Monday, August 26, 2019



  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 100)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌क्यों कि अब सूरज की दूरी चार हज़ार साल सफ़र की दूरी है और हमारी दुनिया की तरफ सूरज की पीठ है तो फिर भी जब सूरज सामने आ जाता है तो घर से निकलना दूभर हो जाता है लेकिन जब सूरज एक मील की दूरी पर होगा और सूरज का मुँह हमारी तरफ़ होगा तो आग और गर्मी का क्या हाल होगा और अब तो मिट्टी की ज़मीन है तो पैरों में छाले पड़ते हैं तो उस वक्त जब ताँबे की ज़मीन होगी और सूरज करीब होगा तो उस गर्मी का कौन अन्दाज़ा कर सकता है अल्लाह पनाह में रखे*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 35*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 099)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌काफिर मुँह  के बल चलते चलते मैदाने हश्र में जायेंगे  किसी को फ़रिश्ते घसीट कर ले जायेंगे किसी को आग घेर कर लायेगी  यह हश्र का मैदान मुल्के शाम की ज़मीन पर काइम होगा ज़मीन ताँबे की होगी और इतनी चिकनी और बराबर होगी कि एक किनारे पर राई का दाना गिर जाये ते दूसरे किनारे से साफ दिखाई देगा  उस दिन सूरज एक मील की दूरी पर होगा  इस ह़दीस के रिवायत करने वाले कहते हैं कि पता नहीं मील का मतलब सुर्मे की सलाई है या रास्ते की दूरी है  अगर रास्ते की दूरी भी मान ली जाये तो भी सूरज बहुत करीब होगा*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 34 35*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 098)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌अक़ीदा : - जिस्म के टुकड़े अगरचे मरने के बाद अलग अलग हो गये हों या उन्हें जानवर खा गये हों अल्लाह तआ़ला जिस्म के उन तमाम टुकड़ों को इकट्ठा कर के क़ियामत के दिन उठायेगा  क़ियामत के दिन लोग अपनी अपनी कब्रों से नंगे बदन नंगे पाँव उठेंगे और वह लोग ऐसे होंगे कि उनकी खतना न हुई होगी  कोई सवार होगा कोई पैदल कुछ अकेले सवार होंगे और किस सवारी पर दो किसी पर तीन किसी पर चार और किसी पर दस सवार होंगे*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 34*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 097)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌अक़ीदा : - क़यामत बेशक काइम होगी और इसका इन्कार करने वाला काफिर है* 

*अक़ीदा : - हुश्र सिर्फ रूह का ही नहीं होगा बल्कि रूह और जिस्म दोनों का होगा  अगर कोई यह कहे कि रूहें उठेंगी और जिस्म ज़िन्दा नहीं होंगे तो वह भी गुमराह और बद्दीन है  दुनिया में जो रूह जिस जिस्म के साथ थी उस रूह का हश्र उसी जिस्म के साथ होगा ऐसा नहीं होगा कि कोई नया जिस्म पैदा कर के उसके साथ रूह लगा दी जाये*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 34*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 096)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌तर्जमा : - आज किस की बादशाहत है कहा हैं वह जाबिर और कहा है मुतकब्बिर मगर है कौन जो जवाब दे फिर खुद ही फरमायेगा कि*

*तर्जमा : - सिर्फ अल्लाह वाहिद कह़हार की सलतनत है* 

*फिर जब अल्लाह तआ़ला चाहेगा इस्राफील अ़लैहिस्सलाम जिन्दा किये जायेंगे और सूर को पैदा करके दोबारा फुंकने का हुक्म देगा  सूर फूंकते ही तमाम पहले और बाद वाले इन्सान , जिन्नात हैवानात फरिश्ते मौजूद हो जायेंगे । । सबसे पहले नबियों के सरदार , अल्लाह के महबूब , हम सब के आका व मौला हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी कब्र मुबारक से  इस शान से निकलेंगे कि उनके दाहिने हाथ में पहले ख़लीफ़ा हज़रते अबूबक्र का हाथ और बायें हाथ में दूसरे खलीफा हज़रते उमर फारूक़ रद़िल्लाहु अ़न्हुमा का हाथ होगा  फिर मक्का शरीफ और मदीना शरीफ की कब्रों में जितने मुसलमान दफ़न हैं सबको अपने साथ लेकर हश्र के मैदान में तशरीफ़ ले जायेंगे*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 34*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 095)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌(28) जब सारी निशानिया पूरी हो जायेंगी और मुसलमानों की बगलों के बीच से वह खुश्बूदार हवा गुज़र लेगी जिस से सारे मुलसमान वफ़ात पायेंगे तो उसके बाद फ़िर चालीस साल का ज़माना ऐसा गुजरेगा कि उसमें किसी की औलाद न होगी  मतलब यह कि चालीस साल से कम उम्र का कोई न होगा  वह एक ऐसा वक्त़ होगा कि हर तरफ काफिर ही काफिर होंगे और अल्लाह कहने वाला कोई न होगा लोग अपने अपने कामों में लगे होंगे कि अचानक हज़रते इस्राफील अ़लैहिस्सलाम सूर फुकेंगे  पहले पहले उसकी आवाज़ बहुत धीमी होगी फिर धीरे धीरे बहुत ऊँची हो जायेगी लोग कान लगा कर उसकी आवाज़ सुनेंगे और बेहोश होकर गिरेंगे और फिर मर जायेंगे आसमान , जमीन, पहाड़ , चाँद सूरज , सितारे सूर , इस्राफील और तमाम फ़रिश्ते फना हो जायेंगे | उस वक्त सिवा उसे खुदाये जुलजलाल के कोई न होगा उस वक्त़ वह पूरे जलाल के साथ फ़रमायेगा*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 34*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 094)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌(27) सूरज का पशिंचम से निकलना : - ' इस निशानी के ज़ाहिर होते ही तौबा का दरवाज़ि बन्द हो जायेगा अगर उस वक्त कोई इस्लाम कबूल करना चाहे तो उस का इस्लाम कबूल नहीं किया जायेगा*

*(28) हज़रत ईसा अ़लैहिस्सलाम की वफ़ात के एक ज़माने के बाद जब क़ियामत कायम होने को सिर्फ चालीस साल बाकी रह जायेंगे तो एक खुश्बूदार ठंडी हवा चलेगी जो लोगों की बगलों से गुजरेगी जिसका नतीजा यह होगा कि मुसलमानों की रूह कब्ज़ हो जायेगी और काफिर ही काफिर रह जायेंगे और उन्ही पर क़यामत काइम होगी  यह कुछ निशानियाँ थीं जो बयान की गई इनमें से कुछ तो जाहिर हो चुकीं और कुछ बाकी है*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 33 34*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 093)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌(25) उसके बाद एक ऐसा वक़्त आयेगा कि अल्लाह के हुक्म से ऐसा धुआँ ज़ाहिर होगा कि ज़मीन से आसमान तक अँधेरा ही अँधेरा होगा*

*(26) दाब्बतुल अर्द का निकलना : - दाब्बतुल अर्द एक ऐसा जानवर होगा जिसके हाथ में हज़रते मूसा अ़लैहिस्सलाम का असा ( लाठी ) और हज़रते सुलैमान अ़लैहिस्सलाम की अँगूठी होगी वह उस असे से हर मुसलमान की पेशनी पर एक नूरानी निशान बनायेगा और अँगूठी से हर काफ़िर के माथे पर एक बहुत काला धब्बा बनायेगा उस वक़्त सारे मुसलमान और काफ़िर साफ ज़ाहिर होंगे मुसलमानों और काफिरों की यह निशानियाँ कभी न बदलेंगी जो काफिर है वह कभी ईमान न लायेगा और जो मोमिन है हमेशा ईमान पर क़ाइम रहेगा*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 33*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 092)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌( 24 ) याजूज माजूज का निकलना : -  फिर हज़रते ईसा अ़लैहिस्सलाम और उनके साथियों की दुआ़ओं से अल्लाह तआ़ला कुछ परिन्दे भेज देगा जो उन की लाशों को जहाँ अल्लाह चाहेगा फेंक आयेंगे और उन के तीर व कमान व तर्कश को मुसलमान सात साल तक जलायेंगे  फिर ऐसी बारिश होगी कि ज़मीन को हमवार कर छोड़ेगी जिस से फल पैदा होंगे अल्लाह के हुक्म से ज़मीन और आसमान से इतनी बरकत नाज़िल होगी कि एक अनार से जमाअ़त का पेट भर जायेगा और उसके छिलके के साये में दस आदमी बैठ सकेंगे दूध में इतनी बरकत होगी कि एक ऊँटनी का दूध एक जमाअ़त कि लिए एक गाय का दूध कबीले के लिए और एक बकरी का दूध एक ख़ानदान के लिए काफी होगा*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 33*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 091)*_
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               *आखिरत और हश्र का बयान*

*☝️‌( 24 ) याजूज माजूज का निकलना : - यह कह कर वे अपने तीर आसमान की तरफ फेकेंगे अल्लाह की क़ुदरत से उनके तीर खून में लिथड़े हुए गिरेंगे यह अपनी इन्ही हरकतों में मशगूल होंगे और वहाँ पहाड़ पर हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम अपने साथियों के साथ घिरे हुए होंगे यहाँ तक कि उन के नज़दीक गाय के सर की वह हैसियत होगी जो आज तुम्हारे नज़दीक सौ अशरफियों की नहीं उस वक्त हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपने साथियों के साथ दुआ फ़रमायेंगे अल्लाह तआ़ला उन की गर्दनों में कोड़े पैदा कर देगा कि एक दम में वह सब मर जायेंगे याजूज माजूज के मरने के बाद जब पहाड़ से उतरेंगे तो सारी ज़मीन पर उन्हें याजूज माजूज की सड़ी हुई इतनी लाशें मिलेंगी कि एक बालिश्त जमीन भी खाली नहीं मिलेगी*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 33*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 090)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️‌  *( 24 ) याजूज माजूज का निकलना : - जब हजरते ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों को कोहे तूर पर ले जायेंगे तो याजूज माजूज निकलेंगे यह इतने ज़्यादा होंगे कि दस मील की एक नदी या झील ‘ बूहैरये तबरीय्यापर से जब उनकी पहली जमाअ़त गुजरेगी तो जमाअ़त के लोग उस नदी या झील का पानी पीकर इस त़रह सुखा देंगे कि बाद में आने वाली दूसरी जमाअ़त यह कहेगी कि यहाँ कभी पानी था  यह याजूज माजूज जब दुनिया में क़त्ल और ग़ारत से फुरसत पायेंगे तो कहेंगे कि ज़मीन वालों को तो क़त्ल कर चुके अब आसमान वालों को भी कुत्ल किया जाये*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32 33*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 089)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️‌  *( 23 ) हज़रते इमाम मेहदी का जाहिर होना : - तमाम लोग उनके हाथों पर बैअ़त करेंगे और वहाँ से सब को अपने साथ लेकर मुल्के शाम  को तशरीफ ले जायेंगे दज्जाल के क़त्ल के बाद अल्लाह तआ़ला का हज़रते ईसा अ़लैहिस्सलाम के लिए हुक्म होगा कि मुसलमानों को कोहे तूर (एक पहाड़ का नाम) पर ले आओ । इसलिए कि कुछ ऐसे लोग जाहिर होंगे जिनसे लड़ने की किसी में ताक़त न होगी*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 088)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️‌  *( 23 ) हज़रते इमाम मेहदी का जाहिर होना : - हज़रते इमाम मेहदी रद़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु के जाहिर होने का वाक़िआ यह है कि दुनिया में जब सब जगह से इस्लाम सिमट कर मक्के मदीने में पहुँच जायेगा  उस वक्त सारे अबदाल और औ़लिया हिजरत कर के वहीं पहुँच जायेंगे  सारी ज़मीन कब्रिस्तान होगी  रमज़ान शरीफ का महीना होगा  अबदाल काबे का तवाफ़ करते होंगे हज़रते इमाम मेहदी भी वहीं होंगे  औलिया उन्हें पहचान कर उनसे बैअ़त के लिए कहेंगे  (वह इन्कार करेंगे) अचानक गै़ब से यह आवाज आयेगी कि*

*तर्जमा : - " यह अल्लाह के खलीफा मेहदी हैं इनकी बात सुनो और इनका हुक्म मानो*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 087)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️‌  *( 22 ) हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर : - सारी दुनिया में एक ही दीन इस्लाम और एक ही मजहब मजहबे  अहल - ए - सुन्नत होगा बच्चे सॉप से खेलेंगे  शेर और बकरी एक साथ नज़र आयेंगे  हजरत ईसा अलैहिस्सलाम चालीस साल तक रहेंगे  यह निकाह करेंगे और उनकी औलाद भी होगी  वफात के बाद रोजए अनवर में दफ्न होंगे*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 086)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️‌  *( 22 ) हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर : - अब हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर होगा आपके ज़माने में माल इतना ज़्यादा होगा कि अगर कोई किसी को कुछ देना चाहेगा तो वह लेने से इन्कार कर देगा उस ज़माने में दुश्मनी  ह़सद और जलन नाम की कोई चीज़ न होगी  हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम खिंजीर को मार डालेंगे और सलीब को तोड़ देंगे  तमाम अहले किताब मतलब तौरात , जबूर , इन्जील और कुर्आन शरीफ के मानने वाले जो दज्जाल के जुल्म से बच जायेंगे  वह हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लायेंगे*



