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जब जब हम पर कहत का ज़माना आता तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का वसीला लगाते और युं दुआ करते कि (ऐ अल्लाह हम तेरी बारगाह नबी को वसीला बनाया करते थे तू हमें सैराब फरमाता था अब हम तेरी बारगाह में नबी के चचा को वसीला बनाते हैं) हज़रते अनस फरमाते हैं कि हर बार पानी बरसता*_

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 137*_

_*ⓩ अब फुक़्हा के कुछ क़ौल और खुद वहाबियों देवबंदियों की किताब से वसीले का सबूत पेश है, इमामुल अइम्मा हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में युं नज़्र फरमाते हैं कि*_

_*फुक़्हा - आप वो हैं कि जिनका वसीला लेकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम कामयाब हुए हालांकि वो आपके बाप हैं*_

_*📕 क़सीदये नोमानिआ, सफह 12*_

_*ⓩ हज़रत इमाम मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बनी अब्बास के दूसरे खलीफा अबू जाफर मंसूर से फरमाते हैं कि*_

_*फुक़्हा - तुम अपना मुंह हुज़ूर की जाली की तरफ करके ही उनके वसीले से दुआ करो और उनसे मुंह ना फेरो क्योंकि हुज़ूर हमारे और तुम्हारे बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिए भी वसीला हैं*_

_*📕 शिफा शरीफ, सफह 33*_

_*ⓩ हज़रत इमाम शाफ़ई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु ताला अन्हु की मज़ारे अक़दस के बारे में फरमाते हैं की*_

_*फुक़्हा - हज़रते इमामे आज़म की मज़ार क़ुबूलियते दुआ के लिए तिर्याक है*_

_*📕 तारीखे बग़दाद, जिल्द 1, सफह 123*_

_*ⓩ हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह से हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में फरमाते हैं कि*_

_*फुक़्हा - हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ऐसे हैं जैसे कि लोगों के लिए सूरज इसलिए मैं उनसे तवस्सुल करता हूं*_

_*📕 शवाहिदुल हक़, सफह 166*_

_*ⓩ हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*फुक़्हा - जब तुम अल्लाह से कुछ तलब करो तो मेरे वसीले से मांगो*_

_*📕 बेहिज्जतुल असरार, सफह 23*_

_*ⓩ ये तो हुई हमारे फुक़्हा की बातें अब वहाबियों के भी कुछ क़ौल मुलाहज़ा फरमायें, अशरफ अली थानवी ने लिखा कि*_

_*वहाबी - तवस्सुल दुआ में मक़बूलाने हक़ का ख्वाह वो ज़िंदा हो या वफात शुदा बेशक दुरुस्त है*_

_*📕 फतावा रहीमिया, जिल्द 3, सफह 6*_

_*ⓩ रशीद अहमद गंगोही ने लिखा कि*_

_*वहाबी - हुज़ूर को निदा करना और ये समझना कि अल्लाह आप पर इंकेशाफ फरमा देता है हरगिज़ शिर्क नहीं*_

_*📕 फतावा रशीदिया, सफह 40*_

_*ⓩ हुसैन अहमद टांडवी ने लिखा कि*_

_*वहाबी - आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से तवस्सुल ना सिर्फ वजूदे ज़ाहिरी में बल्कि विसाल के बाद भी किया जाना चाहिय*_

_*📕 मकतूबाते शेखुल इस्लाम, जिल्द 1, सफह 120*_

_*ⓩ क़ासिम नानोतवी ने लिखा कि*_

_*वहाबी - मदद कर ऐ करमे अहमदी कि तेरे सिवा*_
              _*नहीं है क़ासिम बेकस का कोई हामीकार*_

