Wednesday, November 13, 2019




  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 176)*_
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             _*👑विलायत का बयान👑*_

_*👁️तम्बीह : - चूंकि आम तौर पर मुसलमानों को अल्लाह के फज्ल और करम से औलिया - ए - किराम से नियाजमन्दी और पीरों के साथ एक खास अकीदत होती है । उन के सिलसिले में दाखिल होने को दीन और दुनिया की भलाई । समझते हैं । इसीलिये इस जमाने के वहाबियों ने लोगों को गुमराह करने कि लिए यह जाल फैला रखा है कि पीरी मुरीदी भी शुरू कर दी । हालांकि यह लोग औलिया के मुन्किर हैं इसीलिए जब किसी का मुरीद होना हो तो खूब अच्छी तरह तहकीक कर लें । नहीं तो अगर कोई बदमजहब हुआ तो ईमान से भी हाथ धो बैठेंगे ।*_

_*ऐ बसा इबलीस आदम रूये हस्त पस ब हर दस्ते न बायद दाद दस्त*_

_*📝तर्जमा : - " होशियार , खबरदार अक्सर इबलीस आदमी की शक्ल में होता है । इसलिये हर ऐरे के हाथ में हाथ नहीं देना चाहिए । " पीरी के लिये शर्त : - पीर के लिए चार शर्ते हैं । बैअत करने और मुरीद होने से पहले उनको ध्यान में रखना फर्ज है ।*_

_*( 1 ) पीर सुम्नी सहीहुल अकीदा हो ।*_
_*( 2 ) पीर इतना इल्म रखता हो कि अपनी जरूरत के मसाइल किताबों से निकाल सके ।*_
_*( 3 ) फासिके मोलिन न हो । यानी खुले आम गुनाहे कबीरा में मुलव्विस न हो जैसे नमाज छोड़ना , गाने बजाने में मशगूल रहना या दाढ़ी मुंडाना वगैरा ।*_
_*( 4 ) उसका सिलसिला हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक मुत्तसिल हो ।*_
_*📝तर्जमा : - " हम दीन दुनिया और आख़िरत में अल्लाह से माफी और आफियत माँगते हैं और पाकीज़ा शरीअत पर इस्तिकामत ( मज़बूती के साथ काइम रहना ) चाहते हैं । और मुझे अल्लाह ही की जानिब से तौफीक है उसी पर मैंने भरोसा किया और उसी की जानिब माइल हुआ और दूरूद नाजिल फरमाये अल्लाह तआला अपने हबीब पर , उन की आल असहाब उनके फर्जन्दों और उनकी जमात पर हमेशा हमेशा , और तमाम तारीफ खास कर अल्लाह को जो तमाम आलम का रब है ।*_

_*फ़कीर अमजद अली आज़मी हिन्दी तर्जमा मुहम्मद अमीनुल कादरी बरेलवी*_

_*📕 बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 71/72*_

_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_

_*📮बहारे शरिअत हिस्सा 1 खत्म हुआ इंशा'अल्लाह अब हिस्सा 2 से पोस्ट शुरुआत करेंगे*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 175)*_
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                 _*👑विलायत का बयान👑*_

_*🌟मसअ्ला : - औलिया से इस्तिमदाद और इस्तिआनत ( मदद चाहना या माँगना ) बेहतर है । यह लोग मदद माँगने वालों की मदद करते हैं उनसे मदद माँगना किसी जाइज़ लफ्ज़ से हो , मुसलमान औलिया को कभी मुस्तकिल फाइल ( करने वाला ) नहीं मानते वहाबियों का फरेब है कि वे मुसलमानों के अच्छे कामों को भोंडी शक्ल में पेश करते हैं और यह वहाबियत का खास्सा हैं । ( कहने का मतलब यह है कि वहाबी जाइज़ अल्फाज़ से मदद को भी शिर्क बताते हैं जबकि जाएज़ तरीके से मदद माँगना जाइज़ और नाजाइज़ तौर पर मदद माँगना गुनाह । हाँ अगर किसी ने मदद करने वाले को अल्लाह का शरीक जाना या यह जाना कि बिना अल्लाह तआला के दिए किसी और से मिला तो ऐसा करने वाला मुश्रिक और काफिर हुआ और मुसलमान ऐसा हरगिज़ नहीं करते ।*_

 _*🌟मसअ्ला : - औलिया के मज़ारात पर हाज़िरी मुसलमानों के लिए नेकी और बरकत का सबब है ।*_

_*🌟मसअ्ला : - अल्लाह के वलियों को दूर और नज़दीक से पुकारना बुजुर्गों का तरीका है ।*_

_*🌟मसअ्ला : - औलियाए किराम अपनी कब्रों में हमेशा रहने वाली ज़िन्दगी के साथ ज़िन्दा हैं । उनके इल्म इदराक ( समझ बूझ ) उनके सुनने और देखने में पहले के मुकाबले में कहीं ज़्यादा तेज़ी है ।*_

 _*🌟मसअ्ला :- औलिया को ईसाले सवाब करना न मुस्तहब चीज़ है और बरकतों का ज़रिया है । उसे आरिफ लोग नज्र व नियाज़ कहते हैं । यह नज़र शरई नहीं जैसे बादशाह को नज़्र देना उन में ख़ास कर ग्यारहवीं शरीफ की फातेहा निहायत बड़ी बरकत की चीज़ है ।*_

_*🌟मसअ्ला : - औलियाए किराम का उर्स यानी कुर्आन शरीफ़ पढ़ना , फातिहा पढ़ना , नात शरीफ पढ़ना , वाज़ , नसीहत और ईसाले सवाब अच्छी चीज़ हैं । रही वह बातें कि उर्स में नासमझ लोग कुछ खुराफातें शामिल कर देते हैं तो इस किस्म की खुराफातें तो हर हाल में बुरी हैं और मुकद्दस मज़ारों के पास तो और भी ज्यादा बुरी हैं ।*_

_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 71*_

_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 174)*_
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                 _*👑विलायत का बयान👑*_

_*🌟मसअ्ला : - कोई कितना ही बड़ा वली क्यों न हो जाये शरीअत के अहकाम की पाबन्दी में छुटकारा नहीं पा सकता । कुछ जाहिल जो यह कहते हैं कि ' शरीअत रास्ता है और रास्ते की जरूरत उनको है जो मक़सद तक न पहुँचे हों हम तो पहुँच गये । हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाह तआला अन्हु ऐसे लोगों के बारे में यह फरमाते हैं कि*_

_*📝तर्जमा : - " वह सच कहते हैं बेशक पहुँचे मगर कहाँ ? जहन्नम को " अलबत्ता अगर मजजूबियत की वजह से अक्ल जाइल हो गई हो जैसे बेहोशी वाला तो उससे शरीअत का कलम उठ जायेगा । मगर यह भी समझ लीजिए कि जो इस किस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी और कभी शरीअत का मुकाबला न करेगा ।*_

_*🌟मसअल : - औलियाए किराम को बहुत बड़ी ताकत दी गई है । उनमें जो असहाबे ख़िदमत हैं उनको तसर्रुफ का इख्तियार दिया जाता है । और स्याह सफेद के मुख्तार बना दिये जाते हैं । औलिया - ए - किराम नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सच्चे नाइब हैं उनको इख्तियारत और तसर्रुफात हुजूर की नियाबत में मिलते हैं । गैब के इल्म उन पर खोल दिये जाते हैं । उनमें से बहुतों को ' माकान व मायकुन ' और लौहे महफूज की खबर दी जाती है । मगर यह सब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वास्ते और देन से है । बगैर रसूल के वास्ते किसी गैरे नबी को किसी गैब की कोई खबर नहीं हो सकती ।*_

 _*☝🏻अकीदा : - औलियाए किराम की करामतें हक हैं । इस हकीकत का इन्कार करने वाला गुमराह है ।*_

_*🌟मसअ्ला : - मुर्दा ज़िन्दा करना , पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को शिफा देना , मशरिक से मगरिब तक सारी जमीन एक कदम में तय करना , गर्ज तमाम ख़वारिके आदात करामतें ( वह बातें जो एक आम आदमी से मुमकिन नहीं यानी आदत के खिलाफ हैं ) औलियाए किराम से मुमकिन हैं । अलबत्ता वह खवारिके आदत जिनकी नबी के अलावा दूसरों के लिए मुमानअत हो चुकी है वलियों के लिए नहीं हासिल होंगी जैसे कुर्आन मजीद की तरह कोई सूरत ले आना या दुनिया में जागते हुए अल्लाह पाक के दीदार या कलामे हकीकी से मुशर्रफ होना । इन बातों का जो अपने या किसी वली के लिए दावा करे वह काफिर है ।*_

_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 70/71*_

_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 173)*_
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                _*👑विलायत का बयान👑*_

 _*विलायत अल्लाह तबारक व तआला से बन्दे के एक खास कुर्ब का नाम है । जो अल्लाह तआला अपने बर्गुज़ीदा बन्दों को अपने फज्ल और करम से अता करता है । इस सिलसिले में - मसले बताये जाते हैं ।*_

 _*🌟मसअला : - विलायत ऐसी चीज़ नहीं कि आदमी बहुत ज्यादा मेहनत करके खुद हासिल कर ले बल्कि विलायत मौला की देन है । अलबत्ता आमाले हसना यानी अच्छे अमल अल्लाह तआला की इस देन के ज़रिये होते हैं । और कुछ लोगों को विलायत पहले ही मिल जाती है । मसअला : - विलायत बे - इल्म को नहीं मिलती । इल्म दो तरह के होते हैं । एक वह जो ज़ाहिरी तौर पर हासिल किया जाये । दूसरे वह उलूम जो विलायत के मरतबे पर पहुँचने से पहले ही अल्लाह तआला उस पर उलूम के दरवाजे खोल दे ।*_

_*☝🏻अकीदा : - तमाम अगले पिछले वलियों में से हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की उम्मत के औलिया सारे वलियों से अफजल हैं । और सरकार की उम्मत के सारे वलियों में अल्लाह की मारिफत और उससे कुरबत चारों खुलफा की सब से ज़्यादा है । और उनमें अफ़ज़लीयत की वही तरतीब है जिस तरतीब से वे खलीफा हैं यानी सब से ज्यादा कुरबत हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु को फ़िर हज़रते फारुके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु को फिर हज़रते उसमान गनी रदियल्लाह तआला अन्हु को और फ़िर मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को है । हज़रते अली की विलायत के कमालात मुसल्लम हैं इसीलिए उनके बाद सारे वलियों ने उन्हीं के घर से नेमत पाई । उन्हीं के मुहताज थे , हैं और रहेंगे ।*_

 _*☝🏻अक़ीदा : - तरीक़त शरीअत के मनाफ़ी नहीं है बल्कि तरीकत शरीअत का बातिनी हिस्सा है । कुछ जाहिल और बने हुए सूफी , जो यह कह दिया करते हैं कि तरीकत और है शरीअत और है यह महज़ गुमराही है और इस बातिल ख्याल की वजह से अपने आप को शरीअत से ज़्यादा समझना खुला हुआ कुफ्र और इलहाद है ।*_

_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 70*_

_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 172)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

_*☝🏻अकीदा : - यज़ीद पलीद फासिक फाज़िर और गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब था । आजकल कुछ गुमराह लोग यह कह देते हैं कि हमारा उनके . मामले में क्या दखल । हमारे वह भी शहज़ादे और इमाम हुसैन भी शहज़ादे । भला इमामे हुसैन से यज़ीद की क्या निस्बत । ऐसी बकवास करने वाला मरदूद है , खारिजी है और जहन्नम का मुस्तहिक है । हाँ यज़ीद को काफिर कहने और उस पर लानत करने के बारे में उलमाए अहले सुन्नत के तीन कौल हैं । और हमारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का मसलक ख़ामोशी है यानी हम यज़ीद को फ़ासिक फाजिर कहने के सिवा न काफिर कहें न मुसलमान ।*_

_*☝🏻अकीदा : - अहले बैते किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम अहले सुन्नत के पेशवा हैं जो उनसे महब्बत न रखे मरदूद , मलऊन और खारिजी है ।*_

_*☝🏻अकीदा : - उम्मल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा , उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दीका और हजरत सय्यदा फातिमा जहरा रदियल्लाहु तआला अन्हा कतई जन्नती हैं । उन्हें और तमाम लड़कियों और पाक बीवियों ( रदियल्लह तआला अन्हुन्ना ) को तमाम सहाबियात पर फजीलत है । यहाँ तक कि उनकी पाकी की गवाही कुर्आन ने दी है ।*_

_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 69*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 171)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

_*☝️अकीदा : - हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा कतई जन्नती हैं और आख़िरत में भी यकीनी तौर पर महबूबे खुदा की महबूब दुल्हन हैं जो उन्हें तकलीफ दे वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ईज़ा देता है और हज़रते तल्हा और हज़रते जुबैर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा तो अशरा मुबश्शिरा में से हैं । इन साहिबों से हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुकाबले की वजह से खताए इजतेहादी वाके हुई मगर यह लोग आखिर कार उनकी मुखालफ़त और मकाबले से बाज़ आगये थे और रुजू कर लिया था । शरीअत में मुतलक बगावत तो इमामे बरहक से मुकाबले को कहते हैं । यह मुकाबला चाहे ' इनादी हो या ' इजतेहादी लेकिन इन हज़रात के रुजू कर लेने यानी बगावत से फिर जाने की वजह से उन्हें बागी नहीं कहा जा सकता वह बेशक जन्नती हैं । हजरते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु के गिरोह को शरीअत के एतिबार से बागी लश्कर कहा जाता था मगर अब जबकि बागी का मतलब मुफसिद और सरकश हो गया है और यह अल्फाज गाली समझा जाने लगा है इसलिये अब किसी सहाबी के लिये बागी का अल्फाज़ इस्तेमाल किया जाना जाइज़ नहीं ।*_

 _*☝️अकीदा : - उम्मुल मोमिनीन आइशा सिददीका रदियल्लाहु तआला अन्हा रब्बुल आलमीन के महबूब की महबूबा हैं । उन पर इफ्क से अपनी ज़बान गन्दी करने वाला यकीनी तौर पर काफ़िर मुरतद है । और इसके सिवा और तअ्न करने वाला राफिजी तबर्राई , बद्दीन और जहन्नमी है ।*_

_*☝️अकीदा : - हजरते इमामे हसनैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा यकीनी तौर पर ऊँचे दर्जे के शहीदों में से हैं । उनमें से किसी की शहादत का इन्कार करने वाला गुमराह और बद्दीन है ।*_

_*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 69*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 170)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

_*🌟मसअ्ला : - कुछ जाहिल यह कहते हैं कि जब हज़रते अली के साथ हज़रते अमीरे मुआविया की नाम लिया जाये तो ' रदियल्लाहु तआला अन्हु न कहा जाये । इसकी कोई अस्ल नहीं और ऐसा अकीदा बिल्कुल बातिल और नई शरीअत गढ़ना है । उलमाए किराम ने सहाबा के नामों के साथ रदियल्लाहु तआला अन्हु कहने का हुक्म दिया है ।*_

