_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 138)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
_*☝️अक़ीदा : - अस्ले ईमान सिर्फ तस्दीक का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह व रसूल जल्ला व अला सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है उसको दिल से हक़ मानना । आमाल ( यानी नमाज़ , रोज़ा वगैरा ) जुज़्वे ईमान यानी ईमान का हिस्सा नहीं । अब रही बात इकरार की तो अगर तस्दीक के बाद उसको अपना ईमान ज़ाहिर करने का मौका नहीं मिला तो यह अल्लाह के नज़दीक मोमिन है और अगर उसे मौका मिला और उसे इकरार करने को न कहा गया तो अहकामे दुनिया में काफिर समझा जायेगा न उस के जनाज़े की नमाज़ पड़ी जायेगी । और न वह मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफन किया जायेगा । लेकिन अगर उस से इस्लाम के खिालफ कोई बात न जाहिर हो तो वह अल्लाह के नजदीक मोमिन है ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 47*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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