_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 085)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️ *( 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : -  दज्जाल जब सारी दुनिया में फिर फिरा कर मुल्के शाम में पहुँचेगा तो उस वक्त हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान से दमिश्क की जामे मसिज्द के पूर्वी मीनार पर सुबह के वक़्त ऐसे वक़्त पर उतरेंगे जब कि फज्र की नमाज़ के लिए तकबीर हो चुकी होगी हज़रते इमाम मेहदी भी उस जमाअ़त में मौजूद होंगे उन से हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम इमामत के लिए कहेंगे हज़रते इमाम मेहदी रदियल्लाहु तआला अन्हु नमाज पढ़ायेंगे  उधर दज्जाल का हाल यह होगा कि वह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की साँस की खुश्बू से पिघलना शुरू होगा जैसे पानी में नमक घुलता है और साँस को खुश्बू दूर दूर तक फैलेगी  दज्जाल भागता फिरेगा और हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम उसका पीछा करते हुए उसकी पीठ पर नेजा मारेंगे और उस जहन्नमी को मौत के घाट उतार देंगे*



_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 084)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️ *( 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : -  अलबत्ता मदीने शरीफ में तीन ज़लज़ले आयेंगे वहा के जो लोग ज़ाहिर में मुसलमान बने होंगे और दिल से काफिर होंगे और वह लोग जिनके बारे में अल्लाह जानता है कि वे दज्जाल पर ईमान लाकर काफिर होंगे वह सब लोग इन ज़लज़लों के डर से शहर छोड़कर भागेंगे और दज्जाल के फितने का शिकार होंगे दज्जाल के साथ यहूदियों की फौज होगी दज्जाल के माथे पर  `काफ' फे'रे यानी काफिर लिखा होगा यह लफ्ज़ सिर्फ मुसलमान ही पड़ सकेंगे किसी काफिर को नज़र न आयेंगे*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 31 32*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 083)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️ *( 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : -  दज्जाल अपने आप को खुदा कहेगा जो उस पर ईमान लायेगा और उसे खुदा मान लेगा वह उसे अपनी जन्नत में डालेगा और जो उसे खुदा मानने से इन्कार करेगा उसको वह अपने जहन्नम में डाल देगाा दज्जाल मुर्दै जिलायेगा ज़मीन उसके हुक्म से सब्जे उगायेगी वह आसमान से पानी बरसायेगा लोगों के जानवर खूब लम्बे चौड़े तैयार और दूध वाले हो जायेंगे  और जब वह वीरान जंगलों में जायेगा तो शहद की मक्खियों की तरह दल के दल जमीन के खजाने उसके साथ हो जायेंगे इसी किस्म के वह बहुत से करतब और करिश्में दिखलायेगा लेकिन हक़ीक़त में कुछ भी न होगा यह सब जादू और शैतानों के करश्मेि और तमाशे होंगे इसलिए दज्जाल के वहाँ से जाते ही लागों के पास कुछ न रहेगा दज्जाल जब हरमैन शरीफैन में जाना चाहेगा तो फ़रिश्ते उसका मुँह फेर देंगे*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 31*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 082)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️ *( 19 ) दरिन्दे जानवर आदमी से बात करेंगे  कोड़े की फुची और जूते के फीते भी बात करेंगे   जब आदमी बाजार जायेगा तो जो कुछ उसके घर में हुआ होगा जूते के तस्मे उससे बतायेंगे । यहाँ तक कि इन्सान की रान भी इन्सान को खबर देगी*

*( 20 ) जलील और गंवार लोग जिनको तन का कपड़ा और पाँव की जूतियाँ नसीब न थी बड़े बड़े  महलों में गुरूर के साथ रहेंगे*

*( 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : - दज्जाल चालीस दिन में ( हरमैन शरीफैन के अलावा ) सारी दुनिया फिरेगा चालीस दिन में पहला दिन साल भर के बराबर होगा दूसरा दिन महीने भर के बराबर तीसरा दिन हफ्ते के बराबर और बाकी दिन चौबीस घन्टे के होंगे दज्जाल आँधी तूफान की तरह तेजी के साथ जैसे बादल को हवा उड़ाती हो सैर करेगा   उसका फितना बहुत सख्त होगा     उसके साथ एक आग होगी और एक बाग दज्जाल जहा जायेगा उसके साथ यह दोनों चीजें जायेंगी  आग को वह जहन्नम बतायेगा और बाग को जन्नत लेकिन जो देखने में आग होगी और जिसे जहन्नम समझा जायेगा वही हक़ीक़त में आराम की जगह होगी और जो देखने में बाग होगा वह हक़ीक़त में आग होगी*



_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 31*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 081)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️ *( 11) लोगों पर ज़कात देना भारी होगा लोग जकात को तावान जुर्माना समझेंगे*

*( 12 ) कुछ लोग इल्मे दीन पढेंगे लेकिन दीन के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिये*

*( 13 ) मर्द अपनी औरत का फ़रमाँबरदार होगा*

*( 14 ) औलादें अपने माँ बाप की नाफरमानी करेंगी*

*( 15  ) लड़के अपने दोस्तों से मेल जोल रखेंगे और माँ बाप से जुदा हो जायेंगे*

 *( 16 ) लोग मस्जिदों में दुनिया की बेकार बातें करेंगे और चिल्लायेंगे*

*( 17 ) गाने बजाने की ज़्यादती होगी*

*( 18 ) लोग अगले लोगों पर लानत करेंगे और उन्हें बुरा कहेंगे*



_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 31*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 080)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️  *( 7 ) माल बहुत ज़्यादा हो जायेगा यहाँ तक कि फुरात की नदी में से सोने के पहाड़ निकलेंगे*

*( 8 ) अरब जैसे मुल्क में खेती बाग और नहरें हो जायेंगी*

 *( 9 ) दीन पर काइम रहना इतना मुश्किल होगा जैसा कि मुठ्ठी में अंगारा लेना मुश्किल है  यहाँ तक कि नेक और शरीफ आदमी कब्रिस्तान में जाकर तमन्ना करेगा कि काश मैं इस कब्र में होता*,

*( 10 ) वक्त में बरकत न होगी यहाँ तक कि एक साल महीने की तरह महीना हफ्ते की तरह हफ्ता दिन की तरह और दिन ऐसा हो जायेगा कि जैसा किसी चीज को आग लगी और जल्दी ही  बुझ गई यानी बहुत जल्दी जल्दी वक़्त गुजरेगा*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30 31*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 079)*_
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                *आखिरत और हश्र का बयान*

☝️  *( 3 ) जिहालत बहुत बढ़ जायेगी मतलब दीन का इल्म रखने वाले बहुत कम हो जायेंगे*

*( 4 ) ज़िना की ज़्यादती होगी और बेहयाई और बेशर्मी इतनी बढ़ जायेंगी बड़े छोटे का अदब लिहाज खत्म हो जायेगा*

*( 5 ) मर्द कम होंगे और औरतें इतनी ज्यादा होंगी कि एक मर्द की मातहूती में पचास पचास औरतें होंगी*

*( 6 ) उस बड़े दज्जाल के अलावा तीस और दज्जाल होंगे और यह सब नुबुव्वत का दावा करेंगे जबकि नुबुव्वत खत्म हो चुकी है*

 *उन नुबुव्वत के दावा करने वालों में से कुछ गुजर चुके हैं जैसे मुसलमा कज़्ज़ाब तलीहा इने खुवैलद असवद अंसी , सज्जाह ( एक औरत जो बाद में इस्लाम ले आई ) और गुलाम अहमद क़ादियानी के अलावा ज़ाहिर हेंगे*


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 078)*_
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          _*आखिरत और हश्र का बयान*_

_*बेशक ज़मीन आसमान जिन  इन्सान और फ़रिश्ते सब एक दिन फना हो  जायेंगे सिर्फ अल्लाह तआ़ला ही हमेशा से है और हमेशा रहेगा*_

_*दुनिया के फना होने से पहले कुछ निशानियाँ जाहिर होंगी जैसे*_

_*1). तीन खुसूफ होंगे मतलब यह कि आदमी ज़मीन में धंस जायेंगे यह खुसूफ पूरब में दूसरा पिश्चम में और तीसरा अरब के जज़ीरे में*_

_*2). दीन का इल्म उठ जायेगा मतलब आलिम उठा लिए आयेंगे । ऐसा भी नहीं कि आलिम बाकी रहें और उनके दिलों से इल्म मिट जाये और खत्म हो जाये*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 077)*_
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                    *एक ज़रूरी बात*

_*☝🏻मसला - अल्लाह के वह खास बन्दे जिनके बदन को मिट्टी नहीं खा सकती वह अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम औलियाए किराम दीन के आलिम कुर्आन शरीफ के हाफिज़ जो कुर्आन पर अमल करते हों  जिनको अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत हो  वह जो अल्लाह के महबूब हों वह जिस्म जिसने कभी अल्लाह की नाफरमानी न की हो और वह लोग जो ज़्यादा से ज़्यादा दुरूद शरीफ पढ़ते हैं उनके बदन सलामत रहते हैं  अगर कोई किसी नबी की शान में गुस्ताखी और बेअदबी की यह बात कहे कि  मर के मिट्टी में मिल गये ' तो वह गुमराह और बद्दीन है*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 076)*_
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☝🏻 *अकीदा : - मुर्दा अगर कब्र में दफ्न न किया जाये तो जहाँ पड़ा रह गया , फेंक दिया गया या जला दिया गया गरज़ कहीं भी हो उससे वहीं सवालात होंगे  यहाँ तक कि उसे शेर या और कोई दरिन्दा खा गया तो उस मुर्दे से पेट में ही सवालात किये जायेंगे और उसे वहीं सवाब या अजाब पहुँचेगा*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 075)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - कब्र के अज़ाब और कब्र की नेमतें हक़ हैं यह दोनों चीजें जिस्म और रूह दोनों पर हैं  जैसा कि ऊपर बताया गया अगरचे जिस्म गल जाये जल जाये या खाक हो जाये मगर उसके असली टुकड़े क़ियामत तक बाकी रहेंगे और उन्हीं पर अ़ज़ाब या सवाब होगा और क़ियामत के दिन दोबारा इन्हीं पर जिस्म की बनावट होगी  यह अजज़ा टुकड़े ‘ अ़जबुज़्ज़नब ' कहलाते हैं  यह इतने बारीक होते है कि न किसी खुर्दबीन से नज़र आ सकते हैं न उन्हें आग जला सकती है न ज़मीन उन्हें गला सकती है  यही जिस्म के बीज हैं  इसीलए क़ियामत के दिन रूहें अपने उसी जिस्म ही में लौटेंगी किसी दूसरे बदन में नहीं  जिस्म के ऊपरी हिस़्सों के बढ़ने घटने से जिस़्म नहीं बदलता  जैसे कि बच्चा पैदा होता है तो छोटा होता है फिर बड़ा और हट्टा कट्ट्टा जवान होता है  फिर वही बीमारी में दुबला पतला हो जाता है और उस पर जब नया गोश्त पोस्त आता है तो वह फिर अपनी असली हालत में आ जाता है  इन तबदीलियों से यह नहीं कहा जा सकता कि शख़्स बदल गया  ऐसे ही क़ियामत के दिन का लौटना है कि जिस्म के गोश्त और हड्डियाँ जो ख़ाक या राख हो गई हों और उनके ज़र्रे जहाँ कहीं भी फैले हुए हों अल्लाह तबारक व तआ़ला उन्हें जमा कर के उसको पहली हालत पर लायेगा  और वह असली अजज़ा जो पहले से महफूज हैं उनसे जिस्म को मुरक्कब करेगा यानी बनायेगा और हर रूह को उसी पुराने जिस्म में भेजेगा इसका नाम `हश्र' है कब्र के अ़ज़ाब और सवाब का इन्कार गुमराही है*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29 30*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 074)*_
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_*मुनाफिक मुर्दा हर सवाल के जवाब में कहेगा।*_

_*📝तर्जमा :- "अफ़सोस मुझे तो कुछ पता नहीं और यह भी कहेगा कि :-*_
_*📝तर्जमा :- "मैं लोगों को कुछ कहते सुनता था तो मैं भी कहता था।*_

_*उस वक्त गैब से एक आवाज़ आयेगी कि यह झूटा है। इसके लिए आग का बिछौना बिछाओ, आग का लिबास पहनाओं और जहन्नम की तरफ दरवाजा खोल दो। फिरिश्ते खिड़की खोल देंगे। उसकी गर्मी और लपट पहुँचेगी और उस पर अज़ाब देने के लिए दो फरिश्ते मुकर्र होंगे जो अंधे और बहरे होंगे। उन के साथ लोहे का ऐसा गुर्ज होगा कि अगर उसे पहाड़ पर भी मारा जाये तो पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो जाये। उस गुर्ज से मुनाफिक को वह फरिश्ते मारते रहेंगे। सांप और बिच्छू उसे डसते रहेंगे और उसके गुनाह कुत्ते या भेड़िये की शक्ल में जाहिर हो कर उसे तकलीफ पहुँचायेंगे। नेक लोगों के अच्छे अमल महबूब और अच्छी अच्छी सूरतों में ढलकर उनके दिल बहलायेंगे।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 073)*_
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_*मुनाफिक के लिए इसका उल्टा होगा कि पहले जन्नत की खिड़की खुलेगी ताकि मुनाफिक उसकी खुशबू उसकी ठन्डक आराम और नेमत की झलक देख ले और फिर वह खिड़की फौरन बन्द कर दी जायेगी और दोजख की खिड़की खोल दी जायेगी ताकि उस पर बड़ी बला भी हो और दिल से ईमान न लाने की हसरत भी बाकी रहे कि हजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न मान कर या उनकी शान में गुस्सा करके कैसी दौलत खोई और कैसी आफत पाई।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 072)*_
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_*कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि गुनहगार मोमिन पर अजाबे कब्र जुमा की रात आने तक है। उस रात के आते ही अज़ाब उठा लिया जायेगा। हाँ यह हदीस से साबित है कि जो मुसलमान जुमे की रात में जुमे के दिन या रमजान शरीफ के किसी दिन में या रात में मरेगा वह मुनकर नकीर के सवाल से और कब्र के अज़ाब से बचा रहेगा।*_