 _*☝️अकीदा : - नुबुव्वत के तरीके पर तीस साल तक खिलाफत रही और हज़रते इमामे मुजतबा रदियल्लाहु तआला अन्हु को 6 महीने की खिलाफत पर खत्म हो गई । फिर अमीरूल मोमिनीन उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफते राशिदा हुई और आखिर जमाने में हज़रते इमाम महदी रदियल्लाहु तआला अन्हु खलीफा होंगे । और हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाह तआला अन्हु इस्लामी तारीख के सब से पहले सुलतान हैं । तौराते मुकद्दस का इशारा है कि*_
 
_*📝तर्जमा : - " हुजूर अलैहिस्सलाम मक्के में पैदा होंगे मदीने को हिज़रत करेगे और उनकी सलतनत शाम में होगी ।*_
                     _*" हज़रते अमीरे मुआविया की बादशाही अगर्चे सलतनत है मगर किस की हकीकत में हज़रते मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सलतनत है क्यूँकि हज़रते इमामे हसन मुजतबा रदियल्लाहु तआला अन्हु एक बार जंग के मैदान में थे और उनपर जान फिदा करने वाला बहुत  बड़ा लशकर या इस के बावुजूद हज़रते इमामे हसन रदियल्लहु तआला अन्हु ने जान बूझ कर हथियार रख दिये और हज़रते अमीर मुआविया के हाथों पर ' बैअत ' फरमा ली । हुजूर अलैहिस्सलाम ने इस सुलह की बशारत दी है और खुशी में इमामे हसन के बारे में यह फरमाया है कि।*_

 _*📝तर्जमा : - मेरा यह बेटा सय्यद है । मैं उम्मीद करता हूँ कि अल्लाह तआला इसकी वजह से इस्लान के दो बड़े गिरोहों में सुलह करा दे " ।*_
                 
  _*इसके बाद भी अगर कोई हज़रते अमीरे मुआविया पर फासिक फ़ाज़िर होने का इलजाम लगाये तो उसका इल्जाम लगाना और तअना कसना हज़रते इमामे हसन , हुजूर अलैहिस्सलाम बाल्कि  अल्ल्लाह तआला पर होगा।*_

_📕*बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 67/68*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 169)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

_*☝️अकीदा : - सहाबा नबी न थे । फरिश्ते न थे किं मासूम हों । उनमें कुछ के लिए लग़ज़िशें हुई मगर उनकी किसी बात पर गिरफ्त करना अल्लाह और रसूल के ख़िलाफ़ है । अल्लाह तआला ने जहाँ सूरए हदीद में सहाबा की दो किस्में की हैं । यानी फतहे मक्का से पहले के मोमिन और फतहे मक्का के बाद के मोमिन और उनको उन पर फजीलत दी और फरमा दिया कि*_

_*📝तर्जमा : - " सब से अल्लाह ने भलाई का वादा फरमा लिया । " और साथ ही यह भी फरमाया कि*_

_*📝तर्जमा : - " और अल्लाह खुब जानता है जो कुछ तुम काम करोगे ।*_

_*तो जब उसने उनके तमाम आमाल जानकर हुक्म फरमा दिया कि उन सब से हम जन्नत का बे अजाब व करामत और सवाब का वादा कर चुके तो दूसरे को क्या हक रहा कि उनकी किसी बात  पर तअन करे । क्या तअन करने वाला अल्लाह से अलग कोई मुस्तकिल हुकूमत काइम करना चाहता है ?*_

_*☝️अकीदा : - हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु मुजतहिद थे उनके मुजतहिद होने के बारे में हजरते अब्दुल्लाह इने अब्बास रदिल्लाहु तआला अन्हुमा ने सहीह बुखारी में बयान फ़रमाया है मुजतहिद से सवाब और खता दोनों सादिर होती हैं । इस बारे में खता की दो किस्में है । खताए ' इनादी ' यह मुजतहिद की शान नहीं । खताए ' इजतेहादी ' यह मुजतहिद से होती है और उसमें उस पर अल्लाह के नजदीक हरगिज़ कोई पकर नहीं । मगर अहकामे दुनिया में खता की दो किस्में हैं । खताए ' मुकर्रर उसके करने वाले पर इन्कार न होगा यह वह खताए इजतेहादी है जिससे दीन में कोई फितना नही होता हो । जैसे हमारे नजदीक मुकतदी का इमाम के पीछे सूरए फातिहा पढ़ना । दूसरी खताए ' मुन्कर ' यह वह खताए इजतेहादी है जिसके करने वाले पर इन्कार किया जायेगा कि उसकी खता फितने का सबब है । हज़रते अमीर मुआविया का हजरते अली से इख्तेलाफ इस किस्म की खता का था । और हुजूर अलैहिस्सलाम ने जो खुद फैसला फरमाया है कि मौला अली की डिगरी और अमीरे मुआविया की मगफिरत ।*_

_*📕बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 67/68*_

_*बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 168)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

 _*☝️अकीदा : - किसी सहाबी के साथ बुरा अकीदा रखना बद्जहबी और गुमराही है । अगर कोई बुरी अकीदत रखे तो वह जहन्नम का मुस्ताहक है । क्यूँकि इनसे बुरी अकीदत रखना नबी अलैस्सिलाम के साथ बुग़ज़ है । ऐसा आदमी राफिजी है अगरचे चारों खुलफा को माने और अपने आपको सुन्नी कहे ।  हजरते अमीर मुआविया , उनके वालिदे माजिद हज़रते अबू सुफयान , उनकी वालिदा हज़रते हिन्दा हजरते सय्यदना अम्र इब्ने आस व हजरते मुगीरा इने शोअ्बा हज़रते अबू मूसा अशअरी यहाँ तक कि हजरते वहशी रदियल्लाहु तआला अन्हुम में से किसी की शान में गुस्ताखी तबर्रा है ।*_
                     
                      _*हज़रते वहशी वह हैं जिन्होंने इस्लाम से पहले सय्यदुश्शुहदा हजरते हमज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद किया और इस्लाम लाने के बाद बहुत बड़े ख़बीस मुसैलमा कज्जाब को जहन्नम के घाट उतारा  वह खुद कहा करते थे मैंने बहुत अच्छे इन्सान को और बहुत बुरे इन्सान को क़त्ल किया । और सहाबियों की शान में बेअदबी और गुस्ताखी करने वाला ' राफ़िज़ी है । अब रही बात हज़रतें अबू बक्र और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की तौहीन तो यह उनकी खिलाफत से ही इन्कार है और फुकहा के नज़दीक इनकी तौहीन या इनकी खिलाफत से इन्कार कुफ्र है ।*_

_*☝️अकीदा : - सहाबी का मर्तबा यह है कि कोई वली किसी मर्तबे का हो किसी सहाबी के रुतबे को नहीं पहुँच सकता । मसअला : - सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम के आपसी जो वाकिआत हुये उनमें पड़ना हराम और सख्त हराम है । मुसलमानों को तो यह देखना चाहिए कि वह सब आकाये दो जहाँ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर जान निसार करने वाले और सच्चे गुलाम हैं ।*_

 _*☝️अकीदा : - तमाम सहाबए किराम आला और अदना ( और उनमें अदना कोई नहीं ) कुर्आन के इरशाद के मुताबिक़ सब जन्नती हैं । वह जहन्नम की भनक न सुनेंगे और हमेशा अपनी मनमानी मुरादों में रहेंगे । महशर की वह बड़ी घबराहट उन्हें गमगीन न करेगी । फ़रिश्ते उनका इस्तिकबाल करेंगे कि यह है वह दिन जिसका तुम से वादा था ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 67*_

_*बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 167)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

_*☝️अकीदा : - उनकी खिलाफत बर तरतीबे फजीलत है यानी जो अल्लाह के नज़दीक अफजल , आला . और अकरम था वही पहले खिलाफत पाता गया न कि अफ़ज़लीयत बर तरतीबे खिलाफ़त यानी अफ़ज़ल यह कि मुल्कदारी व मुल्क गीरी में ज्यादा सलीका । जैसा कि आजकल सुन्नी बनने वाले तफज़ीलिये कहते हैं । अगर यूँ होता तो हज़रते फारूक आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु सबसे अफजल होते क्यूँकि उनकी खिलाफ़त को यह कहा गया है कि ।*_

 _*📝तर्जमा : - " मैंने किसी मर्दे कवी को उनकी तरह अमल करते हुए नहीं देखा यहाँ तक कि लोग सैराब हो गये और पानी से करीब ऊँट बैठाने की जगह बनाई " ।*_
                 _*और हज़रते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु की ख़िलाफ़त को इस तरह फरमाया गया कि ।*_

_*📝तर्जमा : - " उनके पानी निकालने में कमजोरी रही अल्लाह तआला उनको बख़्शे ' ।*_
                     _*यह हदीस इस तरह है कि हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सुना कि उन्होंने फरमाया कि मैंने ख्वाब में कुएँ पर एक डोल रखा देखा तो मैंने उससे जितना अल्लाह तआला ने चाहा पानी निकाला फिर हजरते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने वह डोल लिया । उन्होंने एक या दो भरे डोल निकाले । उनके निकालने में कमजोरी रही ।*_

 _*☝️अकीदा : - चारों खुलफाए राशिदीन के बाद बकीया अशरह मुबश्शेरह और हज़राते हसनैन और असहाबे बद्र और असहाबे बैअतुर्रिजवान के लिए अफजलियत है । और यह सब कतई जन्नती हैं । और तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम अहले खैर और आदिल हैं । उनका भलाई के साथ ही जिक्र होना फर्ज है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 66*_

_*बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 166)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

 _*☝️अक़ीदा : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद ख़लीफ़ा बरहक और इमामे मुतलक हज़रते अबू बक्र सिद्दीक फिर हज़रते उमर फारूक फिर हज़रते उसमाने गनी फिर हजरते अली 6 महीने के लिये हज़रते इमाम हसन रदियल्लाहु तआला अन्हुम खलीफा हुए । इन बुजूर्गों को खुलफाये राशिदीन और उनकी खिलाफ़त को खिलाफते राशिदा कहते हैं । इन नाइबों ने हुजूर की सच्ची नियाबत का पूरा पूरा हक अदा फरमाया है ।*_

 _*☝️अकीदा : - नबियों और रसूलों के बाद हज़रते अबू बक्र इन्सान , जिन्नात , फरिश्ते और अल्लाह तआल । की हर मखलूक से अफजल हैं फिर हज़रते उमर फिर हज़रते उसमान गनी और फिर हज़रते अली रादयल्लाहु तआला अन्हुम जो आदमी मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को पहले या दूसरे खलीफा से अफजल बताये वह गुमराह और बद मजहब है ।*_

_*☝️अकीदा : - अफ़जल का मतलब यह है कि अल्लाह तआला के यहाँ ज्यादा इज्जत वाला हो । इसी को कसरते से सवाब भी ताबीर करते हैं न कि कसरते अज़्र कि बारहा मफजूल के लिए होती है । सय्यदना हज़रते इमाम महदी के साथियों के लिए हदीस शरीफ में यह आया है कि उनके एक के लिये पचास का अज़्र है । सहाबा ने हुजूर से पूछा उन में के पचास का या हम में के । फरमाया बल्कि तुममें के । तो अज्र उनका ज़ाइद हुआ मगर अफजलीयत में वह सहाबा के हमसर भी नहीं हो सकते ज़्यादा होना तो दर किनार । कहाँ इमाम महदी की रिफाकत कहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सहाबियत उसकी मिसाल बिना तश्बीह यूँ समझिये कि सुलतान ने किसी मुहिम पर वज़ीर और कुछ दूसरे अफसरों को भेजा उसकी फतह पर हर अफ़सर को लाख लाख रुपये इनाम के दिये और वज़ीर को खाली उसके मिज़ाज की खुशी के लिए एक पर्वाना दिया तो इनाम दूसरे अफसरों को ज्यादा मिला लेकिन इस इनाम को उस परवाने से कोई निसबत नहीं ।*_
       
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 65/66*_

_*बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 165)*_
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                 _*🕌इमामत का बयान👑*_

 _*🕌इमामत की दो किस्मे है👑 ।*_

 _*🕌1 . इमामते सुग़रा : - नमाज़ की इमामत का नाम इमामते सुग़रा है ।*_

_*👑2 इमामते कुबरा : - नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नियाबत यानी काइम मकाम काम करने को इमामते कुबरा कहते हैं । इस तरह कि इमामों से मुसलमानों की तमाम दीनी और दुनियावी ज़रूरतें वाबस्ता हैं । इमाम जो भी अच्छे कामों का हुक्म दें उनकी पैरवी तमाम दुनिया के मुसलमानों पर फर्ज है । इमाम के लिए आज़ाद आकिल , बालिग कादिर और करशी होना शर्त है ।*_
     
                _*⚫राफिजी लोगों का मज़हब यह है कि इमाम के लिये हाशिमी , अलवी और मासूम होना शर्त है । इससे उनका मकसद यह है कि तीनों ख़लीफ़ा जो हक पर हैं उनको खिलाफ़त से अलग करना चाहते हैं । जब कि तमाम सहाबए किराम और हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हुम और हजरते इमाम हसन और हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लहु तआला अन्हुमा ने पहला खलीफा हज़रते अबू बक्र दूसरे खलीफा हजरते उमर तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हुम को माना है । राफिजी मजहब में इमाम की शर्तों में से एक शर्त जो अलवी होने की बढ़ाई गई है उससे हजरत अली भी इमाम नहीं , हो सकते क्यूँकि अलवी उसे कहेंगे जो हज़रते अली की औलाद में से हो । राफिजी मज़हब में इमाम की शर्तों में एक शर्त इमाम का मासूम होना भी है जबकि मासूम होना अम्बिया और फरिश्तों के लिए खास है ।*_

_*🌟मसअ्ला : - इमाम होने के लिए यही काफी नहीं कि खाली इमामत का मुस्तहक हो बल्कि उसे दीनी इन्तिज़ाम कार लोगों ने या पिछले इमाम ने मुकर्रर किया हो ।*_

_*🌟मसअ्ला : - इमाम की पैरवी हर मुसलमान पर फर्ज़ है जबकि उसका हुक्म शरीअत के खिलाफ न हो । बल्कि शरीअत के खिलाफ किसी का भी हुक्म नहीं माना जा सकता ।*_

_*🌟मसअ्ला : - इमाम ऐसा शख्स मुकर्रर किया जाए जो आलिम हो या आलिमों की मदद से काम करे और बहादुर हो ताकि हक बात कहने में उसे कोई खौफ न हो ।*_

_*🌟मसअ्ला : - इमामत औरत और नाबालिग की जाइज़ नहीं । अगर पहले इमाम ने नाबालिग को इमाम मुकर्रर कर दिया हो तो उसके बालिग होने के लिए लोग एक वली मुकर्रर करें कि वह शरीअत के अहकाम जारी करे और यह नाबालिग इमाम सिर्फ रस्मी होगा और हकीकत में वह उस वक़्त तक इमाम का वाली है ।*_
       