_*📕 शिहाबुस साक़िब, सफह 48*_

_*ⓩ सब कुछ आपने पढ़ लिया कि अल्लाह खुद वसीला लगाने का हुक्म देता है खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबियों को वसीले की तालीम दी फुक़्हाये किराम ने वसीला लगाया और तो और खुद वहाबियों ने भी माना कि दुआ में औलिया अल्लाह का वसीला लगाना बिल्कुल जायज़ व दुरुस्त है तो फिर क्यों अपने ही मौलवियों की बात ना मानते हुये ये जाहिल वहाबी हम सुन्नी मुसलमानों को क़बर पुजवा कहकर शिर्क और बिदअत का फतवा लगाते फिरते हैं, सबसे पहले तो वहाबियों को ये करना चाहिए कि अपना स्टेटस क्लियर करें कि आखिर वो हैं क्या, कोई उनके यहां फातिहा करना हराम कहता है तो जायज़ कोई सलाम पढ़ने को शिर्क बताता है तो कोई खुद पढ़ता है कोई मज़ार पर जाने को मना करता है तो कोई खुद ही मज़ार पर पहुंच जाता है आखिर कब तक ये वहाबी इस दोगली पालिसी से मुसलमानों में तफरका डालकर उनको गुमराह व बेदीन बनाते रहेंगे इसका जवाब कौन देगा*_
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Friday, October 12, 2018



_*Shafa'ate Ambiya Wa Awliya Wa Olma*_
                          _*Part~ 01*_
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_*📚 Hadees No. 01*_

_*Hazrate Jaabir Ibne Abdullah Se Marvi Hai Ki Rasoolullah (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne irshad Farmaya Ki Har Nabi Ko Ek Maqbool Dua Mangne Ka Haq Diya Gaya Jo Unhone Apni Ummat Ke Liye Maang Li Aur Maine Apni Is Makhsoos Dua Ko Baroze Qayamat Apni Ummat Ki shafa'at Ke Liye Bacha Rakha Hai*_

_*📕 Muslim, Jild 1, Safa 112*_

_*📚 Hadees No. 02*_

_*Sayyedna Usmane Gani (Radiallahu Ta'ala Anhu) Se Marvi Hai Ki Rasoolullah (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne irshad Farmaya Baroze Qayamat 3 Qism Ke Log Shafa'at Farmayenge Pehle Ambiya Fir Olma Fir Shohada*_

_*📕 Ibne Maaja Zikre Shafa'at, Safa 330*_
_*📕 Mishkat, Safa 494*_

_*📚 Hadees No. 03*_

_*Hazrate Imran Ibne Haseen (Radiallahu Ta'ala Anhu) Se Marvi Hai Ki Rasoolullah ﷺ Ne irshad Farmaya Ki Meri Shafa'at Se Kuch Log Jahannam Se Nikaale Jayenge Aur Jannat Mein Dakhil Honge Aur Jannat Mein Inka Naam Jahannam Wale Hoga (Yani Jahannam Se Aane Wale)*_

_*📕 Bukhari, Jild 2, Safa 971*_

_*✅ Yaani Log Jahannam Mein Dakhil Ho Jayenge Iske Baad Bhi Shafa'at Jaari Rahegi Yahan Tak Ke Aap ﷺ Ki Shafa'at  Se Jo Log Jahannam Mein Jaa Chuke Honge Wo Waha Se Nikal Kar Jannat Mein Laaye Jayenge*_

_*Hisaab Ka Din Kathin To Hoga Magar Hume Unka Aasara Hain*_
_*Wo Aa Hi Jayenge Bakshwane Shafa'at  Unko Ataa Hui Hain*_

_*📮To Be Continue.....*_
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_*Shafa'ate Ambiya Wa Awliya Wa Olma*_
                          _*Part~ 02*_
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_*📚 Hadees No. 4*_

_*Qayamat Ke Din Khuda E Ta'ala Farmayega Aur Ambiya Wa Momineen Shafa'at Kar Chuke Sirf Ar-Rahmur Rahimeen Baaqi Raha Fir Apne Daste Qudrat Ki Ek Mutthi Bhar Jahannam Se Logo Ko Nikalega*_

_*📕 Muslim, Jild 1, Safa 103*_
_*📕 Mishkat, Safa Babul Houze Wash-Shafa'at, Safa  490*_