_*मोमिन मुर्दे के लिए जन्नत की खिड़की इस तरह खुलेगी कि पहले उसके बायें हाथ की तरफ से जहन्नम की खिडकी खोली जाएगी जिससे आग की लपट, जलन, गर्म हवा और तेज बदबू आयेगी। फिर यह खिडकी फौरन बन्द कर दी जायेगी और मुर्दे की दाहिनी तरफ से जन्नत की खिडकी खुलेगी और इस से कहा जायेगा कि अगर तू इन सवालों के ठीक जवाब न देता तो तेरे वास्ते वह खिडकी थी लेकिन अब यह है कि ताकि वह अपने रब की नेमत की कद्र जाने कि उसने कैसी बड़ी बला से उसे नजात दी और कैसी बडी नेमत उसे अता की।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 28/29*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 071)*_
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_*फिरिश्ते उससे पुछेंगे कि यह सब चीजे तुझे किसने बताई तो वह जवाब देगा मैंने अल्लाह की किताब पढ़ी और किताब को सच्चा समझ कर उस पर ईमान लाया। कुछ और रिवायतों में यह है कि फ़िरिश्ते सवालों के जवाब पाकर यह कहेंगे कि हमें तो पता था कि तू यही कहेगा।*_

_*उस वक्त एक आवाज़ आयेगी कि मेरे बन्दे ने सच कहा। इसके लिए जन्नत का बिछौना बिछाओ जन्नत का लिबास पहनाओ इस के लिए जन्नत की तरफ एक दरवाजा खोल दो जन्नत की हवा और खुशबु उसके पास आती रहेगी और जहा तक नज़र फैलेगी वहीं तक उसकी कब्र खोल दी जाएगी और इससे कहा जायेगा कि तू इस तरह सो जा जैसे दुल्हन सोती है। यह खास लोगों के लिए है। लेकिन अल्लाह चाहे तो आम मोमिनीन के लिए भी इसी तरह का आराम मिल सकता है। हाँ कब्र का फैलाव मर्तबों और दजों के लिहाज से अलग अलग है। कुछ ऐसे हैं जिनकी कब्रे सत्तर सत्तर हाथ लम्बी चौड़ी हो जाती हैं। कुछ ऐसे हैं कि उनकी कब्रे इससे भी ज्यादा लम्बाई चौडाई में बढ़ा दी जाती है कि जहाँ तक उनकी निगाह पहुंचे और मोमिन गुनहगार पर उनके गुनाह के लाइक अज़ाब भी होगा। फिर वह अल्लाह की रहमत, अपने बड़े बड़े पीरों मजहबे इस्लाम के इमाम या अल्लाह के वलियों की शफाअत से अगर अल्लाह चाहे तो नजात पायेंगे।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 28*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 070)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - दफ्न करने वाले जब दफ्न कर के चले जाते हैं तो मुर्दे उनके जूतों की आवाज़ सुनते हैं। उस वक्त उनके पास दो फिरिश्ते अपने दातों से जमीन चीरते हुऐ आते हैं। उनकी शक्ल निहायत डरावनी और नीली देग के बराबर शोले की तरह होती हैं। उनके सर से पाव तक डरावने बाल होते हैं। उनके दात कई हाथ के होते हैं जिनमें वह जमीन चीरते हुए आयेगें। इन दोनो फिरिश्तों में से एक को 'मुनकर' और दुसरे को 'नकीर' कहते हैं। यह फ़िरिश्ते मुर्दे को झिंझोड़ कर झिड़क कर उठाते हैं और बहुत सख्ती के साथ सख्त आवाज़ में मुर्द से सवालात करते हैं।*_

_मुर्दे से पहला सवाल यह किया जाता है कि :-_
_*📝तर्जमा :- तेरा रब कौन है ?*_

_फरिश्ते दुसरा सवाल यह करते हैं कि :-_
_*📝तर्जमा :- तेरा दीन क्या है?*_

_और मुर्दे से तीसरा सवाल यह किया जाता है कि :-_
_*📝तर्जमा- (दुनियां में) इनके बारे में तु क्या कहता था।*_

_मुर्दा अगर मुसलमान हैं तो पहले सवाल के जवाब में कहेगा :-_
_*📝तर्जमा :- मेरा रब अल्लाह है।*_

_दुसरा सवाल का जवाब यह देगा कि :-_
_*📝तर्जमा : मेरा दीन इस्लाम है।*_

_और तीसरे सवाल का जवाब मोमिन और मुसलमान मुर्दा यह देगा कि :-_
_*📝तर्जमा :- वह तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 28*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 069)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- मुर्दे कलाम भी करते हैं और उनकी बातों को आम लोग जिन और इन्सान नहीं सुन सकते लेकिन तमाम किस्म के जानवर वगैरा सुनते हैं।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- जब मुर्दे को कब्र में दफन करते हैं उस वक्त कब्र उसको दबाती है। अगर वह मुसलमान है तो कब्र उसे इस तरह दबाती है जैसे माँ प्यार में अपने बच्चे को चिपटा लेती है और अगर काफिर है तो उसको इस जोर से दबाती है कि इघर की पसलिया उधर हो जाती है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27/28*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 068)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- यह अकीदा रखना कि रूह किसी दूसरे आदमी या किसी जानवर के बदन में चली जाती है बातिल और कुफ़्री अकीदा है। इस अकीदे को 'तनासुख और 'आवा गवन' का अकीदा कहते हैं या पुनर्जन्म भी कहते हैं। पुनर्जन्म को सच जानना कुफ़्र है।*_

_*☝🏻अक़ीदा - मौत का मतलब यह है कि रूह जिस्म से अलग हो जाए। इसका मतलब यह हरगिज़ नही कि रूह को मौत आ जाती है या रूह फना हो जाती है। अगर कोई रूह के लिए फना होना माने तो वह बदमजहब है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 067)*_
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_*और हदीस शरीफ में भी है कि :*_

_*📝तर्जमा - जब मुसलमान मरता है तो उसका रास्ता खोल दिया जाता है कि जहां चाहे जाये हजरत शाह अब्दुल अजीज साहिब मुहद्दिस देहलवी लिखते हैं कि (रूह रा कुर्ब व बोअ्दे मकानी यकसाँ अस्त) तर्जमा :- रूह के लिए जगह का करीब और दूर होना बराबर है।*_

_*मतलब यह है कि मोमिन की रूहें बिल्कुल आजाद हैं कि जब चाहें और जहां चाहें पहुँच जाएं। उन्हें कैद में नहीं रखा गया है। काफिरों की खबीस रूहों का यह हाल है कि कुछ की उनके मरघट या कब्र पर रहती हैं कुछ को "चाहे बरहूत" में (यमन में एक नाला है जिसका नाम चाहे बरहूत है) कुछ की रूहें पहली, दूसरी सातवीं जमीन तक और कुछ की रूहें उनके भी नीचे ‘सिज्जीन में रहती हैं और वह भी जहाँ कहीं हों जो उनकी कब्र या मरघट पर जाए उसे देखते पहचानते और बात सुनते हैं। उन्हें आने जाने का इखतियार नहीं क्यूंकि वह कैद में है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 066)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - मरने के बाद मुसलमान की रुह अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग जगहों में रहती है। कुछ की कब्र पर कुछ की चाहेज़मज़म शरीफ में कुछ की आसमान और जमीन के बीच कुछ की पहले आसमान से सातवें आसमान तक कुछ की आसमान से भी आला इल्लीन में रहती हैं मगर यह रुहें जहां कहीं भी रहें उनका अपने जिस्म से रिश्ता उसी तरह बराबर काइम रहता है। जो लोग उनकी कब्रों पर जाते हैं उनको वह पहचान लेते है और उनकी बाते सुनते हैं। और रूह के देखने के लिए यही जरूरी नहीं कि रूहें अपनी कब्रों से ही देखे बल्कि हदीस शरीफ में रूह की मिसाल इस तरह है कि एक चिड़िया पहले पिंजरे में बन्द थी और अब उसे छोड़ दिया गया और इमामों ने यह लिखा है कि :*_

_*📝तर्जमा :- "बेशक पाक जानें जब बदन की गिरफ्त से अलग होती है तो आलमे बाला से मिल जाती हैं। और सब कुछ ऐसा देखती सुनती है जैसे यही मौजूद है"।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 065)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- मरने के बाद भी रूह का रिश्ता इन्सान के बदन के साथ बाकी रहता है। रूह अगरचे बदन से अलग हो गई मगर बदन पर जो बीतेगी रूह को पता होगा और रूह पर उसका असर जरूर पड़ेगा जैसा कि दुनिया में जब बदन का असर रूह पर होता है उसी तरह या उससे भी ज्यादा मरने के बाद होता है।*_

_*इन्सान जब अपनी दुनिया की जिन्दगी ठंडा पानी, हवा, नर्म बिस्तर या आराम देने वाली सवारिया अपने इस्तेमाल में लाता है तो इन चीजों का असर जिस्म पर पड़ता है मगर आराम और राहत रूह को मिलती है। ऐसे ही जब इन्सान गर्म पानी, गर्म हवा, सख्त बिस्तर और तकलीफ देने वाली सवारियों को इस्तेमाल में लाता है तो उनकी गर्मी और सख्ती का असर इन्सान के जिस्स पर पडता है लेकिन तकलीफ रूह को होती है लेकिन जो चीज इन्सान के जिस्म पर असर कर के रूह के आराम और तकलीफ का सबब बनती है रूह की तकलीफ और आराम इन्हीं असबाब पर मौकूफ़ नहीं बल्कि कुछ ऐसे सबब भी हैं जिनका इन्सान के जिस्म से कोई ताल्लुक नहीं। जैसे कि कभी इन्सानी रूह को खुशी होती है और कभी गम और जाहिर है कि इन चीजों का तअल्लुक इन्सान जिस्म से कुछ भी नहीं बल्कि रूह के लिए आराम और तकलीफ के यह असबाब अलग से है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 26/27*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 064)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- हर एक के लिए मौत का दिन और वक्त मुकर्रर है। जिस की जितनी जिन्दगी है उसमें कमी बेशी नहीं हो सकती जब जिन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं उस वक्त हज़रते इज़राईल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज करने के लिए आते हैं। उस वक्त उस आदमी को उसके दाएं बाएं हर तरफ और जहाँ तक निगाह काम करती है। फिरिश्ते दिखाई देते हैं। मुसलमान के आस पास रहमत के फिरिश्ते होते हैं और काफिर के दाहिने बाएं अजाब के फ़िरिश्ते होते हैं। उस वक्त हर एक पर इस्लाम की हक्कानियत सूरज से ज्यादा रौशन हो जाती है। उस वक्त अगर कोई काफिर ईमान लाना चाहे तो उसका ईमान नहीं माना जायेगा। क्यों कि वह इसलाम की हक्कानियत देख कर ईमान लाना चाहता है और हुक्म ईमान बिल गैब का है यानी बे देखे ईमान लाने का और अब गैब यानी बिना देखे न रहा लिहाजा ईमान कुबूल नहीं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 26*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 063)*_
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           _*आलमे बरज़ख का बयान।*_

_*दुनिया और आखिरत के बीच एक और आलम है जिसको बरज़ख़ कहते हैं। मरने के बाद और कियामत से पहले तमाम इन्सानों और जिनों को अपने अपने मरतबे के लिहाज से बरजख में रहना होता है। और यह आलम इस दनिया से बहुत बड़ा है। दुनिया बरज़ख़ के मुकाबले में ऐसी है जैसे माँ के पेट में बच्चा। बरज़ख में कोई आराम से है और कोई तकलीफ से।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 26*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 062)*_
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                      _*जिन्न का बयान*_

_*अल्लाह तआला ने जिन्नों को आग से पैदा किया। इनमें बाज को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जायें। इनकी उम्रे बहुत ज्यादा होती हैं। इनके शरीरों को शैतान कहते हैं। यह सब इन्सान की तरह अक्ल वाले रूह और जिस्म वाले हैं। इनकी औलादें भी होती है खाते पीते हैं जीते मरते हैं।*_

_*☝🏻अक़ीदा - इनमें मुसलमान भी हैं और काफिर भी मगर इनके कुफ़्फ़ार इन्सानों का बनिस्बत बहुत ज्यादा हैं और इनमें नेक मुसलमान भी हैं और फासिक भी है, बदमजहब भी। इनमें फ़ासिकों की तादाद इन्सानों से ज्यादा है।*_

_*☝🏻अक़ीदा - जिन्नों के वुजूद का इन्कार करना या उनको बदी की कुव्वत का नाम देना कुफ़्र है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25/26*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 061)*_
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_*☝🏻अक़ीदा : फ़िरिश्तों के बारे में यह अक़ीदा रखना या जुबान से कहना कि फ़िरिश्तों का वुजूद नहीं है या यह कहना कि फरिश्ता नेकी की कुव्वत का नाम है और इसके सिवा कुछ नहीं यह दोनों बातें कुफ़्र हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 060)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- फ़िरिश्ते अनगिनत हैं उनकी गिनती वही जाने जिसने उन्हें पैदा किया है और अल्लाह के बताये से उसके प्यारे महबूब जानते हैं वैसे चार फिरिश्ते बहुत मशहूर हैं :*_

_*1- हज़रते जिब्रईल अलैहिस्सलाम*_
_*2- हज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम*_
_*3- हज़रते इसराफ़ील अलैहिस्सलाम*_
_*4- हज़रते इजराईल अलैहिस्सलाम*_