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 65*_

_*बाकी अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 164)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_

_*ज़रूरी तम्बीह*_

_*📝तर्जमा : - और नहीं है कोई ताकत और कुव्वत मगर अल्लाह की तरफ़ से ।*_

_*मुख़्तसर यूँ समझिए कि बिदअत दो तरह की हुई एक अच्छी और दूसरी बुरी । बुरी बिदअत तो बहरहाल बुरी है और अगर कोई अच्छी नर्ह बात यानी अच्छी नई बिदअत निकाली जाए तो वह हर्गिज़ बुरी नहीं । बहुत साफ़ मिसाल इसकी यह है कि कुर्आन पाक हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दौर में कागज़ पर यूँ लिखा न था तो क्या कुर्आन का काग़ज़ पर लिखना बिदअत या नया काम कह के हराम करार दिया जाएगा हर्गिज़ नहीं ।*_

      ‌‌               _*इसी तरह बहुत से नए जाएज काम ऐसे हैं जिन्हें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नहीं किया मगर बुजुर्गों ने उन्हें अच्छा जान कर शुरू किया । लिहाजा वह अच्छे काम बिदअत नहीं हैं बल्कि अच्छे हैं । यूँ भी शरीअत ने जिस काम का न तो हुक्म दिया न उसे मना किया उसे मुबाह कहते हैं और मुबाह के करने पर न  गुनाह है न सवाब । हाँ अगर नियत अच्छी है तो सवाब और नियत अच्छी नहीं तो गुनाह होगा । लिहाज़ा हर नया काम बुरी बिदअत न हुई ।*_
             
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 163)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_

_*ज़रूरी तम्बीह*_

                _*वहाबियों के यहाँ बिदअत का बहुत चर्चा है । जिस चीज़ को देखिये बिदअत है । इसलिये मुनासिब यह है कि बता दिया जाये कि बिदअत किसे कहते हैं । बिदअते मज़मूमा व कबीहा यानी ख़राब ' बिदअत वह है जो किसी सुन्नत के मुखालिफ हो और सुन्नत से टकराती हो और यह मकरूह या हराम है । और मुतलक बिदअत तो मुस्तहब बल्कि सुन्नत और वाजिब तक होती है । हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु तरावीह के बारे में*_

 _*📝( तर्जमा : - यह अच्छी बिदअत है । )*_

                 _*फरमाते है कि  हालाँकि तरावीह सुन्नते मुअक्कदा है । जिस चीज़ की अस्ल शरीअत से साबित हो वह हरगिज़ बुरी बिदअत नहीं हो सकती । नहीं तो खुद वहाबियों के मदरसे और इस मौजूदा खास सूरत में उनके वाज़ के जलसे ज़रूर बिदअत होंगे । फिर यह वहाबी इन बिदअतों को क्यूँ नहीं छोड़ देते । मगर उनके यहाँ तो यह ठहरी है कि अल्लाह के महबूबों की अज़मत की जितनी चीजें हैं सब बिदअत और जिसमें उनका मतलब हो वह हलाल और सुन्नत ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 162)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_

 _*यह भी वहाबियत की एक शाख़ है । वह चन्द बातें जो हाल में वहाबियों ने अल्लाह तआला और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी के तौर पर बकी हैं वह गैर मुकल्लिदीन से साबित नहीं । बाकी दूसरे तमाम अकीदों में दोनों शरीक हैं । और हाल के देवबन्दियों की इबारतों को देख भाल और जान बूझ कर उन्हें काफिर तसलीम नहीं करते और शरीअत का हुक्म है कि जो अल्लाह और रसूल की शान में गुस्ताखी करने वालों के काफिर होने में शक करे वह भी काफ़िर है । गैर मुकल्लिदों का एक बुरा अकीदा यह है कि वह चारों मज़हबों*_
_*( 1 ) हनफी*_
 _*( 2 ) शफिई*_
 _*( 3 ) मालिक*_
 _*( 4 ) हम्बली*_
 _*से अलग और तमाम मुसलमानों से अलग थलग एक रास्ता निकाल कर तकलीद को हराम और बिदअ़त कहते हैं और दीन के इमामों जैसे*_
 _*इमामे आज़म अबू हनीफा*_
_*इमामे शाफिई*_
 _*इमामे मालिक*_
_*इमामे अहमद इब्ने हम्बल*_
 _*को बुरा भला कहते हैं । यह लोग इमामों की तकलीद ( पैरवी नहीं करते बल्कि शैतान की करते हैं । गैर मुकल्लिदीन ' तकलीद ' और ' कियास ' का इन्कार करते है । जब कि मुतलक तकलीद और कियास का इन्कार कुफ्र है । इसलिये गैर मुकल्लिदीन का मजहब बातिल है ।*_

_*नोट : - फरअ् में अस्ल की तरह हुक्म को साबित करने को कियास कहते हैं । कियास कुर्आन और हदीस से साबित है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 161)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

_*15 . 📕हिफजुल ईमान सफा न . 7 में है*_
                _*हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म के बारे में यह तकरीर की कि : " आप की जाते मुकद्दसा पर इल्मे गैब का हुक्म किया जाना अगर ब कौले जैद सही हो तो दरयाफ्त तलब यह अम्र है कि इस गैब से मुराद बाज़ ( कुछ ) गैब हैं या कुल गैब ? अगर बाज उलूमे गैबिया मुराद हैं तो इसमें हुजूर की क्या तखसीस ( खसूसियत ) है ? ऐसा इल्मे गैब तो जैद व अम्र बल्कि हर सबी ( बच्चे ) व मजनून ( पागल ) बल्कि जमीअ ( तमाम ) हैवानात  व बहाइम ( चौपाया ) के लिये भी हासिल है ।*_
          _*" मुसलमानों ! गौर करो कि इस शख्स ने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में कैसी खुली हुई गुस्ताखी की कि हुजूर जैसा इल्म जैद व अम्र तो दर किनार हर बच्चे और पागल बल्कि तमाम जानवरों और , चौपार्यों के लिए हासिल होना कहा । क्या कोई भी ईमान वाला दिल ऐसे के काफिर होने में शक कर सकता है ? हरगिज़ नहीं ।*_
          _*इस कौम का यह आम तरीका है कि जिस चीज़ को अल्लाह और रसूल ने मना नहीं किया बल्कि कुर्आन और हदीस से उसका जाइज होना साबित है उसको नाजाइज़ कहना तो दर किनार उस पर शिर्क और बिदअत का हुक्म लगा देते हैं जैसे मीलाद शरीफ की मजलिस , कियाम , ईसाले सवाब , कब्रों की जियारत , बारगाहे बेकस पनाह सरकारे मदीना तय्यबा व औलिया की रूहों से इस्तिमदाद ( मदद चाहना ) और मुसीबत के वक़्त नबियों और वलियों को पुकारना वगैरा बल कि मीलाद शरीफ के बारे में तो ऐसा नापाक लफ्ज़ लिखा है कि ऐसे नापाक अलफ़ाज़ रसूल के दुश्मन के अलावा कोई मोमिन नहीं लिख सकता । वह अलफ़ाज़ यह हैं ।*_

_*16 . 📕बराहीने कातिआ सफा न . 148 में हैं ।*_
                 _*" पस यह हर रोज़ इआदा ( दोहराना ) विलादत का तो मिस्ल हुनूद ( हिन्दूओं ) के कि स्वांग कन्हय्या की विलादत का हर साल कहते हैं या मिस्ल रवाफ़िज़ के कि नक्ल शहादते अहले बैत हर साल मनाते हैं । मआज़ल्लाह स्वांग आपकी विलादत का ठहरा और खुद हरकते कबीहा काबिले लौम व हराम व फिस्क है । बल्कि यह लोग उस कौम से बढ़ कर हुए । वह तो तारीख मुअय्यन पर करते है । इनके यहाँ कोई कैद ही नहीं । जब चाहें यह खुराफातें फर्जी बनाते हैं ।*_
                  _*" वहाबियों की और भी बहुत गन्दी गन्दी इबारते हैं जो दूसरी किताबों में देखी जा सकती हैं ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 160)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

_*14 . इस गिरोह का आम तरीका यह है कि जिस चीज़ में अल्लाह के महबूबों की फजीलत जाहिर हो तो उसे तरह तरह की झूटी तावीलों से बातिल करना चाहेंगे हर वह बात साबित करना चाहेंगे जिस में तनकीस और खोट हो जैसे :-*_

 _*📕बराहीने कातेआ सफा न . 51 में है कि - " नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं " । और इसको शैख़ मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की तरफ गलत मनसूब कर दिया । बल्कि उसी सफे पर नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वुसअते इल्म की बाबत यहाँ तक लिख दिया कि*_
               _*अल हासिल गौर करना चाहिए कि शैतान कि व मलकुल मौत का हाल देख कर इल्मे मुहीते जमीन का फखरे आलम को ख़िलाफे नुसूसे कतईया के बिला दलील ' महज़ कियासे फ़ासिदा से साबित करना शिर्क नहीं तो कौन सा हिस्सा ईमान का है । शैतान व मलकुल मौत को यह बुसअत नस से साबित हुई फखरे आलम की वुसअते इल्म की कौन सी नस्से कतई है जिस से तमाम नुसूस को रद कर के एक शिर्क साबित करता है शिर्क नहीं तो कौनसा हिस्सा ईमान का है ।*_
         _*हर मुसलमान अपने ईमान की आँखों से देखें कि इस काइल ने इबलीसे लईन के इल्म का नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म से ज्यादा बताया या नहीं ? और शैतान को खुदा का शरीक माना या नहीं ? हर ईमान वाला यही कहेगा कि जरूर बताया और जरूर माना । फिर इस शिर्क को नस से साबित किया । यहाँ तीनों बातें सरीह कुफ्र और इनका कहने वाला यकीनी तौर पर काफिर है । कौन मुसलमन उसके काफिर होने में शक करेगा ?*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 62/63*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 159)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

 _*गाह बाशद कि कोदके नादाँ ब गलत बर हदफ जनद तीरे*_

 _*📝तर्जमा : - " कभी ऐसा होता है कि नादान बच्चा गलती से निशाने पर कोई तीर मार देता है ।*_

_*" " हाँ बादे वुजूहे हक ( हक की वज़ाहत के बाद ) अगर फकत इस वजह से कि यह बात मैंने कही और वह अगले कह गये थे मेरी न माने और वह पुरानी बात गाये जायें तो कतए नज़र इसके कि कानून महब्बते नबवी सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से यह बात बहुत बईद है । वैसे भी अपनी अक्ल व फहम की खूबी पर गवाही देनी है " ।*_
             _*यहीं से ज़ाहिर हो गया कि जो मअनी उसने तराशे सलफ में कहीं उसका पता नहीं और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने से आज तक जो सब समझे हुए थे उसको अवाम को ख्याल बता कर रद कर दिया कि इसमें कुछ फजीलत नहीं । इस कहने वाले पर उलमाये हरमैन तय्यबैन ने जो फ़तवे दिये वह ' हुसामुल हरमैन ' के देखने से ज़ाहिर हैं । और उसने खुद भी उसी किताब में सफा 46 में अपना इस्लाम बराये नाम तसलीम किया ।*_
                _*मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी ' इन नाम के मुसलमानों से अल्लाह बचाये ।*_

 _*📕12 . ' तहज़ीरुन्नास ' सफा न . 5 पर है कि : -" अम्बिया अपनी उम्मत से मुमताज़ होते हैं तो उलूम ही में मुमताज़ होते हैं बाकी रहा अमल उसमें बसा औकात बजाहिर उम्मती मसावी ( बराबर हो जाते हैं बल्कि बढ़ जाते हैं "*_

 _*13 . और सुनिये इन काइल साहब ने हुजूर की नुबुव्वत को कदीम और दूसरे नबियों की नुबुव्वत को हादिस बताया जैसा कि सफा न . 7 पर है । " क्यूँकि फ़रके किदमे नुबव्वत और हुदूसे नुबुव्वत बावुजूद इत्तेहादे नौई खूब जब ही चसपाँ हो सकता है । क्या जात व सिफ़ाते बारी के सिवा . मुसलमानों के नज़दीक कोई और चीज़ भी कदीम है । नबुव्वत सिफत है और बिना मौसूफ के सिंफ़त का पाया जाना मुहाल है । जब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी ज़रूर हादिस न हुए बल्कि अजली ठहरे और जो अल्लाह और अल्लाह की सिफ़तों के सिवा को कदीम माने . ब इजमाये मुसलिमीन काफ़िर है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 61/62*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 158)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

 _*📕( 10 ) तक़वीयतुल ईमान सफा 22 में है कि*_

 _*" जिसका नाम मुहम्मद या अली है वह किसी चीज़ का मुख्तार नहीं ' । तअज्जुब है कि वहाबी साहब तो अपने घर की तमाम चीजों का इख्तियार रखें और मालिके हर दोसरा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसी चीज के मुख्तार न हों । इस गिरोह का एक मशहूर अकीदा यह है कि अल्लाह तआला झूठ बोल सकता है बल्कि उनके एक सरगना ने तो अपने एक फतवे में लिख दिया कि : ' वुकूए किज्य के माना दुरुस्त हो गये जो यह कहे कि अल्लाह तआला झूठ बोल चुका ऐसे की तजलील ( जलील करना ) और तफसीक ( फासिक कहने ) से मामून करने चाहिये ।*_
‌‌                  _*सुबहानल्लाह खुदा को झूठा माना फिर भी इस्लाम , सुन्नियत , और सलाह किसी बात में फर्क न आया । मालूम नहीं इन लोगों ने किस चीज़ को खुदा ठहरा लिया है ।"*_
                    _*एक अकीदा उनका यह है कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ' खातमुन्नबीय्यीन ' व माना आखिररुल अम्बिया नहीं मानते और यह सरीह कुफ्र है ।*_

 _*📕( 11 ) चुनाँचे तहजीरुन्नास सफा न . 2 में है कि*_

_*अवाम के ख्याल में तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम का खातम होना बई माना है कि अपको जमाना अम्बियायए साबिक के बाद और आप सब में आखिर नबी हैं मगर अहले फहम पर रौशन होगा कि तकदुम या तअख्खुर बिज्जात कुछ फजीलत नहीं । फिर मकामे मदह में यह फरमाना*_

 _*📝तर्जमा - " हाँ अल्लाह के रसूल हैं और सब नबियों में पिछले हैं ।*_

 _*" . . इस सूरत में क्यों कर सही हो सकता है ? हाँ अगर इस वस्फ को औसाफे मदह में से न कहे और इस मकाम को . मकामे , मदह न करार दीजिये तो अलबत्ता खातिमीयत ब एअतेबारे तअख्खुरे जमाना सहीह हो सकती है । पहले तो इस काइल ने खातमुन्नबीय्यीन के मथुनी तमाम अम्बिया से जमाने के एतिबार से मुतअख्खर होने को अवाम का ख्याल कहा और यह कहा कि अहले फहम पर रौशन है कि इसमें बिज्जात कुछ फजीलत नहीं हालाँकि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खातमुन्नबीय्यीन के यही मअ्ना कसरत से हदीसों में इरशाद फरमाये तो मआजल्लाह इस काइल ने तो हुजूर को अवाम में दाखिल किया और अहले फहम से खारिज किया । फिर खत्मे जमानी को मुतलकन फजीलत से खारिज किया हालाँकि इसी तअख्खुरे जमानी को हुजूर ने मकामे मदह में जिक्र फरमाया फिर यह कि*_