_*📚 Hadees No. 05*_

_*Hazrate Abdullah Ibne Umar Bin Aas Se Marvi Hai Ki Rasoolullah (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne Apne Mubarak Hatho Ko Uthaya Aur Arz Kiya Aye Allah Meri Ummat Meri Ummat Aur Aap (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Rone Lage To Allah Ta'ala Ne Hazrate Jibraeel (Alayhis Salam) Ko Huqm Diya Mehboob Ke Paas Jao To Wo Huzoor ﷺ ki Khidmat Mein Haazir Hue Aur Pucha Huzoor (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne Rone Ka Sabab Bataya Aur Parwar Digaar Sab Kuch Jaanta Hai Allah Ta'ala Ne Hazrate Jibraeel (Alayhis Salam) Se Farmaya Jao Aur Mehboob Se Keh Do Aap Ki Ummat Ke Mamle Mein Aap Ko Raazi Aur Khush Kar denge aur Aap Ko Gamgeen Nahi Hone Denge.!*_

_*📕 Muslim, Jild 1, Baab Dua Un Nabi ﷺ Li Ummatihi, Safa 113*_

_*Fiqre Ummat Mein Raato Ko Rote Rahe*_
_*Aasiyoñ Ke Gunaho Ko Dhote Rahe*_

_*Tum Par Qurbaan Jaañ Aye Mere Mehjabeen*_
_*Tum Par Har Dum Karodo Duroodo Salaam*_

_*📮To Be Continue.....*_
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_*Shafa'ate Ambiya Wa Awliya Wa Olma*_
                          _*Part~ 03*_
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_*📚 Hadees No. 06*_

_*Hazrate Abdullah Bin Abijada'a (Radiallahu Ta'ala Anhu) Se Marvi Hai Ki Maine Rasoolullah (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ko Farmate Hue Suna Ki Meri Ummat Ke Ek Shaksh Ki Shafa'at Se Itne Log Jannat Mein Daakhil Honge Jinki Taadad Qabeela Bani Tameem Ke Logo Se Bhi Zyada Hogi*_

_*📕 Tirmizi, Jild 2, Safa 67*_
_*📕 Mishkat, Safa 494*_

_*📚 Hadees No. 07*_

_*Huzoor (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ne irshad Farmaya Meri Ummat Ke Kuch Log Kai Giroh Ki Shafa'at Karenge Aur Kuch Kisi Khandan Ki Aur Kuch Kisi Ek Shaks Ki Shafa'at Karenge Yahan Tak Ke Log Inki Shafa'at Se Jannat Mein Dakhil Ho Jayenge*_

_*📕 Tirmizi, Jild 2, Safa 67*_

_*✍🏻 Saabit Hua Ki Huzoor (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) Ki Ummat Ke Aap Ke Aise Gulam Bhi Honge Jinki Shafa'at  Se Allah Ta'ala Bahot Saare Logo Ko Jannat Ataa Farmayega Aur Inme Olma Aur Shahidaane Islam Ka Khaas Muqaam Hoga*_

_*✅ Mere Huzoor Tajush'Shariah, Mufti Muhammad Akhter Raza Khan Qadri Razvi*_
_Janasheene Huzoor Mufti E Azam E Hind (Radiallahu Ta'ala Anhu)_
_*Ke Sadke Jannat Ata Karde*_

_*📮Topic Over.....*_
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        _*अंगूठा छाप मुजद्दिद इल्यास सुवर*_
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_*अंगूठा छाप मुजद्दिद की मैं पहले तो तारिफ बयान करता हु। गौर से पढे।तबियत मचल ना जाये तो और तारिफ बयान करूँगा !*_

_*👉🏻शैख ए खुराफत,*_
_*रहबरे तबियत,*_
_*आशिके बिदअत,*_
_*माहिरे सुलेहकुल्लियत,*_
_*अमीर ए अहले जिहालत,*_
_*बानी ए दावते इल्यासी,*_
_*ना मुफ्ती ना ईमाम,*_
_*ना अल्लामा ना मौलाना,*_
_*ना हाफिज़ ना कारी,*_
_*सुलेहकुल्लियत की बीमारी,*_
_*अबु बवाल इल्यास सुतार,*_
_*उर्फ मक्कार टीवी वाला पोपट !*_