_*यह फ़िरिश्ते दूसरे सारे फ़िरिश्तों से अफ़जल हैं। किसी फिरिश्ते के साथ कोई हल्की सी गुस्ताखी भी कुफ़्र है। जाहिल लोग अपने किसी दुश्मन या ऐसे को देखकर जिस पर गुस्सा आये उसे देखते ही कहते है कि 'मलकुल मौत या इज़राईल' आ गया। लेकिन उन जाहिलों को खबर नहीं कि यह कलिमा कुफ़्र के करीब है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 059)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - फिरिश्तों के जिम्मे अलग अलग काम हैं। कुछ वह है कि जिनके जिम्मे नबियों के पास 'वही’ लाने का काम किया गया। कोई पानी बरसाता कोई हवा चलाता है कोई रोजी पहुँचाता है। कोई माँ के पेट में बच्चे की सूरतें बनाता है कोई इन्सान के बदन में कमी बेशी करता है कुछ वह फिरिश्ते हैं जो इन्सान की दुश्मनों से हिफाजत करते हैं। कुछ वह हैं जो अल्लाह व रसूल का जिक्र करने वालों के मजमे को तलाश करके उस मजमे में हाज़िर होते हैं। किसी के मुतअल्लिक इन्सान के आमाल नामा लिखने का काम कुछ वह हैं जो सरकारे रिसालत अलैहिस्सलाम के दरबार में हाजिरी देने का काम करते हैं। किसी के मुतअल्लिक सरकार की बारगाह में मुसलमानों की सलातु सलाम पहुँचाने का काम है। किसी के जिम्मे मुर्दों से सवाल करने का काम है कोई रूह कब्ज करता है। कुछ अज़ाब देने का काम करते हैं। किसी के जिम्मे सूर फ़ुंकने का काम है। इनके अलावा और भी बहुत से काम हैं जो फ़िरिश्ते अन्जाम देते हैं। इसके बावजूद यह फिरिश्ते न तो कदीम हैं और न खालिक। बल्कि सब मखलूक हैं। फ़िरिश्तों को कदीम या खालिक मानना कुफ़्र है। फिरिश्ते न मर्द हैं न औरत।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 058)*_
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           _*मलाइका (फ़िरिश्तों) का बयान*_

_*फिरिश्ते नूरी हैं। अल्लाह तआला ने उन को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जाये फिरिश्ते कभी इन्सान की शक्ल बना लेते हैं और कभी दूसरी शक्ल में।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- फिरिश्ते वही करते हैं जो अल्लाह का हुक्म होता है। फिरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ कुछ नहीं करते। न जान बूझ कर न भूले से और न गलती से। क्यूंकि वह अल्लाह के मासूम बन्दे हैं और हर तरह के सगीरा और कबीरा (छोटे-बडे) गुनाहों से पाक हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 057)*_
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_*सय्यिदना हजरते आदम अलैहिस्सलाम की एक लगजिश को देखिए कि उससे कितने फायदे हैं। अगर वह जन्नत से न उतरते तो दुनिया आबाद न होती, किताबें न उतरतीं, नबी और रसूल न आते आदमी न पैदा होते, आदमियों की जरूरत की लाखों चीजें न पैदा की जातीं, जिहाद न होते और करोड़ों फायदे की वह चीजें जो हज़रत आदम की लगज़िश के नतीजे में पैदा की गई हैं उनका दरवाजा बन्द रहता। उन तमाम चीजों के वजूद में आने के लिए हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की एक लगजिश का मुबारक नतीजा अच्छा फल है बुनियाद है। फिर यह कि नबियों की लगजिश की। यह आलम है कि सिद्दीकीन की नेकियों से भी फजीलत रखती हैं। हमारी और आप की क्या गिनती। जैसा कि मसल मशहूर है कि :*_

_*📝तर्जमा : नेक लोगों के अच्छे काम मुकर्रबीन के लिए बुराईया हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 24/25*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 056)*_
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                   _*एक जरूरी मसअ्ला*_

_*अम्बिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम से जो लगजिशें हुई उनका जिक्र कुर्आन शरीफ और हदीस शरीफ की रिवायत के अलावा बहुत सख्त हराम है। दूसरों को उन सरकारों के बारे में जबान खोलने की मजाल और हिम्मत नहीं। अल्लाह तआला उनका मालिक है जिस तरह चाहे सुलूक करे और वह उसके प्यारे बन्दे हैं, अपने रब के लिए जैसी चाहें इनकिसारी करें। किसी दूसरे के लिए यह हक नहीं कि नबियों ने जो अल्फाज अपने लिए इनकिसारी से इस्तेमाल किए हैं उनको सनद बनाए और उनके लिए बोले।*_

_*फिर यह कि उनके यह काम जिनको लगज़िश कहा गया है उनसे बहुत से फायदों और बरकतों का नतीजा निकलता है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 24*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 055)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*☝🏻अक़ीदा :- सब से पहले नुबुव्वत का मरतबा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मिला और मिसाक के दिन तमाम नबियों से हुजूर पर ईमान लाने और हुजूर की मदद करने का वअदा लिया गया। और इसी शर्त पर उन नबियों को यह बड़ा मनसब दिया गया। 'मीसाक' का मतलब यह है कि एक रोज अल्लाह तआला ने सब रूहों को जमा करके यह पूछा कि क्या मैं तुम्हारा नहीं हूँ तो जवाब में सब से पहले हमारे हुज़ूर (सल्लल्लाहू तबारक व तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने हाँ कहा था। अल्लाह तआला ने सब को और सारे नबियों को हुज़ूर पर ईमान लाने और उनकी मदद करने का वादा लिया था। यही 'मीसाक का मतलब है। हुज़ूर सारे आलम के नबी तो है ही। लेकिन साथ ही नबियों के भी नबी हैं और सारे नबी हुज़ूर के उम्मती हैं। इसीलिए हर नबी ने अपने अपने ज़माने में हुज़ूर के क़ाइम् मुकाम काम किया अल्लाह तआला ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुनव्वर किया। इस तरह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर जगह मौजूद हैं। जैसा कि एक शायर का अरबी शेर है।*_

_*तर्जमा :- "आप ऐसे नूर हैं जैसा कि सूरज बीच आसमान में है और उसकी रौशनी तमाम शहरों में बल्कि मशरिक से मगरिब तक हर सम्त में फैली हुई है।*_

_*गर न बीनद बरोज शप्परा चश्म,*_
_*चश्मये आफताब रा चे गुनाह.*_

_*तर्जमा :- “अगर चमगादड़ दिन को नहीं देखता तो इसमें सूरज की किरनों का क्या कुसूर है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 23/24*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 054)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला के नाइब हैं। सारा आलम हुजूर के तसरूफ (इख्तियार या कब्जे) में कर दिया गया है। जो चाहें करें, जिसे जो चाहें दें जिससे जो चाहे वापस ले लें। तमाम जहान में उनके हुक्म का फेरने वाला कोई नहीं तमाम जहान उनका महकूम है। वह अपने रब के सिवा किसी के महकूम नहीं और तमाम आदमियों के मालिक हैं। जो उन्हें अपना मालिक न जाने वह सुन्नत की मिठास से महरूम रहेगा। तमाम ज़मीन उनकी मिल्कियत है, तमाम जन्नत उनकी जागीर है,*_

_*(मलकूतुस्समावाति वल अर्द) यानी आसमानों और जमीनों के फ़रिश्ते हुजूर ही के दरबार से तकसीम होती हैं। दुनिया और आखिरत हुजूर की देन का एक हिस्सा है। शरीअत के अहकाम हुजूर के कब्जे में कर दिए गए कि जिस पर जो चाहें हराम कर दें और जिस के लिए जो चाहें हलाल कर दें और जो फर्ज चाहें माफ कर दें।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 23*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 053)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुज़ूर की शान में जो अल्फाज इस्तेमाल किए जायें वह अदब में डूबे हुए हों। कोई ऐसा लफ्ज़ जिससे ताजीम में कमी की बू आती हो कभी जुबान पर न लाए।*_

_*अगर हुजूर को पुकारना हो तो उनको उनके नाम के साथ न पुकारो मुहम्मद या मुस्तफा या मुर्तजा न कहो बल्कि इस तरह कहो :*_

_*📝तर्जमा :- "ऐ अल्लाह के नबी, ऐ अल्लाह के रसूल, ऐ अल्लाह के हबीब ज्यारत की दौलत मिल जाए तो रोजे के सामने चार हाथ के फासले से अदब के साथ हाथ बाँध कर (जैसे नमाज़ में खड़े होते हैं) खड़ा हो कर सर झुकाए हुए सलात ओ सलाम अर्ज करे। बहुत करीब न जायें और न इघर उधर देखें और खबरदार कभी आवाज बलन्द न करना क्योंकि उम्र भर का सारा किया धरा अकारत (बेकार) जाएगा।*_

_*हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुजूर की बातें उनके काम और उनका हाल लोगों से पूछे और उनकी पैरवी करे। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अकवाल, अफआल किसी अमल और किसी हालत को अगर कोई हिकारत की नजर से देखे वह काफिर है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 23*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 052)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*हुज़ूर से महब्बत की पहचान यह भी है। कि हुजूर के आल, असहाब, महाजिरीन, अन्सार तमाम सिलसिले और तअल्लुक रखने वालों से महब्बत रखी जाए और अगरचे अपना बाप, बेटा भाई और खानदान का कोई करीबी क्यों न हो अगर हुजूर से उसे किसी तरह की दुश्मनी हो तो उससे अदावत रखी जाए अगर कोई ऐसा न करे तो वह हुज़ूर के महब्बत के दावे में झूठा है।*_

_*सब जानते हैं। कि सहाबए किराम ने हुजूर सल्ललल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की महब्बत में अपने रिश्तेदारों करीबी लोगों बाप भाईयों और वतन को छोड़ा क्यूंकि यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत भी हो और उनके दुश्मनों से भी महब्बत बाकी रहे। यह दोनों चीजें एक दूसरे की जिद हैं और दो अलग अलग रास्ते हैं एक जन्नत तक पहुँचाता है और एक जहन्नम के घाट उतारता है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 22/23*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 051)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर की ताजीम और तौकीर अब भी उस तरह फर्जे ऐन है जिस तरह उस वक्त थी। कि जब हुजूर हमारी जाहिरी आंखों के सामने थे। जब हुजूर का जिक्र आए तो बहुत आजिज़ी, इन्किसारी और ताजीम के साथ सुने और हुजूर का नाम लेते ही और उनका नामे पाक सुनते ही दुरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है।*_

_*📝तर्जमा :- "ऐ अल्लाह तू दूरूद, सलाम और बरकत नाजिल फरमा हमारे आका व मौला पर जिनका नामे पाक मुहम्मद है। जो सखावत और करम की कान हैं, उनकी करामत वाली औलादों और उनके अजमत वाले दोस्तों पर भी”।*_

_*हुजूर से महबत की अलामत यह है कि ज्यादा से ज्यादा उनका जिक्र करे और ज्यादा से ज्यादा उन पर दूरूद भेजे। और जब हुजूर का नाम लिखा जाए तो (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) पुरा लिखा जाए। कुछ लोग ‘सलअम या 'स्वाद लिख देते हैं यह नाजाइज व हराम है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 22*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 050)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*2) एक दूसरी हदीस यह है कि हिजरत के वक्त पहते खलीफा हज़रते अबूबक्र रदियल्लाहू तआ़ला अन्हु हुजूर के साथ थे। रास्ते में "गारे सौर मिला। गारे सौर में हजरत अबूबक्र पहले गए देखा गार में बहुत से सुराख हैं। उन्होंने अपने कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के सूराख बन्द किए इत्तिफ़ाक से एक सूराख बाकी रह गया उन्होंने उस सूराख में अपने पाँव का अँगूठा रख दिया फिर हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को बुलाया सरकार तशरीफ ले गये और हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु के जानू पर सर रखकर आराम फरमाने लगे। उधर अंगूठे वाले सूराख में एक ऐसा सांप था जो सरकार की जियारत के लिए बहुत दिनों से बेताब था। उसने अपना सर हजरते सिद्दीक के अंगूठे पर रगड़ा लेकिन इस ख्याल से कि हुजूर के आराम में फर्क न आए पाँव को नहीं हटाया। आखिरकार उस सांप ने काट लिया। सांप के काटने से हुज़ूर सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु को बहुत तकलीफ हुई। यहाँ तक कि हज़रते अबूबक की आखों में आँसू आ गए और आंसूओं के कतरे हुजूर के चेहरए अनवर पर गिरे। सरकार ने आंखे खोल दी। हजरते अबूबक्र ने सरकार से अपनी तकलीफ और सांप के काटने का हाल बताया हुजूर ने तकलीफ की जगह पर अपना लुआबे दहन लगा दिया। लुआबे दहन लगाते ही उन्हें आराम मिल गया लेकिन हर साल उन्हीं दिनों में साँप के जहर का असर जाहिर होता था बारह बरस के बाद उसी जहर से हजरते अबूबक्र की शहादत हुई।*_

_*साबित हुआ कि जुमला फ़ाइज फूरूअ् हैं।*_
_*असलुल उसूल बन्दगी उस ताजवर की हैं।*_

_*🖋आलाहजरत रदियल्लाहु तआला अन्हु*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 22*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 049)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ताजीम व अजमत का एअतिकाद रखना ईमान का हिस्सा और ईमान का रूक्न है और ईमान के बाद ताजीम का काम हर फ़र्ज़ से पहले है।*_

_*हुजूर की महब्बत भरी इताअत के बहुत से वाकिआत मिलते हैं। यहाँ समझाने के लिए नीचे दो वाकिआत लिखे जाते हैं जो कि हदीसे पाक में गुजरे।*_