_*📕तहजीरुन्नास सफा न . 4 में लिखा कि - "*_
_*आप मौसूफ ब वस्फे नुबुब्बत बिज्जात हैं और सिवा आप के और नबी मौसूफ ब वस्फ नुबुव्वत बिल अर्ज " तहज़ीरुन्नास सफा न . 16 पर है कि बल्कि बिलफर्ज आपके जमाने में भी कहीं और कोई नबी हो आपका खातम होना बदस्तूर बाकी रहता है ।*_
              _*📕तहज़ीरुन्नास सफा न . 33 पर है कि*_
                   _*" बल्कि अगर बिलफर्ज बाद ज़मानये नबी भी कोई नबी पैदा हो तो भी खातमीयते मुहम्मदी में कुछ फर्क न आयेगा चे जाये कि आपके मुआसिर ( एक वक़्त में रहने वाले ) किसी और ज़मीन में था फर्ज कीजिये उसी ज़मीन में कोई और नबी तजवीज़ किया जाये । " लुत्फ यह कि इस काइल ने उन तमाम खुराफात का ईजादे बन्दा होना खुद तसलीम कर लिया ।*_
           _*📕तहजीरुन्नास सफा न . 34 पर है कि*_
                  _*अगर ब वजहे कम इल्तेफाती बड़ों का फहम किसी मजमून तक न पहुँचा तो उनकी शान में क्या नुकसान आ गया और किसी किसी तिफले नादान ने कोई ठिकाने की बात कह दी तो क्या इतनी बात से वह अजीमुश्शान हो गया ?*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 60/61*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 157)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

_*📕( 6 ) तकवीयतुल ईमान सफा 11 में है कि*_

_*" गिर्द व पेश के जंगले का अदब करना यानी वहाँ शिकार न करना दरख्त न काटना यह काम अल्लाह ने अपनी इबादत के लिये बनाये हैं फिर जो कोई किसी पैगम्बर या भूत के मकानों के गिर्द व पेश के जंगल का अदब करे उस पर शिर्क साबित है ख्वाह यूँ समझे कि यह आप ही इस ताजीम के लाइक या यूँ कि उनकी इस ताजीम से अल्लाह खुश होता है हर तरह शिर्क है । " कई सही हदीसों में इरशाद फरमाया कि इबराहीम  ने मक्का को हरम बनाया और मैंने मदीने को हरम किया । उसके बबूल के दरख्त न काटे जायें और उसका शिकार न किया जाये । मुसलमानों !*_

 _*ईमान से देखना कि उस शिर्क फरोश का शिर्क कहाँ तक पहुँचता है ?तुमने देखा कि इस गुस्ताख ने नबी सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम पर क्या हुक्म जड़ा ।*_

 _*📕( 7 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 8 में है कि*_

_*"पैगम्बरे खुदा के वक़्त में काफिर भी अपने बुतों को अल्लाह के बराबर नहीं जानते थे बल्कि उसी का मखलूक और उसका बन्दा समझते थे और उनको उसके मुकाबिल की ताकत साबित नहीं करते थे मगर यही पुकारना और मन्नत माननी और नजर व नियाज़ करनी और उनको अपना वकील व सिफारिशी समझना यही उनका कुफ्र व शिर्क था सो जो कोई किसी से यह मुआमला करेगा कि उसको अल्लाह का बन्दा व मखलूक ही समझे सो अबू जहल और वह शिर्क मे बराबर हैं ।*_

 _*" यानी जो नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत माने कि हुजूर अल्लाह तआला के दरबार में हमारी सिफारिश फरमायेंगे तो मआजल्लाह उसके नजदीक वह अबू जहल के बराबर मुशरिक है । इसमें शफाअत के मसले का सिर्फ इन्कार ही नहीं बल्कि उसको शिर्क साबित किया और तमाम मुसलमानों सहाबा , ताबेईन . दीन के इमाम और औलियाए सालेहीन सब को मुशरिक और अबू जहल बना दिया ।*_

 _*📕( 8 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 58 में है कि :*_

 _*" कोइ शख्स कहे फलाने दरख्त में कितने पत्ते हैं या आसमान में कितने तारे हैं तो उसके जवाब में यह न कहे कि अल्लाह और रसूल जानें क्योंकि गैब की बात अल्लाह ही जानता है रसूल को क्या खबर ? " सुबहानल्लाह खुदाई इसी काम का नाम रह गया कि किसी पेड़ के पत्ते की तादाद जान ली जाये*_

 _*📕( 9 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 7 में यह है कि : -*_

 _*अल्लाह साहब ने किसी को आलम में तसर्रुफ करने की कुदरत नहीं दी इसमें अम्बियाये किराम के मोजिज़ात और औलियाए इजाम की करामत का साफ इन्कार है ।*_

 _*👑अल्लाह फरमाता है कि*_

_*📝तर्जमा : - “ कसम फ़रिश्तों की जो कामों की तदबीर करते हैं ।*_

 _*कुर्आन तो यह कहता है । लेकिन तकवीयतुल ईमान वाला कुर्आन का साफ इन्कार कर रहा है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 59/60*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 156)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

_*📕( 4 ) सिराते मुस्तकीम - सफा न , 95 में है  : ब मुकतजाए*_

_*📝तर्जमा : - अंधेरे कुछ अंधेरों से बढ़ कर होते हैं )*_

 _*के मुताबिक*_

  _*📕तर्जमा: - " औरतों के जिना करने के ख्याल से अपनी बीवी से व़ती ( हमबिस्तरी ) करना बेहतर है और अपने ख्याल को अपने शैख वगैरा बुजुग्राने दीन अगरचे सरकारे रिसालत मआब ही क्यूँ न हों अपनी गाय और गधे की सूरत में डूब जाने से कई गुना ज्यादा बुरा है।*_

_*मुसलमानो ! यह हैं वहाबियों के गुरू घंटाल के बेहूदा कलिमात और वह भी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में । जिसके दिल में राई बराबर भी ईमान है वह ज़रूर यह कहेगा कि इस कौल में गुस्ताखी ज़रूर है ।*_

_*📕( 5 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 10में है कि :*_

 _*रोज़ी की कशाइश और तंगी करनी और तन्दरुस्त व बीमार कर देना , इकबाल व इदबार देना , हाजतें बर लानी , बलायें टालनी , मुश्किल में दस्तगीरी करनी यही सब अल्लाह की शान है और किसी अम्बिया औलिया भूत परी की यह शान नहीं जो किसी को ऐसा तसर्रुफ साबित करे और उससे मुरादें माँगे और मुसीबत के वक्त उसको पुकारे जो वह मुशरिक हो जाता है फिर ख्वाह यूँ समझे कि अल्लाह ने उनको कुदरत बख्शी है हर तरह शिर्क है । " जब कि कुर्आन शरीफ में यह है कि*_

 _*📝तर्जमा : - " अल्लाह और रसूल ने अपने फज्ल से उनको गनी कर दिया*_

 _*इससे पता चलता है कि अल्लाह ने अपने नबी को तसर्रुफ का इख्तियार दिया है । और फिर कुर्आन में हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में यह आया है कि*_

_*📝 तर्जमा " ऐ ईसा ! तू मेरे हुक्म से मादरज़ाद अन्धे और सफेद दाग वाले को अच्छा कर देता है ।*_

 _*एक दूसरी जगह कुर्आन ने हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम के फरमान को इस तरह बताया है कि :*_

 _*📝तर्जमा : - मैं अल्लाह के हुक्म से अच्छा करता हूँ मादरज़ाद अंधे और सफेद दाग वालों को और मुर्दो को जिला देता हूँ "*_

_*अब कुर्आन का तो यह हुक्म है और वहाबी यह कहते हैं कि तन्दुरुस्त करना अल्लाह ही की शान है जो किसी को ऐसा तसर्रुफ साबित करे मुशरिक है । अब वहाबी बतायें कि अल्लाह तआला ने ऐसा तसर्रुफ हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के लिए साबित किया तो उस पर क्या हुक्म लगाते हैं और लुत्फ यह कि अल्लाह तआला ने अगर उनको कुदरत बख्शी है जब भी शिर्क है तो मालूम कि उन के यहाँ इस्लाम किस चीज़ का नाम है ?*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 58/59*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 155)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

_*यहूदियों नसरानियों और हिन्दुओं में भी उनके मजहब के आलिम और तारिकुददुनिया होते हैं तो क्या तुम उनको अपना पेशवा तसलीम कर सकते हो ? हरगिज़ नहीं । इसी तरह यह ला मजहब औ बदमजहब तुम्हारे किसी तरहा पेशवा नहीं हो सकते । अब वहाबियों के कुछ कौल पेश किये जाते हैं ।*_

 _*📕( 1 ) ईजाहुल हक सफा न . 35 , 36 , में है कि*_

 _*📝तर्जमा : - " अल्लाह तआला का वक़्त और जगह और सम्त ( दिशा ) से पाक होना और उसका दीदार बिला सम्त और महाजात ( बिला आमने सामने ) के मानना सब हकीकी बिदअतों की किस्म से हैं*_

 _*अगर वह शख्स ज़िक्र किये गये एअतिकादात को अकाइदे दीनिया की किस्म से मानता है । " इसमें साफ लिखा हुआ है कि अल्लाह तआला को वक़्त  और सम्त से पाक जानना और उसका दीदार बिना कैफ मानना बिदअत और गुमराही है । हालाँकि यह तमाम अहले सुन्नत का अकीदा है तो उस कहने वाले ने तमाम अहले सुन्नत के पेशवाओं को गुमराह और बिदअती बताया । दुईमुख्तार , बहरुराईक और आलमगीरी में है कि अल्लाह तआला के लिए जो मकान साबित करे वह काफिर है ।*_

 _*📕( 2 ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 60 में इस हदीस*_

 _*📝( तर्जमा : - " जरा ख्याल तो कर कि अगर तू गुजरे मेरी कब्र पर क्या तू उसको सजदा करेगा ?*_

 _*के लिखने के बाद (ف) लिख कर फायदा यह जड़ दिया कि मैं भी एक दिन मर कर मिट्टी में मिलने वाला हूँ के बाद हालाँकि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि*_

 _*📝तर्जमा : - " अल्लाह तआला ने अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के जिस्मों का खाना ज़मीन पर हराम कर दिया है*_

 और

 _*📝तर्जमा : तो अल्लाह के नबी जिन्दा हैं रोजी दिये जाते हैं ।*_

_*इन बातों से पता चलता है कि अल्लाह के नबी जिन्दा हैं और रोजी दिए जाते हैं ।*_

 _*📕( 3 ) तकवीयतुल ईमान सफा 19 में है कि न*_

 _*हमारा जब खालिक अल्लाह है और उसने हमको पैदा किया तो हमको भी चाहिए कि अपने हर कामों पर उसी को पुकारें और किसी से हमको क्या काम जैसे कोई एक बादशाह का गुलाम हो चुका तो वह अपने हर काम का इलाका उसी से रखता है दूसरे बादशाह से भी नहीं रखता और किसी चुहड़े चमार का तो क्या जिक्र " अम्बिया - ए - किराम और औलियाये इजाम की शान में ऐसे मलऊन अलफाज़ इस्तेमाल करना क्या मुसलमान की शान हो सकती है ?*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 57/58*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 154)*_
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 _*3 . वहाबी फ़िरका*_

 _*यह एक नया फिरका है जो सन बारह सौ नौ हिजरी ( 1209 ) मे पैदा हुआ । इस मज़हब का बानी अब्दुल वहाब नजदी का बेटा मुहम्मद था । उसने तमाम अरब और खास कर हरमैन शरीफैन में बहुत ज्यादा फितने फैलाये । आलिमों को कत्ल किया । सहाबा , इमामों , अलिमों और शहीदों की कब्रें खोद डाली । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े का नाम सनमे अकबर ( बड़ा बुत ) रखा था और तरह तरह के जुल्म किये । जैसा कि सही हदीस मे हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खबर दी थी कि नज्द से फितने उठेंगे और शैतान का गिरोह निकलेगा । ' वह गिरोह बारह सौ बरस बाद ज़ाहिर हुआ । अल्लामा शामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने इसे खारिजी बताया । इस अब्दुल वहाब के बेटे ने एक किताब लिखी जिसका नाम ' किताबुत्तौहीद ' रखा । उसका तर्जमा हिन्दुस्तान में इसमाईल देहलवी ने किया जिसका नाम ' तकवीयतुल ईमान ' रखा । और हिन्दुस्तान में वहाबियत उसी ने फैलाई । उन वहाबियों का एक बहुत बड़ा अकीदा यह है जो उनके मज़हब पर न हो वह काफिर मुशरिक है । यही वजह है कि बात बात पर बिला वजह मुसलमानों पर कुफ्र और शिर्क का हुक्म लगाते और तमाम दुनिया को मुशरिक बताते हैं । चुनाँचे तकवीयतुल ईमान पेज न . 45 में वह हदीस लिखकर कि आख़िर ज़माने में अल्लाह तआला एक हवा भेजेगा जो सारी दुनिया से मुसलमानों को उठा लेगी उसके बाद साफ़ लिख दिया सो पैग़म्बरे खुदा के फरमाने के मुताबिक हुआ यानी वह हवा चल गई और कोई मुसलमान रूए ज़मीन पर न रहा । मगर यह न समझा कि इस सरत में खुद भी काफिर हो गया । इस मज़हब की बुनियाद अल्लाह तआला और उसके महबूबों की तौहीन और तज़लील पर है । यह लोग हर चीज़ में वही पहलू इख्तियार करेंगे । जिससे शान घटती हो । इस मजहब के सरगिरोहों के कुछ कौल नक्ल किये जाते हैं । ताकि हमारे अवाम भाई उनके दिलों की खबासतों को जान कर उनके फरेब और धोके से बचते रहें और उनके जुब्बा और दस्तार पर न जायें ।*_

_*बरादराने इस्लाम ! गौर से सुनें और ईमान की तराजू में तौलें कि ईमान से अज़ीज़ मुसलमान के नज़दीक कोई चीज़ नहीं और ईमान अल्लाह और रसूल की ताज़ीम ही का नाम है । ईमान के साथ जिसमें जितने फ़ज़ाइल पाये जायें वह उसी कद्र ज्यादा फजीलत रखता है और ईमान नहीं तो मुसलमानों के नजदीक वह कुछ वकअत ( हैसियत ) नहीं रखता अगरचे कितना ही बड़ा आलिम , जाहिद और तारिकुद्दुनिया बनता हो । मतलब यह है कि उनके मोलवी , आलिम , फाज़िल होने की वजह से तुम उन्हें अपना पेशवा न समझो जब कि वह अल्लाह और उसके रसूलों के दुश्मन हैं ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 57*_