_*👉🏻जो टीवी को जानी कहता था,*_
_*👉🏻जो टीवी को नबी सल्लल्लाहु त्आला अलैहि वसल्लम का दुशमन कहता था,*_
_*👉🏻जो टीवी को शैतान कहता था,*_
_*👉🏻जो खुद ये कहता था कि अगर कोई कहे की मैं इसलिए टीवी देखता हूँ कि इल्यास टीवी पर आने वाला है।*_
_*तो उस शक्स को पागल खाने भेजदो।*_
_*(अगर सच में पागल खाने भेजे होते तो आज दुनिया के सब पागल खाने इन तोतो से भर गए होते।और पूरा पागल खाना सफ़ेद से हरा हो जाता)*_

_*👉🏻अब खुद टीवी पर आ गया आता है,*_
_*👉🏻अब खुद ने नबी ए पाक सल्लल्लाहु त्आला अलैहि वसल्लम के दुश्मन को दोस्त भी बना लिया, बनाता है।*_
_*👉🏻अब खुद शैतान की पैरवी भी कर रहा है, और जानी से रिश्ता भी निभा रहा है।*_

_*अब बताइये क्या थूक कर नही चाटा इल्यास सुत्तार ने?*_

_*✅ अल्लाह रहम करे ऐसे सुतार से*_

_*👉🏻अब सवाल ये है कि अगर ये मेरे आला हज़रत के दौर मे होता तो क्या मेरे आला हज़रत इसको मुजद्दिद मान लेते? हरगिज नही।*_

_*👉🏻क्या ये सरकार औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाही अलैही के दौर मे होता तो क्या इसकी गर्दन नही उड़ा दी जाती?*_

_*👉🏻अगर 15वी सदी का मुजद्दिद बनने चला है ये इल्यास सुतार*_
                                  *_तो_*
_*हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ्ती अब्दुल सत्तार हमदानी साहब (शेरे पोरबंदर गुजरात) का चेलेंज क्यु कबूल नही करता*_

_*अब्दुल हमदानी साहब ने सिर्फ छोटी सी शर्त रखी है की इल्यास अगर (आला हजरत की फतावा रजवीया) का सिर्फ 1 सफा देख कर ठीक से पढ़ के दिखा दे , तो मैं 500 उलमा ए अहले सुन्नत के दस्तखत के साथ इल्यास कों मुजद्दिद मान लेंगे !*_

_*15 वी सदी का मुजद्दिद नही बल्कि 15 वी सदी का फित्ना है ये टीवी वाला बाबा नकली पीर , मुजद्दिद , अमिर ए जिहालत*_
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Wednesday, October 10, 2018



                       _*सवानेह हयात*_
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_*1 सफर*_

_*हज़रत वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, देवा शरीफ*_

_*हज़रत सय्यदना अबुल क़ासिम शाह इस्माईल हसन, मारहरा शरीफ*_

_*3 सफर*_

_*हज़रत ख्वाजा दाना सूरती क़ुद्देसु सिर्रहु*_

_*5 सफर*_

_*रईसुल क़लम हज़रत अल्लामा अर्शदुल क़ादरी अलैहिर्रहमा*_

_*हज़रत पीर मक़बूल शाह कश्मीरी, हांगल शरीफ*_

_*6 सफर*_

_*हज़रत शारेह बुखारी अलैहिर्रहमा, घोसी*_

_*हज़रत वारिस पाक*_

_*आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 1234 हिजरी देवा शरीफ में पैदा हुए, आपके वालिद का नाम सय्यद क़ुर्बान अली और वालिदा का नाम सय्यदा बीबी सकीना उर्फ चांदन बीबी था*_

_*2 साल की उम्र में बाप का साया सर से उठ गया और 3 साल की उम्र में वलिदा भी चल बसीं तब आपकी दादी ने आपकी कफालत की*_

_*5 साल की उम्र से आपकी तअलीम शुरू हुई, हज़रत अमीर अली शाह से 2 साल में क़ुर्आन हिफ़्ज़ कर लिया और मौलवी इमाम अली से दर्से निज़ामिया की किताबें आप पढ़ ही रहे थे कि 8-10 साल की उम्र में आपकी दादी का भी इंतेकाल हो गया, उसके बाद आपके बहनोई हज़रत खादिम अली शाह कादरी चिश्ती आपको लखनऊ ले आये और तअलीम का सिलसिला बा दस्तूर जारी रहा, हज़रत खादिम अली शाह हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमतो वर्रिज़वान के शागिर्द थे उन्होंने निहायत दिलजोई से आपको दर्स दिया यही बाद में आपके मुर्शिद भी हुये, कुछ किताबें हज़रत बुलंद शाह कुद्देसु सिर्रहु से भी पढ़ी*_