_*1) हदीस शरीफ में है कि गजवये खैबर' से वापसी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ‘सहबा' नाम की जगह पर अस्र की नमाज पढकर मौला अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु के जानू पर अपना मुबारक सर रख कर आराम फरमाने लगे। मौला अली ने अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी। देखते देखते सूरज डूब गया और अस्र की नमाज का वक्त चला गया लेकिन हज़रते अली ने अपना जानू इस ख्याल से नहीं सरकाया कि शायद हुजूर के आराम में खलल आये। जब हुजूर ने अपनी आंखें खोलीं तो हजरत अली ने अपनी अस्र की नमाज़ के जाने का हाल बताया। हुजूर ने सूरज को हुक्म दिया डुबा हुआ सूरज पलट आया। मौला अली ने अपनी अस्र की नमाज अदा की और जब हजरत अली ने नमाज अदा कर ली तो सूरज फिर डूब गया। इससे साबित हुआ कि मौला अली ने हुजूर की इताअत और महब्बत में इबादतों में सबसे अफजल नमाज और वह भी बीच वाली (अस्र) की नमाज हुजूर के आराम पर कुर्बान कर दी क्यूंकि हकिकत में बात यह है कि इबादतें भी हमे हुज़ूर ही के सदक़े में मिली है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 21/22*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 048)*_
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                     _*नबी से महब्बत*_

_*हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की महब्बत अस्ल ईमान बल्कि ईमान उसी महब्बत ही का नाम है। जब तक हुजूर की महब्बत मा, बाप, औलाद और सारी दुनिया से ज्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता।*_

_*अक़ीदा :- हुजूर की इताअत ऐन (बिल्कुल) इताअते इलाही है और इताअते इलाही बिना हुजूर की इताअत के नामुमकिन है। यहाँ तक कि कोई मुसलमान अगर फर्ज़ पढ़ रहा हो और हुजूर उसे याद फरमाएं मतलब आवाज़ दें तो वह फौरन जवाब दे और उनकी खिदमत में हाजिर हो। वह शख्स जितनी देर तक भी हुजूर से बात करे वह उस नमाज में ही है। इससे नमाज़ में कोई खलल नहीं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 21*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 047)*_
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_*"ऐ अल्लाह हम भी तेरे महबूब की शफाअत के मुहताज हैं। तू हमारी फरियाद सुन ले । हमारी दुआ है कि :-*_

_*तर्जमा :- " ऐ अल्लाह हमको अपने हबीबे मुकर्रम (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की शफाअत अता फरमा जिस दिन न माल काम आयेगा न बेटे मगर वह जो अल्लाह के पास हाजिर हुआ सलामत दिल लेकर”। शफाअत के कुछ और हालात और हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की और दूसरी खुसूसियतें जो कियामत के दिन जाहिर होंगी इन्शाअल्लाहु तआला आखिरत के हालात में बताई जायेगी।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 21*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 046)*_
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_*शफाअत चाहे हुज़ूर खुद फरमायें या किसी दूसरे को शफाअत की इजाजत दें हर तरह की शफाअत हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के लिए साबित है। हुज़ूर की किसी किस्म का शफाअत का इन्कार करना गुमराही है।*_

_*अक़ीदा - शफाअत का मनसब हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को दिया जा चुका।*_

_*सरकार ﷺ खुद इरशाद फरमाते हैं कि :-*_

_*तर्जमा - मझे शफाअत का मनसब दिया जा चुका है और अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है कि :-*_

_*तर्जमा - मग़फ़िरत चाहो (ऐ रसूल) अपने खासों के गुनाहों और आम मोमिनन और मोमिनात कि।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 20/21*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 045)*_
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_*शफाअत की और भी किस्में हैं जैसे यह कि हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) बहुतों को बिना हिसाब जन्नत में दाखिल करायेंगे जिनमें चार अरब नव्वे करोड़ की गिनती का पता है बल्कि और भी ज्यादा हैं जिन्हें अल्लाह जानता है और अल्लाह तआला के प्यारे रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) जानते हैं।*_

_*बहुत से वह लोग होंगे जिनका हिसाब हो चुका है और जहन्नम के लाइक हो चुके, उनको हजर दोजख से बचायेंगे। और ऐसे लोग भी होंगे जिनकी शफाअत करके जहन्नम से निकालेंगे।*_

_*हुजूर की शफाअत से कुछ लोगों के दर्जे बलन्द किए जायेंगे और ऐसे भी होंगे जिनका अजाब हल्का किया जायेगा।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 20*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 044)*_
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_*☝🏻अक़ीदा- कियामत के दिन शफाअते कुबरा का मरतबा हुजूर अलैहिस्सलाम के खसाइस में से एक खुसूसियत है कि जब तक हुजूर शफाअत का दरवाजा नहीं खोलेंगे किसी को शफाअत की मजाल न होगी बल्कि जितने भी शफाअत करने वाले होंगे हुजूर के दरबार में शफाअत लायेंगे और अल्लाह तआला के दरबार में हुजूर की यह "शफाअते कुबरा' मोमिन, काफिर, फरमॉबरदारी करने वाले और गुनाहगार। सबके लिए है। क्यूंकि वह हिसाब किताब का इन्तेजार जो बहुत सख्त जान लेवा होगा जिसके लिए। लोग तमन्नायें करेंगे कि काश जहन्नम में फेंक दिए जाते और इस इन्तेजार से नजात मिल जाती, इस बला से छुटकारा काफिरों को भी हुजूर की वजह से मिलेगा जिस पर पहले के बाद के मुवाफिक, मुखालिफ, मोमिन और काफिर सब लोग हुजूर की हम्द (तारीफ) करेंगे। इसी का नाम मकामे महमूद है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 20*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 043)*_
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_*☝🏻अक़ीदा- हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के ख़साइस में से एक यह भी है। कि उन्हें मेअ्राज हुई। हुजूर अलैहिस्सलाम अपने जाहिरी जिस्म के साथ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अकसा और वहां से सात आसमानों कुर्सी और अर्श तक बल्कि अर्श से भी ऊपर रात के एक थोड़े से हिस्से में तशरीफ ले गए और उन्हें वह खास कुरबत हासिल हुई जो कभी भी न किसी बशर को हुई और किसी फ़रिश्ते को मिली और न ऐसी कुरबत किसी को मिल सकती है।*_

_*हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने अल्लाह का जमाल अपने सर की आँखों से देखा और अल्लाह का कलाम बिना किसी ज़रिए के सुना और जमीन व आसमान के हर जर्रे को तफ़सील से देखा। पहले और बाद की सारी मखलूक हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की मुहताज और न्याजमन्द है यहाँ तक कि हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम भी।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 20*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 042)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर जैसा किसी का होना मुहाल है। हुजूर की खास सिफ्तों में अगर कोई किसी को हुजूर का मिस्ल बताए वह गुमराह या काफिर है।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को अल्लाह तआला ने "महबूबियते कुबरा" का मतरबा दिया है। यहां तक कि तमाम मखलूक मौला की रजा चाहती है और अल्लाह तआला हजरत मुहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की रजा चाहता है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 19*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 041)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर खातमुन्नबीय्यीन हैं अल्लाह तआला ने नुबुव्वत का सिलसिला हुजूर पर खत्म कर दिया। हुजूर के जमाने में या उनके बाद कोई नबी नहीं हो सकता जो कोई हुजूर के जमाने में या उनके बाद किसी को नुबुवत मिलना माने या जाइज समझे वह काफिर है।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- अल्लाह तआला की तमाम मखलूकात से (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) अफजल हैं। कि औरों को अलग अलग जो कमालात दिए गए हुजूर में वह सब इकट्टा कर दिए गए और उनके अलावा हुजूर को वह कमालात मिले जिन में किसी का हिस्सा नहीं बल्कि औरों को जो कुछ मिला हुजूर के तुफैल में बल्कि हुजूर के मुबारक हाथों से मिला और 'कमाल' इसलिए कमाल हुआ कि कमाल हुजूर की सिफत है और हुजूर अपने रब के करम से अपने नफ्से जात में कामिल और अकमल हैं । हुजूर का कमाल किसी वस्फ से नहीं बल्कि उस वस्फ का कमाल है कि कामिल (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की सिफत बनकर खुद कमाल, कामिल और मुकम्मल हो गया कि जिसमें पाया जाए उसको कामल बना दे।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 19*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 040)*_
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          _*हमारे नबी की चन्द खुसूसियात।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के अलावा दूसरे नबीयों को किसी एक खास कौम के लिए भेजा गया और हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) तमाम मखलूक, इन्सानों, जिनों फरिश्तों हैवानात और जमादात सब के लिए भेजे गये। जिस तरह इन्सान के जिम्मे हुजूर की इताअत फर्ज और ज़रूरी है इसी तरह हर मखलूक पर हुजूर की फरमाँबरदारी फर्ज और जरूरी है।*_

_*☝🏻अक़ीदा - हुजूर अकदस (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) फरिश्ते, इन्सान, जिन्न, हुर गिलमान, हैवानात और जमादात गर्ज तमाम आलम के लिए रहत हैं और मुसलमानों पर तो बहुत ही मेहरबान हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 19*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 039)*_
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_*☝🏻अकीदा : अम्बिया अलैहिमुस्सलान अपनी अपनी कब्रों में उसी तरह हक़ीकी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं जैसे दनिया में थे। खाते पीते हैं जहाँ चाहे आते जाते है। अलबत्ता अल्लाह तआला के। वादे कि “हर नफ्स को मौत का मजा चखना है' के मुताबिक नबियों पर एक आन के लिए मौत आई। और फिर उसी तरह जिन्दा हो गए जैसे पहले थे।*_

_*उनकी हयात शहीदों की हयात से कहीं ज्यादा बलन्द व बाला है इसीलिए शरीअत का कानून यह है कि शहादत के बाद शहीद का तर्का (बचा हुआ माल) तकसीम होगा। उसकी बीवी इद्दत गुजार कर दूसरा निकाह कर सकती है लेकिन नबियों के यहां यह जाइज नहीं। अब तक नुबुव्वत के बारे में जो अक़ीदे बताए गए इनमें तमाम नबी शरीक है।*_

_*अब कुछ वह चीजें जो हम सब के आका व मौला मदनी ताजदार सरकारे रिसालत हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के लिए खास है बयान किये जाते हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18/19*_

_📍इन्शाअल्लाह अगले पोस्ट में बताया जायेगा_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 038)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - जो शख्स नबी न हो और अपने आप को नबी कहे वह नबियों की तरह आदत के खिलाफ अपने दावे के मुताबिक कोई काम नहीं कर सकता वर्ना सच्चे और झूटे में फर्क नहीं रह जायेगा।*_

_*फायदा - किसी नबी से अगर इजहारे नुबुव्वत के बाद आदत के खिलाफ कोई काम जाहिर हो तो उसे मोजिजा कहते हैं। नबी से उस के इजहारे नुबुव्वत से पहले कोई काम आदत के खिलाफ जाहिर हो तो उसे इरहास कहते हैं। खिलाफे आदत काम का मतलब ऐसे काम से है जिसे अक्ल तस्लीम करने से आजिज हो और जिन का करना आम आदमी के लिए नामुमकिन हो।*_

_*और वली से ऐसी बात जाहिर हो तो उसको करामत कहते हैं। आम मोमिनीन से अगर इस तरह का कोई काम होता तो उसे मुऊनत कहते हैं और बेबाक लोगों फासिको फाजिरों या काफिरो से जो उनके मुताबिक जाहिर हो उसे इस्तिदराज कहते हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 037)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - तमाम नबी अल्लाह तआला की बारगाह में इज्जत वाले हैं। उनके बारे में यह कहना कि वह अल्लाह तआला के नजदीक चूड़े चमार की तरह हैं, कुफ़्र और बेअदबी है।*_

_*☝🏻अक़ीदा - नबी के नुबुवत के बारे में सच्चे होने की एक दलील यह है कि नबी अपनी सच्चाई का एलानिया दावा कर के वह चीजे जो आदत के एअ्तिबार से मुहाल हैं उन्हें जाहिर करने का जिम्मा लेता है और जो लोग नबी की नुबुवत और सदाकत का इन्कार करते हैं यह उन काफिरों को चैलेन्ज करते हैं कि अगर तुम में सच्चाई हो तो तुम भी ऐसा कर दिखाओ लेकिन सारे के सारे काफिर आजिज़ रह जाते हैं और नबी अपने दावे में कामयाब होकर आदत के एअ्तिबार से जो चीज मुहाल होती हैं उनको अल्लाह के हुक्म से जाहिर करता है और इसी को मोजिजा कहते हैं जैसे हजरते सालेह अलैहिस्सलाम की ऊँटनी, हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम के असा (छड़ी) का साँप हो जाना, उनकी हथेली में चमक का पैदा होना और हजरते ईसा अलैहिस्सलाम का मुर्दो को जिलाना और पैदाइशी अन्धो और कोढियों को अच्छा कर देना। और हमारे हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के तो बहुत से मोजिजे हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 036)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- नबियों के अलग अलग दर्जे हैं कुछ नबी कुछ से फजीलत रखते हैं और सब में अफजल हमारे आका व मौला सय्यदुल मुरसलीन (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) हैं।*_

_*हमारे सरकार के बाद सब से बड़ा मरतबा हजरत इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम का है। फिर हजरते मुसा अलैहिस्सलाम फिर हजरते ईसा अलैहिस्सलाम और हजरते नूह अलैहिस्सलाम का दर्जा है।।*_

_*इन पाँचों नबियों को मुरसलीने उलुल अज्म कहते हैं और पाँचों बाकी तमाम नबियों रसूलों इन्सान, फरिश्ते, जिन्न और अल्लाह की तमाम मखलूक से अफज़ल हैं।*_

_*जिस तरह हुजूर तमाम रसूलों के सरदार और सबसे अफजल हैं तो उनकी उम्मत भी उन्हीं के सदके और तुफैल में तमाम उम्मतों से अफ़ज़ल है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 035)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- नबियों की तादाद मुकरर्र करना जाइज नहीं क्यों कि तादाद मुकरर्र करने और उसी तादाद पर ईमान रखने से यह खराबी लाजिम आयेगी कि अगर जितने नबी आये उन से हमारी गिनती कम हुई तो जो नबी थे उनको हमने नुबुवत से खारिज कर दिया और अगर जितने नबी आए उन से हमारी गिनती ज्यादा हुई तो जो नबी नहीं थे उन को हमने नबी मान लिया यह दोनों बातें इस लिए ठीक नहीं कि पहली सूरत में नबी नुबुब्बत से खारिज हो जाएंगे और दूसरी सूरत में जो नबी नहीं वह नबी माने जाएंगे और अहले सुन्नत का मजहब यह है कि नबी का नबी न मानना या ऐसे को नबी मान लेना जो नबी न हो कुफ है।*_