_*बाकि अगले पोस्ट में*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 153)*_
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 _*(2) राफिज़ी फिरका*_

_*राफिजी मज़हब के बारे में शाह अब्दुल अजीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपनी किताब ' तुहफए इसना अशरीया में बहुत तफसील से लिखा है । इस वक़्त राफिजियों के बारे में कुछ थोड़ी सी बातें लिखी जाती हैं ।*_

 _*"( 1 ) राफिज़ी फिरके के लोग कुछ सहाबियों को छोड़ कर ज्यादा तर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की शान में गुस्ताखियाँ करते और गालियों की बकवास करते हैं बल्कि कुछ को छोड़ कर सबको काफिर और मुनाफिक कहते हैं ।*_

 _*( 2 ) यह लोग हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहले खलीफा हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु , दूसरे खलीफा हजरते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु और तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में यह कहते हैं कि उन लोगों ने गसब कर के खिलाफत हासिल की है । यह लोग खिलाफत का हकदार हजरते अली रदियल्लाह तआला अन्हु को मानते हैं । हजरते अली ने उन तीनों खुलफा की तारीफें और बड़ाईयाँ की । उनको राफिजी लोग तकिय्या और बुजदिली कहते हैं । यह हजरते अली पर एक बहुत बड़ा इलजाम है क्यूंकि यह कैसे मुमकिन है कि एक तरफ तो हज़रते अली शेरे खुदा उन सहाबियों को गासिब काफिर और मुनाफिक समझें और दूसरी तरफ उनकी तारीफ करें और उन्हें खलीफा मानकर उनके हाथों पर बैअत करें। फिर यह कि कुर्आन उन सहाबियों को अच्छे और ऊँचे खिताब से याद करता है और उनकी पैरवी करने वालों के बारे में यह फरमाया है कि अल्लाह उनसे राजी वह अल्लाह से राजी क्या काफिरों और मुनाफिकों के लिये अल्लाह तआला के ऐसे फरमान हो सकते हैं ? हरगिज़ नहीं । अब उन सहाबियों के बारे में कुछ खास बातें बगौर मुलाहज़ा फरमायें : एक यह कि हजरते अली शेरे खुदा ने अपनी चहीती बेटी हज़रते उमर फारूक के निकाह में दी । राफिजी फिरका यह कह कर उन पर इल्जाम लगाता है कि उन्होंने तकिय्या किया था । सोचने की बात यह है कि क्या कोई मुसलमान किसी काफिर को अपनी बेटी दे सकता है ? कभी नहीं । फिर ऐसे पाक लोग जिन्होंने इस्लाम के लिये अपनी जानें दी हों और जिनके बारे में*_

_*📝तर्जमा - " किसी मलामत करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे । "*_

_*कहा गया हो । और हक बात कहने में हमेशा निडर रहे हों वह कैसे तकिय्या कर सकते हैं ? यह कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दो शहजादियाँ यके बाद दीगरे हजरत उसमान जुन्नूरैन के निकाह में आई । यह कि हजरते अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की साहिबजादियाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में आई । पहले , दूसरे और तीसरे खुलफा को हुजूर से ऐसे रिश्ते और हुजूर के इन सहाबियों से ऐसे रिश्ते के होते हुए अगर कोई . उन सहाबियों की तौहीन करे तो आप खुद फैसला करें कि वह क्या होगा ? इस फिरके का एक अकीदा यह है कि अल्लाह तआला पर असलह ' वाजिब है । यानी जो काम बन्दे के हक में नफा देने वाला हो अल्लाह पर वही करना वाजिब है और उसे वही करना पड़ेगा । इस फिरके का एक अकीदा यह भी है कि इमाम नबियों से अफज़ल है । ( जबकि यह मानना कुफ्र है ) राफिजियों का एक अकीदा यह कि कुर्आन मजीद महफूज नहीं बल्कि उसमें से कुछ पारे या सुरते या आयतें या कुछ , लफ्ज़ हज़रते उसमाने गनी या दूसरे सहाबा ने निकाल दिये । ( मगर तअज्जुब है कि मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने भी उसे नाकिस ही छोड़ा और यह अकीदा भी कुफ्र है कि कुर्आन मजीद का इन्कार है । ) राफिजीमों का एक अकीदा यह भी है कि अल्लाह तआला कोई हुक्म देता है फिर यह मालूम कर के कि यह मसलेहत उसके खिलाफ या उसके गैर में है पछताता है । और यह भी यकीनी कुफ्र है कि खुदा को जाहिल बताना है । ) राफ़िज़ियों का एक अकीदा यह है कि नेकियों का खालिक ( पैदा कर ने वाला ) अल्लाह है और बुराईयों के खालिक यह खुद हैं । ( मजूसियों ने तो दो ही खलिक माने थे ' यज़दान ' को अच्छाई का और बुराई का ख़ालिक ' अहरमन ' को । इस तरह से तो मजूसियों के दो ही खालिक हुए लेकिन राफिजियों के तो इस अकीदे से अरबों और संखों ख़ालिक हुए । ) इस तरह हम देखते हैं कि राफिज़ी अपने इन बुनियादी अकीदों की बिना पर काफ़िर व मुरतद हैं व गुमराह व बद्दीन हैं । इनके दीन की बुनियाद ऐसे गन्दे अकीदे और सहाबा की तौहीन है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 55/56/57*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 152)*_
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       _*( 1 ) कादयानी फिरका के अक़ीदा*_

_*32 . आप का कन्जरियों से मैलान और सुहबत भी शायद इसी वजह से हो कि जद्दी मुनासबत दरमियान है वर्ना कोई परहेज़गार इन्सान एक जवान कन्जरी - को यह मौका नहीं दे सकता कि वह  उसके सर पर अपने नापाक हाथ लगा दे और ज़िनाकरी की कमाई का पलीद इत्र उसके सर पर मले और अपने बालों को उसके पैरों पर मले ।समझने वाले समझ लें कि ऐसा इन्सान किस चलन का आदमी हो सकता है ( जमीमा अनजाम आथम पेज न 7 )*_

_*इस के अलावा इस रिसाले में उस मुकद्दस रसूल की शान में बहुत बुरे अल्फाज़ इस्तेमाल किये हैं जैसे शरीर मक्कार बद - अक्ल , फहशगो , बदजबान झूटा , चोर , खलल दिमाग वाला , बदकिस्मत , निरा फरेबी और पैरो शैतान वगैरा । और हद यह कि मिर्जा ने उनके खानदान को भी नहीं बख्शा । लिखता है कि*_

 _*33 . आपका खानदान भी निहायत पाक व मुतहहर है तीन दादियाँ और नानियाँ आपकी जिनाकार और कसबी औरतें थीं जिनके खून से आपका वुजूद हुआ । ( अन्जाम आथम )*_

 _*34 . यसू मसीह के चार भाई और दो बहनें थीं । यह सब यसू के हकीकी बहनें थीं यानी युसूफ और मरयम की औलाद थे । ( कशती - ए - नूह )*_


 _*35 . हक बात यह है कि आप से कोई मोजिज़ा न हुआ । ( अनजाम आथम ) 36 . उस जमाने में एक तालाब से बड़े निशान जाहिर होते थे । आप से कोई मोजिजा हुआ भी तो वह आपका नहीं उस तालाब का है । आप के हाथ में सिवा मक्र  व फरेब के कुछ न था । ( अन्जाम अथम पेज न7 )*_

 इन तमाम बातों से अच्छी तरह अन्दाज़ा हो गया होगा कि मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी काफिर है और उसके मानने वाले भी काफिर हैं ।

 _*37 . तो सिवाये इसके अगर मसीह के असली कामों का उन हवाशी से अलग कर के देखा जाये जो महज़ इफ्तरा या गलतफहमी से गढ़े हैं तो कोई अजूबा नजर नहीं आता बल्कि मसीह के मोजिजात पर जिस कदर एअतेराज़ हैं मैं नहीं समझ सकता कि किसी और नबी के खवारिक पर ऐसे शुबहात हों क्या तालाब का किस्सा मसीही मोजिज़ात की रौनक नहीं दूर करता । इन बातों के अलावा कादियानी ने और भी बहुत सी तौहीन से भरी हुई बातें लिखी हैं कि जिन को जान कर कोई मुसलमान उसे मुसलमान नहीं कह सकता और न उसे काफिर समझने में शक कर सकता है । शरीअत का हुक्म है कि*_

*_📝तर्जमा : - " जो उन खबासतों को जान कर उसके अज़ाब और कुफ्र में शक करे वह खुद काफिर है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 54/55*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 151)*_
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         _*( 1 ) कादयानी फिरका के अक़ीदा*_

_*26 . अफसोस से कहना पड़ता है कि उनकी पेशीनगोईयों पर यहूद के सख्त एतेराज़ हैं जो हम किसी तरह उनको दफा नहीं कर सकते ( एअजाजे अहमदी पेज नं . 13 )*_

 _*27 . हाय किसके आगे यह मातम ले जायें कि हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की तीन पेशीनगोईयाँ साफ तौर पर झूठी निकली ( एजाजे अहमदी पेज नं . 14 )*_

_*28 . मुमकिन नहीं कि नबियों की पेशीनगोईयाँ टल जायें ( कशती - ए - नूह पेज नं5 )*_

 _*29 . हम मसीह को बेशक एक रास्त बाज़ आदमी जानते हैं कि अपने ज़माने के अकसर लोगों से अलबत्ता अच्छा था ( वल्लाहु तआलाआ अअलम ) मगर वह हकीकी मुनजी ( नजात दिलाने वाला ) न था । हकीकी मुनजी वह है जो हिजाज़ में पैदा हुआ था और अब भी आया मगर बरोज़ के तौर पर । खाकसार गुलाम अहमद अज़ कादियान ( दाफिउल बला पेज न . 3 )*_

 _*30 . यह हमारा बयान नेक ज़नी के तौर पर है वर्ना मुमकिन है कि ईसा के वक़्त में बाज़ रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी में ईसा से भी आला हों । ( दाफिउल बला पेज नं 3 )*_

_*31 . मसीह की रास्तबाज़ी अपने जमाने में दूसरे रास्तबाज़ों से बढ़ कर साबित नहीं होती बल्कि यहया को उस पर एक फजीलत है क्यूंकि वह शराब न पीता था और कभी न सुना कि किसी फाहिशा औरत ने अपनी कमाई के माल से उसके सर पर इत्र मला था या हाथों और अपने सर के बालों से उसके बदन को छुआ था या कोई बे तअल्लुक जवान औरत उसकी खिदमत करती थी । इसी वजह से खुदा ने कुनि में यहया का नाम हसूर रखा मंगर मसीह का न रखा क्यों कि ऐसे किस्से उस नाम के रखने से माने ( रुकावट ) थे । ( दाफिउल बला पेज न . 4 )*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 54*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 150)*_
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              _*( 1 ) कादयानी फिरका के अक़ीदा*_

_*22 . यहूद तो हज़रते ईसा के मामले में और उनकी पेशगोईयों के बारे में ऐसे कवी एअतराज़ रखते हैं कि हम भी जवाब में हैरान हैं बगैर उस के कि यह कह दें कि ज़रूर ईसा नबी हैं क्यूँकि कुर्आन ने उसको नबी करार दिया है और कोई दलील उनकी नुबुब्बत पर कायम नहीं हो सकती ' बल्कि इबताले नुबुब्बत ( यानी नबी न होने पर ) पर कई दलाइल काइम हैं । ( एजाज़ अहमदी पेज नं . 13 )*_

_*मिर्जा ने अपनी इस बात में यहूदियों की इस बात को ठीक होना बताया और कुर्आन शरीफ पर भी साथ ही यह एअतेराज़ लगाया कि कुर्आन ऐसी बात की तालीम दे रहा है कि जिसको बहुत सी दलीलों से बातिल किया जा चुका है ।*_

 _*23 . ईसाई तो उनकी ( हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की ) खुदाई को रोते हैं मगर यहाँ नुबुव्वत भी उनकी साबित नहीं । ( एअजाज अहमदी पेज न . 14 )*_

 _*24 . कभी आपको शैतानी इलहाम भी होते थे । ( एजाज अहमदी पेज नं . 24 )*_

 _*मुसलमानों तुम्हें मअलूम है कि शैतानी इलहाम किस को होता है । कुर्आन में आया है कि*_

_*📝तर्जमा : - " बड़े बुहतान वाले सख्त गुनाहगार पर शैतान उतरते हैं ।*_

 _*इससे अन्दाज़ा हुआ . कि शैतानी इलहाम सिर्फ गुनाहगारों को ही हो सकता हैं । लेकिन मिर्जी ने हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में इस तरह की बातें लिखकर उनकी तौहीन की हैं ।*_

 _*25 . उनकी अकसर पेशीनगोईयाँ गलती से पुर हैं । ( एअजाज़े अहमदी )*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 53/54*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 149)*_
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                  _*( 1 ) कादयानी फिरका*_

_*16 . मसीले मूसा मूसा से बढ़ कर और मसील इब्ने मरयम इब्ने मरयम से बढ़ कर ( कशती पेज नं . 13 )*_

 _*17 . खुदा ने मुझे खबर दी है कि मसीह मुहम्मदी मसीहे मूसवी से अफ़ज़ल है ( दाफेउल बला पेज नं . 20 )*_

 _*18 . अब खुदा बतलाता है कि देखो मैं उसका सानी पैदा करूँगा जो उससे भी बेहतर है । जो गुलाम अहमद है यानी अहमद का गुलाम । इब्ने मरयम के ज़िक्र को छोड़ो उससे बेहतर गुलाम अहमद है ( इजालए औहाम पेज न 688 ) यह बातें शायराना नहीं बल्कि वाकई हैं । और अगर तजर्वे की रू से में खुदा की ताईद मसीह इब्ने मरयम से बढ़कर मेरे साथ न हो तो मैं झूठा हूँ । ( दाफिउल बला पेज नं . 20 )*_

_*19 . खुदा तो ब - पाबन्दी अपने वादों के हर चीज़ पर कादिर है लेकिन ऐसे शख्स को दोबारा दुनिया में नहीं ला सकता जिसके पहले फ़ितने ने ही दुनिया को तबाह कर दिया । ( दाफिज़ल बला पेज नं . 15 ) · 20 . मरयम का बेटा कौशल्या के बेटे से कुछ ज्यादत नहीं रखता । ( अनजाम आथम पेज नं . 41 )*_

_*21 . मुझे कसम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है कि अगर मसीह इब्ने मरयम मेरे ज़माने में होता तो वह काम जो मैं कर सकता हूँ वह हरगिज़ न कर सकता और वह निशान जो मुझ से जाहिर हो रहे हैं वह हरगिज़ दिखला न सकता । ( कशतीए नूह पेज नं 56 )*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 53*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 148)*_
_*―――――――――――――――――――――*_