_*इसमें इख्तिलाफ है कि आपकी तअलीम का नतीजा क्या हुआ बअज़ हज़रात कहते हैं कि आपने फराग़त हासिल की और बअज़ फरमाते हैं कि जोशे इश्क़ ने आप पर ग़लबा किया जिसकी वजह से किताबें छोड़कर आपने 1253 हिजरी में पैदल ही हरमैन शरीफ़ैन जाने का क़सद किया, आपने 3 बार अरब शरीफ का दौरा किया और बार कई कई साल के बाद वापस तशरीफ लाये रिवायत में है कि आपने 7 या 11 हज किये*_

_*आपने कभी निकाह नहीं किया और पहले सफर हज से ही आपने आम लिबास तर्क कर दिया और हमेशा एहराम पोश रहे, ज़र्द रंग की एक बग़ैर सिली हुई लुंगी पहनते और ऊपर उसी की तरह दूसरी लुंगी ओढ़ते और निहायत ही सादगी के साथ रहते*_

_*रिवायत में आता है कि आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक मर्तबा उधर से गुज़र रहे थे तो फरमाया कि चलकर हज़रत से मुलाकात करते हैं, जैसे ही हज़रत वारिस पाक ने आपको आता देखा फौरन अपनी मसनद छोड़कर आपकी तरफ दौड़े और अपने सीने से लगा लिया, अपनी मसनद पर बिठाया पहले तो आलाहज़रत ने इंकार किया तो फरमाते हैं कि तुम तो आलाहज़रत हो मसनद पर तो तुम्ही बैठोगे, नमाज़ का वक़्त हुआ तो हज़रत वारिस पाक ने आलाहज़रत को ही मुसल्ले पर खड़ा किया हज़रत वारिस पाक और तमाम हाज़ेरीन मुक़्तदी बने उसके बाद काफी देर तक दोनों हज़रात पुश्तो ज़बान में गुफ्तुगू करते रहे मगर किसी को कुछ समझ न आया, और आलाहज़रत को रुखसत करने काफी दूर तक तशरीफ लाये*_

_*1323 हिजरी में आपका विसाल हुआ और देवा शरीफ में ही आपका मज़ार जलवा गाहे आम है*_

_*करामत - खुद वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान फरमाते हैं कि एक मर्तबा हज के मौक़े पर मैंने एक बुढ़िया को देखा जो कि गारे सौर में बैठी रो रही थी, मालूम करने पर पता चला कि उसका इकलौता बेटा इंतेक़ाल कर गया मैं गया और उसको सब्र करने की तलकीन की तो कहने लगी हकीम साहब अब इस वीराने में सब्र कहां तलाश करूं और मेरे पास पैसा भी नहीं है कि सब्र खरीद लूं इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरे बेटे को कोई दवा खिलादो ताकि ज़िंदा हो जाये, आपने लड़के के मुंह से कपड़ा हटाया और ठंडा पानी छिड़क दिया उसने फौरन आंख खोल दी मां अपने बेटे से लिपट गयी तो आप वहां से चल पड़े और अपने साथियों से फरमाते हैं कि शायद इसके बेटे को सकता हो गया था*_

_*करामत - एक मर्तबा आपके एक मुरीद मौलवी मुहमम्द यहया साहब वारसी पटना से अपनी बीमार बेटी को छोड़कर आपकी ज़ियारत करने को चले आये, उधर दूसरे ही दिन तार आया कि लड़की का इंतेकाल हो गया है जब हज़रत वारिस पाक को खबर हुई तो उनको बुलाया और फरमाया कि मौलवी साहब परेशान ना हों अक्सर मरीज़ को सकता हो जाता है और तबीब समझता है कि मरीज़ मर गया, उस वक़्त तो हाज़ेरीन को उनकी बात समझ में ना आई कि हज़रत ने परदे में क्या तसर्रुफ फरमाया है मगर तीसरे ही दिन फिर खबर आई कि लड़की 6 घंटे बाद ही ज़िंदा हो गई तब लोगों को आपकी बात का एहसास हुआ*_