_*इसलिए एअ्तिकाद यह रखना चाहिए की हर नबी पर हमारा ईमान है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17/18*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 034)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- सब में पहले नबी हज़रते आदम अलैहिस्सलाम हुए और सब में पहले रसूल जो काफिरों पर भेजे गए हज़रते नूह अलैहिस्सलाम हैं।*_

_*उन्होंने साढे नौ सौ बरस तबलीग की। उनके जमाने के काफिर बहुत सख़्त थे। वह हज़रते नूह अलैहिस्सलाम को दुख पहुँचाते और उनका मजाक उड़ाते। यहाँ तक कि इतनी लम्बी मुद्दत में गिनती के लोग मुसलमान हुए। बाकी लोगों को जब उन्होंने देखा कि वह हरगिज़ राहे रास्त पर नहीं आयेंगे और अपनी हठधर्मी और कुफ़ से बाज नहीं आयेंगे तो मजबूर होकर उन्होंने अपने रब से काफिरों की हलाकी और तबाही के लिए दुआ की।*_

_*नतीजा यह हुआ कि तूफान आया और सारी जमीन डूब गई और सिर्फ वह गिनती के मुसलमान और हर जानवर का एक एक जोड़ा जो कश्ती में ले लिया गया था बच गया।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 033)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- हजरते आदम अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने बिना माँ बाप के मिट्टी से पैदा किया और अपना खलीफा (नाइब) बनाया और तमाम चीजों का इल्म दिया। फरिश्तों को अल्लाह ने हुक्म दिया कि हजरते आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा करें। सभी ने सजदे किए लेकिन शैतान जो जिन्नात की किस्म में से था मगर बहुत बड़ा आबिद और जाहिद होने की वजह से उसकी गिनती फरिश्तों में होती थी उसने हजरते आदम को सजदा करने से इन्कार कर दिया इसी लिए वह हमेशा के लिए मरदूद हो गया।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- हजरते आदम अलैहिस्सलाम से पहले कोई इन्सान नहीं था बल्कि सब इन्सान हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की ही औलाद हैं। इसीलिए इन्सान को आदमी कहते हैं यानी आदम की औलाद और चूंकि हजरते आदम अलैहिस्सलाम सारे इन्सानों के बाप हैं इसीलिए उन्हें 'अबुल बशर' कहा जाता है। यानी सब इन्सानों के बाप।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 032)*_
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_*☝🏻अकीदा:- हजरत आदम अलैहिस्सलाम से हमारे हुजूर सय्यदे आलम हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) तक अल्लाह तआला ने बहुत से नबी भेजे कुछ नबियों का जिक्र कुर्आन शरीफ में खुले तौर पर आया है और कुछ का नहीं। जिन नबियों के मुबारक नाम खुले तौर पर कुर्आन शरीफ में आये हैं वह हैं :*_

_*01). हज़रते आदम अलैहिस्सलाम*_
_*02). हज़रते नूह अलैहिस्सलाम*_
_*03). हज़रते इब्रहीम अलैहिस्सलम*_
_*04). हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम*_
_*05). हज़रते इसहाक अलैहिस्सलाम*_
_*06). हज़रते याकूब अलैहिस्सलाम*_
_*07). हज़रते युसूफ अलैहिस्सलाम*_
_*08). हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम*_
_*09). हज़रते हारून अलैहिस्सलाम*_
_*10). हज़रते शुऐब अलैहिस्सलाम*_
_*11). हज़रते लूत अलैहिस्सलाम*_
_*12). हज़रते हूद अलैहिस्सलाम*_
_*13). हज़रते दाऊद अलैहिस्सलाम*_
_*14). हज़रते सुलैमान अलैहिस्सलाम*_
_*15). हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम*_
_*16). हज़रते जकरिया अलैहिस्सलाम*_
_*17). हज़रते याहया अलैहिस्सलाम*_
_*18). हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम*_
_*19). हज़रते इल्यास अलैहिस्सलाम*_
_*20). हज़रते अलयसअ् अलैहिस्सलाम*_
_*21). हज़रते यूनुस अलैहिस्सलाम*_
_*22). हज़रते इदरीस अलैहिस्सलाम*_
_*23). हज़रते जुलकिफ्ल अलैहिस्सलाम*_
_*24). हज़रते सालेह अलैहिस्सलाम*_
_*25). और हम सब के आका और मौला हुजूर सय्यदुल मुरसलीन हज़रत मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम)*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 16/17*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 031)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - अम्बिया ए किराम तमाम मखलूकात यहाँ तक कि रसूलों और फरिश्तों से भी अफजल है। और वली कितना ही बडे मरतबे और दर्जे वाला हो किसी नबी के बराबर नहीं हो सकता। शरीअत का कानून है कि जो कोई गैर नबी को नबी से ऊँचा या नबी के बराबर बताये वह काफिर है।*_

_*☝🏻अक़ीदा - नबी की ताज़ीम फर्ज़े ऐन यानी हर एक पर फर्ज बल्कि तमाम फर्ज़ों की अस्ल है। यहा। तक कि अगर कोई नबी की अदना सी भी तौहीन करे काफिर है।।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 16*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 030)*_
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_*अगर कोई यह कहे कि नबी के लिए हर जर्रे का इल्म मानने से खालिक और मखलूक में बराबरी लाजिम आएगी उसका यह कहना बिल्कुल बातिल है। ऐसी बात काफ़िर ही कह सकता है। क्योकि बराबरी तो उस वक्त हो सकती है जबकि जितना इल्म मखलूक को मिला है उतना ही इल्म  खालिक के लिए भी माना और साबित किया जाये।*_

_*फिर यह कि जाती और अताई का फर्क बताने पर भी बराबरी और मसावात का इल्जाम देना खुले तौर पर ईमान और इस्लाम के खिलाफ है क्योंकि अगर इस फर्क के होते हुए भी बराबरी हो जाया करे तो लाजिम आयेगा कि मुमकिन और वाजिब वुजूद में बराबर हो जाएं। क्योंकि मुमकिन भी मौजूद है और वाजिब भी मौजूद है। इस पर भी मुमकिन और वाजिब को वुजूद में बराबर कहना खुला हुआ शिर्क है।*_

_*अम्बिया अलैहिमुस्सलाम गैब की खबरे देने के लिए आते ही हैं क्यूँकि दोज़ख, जन्नत, कियामत, हश्र, नश्र, और अज़ाब, सवाब, गैब नहीं तो और क्या है। नबियों का मनसब ही यह हैकि वह बातें बताये कि जिन तक अक्ल और हवास की भी पहुँच न हो सके और इसी का नाम गैब है। वलियों। को भी इल्मे गैब अताई होता है मगर वलियों को नबियो के जरिए से इल्मे गैब अता किया जाता है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 16*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 029)*_
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_*और नबियों की सिफतें या उनका इल्म जाती नहीं। जो लोग यह कहते हैं कि नबी अलैहिस्सलाम को किसी तरह का इल्में गैब नहीं वह कर्आन शरीफ की इस आयत के मुताबिक है।*_

_*📝तर्जमा :- कुर्आन शरीफ की कुछ बातें मानते हैं और कुछ का इन्कार करते हैं। वह आयतें देखते हैं। जिनसे इसे गैब की नफी मालूम होती है क्योंकि वह लोग उन आयतों को देखते और मानते हैं जिनसे नबियों से इल्में गैब की नफी का पता चलता है। और उन आयतों का इन्कार करते हैं जिनमें नबियों को इल्मे गैब दिया जाना (अता किया जाना) बयान किया गया है जब कि नफी (इल्मे गैब से इन्कार) और इसबात (इल्मे गैब का सुबूत) दोनों हक़ हैं। वह इस तरह कि नफ़ी इल्मे जाती की है क्यूंकि यह उलूहियत यानी अल्लाह तआला के लिए खास है और इसबात इल्में गैब अताई का है कि यह नबियों की ही शान और उन्हीं के लाइक है और उलूहियत के खिलाफ है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 16*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 028)*_
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_*☝🏻अकीदा :- इल्मे गैब के बारे में अहले सुन्नत का मज़हब और मसलक यह है कि अल्लाह तआला ने नबियों को अपने गैबों पर इत्तिला दी। यहाँ तक कि जमीन और आसमान का हर ज़र्रा हर नबी के सामने है। इल्मे गैब दो तरह का है एक इल्मे जाती और दूसरा इल्मे गैब अताई।*_

_*इल्मे गैब जाती सिर्फ अल्लाह तआला ही को है और इल्में गैब अताई नबियों और वलियों को अल्लाह तआला के देने से हासिल होता है। अताई इल्म अल्लाह तआला के लिए नामुमकिन और मुहाल है।*_

_*क्योंकि अल्लाह तआला की कोई सिफत या कमाल चाहे उसका सुनना, देखना, कलाम, ज़िन्दगी और मौत देना वगैरा सिफतें किसी की दी हुई नहीं हैं बल्कि जाती हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15/16*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 027)*_
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_*☝🏻अकीदा :- अम्बिया, अलैहिमुस्सलाम शिर्क से, कुफ़्र से और हर ऐसी चीज से पाक और मासूम हैं। जिस से मखलूक को नफ़रत हो जैसे झूट, खियानत और जिहालत वगैरा बुरी सिफतें।*_

_*और ऐसे कामों से भी पाक हैं जो उनके नुबुव्वत से पहले और नुबुव्वत के बाद वजाहत और मुरव्वत के खिलाफ है। इस पर सबका इत्तिफाक है। और कबीरा गुनाहों से भी सारे नबी बिल्कुल पाक और मासूम हैं।*_

_*और हक तो यह है कि नुबुव्वत से पहले और नुबुब्बत के बाद नबी सगीरा गुनाहों के इरादे से भी पाक और मासूम हैं।*_

_*☝🏻अकीदा :- अल्लाह तआला ने नबियों पर बन्दों के लिए जितने अहकाम नाजिल किए वह सब उन्होंने पहुँचा दिए। अगर कोई यह कहे कि किसी नबी ने किसी हुक्म को छुपा रखा तकिय्या यानी डर की वजह से नहीं पहुँचाया वह काफ़िर है क्योंकि तबलीगी अहकाम में नबियों से भूल चूक मुमकिन नहीं। ऐसी बीमारियाँ जिनसे नफरत होती है जैसे कोढ़, बर्स और जुजाम वगैरा से नबी के जिस्म का पाक होना जरूरी है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 026)*_
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_*📝तर्जमा :- "अल्लाह खुब जानता है जहां अपनी रिसालत रखे। यह अल्लाह का फल है जिसे चाहे। दे और अल्लाह बड़े फल वाला है।*_

_*☝🏻अकीदा :- शरीअत का कुानून यह है कि अगर कोई यह समझे कि आदमी कोशिश और मेहनत से नुबुब्बत तक पहुँच सकता है या यह समझे कि नबी से नुबुब्बत का जवाल यानी खत्म होना जाइज है वह काफ़िर है।*_

_*☝🏻अकीदा :- नबी का मासूम होना जरूरी है। इसी तरह मासूम होने की खुसूसियत फरिश्तों के लिए भी है। और नबियों और फरिश्तों के सिवा कोई मासूम नहीं। कुछ लोग इमामों को नबियों की तरह मासूम समझते हैं यह गुमराही और बद्दीनी है। नबियों के मासूम होने का मतलब यह है कि उनकी हिफाजत के लिए अल्लाह तआला का वादा है इसीलिए शरीअत का फैसला है कि उनसे गुनाह का होना मुहाल और नामुमकिन है अल्लाह तआला इमामों और बड़े बड़े वलियों को भी गुनाहों से बचाता है मगर शरीअत की रौशनी में उनसे गुनाह का हो जाना मुहाल भी नहीं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 025)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - नुबुव्वत ऐसी चीज नहीं कि आदमी इबादत या मेहनत के जरिए से हासिल कर सके।*_

_*बल्कि यह महज़ अल्लाह तआला की देन है कि जिसे चाहता है अपने करम से देता है और देता उसी को है कि जिसको उसके लायक बनाता है। जो नुबुव्वत हासिल करने से पहले तमाम बुरी आदतों से पाक और तमाम ऊँचे अखलाक से अपने आप को संवार कर विलायत के तमाम दर्जे तय कर चुकता है।*_

_*और अपने हसब, नसब, जिस्म, कौल और अपने सारे कामों में हर ऐसी बात से पाक होता है जिनसे नफ़रत हो।*_

_*और उसे ऐसी कामिल अक्ल अता की जाती है जो औरों की अक्ल से कहीं ज्यादा होती है यहाँ तक कि किसी हाकिम और फ़ल्सफी की अक्ल उसके लाखवें हिस्से तक नहीं पहुँच सकती।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 024)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- वही अल्लाह के पैगाम जो नबियों के लिए खास होते है उन्हें वहये नुबुव्वत कहते हैं।*_

_*और वहये नुबुव्वत नबी के अलावा किसी और के लिए मानना कुफ़्र है। नबी को ख्वाब में जो चीज़ बताई जाए वह भी वही है। उसके झूटे होने का कोई गुमान नहीं।*_

_*वली के दिल में कभी कभी सोते या जागते में कोई बात बताई जाती है उसको इल्हाम कहते हैं।*_