                  _*( 1 ) कादयानी फिरका*_

_*9 . हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का चार परिन्दे के मोजिज़े का ज़िक्र जो कुर्आन में है वह भी । उनका मिसमरेज़म का अमल था । ( इजालए औहाम पेज नं . 553)*_

 _*10 . एक बादशाह के वक़्त में चार सौ नबियों ने उसके फतह के बारे में पेशीनगोई की और वह झूटे निकले और बादशाह की शिकस्त हुई बल्कि वह उसी मैदान में मर गया । ( इजालये औहाम पेज नं . 629 )*_

_*11 . कुर्आन शरीफ़ में गन्दी गालियाँ भरी हैं और कुर्आन अज़ीम सख्त ज़बानी के तरीके को इस्तेमाल कर रहा है । ( इजालए औहाम पेज न . 26 , 28 )*_

_*12 . अपनी किताब ' बराहीने अहमदीया के बारे में लिखता है : - बराहीने अहमदीया खुदा का कलाम है । ( इजालए औहाम पेज नं . 533 )*_

_*13 . कामिल महदी न मूसा था न ईसा । ( अरबईन पेज न 2 , 13 ) इन उलूल अज़्म मुरसलीन का हादी होना तो दर किनार पूरे राह याफ्ता भी न माना अब ख़ास हज़रत ईसा अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में जो गुस्तखियाँ की उन में से चन्द यह हैं ।*_

_*📝तर्जमा : - हमारा रब मसीह है मत कहो और देखो  ऐ ईसाई मिशनरयो !*_

_*अब कि आज तुम में एक है जो उस मसीह से बढ़ कर है । ( मेआर पेज नं . 13 )*_

 _*15 . खुदा ने इस उम्मत में से मसीहे मौऊद भेजा जो उस पहले मसीह से अपनी तमाम शान में बहुत बढ़ कर है । और उस ने दूसरे मसीह का नाम गुलाम अहमद रखा तो यह इशारा है कि ईसाईयों का मसीह कैसा खुदा है जो अहमद के अदना गुलाम से भी मुकाबला नहीं कर सकता यानी वह कैसा मसीह है जो अपने कुर्ब और शफाअत के मरतबे में अहमद के गुलाम से भी कमतर है । ( कशती पेज न 13 )*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 53*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 147)*_
_*―――――――――――――――――――――*_

                  _*( 1 ) कादयानी फिरका*_

_*मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के मानने वालों को कादियानी कहते हैं मिर्जी गुलाम अहमद ने अपनी नुबुब्बत का दावा किया । नबियों की शान में गुस्ताखियाँ कीं । हज़रते ईसा अलैहिस्लाम और उनकी माँ तय्यबा ताहिरा सिद्दीका हज़रते मरयम की शान में वह बेहूदा अल्फाज इस्तेमाल किए जिनसे मुसलमानों की जाने दहल जाती हैं । यही नहीं बल्कि हजरते मूसा अलैहिस्सलाम और हमारे सरकार नबियों के सरदार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन की कुर्आन शरीफ का इन्कार किया और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के खातमुन्नबीय्यीन ( यानी आखिरी  नबी ) होने को उसने तसलीम नहीं किया और नबियों को झुटलाया । इनके अलावा और भी उसने सैकड़ों कुफ्र किये हैं कि अगर उन्हें लिखा जाये तो एक दफ्तर चाहिए । शरीअत का कानून है अगर किसी ने किसी एक नबी को झुठलाया तो सबको झुटलाया । कुर्आन शरीफ में आया है कि*_

_*📝तर्जमा : - हजरते नूह अलैहिस्सलाम की कौम ने पैगम्बरों को झुटलाया ।*_

 _*मिर्जा ने तो बहुतों की झुटलाया और अपने को नबी से बेहतर बताया । इसीलिए ऐसे आदमी ओर उसके मानने वालों काफिर होने के बारे में किसी मुसलमान को शक हो ही नहीं सकता । और अगर कोई मुसलमान उसकी कही या लिखी बातों को जान के उसके काफिर होने में शक करे वह खुद काफिर है । मिर्जी गुलाम अहमद कादियानी की कुछ लिखी हुई बातें और किताबों के नाम पेज न . के साथ इसलिए लिखी जा रही हैं कि जो देखना चाहे उसकी खबासतों को देख ले । मिर्जा गुलाम अहम कादियानी ने जो खबीस हरकतें की वह उस की इन इबारतों से साबित हैं ।*_

 _*1 . खुदाए तआला ने ' बराहीने अहमदीया में इस आजिज़ का नाम उम्मती भी रखा और नबी भी*_

 _*📕( इजालए औहाम स न 533 )*_

 _*2 . ऐ अहमद ! तेरा नाम पूरा हो जायेगा कब्ल इसके जो मेरा नाम पूरा हो*_

 _*📕( अनजाम आथम स न 52 )*_

 _*3 . तुझे खुश खबरी हो ऐ अहमद ! तू मेरी मुराद है और मेरे साथ है*_

 _*📕( अनजाम आथम स. न. 56)*_

 _*4 . तुझको तमाम जहान की रहमत के वास्ते रवाना किया ।*_

 _*📕( अनजाम आधम स न 78 )*_

 _*नोट : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फजीलत के बारे में कुर्आन शरीफ में अल्लाह तआला ने यह फरमाया है कि*_

_*📝तर्जमा : - " और हमने तुम्हें न भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए।*_

_*इस आयत को मिर्जा ने अपने ऊपर जमाने की कोशिश की है । से अपनी ज़ात मुराद लेता है दाफेउल बला सफा छ : में है*_

 _*5 . " मुझको अल्लाह तआला फरमाता है ।*_

 _*📝तर्जमा : - " ऐ गुलाम अहमद । तू मेरी औलाद की जगह है तू मुझ से और मैं तुझ से हूँ ।*_

 _*📕( दाफिउ बला पैज न 5 )*_

 _*6 . हज़रत रसूले . खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इलहाम व वही गलत निकली थी ।*_

 _*📕( इज़लाए औहाम पेज न . 688 )*_

 _*7 . हजरते मूसा की पेशगोईयाँ भी उस सूरत पर जुहूरपज़ीर ( जाहिर ) नहीं हुई जिस सूरत पर हजरते मूसा ने अपने दिल में उम्मीद बाँधी थी ।*_

 _*📕( औहाम पेज न . 8 )*_

 _*8 . सूरए बकरह में जो एक कत्ल का जिक्र है कि गाय की बोटियाँ लाश पर मारने से वह मकतूल जिन्दा हो गया था और अपने कातिल का पता दे दिया था यह महज़ मूसा अलैहिस्सलाम धमकी थी और इल्मे मिसमरेज़म था ।*_

 _*📕( इजालए औहाम पेज न 775 )*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 51/52*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 146)*_
_*―――――――――――――――――――――*_

                  _*कुछ फ़िरकों के बारे में*_

 हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि

 _*📝तर्जमा : - " यह उम्मत तिहत्तर फिर के हो जायेगी । एक फिरका जन्नती होगा बाकी सब जहन्नमी होंगे ।*_

 " तो हुजूर के सहाबा ने पूछा कि

_*📝तर्जमा : - या रसूलल्लाह वह कौन लोग हैं जो जन्नती हैं ?*_

 हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जवाब इरशाद फरमाया कि

 _*📝तर्जमा : - वह जिस पर मैं और मेरे सहाबा हैं , यानी सुन्नत की पैरवी करने वाले हैं ।*_

 एक दूसरी रिवायत में यह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि

  _*📝तर्जमा : - वह जमाअत है । यानी मुसलमानों का बड़ा गिरोह जिसे ' सवादे आजम ' कहा गया है ।*_

 और हुजूर ने यह भी फ़रमाया कि जो इस जमाअत से अलग हुआ वह जहन्नम में अलग हुआ । इसीलिए इस जन्नती और नजात पाने वाले फ़िरके का नाम ' अहले सुन्नत व जमाअत हुआ । और गुमराह फिरकों में से बहुत से फ़िरके हुए । कुछ ऐसे भी थे जिनका अब नाम निशान भी नहीं । और कुछ ऐसे हैं जो हिन्दुस्तान से बाहर के हैं । हम इस वक़्त सिर्फ हिन्दुस्तान के कुछ बातिल फिरकों के बारे में बतायेंगे ताकि हमारे मुसलमान भाई उन बदमज़हबों के चक्कर में पड़ कर धोखा न खायें । हदीस शरीफ़ में यह भी , आया है कि 

_*📝तर्जमा : - " तुम अपने को उनसे ( बद मज़हबों से ) दूर रखो और उन्हें अपने से दूर करो कहीं वह तुम्हें गुमराह न कर दें और वह फ़ितने में डाल दें ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 50*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 145)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*☝️अक़ीदा : - जिस मुसलमान ने गुनाहे कबीरा किया हो वह मुसलमान जन्नत में जायेगा । चाहे अल्लाह अपने करम से उसे बख्श दे या हुजूर सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम उसकी शफाअत कर दें या अपने किये की सजा पाकर जन्नत में जायेगा फिर कभी न निकलेगा ।*_

_*☝️अक़ीदा : - जो कोई किसी काफ़िर के लिए मगफिरत की दुआ करे या किसी मरे हुए मुरतद को मरहूम था मगफूर या किसी मरे हुए हिन्दू को बैकुन्ठबासी ( स्वर्गवासी ) कहे वह खुद काफिर है।*_

 _*☝️अक़ीदा : - मुसलमान को मुसलमान और काफिर को काफ़िर जानना दीन की ज़रूरी बातों में से है , अगरचे किसी खास आदमी के बारे में यह यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि जिस वक़्त उसकी मौत हुई हकीकत में वह मोमिन था या काफिर जब तक कि उस के खातमे और मौत का हाल शरीअत की दलील से न साबित हो मगर इसका यह मतलब भी नहीं कि जिसने यकीनी तौर पर कुफ्र किया हो उसके कुफ्र में भी शक किया जाये क्यूँकि जो यकीनी तौर पर काफिर हो उस के काफिर होने के बारे में शक करने वाला भी काफिर हो जाता है । कोई आदमी अपने खातिमे के वक़्त मोमिन है या काफिर इसकी जानकारी की बुनियाद क्यामत के दिन पर है लेकिन शरीअत का कानून ज़ाहिर पर है । इसे यूँ समझिये कि एक आदमी सूरत से बिल्कुल मुसलमान हैं , नमाज़ी है , हाजी है लेकिन दिल में ऐसे लोगों को अच्छा समझता हो जिन लोगों ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की है तो चुंकि उस का यह कुफ्र किसी को मालूम नहीं है वह मुसलमान ही माना जायेगा । दूसरी बात यह है कि अगर कोई यहूदी नसरानी या कोई बुतपरस्त मरा है । मगर अल्लाह और रसूल का यही हुक्म है कि उसे काफ़िर ही जानें और उस के साथ उसी तरह बर्ताव किया जायेगा जैसा कि उसकी ज़िन्दगी में काफिरों के साथ किया जाता है । जैसे मेल , जोल , शादी , नमाज़े जनाज़ा और कफन दफन वगैरा में मुर सलमानों का काफिरों के साथ बर्ताव है । इसलिए कि जब उसने कुफ्र किया है तो ईमान वालों के लिये फर्ज है कि वह उसे काफिर ही समझें और खातिमे का हाल अल्लाह पर छोड़ दें । इसी तरह जो जाहिर में मुसलमान हो और उसकी कोई बात या उसका कोई काम ईमान के खिलाफ न हो तो उसे मुसलमान ही समझना फर्ज है अगरचे हमें उसके खातिमे का भी हाल नहीं मालूम । इस जमाने में कुछ लोग यह कहते हैं जितनी देर काफिर को काफिर कहने में लगाओग उतनी देर अल्लाह अल्लाह करो तो सवाब मिलेगा । इस का जवाब यह है कि हम कब कहते हैं कि काफिर काफिर का वजीफा कर लो बल्कि मतलब यह है कि काफिर को दिल से काफ़िर जानो और उसके बारे में अगर पूछा जाये तो उसे बेझिझक साफ साफ काफिर कह दो । सुलह कुल्लियों की तरह उस के कुफ्र पर पर्दा डालने की ज़रूरत नहीं ।*_


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 50*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 144)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

☝️ _*अकीदा : - शिर्क का मतलब यह है कि अल्लाह के अलावा किसी दूसरे को वाजिबुल वुजूद या इबादत के लाइक माना जाये यानी खुदा तआला के साथ अल्लाह और माबूद होने में किसी दूसरे को शरीक किया जाये और यह कुफ्र की सब से बदतरीन किस्म है । इसके सिवा कोई बात अगरचे कैसी ही बुरी और सख्त कुफ्र हो फिर भी हकीकत में शिर्क नहीं है । इसीलिये शरीअत ने किताबी काफिरों मतलब तौरात , जबूर या इन्जील के मानने वालों और मुशरिकीन में फर्क किया है जैसे किताबी का जिबह किया हुआ जानवर हलाल होगा और मुशरिक का नहीं । ऐसे ही किताबी औरत से मुसलमान निकाह कर सकता है और मुशरिक औरत से नहीं । इमामे शाफेई रहमतुल्लाहि तआला अलैहि यह भी कहते हैं कि किताबी से जिज़या लिया जायेगा और मुशरिक से नहीं लिया जाएगा । और कभी ऐसा भी होता है कि शिर्क बोल कर कुफ्र मुराद लिया जाता है । चाहे अल्लाह तआला के साथ कोई शरीक करे या किसी नबी . की तौहीन करे यह सब शिर्क में शामिल होते हैं । यह जो कुर्आन शरीफ़ में आया है कि शिर्क नहीं बख्शा जायेगा वह हर कुफ्र के मअना पर है यानी हरगिज किसी तरह के कुफ्र की बख्शिश न होगी । कुफ्र के अलावा बाकी सारे गुनाहों के लिए अल्लाह तआला की मर्जी है चाहे वह सज़ा दे या बख्श दे ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 49/50*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 143)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*✍️नोट : - हाँ यह मुमकिन है कि हम शुबह की वजह से किसी को न मुसलमान कह न काफ़िर जैसे यजीद पलीद और इसमाईल देहलवी जैसे लोग । इन जैसे लोगों के बारे में हमारे उल्मा ने खामोशी का हुक्म फरमाया कि न तो , हम इन्हें मुसलमान कहेंगे न काफिर हमारे सामने अगर कोई मुसलमान कहे तो भी हम खामोश रहेंगे और काफिर कहे तो भी ख़ामोशी इख्तियार करेंगे । यह शक की वजह से है । यजीद के बारे में इमाम आजम इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का यही हुक्म है कि शक की वजह से उसे न मुसलमान कहेंगे न काफ़िर बल्कि खामोशी इख्तियार तेयार करेंगे ।*_