_*📕 बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सफह 188-191*_
_*📕 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा, सफह 146*_
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                     _*इसलामी मालूमात*_
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_*शराब पीने, ज़िनाह करने, चोरी करने या जुआ खेलते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना हराम है, और अगर जाएज़ समझे जब तो काफिर है*_

_*📕 फतावा आलमगीरी, जिल्द 2, सफह 286*_

_*ग़ुस्ल या वुजू के बग़ैर या नापाकी की हालत में नमाज़ पढ़ी, तो अगर नमाज़ की तहकीर की नियत है जब तो काफ़िर हो गया वरना हराम तो है ही*_

_*📕 बहारे शरियत, हिस्सा 2, सफ़ह 96*_

_*जो मुस्लमान किसी बातिल फिरके को पसंद करे, वो काफिर है*_

_*📕 अहकामे शरियत, हिस्सा 2, सफ़ह 163*_

_*युंहि जो हंसी मज़ाक मे कुफ़्र बकेगा काफ़िर हो जायेगा*_

_*📕 शामी, जिल्द 3, सफ़ह 293*_

_*कुछ बेबाक जाहिल उनसे जब दाढ़ी रखने को कहो तो "कल्ला सौफ़ा तालमून" पेश करते हैं और कहते हैं देखो क़ुरान मे कल्ला साफ करने को कहा गया है ये क़ुरान की तहरीफ़ है जो कि सरीह कुफ़्र है,*_

_*📕 अन्वारुल हदीस, सफ़ह 90*_

_*📍बग़ैर इल्म के ईमान बचाना ऐसा ही मुश्क्लि है जैसा कि किसी सिपाही का बग़ैर हथियार के जंग में अपनी जान बचाना, लिहाज़ा अपने ईमान की हिफाज़त करना चाहते हों तो इल्मे दीन हासिल करें..!*_
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                  _*पुनर्जन्म की हक़ीक़त*_
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_*हर इन्सान के साथ एक शैतान पैदा होता है जिसका नाम हमज़ाद है जब मुसलमान का इन्तेक़ाल होता है तो रब तआला उसके हमज़ाद को क़ैद कर लेता है लेकिन जब कोई काफ़िर मरता है तो उसके हमज़ाद को क़ैद नही किया जाता यही भूत कहलाता है अब हर शैतान आपस मे एक दूसरे से पूछ रखते हैं ज़िन्दा इन्सान का हमज़ाद किसी मरे हुए शख्स के हमज़ाद से उसकी ज़िन्दगी की सारी मालूमात करता है और फिर ज़िन्दा शख्स के मुंह से वो सारी बातें बोलता है ताकि उन लोगों को गुमराह कर सके और कुछ लोग इसी को पुनर्जन्म या आवा-गवन समझ लेते हैं,*_

_*📕 अलमलफ़ूज़, हिस्सा 3, सफह 28*_

_*पुनर्जन्म एक ग़ैर इसलामी अक़ीदा है*_
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_*काश महशर में जब उनकी आमद हो और*_
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_*किसी भाई का ये सवाल आया है कि क्या आलाहज़रत को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़यामत में आने पर शक है,ऐसा नहीं है सबसे पहले मैं सरकारे आलाहज़रत के नातिया दीवान हिदायके बख्शिश से चन्द कलाम के टुकड़े पेश करता हूं फिर आगे तब्सिरा करता हूं,आप फरमाते हैं*_

_*01. आज ले उनकी पनाह आज मदद मांग उनसे*_
_*फिर ना मानेंगे क़यामत में अगर मान गया*_

_*02. रज़ा पुल से अब वज्द करते गुज़रिये*_
_*कि है रब्बे सल्लिम सदाये मुहम्मद*_

_*03. मुजरिम को बारगाहे अदालत में लाये हैं*_
_*तकता है बेकसी में तेरी राह, ले खबर*_

_*04. नय्यरे हश्र ने एक आग लगा रखी है*_
_*तेज़ है धूप मिले सायये दामां हमको*_

_*05. मुजरिमों को ढूंढ़ती फिरती है रहमत की निगाह*_
_*तालये बरगश्ता तेरी साज़गारी वाह वाह*_