_*और वहये शैतानी वह है कि जो। शैतान की तरफ से दिल में कोई बात आये। यह वही काहिन (ज्योतिष) जादूगरों और दूसरे काफिरों और फासिको के लिए होती हैं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 14/15*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 023)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- कुर्आन मजीद ने अगली किताबों के बहुत से अहकाम मन्सूख कर दिए हैं इसी तरह। कुर्आन शरीफ की बाज़ आयातें बाज आयतों से मन्सूख हो गई हैं।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- नस्ख (मनसूख करने) का मतलब यह है कि कुछ अहकाम किसी खास वक्त तक के लिए। होते हैं मगर यह जाहिर नहीं किया जाता कि यह हुक्म किस वक्त तक के लिए है जब मिआ़द पूरी हो जाती है तो दूसरा हुक्म नाजिल होता है जिस में जाहिरी तौर पर यह पता चलता है कि वह पहला हुक्म उठा दिया गया और हक़ीक़त में देखा जाए तो उसके वक्त का खत्म होना बताया गया और मन्सूख का मतलब कुछ लोग बातिल होना कहते हैं लेकिन यह बहुत बुरी बात है। क्योंकि अल्लाह ﷻ के सारे हुक्म हक़ हैं उनके बातिल होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।*_

_*☝🏻अकीदा :- कुर्आन शरीफ की कुछ बातें मुहकम और कुछ बातें मुताशाबिह हैं। मुहकम वह बातें हैं। जो हमारी समझ में आती हैं और मुताशाबिह वह बातें हैं कि उनका पूरा मतलब अल्लाह ﷻ और अल्लाह के हबीब (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के सिवा कोई नहीं जानता और न जान सकता है। अगर कोई मुताशाबिह के मतलब की तलाश करे तो समझना चाहिए कि उसके दिल में कजी (टेढ़) है।।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 14*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 022)*_
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_*📖मसला - अगली किताबें नबियों को ही जुबानी याद होती लेकिन कुर्आन मजीद का मोजिज़ा है। कि मुसलमानों का बच्चा बच्चा उसको याद कर लेता है।*_

_*☝🏻अक़ीदा :- कुर्आन मजीद की सात किराते हैं। मतलब यह है कि कुर्आन मजीद सात तरीकों से पढ़ा जा सकता है और यह सातों तरीके बहुत ही मशहूर हैं उनमें से किसी जगह मआ़नी में कोई इख्तिलाफ़ नहीं। वह सब तरीके हक है। उसमें उम्मत के लिए आसानी यह है कि जिसके लिए जो किरात आसान हो वह पड़े। और शरीअत का हुक्म यह है कि जिस मुल्क में जिस किरात का रिवाज हो अवाम के सामने वही पढ़ी जाए।*_

_*कुर्आन शरीफ़ पढ़ने के सात क़ारियों के तरीके मशहूर हैं। यह सातों किरात के इमाम माने जाते है।*_
_*1). इब्ने आमिर*_
_*2). इब्ने कसीर*_
_*3). आसिम*_
_*4). नाफ़े*_
_*5). अबू उमर*_
_*6). हमजा*_
_*7). किसाई रहमतुल्लाहि अजमइन हमारे मुल्के हिन्दुस्तान में आसिम की रिवायत का ज्यादा रिवाज है। इसीलिए रिवाज को ध्यान में रखते हुए हिन्दुस्तान में आसिम की रिवायत से ही कुर्आन शरीफ पढ़ा जाता है।*_

_*क्योंकि अगर दूसरी रिवायत पढ़ी जाए तो लोग ना समझी में क़ुर्आन की आयत का इन्कार कर देंगे और यह कुफ़्र है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 14*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 021)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- क़ुर्आन मजीद अल्लाह की किताब होने पर अपने आप दलील है कि अल्लाह तआला ने खुद एलान के साथ फ़रमाया है कि :*_

_*📝तर्जमा :-अगर तुमको इस किताब में जो हमने अपने सबसे खास बन्दे हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) पर उतारी कोई शक हो तो उसकी मिस्ल (तरह) कोई छोटी सी सूरत कह लाओ। और अल्लाह के सिवा अपने सब हिमायतियों को बुलाओ अगर तुम सच्चे हो तो।*_

_*अगर ऐसा न कर सको और हम कह देतें हैं हरगिज ऐसा न कर सकोगे तो उस आग से डरो जिसका ईधन आदमी और पत्थर है जो काफिरों के लिए तैयार की गई है।*_

_*लिहाजा काफिरों ने उस के मुकाबिले में जान तोड़ कोशिश की मगर उसके मिस्ल एक सूरत न बना सके।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 13*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 020)*_
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_*☝🏻अकीदा :- चूंकि यह दीन हमेशा रहने वाला है इसलिए क़ुरआन शरीफ की हिफाजत अल्लाह तआला ने अपने जिम्मे रखी जैसा कि क़ुरआन शरीफ में है कि :*_

_*📝तर्जमा :- बेशक हमने क़ुर्आन  उतारा और बेशक हम खुद उसके ज़रूर निगेहबान हैं।*_

_*इसीलिए अगर तमाम दुनिया क़ुर्आन शरीफ़ के किसी एक हर्फ़, लफ़्ज़ या नुक्ते को बदलने की कोशिश करे तो बदलना मुमकिन नहीं।*_

_*तो जो यह कहे कि क़ुर्आन के कुछ पारे या सूरतें या आयतें या एक हर्फ़ भी किसी ने कम कर दिया या बढ़ा दिया या बदल दिया वह काफिर है क्योंकि उसने ऐसा कह कर ऊसपर लिखी आयत का इन्कार किया।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 13*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 019)*_
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_*☝🏻अकीदा :- सब आसमानी किताबें और सहीफ़े हक़ है और सब अल्लाह ही के कलाम है उनमें अल्लाह तआला ने जो कुछ इरशाद फरमाया उन सब पर ईमान जरूरी है। मगर यह बात अलबत्ता हुई कि अगली किताबों की हिफाजत अल्लाह तआला ने उम्मत के सुपुर्द की थी और अगली उम्मत। उन सहीफों और किताबों की हिफाजत न कर सकी इसलिए अल्लाह का कलाम जैसा उतरा था वैसा उनके हाथों में बाकी न रह सका बल्कि उनके शरीरों (बुरे लोगों) ने अल्लाह के कलाम में अदल बदल कर दिया जिसे तहरीफ कहते हैं।*_

_*उन्होंने अपनी ख्वाहिश के मुताबिक घटा बढ़ा दिया।*_

_*इसलिए जब उन किताबों की कोई बात हमारे सामने आये तो अगर यह बात हमारी किताब के मुताबिक है तो हम को तस्दीक करना चाहिए और अगर मुखालिफ है तो यकीन कर लेंगे कि उन अगली शरीर उम्मतियों की तहरिफ़ात से है।*_

_*और मुखालिफ या मुवाफिक कुछ पता न चले तो हुक्म है कि हम न तो तसदीक करें और न झुठलाये यूं कहें कि :*_

_*📝तर्जमा - अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसुलों पर हमारा ईमान है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 13*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 018)*_
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_*☝🏻अकीदा - बहुत से नबियों पर अल्लाह तआला ने सहीफ़े और आसमानी किताबें उतारीं। उन किताबों में से चार किताबें मशहूर हैं।*_

_*1). 'तौरैत- हजरते मूसा अलैहिस्सलाम पर।*_

_*2). 'ज़बूर- हजरते दाऊद अलैहिस्सलाम पर।*_

_*3). 'इन्जील- हजरते ईसा अलैहिस्सलाम पर।*_

_*4). 'कुरआन शरीफ' कि सबसे अफजल किताब है। और यह किताब सबसे अफजल रसूल नबियों के सरदार हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर नाजिल हुई। तौरैत, ज़बूर, इन्जील।*_

_*और कुरआन शरीफ यह सब अल्लाह तआला के कलाम हैं और अल्लाह ﷻ  के कलाम में किसी का किसी से अफ़ज़ल होने का हरगिज यह मतलब नहीं कि अल्लाह का कोई कलाम घटिया हो क्योंकि अल्लाह एक है उसका कलाम एक है। उसके कलाम में घटिया बदिया की कोई गुन्जाइश नहीं। अलबत्ता हमारे लिए कुरआन शरीफ में सवाब ज्यादा है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 12/13*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 017)*_
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_*नुबुव्वत के बारे में अकीदे*_

_*मुसलमानों के लिए जिस तरह अल्लाह ﷻ की जात और सिफात का जानना जरूरी है कि किसी दीनी जरूरी बात के इन्कार करने या मुहाल के साबित करने से यह काफिर न हो जाये इसी तरह। यह जानना भी जरूरी है कि नबी के लिए क्या जाइज है और क्या वाजिब और क्या मुहाल है क्यूंकि वाजिब का इन्कार करना और मुहाल का इकरार करना कुफ़्र की वजह है और बहुत मुमकिन है कि आदमी नादानी से अकीदा खिलाफ रखे या कुछ की बात जुबान से निकाले और हलाक हो जाए।*_

_*☝🏻अकीदा - नबी उस बशर को कहते हैं जिसे हिदायत के लिए वही भेजी हो अल्लाह तआला ने और रसूल बशर ही के साथ खास नहीं बल्कि फ़रिश्ते भी रसूल होते हैं।*_

_*☝🏻अकीदा - अम्बिया सब बशर थे और मर्द थे। न कोई औरत कभी नबी हुई न कोई जिन्न।*_

_*☝🏻अकीदा :- नबियों का भेजना अल्लाह तआला पर वाजिब नहीं। उसने अपने करम से लोगों की हिदायत के लिए नबी भेजे।*_

_*☝🏻अकीदा - नबी होने के लिए उस पर वही होना जरूरी है यह वही चाहे फरिश्ते के जरिए हो या बिना किसी वास्ते और जरिए के हो।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 12*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 016)*_
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_*वह आग कितने गज़ब की थी कि जिसमे काफ़िरों ने हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सल को डाला आग ऐसी थी के कोई उसके पास जा नही सकता था इसलिये उन्हें गोफ़न में रख कर फेंका गया ! जब आग के सामने पहुँचे तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और पूछा कि अगर कोई हाज़त हो तो आप बताये ! उन्होंने फ़रमाया की है लेकिन तुमसे नही ! और इस तरह इरशाद फ़रमाया कि :*_

_*📝तरजुमा : “उसको मेरे हाल का इल्म होना बस काफ़ी है मुझे अपनी हाज़त बयान करने से” !*_

_*उधर अल्लाह तआला ने आग को यह हुक़्म दिया कि*_

_*📝तरजुमा : “ऐ आग हो जा ठंडी और सलामती इब्राहीम पर”!*_

_*इस बात को सुनकर दुनिया में जहां कहीं पर आगें थीं यह समझते हुए सब ठंडी हो गयी कि शायद मुझी से कहा जा रहा है ! और नमरूद की आग तो ऐसी ठंडी हुई कि उलमा फ़रमाते हैं कि अगर उसके साथ वसलामन का लफ़्ज़ न होता तो आग इतनी ठंडी हो जाती की उसकी ठंड़क से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम को तक़लीफ़ पहुँच जाती ! बताना यह था कि आग का काम जलाने का जरूर है लेकिन अगर अल्लाह चाहे तो आग ठण्डी हो सकती है!*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 12*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 015)*_
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_*☝🏻अकीदा :- अल्लाह तआला के हर काम में हमारे लिए बहुत सी हिकमतें है.!*_

_*चाहे हम को मालूम हों या न हों और उसके काम के लिए कोई ग़र्ज़ नहीं क्यों कि ग़र्ज़ और गा़यत उस फायदे को कहते हैं जिसका तअल्लुक काम के करने वाले से हो और अल्लाह के काम किसी इल्लत और सबब के मुहताज नहीं अलबत्ता अल्लाह तआला ने कामों के लिए कुछ असबाब पैदा कर दिये हैं।*_

_*आँख के सबब से देखा जाता है कान के जरिये से सुना जाता है। आग जलाने का काम करती है और पानी के सबब से प्यास बुझाती है। लेकिन अगर अल्लाह चाहे तो भूख सुनने लगे कान देखने लगे पानी जलाने लगे और आग प्यास बुझाये। और न चाहे तो लाख आंखें हों दिन को भी पहाड़ नज़र नहीं आयेगा। और आग के अंगारे में तिनका भी बेदाग रहेगा।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 11*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी!*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 014)*_
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_*☝🏻अकीदा :- अल्लाह ﷻ जो चाहे और जैसे चाहे करे उस पर किसी को काबू नहीं और न कोई अल्लाह तआला को उसके इरादे से रोक सकता है। न वह ऊंघता है और न ही उसे नींद आती है। वह तमाम जहानों का निगेहबान है। वह न थकता है और न उकताता है।*_

_*वही सारे आलम का पालनहार है। माँ बाप से ज्यादा मेहरबान और हलीम है। अल्लाह ﷻ ही की रहमत टूटे हुए दिलों का सहारा है। और उसी के लिए बढ़ाई और अजमत हैं। माँओं के पेट में जैसी चाहे सूरत बनाने वाला वही है।*_

_*आल्लाह ﷻ ही गुनाहों का बख्शने वाला तौबा कबूल करने वाला और कहर और गजब फरमाने वाला है। और उसकी पकड़ ऐसी कड़ी है कि बिना उसके छुड़ाये कोई छूट ही नहीं सकता। अल्लाह ﷻ चाहे तो छोटी चीजों को बड़ी कर दे और फैली चीजों को समेट दे। वह जिसको चाहे ऊंचा कर दे और जिसको चाहे नीचा वह चाहे तो जलील को इज्जत दे और इज्जत वाले को जलील कर दे जिसको चाहे सीधे रास्ते पर लाये और जिसे चाहे सीधे रास्ते से अलग कर दे। जिसे चाहे अपने से करीब बना ले और जिसे चाहे मरदूद कर दे। जिसे जो चाहे दे और जिससे जो चाहे छीन ले। वह जो कुछ करता है या करेगा वह इन्साफ है और वह जुल्म से पाक व साफ है। अल्लाह हर बलन्द से बलन्द है। यहां तक कि उसकी बलन्दी की कोई थाह नहीं। वह सबको घेरे हुए है उसको कोई घेर नहीं सकता।*_