 _*👉मसअ्ला : - निफाक उस को कहते हैं कि ज़बान से इस्लाम का दावा करे और दिल में इस्लाम का इन्कार करे ऐसे शख्स को मुनाफिक कहते है । निफाक भी खालिस कुफ्र है और मुनाफिकों के लिये जहन्नम का सब से नीचे का दर्जा है । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुबारक ज़माने में इस तरह के कुछ लोग मुनाफिक के नाम से मशहूर हुए उनके छिपे हुए कुफ्र को कुर्आन ने बताया और गैब जानने वाले नबी सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भी एक एक को पहचान कर फरमाया कियह मुनाफ़िक है ।*_

 _*अब इस ज़माने में किसी खास आदमी के बारे में उस वक़्त तक यकीन के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुनाफिक है जब तक कि उसकी कोई बात या उसका कोई काम ईमान के खिलाफ न देख लिया जाये कयूँकि हमारे सामने जो अपने आप को मुसलमान कहे हम उसे मुसलमान समझेंगे । अलबत्ता निफाक के सिलसिले की एक कड़ी इस ज़माने में पाई जाती है कि बहुत से बदमज़हब अपने आप को एक तरफ तो मुसलमान कहते हैं और दूसरी तरफ़ दीन की कुछ ज़रूरी बातों का इन्कार भी करते हैं । ज़ाहिर है कि ऐसे लोग मुनाफिक और काफ़िर माने जायेंगे ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 49*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 142)*_
_*―――――――――――――――――――――*_

                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*👉मसअ्ला : - ईमान में ज्यादती और कमी नहीं इसलिये कि कमी बेशी उस में होती है जिस में लम्बाई , चौड़ाई , मोटाई या गिनती हो और ईमान दिल की तस्दीक का नाम है और तस्दीक कैफ यानी एक हालते इजआनिया ( यकीनिया ) है कुछ आयतों में ईमान का ज्यादा होना जो फरमाया गया है । उससे मुराद वह है जिस पर ईमान लाया गया और जिसकी तस्दीक की गई कि कुर्आन शरीफ के नाजिल होने के ज़माने में उसकी कोई हद मुकर्रर न थी बल्कि अहकाम उतरते रहते और जो हुक्म नाज़िल होता हो । उस पर ईमान लाजिम होता । ऐसा नहीं कि नफसे ईमान बढ़ घट जाता हो । अलबत्ता ईमान में सख्ती और कमजोरी होती है कि यह कैफ के अवारिज़ से है । हजरते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु का ईमान ऐसा है कि अगर इस उम्मत के सारे लोगों के ईमानों को जमा कर लिया जाये तो उनका तन्हा ईमान सब पर भारी होगा*_

 _*☝️अकीदा : - ईमान और कुफ्र के बीच की कोई कड़ी नहीं यानी आदमी या तो मुसलमान होगा या काफिर तीसरी कोई सूरत नहीं कि न मुसलमान हो न काफिर ।*_


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48/49*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 141)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*☝️अकीदा : - दीन की ज़रूरियात में से जिस चीज़ का हलाल होना नस्से कतई ( यानी कुर्आन और अहादीस ) से साबित हो उसको हराम कहना और जिसका हराम होना . यकीनी हो उसे हलाल बताना कुफ्र है जबकि यह हुक्म दीन की ज़रूरियात से हो और अगर मुन्किर उस दीन की ज़रूरी बात से आगाह है तो काफ़िर है*_

_*👉मसअ्ला : - उसूले अकाइद ( यानी बुनियादी अकीदों में ) किसी की तकलीद या पैरवी जाइज़ नही बल्कि जो बात हो वह कतई यकीन के साथ हो चाहे वह यकीन किसी तरह भी हासिल हो उस के हासिल करने से खास कर इल्मे इस्तिदलाली की ज़रूरत नहीं । हाँ कुछ फ़रूए अकाइद में तकलीद हो सकती है इसी बुनियाद पर खुद अहले सुन्नत में दो गिरोह हैं ।*_

_*( 1️⃣  ) मातुरीदिया : - यह गिरोह इमाम इलमुल हुदा हज़रत अबू मन्सूर मातुरीदी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पैरवी करने वाले हैं ।*_

 _*( 2️⃣ ) अशाइरा : - यह दूसरा गिरोह हज़रत इमाम शैख अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह की पैरवी करने वाला है । और ये दोनों जमाअतें अहले सुन्नत की ही जमाअतें और दोनों हक पर हैं । अलबत्ता आपस में कुछ फुरूई बातों का इख़्तिलाफ़ है । इनका इख्तिलाफ हनफी शाफेई की तरह है कि दोनों हक पर हैं । कोई किसी को गुमराह और फासिक नहीं कहता है ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 140)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*👉मसअ्ला : - अगर कोई आदमी मजबूर किया गया कि वह ( मआज़ल्लाह ) कोई कुफ्री बात कहे यानी वह मुसलमान अगर कुफ्री बात न कहेगा तो ज़ालिम उसे मार डालेगा या उसके बदन का कोई हिस्सा काट देगा तो उस मुसलमान के लिए इजाज़त है कि मजबूरी में वह जुबान से कुफ्री बात बक दे मगर शर्त यह है कि दिल में उसके वही ईमान बाकी रहे जो पहले था लेकिन ज्यादा अच्छा यही है कि जान चली जाये मगर जुबान से भी कुफ्री बात न बके ।*_

_*👉मसअ्ला : - अमले जवारेह ( यानी हाथ पैर वगैरा से किए जाने वाले अमल या काम ) ईमान के अन्दर दाखिल नहीं है । अलबत्ता ' कुछ ऐसे काम हैं जो बिल्कुल ईमान के खिलाफ हैं उन कामों के करने वालों को काफिर कहा जायेगा । जैसे बुत , चाँद या सूरज को सजदा करने किसी नबी के कत्ल या नबी की तौहीन करने वाले या कुर्आन शरीफ या काबे की तौहीन करने वाले और किसी सुन्नत को हल्का बताने वाले यकीनी तौर पर काफिर हैं । ऐसे ही जुन्नार ( जनेऊ ) बाँधने वाले , सर पर चोटी रखने वाले और कशका ( मज़हबी टीका ) लगाने वाले को भी फुकहाए किराम ने काफ़िर कहा है । ऐसे लोगों के लिए हुक्म है कि वह तौबा कर के दोबारा इस्लाम लायें और फिर अपनी बीवी से दोबारा निकाह करें ।*_


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 139)*_
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                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

 _*☝️अक़ीदा : - मुसलमान होने के लिए यह भी ज़रूरी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का  इन्कार न करे जो दीन की ज़रूरियात से है अगरचे बाकी बातों का इकरार करता हो । और अगर कोई यह कहे कि सिर्फ जुबान से इन्कार है और दिल में इन्कार नहीं तो वह भी मुसलमान नहीं क्यूँकि बिना किसी खास शरई मजबूरी के कोई मुसलमान कुफ्र का कलिमा निकाल ही नहीं सकता इसलिए कि ऐसी बात वही मुँह पर ला सकता है जिस के दिल में इस्लाम और दीन की इतनी जगह हो कि जब चाहा इन्कार कर दिया और इस्लाम ऐसी तस्दीक का नाम है जिस के खिलाफ हरगिज़ कोई गुन्जाइश नहीं ।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 47/48*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 076 📕*_
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*_लिवातत या इ़ग्लाम बाजी (हिजडो से मुबाशरत)_*

 👉🏻 *_इसी तरह वह शख्स अपने लिंग को मर्द के पिछे के मकाम मे दाखील करता है, इससे उसके उज्वे मख्सुस (लिंग) की नसे कमजोर हो जाती है! नसे ढिली पड जाती है! पठ्ठे ढिले हो जाते है!और पेशाब की नाली मे जख्म पढकर पेशाब मे जलन, झिल्ली मे खराश पैदा हो जाती है! कसरत के साथ इस ख्वाहिश को पुरा करने की वजह से लगातार मनी (विर्य) के बहने की बिमारी हो जाती है, ऑंखो मे गढ्ढे, चेहरे पर बेरौनकी, दिल व दिमाग कमजोर हो जाता है! और ऐसा इंसान फिर औरत को मुंह दिखाने के काबील ही नही रहता!_*

💫💫 *_"हकीमो का इस बात पर इत्तेफाक है के..... जो मर्द लिलावत (लमलैंगीक संभोग) करता है, उसको जल्द इंजाल (शिघ्रपतन, Premature Discharge) हो जाने की बिमारी हो ही जाती है!_*

🔥 *_ऐसे शख्स की सजा : ऐसे शख्स के मुत्ताल्लीक शरीयत ए इस्लामी का फैसला यह है के उसे दुनीयॉ मे जिंदा रहने का कोई हक नही! उसका मर जाना ही समाज के लिये बेहतर है!_*

📚 *_हदीस :_* _*हुजुर ﷺ* फ़रमाते है.........._

 💫 *_"जो मर्द किसी मर्द से सोहबत करे, उन्हें इतने पथ्थर मारो कि वोह मर जाए, ऊपर वाले और नीचे वाले दोनो को मार डालो"।_*

📕 *_[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 983, हदीस नं 1487, सफा नं 718, इब्ने माज़ा शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 143, हदीस नं 334, सफा नं 109,]_*

📚 *_हदीस : हज़रत इकरमा ने हज़रत  रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने हजरत अब्बास रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फर्माया..........._*

💫 *_"जिन को तुम पाओ के उसने दूसरे मर्द से सोहबत की है तो उन्हे क़त्ल कर दो करने वाले और करवाने वाले दोनो को "।_*

📕 *_[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3 बाब नं 348, हदीस नं  1050, सफा नं 376,]_*

📚 *_हदीस : हज़रते इब्ने शिहाब रदि अल्लाहु तआला अन्हु से ऐसे मर्द के मर्द के बारे में पूछा गया जो मर्द से ही सोहबत करे! फर्माया....._*

 💫 *_"उसे संगसार किया जाए (पथ्थरों से मार मार कर क़त्ल कर दिया जाए) चाहे शादी शुदा हो या गै़र शादी शुदा"।_*

📕 *_[मोता शरीफ, जिल्द नं 2, किताबुल हुदूद, हदीस नं 11, सफा नं 718,]_*

📚 *_हदीस : हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हु ने तो इस ख़बीस काम करने वालों को क़त्ल कर देने पर ही बस न कीया बल्कि उन्हें आग  मे जलाया_*

📚 *_हदीस : हज़रते सिद्दीक़े अकबर रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने उन पर दीवार गिराई जिस के नीचे वोह दब कर मर गये।_*

📕 *_[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1 हिस्सा 9, सफा नं 44,]_*

✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

📮 *_जारी है..._*
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 075 📕*_
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*_लिवातत या इ़ग्लाम बाजी (हिजडो से मुबाशरत)_*

 👉🏻 _*कुछ दुनियॉ मे ऐसे भी लोग  है, जो जिन्सी (जिस्मानी) ताल्लुकात मे हलाल व हराम की तमीज नहीं रखते यह ऐसे दरींदा सिफत इंसान है! जो  कम उम्र लडके, मर्द या फिर हिजडे (Third Genders) से मुंह काला करते है!*_

*_📝रिवायत : हजरत इमाम कलबी रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है....._*

*_"सबसे पहले यह काम (यानी मर्द का मर्द से मुबाशरत करना) शैतान मर्दुद ने किया! वह कौम ए लुत अलैहिस्सलाम मे एक खुबसुरत लडके की शक्ल मे आया और लोगो को अपनी तरफ माईल (आकर्शीत) किया, और उन्हे गुमराह करके सोहबत करवाई! यहॉ तक की कौम ए लुत अलैहिस्सलाम की यह आदत बन गयी, अब वह औरतो से मुबाशरत करने की बजाए खुबसुरत मर्दो से ही फैल ए हराम करने लगे! जो भी मुसाफीर उनकी बस्ती मे आता वह उसे न छोडते, और अपनी हवस का शिकार बना लेते! हजरत लुत अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम को बहुत समझाया और इस बुरे काम से मना किया और उन्हे अजाबे इलाही से डराया, लेकीन कौम न मानी हत्ता के हजरत लुत अलैहिस्सलाम ने अल्लाह रब्बुल इज्जत से अजाब की दुआ मांगी और कौम ए लुत अलैहिस्सलाम पर पत्थरो का अजाब नाजील हुआ, और पत्थरो की बारीश होने लगी! हर पत्थर पर कौम के एक शख्स का नाम लिखा था और वह उसी को आकर लगता जिससे वह वंही हलाक हो जाता! इस तरह यह कौम जिनकी आबादी चार लाख थी तबाह व बर्बाद हो गई!"_*

📕 *_[मुकाशफतुल-कुलुब, बाब नं. 22, सफ नं. 169, इस वाकीये की मुकम्मल तफ्सील कुरआन करीम के पारा नं 14, सुरह हुजर मे मौजुद है!]_*

 *_📝रिवायत : हजरत इमाम अबुल फजल काजी अयाज उन्दुलुसी रदि अल्लाहु तआला अन्हु फर्माते है....._*

*_"मैने कुछ मशाइखे किराम से सुना है की, औरत के साथ एक शैतान और खुबसुरत लडके के साथ अठ्ठारह शैतान होते है!_*

📕 *_[मुकाशफतुल-कुलुब, बाब नं. 22, सफ नं. 169]_*

*_📝रिवायत : हजरत इमाम अहमद खॉं रदि अल्लाहु तआला अन्हु फर्माते है....._*

*_"मन्कुल है की औरत के साथ दो शैतान और हिजडे के साथ सत्तर शैतान होते है!"_*

📕 *_[फतावा रज्वीया जिल्द  9, निस्फ अव्वल, सफ नं. 64]_*

*_📝रिवायत : हजरत शैख फरीदोद्दीन अत्तार रदि अल्लाहु तआला अन्हु फर्माते है....._*

*_"हजरत सिमाक रदि अल्हाहु तआला अन्हु के विसाल के बाद किसी ने आपको ख्वाब मे देखा की आपका चेहरा आधा काला पड गया है! आपसे जब इसका सबब पुछा गया तो आप ने फर्माया "एक मर्तबा दौर ए तालीबे इल्म मे मैने एक खुबसुरत लडके को गौर से देखा था चुनांचे जब मरने के बाद मुझे जन्नत की तरफ ले जाया जा रहा था, तो जहन्नम की तरफ से गुजारा गया तभी एक सांप ने मेरे चेहरे पर कांटा और कहा की बस यह एक नजर देखने की ही सजा है! और अगर कभी तु उस लडके को ज्यादा तवज्जोह से देखता तो मै तुझे और तक्लीफ पहुंचाता!"_*

📕 *_[तज्किरातुल औलीया बाब नं.  8,  सफ नं. 41]_*

*_📝रिवायत : हुज्जतुल इस्लाम सैयदना इमाम मुहम्मद गजाली  रदि अल्लाहु तआला अन्हु फर्माते है....._*

*_"रिवायत है.... जिसने शहवत के साथ किसी लडके को चुमा, तो वह पॉंच सौ बरस दोजख की आग मे जलेंगा!"_*