_*06. मैं मुजरिम हूं आक़ा मुझे साथ लेलो*_
_*कि रस्ते में हैं जा बजा थाने वाले*_

_*07. खुदाये क़ह्हार है गज़ब पर खुले हैं बदकारियों के दफ्तर*_
_*बचा लो आकर शफीये महशर तुम्हारा बन्दा अज़ाब में है*_

_*08. अर्शे हक़ है मसनदे रिफअत रसूल अल्लाह की*_
_*देखनी है हश्र में इज़्ज़त रसूल अल्लाह की*_
_*टूट जायेंगे गुनाहगारों के फौरन क़ैदो बन्द*_
_*हश्र को खुल जायेगी ताक़त रसूल अल्लाह की*_

_*09. पेशे हक़ मुज़्दह शफाअत का सुनाते जायेंगे*_
_*आप रोते जायेंगे हमको हसाते जायेंगे*_
_*खाक़ अफ्तादो बस उनके आने ही की देर है*_
_*खुद वो गिरकर सज्दा में हमको उठाते जायेंगे*_

_*10. लो वो आया मेरा हामी मेरा गमख्वार उमम*_
_*आ गई जां तने बेजां में ये आना क्या है*_
_*ये समां देखके महशर में उठे शोर कि वाह*_
_*चशमे बददूर हो, क्या शान है रुत्बा क्या है*_

_*और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है मगर इतना ही ये समझाने के लिए काफी है कि आलाहज़रत को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़यामत में आने पर कोई शक नहीं है, फिर ये काश क्यों, तो इसका जवाब ये है कि कभी कभी बात करने वाला इस तरह बात करता है कि अगर उसको सही से ना समझा जाए माने कुछ का कुछ हो जाता है जैसे किसी ने कहा कि "मैं कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा" ज़ाहिर सी बात है इसका साफ सुथरा माने तो यही है जो कि कहा गया लेकिन अगर उसने उसके बाद ये कह दिया कि "जब तक कि तुम ना बुलाओ" तो अब बताइये कि क्या उसका वही माने अब भी रह जायेगा, नहीं बल्कि पूरी बात ही बदल गयी, अब आईये उस कलाम को समझते हैं, असल में आलाहज़रत की वो बात सिर्फ उस शेअर में ही पूरी नहीं हुई बल्कि बाद का शेअर भी उसी का जुज़ है, पढ़िये*_

_*काश महशर में जब उनकी आमद हो और*_
_*भेजें सब उनकी शौक़त पे लाखों सलाम*_
_*मुझसे खिदमत के क़ुदसी कहें हां रज़ा*_
_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_

_*काश ब मानी हसरत के बोला जाता है मगर आलाहज़रत की ये हसरत हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के आने पर नहीं है क्योंकि वो तो यक़ीनी है बल्कि ये हसरत कुछ और बात की है, शेअर को अब फिर से पढ़िये*_

_*महशर में जब उनकी आमद हो और*_
_*भेजें सब उनकी शौक़त पे लाखों सलाम*_
_*काश* मुझसे खिदमत के क़ुदसी कहें हां रज़ा_
_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_

_*अब इस शेअर का मतलब समझ लीजिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के आने पर तमाम अंबिया फरिश्ते जिन्नो इन्स सब ही आपकी बारगाह में सलाम पेश करेंगे तो आप की तमन्ना ये है कि काश उस वक़्त क़ुदसी यानि फरिश्ते मुझसे खिदमत के यानि मुझसे अर्ज़ करें और कहें कि "ऐ रज़ा वही सलाम सुना दो जो सारी ज़िन्दगी तुम और तुम्हारे ग़ुलाम पढ़ते रहे, कौन सा सलाम, वही*_

_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_
_*शम्ये बज़्मे हिदायत पे लाखों सलाम*_

_*मुल्के सुखन की शाही तुमको रज़ा मुसल्लम*_
_*जिस सिम्त आ गए हो सिक्के बिठा दिए हैं*_
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_*जो लोग कहते  हैं कुरआन की आयात Mobile से Dalete करना कयामत की निशानी है उनके लिए मुख्तसर सा जवाब*_
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_*दोस्तों अमल का दारोमदार नीयत पर है.*_