_*फ़ायदा और नुकसान उसी के हाथ में है। मजलूम की फ़रयाद को पहुँचता है। और ज़ालिम से बदला लेता है। उसकी मशीयत और इरादे के बगैर कुछ नहीं हो सकता वह भले कामों से खुश और बुरे कामों से नाराज होता है।*_

_*अल्लाह ﷻ की रहमत है कि वह ऐसे कामों का हुक्म नहीं करता जो हमारी ताकत से बाहर हों। अल्लाह तआला पर सवाब या अजाब या बन्दे के साथ मेहरबानी या बन्दे जो अपने लिए अच्छा जाने वह अल्लाह के लिए वाजिब नहीं। वह मालिक है जो चाहे करे और जो चाहे हुक्म दे।*_

_*हाँ अल्लाह ने अपने करम से अदा फरमा लिया है कि मुसलमानों को जन्नत में और काफिरों को जहन्नम में दाखिल करेगा। और उसके वअ्दे और वईद कभी बदला नहीं करते उसका यह भी वअ्दा है कि कुफ्र के सिवा हर छोटे बड़े गुनाहों को जिसे चाहे मुआफ़ कर देगा।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 11*_

_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी!*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 013)*_
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_*💫खैर यह तो जुमला बीच में आ गया मगर ईमान वालों के लिए बहुत नफा बख्श और इन्सानों में रहने वाले शैतानों की खबासत को दूर करने वाला है। कहना यह है कि कौमे लूत पर अज़ाब कज़ाए मुबरमे हकीकी था।*_

_*हजरते खलीलुल्लाह अलानबीय्यिना व अलैहिस्सलातु वस्सलाम उसमें झगड़े तो उन्हें इरशाद हुआ :*_

_*📝तर्जमा :- "ऐ इब्राहीम इस ख्याल में न पड़ो बेशक उन पर अज़ाब ऐसा आने वाला है जो फिरने, का नहीं ।” ......और वह कज़ा जो ज़ाहिर में कज़ाए मुअल्लक़ है उस कजाए मुअल्लक़ तक बहुत से औलिया किराम की पहुंच होती है और औलिया किराम की दुआ से उन की तवज्जह से यह कजा इन सब बातों का खुलासा यह है कि क्यों, कैसे, क्यूंकर आदि का सम्बन्ध अक्ल से है और अल्लाह तआला की जात तक अक्ल पहुंच ही नहीं सकती और जहां तक अक्ल पहुँचती है वह खुदा नहीं। जब अक्ल वहां तक नहीं पहुँच सकती तो अक्ल या नज़र उसे घेरे में ले भी नहीं सकती।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 10/11*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 012)*_
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_*तीसरी बात यह है कि जब यह आयत उतरी कि :*_

_*📝तर्जमा :- बेशक करीब है कि तुम्हें तुम्हारा रब इतना अता फरमायेगा कि तुम राज़ी हो जाओगे।*_

_*तो हुज़ूर सैय्यदुल महबूबीन (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने यह फरमाया कि :*_

_*📝तर्जमा :- अगर ऐसा है तो मैं नहीं राज़ी होंगा अगर मेरा एक उम्मती भी आग में हो। यह तो बड़ी ऊँची बातें है और उनकी शान तो ऐसी है कि जिस पर सारी बलन्दियाँ कुर्बान हैं।*_

_*मुसलमान के कच्चे बच्चे जो हमल से गिर जाते हैं उनके लिए भी हदीसों में आया है कि वे अपने माँ बाप की बख्शिश के लिए अपने रब से क़ियामत के दिन ऐसा झगड़ेगे कि जैसा कोई कर्ज़ा देने वाला अपने दिये हुए कर्जे के लिये झगड़ा करता है और उस झगड़ने वाले कच्चे बच्चे से यह कहा जायेगा कि :*_

_*📝तर्जमा :- ऐ अपने रब से झगड़ने वाले कच्चे बच्चे! अपने माँ बाप का हाथ पकड़ ले और जन्नत में चला जा।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 9*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 011)*_
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_*दूसरी बात यह है कि हदीस शरीफ़ में आया है कि मेराज की रात हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने एक आवाज ऐसी सुनी कि कोई अल्लाह ﷻ के साथ बहुत तेजी और जोर-जोर से बातें कर रहा है।*_

_*हुजूर अलैहिस्सलाम ने हजरते जिब्रील से पूछा कि यह कौन हैं ?*_

_*उन्होंने कहा कि यह मूसा अलैहिस्सलाम हैं।*_

_*हुजूर ﷺ ने फरमाया कि अपने रब पर तेज़ होकर बात करते हैं।*_

_*तो जवाब में हजरते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा कि "उनका रब जानता है कि उनके मिजाज में तेज़ी है"।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 9*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 010)*_
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_*अब कज़ा या तकदीर की तीन किस्में जिनके बारे में कुछ तफसील से लिखा जाता है*_

_*1). मुबरमे हक़ीक़ी : यह वह कज़ा है जिसकी तबदीली मुमकिन नहीं अगर इस बारे में अल्लाह के खास बन्दे कुछ कहते हैं तो उन्हें वापस कर दिया जाता है जैसा कि जब क़ौमे लूत पर फ़रिश्ते अजाब लेकर आये तो हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उन काफिरों को अजाब से बचाने के लिए कोशिश की और यहां तक कि, जैसा कि अल्लाह ﷻ ने क़ुर्आन शरीफ में इस बात को इस तरह बताया है कि :*_

_*📝तर्जमा - हमसे कौमे लूत के बारे में झगड़ने लगा। जो बेदीन यह कहते हैं कि अल्लाह के आगे कोई दम नहीं मार सकता और जो लोग अल्लाह की बारगाह में अल्लाह के महबूबों की कोई इज्जत नहीं मानते वह क़ुर्आन के इस टुकड़े को देखें कि अल्लाह ने अपने महबूब की इज्जत और शान को इन अल्फाज में बढ़ाया है कि इब्राहीम हम से झगड़ने लगा।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 9*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 009)*_
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_*☝🏻अकीदा - अल्लाह तआला ने हर भलाई और बुराई को अपने अजली इल्म के मुवाफिक मुकद्दर कर दिया है यानी जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था उसने अपने इल्म से जाना और वही लिख लिया। इसका यह मतलब हरगिज नहीं कि जैसा उसने लिख दिया वैसा ही हमको करना पड़ता है बल्कि हम जैसा करने वाले थे वैसा उसने लिख दिया है। अगर अल्लाह ने जैद के जिम्मे में बुराई लिखी तो इसलिये कि जैद बुराई करने वाला था अगर जैद भलाई करने वाला होता तो वह उसके लिये भलाई लिखता। अल्लाह तआला के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया। यह तकदीर की बातें हैं और तकदीर की बातों का इन्कार नहीं किया जा सकता। तकदीर के इन्कार करने वालों को हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने इस उम्मत का मजूस बताया है।*_

_*☝🏻अक़ीदा : - कज़ा या तकदीर की तीन किस्में हैं ।*_

_*1). मुबरमें हक़ीक़ी : कि इल्म इलाही में किसी शय पर मुअल्लक नहीं।*_

_*2). मुअल्लके महज : जो फरिश्तों के लिखे में किसी चीज पर उसका मुअल्लक होना। जाहिर फरमा दिया गया है यानी जो दुआ या सदकों से बदल जाए।*_

_*3). मुअत्लके शबीह व मुबरम : जिसके मुअल्लक होने का फ़रिश्तों के लेखों में जिक्र नहीं लेकिन अल्लाह के इल्म में मुअल्लक है। इस कज़ा की घटना होने न होने का दोहरा उल्लेख किसी शर्त के साथ है।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 8*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 008)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :अल्लाह का इल्म, जुज़्यात, कुल्लियात, मोजूदात मादुमात मुमकिनात और मुहालात को मुहित (घेरे हुए) है यानी सबको अज़ल में जानता था और अब भी जानता है और अबद तक जानेगा ! चीज़े बदल जाया करती है लेकिन अल्लाह तआला का इल्म नही बदलता ! वह दिलों की बातें और वसवसों को जानता है यहां तक कि उसके इल्म की कोई थाह नही !*_

_*☝🏻अक़ीदा : वह हर खुली और ढकी चीज़ों जानता है और उसका इल्म ज़ाती है और ज़ाती इल्म उसी के लिए ख़ास है ! जो कोई ढकी छिपी या जाहिरी चीज़ों का ज़ाती इल्म अल्लाह के सिवा किसी दूसरे के लिए साबित करे वह क़ाफ़िर है ! क्योंकि किसी दूसरे के लिए ज़ाती इल्म मानने का मतलब यह है कि बग़ैर खुदा के दिये खुद हासिल हो !*_

_*☝🏻अक़ीदा : अल्लाह ही हर तरह की ज़ातों और कामों की पैदा करने वाला है ! हक़ीक़त में रोज़ी पहुचाने वाला सिर्फ अल्लाह ही है और फ़रिश्ते रोज़ी पहुचाने के ज़रिए हैं !*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 8*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 007)*_
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_*☝🏻अक़ीदा : हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म और इरादा उसकी ज़ाती सिफ़तें हैं मगर आंख कान और जुबान से उसका सुनना, देखना और कलाम करना नही क्योंकि यह सब जिस्म  हैं और वह जिस्म से पाक है अल्लाह हर धीमी से धीमी आवाज़ को सुनता है ! वह ऐसी बारीक़ चीज़ों को भी देखता है जो किसी खुर्दबीन या दूरबीन से न देखी जा सकें बल्कि उसका देखना और सुनना इन्हीं चीज़ों पर मुनहसिर (निर्भर) नहीं बल्कि वह हर मौजूद को देखता और सुनता है !*_

_*☝🏻अक़ीदा : अल्लाह की दूसरी सिफ़तों की तरह उसका कलाम भी क़दीम है ! हादिस और मख़लूक़ नही जो कुरान शरीफ़ को मख़लूक़ माने उसे हमारे इमाम आज़म हज़रत इमामे अबु हनीफ़ा, दूसरे ईमामों, और सहाबा रदियल्लाहु तआला अन्हुम ने काफ़िर कहा है !*_

_*☝🏻अक़ीदा : अल्लाह का कलाम आवाज़ से पाक है और यह कुरान शरीफ़ जिसकी हम अपनी ज़ुबान से तिलावत करते हैं और किताबों तथा कागज़ में लिखते लिखाते है उसी का बिना आवाज़ के क़दीम कलाम है ! हमारा पढ़ना लिखना और यह हमारी आवाज़ हादिस और जो हमने सुना क़दीम ! हमारा ययद करना हादिस और हमने जो याद किया वो क़दीम ! इसे यूं समझो की तजल्ली हादिस और मुतजल्ली (तजल्ली डालने वाला) क़दीम है !*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 7, 8*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 006)*_
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_*☝🏻अकीदा :- अल्लाह हर कमाल और खूबी का जामेअ् है यानी उसमें सारी खूबियाँ हैं और अल्लाह हर उस चीज से पाक है जिसमें कोई भी ऐब बुराई या कमी हो यानी उसमें ऐब और नुकसान का होना मुहाल है।*_

_*बल्कि जिसमें न कोई कमाल हो और न कोई नुकसान वह भी उसके लिए मुहाल है।*_

_*मिसाल के तौर पर झूट बोलना, दगा देना, खियानत करना, जुल्म करना और जिहालत और बेहयाई वगैरा ऐब अल्लाह के लिए मुहाल है।*_

_*और यह कहना कि झूट पर कुदरत इस माना कर कि वह खुद झूट बोल सकता है मुहाल को मुमकिन ठहराना और खुदा को ऐबी बताना है बल्कि खुदा का इन्कार करना है*_

_*और यह समझना कि यदि वह मुहाल पर कादिर न होगा तो उसकी कुदरत नाकिस रह जायेगी बिल्कुल बातिल है यानी बेअस्ल और बेकार की बात है कि उसमें कुदरत का क्या नुकसान हैं। कमी तो उस मुहाल में है कि कुदरत से तअल्लुक की उसमें सलाहियत नहीं।*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 8*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 005)*_
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_*☝🏻अक़ीदा : वह हर मुमकिन पर क़ादिर है और कोई मुमकिन उसकी क़ुदरत से बाहर नही ! जो चीज़ मुहाल हो अल्लाह तआला उससे पाक है कि उसकी उसे शामिल हो क्योंकि मुहाल उसे कहतें हैं जो मोजूद न हो सके और जब उस पर क़ुदरत होगी तो मौजूद हो सकेगा ! ओर जब मौजूद हो सकेगा तो मुहाल कैसे हो सकेगा ! इसे इस तरह समझिए जैसे कि दूसरा खुदा मुहाल है यानी दूसरा खुदा हो ही नही सकता !*_

_*अगर दूसरा खुदा होना क़ुदरत के मातहत (अधीन) हो तो मौजुद हो सकेगा तो मुहाल नही रहा ! और दूसरे खुदा को मुहाल न मानना अल्लाह के एक होने का इनकार है !*_

_*यूँही अल्लाह का फ़ना हो जाना मुहाल है ! अगर अल्लाह तआला के फ़ना होने को क़ुदरत में दाख़िल माना जाए तो अल्लाह के अल्लाह होने से ही इनकार करना है !*_

_*एक बात समझने की है कि हर वह चीज़ जो अल्लाह की क़ुदरत कर मातहत हो वह मौजूद हो ही जाए यह कोई जरूरी नही ! जैसे कि यह मुमकिन है कि सोने चांदी की ज़मीन हो जाये लेकिन ऐसा नही है ! लेकिन ऐसा हो जाना हर हाल में मुमकीन रहेगा चाहे ऐसा कभी न हो !*_

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 7*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
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Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...