📕 *_[मुकाशफतुल-कुलुब, बाब नं. 22, सफ नं. 169]_*

👉🏻 *_" अल्हा ने अपनी कुदरत से इंसान के बदन के हर हिस्से मे एक खास काम की कुदरत रखी है! चुनांचे इंसान के पाखाने के मकाम मे अंदर से बाहर फेंकने की कुव्वत रखी है!अज्लात (Limps) इस मकाम पर निगहबानी के लिये हर वक्त तैय्यार रहते है की कोई बाहर की चिज अंदर न जाने पाए! लेकीन जब खिलाफे फितरत  इस मकाम से सोहबत की जाती है तो वह सिमटने और कभी फैल जाने से जख्मी हो जाते है! रगे चमकने लगती है, और बार बार की रगड से जख्म पैदा कर देती है! और इंसान मुख्तलीफ किस्म के मर्जो मे मुब्तला हो जाता है!_*

 *_इसी तरह वह शख्स अपने उज्वे तनासुल (लिंग) को मर्द के पिछे के मकाम मे दाखील करता है, इससे उसके उज्वे मख्सुस (लिंग) की नसे कमजोर हो जाती है! नसे ढिली पड जाती है! पठ्ठे ढिले हो जाते है!_*

✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

📮 *_जारी है..._*
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 074 📕*_
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         *_🔥पेशावर औरते (वेश्याए) 🔥_*

 👉🏻 *_अक्सर नौजवान अपनी जवानी पर काबु नही रखते है! गलत संगत और सोहबत मे पडकर अपनी हवस को मिटाने के लिये पेशावर (वेश्याओ) का सहारा लेते है! और कुछ शादी-शुदा भी अपनी बिवी के होते हुए पेशावर औरतो के पास जाना नही छोडते!_*

_*अगर एक ही प्लेट मे तरह -तरह के खाने खट्टा, मिठ्ठा, तेज और कडवा सब मिलाकर रख दिया जाए तो यकीनन उसमे बदबु और किडे पड ही जाएंगे! बस इन पेशावर औरतो की मिसाल इसी प्लेट की मानींद है! एक वक्त की जरा सी लज्जत के लिये उस प्लेट से एक बार भी कुछ चखा नही के वह एक ऐसी दलदल मे फंस जाता है, के जितना बाहर निकलने की कोशीश करता है, उतना ही और दलदल मे फंसता चला जाता है! नतीजा उसकी उम्र भर की सेहत, तंदरुस्ती, इज्जत, शौहरत, दौलत, आराम, सुकुन व चैन सब कुछ बर्बाद होकर रह जाता!*_

💎 *_हमारा रब तबारक तआला इर्शाद फर्माता है..._*

*_قُلۡ لِّلۡمُؤۡمِنِیۡنَ یَغُضُّوۡا مِنۡ  اَبۡصَارِہِمۡ وَ یَحۡفَظُوۡا فُرُوۡجَہُمۡ ؕ ذٰلِکَ اَزۡکٰی لَہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ خَبِیۡرٌۢ  بِمَا یَصۡنَعُوۡنَ ﴿۳۰﴾_*

*_मुसलमान मर्दो को हुक्म दो, अपनी निगाहे कुछ निची रखे! और अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करे! यह इनके लिये बहुत सुथरा है! बेशक अल्लाह को इनके कामो की खबर गै!_*

💎 *_और अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है......_*

*_اَلۡخَبِیۡثٰتُ لِلۡخَبِیۡثِیۡنَ وَ الۡخَبِیۡثُوۡنَ لِلۡخَبِیۡثٰتِ ۚ وَ الطَّیِّبٰتُ لِلطَّیِّبِیۡنَ وَ الطَّیِّبُوۡنَ لِلطَّیِّبٰتِ ۚ_*

💎 *_गंदियॉं गंदो के लिये, और गंदे गंदीयों के लिये और सुथरीयॉ सुथरो के लिये, और सुथरे सुथरीयो के लिये!_*

📕 *_[तर्जुमा : कुरआन कंजुल इमान सुर ए नुर आयत नं. 30 और 20]_*

💫 *_इन आयतो की तफ्सीर मे उलमा ए किराम इर्शाद फर्माते है की......_*

*_"बदकार और गंदी औरते, गंदे और बदकार मर्दो के लायक है! इसी तरह बदकार और गंदे मर्द इसी काबील है के उनका ताल्लुक उन जैसे ही गंदी और बदकार औरतो से हो! जबकी सुथरे (पाक), नेक मर्द सुथरी (पाक), और नेक औरतो के लायक है! इसी तरह सुथरी, नेक औरत सुथरे और नेक मर्द के लायक है! और सुथरे, नेक का रिश्ता सुथरी, नेक औरतो से और सुथरी और नेक औरत का रिश्ता सुथरे और नेक मर्द से ही किया जा सकता है!_*

📚 *_हदीस : हमारे प्यारे मदनी आका ﷺ इर्शाद फर्माते है........._*

💫 *_"जिसने जिना किया या शराब पी अल्लाह तआला उसमे से ईमान को ऐसे निकालता है, जैसे इंसान सर से अपना कुर्ता निकालता है!_*

👉🏻 _*इस हदीस पाक से वह लोग दिल से सोचे जो पेशेवर औरतो के पास जाते है, और जिना जैसे खबीस गुनाह का इर्तीकाब करते है! ताज्जुब है कोई मुसलमान होकर जिना करे! खुदारा ऐसे लोग अब भी होश मे आ जाए मौत के आने से पहले! बाद मे होश भी आया तो किस काम का!*_

👉🏻 *_इससे पहले भी यह बयान हो चुका है के पेशावर (वेश्याओ) से मुबाशरत जिना ही कहलाएगी, हॉलांकी वह इस काम के रुपए लेती है, और इस काम के पर राजी भी होती है! लेकीन फरीखैन की आपसी रजा भी इस काम को जिना से अलग न कर पाएंगी! जिना के बारे मे बहुत सारी हदीसे "जिना" के बाब (Chapter) मे पहले ही बयान हो चुकी है!_*

💫 *_बदकार को नेक बनाने के लिये अमल :अगर किसी औरत का मर्द बदचलन हो और दुसरी औरतो के साथ हरामकारी करता हो! ऐसी औरत अपने बदकार मर्द से सोहबत से पहले बावुजु ग्यारह (11) "अल-वलीयो" पढे! अव्वल आखीर एक-एक मर्तबा दरुद शरीफ पढे! फिर शैहर से मुबाशरत करे! (यह अमल हर बार जब भी उसका शौहर उससे सोहबत करना चाहे कर लिया करे) इंशा अल्लाह तआला वह मर्द परहेजगार हो जाएंगा! इसी तरह किसी शख्स की औरत बदचलन हो या बदकारी करती हो तो वह भी अपनी औरत से सोहबत करने से पहले यह अमल हर बार कर लिया करे! इंशा अल्लाह तआला  वह औरत नेक व परहेजगार बन जाएंगी!_*

📕 *_[वजाइफे रज्वीया सफा नं. 219]_*

✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

📮 *_जारी है..._*
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              _*📕 करीना-ए-जिन्दगी 📕*_
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                         *_अपनी बात_*

👉🏻 *_जिनाकार मर्द और औरते अल्लाह और उसके रसुल के मुजरीम तो है ही साथ ही साथ माशराए इस्लाम को नुक्सान पहुचाने मे कोई कसर न छोडने वाले मुजरीम भी है_*

*_सभी हजरात जरा गौरो फिक्र और तवज्जो फर्माए!_*

 *_अल्लाह तआला ने जो तासीर, जज्बा वफादारी और जोश सच्चे मुसलमानो के खुन मे अता फर्माया है, वह किसी दुसरे मे नही! इस की बात ही न्यारी है!_*

*_313  सच्चे मुसलमानो के लश्कर ने एक हजार काफीर ए मक्का जो आला हथीयार, और साजो सामान से लैस थे उसे भी अल्लाह के फज्ल से धुल चटा दी!_*

💫 *_याद रहे "लोहा लोहे को काटता है" बस ए नौजवान मर्दो सिर्फ तुम अपने इसी खुन की हिफाजत करलो, गैरो मे इस के बीज ना बोओ (जिना से बचो) यकीन जानीये मुसलमान खवातीन के तरफ कोई नजर उठा कर भी नही देखेंगा इंशा अल्लाह तआला!_*

💫 *_ए नौजवान औरतो अपने खेतीयो मे कोई ऐरा गैरा पौधा लगाने के लिये कभी भुलकर भी कदम न बढाओ! (जिना से बचे) कौम बुजदिली से उभर जाएंगी और जिल्लत और रुसवाई से बच जाएंगी इंशा अल्लाह तआला!_*

*_अल्लाह तआला से दुआ है अपने महेबुब सल्ललाहु अलैही व सल्लम के सदके और तुफैल जो सच्चे दिल से तौबा करे उनकी तौबा को खुबुल फर्माए! और जिना जैसे बदतरीन गुनाह से हमारी और दुनीयॉ के तमाम मुसलमानो की हिफाजत फर्माए! आमीन!_*

✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

📮 *_जारी है..._*
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    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 073 📕*_
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                *_🔥ज़िना का बयान 🔥_*

👉🏻 *_जिना कैसे साबीत होंगा?_*

💎 *_अल्लाह तबारक तआला इर्शाद फ़र्माता है!.._*

*_وَ الَّذِیۡنَ یَرۡمُوۡنَ اَزۡوَاجَہُمۡ وَ لَمۡ  یَکُنۡ لَّہُمۡ شُہَدَآءُ  اِلَّاۤ  اَنۡفُسُہُمۡ فَشَہَادَۃُ اَحَدِہِمۡ  اَرۡبَعُ شَہٰدٰتٍۭ بِاللّٰہِ ۙ اِنَّہٗ  لَمِنَ الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۶﴾_*

*_وَ الۡخَامِسَۃُ اَنَّ لَعۡنَتَ اللّٰہِ عَلَیۡہِ  اِنۡ کَانَ مِنَ  الۡکٰذِبِیۡنَ ﴿۷﴾_*

*_وَ یَدۡرَؤُا  عَنۡہَا الۡعَذَابَ اَنۡ تَشۡہَدَ اَرۡبَعَ شَہٰدٰتٍۭ بِاللّٰہِ ۙ اِنَّہٗ لَمِنَ الۡکٰذِبِیۡنَ ۙ﴿۸﴾_*

*_وَ الۡخَامِسَۃَ  اَنَّ غَضَبَ اللّٰہِ عَلَیۡہَاۤ  اِنۡ  کَانَ مِنَ  الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۹﴾_*

📝 *_तर्जुमा आयत नं 6 : और वह जो अपनी औरतो को ऐब लगाए, और इनके पास अपने बयान के सिवा गवाह न हो तो, ऐसे किसी की गवाही यह है के,चार बार गवाही दे अल्लाह के नाम से के वह सच्चा है!_*

📝 *_तर्जुमा आयत नं 7 : और पॉंचवी यह के अल्लाह की लानत हो इस पर अगर झुठा हो!_*

📝 *_तर्जुमा आयत नं 8 : और औरत से युं सजा टल जाएंगी के वह अल्लाह का नाम लेकर चार बार गवाही दे के मर्द झुठा है!_*

📝 *_तर्जुमा आयत नं 9 : और पॉंचवी युं के औरत पर गजब अल्लाह का अगर मर्द सच्चा हो!_*

📕 *_[तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान सूर ए नुर आयत नं, 6, 7, 8 और 9]_*

👉🏻 *_किन लोगो की गवाही मोतब्बर मानी जाएंगी?_*

💫 _*जिना का सुबुत बाशरअ, नमाजी, परहेजगार, मुत्तकी, जो न कोई गुनाहे कबीरा करते हो, न किसी गुनाहे सगीरह पर इसरार रखते हो, न कोई बात खिलाफे मुरव्वत छिछोरे पन की करते हो, और न ही बाजारो मे खाते पिते हो, और न ही सडको पर पेशाब करते हो, ऐसे चार मर्दो की गवाही से जिना साबीत होता है! या जिना करने वाले के चार मर्तबा इकरार कर लेने से, फिर भी इमाम बार बार सवाल करेंगा और दर्याफ्त करेंगा की........ तेरी जिना से मुराद क्या है? कहॉं किया? किससे किया? कब किया? अगर इन सबको बयान कर दिया तो जिना साबीत होंगा वर्ना नही!*_

👉🏻 *_झुठी गवाही देने वालो की सजा और गवाहो को खुल कर साफ साफ अपना चश्मदीद मुआइना बयान करना होंगा की हमने मर्द का बदन औरत के बदन के अंदर खास इस तरह देखा *जैसे  सुरमे दानी मे सलाई अगर इन बातो मे से कोई भी बात कम होंगी मसलन चार गवाहो से कम हो या उन मे एक आला दर्जा का न हो, या मर्द तीन हो और औरते दस-बिस ही क्यो न हो, इन सब सुरतो मे यह गवाहिंयॉ नही मानी जाएंगी! अगर्चे इस किस्म की सौ दो सौ गवाहियॉ गुजरी हरगिज जिना का सुबुत न होंगा और ऐसी तोहमत लगाने वाले खुद ही सजा पाएंगे! और उन्हे बतौर सजा अस्सी कोडे लगाए जाएंगे!_*

📕  *_[फतावा रज्वीया, जिल्द 5 सफा नं. 974]_*

 *_وَ الَّذِیۡنَ یَرۡمُوۡنَ الۡمُحۡصَنٰتِ ثُمَّ لَمۡ یَاۡتُوۡا بِاَرۡبَعَۃِ  شُہَدَآءَ فَاجۡلِدُوۡہُمۡ ثَمٰنِیۡنَ جَلۡدَۃً  وَّ لَا تَقۡبَلُوۡا لَہُمۡ شَہَادَۃً  اَبَدًا ۚ وَ اُولٰٓئِکَ ہُمُ  الۡفٰسِقُوۡنَ ۙ﴿۴﴾_*

📝 *_तर्जुमा : जो लोग पाक दामन औरतो पर जिना की तोहमत (इल्जाम) लगाए, फिर चार गवाह न पेश कर सके, तो इन्हे 80 कोडे लगाओ, और कभी भी इनकी गवाही कबुल न करो यह फासीक (झुठे) लोग है!_*

📕 *_[तर्जुमा :  क़ुरआन कंजुल इमान सूर ए नुर आयत न. 4]_*

*_आला हजरत इमाम अहमद रजा कादरी और हजरत सदरूल-अफाजील अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैही "फतावा रज्वीया" और तफ्सीर कुरआने करीम  "खजाएनुल-इर्फान" मे गैर शादी-शुदा जानी मर्द और जानी औरत के सजा के बारे मे नक्ल  करते है............_*

*_"जानी मर्द को कोडे लगाते वक्त खडा किया जाए! और उसके तमाम बदन के कपडे उतार दिये जाए, सिवाए लुंगी के और उसके तमाम बदन पर कोडे लगाए जाए सिवाए चेहरा और शर्मगाह के! और औरत को कोडे लगाते वक्त खडा न किया जाए न उसके कपडे उतारे जाए अगर पोस्तीन या रूईदार कपडे पहने हुए हो तो उतार लिया जाए!"_*

✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

📮 *_जारी है..._*
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...