_*📕 सही बुखारी हदीस नं• 5070*_

_*अगर आप कोई आयात या दीनी मैसेज डिलीट करें तो आपकी नीयत गलत नहीं होनी चाहिऐ*_

                           _*पहली वजह*_

_*दोस्तों कलाम-ए-पाक को ना बदला जा सकता है ना मिटाया जा सकता है, क्योंकि इसकी हिफ़ाजत की जिम्मेदारी खुद अल्लाह ने अपने जिम्मे ली है*_
     
_*📕 सूर: हिज्र 9 पारा 14*_

                           _*दूसरी वजह*_

_*जब हमको मदरसे मे पढ़ाया जाता है तो ब्लैक बोर्ड पर कुरआन की आयतों को लिख कर समझाया जाता है फिर दूसरी आयत लिखने के लिऐ पहली आयत को मिटाया जाता है*_

_*इस हिसाब से मदरसो मे भी लिखना मिटाना होता है*_
_*तो क्या मदरसे भी बन्द कर देने चाहिए*_

                          _*तीसरी वजह*_

_*जब किसी मुसलमान के घर मे कलाम-ए-पाक पुराना जईफ़ ख़स्ता हाल मे होतो आप उसको नदी या कुएँ मे बहाते हैं*_
_*तब तो हम इस तरह भी कलाम-ए-पाक को मिटा रहे हैं*_

                          _*चौथी वजह*_

_*कुछ लोग कहते है कि हर मोबाइल पाक नही होता अच्छी बुरी हर तरह की चीज़ें मोबाइल में रहती हैं इसलिए कुरआन की आयातों को मोबाइल में नहीं रखना चाहिए*_

_*बेशक ये सही बात है मगर यही मसला तो हमारी ज़बान का भी है अपनी ज़बान से हम झूठ ग़ीबत चुगली गाली गलौंच करते है और उसी ज़बान से कुरआन-ए-पाक की तिलावत भी करते हैं*_

_*तो क्या ऐसी हालत मे अपनी गन्दी ज़बान कटवा दें या कुरआन की तिलावत अपनी ज़बान से ना करें दोस्तों ऐसा कहना बेवकूफ़ी है*_

_*भाईयो कुरआन की आयातों को मिटाने का मतलब ये नही कि तुम अपने हाथों से कुरआन लिखोगे और मिटाओगे*_

_*बल्कि कुरआन की आयातों को मिटाने का मतलब ये है कि तुम कुरआन को पढ़ोगे नही या पढ़ोगे भी  तो उसपर अमल नही करोगे*_

_*अल्लाह हम सभी मुसलमान भाईयों को सही समझ अता फरमाऐ और सही गलत की पहचान करने की तौफ़ीक अता फरमाऐ*_
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                   _*शिर्क की 2 किस्म है*_
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_*1. शिर्के अकबर - यानि  अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत करना*_

_*2. शिर्के असगर - यानि  अपने आमाल पर रियाकारी (दिखावा) करना*_

_*📕 अलइत्हाफ, जिल्द 8, सफ़ह 263*_

_*हदीस मे आता है की कुछ लोग मैदान महशर मे अपने नमाज़, रोज़ा, हज, जक़ात व दीगर आमाल के साथ आएंगे मगर जब वो अपने आमाल पेश करेंगे तो मौला कबूल ना फरमायेगा बल्की उनसे कहेगा की तुमने नमाज़ इसलिए पढी की लोग तुमको नमाज़ी कहें रोजे इसलिये रखे की लोग तुम्हें रोज़ेदार कहें हज इसलिये की लोग तुम्हें हाजी कहें इबादते इसलिये की की तुम्हें नेक और परहेज़गार कहें जिनको दिखाने के लिये तुमने ये इबादते की जाकर उसी से अपना अज्र ले लो इस तरह वो बंदा खायाब ओ खासिर हो जाएगा और बिल आखीर जहन्नम मे डाल दीया जायेगा..!*_

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, पेज 104*_

_*मौला से दुआ है की हमको हर तरह की रियाकारी से महफूज रखे-आमिन*_
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...